Monday, September 30, 2019

कालसर्प दोष से होने वाली हानियां

कालसर्प दोष से होने वाली हानियां

दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष, तंत्र, मंत्र, यंत्र, टोटका, वास्तु, कुंडली, हस्त रेखा, राशि रत्न,भूत प्रेत, जिन, जिन्नात, बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण, पितृ दोष, कालसर्प दोष, चंडाल दोष, गृह क्लेश, बिजनस, विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है Contact 9953255600


कालसर्प योग से पीडित जातक का भाग्य प्रवाह राहु-केतु अवरूद्ध करते है जिसके परिणाम स्वरूप जातक को अनेक प्रकार कि समस्याओं का सामना करना पडता है। जिस जातक की जन्मकुंडली में कालसर्प दोष होता है उसे विभिन्न दुख, कष्ट एवं परेशानीयों का सामना करना पडता है।

1. जातक के भाग्योदय में अनेक प्रकार की रूकावटें आती है।
2. जातक की प्रगति नहीं होती।
3. जातक को प्रत्येक कार्य में असफलता मिलती है।
4. जातक को जीविका चलाने का साधन नहीं मिलता यदि मिलता है तो उसे अनेक समस्याओं का सामना करना पडता है।
5. जातक को पैतृक धन-संपप्ति से लाभ नहीं होता।
6. जातक को शिक्षा में बाधा, स्मरण शक्ति का ह्नास होता है। उसकी शिक्षा प्रायः अधूरी रहती है।
7. जातक का विवाह नहीं हो पाता। वैवाहिक संबंध टूट जाते है।
8. जातक के घर संतान पैदा नहीं होती, यदि होती भी है तोे जीवित नहीं रहती।
9. जातक के घर पुत्र संतान उत्पन्न नहीं होती या अनेक पुत्रियां होती है।
10.जातक की संतान भी कुबुद्धि और उद्दंडी होती है।
11. जातक की संतान वृद्धावस्था में अलग हो जाती है अथवा दूर चली जाती है।
12. जातक का वैवाहिक जीवन कलहपूर्ण होता है।
13.जातक की पत्नि अज्ञानी, मूर्ख, कामुक, अल्पज्ञ तथा अविश्वासी होती है।
14.जातक अपने मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा के लिए निरंतर संघर्ष करता रहता है, फिर भी अपयश, आलोचना, उपेक्षा आदि से घिरा रहता है।
15.जातक को प्रेम संबंधों में निराशा ही हाथ लगती है।
16.जातक को भौतिक सूखों की कमी रहती है।
17. जातक के मन में सदैव निराशा बनी रहती है।
18. जातक अधिक परिश्रम करने के बाद भी धन का संचय नहीं कर पाता।
19. जातक धनवान होते हुए भी कंगाल बन जाता है। प्राप्ति से अधिक व्यय रहता है।
20. जातक के घर में कलह-क्लेश का वातावरण बना रहता है।
21. जातक सदैव किसी न किसी रोग से ग्रस्त रहता है।
22. जातक भयंकर गुप्त रोगों से आजीवन पीडित रहता है।
23. जातक मानसीक रूप से सदैव तनावग्रस्त रहता है। दिमाग में गुस्सा भरा रहता है। निरंतर परेशानीयों के कारण जातक चिडचिडे स्वभाव का हो जाता है।
24.जातक एक के बाद एक मुसीबतों का सामना करता है। भयंकर कठिनाई में जीवन व्यतीत करता है। जातक का जीवन संघर्षमय होता है।
25.जातक को भाई-बहनों, नातें-रिश्तेदारों एवं मित्रों से धोखा मिलता है।
26.जातक को गुप्त शत्रुओं से हानी उठानी पडती है।
27.जातक सदैव आर्थिक संकट से परेशान रहता है।
28.जातक के द्वारा दूसरों को दिया गया धन वापस नहीं मिलता।
29.जातक को व्यापार-व्यवसाय में हानि उठानी पडती है।
30.जातक को व्यापार में साझेदारों से धोखा मिलता है। बने-बनाए कार्यों में रूकावटें आती है।
31.जातक के घर में धन को लेकर झगडे की स्थिति बनी रहती है।
32. जातक को विदेश प्रवास में अत्यधिक कष्ट झेलने पडते है।
33 ..जातक को नौकरी में पदोन्नति नहीं होती है।
34. जातक के मकान में वास्तुदोष रहता है।
35. जातक हमेशा कर्ज के बोझ सेें दबा रहता है।
36. जातक को कोर्ट-कचहरी में हानी उठानी पडती है।
37. जातक को राज्य, सरकारी अधिकारीयों से असंतोष व अज्ञात भय बना रहता है।
38. जातक को अकस्मात शस्त्राघात अथवा जहर से अकाल मृत्यु होने का भय रहता है।
39. जातक को अनेक प्रकार की पीडाएं एवं कष्ट सहन करना पडता है।
40. जातक में धर्म और ईश्वर के प्रति श्रद्धा और विश्वास में कमी होती जाती है और वह नास्तिक बन जाता है।

श्राद्ध में दान की महिमा

श्राद्ध में दान की महिमा

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पितृ पक्ष के सोलह दिनों में श्राद्ध, तर्पण, पिण्डदान आदि कर्म कर पितरों को प्रसन्न किया जाता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार पितृ पक्ष में दान का भी बहुत महत्व है। मान्यता है कि दान से पितरों की आत्मा को संतुष्टि मिलती है और पितृदोष भी खत्म हो जाते हैं। आईए जानते हैं पितृपक्ष में क्या दान करने से क्या फल मिलता है-

गाय का दान- धार्मिक दृष्टि से गाय का दान सभी दानों में श्रेष्ठ माना जाता है। लेकिन श्राद्ध पक्ष में किया गया गाय का दान हर सुख और ऐश्वर्य देने वाला माना गया है।


सोने का दान- सोने का दान कलह का नाश करता है। किंतु अगर सोने का दान संभव न हो तो सोने के दान के निमित्त यथाशक्ति धन दान भी कर सकते हैं।

चाँदी का दान- पितरों के आशीर्वाद और संतुष्टि के लिए चाँदी का दान बहुत प्रभावकारी माना गया है।

वस्त्रों का दान- इस दान में धोती और दुपट्टा सहित दो वस्त्रों के दान का महत्व है। यह वस्त्र नए और स्वच्छ होना चाहिए।

भूमि दान- अगर आप आर्थिक रूप से संपन्न है तो श्राद्ध पक्ष में किसी कमजोर या गरीब व्यक्ति को भूमि का दान आपको संपत्ति और संतति लाभ देता है। किंतु अगर यह संभव न हो तो भूमि के स्थान पर मिट्टी के कुछ ढेले दान करने के लिए थाली में रखकर किसी ब्राह्मण को दान कर सकते हैं।

तिल का दान- श्राद्ध के हर कर्म में तिल का महत्व है। इसी तरह श्राद्ध में दान की दृष्टि से काले तिलों का दान संकट, विपदाओं से रक्षा करता है।

घी का दान- श्राद्ध में गाय का घी एक पात्र (बर्तन) में रखकर दान करना परिवार के लिए शुभ और मंगलकारी माना जाता है।

अनाज का दान- अन्नदान में गेंहू, चावल का दान करना चाहिए। इनके अभाव में कोई दूसरा अनाज भी दान किया जा सकता है। यह दान संकल्प सहित करने पर मनोवांछित फल देता है।

गुड़ का दान- गुड़ का दान पूर्वजों के आशीर्वाद से कलह और दरिद्रता का नाश कर धन और सुख देने वाला माना गया है।

नमक का दान- पितरों की प्रसन्नता के लिए नमक का दान बहुत महत्व रखता है।

।। गुरू अष्टकम् ।। GURU ASHTKAM

।। गुरू अष्टकम् ।। GURU ASHTKAM


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शरीरं सुरूपं तथा वा कलत्रं यशश्र्चारु चित्रं धनं मेरुतुल्यं
मनश्र्चेन लग्नं गुरोरङ्घ्रिपद्मे ततः किं ततः किं ततः किं ततः किं ||1

भावार्थ— यदि शरीर रुपवान हो, पत्नी भी रूपसी हो और सत्कीर्ति चारों दिशाओं में विस्तरित हो, मेरु पर्वत के तुल्य अपार धन हो, किंतु गुरु के श्रीचरणों में यदि मन आसक्त न हो तो इन सारी उपलब्धियों से क्या लाभ?

कलत्रं धनं पुत्रपौत्रादि सर्वं गृहं बान्धवाः सर्वमेतद्धि जातम्
मनश्र्चेन लग्नं गुरोरङ्घ्रिपद्मे ततः किं ततः किं ततः किं ततः किं ||2

भावार्थ— सुन्दरी पत्नी, धन, पुत्र-पौत्र, घर एवं स्वजन आदि प्रारब्ध से सर्व सुलभ हो किंतु गुरु के श्रीचरणों में मन की आसक्ति न हो तो इस प्रारब्ध-सुख से क्या लाभ?

षडङ्गादिवेदो मुखे शास्त्रविद्या कवित्वादि गद्यं सुपद्यं करोति
मनश्र्चेन लग्नं गुरोरङ्घ्रिपद्मे ततः किं ततः किं ततः किं ततः किं || 3

भावार्थ— वेद एवं षटवेदांगादि शास्त्र जिन्हें कंठस्थ हों, जिनमें सुन्दर काव्य-निर्माण की प्रतिभा हो, किंतु उसका मन यदि गुरु के श्रीचरणों के प्रति आसक्त न हो तो इन सदगुणों से क्या लाभ?

विदेशेषु मान्यः स्वदेशेषु धन्यः सदाचारवृत्तेषु मत्तो न चान्यः
मनश्र्चेन लग्नं गुरोरङ्घ्रिपद्मे ततः किं ततः किं ततः किं ततः किं ||4

भावार्थ— जिन्हें विदेशों में समादर मिलता हो, अपने देश में जिनका नित्य जय-जयकार से स्वागत किया जाता हो और जो सदाचार-पालन में भी अनन्य स्थान रखता हो, यदि उसका भी मन गुरु के श्रीचरणों के प्रति अनासक्त हो तो इन सदगुणों से क्या लाभ?

क्षमामण्डले भूपभूपालवृन्दैः सदासेवितं यस्य पादारविन्दं
मनश्र्चेन लग्नं गुरोरङ्घ्रिपद्मे ततः किं ततः किं ततः किं ततः किं ||5

भावार्थ— जिन महानुभाव के चरणकमल पृथ्वीमण्डल के राजा-महाराजाओं से नित्य पूजित रहा करते हों, किंतु उनका मन यदि गुरु के श्री चरणों में आसक्त न हो तो इसे सदभाग्य से क्या लाभ?


यशो मे गतं दिक्षु दानप्रतापा जगद्वस्तु सर्वं करे यत्प्रसादात्
मनश्र्चेन लग्नं गुरोरङ्घ्रिपद्मे ततः किं ततः किं ततः किं ततः किं || 6

भावार्थ— दानवृत्त के प्रताप से जिनकी कीर्ति दिगदिगान्तरों में व्याप्त हो, अति उदार गुरु की सहज कृपादृष्टि से जिन्हें संसार के सारे सुख-ऐश्वर्य हस्तगत हों, किंतु उनका मन यदि गुरु के श्रीचरणों में आसक्तिभाव न रखता हो तो इन सारे ऐश्वर्यों से क्या लाभ?


न भोगे न योगे न वा वाजिराजौ न कान्तामुखे नैव वित्तेषु चित्तं
मनश्र्चेन लग्नं गुरोरङ्घ्रिपद्मे ततः किं ततः किं ततः किं ततः किं ||7

भावार्थ— जिनका मन भोग, योग, अश्व, राज्य, धनोपभोग और स्त्रीसुख से कभी विचलित न हुआ हो, फिर भी गुरु के श्रीचरणों के प्रति आसक्त न बन पाया हो तो इस मन की अटलता से क्या लाभ?

अरण्ये न वा स्वस्य गेहे न कार्ये न देहे मनो वर्तते मे त्वनर्घ्ये
मनश्र्चेन लग्नं गुरोरङ्घ्रिपद्मे ततः किं ततः किं ततः किं ततः किं ||8

भावार्थ— जिनका मन वन या अपने विशाल भवन में, अपने कार्य या शरीर में तथा अमूल्य भंडार में आसक्त न हो, पर गुरु के श्रीचरणों में भी यदि वह मन आसक्त न हो पाये तो उसकी सारी अनासक्तियों का क्या लाभ?

गुरोरष्टकं यः पठेत्पुण्यदेही यतिर्भूपतिर्ब्रह्मचारी च गेही
लभेद्धाञ्छितार्थं पदं ब्रह्मसंज्ञं गुरोरुक्तवाक्ये मनो यस्य लग्नं ||

भावार्थ— अमूल्य मणि-मुक्तादि रत्न उपलब्ध हो, रात्रि में समलिंगिता विलासिनी पत्नी भी प्राप्त हो, फिर भी मन गुरु के श्रीचरणों के प्रति आसक्त न बन पाये तो इन सारे ऐश्वर्य-भोगादि सुखों से क्या लाभ?

।। इति गुरू अष्टकम् सम्पूर्णम् ।।

अरिष्ट-शान्ति अथवा अरिष्ट-नाशक मन्त्र

अरिष्ट-शान्ति अथवा अरिष्ट-नाशक मन्त्र

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मन्त्र

क॰ “ह्रीं हीं ह्रीं”
ख॰ “ह्रीं हों ह्रीं” 
ग॰ “ॐ ह्रीं फ्रीं ख्रीं” 
घ॰ “ॐ ह्रीं थ्रीं फ्रीं ह्रीं” 

विधिः- 
उक्त मन्त्रों में से किसी भी एक मन्त्र को सिद्ध करें । ४० दिन तक प्रतिदिन १ माला जप करने से मन्त्र सिद्ध होता है । बाद में संकट के समय मन्त्र का जप करने से सभी संकट समाप्त हो जाते हैं ।









श्रीबगला त्रैलोक्य-विजय कवचम्

श्रीबगला त्रैलोक्य-विजय कवचम्

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।। श्री भैरव उवाचः ।। 

श्रृणु देवि प्रवक्ष्यामि स्व-रहस्यं च कामदम् ।
श्रुत्वा गोप्यं गुप्ततमं कुरु गुप्तं सुरेश्वरि ।। १ ।।

कवचं बगलामुख्याः सकलेष्टप्रदं कलौ ।
तत्सर्वस्वं परं गुह्यं गुप्तं च शरजन्मना ।। २ ।।

त्रैलोक्य-विजयं नाम कवचेशं मनोरमम् ।
मन्त्र-गर्भं ब्रह्ममयं सर्व-विद्या विनायकम् ।। ३ ।।

रहस्यं परमं ज्ञेयं साक्षाद्-मृतरुपकम् ।
ब्रह्मविद्यामयं वर्म सर्व-विद्या विनायकम् ।। ४ ।।

पूर्णमेकोनपञ्चाशद् वर्णैरुक्त महेश्वरि ।
त्वद्भक्त्या वच्मि देवेशि गोपनीयं स्वयोनिवत् ।। ५ ।।

।। श्री देव्युवाच ।।

भगवन् करुणासार विश्वनाथ सुरेश्वर ।कर्मणा
मनसा वाचा न वदामि कदाचन् ।। १ ।।

।। श्री भैरव उवाच ।।

त्रैलोक्य विजयाख्यस्य कवचास्यास्य पार्वति ।
मनुगर्भस्य गुप्तस्य ऋषिर्देवोऽस्य भैरवः ।। १ ।।

उष्णिक्-छन्दः समाख्यातं देवी श्रीबगलामुखी ।
बीजं ह्लीं ॐ शक्तिः स्यात् स्वाहा कीलकमुच्यते ।। २ ।।

विनियोगः 
समाख्यातः त्रिवर्ग-फल-प्राप्तये ।
देवि त्वं पठ वर्मैतन्मन्त्र-गर्भं सुरेश्वरि ।। ३ ।।

बिनाध्यानं कुतः सिद्धि सत्यमेतच्च पार्वति ।
चन्द्रोद्भासितमूर्धजां रिपुरसां मुण्डाक्षमालाकराम् ।। ४ ।।

बालांसत्स्रकचञ्चलां मधुमदां रक्तां जटाजूटिनीम् ।
शत्रु-स्तम्भन-कारिणीं शशिमुखीं पीताम्बरोद्भासिनीम् ।। ५ ।।

प्रेतस्थां बगलामुखीं भगवतीं कारुण्यरुपां भजे ।
ॐ ह्लीं मम शिरः पातु देवी श्रीबगलामुखी ।। ६ ।।

ॐ ऐं क्लीं पातु मे भालं देवी स्तम्भनकारिणी ।
ॐ अं इं हं भ्रुवौ पातु क्लेशहारिणी ।। ७ ।।

ॐ हं पातु मे नेत्रे नारसिंही शुभंकरी ।
ॐ ह्लीं श्रीं पातु मे गण्डौ अं आं इं भुवनेश्वरी ।। ८ ।।

ॐ ऐं क्लीं सौः श्रुतौ पातु इं ईं ऊं च परेश्वरी ।
ॐ ह्लीं ह्लूं ह्लीं सदाव्यान्मे नासां ह्लीं सरस्वती ।। ९ ।।

ॐ ह्रां ह्रीं मे मुखं पातु लीं इं ईं छिन्नमस्तिका ।
ॐ श्री वं मेऽधरौ पातु ओं औं दक्षिणकालिका ।। १० ।।

ॐ क्लीं श्रीं शिरसः पातु कं खं गं घं च सारिका ।
ॐ ह्रीं ह्रूं भैरवी पातु ङं अं अः त्रिपुरेश्वरी ।। ११ ।।

ॐ ऐं सौः मे हनुं पातु चं छं जं च मनोन्मनी ।
ॐ श्रीं श्रीं मे गलं पातु झं ञं टं ठं गणेश्वरी ।। १२ ।।

ॐ स्कन्धौ मेऽव्याद् डं ढं णं हूं हूं चैव तु तोतला ।
ॐ ह्रीं श्रीं मे भुजौ पातु तं थं दं वर- वर्णिनी ।। १३ ।।

ऐं क्लीं सौः स्तनौ पातु धं नं पं परमेश्वरी ।
क्रों क्रों मे रक्षयेद् वक्षः फं बं भं भगवासिनी ।। १४ ।।

ॐ ह्रीं रां पातु कक्षि मे मं यं रं वह्नि-वल्लभा ।
ॐ श्रीं ह्रूं पातु मे पार्श्वौ लं बं लम्बोदर प्रसूः ।। १५ ।।

ॐ श्रीं ह्रीं ह्रूं पातु मे नाभि शं षं षण्मुख-पालिनी ।
ॐ ऐं सौः पातु मे पृष्ठं सं हं हाटक-रुपिणी ।। १६ ।।

ॐ क्लीं ऐं कटि पातु पञ्चाशद्-वर्ण-मालिका ।
ॐ ऐं क्लीं पातु मे गुह्यं अं आं कं गुह्यकेश्वरी ।। १७ ।।

ॐ श्रीं ऊं ऋं सदाव्यान्मे इं ईं खं खां स्वरुपिणी ।
ॐ जूं सः पातु मे जंघे रुं रुं धं अघहारिनी ।। १८ ।।

श्रीं ह्रीं पातु मे जानू उं ऊं णं गण-वल्लभा ।
ॐ श्रीं सः पातु मे गुल्फौ लिं लीं ऊं चं च चण्डिका ।। १९ ।।

ॐ ऐं ह्रीं पातु मे वाणी एं ऐं छं जं जगत्प्रिया ।
ॐ श्रीं क्लीं पातु पादौ मे झं ञं टं ठं भगोदरी ।। २० ।।

ॐ ह्रीं सर्वं वपुः पातु अं अः त्रिपुर-मालिनी ।
ॐ ह्रीं पूर्वे सदाव्यान्मे झं झां डं ढं शिखामुखी ।। २१ ।।

ॐ सौः याम्यं सदाव्यान्मे इं ईं णं तं च तारिणी ।
ॐ वारुण्यां च वाराही ऊं थं दं धं च कम्पिला ।। २२ ।।

ॐ श्रीं मां पातु चैशान्यां पातु ॐ नं जनेश्वरी ।
ॐ श्रीं मां चाग्नेयां ऋं भं मं धं च यौगिनी ।। २३ ।।

ॐ ऐं मां नैऋत्यां लूं लां राजेश्वरी तथा ।
ॐ श्रीं पातु वायव्यां लृं लं वीतकेशिनी ।
ॐ प्रभाते च मो पातु लीं लं वागीश्वरी सदा ।। २४ ।।

ॐ मध्याह्ने च मां पातु ऐं क्षं शंकर-वल्लभा ।
श्रीं ह्रीं क्लीं पातु सायं ऐ आं शाकम्भरी सदा ।। २५ ।।

ॐ ह्रीं निशादौ मां पातु ॐ सं सागरवासिनी ।
क्लीं निशीथे च मां पातु ॐ हं हरिहरेश्वरी ।। २६ ।।

क्लीं ब्राह्मे मुहूर्तेऽव्याद लं लां त्रिपुर-सुन्दरी ।
विसर्गा तु यत्स्थानं वर्जित कवचेन तु ।। २७ ।।

क्लीं तन्मे सकलं पातु अं क्षं ह्लीं बगलामुखी ।
इतीदं कवचं दिव्यं मन्त्राक्षरमय परम् ।। २८ ।।

त्रैलोक्यविजयं नाम सर्व-वर्ण-मयं स्मृतम् ।
अप्रकाश्यं सदा देवि श्रोतव्यं च वाचिकम् ।। २९ ।।

दुर्जनायाकुलीनाय दीक्षाहीनाय पार्वति ।
न दातव्यं न दातव्यमित्याज्ञा परमेश्वरी ।। ३० ।।

दीक्षाकार्य विहीनाय शक्ति-भक्ति विरोधिने ।
कवचस्यास्य पठनात् साधको दीक्षितो भवेत् ।। ३१ ।।

कवचेशमिदं गोप्यं सिद्ध-विद्या-मयं परम् ।
ब्रह्मविद्यामयं गोप्यं यथेष्टफलदं शिवे ।। ३२ ।।

न कस्य कथितं चैतद् त्रैलोक्य विजयेश्वरम् ।
अस्य स्मरण-मात्रेण देवी सद्योवशी भवेत् ।। ३३ ।।

पठनाद् धारणादस्य कवचेशस्य साधकः ।
कलौ विचरते वीरो यथा श्रीबगलामुखी ।। ३४ ।।

इदं वर्म स्मरन् मन्त्री संग्रामे प्रविशेद् यदा ।
युयुत्सुः पठन् कवचं साधको विजयी भवेत् ।। ३५ ।।

शत्रुं काल-समानं तु जित्वा स्वगृहमेति सः ।
मूर्घ्नि धृत्वा यः कवचं मन्त्र-गर्भं सुसाधकः ।। ३६ ।।

ब्रह्माद्यमरान् सर्वान् सहसा वशमानयेत् ।
धृत्वा गले तु कवचं साधकस्य महेश्वरि ।। ३७ ।।

वशमायान्ति सहसा रम्भाद्यप्सरसां गणाः ।
उत्पातेषु घोरेषु भयेषु विवधेषु च ।। ३८ ।।

रोगेषु च कवचेशं मन्त्रगर्भं पठेन्नरः ।
कर्मणा मनसा वाचा तद्भयं शान्तिमेष्यति ।। ३९ ।।

श्रीदेव्या बगलामुख्याः कवचेशं मयोदितम् ।
त्रैलोक्य-विजयं नाम पुत्रपौत्र धनप्रदम् ।। ४० ।।

ऋणं च हस्ते सम्यक् लक्ष्मीर्भोगविवर्धिनी ।
बन्ध्या जनयते कुक्षौ पुत्र-रत्नं न चान्यथा ।। ४१ ।।

मृतवत्सा च विभृयात् कवचं च गले सदा ।
दीर्घायुर्व्याधिहीनश्च तत्पुत्रो वर्धतेऽनिशम् ।। ४२ ।।

इतीदं बगलामुख्याः कवचेशं सुदुर्लभम् ।
त्रैलोक्य-विजयं नाम न देयं यस्यकस्यचित् ।। ४३ ।।

अकुलीनाय मूढाय भक्तिहीनायदम्भिने ।
लोभयुक्ताय देवेशि न दातव्यं कदाचन् ।। ४४ ।।

लोभ-दम्भ-विहीनाय कवचेशं प्रदीयताम् ।
अभक्तेभ्यो अपुत्रेभ्यो दत्वा कुष्ठी भवेन्नरः ।। ४५ ।।

रवौ रात्रौ च सुस्नातः पूजागृहगतः सुधीः ।
दीपमुज्ज्वाल्य मूलेन पठेद्वर्मेदमुत्तमम् ।। ४६ ।।

प्राप्तौ सत्यां त्रिरात्रौ हि राजा तद्-गृहमेष्यति ।
मण्डलेशो महेशानि देवि सत्यं न संशय ।। ४७ ।।

इदं तु कवचेशं तु मया प्रोक्त नगात्मजे ।
गोप्यं गुह्यतरं देवि गोपनीयं स्वयोनिवत् ।। ४८ ।।

।। श्री विश्वयामले बगलामुख्यास्त्रैलोक्यविजयं कवचम् ।।

Sunday, September 29, 2019

अक्टूबर 2019 के त्यौहार

अक्टूबर 2019 के त्यौहार

4 शुक्रवार
सरस्वती आवाहन
आश्विन, मूल नक्षत्र

5 शनिवार
सरस्वती पूजा
आश्विन, पूर्वाषाढा नक्षत्र

6 रविवार
दुर्गा अष्टमी
आश्विन, शुक्ल अष्टमी
महा नवमी
आश्विन, शुक्ल नवमी

8 मंगलवार
दशहरा
आश्विन, शुक्ल दशमी

9 बुधवार
पापांकुशा एकादशी
आश्विन, शुक्ल एकादशी

13 रविवार
आश्विन पूर्णिमा
कोजागर पूजा
शरद पूर्णिमा

17 बृहस्पतिवार
करवा चौथ
कार्तिक, कृष्ण अष्टमी

18 शुक्रवार
तुला संक्रान्ति सूर्य का कन्या से तुला राशि में प्रवेश

21 सोमवार
अहोई अष्टमी
कार्तिक, कृष्ण अष्टमी

24 बृहस्पतिवार
रमा एकादशी
कार्तिक, कृष्ण एकादशी

25 शुक्रवार
गोवत्स द्वादशी
कार्तिक, कृष्ण द्वादशी
धनतेरस
कार्तिक, कृष्ण त्रयोदशी

26 शनिवार
काली चौदस
कार्तिक, कृष्ण चतुर्दशी

27 रविवार
नरक चतुर्दशी
कार्तिक, कृष्ण अमावस्या
दीवाली
कार्तिक, कृष्ण अमावस्या
लक्ष्मी पूजा

28 सोमवार
गोवर्धन पूजा
कार्तिक, शुक्ल प्रतिपदा

29 मंगलवार
भैया दूज
कार्तिक, शुक्ल द्वितीया

Saturday, September 28, 2019

सर्व पितृ अमावस्या

सर्व पितृ अमावस्या 


दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष, तंत्र, मंत्र, यंत्र, टोटका, वास्तु, कुंडली, हस्त रेखा, राशि रत्न,भूत प्रेत, जिन, जिन्नात, बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण, पितृ दोष, कालसर्प दोष, चंडाल दोष, गृह क्लेश, बिजनस, विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है Contact 9953255600

इस दिन किसी भी समय,स्टील के लोटे में, दूध ,पानी,काले तिल,सफ़ेद तिल,और जौ मिला ले,साथ ही सफ़ेद मिठाई एक नारियल और कुछ सिक्के,तथा एक जनेऊ लेकर पीपल वृक्ष के निचे जाये,
सर्व प्रथम पीपल में लोटे की समस्त सामग्री अर्पित कर दे,यह उसकी जड़ में अर्पित करना है.तथा इस मंत्र का जाप सतत करते जाना है.
ॐ सर्व पितृ देवताभ्यो नमः
इसके पश्चात पीपल पर जनेऊ अर्पित करे निम्न मंत्र को पड़ते हुए
ॐ प्रथम पितृ नारायणाय नमः
इस क्रिया के बाद पीपल वृक्ष के निचे मिठाई,दक्षिणा तथा नारियल रख दे.और तीन परिक्रमा करे निम्न मंत्र को पड़ते हुए.
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
इस क्रिया के पश्चात भगवन नारायण से प्रार्थना करे.की मुझ पर और मेरे कुल पर आपकी तथा पित्रो की कृपा बानी रहे तथा में और मेरा परिवार धर्म का पालन करते हुए,निरंतर प्रगति करे.
इस क्रिया से पित्रो की किरपा प्राप्त होती है,कुपित हुए पितृ मान जाते है.तथा साधक के जीवन में प्रगति होती है.

अतः यह प्रयोग अवश्य करे.


श्री स्वर्णाकर्षण भैरव-साधना

श्री स्वर्णाकर्षण भैरव-साधना


दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष, तंत्र, मंत्र, यंत्र, टोटका, वास्तु, कुंडली, हस्त रेखा, राशि रत्न,भूत प्रेत, जिन, जिन्नात, बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण, पितृ दोष, कालसर्प दोष, चंडाल दोष, गृह क्लेश, बिजनस, विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है Contact 9953255600


श्रीभैरव के अनेक रूप व साधनाओं का वर्णन तन्त्रों में वर्णित है। उनमें से एक श्रीस्वर्णाकर्षण भैरव साधना है जो साधक को दरिद्रता से मुक्ति दिलाती है। जैसा इनका नाम है वैसा ही इनके मन्त्र का प्रभाव है। अपने भक्तों की दरिद्रता को नष्ट कर उन्हें धन-धान्य सम्पन्न बनाने के कारण ही आपका नाम ' स्वर्णाकर्षण -भैरव ' के रूप में प्रसिद्ध है।

इनकी साधना विशेष रूप से रात्रि काल में कि जाती हैं। शान्ति-पुष्टि आदि सभी कर्मों में इनकी साधना अत्यन्त सफल सिद्ध होती है। इनके मन्त्र, स्तोत्र, कवच, सहस्रनाम व यन्त्र आदि का व्यापक वर्णन तन्त्रों में मिलता है। यहाँ पर सिर्फ मन्त्र-विधान दिया जा रहा है। ताकि जन -सामान्य लाभान्वित हो सके।

प्रारंभिक पूजा विधान पूर्ण करने के बाद --

विनियोग-

ऊँ अस्य श्रीस्वर्णाकर्षण-भैरव मन्त्रस्य श्रीब्रह्मा ॠषिः, पंक्तिश्छन्दः, हरि-हर ब्रह्मात्मक श्रीस्वर्णाकर्षण-भैरवो देवता, ह्रीं बीजं, ह्रीं शक्तिः, ऊँ कीलकं, श्रीस्वर्णाकर्षण-भैरव प्रसन्नता प्राप्तये, स्वर्ण-राशि प्राप्तये श्रीस्वर्णाकर्षण-भैरव मन्त्र जपे विनियोगः।

ॠष्यादिन्यास

ऊँ ब्रह्मा-ॠषये नमः-----शिरसि।
ऊँ पंक्तिश्छन्दसे नमः----मुखे।
ऊँ हरि-हर ब्रह्मात्मक स्वर्णाकर्षण-
भैरव देवतायै नमः ---ह्रदये।
ऊँ ह्रीं बीजाय नमः-------गुह्ये।
ऊँ ह्रीं शक्तये नमः--------पादयोः।
ऊँ ऊँ बीजाय नमः-------नाभौ।
ऊँ विनियोगाय नमः------सर्वाङ्गे।

करन्यास-

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं ऐं श्रीं आपदुद्धारणाय----अंगुष्टाभ्यां नमः। ::
ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रूं अजामल-बद्धाय --------तर्जनीभ्यां नमः।
ऊँ लोकेश्वराय----------------------मध्यमाभ्यां नमः।
ऊँ स्वर्णाकर्षण-भैरवाय नमः--------अनामिकाभ्यां नमः।
ऊँ मम दारिद्र्य-विद्वेषणाय-----------कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
ऊँ महा-भैरवाय नमः श्रीं ह्रीं ऐं--------करतल-कर पृष्ठाभ्यां नमः।

ह्रदयादिन्यासः-

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं ऐं श्रीं आपदुद्धारणाय----ह्रदयाय नमः।
ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रूं अजामल-बद्धाय---------शिरसे स्वाहा।
ऊँ लोकेश्वराय-----------------------शिखायै वषट्।
ऊँ स्वर्णाकर्षण-भैरवाय -------------कवचाय हुम्।
ऊँ मम दारिद्र्य-विद्वेषणाय----------नेत्र-त्रयाय वौषट्।
ऊँ महा-भैरवाय नमः श्रीं ह्रीं ऐं -------अस्त्राय फट्।

ध्यान-

पारिजात-द्रु-कान्तारे ,स्थिते माणिक्य-मण्डपे।
सिंहासन-गतं ध्यायेद्, भैरवं स्वर्ण - दायिनं।।
गाङ्गेय-पात्रं डमरुं त्रिशूलं ,वरं करैः सन्दधतं त्रिनेत्रम्।
देव्या युतं तप्त-सुवर्ण-वर्णं, स्वर्णाकृतिं भैरवमाश्रयामि।।
ध्यान करने के बाद पञ्चोपचार पूजन करले ।

मन्त्र-

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं ऐं श्रीं आपदुद्धारणा ह्रां ह्रीं ह्रूं अजामल-बद्धाय लोकेश्वराय स्वर्णाकर्षण-भैरवाय मम दारिद्र्य-विद्वेषणाय महा-भैरवाय नमः श्रीं ह्रीं ऐं।

जप संख्या व हवन - एक लाख जप करने से उपरोक्त मन्त्र का पुरश्चरण होता है और खीर से दशांश हवन करने तथा दशांश तर्पण और तर्पण का दशांश मार्जन व मार्जन का दशांश ब्राह्मण भोजन करने से यह अनुष्ठान पूर्ण होता है।
पुरश्चरण के बाद तीन या पाँच माला प्रतिदिन करने से एक वर्ष में दरिद्रता का निवारण हो जाता है। साथ ही उचित कर्म भी आवश्यक है।

साधना करने से पूर्व किसी योग्य विद्वान से परामर्श जरूर प्राप्त कर ले।

दिपावली पर पाठ जप

दिपावली पर पाठ जप


दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष, तंत्र, मंत्र, यंत्र, टोटका, वास्तु, कुंडली, हस्त रेखा, राशि रत्न,भूत प्रेत, जिन, जिन्नात, बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण, पितृ दोष, कालसर्प दोष, चंडाल दोष, गृह क्लेश, बिजनस, विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है Contact 9953255600


दिपावली पर पाठ जप करके आप जीवन मे परिवर्तन ला सकते हैं । जो बताया जा रहा पूर्ण श्रद्धा से करे।

ॐ जगन्माते नमः श्री कमलायै नमः

मंत्र :
1. ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः।
2. श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये।
3. श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं कमलवासिन्यै स्वाहा ।
4. ह्रीं श्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः।
5. ॐ श्रीं श्रियै नमः।
6. ॐ ह्री श्रीं क्रीं श्रीं क्रीं क्लीं श्रीं महालक्ष्मी मम गृहे धनं पूरय पूरय चिंतायै दूरय दूरय स्वाहा ।
7. धन लाभ एवं समृद्धि मंत्र
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं त्रिभुवन महालक्ष्म्यै अस्मांक दारिद्र्य नाशय प्रचुर धन देहि देहि क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ ।
8. अक्षय धन प्राप्ति मंत्र
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौं ॐ ह्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं सकल ह्रीं सौं ऐं क्लीं ह्रीं श्री ॐ ।


इस मंत्र की शक्ति से ही कुबेर धनाधिपति बने । यह 8 मंत्र है आपकी समस्या के अनुसार


मेष,वृश्चिक राशि के लोग मंत्र 3 की 5 माला करे ।

वृषभ, तुला राशि के लोग मंत्र 4 की 5 माला करे।

मिथुन,कन्या के लोग मंत्र 5 की 9 माला जपे।

कर्क, सिंह राशि के लोग मंत्र 6 की 7 माला करे ।

धनु,मीन राशि के लोग मंत्र 7 की 9 माला करे।

मकर,कुम्भ राशि के लोग मंत्र 8 की 11 माला करे

1,2 मंत्र में से कोई भी सभी को 1 माला जरूरी हैं ।

दुर्लभ बगला मन्त्र

दुर्लभ बगला मन्त्र

दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष, तंत्र, मंत्र, यंत्र, टोटका, वास्तु, कुंडली, हस्त रेखा, राशि रत्न,भूत प्रेत, जिन, जिन्नात, बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण, पितृ दोष, कालसर्प दोष, चंडाल दोष, गृह क्लेश, बिजनस, विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है Contact 9953255600



दुर्लभ बगला मन्त्र


ॐ पीत पीतेश्वरी पीताम्बरा बगला परमेश्वरी ऐं जिव्हा स्तम्भनी ह्लीं शत्रु मर्दनी महाविद्या श्री कनकेश्वरी सनातनी क्रीं घोरा महामाया काल विनाशनी पर विद्या भक्षणि क्लीं महा मोह दायनी जगत वशिकरणी ऐ ऐं ह्लूं ह्लीं श्रां श्रीं क्रां क्रीं कलां क्लीं पीतेश्वरी भटनेर काली स्वाहा |

इस मंत्र का एक सहस्र जप काली चौदस यानि दीपावली के एक दिन पहले करने से माँ की कृपा होती है

हनुमान जी सर्व कार्य और दर्शन हैतू मन्त्र

हनुमान जी सर्व कार्य और दर्शन हैतू मन्त्र


दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष, तंत्र, मंत्र, यंत्र, टोटका, वास्तु, कुंडली, हस्त रेखा, राशि रत्न,भूत प्रेत, जिन, जिन्नात, बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण, पितृ दोष, कालसर्प दोष, चंडाल दोष, गृह क्लेश, बिजनस, विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है Contact 9953255600


हनुमान जी सहाय|जाग जाग हनुमान हठीले ,माता अंजनी का जाया,ओखी वेले सिमरिया ,दौडता आया लकां सी कोट समुद्र सी खाई,जंहा फिरी हनुमान की दुहाई,रक्षा करे श्री राम लक्ष्मण भाई ,लौहे सग्ड•ल सार का मार हनुमान जी,किलक मार,लौंग सुपारी जायफल तीनों पूजा लेओ,एक राजाराम की आय,दिखाली देहो।

पुजा सामग्री

लाल चन्दन ,गुगल ,लड्डु ,सिन्दुर, गुड ,केसर ,देशी घी ,फुल की माला

विधी 

प्रारंभ करने से पहले चंडी कवच या राम रक्षा कवच का तीन पाठ करे या राम नाम की पांच माला करे

प्रातकाल में लाल वस्त्र ,लाल आसन ,और लाल वस्त्र सिर पर भी बान्धे हनुमान जी की मुर्ती पर सिन्दुर लगायें माला पहनाएं ,हनुमन जी से निवेदन करे की मेरी क्षमता के अनुसार दर्शन देवे डराये नही सौम्य रुप ही दर्शाएँ रामजी की सौगंध दिलायें और रामजी से अनुरोध करे सिद्धी हैतू ।

संध्या में माला पहनाये हनुमान जी को केसर गुगुल लाल चन्दन देशी घी मिलाकर सामग्री बना ले अंगारी बनाकर धुप देते रहें ।दब तक जप करे धुप देते रहे ,
गुड, सिन्दुर ,और घी मिलाकर हनुमान जी को तिलक करे फिर स्वयं भी तिलक करे,ब्रह्मचर्य पालन करे साधना काल में वही पर शयन करे जप स्थान पर ही इक्किस दिवस ग्यारह माला जाप करे सुबह शाम धुप या अगरबत्ती करे ,लड्डु का भोग लगाये प्रसाद बच्चों में वितरण करे साधना के दिनो में कोई अन्य पुजा पाठ ना करे केवल रामायण या सुन्दरकांड के पाठ करता रहे विशैष कारय हैतू ही कक्ष से या पुजा स्थान से बाहर आये आपके अतिरिक्त कोई अन्य पुजा स्थान पर ना आये मन्तर जाप के अतिरिक्त राम नाम जाप हृदय में चलता रहे बाकी समय में नमक मिर्च कम खाएँ दुधाहार रहे या फलाहार करे एक समय पर दर्शन अवश्य होगें किसी कारण वश या वर्तमान पाप कर्मो के कारण दर्शन ना हो तो भी मन्त्र सिद्ध होगा कई कार्य सम्पन्न होते हैं इससे वह कार्य प्रयोग जो सिद्ध कर लेगा उनको ही दिये जायेगें
स्वप्न दर्शन और प्रत्यक्ष दर्शन आपके निर्मल भावों पर निर्भर है मनसा वाचा कर्मणा निर्मल बने रहे सत्य व्रत धारण करे
राम नाम जाप चलता रह सब मंगल ही होगा

नोट प्रात:

काल की पुजा सवा आठ बजे से करे बस उसके पहले हनुमान जी स्वयं रामजी की सेवा में हाजिर रहते है

श्री हनुमान साधना

श्री हनुमान साधना

दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष, तंत्र, मंत्र, यंत्र, टोटका, वास्तु, कुंडली, हस्त रेखा, राशि रत्न,भूत प्रेत, जिन, जिन्नात, बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण, पितृ दोष, कालसर्प दोष, चंडाल दोष, गृह क्लेश, बिजनस, विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है Contact 9953255600


यह साधना शनिवार को आनेवाले पुष्य नक्षत्रमे करनी है।
नक्षत्र आरंभ से नक्षत्र समाप्ती तक ।

स्नानादिसे निवृत्त होकर पूजापाठ के बाद इस प्रकार साधना होगी।।
एक चौरंग पर चावल बिखेरकर उसपर अष्टगन्धसे स्वस्तिक बनाए।
फिर उसपर कलश रखे।

कलशमे शुद्ध जल भरे।इस जलमे एक सिक्का(coin); अष्टगंध; सफेद पुष्प; एक तुलसिदल; एक बिल्वपत्र; एक सुपाडी; आक का एक छोटासा पान (पर्ण); डाले। फिर इस कलश पर तशतरी रखे।तशतरि मे भी चावल बिखेरकर अष्टदल या स्वस्तिक अष्टगन्धसे बनाए।

उसपर हनुमानजीकी छोटी मूर्ती या चित्र रखे।अथवा एक सुपाडी पर हनुमानजी का आवाहन किया जा सकता है।
कलश के पिछे श्री राम पंचायतन का फोटो रखे। सभी का पूजन कर गायत्री मंत्र १०८ बार जाप करे। फिर (१)श्रीरामरक्षास्तोत्रका १ पाठ करे।बादमे
(२) राम रामाय नमः मन्त्र का १०८ जप।
(३)ओम हम हनुमते नमः-- १०८ जप।फिर
(४)श्रीहनुमान स्तोत्र के ११ पाठ। बादमे
(५)ओम हम हनुमते नमः - जप १०८।फिर राम रामाय नमः का जप -१०८।
और अंतमे फिरसे श्रीरामरक्षा स्तोत्र का १ पाठ।
इस प्रकारसे १ मण्डल पूर्ण हुआ।

अब एक सफेद पुष्प हनुमानजीको अर्पण करे। फिरसे इसी प्रकार दुसरा ; फिर तीसरा ; चौथा ---------- इस प्रकारसे नक्षत्र समाप्ती तक उपासना करते रहे।अंतमे आरती होगी।

११ या कमसे कम १ बटू को भोजन व ११ रुपये दक्षिणा दे। नक्षत्र कम समयका हो; या ज्यादा; नक्षत्र आरंभ से समाप्ती तक साधना होनी चाहिये।वीर हनुमानजी प्रत्यक्ष होकर दर्शन देते है।वर मांगनेको कहते है।तब इच्छित वर मांगना। ध्यानमे रखना कि हनुमान जी जबतक नही बोलते; तब तक हमे भी नही बोलना है।तब तक चुप रहे।बाद मे उसी दिन या दुसरे दिन; या सुविधनुसार हनुमान मंदिर में जाकर हनुमंजि को पंचामृत से रुद्राभिषेक; या महिमन स्तोत्र से पंचामृत से अभिषेक करे।

 इस प्रकार यह मात्र एकही दिनकी प्रभावशाली साधना है।

। श्री श्री काली सहस्त्राक्षरी ।।

। श्री श्री काली सहस्त्राक्षरी ।।

दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष, तंत्र, मंत्र, यंत्र, टोटका, वास्तु, कुंडली, हस्त रेखा, राशि रत्न,भूत प्रेत, जिन, जिन्नात, बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण, पितृ दोष, कालसर्प दोष, चंडाल दोष, गृह क्लेश, बिजनस, विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है Contact 9953255600


ॐ क्रीं क्रीँ क्रीँ ह्रीँ ह्रीँ हूं हूं दक्षिणे कालिके क्रीँ क्रीँ क्रीँ ह्रीँ ह्रीँ हूं हूं स्वाहा शुचिजाया महापिशाचिनी दुष्टचित्तनिवारिणी क्रीँ कामेश्वरी वीँ हं वाराहिके ह्रीँ महामाये खं खः क्रोघाघिपे श्रीमहालक्ष्यै सर्वहृदय रञ्जनी वाग्वादिनीविधे त्रिपुरे हंस्त्रिँ हसकहलह्रीँ हस्त्रैँ ॐ ह्रीँ क्लीँ मे स्वाहा ॐ ॐ ह्रीँ ईं स्वाहा दक्षिण कालिके क्रीँ हूं ह्रीँ स्वाहा खड्गमुण्डधरे कुरुकुल्ले तारे ॐ. ह्रीँ नमः भयोन्मादिनी भयं मम हन हन पच पच मथ मथ फ्रेँ विमोहिनी सर्वदुष्टान् मोहय मोहय हयग्रीवे सिँहवाहिनी सिँहस्थे अश्वारुढे अश्वमुरिप विद्राविणी विद्रावय मम शत्रून मां हिँसितुमुघतास्तान् ग्रस ग्रस महानीले वलाकिनी नीलपताके क्रेँ क्रीँ क्रेँ कामे संक्षोभिणी उच्छिष्टचाण्डालिके सर्वजगव्दशमानय वशमानय मातग्ङिनी उच्छिष्टचाण्डालिनी मातग्ङिनी सर्वशंकरी नमः स्वाहा विस्फारिणी कपालधरे घोरे घोरनादिनी भूर शत्रून् विनाशिनी उन्मादिनी रोँ रोँ रोँ रीँ ह्रीँ श्रीँ हसौः सौँ वद वद क्लीँ क्लीँ क्लीँ क्रीँ क्रीँ क्रीँ कति कति स्वाहा काहि काहि कालिके शम्वरघातिनी कामेश्वरी कामिके ह्रं ह्रं क्रीँ स्वाहा हृदयाहये ॐ ह्रीँ क्रीँ मे स्वाहा ठः ठः ठः क्रीँ ह्रं ह्रीँ चामुण्डे हृदयजनाभि असूनवग्रस ग्रस दुष्टजनान् अमून शंखिनी क्षतजचर्चितस्तने उन्नस्तने विष्टंभकारिणि विघाधिके श्मशानवासिनी कलय कलय विकलय विकलय कालग्राहिके सिँहे दक्षिणकालिके अनिरुद्दये ब्रूहि ब्रूहि जगच्चित्रिरे चमत्कारिणी हं कालिके करालिके घोरे कह कह तडागे तोये गहने कानने शत्रुपक्षे शरीरे मर्दिनि पाहि पाहि अम्बिके तुभ्यं कल विकलायै बलप्रमथनायै योगमार्ग गच्छ गच्छ निदर्शिके देहिनि दर्शनं देहि देहि मर्दिनि महिषमर्दिन्यै स्वाहा रिपुन्दर्शने दर्शय दर्शय सिँहपूरप्रवेशिनि वीरकारिणि क्रीँ क्रीँ क्रीँ हूं हूं ह्रीँ ह्रीँ फट् स्वाहा शक्तिरुपायै रोँ वा गणपायै रोँ रोँ रोँ व्यामोहिनि यन्त्रनिकेमहाकायायै प्रकटवदनायै लोलजिह्वायै मुण्डमालिनि महाकालरसिकायै नमो नमः ब्रम्हरन्ध्रमेदिन्यै नमो नमः शत्रुविग्रहकलहान् त्रिपुरभोगिन्यै विषज्वालामालिनी तन्त्रनिके मेधप्रभे शवावतंसे हंसिके कालि कपालिनि कुल्ले कुरुकुल्ले चैतन्यप्रभेप्रज्ञे तु साम्राज्ञि ज्ञान ह्रीँ ह्रीँ रक्ष रक्ष ज्वाला प्रचण्ड चण्डिकेयं शक्तिमार्तण्डभैरवि विप्रचित्तिके विरोधिनि आकर्णय आकर्णय पिशिते पिशितप्रिये नमो नमः खः खः खः मर्दय मर्दय शत्रून् ठः ठः ठः कालिकायै नमो नमः ब्राम्हयै नमो नमः माहेश्वर्यै नमो नमः कौमार्यै नमो नमः वैष्णव्यै नमो नमः वाराह्यै नमो नमः इन्द्राण्यै नमो नमः चामुण्डायै नमो नमः अपराजितायै नमो नमः नारसिँहिकायै नमो नमः कालि महाकालिके अनिरुध्दके सरस्वति फट् स्वाहा पाहि पाहि ललाटं भल्लाटनी अस्त्रीकले जीववहे वाचं रक्ष रक्ष परविधा क्षोभय क्षोभय आकृष्य आकृष्य कट कट महामोहिनिके चीरसिध्दके कृष्णरुपिणी अंजनसिद्धके स्तम्भिनि मोहिनि मोक्षमार्गानि दर्शय दर्शय स्वाहा ।।


इस काली सहस्त्राक्षरी का नित्य पाठ करने से ऐश्वर्य,मोक्ष,सुख,समृद्धि,एवं शत्रुविजय प्राप्त होता है । ॐ मां जय मां जय जय मां

Tuesday, September 24, 2019

किन्नरो से मांगे वरदान

किन्नरो से मांगे वरदान

जय.मॉ तारा  सिदेशवरी देवी शमशान वासिनी......
किन्नर देव स्वय परमेश्वर रूप है......जानिए किन्नरो को दिए गऐ दान और उनसे प्रापत आशीश का महत्व
जय.मॉ काली
हर कोई चाहता है कि उसका पर्स हमेशा पैसों से भरा रहे, कभी खाली न हो। लेकिन कई बार ऐसे हालात आ जाते हैं कि आपका पर्स खाली हो जाता है या महीने के आखिरी में आपको पैसों की तंगी का सामना करना पड़ता है। अगर आप चाहते हैं कि आपके साथ ऐसा न हो तो आप इन बातों का जरूर ध्यान रखें। इससे आपका पर्स हमेशा पैसों से भरा रहेगा।
किन्नर से मांगे
ऐसी मान्यता है कि किन्नर को किया गया दान अच्छा पुण्य  प्रदान करता है। इनकी दुआएं व्यक्ति को हर विपत्ति से बचा लेती है। यदि आप पैसों की समस्याओं से मुक्ति चाहते हैं तो किसी किन्नर से एक रुपए का सिक्का वापस ले लें। यदि किन्नर अपनी खुशी से आपको सिक्का दे देता है तो उसे हरे कपड़े में लपेट कर अपने पर्स में रखें या तिजोरी में रखें। ऐसा करने से आपकी धन संबंधी परेशानियां दूर होने लगेंगी।
पीपल के पेड़ को भगवान विष्णु का वास माना जाता है |
पीपल का पत्ता
यदि आप अपने पर्स में पीपल का एक पत्ता रखतें है |  एक  ही हफ्ते में इसका लाभ आपको दिखाई देने लगेगा | एक पीपल के पत्ते को गंगा जल से धो कर इसपर केसर से  श्री का नाम लिखें और इसको अपनी जेब में इस तरह रखें की इसको  कोई और न देख सके |
नियमित अंतराल पर इसको बदलते रहें और ऐसा कर से  आपको जो  भी लाभ होगा वो आप खुद ही महसूस कर लेंगे | जिस इंसान के जीवन में धन या पैसों की कमी होती है वह हमेशा ही कई परेशानियों का सामना करता रहता है। प्राचीन काल से धन का महत्व काफी अधिक बताया गया है। धन संबंधी सुविधाओं को प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को कड़ी मेहनत करना पड़ती है साथ ही धन की देवी महालक्ष्मी की कृपा की भी आवश्यकता होती है।
शास्त्रों के अनुसार किसी भी व्यक्ति को कितना धन मिलेगा, उसका भाग्य कैसा होगा? इन प्रश्नों के उत्तर व्यक्ति के पूर्व जन्मों से जुड़े हुए हैं। इंसान के जैसे कर्म पिछले जन्म में होते हैं ठीक वैसा ही प्रारब्ध या भाग्य नए जन्म में होता है। कई बार व्यक्ति पैसों की तंगी के कारण अत्यधिक परेशानियों का सामना करता है। इससे निपटने के लिए तंत्र मे  कुछ उपाय बताए गए हैं।
व्यक्ति की कुंडली में यदि कोई ग्रह विपरित फल प्रदान करने वाला है तो उससे संबंधित तांत्रीक उपचार किया जाना चाहिए। धन से जुड़ी परेशानियों को दूर करने के लिए एक सटीक उपाय बताया गया है किन्नर से पैसे लेकर पर्स में या तिजोरी में रखें।
ऐसी मान्यता है कि किन्नर को किया गया दान अक्षय पुण्य प्रदान करता है। इनकी दुआएं व्यक्ति को हर विपत्ति से बचा लेती है। किन्नर को धन का दान दिया जाता है। यदि आप पैसों की समस्याओं से मुक्ति चाहते हैं तो किसी किन्नर से एक रुपए का सिक्का वापस ले लें। यदि किन्नर अपनी खुशी से आपको सिक्का दे देता है तो उसे हरे कपड़े में लपेट कर अपने पर्स में रखें या तिजोरी में रखें। ऐसा करने आपकी धन संबंधी परेशानियां दूर होने लगेंगी।

परशुराम कृतं दुर्गा स्तोत्र

परशुराम कृतं दुर्गा स्तोत्र


ब्रह्मवैवर्त पुराण में गणपति खण्ड से उद्धृत इस स्तोत्र का स्तवन परशुराम ने श्रीहरि के निर्देश पर माता दुर्गा (शिवा) को प्रसन्न करने के लिए किया था। परशुराम अपने गुरु शिव का आशीर्वाद लेने के लिए अन्त:पुर जाना चाहते थे। गणेश द्वारा रोके जाने पर दोनों में युद्ध हुआ जिसमें परशुराम ने शिव प्रदत्त फरसा चला दिया जिससे गणेश जी का एक दाँत टूट गया था (एक दंत पडा)। इससे कुपित होकर पार्वती परशुराम को मारने के लिए उद्यत हो गई। उसी समय भगवान् विष्णु बौने ब्राह्मण-बालक के रूप में उपस्थित हुए। उन्होंने पार्वती को समझाया तथा परशुराम को उनकी स्तुति करने का निर्देश दिया।

परशुराम उवाच

श्रीकृष्णस्य च गोलोके परिपूर्णतमस्य च:
आविर्भूता विग्रहत: पुरा सृष्ट्युन्मुखस्य च॥
सूर्यकोटिप्रभायुक्ता वस्त्रालंकारभूषिता।
वह्निशुद्धांशुकाधाना सुस्मिता सुमनोहरा॥
नवयौवनसम्पन्ना सिन्दूरविन्दुशोभिता।
ललितं कबरीभारं मालतीमाल्यमण्डितम्॥
अहोऽनिर्वचनीया त्वं चारुमूर्ति च बिभ्रती।
मोक्षप्रदा मुमुक्षूणां महाविष्णोर्विधि: स्वयम्॥
मुमोह क्षणमात्रेण दृ त्वां सर्वमोहिनीम्।
बालै: सम्भूय सहसा सस्मिता धाविता पुरा॥
सद्भि: ख्याता तेन राधा मूलप्रकृतिरीश्वरी।
कृष्णस्त्वां सहसाहूय वीर्याधानं चकार ह॥
ततो डिम्भं महज्जज्ञे ततो जातो महाविराट्।
यस्यैव लोमकूपेषु ब्रह्माण्डान्यखिलानि च॥
तच्छृङ्गारक्रमेणैव त्वन्नि:श्वासो बभूव ह।
स नि:श्वासो महावायु: स विराड् विश्वधारक:॥
तव घर्मजलेनैव पुप्लुवे विश्वगोलकम्।
स विराड् विश्वनिलयो जलराशिर्बभूव ह॥
ततस्त्वं पञ्चधाभूय पञ्चमूर्तीश्च बिभ्रती।
प्राणाधिष्ठातृमूर्तिर्या कृष्णस्य परमात्मन:॥
कृष्णप्राणाधिकां राधां तां वदन्ति पुराविद:॥
वेदाधिष्ठातृमूर्तियां वेदाशास्त्रप्रसूरपि।
तौ सावित्रीं शुद्धरूपां प्रवदन्ति मनीषिण:॥
ऐश्वर्याधिष्ठातृमूर्ति: शान्तिश्च शान्तरूपिणी।
लक्ष्मीं वदन्ति संतस्तां शुद्धां सत्त्‍‌वस्रूपिणीम्॥
रागाधिष्ठातृदेवी या शुक्लमूर्ति: सतां प्रसू:।
सरस्वतीं तां शास्त्रज्ञां शास्त्रज्ञा: प्रवदन्त्यहो॥
बुद्धिर्विद्या सर्वशक्ते र्या मूर्तिरधिदेवता।
सर्वमङ्गलमङ्गल्या सर्वमङ्गलरूपिणी॥
सर्वमङ्गलबीजस्य शिवस्य निलयेऽधुना॥
शिवे शिवास्वरूपा त्वं लक्ष्मीर्नारायणान्तिके।
सरस्वती च सावित्री वेदसू‌र्ब्रह्मण: प्रिया॥
राधा रासेश्वरस्यैव परिपूर्णतमस्य च।
परमानन्दरूपस्य परमानन्दरूपिणी॥
त्वत्कलांशांशकलया देवानामपि योषित:॥
त्वं विद्या योषित: सर्वास्त्वं सर्वबीजरूपिणी।
छाया सूर्यस्य चन्द्रस्य रोहिणी सर्वमोहिनी॥
शची शक्रस्य कामस्य कामिनी रतिरीश्वरी।
वरुणानी जलेशस्य वायो: स्त्री प्राणवल्लभा॥
वह्ने: प्रिया हि स्वाहा च कुबेरस्य च सुन्दरी।
यमस्य तु सुशीला च नैर्ऋतस्य च कैटभी॥
ईशानस्य शशिकला शतरूपा मनो: प्रिया।
देवहूति: कर्दमस्य वसिष्ठस्याप्यरुन्धती॥
लोपामुद्राप्यगस्त्यस्य देवमातादितिस्तथा।
अहल्या गौतमस्यापि सर्वाधारा वसुन्धरा॥
गङ्गा च तुलसी चापि पृथिव्यां या: सरिद्वरा:।
एता: सर्वाश्च या ह्यन्या: सर्वास्त्वत्कलयाम्बिके॥
गृहलक्ष्मीगर्ृहे नृणांराजलक्ष्मीश्च राजसु।
तपस्विनां तपस्या त्वं गायत्री ब्राह्मणस्य च॥
सतां सत्त्‍‌वस्वरूपा त्वमसतां कलहाङ्कुरा।
ज्योतीरूपा निर्गुणस्य शक्ति स्त्वं सगुणस्य च॥
सूर्ये प्रभास्वरूपा त्वं दाहिका च हुताशने।
जले शैत्यस्वरूपा च शोभारूपा निशाकरे॥
त्वं भूमौ गन्धरूपा च आकाशे शब्दरूपिणी।
क्षुत्पिपासादयस्त्वं च जीविनां सर्वशक्त य:॥
सर्वबीजस्वरूपा त्वं संसारे साररूपिणी।
स्मूतिर्मेधा च बुद्धिर्वा ज्ञानशक्ति र्विपश्चिताम्॥
कृष्णेन विद्या या दत्ता सर्वज्ञानप्रसू: शुभा।
शूलिने कृपया सा त्वं यतो मृत्युञ्जय: शिव:॥
सृष्टिपालनसंहारशक्त यस्त्रिविधाश्च या:।
ब्रह्मविष्णुमहेशानां सा त्वमेव नमोऽस्तु ते॥
मधुकैटभभीत्या च त्रस्तो धाता प्रकम्पित:।
स्तुत्वा मुमोच यां देवीं तां मूधनर् प्रणमाम्यहम्॥
मधुकैटभयोर्युद्धे त्रातासौ विष्णुरीश्वरीम्।
बभूव शक्ति मान् स्तुत्वा तां दुर्गा प्रणमाम्यहम्॥
त्रिपुरस्य महायुद्धे सरथे पतिते शिवे।
यां तुष्टुवु: सुरा: सर्वे तां दुर्गा प्रणमाम्यहम्॥
विष्णुना वृषरूपेण स्वयं शम्भु: समुत्थित:।
जघान त्रिपुरं स्तुत्वा तां दुर्गा प्रणमाम्यहम्॥
यदाज्ञया वाति वात: सूर्यस्तपति संततम्।
वर्षतीन्द्रो दहत्यगिन्स्तां दुर्गा प्रणमाम्यहम्॥
यदाज्ञया हि कालश्च शश्वद् भ्रमति वेगत:।
मृत्युश्चरति जन्त्वोघे तां दुर्गा प्रणमाम्यहम्॥
स्त्रष्टा सृजति सृष्टिं च पाता पाति यदाज्ञया।
संहर्ता संहरेत् काले तां दुर्गा प्रणमाम्यहम्॥
ज्योति:स्वरूपो भगवाञ्छ्रीकृष्णो निर्गुण: स्वयम्।
यया विना न शक्त श्च सृष्टिं कर्तु नमामि ताम्॥
रक्ष रक्ष जगन्मातरपराधं क्षमस्व ते।
शिशूनामपराधेन कुतो माता हि कुप्यति॥
इत्युक्त्वा पर्शुरामश्च प्रणम्य तां रुरोद ह।
तुष्टा दुर्गा सम्भ्रमेण चाभयं च वरं ददौ॥
अमरो भव हे पुत्र वत्स सुस्थिरतां व्रज।
शर्वप्रसादात् सर्वत्र ज्योऽस्तु तव संततम्॥
सर्वान्तरात्मा भगवांस्तुष्टोऽस्तु संततं हरि:।
भक्ति र्भवतु ते कृष्णे शिवदे च शिवे गुरौ॥
इष्टदेवे गुरौ यस्य भक्ति र्भवति शाश्वती।
तं हन्तु न हि शक्त ाश्च रुष्टाश्च सर्वदेवता:॥
श्रीकृष्णस्य च भक्त स्त्वं शिष्यो हि शंकरस्य च।
गुरुपत्‍‌नीं स्तौषि यस्मात् कस्त्वां हन्तुमिहेश्वर:॥
अहो न कृष्णभक्त ानामशुभं विद्यते क्वचित्।
अन्यदेवेषु ये भक्त ा न भक्त ा वा निरेङ्कुशा:॥
चन्द्रमा बलवांस्तुष्टो येषां भाग्यवतां भृगो।
तेषां तारागणा रुष्टा: किं कुर्वन्ति च दुर्बला:॥
यस्य तुष्ट: सभायां चेन्नरदेवो महान् सुखी।
तस्य किं वा करिष्यन्ति रुष्टा भृत्याश्च दुर्बला:॥
इत्युक्त्वा पार्वती तुष्टा दत्त्‍‌वा रामं शुभाशिषम्।
जगामान्त:पुरं तूर्ण हरिशब्दो बभूव ह॥
स्तोत्रं वै काण्वशाखोक्तं पूजाकाले च य: पठेत्।
यात्राकाले च प्रातर्वा वाञ्िछतार्थ लभेद्ध्रुवम॥
पुत्रार्थी लभते पुत्रं कन्यार्थी कन्यकां लभेत्।
विद्यार्थी लभते विद्यां प्रजार्थी चाप्रुयात् प्रजाम्॥
भ्रष्टराज्यो लभेद् राज्यं नष्टवित्तो धनं लभेत्॥
यस्य रुष्टो गुरुर्देवो राजा वा बान्धवोऽथवा।
तस्य तुष्टश्च वरद: स्तोत्रराजप्रसादत:॥
दस्युग्रस्तोऽहिग्रस्तश्च शत्रुग्रस्तो भयानक:।
व्याधिग्रस्तो भवेन्मुक्त : स्तोत्रस्मरणमात्रत:॥
राजद्वारे श्मशाने च कारागारे च बन्धने।
जलराशौ निमगन्श्च मुक्त स्तत्स्मृतिमात्रत:॥
स्वामिभेदे पुत्रभेदे मित्रभेदे च दारुणे।
स्तोत्रस्मरणमात्रेण वाञ्िछतार्थ लभेद् ध्रुवम॥
कृत्वा हविष्यं वर्ष च स्तोत्रराजं श्रृणोति या।
भक्त्या दुर्गा च सम्पूज्य महावन्ध्या प्रसूयते॥
लभते सा दिव्यपुत्रं ज्ञानिनं चिरजीविनम्।
असौभाग्या च सौभाग्यं षण्मासश्रवणाल्लभेत्॥
नवमासं काकवन्ध्या मृतवत्सा च भक्ति त:।
स्तोत्रराजं या श्रृणोति सा पुत्रं लभते धु्रवम्॥
कन्यामाता पुत्रहीना पञ्जमासं श्रृणोति या।
घटे सम्पूज्य दुर्गा च सा पुत्रं लभते धु्रवम्॥

भावार्थ

परशुराम ने कहा - प्राचीन काल की बात है; गोलोक में जब परिपूर्णतम श्रीकृष्ण सृष्टिरचना के लिए उद्यत हुए, उस समय उनके शरीर से तुम्हारा प्राकटय हुआ था। तुम्हारी कान्ति करोडों सूर्यो के समान थी। तुम वस्त्र और अलंकारों से विभूषित थीं। शरीर पर अगिन् में तपाकर शुद्ध की हुई साडी का परिधान था। नव तरुण अवस्था थी। ललाटपर सिंदूर की बेंदी शोभित हो रही थी। मालती की मालाओं से मण्डित गुँथी हुई सुन्दर चोटी थी। बडा ही मनोहर रूप था। मुख पर मन्द मुस्कान थी। अहो! तुम्हारी मूर्ति बडी सुन्दर थी, उसका वर्णन करना कठिन है। तुम मुमुक्षुओं को मोक्ष प्रदान करने वाली तथा स्वयं महाविष्णु की विधि हो। बाले! तुम सबको मोहित कर लेने वाली हो। तुम्हें देखकर श्रीकृष्ण उसी क्षण मोहित हो गये। तब तुम उनसे सम्भावित होकर सहसा मुस्कराती हुई भाग चलीं। इसी कारण सत्पुरुष तुम्हें मूलप्रकृति ईश्वरी राधा कहते हैं। उस समय सहसा श्रीकृष्ण ने तुम्हें बुलाकर वीर्य का आधान किया। उससे एक महान् डिम्ब उत्पन्न हुआ। उस डिम्ब से महाविराट् की उत्पत्ति हुई, जिसके रोमकूपों में समस्त ब्रह्माण्ड स्थित हैं। फिर राधा के श्रृङ्गारक्रम से तुम्हारा नि:श्वास प्रकट हुआ। वह नि:श्वास महावायु हुआ और वही विश्व को धारण करने वाला विराट् कहलाया। तुम्हारे पसीने से विश्वगोलक पिघल गया। तब विश्व का निवासस्थान वह विराट् जल की राशि हो गया। तब तुमने अपने को पाँच भागों में विभक्त करके पाँच मूर्ति धारण कर ली। उनमें परमात्मा श्रीकृष्ण की जो प्राणाधिष्ठात्री मूर्ति है, उसे भविष्यवेत्ता लोग कृष्णप्राणाधिका राधा कहते हैं। जो मूर्ति वेद-शास्त्रों की जननी तथा वेदाधिष्ठात्री है, उस शुद्धरूपा मूर्ति को मनीषीगण सावित्री नाम से पुकारते हैं। जो शान्ति तथा शान्तरूपिणी ऐश्वर्य की अधिष्ठात्री मूर्ति है, उस सत्त्‍‌वस्वरूपिणी शुद्ध मुर्ति को संतलोग लक्ष्मी नाम से अभिहित करते हैं। अहो! जो राग की अधिष्ठात्री देवी तथा सत्पुरुषों को पैदा करने वाली है, जिसकी मूर्ति शुक्ल वर्ण की है, उस शास्त्र की ज्ञाता मूर्ति को शास्त्रज्ञ सरस्वती कहते हैं। जो मूर्ति बुद्धि, विद्या, समस्त शक्ति की अधिदेवता, सम्पूर्ण मङ्गलों की मङ्गलस्थान, सर्वमङ्गलरूपिणी और सम्पूर्ण मङ्गलों की कारण है, वही तुम इस समय शिव के भवन में विराजमान हो।
तुम्हीं शिव के समीप शिवा (पार्वती), नारायण के निकट लक्ष्मी और ब्रह्मा की प्रिया वेदजननी सावित्री और सरस्वती हो। जो पूरिपूर्णतम एवं परमानन्दस्वरूप हैं, उन रासेश्वर श्रीकृष्ण की तुम परमानन्दरूपिणी राधा हो। देवाङ्गनाएँ भी तुम्हारे कलांश की अंशकला से प्रादुर्भूत हुई हैं। सारी नारियाँ तुम्हारी विद्यास्वरूपा हैं और तुम सबकी कारणरूपा हो। अम्बिके! सूर्य की पत्‍‌नी छाया, चन्द्रमा की भार्या सर्वमोहिनी रोहिणी, इन्द्र की पत्‍‌नी शची, कामदेव की पत्‍‌नी ऐश्वर्यशालिनी रति, वरुण की पत्‍‌नी वरुणानी, वायु की प्राणप्रिया स्त्री, अगिन् की प्रिया स्वाहा, कुबेर की सुन्दरी भार्या, यम की पत्‍‌नी सुशीला, नैर्ऋत की जाया कैटभी, ईशान की पत्‍‌नी शशिकला, मनु की प्रिया शतरूपा, कर्दम की भार्या देवहूति, वसिष्ठ की पत्‍‌नी अरुन्धती, देवमाता अदिति, अगस्त्य मुनि की प्रिया लोपामुद्रा, गौतम की पत्‍‌नी अहल्या, सबकी आधाररूपा वसुन्धरा, गङ्गा, तुलसी तथा भूतल की सारी श्रेष्ठ सरिताएँ-ये सभी तथा इनके अतिरिक्ति जो अन्य स्त्रियाँ हैं, वे सभी तुम्हारी कला से उत्पन्न हुई हैं।
तुम मनुष्यों के घर में गृहलक्ष्मी, राजाओं के भवनों में राजलक्ष्मी, तपस्वियों की तपस्या और ब्राह्मणों की गायत्री हो। तुम सत्पुरुषों के लिए सत्त्‍‌वस्वरूप और दुष्टों के लिये कलह की अङ्कुर हो। निर्गुण की ज्योति और सगुण की शक्ति तुम्हीं हो। तुम सूर्य में प्रभा, अगिन् में दाहिका-शक्ति , जल में शीतलता और चन्द्रमा में शोभा हो। भूमि में गन्ध और आकाश में शब्द तुम्हारा ही रूप है। तुम भूख-प्यास आदि तथा प्राणियों की समस्त शक्ति हो। संसार में सबकी उत्पत्ति की कारण, साररूपा, स्मृति, मेधा, बुद्धि अथवा विद्वानों की ज्ञानशक्ति तुम्हीं हो। श्रीकृष्ण ने शिवजी को कृपापूर्वक सम्पूर्ण ज्ञान की प्रसविनी जो शुभ विद्या प्रदान की थी, वह तुम्हीं हो; उसी से शिवजी मृत्युञ्जय हुए हैं। ब्रह्मा, विष्णु और महेश की सृष्टि, पालन और संहार करने वाली जो त्रिविध शक्ति याँ हैं, उनके रूप में तुम्हीं विद्यमान हो; अत: तुम्हें नमस्कार है। जब मधु-कैटभ के भय से डरकर ब्रह्मा काँप उठे थे, उस समय जिनकी स्तुति करके वे भयमुक्त हुए थे; उन देवी को मैं सिर झुकाकर प्रणाम करता हूँ। मधु-कैटभ के युद्ध में जगत् के रक्षक ये भगवान् विष्णु जिन परमेश्वरी का स्तवन करके शक्ति मान् हुए थे, उन दुर्गा को मैं नमस्कार करता हूँ। त्रिपुर के महायुद्ध में रथसहित शिवजी के गिर जाने पर सभी देवताओं ने जिनकी स्तुति की थी; उन दुर्गा को मैं प्रणाम करता हूँ। जिनका स्तवन करके वृषरूपधारी विष्णु द्वारा उठाये गये स्वयं शम्भु ने त्रिपुर का संहार किया था; उन दुर्गा को मैं अभिवादन करता हूँ। जिनकी आज्ञा से निरन्तर वायु बहती है, सूर्य तपते हैं, इन्द्र वर्षा करते हैं और अगिन् जलाती है; उन दुर्गा को मैं सिर झुकाता हूँ। जिनकी आज्ञा से काल सदा वेगपूर्वक चक्क र काटता रहता है और मृत्यु जीव-समुदाय में विचरती रहती है; उन दुर्गा को मैं नमस्कार करता हूँ। जिनके आदेश से सृष्टिकर्ता सृष्टि की रचना करते हैं, पालनकर्ता रक्षा करते हैं और संहर्ता समय आने पर संहार करते हैं; उन दुर्गा को मैं प्रणाम करता हूँ। जिनके बिना स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण, जो ज्योति:स्वरूप एवं निर्गुण हैं, सृष्टि-रचना करने में समर्थ नहीं होते; उन देवी को मेरा नमस्कार है। जगज्जननी! रक्षा करो, रक्षा करो; मेरे अपराध को क्षमा कर दो। भला, कहीं बच्चे के अपराध करने से माता कुपित होती है।
इतना कहकर परशुराम उन्हें प्रणाम करके रोने लगे। तब दुर्गा प्रसन्न हो गयीं और शीघ्र ही उन्हें अभय का वरदान देती हुई बोलीं- हे वत्स! तुम अमर हो जाओ। बेटा! अब शान्ति धारण करो। शिवजी की कृपा से सदा सर्वत्र तुम्हारी विजय हो। सर्वान्तरात्मा भगवान् श्रीहरि सदा तुमपर प्रसन्न रहें। श्रीकृष्ण में तथा कल्याणदाता गुरुदेव शिव में तुम्हारी सुदृढ भक्ति बनी रहे; क्योंकि जिसकी इष्टदेव तथा गुरु में शाश्वती भक्ति होती है, उस पर यदि सभी देवता कुपित हो जायँ तो भी उसे मार नहीं सकते। तुम तो श्रीकृष्ण के भक्त और शंकर के शिष्य हो तथा मुझ गुरुपत्‍‌नी की स्तुति कर रहे हो; इसलिए किसकी शक्ति है जो तुम्हें मार सके। अहो! जो अन्यान्य देवताओं के भक्त हैं अथवा उनकी भक्ति न करके निरंकुश ही हैं, परंतु श्रीकृष्ण के भक्त हैं तो उनका कहीं भी अमङ्गल नहीं होता। भार्गव! भला, जिन भाग्यवानों पर बलवान् चन्द्रमा प्रसन्न हैं तो दुर्बल तारागण रुष्ट होकर उनका क्या बिगाड सकते हैं। सभा में महान आत्मबल से सम्पन्न सुखी नरेश जिसपर संतुष्ट है, उसका दुर्बल भृत्यवर्ग कुपित होकर क्या कर लेगा? यों कहकर पार्वती हर्षित हो परशुराम को शुभाशीर्वाद देकर अन्त:पुर में चली गयीं। तब तुरंत हरि-नाम का घोष गूँज उठा।
महिमा
जो मनुष्य इस काण्वशाखोक्त स्तोत्र का पूजा के समय, यात्रा के अवसर पर अथवा प्रात:काल पाठ करता है, वह अवश्य ही अपनी अभीष्ट वस्तु प्राप्त कर लेता है। इसके पाठ से पुत्रार्थी को पुत्र, कन्यार्थी को कन्या, विद्यार्थी को विद्या, प्रजार्थी को प्रजा, राज्यभ्रष्ट को राज्य और धनहीन को धन की प्राप्ति होती है। जिसपर गुरु, देवता, राजा अथवा बन्धु-बान्धव क्रुद्ध हो गये हों, उसके लिये ये सभी इस स्तोत्रराज की कृपा से प्रसन्न होकर वरदाता हो जाते हैं। जिसे चोर-डाकुओं ने घेर लिया हो, साँप ने डस लिया हो, जो भयानक शत्रु के चंगुल में फँस गया हो अथवा व्याधिग्रस्त हो; वह इस स्तोत्र के स्मरण मात्र से मुक्त हो जाता है। राजद्वार पर, श्मशान में, कारागार में और बन्धन में पडा हुआ तथा अगाध जलराशि में डूबता हुआ मनुष्य इस स्तोत्र के प्रभाव से मुक्त हो जाता है। स्वामिभेद, पुत्रभेद तथा भयंकर मित्रभेद के अवसर पर इस स्तोत्र के स्मरण मात्र से निश्चय ही अभीष्टार्थ की प्राप्ति होती है। जो स्त्री वर्षपर्यन्त भक्ति पूर्वक दुर्गा का भलीभाँति पूजन करके हविष्यान्न खाकर इस स्तोत्रराज को सुनती है, वह महावन्ध्या हो तो भी प्रसववाली हो जाती है। उसे ज्ञानी एवं चिरजीवी दिव्य पुत्र प्राप्त होता है। छ: महीने तक इसका श्रवण करने से दुर्भगा सौभाग्यवती हो जाती है। जो काकवन्ध्या और मृतवत्सा नारी भक्ति पूर्वक नौ मास तक इस स्तोत्रराज को सुनती है, वह निश्चय ही पुत्र पाती है। जो कन्या की माता तो है परंतु पुत्र से हीन है, वह यदि पाँच महीने तक कलश पर दुर्गा की सम्यक् पूजा करके इस स्तोत्र को श्रवण करती है तो उसे अवश्य ही पुत्र की प्राप्ति होती है।
जय माँ भगवती आद्यशक्ति।।
जय माँ महामाया।।
जय माँ महाकाली भद्रकाली कापालिनी मुंडधारी नमोनमः।।

श्री भगवती स्तोत्रम

श्री भगवती स्तोत्रम


शक्ति रूपेण देवी भगवती दुर्गा की स्तुति में कहा गया स्तोत्र है। इसके अनेक उवाच हैं, जो कि निम्नलिखित हैं।भगवती के इस स्तोत्र की रचना व्यास जी ने की थी।
स्तोत्र
जय भगवति देवि नमो वरदे जय पापविनाशिनि बहुफलदे।
जय शुम्भनिशुम्भकपालधरे प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे॥1॥
जय चन्द्रदिवाकरनेत्रधरे जय पावकभूषितवक्त्रवरे।
जय भैरवदेहनिलीनपरे जय अन्धकदैत्यविशोषकरे॥2॥
जय महिषविमर्दिनि शूलकरे जय लोकसमस्तकपापहरे।
जय देवि पितामहविष्णुनते जय भास्करशक्रशिरोवनते॥3॥
जय षण्मुखसायुधईशनुते जय सागरगामिनि शम्भुनुते।
जय दु:खदरिद्रविनाशकरे जय पुत्रकलत्रविवृद्धिकरे॥4॥
जय देवि समस्तशरीरधरे जय नाकविदर्शिनि दु:खहरे।
जय व्याधिविनाशिनि मोक्ष करे जय वाञ्छितदायिनि सिद्धिवरे॥5॥
एतद्व्यासकृतं स्तोत्रं य: पठेन्नियत: शुचि:।
गृहे वा शुद्धभावेन प्रीता भगवती सदा॥6॥
भावार्थ
हे वरदायिनी देवि! हे भगवति! तुम्हारी जय हो। हे पापों को नष्ट करने वाली और अनन्त फल देने वाली देवि। तुम्हारी जय हो! हे शुम्भनिशुम्भ के मुण्डों को धारण करने वाली देवि! तुम्हारी जय हो। हे मुष्यों की पीडा हरने वाली देवि! मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ॥1॥
हे सूर्य-चन्द्रमारूपी नेत्रों को धारण करने वाली! तुम्हारी जय हो। हे अग्नि के समान देदीप्यामान मुख से शोभित होने वाली! तुम्हारी जय हो। हे भैरव-शरीर में लीन रहने वाली और अन्धकासुरका शोषण करने वाली देवि! तुम्हारी जय हो, जय हो॥2॥
हे महिषसुर का मर्दन करने वाली, शूलधारिणी और लोक के समस्त पापों को दूर करने वाली भगवति! तुम्हारी जय हो। ब्रह्मा, विष्णु, सूर्य और इन्द्र से नमस्कृत होने वाली हे देवि! तुम्हारी जय हो, जय हो॥3॥
सशस्त्र शङ्कर और कार्तिकेयजी के द्वारा वन्दित होने वाली देवि! तुम्हारी जय हो। शिव के द्वारा प्रशंसित एवं सागर में मिलने वाली गङ्गारूपिणि देवि! तुम्हारी जय हो। दु:ख और दरिद्रता का नाश तथा पुत्र-कलत्र की वृद्धि करने वाली हे देवि! तुम्हारी जय हो, जय हो॥4॥
हे देवि! तुम्हारी जय हो। तुम समस्त शरीरों को धारण करने वाली, स्वर्गलोक का दर्शन करानेवाली और दु:खहारिणी हो। हे व्यधिनाशिनी देवि! तुम्हारी जय हो। मोक्ष तुम्हारे करतलगत है, हे मनोवाच्छित फल देने वाली अष्ट सिद्धियों से सम्पन्न परा देवि! तुम्हारी जय हो॥5॥
जो कहीं भी रहकर पवित्र भाव से नियमपूर्वक इस व्यासकृत स्तोत्र का पाठ करता है अथवा शुद्ध भाव से घर पर ही पाठ करता है, उसके ऊपर भगवती सदा ही प्रसन्न रहती हैं॥6॥
जय माँ भगवती।।

कश्मीर कैशे बना कैंसर

कश्मीर कैशे बना कैंसर


जय माता दी बहनों और भाइयों शुभ प्रभात
कश्मीर कैसे कैन्सर बना इसका इतिहास सबको जानना चाहिए दोस्तों-
कश्यप मुनि की पहाड़ी अर्थात कश्यपमीर यानी कश्मीर हिन्दू राजा सुहादेव (१३०१-१३२२) के समय तक ज्ञान, विज्ञान,कला,संस्कृति,दर्शन,धर्म एवं आध्यात्म का केन्द्र बनी रही। अलबरूनी ने लिखा है कि किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को कश्मीर में तब तक प्रवेश नहीं करने दिया जाता था, जब तक की उसका परिचय वहाँ के किसी सामंत से नहीं होता था।
लेकिन सन १३१३ में ईरान से आये शाहमीर नामक एक मुसलमान को सुहादेव ने उदारतापूर्वक अपने दरबार में शरण दी और उसे अंदरकोट का भार सौंप दिया। बस यहीं से धरती के स्वर्ग में जहरीली विषबेल का बीजारोपण हो गया। इस काल में कश्मीर शैवमत का केन्द्र माना जाता था।
सन १३२२ में मंगोल सरदार दलूचा ने ६०००० सैनिकों के साथ कश्मीर पर भयंकर आक्रमण कर दिया ।
दलूचा ने काफिर पुरुषों के क़त्लेआम का हुक़्म जारी कर दिया जबकि स्त्रियों और बच्चों को ग़ुलाम बनाकर मध्य एशिया के व्यापारियों को बेच दिया। शहर और गाँव नष्ट करके जला दिए गए और भारी तबाही मचाई। शांतिप्रिय राजा सुहादेव इसके विरुद्ध कुछ न कर सका और किश्तवाड़ भाग गया।
उस समय लद्दाख के बौद्ध राजकुमार रिनचन ने लुटे-पिटे कश्मीर को संभाला। लेकिन उसकी मृत्यु के पश्चात पिछले १८ सालों से मन ही मन में कश्मीर को दारूल इस्लाम बनाने के सपने देखते एहसानफरामोश शाहमीर ने अनेक षडयंत्र रच कर शासन करती उसकी विधवा बहू कोटारानी को उसके अल्पायु बच्चों के साथ कैद कर गद्दी हथिया ली और सुल्तान शम्सुद्दीन के नाम से १३३१ ई. में सिंहासन पर जा बैठा।
  
सिंहासन पर बैठते ही वो असली रूप में आ गया और उसने कश्मीर में कट्टर सुन्नी मुस्लिम सिद्धांतों का प्रचार प्रारंभ कर दिया।
हालांकि कश्मीर की अंतिम हिन्दू शासक कोटारानी के समय में ही कश्मीर में अरब देशों के मुस्लिम व्यापारियों, इस्लामी धर्मगुरूओं और विशेषकर सैय्यदों का आगमन शुरू हो चुका था एवं हिन्दूराज्य की धर्मनिरपेक्ष नीतियों के कारण वो बड़ी संख्या में वहाँ बस भी चुके थे परंतु शाहमीर के समय में हमदान (तुर्कीस्तान-फारस) से मुस्लिम सईदों की बाढ़ कश्मीर में पहुंचने लगी।
मौके का फायदा उठाकर सईद अली हमदानी और सईद शाहे हमदानी, इन दो मजहबी नेताओं के साथ हजारों इस्लामिक मत प्रसारक सईद भी कश्मीर में घुस आये (1372)। इन्होंने और सैय्यदों को बुलाया। इन लोगों ने धीरे-धीरे सुल्तानों पर प्रभाव जमा लिया और मुस्लिम शासकों की मदद से कश्मीर के गांव-गांव में मस्जिदें, खानकाहें, दरगाहें, मदरसे और इसी प्रकार के इस्लामिक केन्द्र खोले। ऊपर से दिखने वाले इन मानवीय प्रयासों के पीछे ही वास्तव में कश्मीरी हिन्दुओं के जबरन धर्मान्तरण की नापाक दास्तान छिपी है।
सईद अली हमदानी ने कश्मीर की एक प्रभावशाली संन्यासिनी लल्लेश्वरी देवी को मानवता के नाम पर अपने पक्ष में किया और उनके प्रभाव का इस्तेमाल करके इस्लामिक सूफी मत का प्रचार शुरू किया। सादात लिखित "बुलबुलशाह" के अनुसार सिर्फ हमदानी ने सूफीवाद के माध्यम से इंसानियत का ढोंग करके ३७००० लोगों को मुसलमान बनाया।
  
हमदानी ने कश्मीर के तत्कालीन सुल्तान कुतुबुद्दीन (१३७३-१३८९) को मजहबी फतवा सुनाकर इस्लामी देशों की वेषभूषा, राज्य का इस्लामी माडल, शासन प्रणाली में शरियत के कानून लागू करवाये और राज्य के भवनों पर हरे इस्लामी झंडे लगाने जैसी व्यवस्थाएं लागू करवा दीं। इन सबका विरोध करने वाले हिन्दुओं को सताने और सजाये मौत देने का सिलसिला यहीं से शुरू हो गया।
इन सईदों के मजहबी जुनून को मुस्लिम इतिहासकार एम.डी.सूफी ने अपनी पुस्तक "कश्मीर" में स्पष्ट किया है-
"सईदों ने मुस्लिम राजाओं में बहुत प्रसिद्धि प्राप्त की। इन्होंने अनेक प्रचार केन्द्र स्थापित किए जहां लोगों को नि:शुल्क भोजन दिया जाता था और बाद में उनसे जबरदस्ती इस्लाम कबूल करवाया जाता था।"
वास्तव में इसी जबरदस्ती ने बाद के कालखंड में खून
की नदियां बहाकर हिन्दुओं को मुसलमान बनाना शुरू
किया।
इसे कश्मीर, भारत, हिन्दू समाज और सम्पूर्ण मानवता का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि इन्हीं के द्वारा धर्मान्तरित कश्मीरियों ने अपनी ही प्राचीन हिन्दू मान्यताओं को तहस नहस करके इस्लामी मान्यताओं की प्रतिष्ठा करने में जितना उत्साह दिखाया वह कश्मीर के इतिहास का एक अति कलंकित अध्याय है। इन्होंने अपने ही पुरखों के बनाये मठ-मंदिरों को तोड़कर उन्हें मस्जिदों में बदलने में जरा भी शर्म महसूस नहीं की।
मुस्लिम सुल्तानों ने पढ़े लिखे कश्मीरी हिन्दुओं को मुसलमान बनाकर अपने राज दरबारों में वजीर बनाया। ऊंचे-ऊंचे पदों पर रखा और बाद में इन वजीरों को जागीरें देकर राजा शमसुद्दीन और राजा सैफुद्दीन बनाकर इन्हीं के द्वारा हिन्दुओं पर जुल्म की चक्की चलवाई।
कुत्बुद्दीन के पुत्र सिकन्दर बुतशिकन ने (१३८९-१४१३) सूफी मीर अली हमदानी, सहभट्ट सैयदों तथा मूसा रैना के साथ मिलकर हर प्रकार से कश्मीर के सम्पूर्ण इस्लामीकरण की योजना बनाई एवं हिन्दुओं पर अमानवीय अत्याचार करना आरम्भ कर दिया।
सिकन्दर बुतशिकन के समय समस्त प्रतिमाएँ भंग कर दी गयी थीं। हिन्दू जबर्दस्ती मुसलमान बना लिये गये थे।
इस सुल्तान के विषय में कल्हण 'राज तरंगिणी' में लिखता है :
'सुल्तान अपने तमाम राजसी कर्तव्यों को भुलाकर दिन रात मूर्तियों को तोड़ने का आनंद उठाता रहता था। उसने मार्तण्ड, विष्णु, ईशन, चक्रवर्ती और त्रिपुरेश्वर की मूर्तियाँ तोड़ डाली। कोई भी वन, ग्राम, नगर तथा महानगर ऐसा न था जहाँ तुरुश्क और उसके मंत्री सुहा ने मंदिर तोड़ने से छोड़ दिये हों।' सुहा हिन्दू था जो मुसलमान हो गया था।
मुस्लिम इतिहासकार हसन ने अपनी पुस्तक "हिस्ट्री आफ कश्मीर" में इस एकतरफा धर्मान्तरण का जिक्र इस तरह से किया है-
"सुल्तान सिकंदर बुतशिकन ने हिन्दुओं को सबसे ज्यादा सताया। शहरों में यह घोषणा कर दी गई कि जो हिन्दू मुसलमान नहीं बनेगा वह या तो देश छोड़ दे अन्यथा मार डाला जाएगा। परिणामस्वरूप कई हिन्दू कश्मीर छोड़कर भाग गये और हजारों ने इस्लाम कबूल कर लिया। अनेक ब्राह्मणों ने मरना बेहतर समझा और नदियों तथा गहरी घाटियों में कूदकर प्राण दे दिये। इस तरह सुल्तान सिकंदर ने लगभग तीन खिर्बार (सात मन) जनेऊ हिन्दू मत परिवर्तन करने वालों से जमा किये और जला दिये।
एक मजहबी नेता हजरत अमीर कबीर ने सिकंदर को समझाया कि हिन्दुओं की क्रूरतापूर्वक हत्याएं करने के बजाय वह उन पर जजिया (हिन्दू होने का टैक्स) लगा दे परन्तु सुल्तान सिकंदर यह नहीं माना। हिन्दुओं के सारे धर्म ग्रंथ डल झील (सतीसर) में फेंक दिये गये और
कइयों को जला दिया गया। कइयों को मिट्टी और
पत्थरों के नीचे दबा दिया गया।"
इतिहासकार हसन लिखते हैं- "इस देश (कश्मीर) में
हिन्दू राजाओं के समय में अनेक मंदिर थे जो संसार के
आश्चर्यों की तरह थे। उनकी कला इतनी बढ़िया और कोमल थी कि देखने वाला ठगा सा रह जाता था। सुल्तान सिकंदर ने ईर्ष्या ओर घृणा से भरकर मंदिरों को नष्ट करके मिट्टी में मिला दिया। मंदिरों के मलबे से ही अनेक मस्जिदें और खानकाहें बनवाईं।"
  
कश्मीर के अधिकृत इतिहास राजतरंगिणी के दूसरे लेखक जोनराज के अनुसार- "कोई भी ऐसा नगर, कस्बा, गांव और वन नहीं बचा जहां हिन्दू देवताओं के मठ मंदिर टूटने से बचे हों। इन गैर इनसानी जुल्मों के आगे अनेक हिन्दुओं ने हार मान ली और धर्मान्तरित हो गये और अनेकों ने आत्महत्याएं कर लीं।"
एक अंग्रेज इतिहासकार डा.अर्नेस्ट ने अपनी पुस्तक
"बियोंड द पीर पंजाल" में सुल्तानों के अत्याचारों को इस तरह लिखा है-"दो-दो हिन्दुओं को जीवित ही एक बोरे में बंद करके झील में फेंक दिया जाता था। उनके सामने केवल तीन मार्ग शेष थे। या तो वे मुसलमान बनें या मौत को स्वीकार करें या फिर संघर्ष करें। सिकंदर ने सरकारी आदेश जारी कर दिया था इस्लाम, मौत अथवा देश निकाला।"
इन क्रूर और पाश्विक प्रवृति वाले सुल्तानों ने हिन्दुओं के
आध्यात्मिक श्रद्धा केन्द्रों पर भी अपनी आंखें गड़ाईं। सूफी मोहम्मद अमदानी ने सुल्तान बुतशिकन को समझाया कि "जब तक इन बुत परस्त काफिरों के मंदिरों में लगे हुये बुतों को समाप्त नहीं किया जाता तब तक इनके धर्मान्तरण का लाभ नहीं होगा क्योंकि यही मन्दिर इनकी प्रेरणा के केंद्र हैं। यही इन्हें भविष्य में संगठित होकर इस्लाम को त्यागने की प्रेरणा दे सकते हैं। अत: इन नये मुसलमानों को भारत राष्ट्र की मूल धारा से तोड़ने हेतु इन मन्दिरों को समाप्त करना बहुत जरूरी है।"
सईद की इस भारत और हिन्दू विरोधी सूझबूझ को सुल्तान ने बहुत पसंद किया और मानव इतिहास की सर्वश्रेष्ठ कृतियों को बर्बाद करने के कुकृत्य शुरू कर दिये।
इतिहासकार हसन ने लिखा है कि सबसे पहले सुल्तान
सिकंदर की दृष्टि कश्मीर के विश्व प्रसिद्ध मार्तंड सूर्य मंदिर पर पड़ी। इस भव्य मार्तण्ड सूर्य मंदिर को तोड़कर पूर्णत: बर्बाद करने में एक वर्ष का समय लगने के बाद भी सुल्तान जब अपने काम में सफल नहीं हो सका। तब कला, संस्कृति और ईश्वरीय सौंदर्य के इस शत्रु ने मंदिर को लकड़ियों से भरकर आग लगवा दी। मंदिर के स्वर्ण जड़ित गुम्बद की अलौकिक आभा को बर्बाद होते देख, सुल्तान हंसता रहा और उसे खुदा का हुकुम मानकर तबाही के आदेश देता रहा। मंदिर की नींव में से पत्थरों को निकलवाया गया। मंदिर के चारों ओर के गांवों को इस्लाम कबूल करने के आदेश दे दिये गये।
जो नहीं माने उनको परिवारों सहित मौत के घाट उतार दिया गया। इस तरह से सैकड़ों गांव इस्लाम में धर्मान्तरित कर दिये गये। इस मार्तण्ड मंदिर के खंडहरों को देखकर आज भी इसके निर्माणकर्ताओं के कला कौशल पर आश्चर्य होता है।
इसी प्रकार कश्मीर के प्रसिद्ध विजबिहार नामक स्थान पर एक विशाल और सुंदर विजवेश्वर मंदिर और उसके आसपास के तीन सौ से भी ज्यादा मंदिरों को सुल्तान के आदेश से तुड़वा दिया गया।
इतिहासकार मोहम्मद हसन के अनुसार इस विजवेश्वर मंदिर की मूर्तियों और पत्थरों से वहीं एक मस्जिद का निर्माण किया गया और उसी क्षेत्र में एक खनक बनवाई गई जिसे आज भी विजवेश्वर खनक कहते हैं।
हिन्दू उत्पीड़न और जबरन धर्मान्तरण का यह खूनी खेल
प्रत्येक मुस्लिम सुल्तान के समय में तेजी से चला परंतु
औरंगजेब के समय में तो हिन्दुओं के हाथ-पांव काटने,
उनकी सम्पति हथियाने, तरह-तरह के बहाने बनाकर उन्हें कारावास में डालने, सजाए मौत देने और अपहरण करके मुसलमान बनाने के अत्यंत बेरहम और अमानवीय हथकंडे शुरू हो गये।
औरंगजेब ने अपने शासनकाल के 49 वर्षों में 14 सूबेदार कश्मीर में अपने नापाक इरादे पूरे करने के लिए भेजे, उनमें सबसे निर्मम निकला इफ्तार खाँ(1671-75) जिसने कश्मीर में हिन्दुओं पर अत्याचारों के पिछले सभी रिकार्ड तोड़ डाले।
मोहम्मद हसन ने धर्मान्तरण के इन राक्षसी तौर तरीकों को अपनी पुस्तक हिस्ट्री आफ कश्मीर में इस प्रकार लिखा है-"कश्मीर में मजहबी आतंक चरम सीमा पर पहुंच गया। हिन्दुओं के विनाश के लिए एक क्रमबद्ध विधि अपनाई गई। उसने हिन्दुओं को बोरियो में बांधकर डल झील में डालकर मार डाला। बारामूला के अनेक प्रतिष्ठित हिन्दुओं को बंदी बनाकर यातनाएं दी गईं। उन्हें कारावास में कड़ी यातनाएं देने के बाद झेलम नदी (वितस्ता) में डुबो दिया गया। लेकिन जब उसे विश्वास हो गया कि पूरी हिन्दू जाति का विनाश संभव नहीं है तो सुल्तान ने बचे हुये हिन्दुओं का जीना ही असंभव कर दिया। हिन्दुओं पर भारी जजिया टैक्स लगा दिया। उस समय तक अत्यंत गरीब और असहाय हो चुके हिन्दू इसे सहन नहीं कर सके और लाचार होकर मुसलमान बन गये।
  
हिन्दू कश्मीर के धर्मान्तरण की यह दर्दनाक कहानी बहुत लम्बी है। १३३१ से शुरू हुआ कश्मीर का असली चेहरा बिगाड़ने वाला काला इतिहास १९८९ में कश्मीरी हिन्दुओं के सामूहिक पलायन तक जारी रहा।
प्राचीन काल से कश्मीर हिन्दू और बौद्ध संस्कृतियों का पालना रहा था। जहाँ इन दोनों ही धर्मों का विकास और प्रसार हुआ परन्तु दोनों धर्मों का आपस में कभी टकराव नहीं हुआ।
इसी प्रदेश में ‘शैव मत' का भी उद्भव और विकास हुआ। संभवत: शैव सिद्धों ने ही पहले कश्मीर के शैव दर्शन को आम लोगों के लिए सुलभ बनाया।
यहाँ के संस्कृत भाषा के मनीषियों में से महर्षि पतंज्जलि ने 'पातज्जल योगदर्शनम्', आनन्दवर्द्धन ने ‘ध्वन्यालोक', अभिनव गुप्त ने ‘काव्य मीमांसा', कल्हण ने ‘राजतरंगिणी', मुम्मट ने ‘काव्य प्रकाश',सोमदेव ने ‘कथा सरित्सागर' जैसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ लिखे ।
इनके अलावा दृढ़बल, वसुगुप्त ,क्षेमराज, जोनराज, बिल्हण आदि अन्य संस्कृत के विशिष्ट विद्वान भी यहीं के थे।
यह भी धारणा है कि ‘विष्णुधर्मोंतर पुराण' एवं ‘योगवसिष्ठ' ‘कथासरित संग्रह'यही लिखे गए।
कश्मीरी साहित्य का पहला नमूना ‘शितिकण्ठ' के महान प्रकाश १३वीं शताब्दी की ‘सर्वगोचर देश भाषा' में मिलता है।
कश्मीर सदियों से एशिया महाद्वीप में संस्कृति, ज्ञान, विज्ञान, साहित्य, दर्शनशास्त्र, धर्म एवं आध्यात्म का केन्द्र रहा था।
परन्तु बेबीलोन, फारस समेत विश्व की अनेक प्राचीन एवं उन्नत सभ्यताओं को तबाह और बर्बाद करता हुआ इस्लाम आखिर इस महान धरती पर भी आ पहुँचा और इसकी प्राचीन और गौरवशाली संस्कृति को बेरहमी से निगल लिया। आज कश्मीर में यदि कुछ बचा है तो वो है केवल इस्लाम, ठंडी फिजाओं में घुली बारूद की गंध के बीच बन्दूकों के साये में जिन्दगी और अतीत के उस स्वर्णिम काल के लोगों की स्मृतियाँ ..!!

विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )