Saturday, March 28, 2020

श्री-बृहत्-महा-सिद्ध-कुञ्जिका-स्तोत्रम्

श्री-बृहत्-महा-सिद्ध-कुञ्जिका-स्तोत्रम्


दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      

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॥शिव उवाच॥

शृणु देवि! प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिका-स्तोत्रमुत्तमम्। येन मन्त्र-प्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत्॥1॥

न कवचं नार्गला तु, कीलकं न रहस्यकम्। न सूक्तं नापि ध्यानं च, न न्यासो न च वाऽर्चनम्॥2॥

कुञ्जिका-पाठ-मात्रेण, दुर्गा-पाठ-फलं लभेत्। अति गुह्यतरं देवि! देवानामपि दुर्लभम्॥3॥

गोपनीयं प्रयत्‍‌नेन, स्वयोनिरिव पार्वति! मारणं मोहनं वश्यं, स्तम्भनोच्चाटनादिकम्। पाठमात्रेण संसिद्धयेत्, कुञ्जिका-स्तोत्रमुत्तमम्॥4॥

ॐ श्रूं श्रूं श्रूं श्रं फट् ऐं ह्रीं ज्वालोज्ज्वल, प्रज्वल, ह्रीं ह्रीं क्लीं स्रावय स्रावय। 

वशीष्ठ-गौतम-विश्वामित्र-दक्ष-प्रजापति-ब्रह्मा ऋषयः। सर्वैश्वर्य-कारिणी श्री दुर्गा देवता। गायत्र्या शापानुग्रह कुरु कुरु हूं फट्। 

ॐ ह्रीं श्रीं हूं दुर्गायै सर्वैश्वर्य-कारिण्यै, ब्रह्म-शाप-विमुक्ता भव। 
ॐ क्लीं ह्रीं ॐ नमः शिवायै आनन्द-कवच-रुपिण्यै, ब्रह्म-शाप-विमुक्ता भव। 
ॐ काल्यै काली ह्रीं फट् स्वाहायै, ऋग्वेद-रुपिण्यै, ब्रह्म-शाप-विमुक्ता भव। 
शापं नाशय नाशय, हूं फट्॥ 

श्रीं श्रीं श्रीं जूं सः आदाय स्वाहा॥ ॐ श्लों हुं क्लीं ग्लौं जूं सः ज्वलोज्ज्वल मन्त्र प्रबल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा। नमस्ते रुद्र-रूपायै नमस्ते मधु-मर्दिनि। नमस्ते कैटभारि च नमस्ते महिषार्दिनि॥1॥

नमस्ते शुम्भहन्त्री च, निशुम्भासुर-घातिनि॥2॥

नमस्ते जाग्रते देवि! जपं सिद्धिं कुरुष्व मे। ॐ ऐंकारी सृष्टि-रूपायै ह्रींकारी प्रति-पालिका॥3॥
क्लींकारी काम-रूपिण्यै बीजरूपे! नमोऽस्तु ते। चामुण्डा चण्ड-घाती च यैङ्कारी वर-दायिनी॥4॥

विच्चे त्व-भयदा नित्यं नमस्ते मन्त्र-रूपिणि॥5॥

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं हंसः-सोऽहं अं आं ब्रह्म-ग्रन्थि भेदय भेदय। इं ईं विष्णु-ग्रन्थि भेदय भेदय। उं ऊं रुद्र-ग्रन्थि भेदय भेदय। अं क्रीं, आं क्रीं, इं क्रीं, इं हूं, उं हूं, ऊं ह्रीं, ऋं ह्रीं, ॠं दं, लृं क्षिं, ॡं णें, एं कां, ऐं लिं, ओं कें, औं क्रीं, अं क्रीं, अः क्रीं, अं हूं, आं हूं, इं ह्रीं, ईं ह्रीं, उं स्वां, ऊं हां, यं हूं, रं हूं, लं मं, बं हां, शं कां, षं लं, सं प्रं, हं सीं, ळं दं, क्षं प्रं, यं सीं, रं दं, लं ह्रीं, वं ह्रीं, शं स्वां, षं हां, सं हं लं क्षं॥ 

महा-काल-भैरवी महा-काल-रुपिणी क्रीं अनिरुद्ध-सरस्वति! 
हूं हूं, ब्रह्म-ग्रह-बन्धिनी, विष्णु-ग्रह-बन्धिनी, रुद्र-ग्रह-बन्धिनी, गोचर-ग्रह-बन्धिनी, आदि-व्याधि-ग्रह-बन्धिनी, सर्व-दुष्ट-ग्रह-बन्धिनी, सर्व-दानव-ग्रह-बन्धिनी, सर्व-देवता-ग्रह-बन्धिनी, सर्वगोत्र-देवता-ग्रह-बन्धिनी, सर्व-ग्रहोपग्रह-बन्धिनी! 
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ॐ क्रीं हूं मम पुत्रान् रक्ष रक्ष, ममोपरि दुष्ट-बुद्धिं दुष्ट-प्रयोगाना् कुर्वन्ति, कारयन्ति, करिष्यन्ति, तान् हन। 
मम मन्त्र-सिद्धिं कुरु कुरु। मम दुष्टं विदारय विदारय। दारिद्रयं हन हन। पापं मथ मथ। आरोग्यं कुरु कुरु। आत्म-तत्त्वं देहि देहि। हंसः सोहम्। 
क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा॥ नव-कोटि-स्वरुपे, आद्ये, आदि-आद्ये अनिरुद्ध-सरस्वति! स्वात्म-चैतन्यं देहि देहि। मम हृदये तिष्ठ तिष्ठ। मम मनोरथं कुरु कुरु स्वाहा॥ 6 

धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नीः! 
वां वीं वागेश्वरी तथा। 
क्रां क्रीं क्रूं कुञ्जिका देवि! 
शां शीं शूं में शुभं कुरू॥ 
हूं हूं हूङ्कार-रूपायै, 
जां जीं जूं भाल-नादिनीं। 
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे ! 
भवान्यै ते नमो नमः॥ 7 

ॐ अं कं चं टं तं पं सां विदुरां विदुरां, विमर्दय विमर्दय ह्रीं क्षां क्षीं क्षीं जीवय जीवय, त्रोटय त्रोटय, जम्भय जम्भय, दीपय दीपय, मोचय मोचय, हूं फट्, जां वौषट्, ऐं ह्रीं क्लीं रञ्जय रञ्जय, सञ्जय सञ्जय, गुञ्जय गुञ्जय, बन्धय बन्धय। 
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे ! संकुच संकुच, सञ्चल सञ्चल, त्रोटय त्रोटय, म्लीं स्वाहा॥ पां पीं पूं पार्वती पूर्णा, खां खीं खूं खेचरी तथा॥8

म्लां म्लीं म्लूं मूल-वीस्तीर्णा-कुञ्जिकायै नमो नमः॥ सां सीं सप्तशती देव्या मन्त्र-सिद्धिं कुरूश्व मे॥9 ॥

फल श्रुति॥ 
इदं तु कुंजिका स्तोत्रं मन्त्र-जागर्ति हेतवे। अभक्ते नैव दातव्यं, गोपितं रक्ष पार्वति॥ विहीना कुञ्जिका-देव्या,यस्तु सप्तशतीं पठेत्। न तस्य जायते सिद्धिः ह्यरण्ये रुदतिं यथा॥ ॥इति श्रीरुद्रयामले, गौरीतन्त्रे, काली तन्त्रे शिव-पार्वती संवादे कुञ्जिका-स्तोत्रं॥


विशेषः- 
कोई भी दीक्षा-प्राप्त व्यक्ति इसका पाठ कर सकता है। निरन्तर सप्तशती का पाठ करनेवाला माँ जगज्जननी का भक्त सप्तशती के आरम्भ तथा अन्त में इसका पाठ अवश्य करे। “कुल्लुका महा-मन्त्र” के सम्बन्ध में संकेत मात्र है की- “क्रीम हूं स्त्रीं ह्रीं फट्” – इन ५ बीजों से जप के पूर्व कर-न्यास व हृदय-न्यास करने चाहिए।

नवग्रह शाबर मन्त्र

 नवग्रह शाबर मन्त्र


दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      

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JYOTISH TANTRA MANTRA YANTRA TOTKA VASTU GHOST BHUT PRET JINNAT BAD DREAMS BURE GANDE SAPNE COURT CASE LOVE AFFAIRS, LOVE MARRIAGE, DIVORCEE PROBLEM, VASHIKARAN, PITR DOSH, MANGLIK DOSH, KAL SARP DOSH, CHANDAL DOSH, GRIH KALESH, BUSINESS, VIDESH YATRA, JNMPATRI, KUNDLI, PALMISTRY, HAST REKHA, SOLUTIONS

रविदेव हवन –
हवन सामग्रीः- गौघृत तथा अर्क की लकड़ी ।
दिशाः- पूर्व, मुद्रा-हंसी, संख्याः- ९ बार या १०८ बार ।

मन्त्रः- “सत नमो आदेश । गुरुजी को आदेश । ॐ गुरुजी । सुन बा योग मूल कहे बारी बार । सतगुरु का सहज विचार ।। ॐ आदित्य खोजो आवागमन घट में राखो दृढ़ करो मन ।। पवन जो खोजो दसवें द्वार । तब गुरु पावे आदित्य देवा ।। आदित्य ग्रह जाति का क्षत्रिय । रक्त रंजित कश्यप पंथ ।। कलिंग देश स्थापना थाप लो । लो पूजा करो सूर्य नारायण की ।
सत फुरै सत वाचा फुरै श्रीनाथजी के सिंहासन ऊपर पान फूल की पूजा चढ़ै । हमारे आसन पर ऋद्धि-सिद्धि धरै, भण्डार भरे । ७ वार, २७ नक्षत्र, ९ ग्रह, १२ राशि, १५ तिथि । सोम-मंगल शुक्र शनि । बुध-गुरु-राहु-केतु सुख करै, दुःख हरै । खाली वाचा कभी ना पड़ै ।। ॐ सूर्य मन्त्र गायत्री जाप । रक्षा करे श्री शम्भुजती गुरु गोरखनाथ । नमो नमः स्वाहा ।”

सोमदेव हवन –
हवन सामग्रीः- गौघृत तथा पलाश की लकड़ी ।
दिशाः- पूर्व, मुद्रा-हंसी, संख्याः- ९ बार या १०८ बार ।

मन्त्रः- “ॐ गुरुजी, सोमदेव मन धरी बा शून्य । निर्मल काया पाप न पुण्य ।। शशी-हर बरसे अम्बर झरे । सोमदेव गुण येता करें । सोमदेव जाति का माली । शुक्ल वर्णी गोत्र अत्री ।। ॐ जमुना तीर स्थापना थाप लो । कन्हरे पुष्प शिव शंकर की पूजा करो ।।
सत फुरै सत वाचा फुरै श्रीनाथजी के सिंहासन ऊपर पान फूल की पूजा चढ़ै । हमारे आसन पर ऋद्धि-सिद्धि धरै, भण्डार भरे । ७ वार, २७ नक्षत्र, ९ ग्रह, १२ राशि, १५ तिथि । मंगल रवि शुक्र शनि । बुध-गुरु-राहु-केतु सुख करै, दुःख हरै । खाली वाचा कभी ना पड़ै ।। ॐ सोम मन्त्र गायत्री जाप । रक्षा करे श्री शम्भुजती गुरु गोरखनाथ । नमो नमः स्वाहा ।”

मंगलदेव हवन –
हवन सामग्रीः- गौघृत तथा खैर की लकड़ी ।
दिशाः- पूर्व, मुद्रा-हंसी, संख्याः- ९ बार या १०८ बार ।

मन्त्रः- “ॐ गुरुजी, मंगल विषय माया छोड़े । जन्म-मरण संशय हरै । चन्द्र-सूर्य दो सम करै । जन्म-मरण का काल । एता गुण पावो मंगल ग्रह ।। मंगल ग्रह जाति का सोनी । रक्त-रंजित गोत्र भारद्वाजी ।। अवन्तिका क्षेत्र स्थापना थापलो । ले पूजा करो नवदुर्गा भवानी की ।।
सत फुरै सत वाचा फुरै श्रीनाथजी के सिंहासन ऊपर पान फूल की पूजा चढ़ै । हमारे आसन पर ऋद्धि-सिद्धि धरै, भण्डार भरे । ७ वार, २७ नक्षत्र, ९ ग्रह, १२ राशि, १५ तिथि । सोम-रवि शुक्र शनि । बुध-गुरु-राहु-केतु सुख करै, दुःख हरै । खाली वाचा कभी ना पड़ै ।। ॐ भोम मन्त्र गायत्री जाप । रक्षा करे श्री शम्भुजती गुरु गोरखनाथ । नमो नमः स्वाहा ।”

बुधग्रह हवन –
हवन सामग्रीः-
गौघृत तथा अपामार्ग की लकड़ी ।
दिशाः- पूर्व, मुद्रा-हंसी, संख्याः- ९ बार या १०८ बार ।

मन्त्रः- “ॐ गुरुजी, बुध ग्रह सत् गुरुजी दिनी बुद्धि । विवरो काया पावो सिद्धि ।। शिव धीरज धरे । शक्ति उन्मनी नीर चढ़े ।। एता गुण बुध ग्रह करै । बुध ग्रह जाति का बनिया ।। हरित हर गोत्र अत्रेय । मगध देश स्थापना थापलो । ले पूजा गणेशजी की करै ।
सत फुरै सत वाचा फुरै श्रीनाथजी के सिंहासन ऊपर पान फूल की पूजा चढ़ै । हमारे आसन पर ऋद्धि-सिद्धि धरै, भण्डार भरे । ७ वार, २७ नक्षत्र, ९ ग्रह, १२ राशि, १५ तिथि । सोम-रवि शुक्र शनि । मंगल-गुरु-राहु-केतु सुख करै, दुःख हरै । खाली वाचा कभी ना पड़ै ।। ॐ बुध मन्त्र गायत्री जाप । रक्षा करे श्री शम्भुजती गुरु गोरखनाथ । नमो नमः स्वाहा ।”

गुरु (बृहस्पति) हवन –
हवन सामग्रीः-
गौघृत तथा पीपल की लकड़ी ।
दिशाः- पूर्व, मुद्रा-हंसी, संख्याः- ९ बार या १०८ बार ।

मन्त्रः- “ॐ गुरुजी, बृहस्पति विषयी मन जो धरो । पाँचों इन्द्रिय निग्रह करो । त्रिकुटी भई पवना द्वार । एता गुण बृहस्पति देव ।। बृहस्पति जाति का ब्राह्मण । पित पीला अंगिरस गोत्र ।। सिन्धु देश स्थापना थापलो । लो पूजा श्रीलक्ष्मीनारायण की करो ।।
सत फुरै सत वाचा फुरै श्रीनाथजी के सिंहासन ऊपर पान फूल की पूजा चढ़ै । हमारे आसन पर ऋद्धि-सिद्धि धरै, भण्डार भरे । ७ वार, २७ नक्षत्र, ९ ग्रह, १२ राशि, १५ तिथि । सोम-रवि शुक्र शनि । मंगल-बुध-राहु-केतु सुख करै, दुःख हरै । खाली वाचा कभी ना पड़ै ।। ॐ गुरु मन्त्र गायत्री जाप । रक्षा करे श्री शम्भुजती गुरु गोरखनाथ । नमो नमः स्वाहा ।”

शुक्रदेव हवन
हवन सामग्रीः-
गौघृत तथा गूलर की लकड़ी ।
दिशाः- पूर्व, मुद्रा-हंसी, संख्याः- ९ बार या १०८ बार ।

मन्त्रः- “ॐ गुरुजी, शुक्रदेव सोधे सकल शरीर । कहा बरसे अमृत कहा बरसे नीर ।। नवनाड़ी बहात्तर कोटा पचन चढ़ै । एता गुण शुक्रदेव करै । शुक्र जाति का सय्यद । शुक्ल वर्ण गोत्र भार्गव ।। भोजकर देश स्थापना थाप लो । पूजो हजरत पीर मुहम्मद ।।
सत फुरै सत वाचा फुरै श्रीनाथजी के सिंहासन ऊपर पान फूल की पूजा चढ़ै । हमारे आसन पर ऋद्धि-सिद्धि धरै, भण्डार भरे । ७ वार, २७ नक्षत्र, ९ ग्रह, १२ राशि, १५ तिथि । सोम-रवि मंगल शनि । बुध-गुरु-राहु-केतु सुख करै, दुःख हरै । खाली वाचा कभी ना पड़ै ।। ॐ शुक्र मन्त्र गायत्री जाप । रक्षा करे श्री शम्भुजती गुरु गोरखनाथ । नमो नमः स्वाहा ।”

शनिदेव हवन
हवन सामग्रीः-
गौघृत तथा शमी की लकड़ी ।
दिशाः- पूर्व, मुद्रा-हंसी, संख्याः- ९ बार या १०८ बार ।

मन्त्रः- “ॐ गुरुजी, शनिदेव पाँच तत देह का आसन स्थिर । साढ़े सात, बारा सोलह गिन गिन धरे धीर । शशि हर के घर आवे भान । तौ दिन दिन शनिदेव स्नान । शनिदेव जाति का तेली । कृष्ण कालीक कश्यप गोत्री ।। सौराष्ट्र क्षेत्र स्थापना थाप लो । लो पूजा हनुमान वीर की करो ।।
सत फुरै सत वाचा फुरै श्रीनाथजी के सिंहासन ऊपर पान फूल की पूजा चढ़ै । हमारे आसन पर ऋद्धि-सिद्धि धरै, भण्डार भरे । ७ वार, २७ नक्षत्र, ९ ग्रह, १२ राशि, १५ तिथि । सोम-मंगल शुक्र रवि । बुध-गुरु-राहु-केतु सुख करै, दुःख हरै । खाली वाचा कभी ना पड़ै ।। ॐ शनि मन्त्र गायत्री जाप । रक्षा करे श्री शम्भुजती गुरु गोरखनाथ । नमो नमः स्वाहा ।”

राहु ग्रह हवन –
हवन सामग्रीः-
गौघृत तथा दूर्वा की लकड़ी ।
दिशाः- पूर्व, मुद्रा-हंसी, संख्याः- ९ बार या १०८ बार ।

मन्त्रः- “ॐ गुरुजी, राहु साधे अरध शरीर । वीर्य का बल बनाये वीर ।। धुंये की काया निर्मल नीर । येता गुण का राहु वीर । राहु जाति का शूद्र । कृष्ण काला पैठीनस गोत्र ।। राठीनापुर क्षेत्र स्थापना थाप लो । लो पूजा करो काल भैरो ।।
सत फुरै सत वाचा फुरै श्रीनाथजी के सिंहासन ऊपर पान फूल की पूजा चढ़ै । हमारे आसन पर ऋद्धि-सिद्धि धरै, भण्डार भरे । ७ वार, २७ नक्षत्र, ९ ग्रह, १२ राशि, १५ तिथि । सोम-रवि शुक्र शनि । मंगल केतु बुध-गुरु सुख करै, दुःख हरै । खाली वाचा कभी ना पड़ै ।। ॐ राहु मन्त्र गायत्री जाप । रक्षा करे श्री शम्भुजती गुरु गोरखनाथ । नमो नमः स्वाहा ।”


केतु ग्रह हवन
हवन सामग्रीः- गौघृत तथा कुशा की लकड़ी ।
दिशाः- पूर्व, मुद्रा-हंसी, संख्याः- ९ बार या १०८ बार ।

मन्त्रः- “ॐ गुरुजी, केतु ग्रह कृष्ण काया । खोजो मन विषय माया । रवि चन्द्रा संग साधे । काल केतु याते पावे । केतु जाति का असरु जेमिनी गोत्र काला नुर ।। अन्तरवेद क्षेत्र स्थापना थाप लो । लो पूजा करो रौद्र घोर ।।
सत फुरै सत वाचा फुरै श्रीनाथजी के सिंहासन ऊपर पान फूल की पूजा चढ़ै । हमारे आसन पर ऋद्धि-सिद्धि धरै, भण्डार भरे । ७ वार, २७ नक्षत्र, ९ ग्रह, १२ राशि, १५ तिथि । सोम-रवि शुक्र शनि । मंगल बुध-राहु-गुरु सुख करै, दुःख हरै । खाली वाचा कभी ना पड़ै ।। ॐ केतु मन्त्र गायत्री जाप । रक्षा करे श्री शम्भुजती गुरु गोरखनाथ । नमो नमः स्वाहा ।”

सूर्य साधना SUN SURYA SADHNA आदित्य हृदय स्तोत्र संपूर्ण पाठ ADITY HRIDAY STOTRAM SAMPURN PATH

सूर्य साधना SUN SURYA SADHNA

दक्षिणा 1100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      

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सूर्य द्वादशनाम स्तोत्र

आदित्यं प्रथमं नाम द्वितीयं तु दिवाकर:।
तृतीयं भास्कर: प्रोक्तं चतुर्थं तु प्रभाकर:।।1।।
पंचमं तु सहस्त्रांशु षष्ठं त्रैलोक्यलोचन:।
सप्तमं हरिदश्वश्य अष्टमं च विभावसु:।।2।।
नवमं दिनकर: प्रोक्तों दशमं द्वादशात्मक:।
एकादशं त्रयोमूर्ति द्वादशं सूर्य एव च।।3।।

यदि किसी जातक(Native) की जन्म कुण्डली में सूर्य की महादशा चली हुई है अथवा सूर्य की अन्तर्दशा चली हुई है तब उसे “सूर्य द्वादश नाम स्तोत्र” का प्रतिदिन जाप करना चाहिए और स्तोत्र के जाप के बाद प्रतिदिन सूर्य भगवान की पूजा भी करनी चाहिए. ऎसा करने पर सूर्य की महादशा/अन्तर्दशा में हर प्रकार की समस्या का निवारण हो जाएगा.



सूर्य अष्टकं सूर्य अष्टक स्तोत्र सूर्याष्टक स्तोत्र
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर | 
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तुते ||

सप्ताश्वरथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम् | 
श्वेतपद्मधरं देवं तँ सूर्यं प्रणमाम्यहं || 

लोहितं रथमारूढं सर्वलोकपितामहम् | 
महापापहरं देवं तँ सूर्यं प्रणमाम्यहं || 

त्रैगुण्यं च महाशूरं ब्रह्मविष्णुमहेश्वरं | 
महापापहरं देवं तँ सूर्यं प्रणमाम्यहं || 

बृंहितं तेजःपुंजं च वायुमाकाशमेव च | 
प्रभुं च सर्वलोकानां तँ सूर्यं प्रणमाम्यहं || 

बन्धूकपुष्पसंकाशं हारकुण्डलभूषितम् |
एकचक्रधरं देवं तँ सूर्यं प्रणमाम्यहं ||

तँ सूर्य जगत्कर्तारं महातेजःप्रदीपनम् |
महापापहरं देवं तँ सूर्यं प्रणमाम्यहं || 

तँ सूर्यं जगतां नाथं ज्ञानविज्ञानमोक्षदम् |
महापापहरं देवं तँ सूर्यं प्रणमाम्यहं || 

|| श्रीशिवप्रोक्तं सूर्याष्टकं सम्पूर्णं || 


सूर्य साधना SUN SURYA SADHNA


||  मन्त्र  || 

सत नमो आदेश ! 
गुरूजी को आदेश !
ॐ गुरूजी ! ओमकार निरंजन निराकार सूर्य मन्त्र  तत सार !
गगन मंडल का कौन राजा कौन धर्म कौन जाति ! 

ॐ गुरूजी गगन मंडल का सूरज राजा , 
सात अश्व रथ सवार सत धर्म जाति का क्षत्रिय , 
ब्रहम आत्मा रूद्र का अवतार तीन काल का काल निर्माण ,
प्रथमे मित्र नाम द्वितीय विष्णु , तृतीय वरुण नाम , 
चतुर्थे सूर्य नाम , पंचमे भानु नाम , षष्ठमें तपन नाम ,
सप्तमे इन्द्र नाम , अष्टमे खगे नाम , नवमे गभस्ति नाम ,
दशमे यमाय नाम, एकादश हरिन्यरेता नाम , द्वादशे दिवाकर नाम , 
एता द्वादश नाम नमो नमः ! 

ॐ गुरूजी गगन मंडल में जय जय ओमकार  , 
कोटि देवता अपने ग्रह सवार सात वार सताईस नक्षत्र नौ ग्रह बारह राशि पंद्रह तिथि ! 
आओ सिद्धो राखो मन खोजो  पवन खोजो सुर आवागमन ! 
त्रिकुटी भई कोटि प्रकाश ! 
निर्मल ज्योत दशवे द्वार सिद्ध साधक भरलो साखी श्री शम्भु यति गुरु गोरक्षनाथ जी ने भाखी ! 

ॐ भास्कराय विद्महे दिवाकराय धीमही तन्नो सूर्य प्रचोदयात मन्त्र पढ़ अग्नि को जलाये सो नर सूर्य लोक में जाये 
बिना मन्त्र अग्नि को जलाये सो नर नरक में जाये ! 
इतना सूर्य मन्त्र  गायत्री सम्पूर्ण भया ! 
श्री नाथजी गुरूजी को आदेश ! 
अनन्त कोट सिद्धो में , त्र्यम्बक  क्षेत्र  अनुपान शिला पर बैठ श्री शंभु यति गुरु गोरक्षनाथ जी ने पढ़ कथ कर सुनाया !
श्री नाथजी गुरूजी को आदेश आदेश ! 

||  विशेष विधि  ||

यदि सूर्य देव पर त्राटक करते हुए दोपहर में रोज इस मन्त्र का जाप किया जाये तो भगवान् सूर्य साक्षात दर्शन देते है ! पहले एक मिनट त्राटक करे फिर धीरे धीरे यह अभ्यास एक घंटे तक ले जाये ! ऐसी साधना सूर्य पुत्र कर्ण ने की थी , पर इस साधना को सिद्ध गुरु की देख रेख में ही करे और जब भी सूर्य त्राटक करे तो साथ में साबर सोम गायत्री का जाप रात्रि में करते हुए चन्द्र पर त्राटक जरूर करे जितने दिन चन्द्र दर्शन न हो उतने दिन केवल सोम गायत्री मन्त्र  का जप करे ! सोम गायत्री अपने गुरुदेव से प्राप्त करे !


भगवान् सूर्य आप सबका कल्याण करे और गलत प्रचार करने वाले विद्वानों को भी सद्बुद्धि दे !

भगवान सूर्य की उपासना कौन नहीं करना चाहेगा ? भगवान् सूर्य सबका मंगल करने वाले है , वह ग्रहों के राजा माने जाते है ! सूर्य देवता को साक्षात देव माना जाता है जो प्रतिदिन सारी सृष्टि को दर्शन देते है ! शास्त्रों के अनुसार सूर्य उदय के समय ब्रह्मा रुपी गायत्री का ध्यान कर गायत्री मन्त्र का जप करे , जब सूर्य सिर के ऊपर आ जाये तो विष्णु रुपी गायत्री का ध्यान कर गायत्री मन्त्र का जप करे और शाम के समय शिव रुपी गायत्री का ध्यान कर गायत्री मन्त्र का जप करे ! सूर्य उदय के समय कुमारी का ध्यान करे और मध्यान्ह में नवयुवती का ध्यान करे और शाम के समय वृद्ध रुपी गायत्री का ध्यान करे ! सूर्यास्त के बाद गायत्री जप निषेध माना जाता है !

ज्योतिष  के अनुसार सूर्य के अस्त हो जाने के बाद जन्म कुंडली पर विचार नहीं करना चाहिए क्योंकि जब ग्रहों के राजा सूर्य अस्त हो जाये तो वेद का तीसरा नेत्र कहे जाने वाले ज्योतिष को भी विश्राम देना चाहिए ! भगवान् सूर्य के बारह नाम है , वह प्रत्येक राशि में अपना अलग प्रभाव और अलग रूप दिखाते है ! प्रातःकाल भगवान् सूर्य को उनके बारह नामो से जल देने का पुण्य एक हज़ार गौ दान के बराबर है !

ज्योतिष ने सूर्य को सरकार का कारक माना है यदि राजा का 'कर' मतलब सरकार का टैक्स चोरी किया जाये तो सूर्य बुरा फल देते है इसलिए हमें हमारा टैक्स जरूर भरना चाहिए ! भगवान् सूर्य की कृपा से तेज़ , बल और बुद्धि की वृद्धि होती है और चर्म रोग आदि अनेक व्याधिया शांत होती है !

सूर्य पूजन केवल सूर्य के रहते ही किया जाता है सूर्यास्त के बाद सूर्य पूजन करने से शनि का कोप सहना पड़ता है क्योंकि सूर्यास्त के बाद सूर्य के शत्रु शनि का समय शुरू हो जाता है और शनि इस काल में बलवान हो जाते है क्योंकि उन्हें काल का बल मिल जाता है ! वैदिक ज्योतिष में भी सूर्यास्त के बाद सूर्य पूजन की मनाही है यदि सूर्य सप्तम भाव में हो और व्यक्ति सूर्यास्त के बाद दान करे तो उस व्यक्ति को अपने जीवन में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है , पर कुछ विद्वानों का मत है कि सूर्य का पूजन सूर्यास्त के बाद करना चाहिए और ऐसे विद्वानों का यह भी कहना है कि सूर्य को जल देने के लिए जल में चीनी मिलानी चाहिए !

यदि डूबे हुए सूर्य को प्रणाम किया जाये और पूजन किया जाये तो सूर्य का विपरीत फल मिलता है और व्यक्ति भी डूबे हुए सूर्य की तरह ही डूब जाता है ! यहाँ ध्यान देने योग्य यह बात है कि सूर्य पूजन में सदैव जल में गुड़ मिलाया जाता है क्योंकि सूर्य एक गर्म ग्रह है और गुड़ को भी गर्म माना जाता है पर पता नहीं किस आधार पर यह विद्वान सूर्य पूजन में चीनी इस्तेमाल करने की राय देते है !  ऐसे विद्वानों को यदि महामूर्ख की उपाधि दी जाये तो महामूर्ख शब्द का अपमान होगा ! केवल प्रसिद्धि के लिए यह विद्वान् लोगो को गलत राह दिखा रहे है ! सूर्य पूजन में लाल वस्तुओं का इस्तेमाल किया जाता है !

आदित्य हृदय स्तोत्र संपूर्ण पाठ ADITY HRIDAY STOTRAM SAMPURN PATH



आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ नियमित करने सेअप्रत्याशित लाभ मिलता है। आदित्य हृदय स्तोत्र के पाठ से नौकरी में पदोन्नति, धन प्राप्ति, प्रसन्नता, आत्मविश्वास के साथ-साथ समस्त कार्यों में सफलता मिलती है। हर मनोकामना सिद्ध होती है। सरल शब्दों में कहें तो आदित्य ह्रदय स्तोत्र हर क्षेत्र में चमत्कारी सफलता देता है। 


संकल्प


ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद् भगवतोमहापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्त्तमानस्य अद्य ब्रह्मणोन्हि द्वितिय परार्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशति तमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे आर्यावर्तैकदेशे विक्रमनाम संवतरे अत्राद्य महामंगल्य फलप्रद मासोत्तमे मासे पुण्यपवित्र ( PLS .CHANGE IT श्रावणमासे शुभे कृष्ण पक्षे अमावस्या तिथौ सौम्यावासरे अद्य श्री सूर्यग्रहण पुण्यकाले अस्माकं सदगुरुदेवं पादानां परम पूज्य ) परिवार सहितानां च आयुआरोग्य ऐश्वर्य यशः कीर्ति पुष्टि वृद्धिअर्थे तथा समस्त जगति राजहारे सर्वत्र सुखशांति यशोविजय लाभादि प्राप्तयर्थे, सर्वोपद्रव शमनार्थे,  स्तोत्र पाठ अहं करिष्ये।



'आदित्यहृदय स्तोत्र'


विनियोग

ॐ अस्य आदित्य हृदयस्तोत्रस्यागस्त्यऋषिरनुष्टुपछन्दः, आदित्येहृदयभूतो
भगवान ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्मविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः।

ऋष्यादिन्यास

ॐ अगस्त्यऋषये नमः, शिरसि। 
अनुष्टुपछन्दसे नमः, मुखे। 
आदित्यहृदयभूतब्रह्मदेवतायै नमः हृदि।
ॐ बीजाय नमः, गुह्यो। 
रश्मिमते शक्तये नमः, पादयो। 
ॐ तत्सवितुरित्यादिगायत्रीकीलकाय नमः नाभौ।

करन्यास

ॐ रश्मिमते अंगुष्ठाभ्यां नमः। 
ॐ समुद्यते तर्जनीभ्यां नमः।
ॐ देवासुरनमस्कृताय मध्यमाभ्यां नमः। 
ॐ विवरवते अनामिकाभ्यां नमः।
ॐ भास्कराय कनिष्ठिकाभ्यां नमः। 
ॐ भुवनेश्वराय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।

हृदयादि अंगन्यास

ॐ रश्मिमते हृदयाय नमः। 
ॐ समुद्यते शिरसे स्वाहा। 
ॐ देवासुरनमस्कृताय शिखायै वषट्।
ॐ विवस्वते कवचाय हुम्। 
ॐ भास्कराय नेत्रत्रयाय वौषट्। 
ॐ भुवनेश्वराय अस्त्राय फट्।


इस प्रकार न्यास करके निम्नांकित मंत्र से भगवान सूर्य का ध्यान एवं नमस्कार करना चाहिए-

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।


ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्‌ । रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्‌ ॥1॥
दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्‌ । उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा ॥2॥
राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्मं सनातनम्‌ । येन सर्वानरीन्‌ वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3॥
आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्‌ । जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम्‌ ॥4॥
सर्वमंगलमागल्यं सर्वपापप्रणाशनम्‌ । चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम्‌ ॥5॥

रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्‌ । पुजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्‌ ॥6॥
सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावन: । एष देवासुरगणांल्लोकान्‌ पाति गभस्तिभि: ॥7॥
एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिव: स्कन्द: प्रजापति: । महेन्द्रो धनद: कालो यम: सोमो ह्यापां पतिः ॥8॥
पितरो वसव: साध्या अश्विनौ मरुतो मनु: । वायुर्वहिन: प्रजा प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकर: ॥9॥
आदित्य: सविता सूर्य: खग: पूषा गभस्तिमान्‌ । सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकर: ॥10॥

हरिदश्व: सहस्त्रार्चि: सप्तसप्तिर्मरीचिमान्‌ । तिमिरोन्मथन: शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान्‌ ॥11॥
हिरण्यगर्भ: शिशिरस्तपनोऽहस्करो रवि: । अग्निगर्भोऽदिते: पुत्रः शंखः शिशिरनाशन: ॥12॥
व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजु:सामपारग: । घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥13॥
आतपी मण्डली मृत्यु: पिगंल: सर्वतापन:। कविर्विश्वो महातेजा: रक्त:सर्वभवोद् भव: ॥14॥
नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावन: । तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन्‌ नमोऽस्तु ते ॥15॥

नम: पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नम: । ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नम: ॥16॥
जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नम: । नमो नम: सहस्त्रांशो आदित्याय नमो नम: ॥17॥
नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नम: । नम: पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥18॥
ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सुरायादित्यवर्चसे । भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नम: ॥19॥
तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने । कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नम: ॥20॥

तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे । नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥21॥
नाशयत्येष वै भूतं तमेष सृजति प्रभु: । पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभि: ॥22॥
एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठित: । एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम्‌ ॥23॥
देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतुनां फलमेव च । यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमं प्रभु: ॥24॥
एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च । कीर्तयन्‌ पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव ॥25॥

पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगप्ततिम्‌ । एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ॥26॥
अस्मिन्‌ क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि । एवमुक्ता ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम्‌ ॥27॥
एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत्‌ तदा ॥ धारयामास सुप्रीतो राघव प्रयतात्मवान्‌ ॥28॥
आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान्‌ । त्रिराचम्य शूचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान्‌ ॥29॥
रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थं समुपागतम्‌ । सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत्‌ ॥30॥

अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमना: परमं प्रहृष्यमाण: । निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥31॥

इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये युद्धकाण्डे पंचाधिकशततमः सर्गः।

।।सम्पूर्ण ।।

Tuesday, March 24, 2020

सूर्याष्टकं SURYA ASHTKAM

सूर्याष्टकं SURYA ASHTKAM

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सूर्य अष्टकं सूर्य अष्टक स्तोत्र सूर्याष्टक स्तोत्र 

आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर | 
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तुते ||

सप्ताश्वरथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम् | 
श्वेतपद्मधरं देवं तँ सूर्यं प्रणमाम्यहं || 

लोहितं रथमारूढं सर्वलोकपितामहम् | 
महापापहरं देवं तँ सूर्यं प्रणमाम्यहं || 

त्रैगुण्यं च महाशूरं ब्रह्मविष्णुमहेश्वरं | 
महापापहरं देवं तँ सूर्यं प्रणमाम्यहं || 

बृंहितं तेजःपुंजं च वायुमाकाशमेव च | 
प्रभुं च सर्वलोकानां तँ सूर्यं प्रणमाम्यहं || 

बन्धूकपुष्पसंकाशं हारकुण्डलभूषितम् |
एकचक्रधरं देवं तँ सूर्यं प्रणमाम्यहं ||

तँ सूर्य जगत्कर्तारं महातेजःप्रदीपनम् |
महापापहरं देवं तँ सूर्यं प्रणमाम्यहं || 

तँ सूर्यं जगतां नाथं ज्ञानविज्ञानमोक्षदम् |
महापापहरं देवं तँ सूर्यं प्रणमाम्यहं || 

|| श्रीशिवप्रोक्तं सूर्याष्टकं सम्पूर्णं || 

शांति पाठ स्तोत्र SHANTIPATH STOTR

शांति पाठ स्तोत्र SHANTIPATH STOTR

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शांति पाठ स्तोत्र


क्या पूजा में कोई विघ्न आते है ?
 
पूजा में मन नहीं लगता ?
कई बार ऐसा होता है कि अनुष्ठान या मंत्र तंत्र साधना या
नित्य पूजा में भिन्न भिन्न प्रकार की बाधाये आती है 
जिसका हमे कई बार कोई निराकरण नहीं मिलता और हम हताश हो जाते है | 
इसकी वजह से कई लोग साधना या नित्य पूजा करना ही छोड़ देते है | 
ऐसी स्थिति में नित्य यह शांति पाठ पढ़ना चाहिए | 
प्रतिदिन अवश्य इस शान्तिपाठ का पूजा या साधना से पहले एक पाठ करना चाहिए | 
इससे अवश्य ऐसे अदृश्य विघ्न शांत होते है | 
इसके पाठ से घर में भी और जीवन में भी शान्ति प्राप्त होती है | 


 
|| शान्तिपाठ || 
 
ॐ नश्यन्तु प्रेत कूष्माण्डा नश्यन्तु दूषका नराः | 
साधकानां शिवाः सन्तु आम्नाय परिपालिनाम् || 
 
जयन्ति मातरः सर्वा जयन्ति योगिनी गणाः | 
जयन्ति सिद्ध डाकिन्यो जयन्ति गुरु पन्क्तयः || 
 
जयन्ति साधकाः सर्वे विशुद्धाः साधकाश्च ये | 
समयाचार सम्पन्ना जयन्ति पूजका नराः || 
 
नन्दन्तु चाणिमासिद्धा नन्दन्तु कुलपालकाः | 
इन्द्राद्या देवता सर्वे तृप्यन्तु वास्तु देवताः || 
 
चन्द्रसूर्यादयो देवास्तृप्यन्तु मम भक्तितः | 
नक्षत्राणि ग्रहाः योगाः करणा राशयश्च ये || 
 
सर्वे ते सुखिनो यान्तु सर्पा नश्यन्तु पक्षिणः | 
पशवस्तुरगाश्चैव पर्वताः कन्दरा गुहाः || 
 
ऋषयो ब्राह्मणाः सर्वे शान्ति कुर्वन्तु सर्वदा | 
स्तुता में विदिताः सन्तु सिद्धास्तिष्ठन्तु पूजकाः || 

ये ये पापघ्रियस्सुदूषणरतामन्निन्दकाः पूजने 
वेदाचार विमर्दे नेष्ट हृदया भ्रष्टाश्च ये साधकाः | 
दृष्ट्वा चक्रमपूर्वमन्दहृदया ये कौलिका दूषका 
स्ते ते यान्तु विनाशमत्र समये श्री भैरवस्याज्ञया || 
 
द्वेष्टारः साधकानां च सदैवाम्नाय दूषकाः | 
डाकिनीनां मुखे यान्तु तृप्तास्तत्पिशितै स्तुताः || 
 
ये वा शक्तिपरायणाः शिवपरा ये वैष्णवाः साधवः 
सर्वस्मादखिले सुराधिमपजं सेव्यं सुरै सन्ततं | 
शक्तिं विष्णुधिया शिवं च सुधियाश्रीकृष्ण बुद्ध्या च ये 
सेवन्ते त्रिपुरं त्वभेदमतयो गच्छन्तु मोक्षन्तु ते || 
 
शत्रवो नाशमायान्तु मम निन्दाकराश्च ये 
द्वेष्टारः साधकानां च ते नश्यन्तु शिवाज्ञया || 
तत्परं पठेत स्तोत्र मानन्दस्तोत्रमुत्तमं |
सर्वसिद्धि भवेत्तस्य सर्वलाभो प्रणाश्यति || 
 

|| शांतिपाठ स्तोत्र सम्पूर्ण ||

चतुःश्लोकी भगवत CHATUSHALOKI BHAGWAT

चतुःश्लोकी भगवत CHATUSHALOKI BHAGWAT

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|| श्रीभगवानुवाच || 

ज्ञानं परमगुह्यं में यद्विज्ञानसमन्वितम् | 
सरहस्यं तदङ्गं च गृहाण गदितं मया || 

यावानहं यथाभावो यद्रूपगुणकर्मकः | 
तथैव तत्त्वविज्ञानमस्तु ते मदनुग्रहात् || 

अहमेवासमेवाग्रे नान्यद्यन्नदसत्परम् | 
पश्चादहं यदेतच्च योऽवशिष्येन सोऽस्म्यहम् || 

ऋतेऽर्थं यत्प्रतीयेन न प्रतीयेन चात्मनि | 
तद्विद्यादान्मनो मायां यथाऽऽभासो यथा तमः || 

यथा महान्ति भूतानि भूतेषुच्चावचेष्वनु | 
प्रविष्टान्यप्रविष्टानि तथा तेषु न तेष्वहम् || 

एतावदेव जिज्ञास्यं तत्वजिज्ञासुनाऽऽत्मनः | 
अन्वयव्यतिरेकाभ्यां यत्स्यात्सर्वत्र  सर्वदा || 

एतन्मतं समातिष्ठ परमेण समाधिना | 
भवान कल्पविकल्पेषु न विमुह्यति कर्हिचित् ||

|| इति श्रीमद्भागवते महापुराणे अष्टादशसाहस्र्यां संहितायां वैयासिक्या दितीयस्कन्धे नवमे अध्याये भग्वद्ब्रह्म सम्वादे चतुःश्लोकी भागवतं सम्पूर्णं ||

नवग्रह स्तोत्र NAVGRAH STOTR

नवग्रह स्तोत्र NAVGRAH STOTR

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नवग्रह स्तोत्र  

हिंदी अनुवाद सहित नवग्रह पुराणोक्त श्लोक सभी ग्रहो को शांत करता है यह स्तोत्र
 
सूर्य ग्रह पुराणोक्त श्लोक 

ॐ जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम् | 
तमोऽरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ||

जपा ( जिसे अढ़ौल का फूल भी कहा जाता है ) के फूल की तरह जिसकी कान्ति है कश्यप से जो उत्पन्न हुए हैं, अन्धकार जिनका शत्रु है, जो सभी पापों को नष्ट कर देते हैं, उन सूर्य भगवान को मैं प्रणाम करता हूँ | 
 
 चन्द्र ग्रह पुराणोक्त श्लोक 

ॐ दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णवसम्भवम् | 
नमामि शशिनं सोमं शम्भोर्मुकूटभूषणम् || २ || 

दही,शंख,हिम के समान जो दीप्तमान है,जो क्षीरसमुद्र से उत्पन्न हुए है,जो भगवान् शङ्कर के मुकुट के अलङ्कार बने हुए है उन चन्द्रदेव को में प्रणाम करता हु ( करती हु )
 
मङ्गल  ग्रह पुराणोक्त श्लोक 

ॐ धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम् |  
कुमारं शक्तिहस्तं तं ( च ) मङ्गलं प्रणाम्यहम् || 

पृथ्वी के गर्भ से जिनकी उत्पत्ति हुई है,विद्युत के समान जिनकी प्रभा है,जो हाथो में शक्ति धारण किये हुए है,उन मङ्गलदेव को में प्रणाम करता हु ( करती हु ) | 
 
बुध ग्रह पुराणोक्त श्लोक 

ॐ प्रियंगुकलिकाश्यामं रूपेणाप्रतिमं बुधम् |  
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं  प्रणाम्यहम् || 

प्रियंगु की काली के जैसे जिनका कृष्ण वर्ण(श्यामवर्ण) है,जिनके रूपको किसी भी तरह वर्णित नहीं किया जाता ऐसा है ( जिनकी कोई उपमा ही नहीं है ) उन सौम्य और सौम्य गुणों से युक्त बुध को में प्रणाम करता हु ( करती हु )
 
गुरु  ग्रह पुराणोक्त श्लोक 

ॐ देवानां च ऋषिणां च गुरुकाञ्चनसन्निभम् |  
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम् || 

जो स्वयं देवताओ और ऋषिओ के गुरु है,कंचन(सुवर्ण) के समान जिनकी प्रभा है,जो बुद्धिदाता है,तीनो लोको के प्रभु है,उन बृहस्पति को में प्रणाम करता हु (या करती हु)
 
शुक्र ग्रह पुराणोक्त श्लोक 

ॐ हिम(हेम)कुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम् |  
सर्वशास्त्रप्रवक्तारं भार्गवं प्रणाम्यहम् || 

तुषार(हिम् की तरह),कुन्द,मृणाल के समान जिनकी कान्ति है,जो दैत्यों के परमगुरु है,सब शास्त्रों के परमज्ञाता है,कुशल वक्ता है,उन शुक्रदेव को में प्रणाम करता हु (करती हु )
 
शनि ग्रह पुराणोक्त श्लोक 

ॐ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् |
छायामार्तण्ड सम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम् || 

नीलांजन के समान जिनकी दीप्ती है जो सूर्यनारायण के पुत्र है,
यमराज के बड़े भाई है,सूर्य की छाया से जिनकी उत्पत्ति हुई है,
उन शनैश्चर देवताको में प्रणाम करता हु (करती हु)
 
राहु ग्रह पुराणोक्त श्लोक 

ॐ अर्धकायं महावीर्यं चन्द्रादित्यविमर्दनम् |
सिंहिकागर्भसम्भूतं तं राहुं प्रणाम्यहम् || 

जिनका देह आधा है,जिनमे महान पराक्रम है,जो सूर्य चंद्र को भी परास्त कर सकते है 
जिनकी उत्पत्ति सिंहिका के गर्भ से हुई है उन राहु देवताको में प्रणाम करता हु (करती हु )
 
केतु ग्रह पुराणोक्त श्लोक 

ॐ पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रहमस्तकम् |
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तँ केतुं प्रणाम्यहम् || 

पलाश के पुष्प की तरह जिनकी देहकान्ति है,जो सभी तारकाओ में श्रेष्ठ है 
जो स्वयं रौद्र और रौद्रात्मक है,ऐसे घोर रूपधारी केतु देवता को में प्रणाम करता हु (करती हु )
 
|| फलश्रुतिः || 

इति व्यासमुखोद्गीतं यः पठेत्सुसमाहितः | 
दिवा वा यदि वा रात्रौ विघ्नशान्तिर्भविष्यति || 

भगवन व्यास के मुखसे निकले हुए इस स्तोत्र को सावधानी पूर्वक दिन या रात्रि के समय पाठ करता है उसकी सारी बाधाये शांत हो जाती है | विघ्न शान्त हो जाते है | 
 
नरनारीनृपाणां च भवेद दुःस्वप्ननाशनम् |
ऐश्वर्यमतुलं तेषामारोग्यं पुष्टिवर्धनम् || 

समग्र संसार के सभी लोग स्त्री-पुरुष और राजाओ के भी दुःस्वप्नो के दोष दूर हो जाते है 
| इसका पाठ करने से अपार ऐश्वर्य और आरोग्य प्राप्त होता है | पुष्टि  वृद्धि होती है |

RUCHI KRIT PITR STOTR रूचि कृत पितृ स्तोत्र

RUCHI KRIT PITR STOTR रूचि कृत पितृ स्तोत्र


रूचि कृत पितृ स्तोत्र

रुचिरुवाच 

अर्चितनाममूर्त्तानां पितृणां दीप्ततेजसां | 
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यतेजसां || 

इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा | 
सप्तर्षीणां तथान्येषां ताँ नमस्यामि कामदान || 

मन्वादीनां मुनीन्द्राणां सूर्याचन्द्रमसोस्तथा | 
ताँ नमस्यामहं सर्वान पितृनप्सूदधावपि || 

नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा | 
द्यावापृथिव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलिः || 

देवर्षीणां जनितॄंश्च सर्वलोकनमस्कृतान | 
अक्षय्यस्य सदा द्दातृन नमस्येहं कृताञ्जलिः || 

प्रजापतेः कश्यपाय सोमाय वरुणाय च | 
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलिः || 

नमोगणेभ्यः सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु | 
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुसे || 

सोमाधारान पितृगणान योगमूर्त्तिधरांस्तथा | 
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जागतामहम || 

अग्निरूपांस्तथैवान्यान नमस्यामि पितॄनहम | 
अग्नीषोममयं विश्वं यत एतदशेषतः || 

ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तयः | 
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरुपिणः || 

तेभ्योऽखिलेभ्यो योगिभ्यः पितृभ्यो यतमानसः | 
नमो नमो नमस्ते में प्रसीदन्तु स्वधाभुजः || 
 
रूचि की इस स्तुति करने पर पितर दशो दिशाओ में से प्रकाशित पुंज में से बाहर निकलकर प्रसन्न हुए | रूचि ने जो चन्दन-पुष्प अर्पण किये थे उसी को धारणकर पितर प्रकट हुए | तब रुचिने फिर से पितरो को दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार किया | तब उसने पितरो को कहा की ब्रह्माजी ने मुझे सृष्टि के विस्तार करने को कहा है इसलिए आप मुझे उत्तम श्रेष्ठ पत्नी प्राप्त हो ऐसा आशीर्वाद दो | जिससे दिव्यसंतान की उत्पत्ति हो सके | 
तब पितरो ने कहा यही समय तुम्हे उत्तम पत्नी की प्राप्ति होगी | उसके गर्भ से तुम्हे मनु संज्ञक उत्तम पुत्र की प्राप्ति होगी | तीन्हो लोको में वे तुम्हारे ही नाम से रौच्य नाम से प्रसिद्द होगा | 
 
पितरो ने कहा : जो मनुष्य इस स्तोत्र का पाठ करेंगे हम उसे मनोवांछित भोग और उत्तम फल प्रदान करेंगे | जो निरोगी रहना चाहता हो-धन-पुत्रको प्राप्त करना चाहता हो वो सदैव इस स्तुति से हमें प्रसन्न करे | यह स्तोत्र हमें प्रसन्न करनेवाला है | जो श्राद्ध में भोजन करनेवाले ब्राह्मण के सामने खड़ेहोकर भक्तिपूर्वक इस स्तोत्र का पाठ करेगा उसके वहा हम निश्चय ही उपस्थित हो कर हमारे लिए किये हुए श्राद्ध को हम ग्रहण करेंगे | 
जहा पर श्राद्ध में इस स्तोत्र का पाठ किया जाता है वहा हम लोगो को बारह वर्षोतक बने रहनी वाली तृप्ति करने में समर्थ होता है | 
यह स्तोत्र हेमंत ऋतु में श्राद्ध के अवसर पर सुनाने से हमें बारह वर्षोतक तृप्ति प्रदान करता है,
इसी प्रकार शिशिर ऋतु में हमें चौबीस वर्षो तक तृप्ति प्रदान करता है 
वसंत ऋतु में हमें सोलह वर्षो तक तृप्ति प्रदान करता है 
ग्रीष्मऋतु में भी सोलह वर्षो तक तृप्ति प्रदान करता है 
वर्षाऋतु में किया हुआ यह स्तोत्र का पाठ हमे अक्षय तृप्ति प्रदान करता है 
शरत्काल में किया हुआ इसका पाठ हमें पंद्रह वर्षो तक तृप्ति प्रदान करता है 
जिस घर में यह स्तोत्र लिखकर रखा जाता है वहा हम श्राद्ध के समय में उपस्थित हो जाते है 
श्राद्ध में ब्राह्मणो को भोजन करवाते समय इस स्तोत्र को अवश्य पढ़ना चाहिए यह हमें पुष्टि प्रदान करता है |  
|| अस्तु || 


सर्व यंत्र मन्त्र उत्कीलन स्तोत्र | SARV TANTRA MANTRA YANTRA UTKILAN STOTRAM

सर्व यंत्र मन्त्र उत्कीलन स्तोत्र | SARV TANTRA MANTRA YANTRA UTKILAN STOTRAM


सर्व यंत्र मन्त्र उत्कीलन स्तोत्र

माँ पार्वती ने एक समय जब शिवजी से पूछा की अगर किसी की यन्त्र या मंत्र उत्कीलित विधी पता ना हो तो क्या करे |
तब उत्तर में शिवजीने यह उत्तम स्तोत्र माँ पार्वती जी को बताया था |
इस के माहात्म्य में भगवान् ने कहा है

" यस्य स्मरण मात्रेण पाठेन जपतोऽपि वा | 
अकीला अखिला मन्त्राः सत्यं सत्यं न संशयः ||"

इस स्तोत्र के स्मरण मात्र से कीलित स्तोत्र दोषमुक्त हो जाते है |

सभी मन्त्र-यन्त्र-कवचको जागृत करने का उत्तम स्तोत्र

|| श्री पार्वती उवाच || 

देवेश परमानन्द भक्तनामभयं प्रद | 
आगमाः निगमाश्चैव वीजं वीजोदयस्तथा || 

समुदायेन वीजानां मन्त्रो मंत्रस्य संहिता | 
ऋषिच्छन्दादिकं भेदो वैदिकं यामलादिकं || 

धर्मोऽधर्मस्तथा ज्ञानं विज्ञानं च विकल्पन |
निर्विकल्प विभागेन तथा षट्कर्म सिद्धये ||  

भुक्ति मुक्ति प्रकारश्च सर्वं प्राप्तं प्रसादतः |  
कीलनं सर्वमंत्राणां शंसयद हृदये वचः ||  

इति श्रुत्वा शिवानाथः पार्वत्या वचनं शुभं | 
उवाच परया प्रीत्या मन्त्रोंत्कीलनकं शिवां ||  

|| श्री शिवउवाच || 

वरानने हि सर्वस्य व्यक्ताव्यक्तस्य वस्तुनः | 
साक्षी भूय त्वमेवासि जगतस्तु मनोस्तथा || 

त्वया पृष्टं वरारोहे तद वक्ष्याम्युतकीलनं | 
उद्दीपनं हि मंत्रस्य सर्वस्योंत्कीलनं भवेत् || 

पुरा तव मया भद्रे समाकर्षण वश्यजा | 
मंत्राणां कीलिता सिद्धिः सर्वे ते सप्तकोटयः || 

तवानुग्रह प्रीतस्त्वात सिद्धिस्तेषां फलप्रदा | 
येनोपायेन भवति तं स्तोत्रं कथयाम्यहं || 

श्रुणु भद्रेऽत्र सततमावाभ्यामखिल जगत | 
तस्य सिद्धिभवेत तिष्ठे माया येषां प्रभावकं || 

अन्नं पानं हि सौभाग्यं दत्तं तुभ्यं मया शिवे | 
सञ्जीवनं च मंत्राणां तथा दत्तुम पुनर्ध्रुवं || 

यस्य स्मरण मात्रेण पाठेन जपतोऽपि वा | 
अकीला अखिला मन्त्राः सत्यं सत्यं न संशयः ||"
  
|| सर्वयन्त्र मंत्र तन्त्रोंत्कीलन स्तोत्रम || 

|| विनियोगः || 

ॐ अस्य सर्वयन्त्र मन्त्र तंत्राणामुत्कीलन मन्त्र स्तोत्रस्य मूल प्रकृतिः ऋषिः जगतीच्छन्दः निरञ्जनो देवता क्लीं बीजं ह्रीं शक्तिः ह्रः सौं कीलकं सप्तकोटि मन्त्र यन्त्र तन्त्र कीलकानां सञ्जीवन सिद्धयर्थे जपे विनियोगः | 

ऋष्यादिन्यासः 

ॐ मूलप्रकृति ऋषये नमः शिरसि | 
ॐ जगतीच्छन्दसे नमः मुखे | 
ॐ निरञ्जन देवतायै नमः हृदि | 
ॐ क्लीं बीजाय नमः गुह्ये | 
ॐ ह्रीं शक्तये नमः पादयोः | 
ॐ ह्रः सौं कीलकाय नमः सर्वाङ्गे | 
मंत्राणां सञ्जीवन सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगाय नमः अंजलौ | 

करन्यास 

ॐ ह्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः | 
ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः | 
ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः | 
ॐ ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः | 
ॐ ह्रां कनिष्ठिकाभ्यां नमः | 
ॐ ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः | 

हृदयादि न्यास 

ॐ ह्रां हृदयाय नमः | 
ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा | 
ॐ ह्रूं शिखायै वौषट | 
ॐ ह्रैं कवचाय हुम् | 
ॐ ह्रां नेत्रत्रयाय वौषट | 
ॐ ह्रः अस्त्राय फट | 

अथ ध्यानम 
ॐ ब्रह्मस्वरूपममलं च निरंजनं तँ ज्योतिः प्रकाशमनीषं महतो महान्तं | 
कारुण्यरुपमति बोधकरं प्रसन्नं दिव्यं स्मरामि सततं मनु जीवनाय || 
एवं ध्यात्वा स्मरेन्नित्यं तस्य सिद्धिस्तु सर्वदा | 
वाञ्छितं फलमाप्नोति मन्त्र सञ्जीवनं ध्रुवम || 


ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं सर्व मन्त्र यन्त्र तंत्रादीनामुत्कीलनं कुरु कुरु स्वाहा || 
( १०८ वारं जपित्वा )

ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं षट्पञ्चाक्षराणामुत्कीलय उत्कीलय स्वाहा | 
ॐ जूँ सर्वमन्त्र यन्त्र तन्त्राणां सञ्जीवनं कुरु कुरु स्वाहा | 

ॐ ह्रीं जूं अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ॠ लृं लृं एम् ऐं ओं औं अं अः 
कं खं गं घं ङ्गं चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं णं 
तँ थं दं धं नं पं फं बं भं यं रं लं वं शं षं सं हं लं क्षं | 
मात्राऽक्षराणां सर्व उत्कीलनं कुरु कुरु स्वाहा | 
ॐ सोऽहं हंसोऽहं ( 11 ) 
ॐ जूं सोऽहं हंसः  ( 11 ) 
ॐ ॐ ( 11 ) 
ॐ हं जूं हं सं गं ( 11 ) 
सोऽहं हंसो यं ( 11 ) 
लं ( 11 ) 
ॐ ( 11 )
यं ( 11 )
ॐ ह्रीं जूं सर्वमन्त्र यन्त्र तन्त्र स्तोत्र कवचादिनां सञ्जीवय सञ्जीवय कुरु कुरु स्वाहा | 
ॐ सोऽहं हंसः ॐ सञ्जीवनं स्वाहा | ॐ ह्रीं मन्त्राक्षराणामुत्कीलय उत्कीलनं कुरु कुरु स्वाहा | 

ॐ ॐ प्रणवरूपाय अं आं परम रूपिणे | इं ईं शक्तिस्वरूपाय |
उं ऊं तेजोमयाय च | ऋं ऋं रञ्जितदीप्ताय स्वाहा | 
लृं लृ स्थूलस्वरूपिणे | एम् ऐं वाचां विलासाय | 
ओं औं अं अः शिवाय च | कं खं कमलनेत्राय | 
गं घं गरुड़गामिने | ङ्गं चं श्रीचन्द्रभालाय | 
छं जं जयकराय च | झं ञं टं ठं जयकर्त्रे,डं ढं णं तं पराय च | 

थं दं धं नं नमस्तस्मै पं फं यन्त्रमयाय च | 
बं भं मं बलवीर्याय यं रं लं यशसे नमः | 
वं शं षं बहुवादाय सं हं ळं क्षं स्वरूपिणे | 
दिशामादित्य रूपाय तेजसे रुपधारिणे | 
अनन्ताय अनन्ताय नमस्तस्मै नमो नमः || 
मातृकायाः प्रकाशायै तुभ्यं तस्मै नमो नमः | 
प्राणेशायै क्षीणदायै सं सञ्जीव नमो नमः || 
निरञ्जनस्य देवस्य नामकर्म विधानतः | 
त्वया ध्यानं च शक्त्या च तेन सञ्जायते जगत || 
स्तुता महमचिरं ध्यात्वा मायायाँ ध्वंस हेतवे | 
संतुष्टा भार्गवायाहं यशस्वी जायते हि सः || 

ब्रह्माणं चेतयन्ती विविधसुर नरास्तर्पयन्ती प्रमोदाद | 
ध्यानेनोद्दीपयन्ती निगम जप मनुं षट्पदं प्रेरयन्ती || 
सर्वान्देवाँ जयन्ती दितिसुत दमनी साप्यहँकारमूर्ति | 
स्तुभ्यं तस्मै च जाप्यं स्मर रचित मनुं मोचये शाप जाळात || 
इदं श्रीत्रिपुरा स्तोत्रं पठेद भक्त्या तु यो नरः | 
सर्वांकामानवाप्नोति सर्वशापाद विमुच्यते ||  

|| इति || 

विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )