शनि मृत्युंजय स्तोत्र श्री शनैश्चर नामावलि
किसी प्राणी का अमर होना तो असंभव है, किंतु मृत्युंजय स्तोत्र में किसी व्यक्ति की अकाल मृत्यु, अपमृत्यु पर विजय प्रधान करने की एक अलौकिक क्षमता मौजूद है। शारीरिक, मानसिक कष्टों के शमन का सर्वाधिकार प्राप्त कारक शनिदेव हैं। भक्तों के कल्याणार्थ मातेश्वरी पार्वती के आग्रह पर आशुतोष शिव जी ने इस स्तोत्र को सुनाया और कहा कि, इस शनि मृत्युंजय स्तोत्र के श्रद्धा-भक्ति पूर्वक नियमानुसार पाठ करने से अनुष्ठान कर्ता शनिदेव का कृपा पात्र बनकर सभी आधि-व्याधियों से मुक्त हो जाता है।‘मृत्युंजय’ शब्द का सामान्य अर्थ मृत्यु पर विजय प्राप्त करना होता है। किसी प्राणी का अमर होना तो असंभव है, किंतु मृत्युंजय स्तोत्र में किसी व्यक्ति की अकाल मृत्यु, अपमृत्यु पर विजय प्रधान करने की एक अलौकिक क्षमता मौजूद है। शारीरिक, मानसिक कष्टों के शमन का सर्वाधिकार प्राप्त कारक शनिदेव हैं। भक्तों के कल्याणार्थ मातेश्वरी पार्वती के आग्रह पर आशुतोष शिव जी ने इस स्तोत्र को सुनाया और कहा कि, इस शनि मृत्युंजय स्तोत्र के श्रद्धा-भक्ति पूर्वक नियमानुसार पाठ करने से अनुष्ठान कर्ता शनिदेव का कृपा पात्र बनकर सभी आधि-व्याधियों से मुक्त हो जाता है। वह सुख सम्पति, सन्तान सुख प्राप्त कर अकाल व अपमृत्यु से निर्भय रहता हुआ निष्पाप हो जाता है। अन्त में वह शनिदेव की कृपा से मोक्ष मार्ग का अनुगामी बन जाता है। आशा है, पीडि़त व्यक्ति इससे लाभ उठाने का सत्प्रयास करेंगे।
इससे केवल पारलौकिक ही नहीं ऐहिक सुख-सम्पत्ति विद्या, यश पारिवारिक सुख की प्राप्ति होती है। यदि नियम पूर्वक कम से कम 11 अथवा 11 पाठ विधान पूर्वक करें या विद्वानों से करवायें और यथाशक्ति हवन और ब्राह्मण भोजन करायें तो धन-धान्य, संतति एवं विजय प्राप्ति का सुअवसर मिलता है।
महाकाल शनैश्चराय नम:
नीलाद्रि शोभाञ्चित दिव्य मूर्ति:
खड्गी त्रिदण्डी शरचाप हस्त:।
शम्भूर्महाकाल शनि
पुरारिर्जयत्यशेषासुर नाशकारी ।।१।।
नीले पर्वत जैसी शोभा वाले दिव्य मूर्ति, खड्गधरी, त्रिदंडी, धनुषवाण वाले साक्षात शम्भु, महाकाल, शनि, पुरारी अशेष तथा समस्त असुरों का नाश करने वाले वे देव (शिव) सद विजयी होते हैं।
मेरुपृष्ठे समासीनं सामरस्ये स्थितं शिवम्।
प्रणम्य शिरसा गौरी पृच्छतिस्म जगद्धितम् ।।२।।
सुमेर पर्वत के पृष्ठ में समासीन सामरस्य में स्थित जगत का हित करने वाले भगवान शिव को सिर झुकाकर प्रणाम करती हुई माता पार्वती ने पूछा।
पार्वत्युवाच
भगवन! देवदेवेश! भक्तानुग्रहकारक!
अल्पमृत्युविनाशाय यत्त्वया पूर्व सूचितम् ।।३।।
तदेव त्वं महाबाहो ! लोकानां हितकारकम्।
तव मूर्ति प्रभेदस्य महाकालस्य साम्प्रतम् ।।४।।
पार्वती ने कहा –
हे भगवन्! देवाधिदेव! भक्तों पर अनुग्रह करने वाले! अल्प मृत्यु के शमन के लिए आपने जो पहले सूचित किया है, हे महाबाहो! वही लोकहित का कारक है। महाकाल की मूर्ति भेद ही प्रेरक है।
शनेर्मृत्र्युञ्ञय-स्तोत्रं बू्रहि मे नेत्रजन्मन:।
अकाल मृत्युहरणमपमृत्यु निवारणम्।।५।।
हे त्रिनेत्र! मुझे नेत्र से उत्पन्न शनि का मृत्युंजय स्तोत्र सुनाएं जो अकाल मृत्यु का हरण करता है तथा अपमृत्यु का निवारण करता है।
शनिमन्त्रप्रभेदा ये तैर्युक्तं यत्स्तवं शुभम्।
प्रतिनाम चतुथ्र्यन्तं नमोऽस्तु मनुनायुतम्।।६।।
शनि के मन्त्रों के जो भेद हैं, उनसे युक्त जो स्तव है, उस शुभदयक प्रत्येक (मनुयुक्त) नाम को चतुर्थी पर्यन्त मेरा नमस्कार है।
श्रीश्वर उवाच
नित्ये प्रियतमे गौरि सर्वलोकोपकारकम्।
गुह्याद्गुह्यतमं दिव्यं सर्वलोकहितेरते।।७।।
श्री महेश्वर बोले –
समस्त लोक के कल्याण में परायण रहने वाली हे प्रिये! गौरि! यह शनि मृत्युंजय स्तोत्र अत्यधिक दिव्य और सब जनों का उपकार करने वाला है।
शनि मृत्युञ्ञयस्तोत्रं प्रवक्ष्यामि तवाऽधुना।
सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं सर्वशत्रु विमर्दनम्।।८।।
मैं तुमसे शनि मृत्युंजय स्तोत्र को अब कहता हूँ। वह स्तोत्र सब मंगलों को करने वाला और सब शत्रुओं का दमन करने वाला है।
सर्वरोगप्रशमनं सर्वापद्विनिवारणम्।
शरीरारोग्यकरणमायुर्वृद्धिकरं नृणाम्।।९।।
यह स्तोत्र सब मनुष्यों के रोगों का शमन करने वाला, आपत्तियों का निवारण करने वाला, शरीर को आरोग्य देने वाला और आयुवृृद्धि करने वाला है।
यदि भक्तासि मे गौरी गोपनीयं प्रयत्नत:।
गोपितं सर्वतन्त्रेषु तच्छृणुष्व महेश्वरी।।१०।।
हे गौरि! यदि मेरी भक्त हो तो हे शिवे ! सब तन्त्रों में गुप्त और प्रयत्न पूर्वक गोपनीय रखे जाने वाले उस स्तोत्र को सुनो।
श्री शनैश्चर नामावलि
(जप हेतु)श्री शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए शनि उपासक तरह-तरह के अनुष्ठानों व पूजा पाठ का सहारा लिया करता है। लेकिन सबके लिए सभी उपाय आसान नहीं होते। कुछ लोगों के पास धन व समय की कमी रहती है तो किसी की शारीरिक स्थिति ठीक नहीं रहती। नामों का नियमित जप सभी प्रकार के संकटों के निवारण के लिए अमोघ माना गया है। नाम जप से जातक के अंदर एक ऐसी शक्ति जागृत होती है जो सभी प्रकार की कठिनाइयों पर विजय पाने के लिए जातक को मात्रा प्रोत्साहित ही नहीं करती बल्कि उसे विजयी बना देती है।
१ ओम अमितभाषिणे नम:
२ ओम अघहराय नम:
३ ओम अशेषदुरितापहाय नम:
४ ओम अघोररूपाय नम:
५ ओम अतिदीर्घकायाय नम:
६ ओम अशेषभ्यानकाय नम:
७ ओम अनन्ताय नम:
८ ओम अन्नदात्रो नम:
९ ओम अश्वत्थूलजपप्रियाय नम:
१० ओम अतिसपत्प्रदाय नम:
११ ओम अमोघाय नम:
१२ ओम अन्यस्तुत्याप्रकोपिताय नम:
१३ ओम अपराजिताय नम:
१४ ओम अद्वितीयाय नम:
१५ ओम अतितेजसे नम:
१६ ओम अभयप्रदाय नम:
१७ ओम अष्टमस्थाय नम:
१८ ओम अद्बजननिभाय नम:
१९ ओम अखिलात्मने नम:
२० ओम अर्कनन्दनाय नम:
२१ ओम अतिदारुणाय नम:
२२ ओम अक्षोभ्याय नम:
२३ ओम अप्सरोभि:प्रपूजिताय नम:
२४ ओम अभीष्टफलदाय नम:
२५ अरिष्टमथनाय नम:
२६ ओम अमरपूजिताय नम:
२७ ओम अनुग्राह्याय नम:
२८ ओम प्रमेयपराम-विभीषणाय नम:
२९ ओम असाध्ययोगाय नम:
३० ओम अखिलदोघ्राय नम:
३१ ओम अपराकृताय नम:
३२ ओम अप्रमेयाय नम:
३३ ओम अतिसुखदाय नम:
३४ ओम अमरपूजिताय नम:
३५ ओम अवलोकात्सर्वनाशाय नम:
३६ ओम अश्वत्थामाद्विरायुधाय नम:
३७ ओम अपराधसहिष्णवे नम:
३८ ओम अश्वथमसुपूजिताय नम:
३९ ओम अनन्तपुण्यफलदाय नम:
४० ओम अतृप्ताय नम:
४१ ओम अतिबलाय नम:
४२ ओम अवलोकात्सर्ववन्द्याय नम:
४३ ओम अक्षीणकरुणानिधये नम:
४४ ओम अविद्यामूलनाशाय नम:
४५ ओम अक्षय्यफलदायकाय नम:
४६ ओम आनन्दपरिपूर्णाय नम:
४७ ओम आयुष्कारकाय नम:
४८ ओम आश्रितेष्टार्थवरदाय नम:
४९ ओम आधिव्याधिहराय नम:
५० ओम आनन्दमयाय नम:
५१ ओम आनन्दकराय नम:
५२ ओम आयुधधारकाय नम:
५३ ओम आत्मचाधिकारिणे नम:
५४ ओम आत्स्तुत्यपरायणाय नम:
५५ ओम आयुष्कराय नम:
५६ ओम आनुपूव्र्याय नम:
५७ ओम आत्मायत्ताजगत्त्रायाय नम:
५८ ओम आत्मनामजपपीताय नम:
५९ ओम आत्माधिकफलप्रदाय नम:
६० ओम आदित्यसंभवाय नम:
६१ ओम आर्तिभद्बजनाय नम:
६२ ओम आत्मक्षकाय नम:
६३ ओम आपद्धान्धवाय नम:
६४ ओम आनन्दरूपाय नम:
६५ ओम आयु:प्रदाय नम:
६६ ओम आकर्णपूर्णचापाय नम:
६७ ओम आत्मोष्टिद्विप्रदाय नम:
६८ ओम आनुकूल्याय नम:
६९ ओम आत्मरूपप्रतिमादान सुप्रियाय नम:
७० ओम आमारामाय नम:
७१ ओम आदिदेवाय नम:
७२ ओम आपन्नार्तिविनाशनाय नम:
७३ ओम इन्दिरार्चितपादाय नम:
७४ ओम इन्द्रभोगफलप्रदाय नम:
७५ ओम इन्द्रदेवस्वरूपाय नम:
७६ ओम इष्टेष्टवरदायकाय नम:
७७ ओम इष्टापूर्तिप्रदाय नम:
७८ ओम इन्दुमतीष्टवरदायकाय नम:
७९ ओम इन्दिरारमणप्रीताय नम:
८० ओम इन्द्रवंशनृपार्चिताय नम:
८१ ओम इहामुत्रोष्टफलदाय नम:
८२ ओम इन्दिरारमणार्चिताय नम:
८३ ओम ईद्धियाय नम:
८४ ओम ईश्वरप्रीताय नम:
८५ ओम ईष्णात्रायवर्जिताय नम:
८६ ओम उमास्वरूपाय नम:
८७ ओम उद्बोध्याय नम:
८८ ओम उशनाय नम:
८९ ओम उतसवप्रियाय नम:
९० ओम उमादेव्यर्चनप्रीताय नम:
९१ ओम उच्चस्थोस्चफलप्रदाय नम:
९२ ओम उरुप्रकाशाय नम:
९३ ओम उच्चस्थयोगदाय नम:
९४ ओम उरुपरामाय नम:
९५ ओम ऊध्र्वलोकादिसद्बचारिणे नम:
९६ ओम ऊण्र्वलोकादि नायकाय नम:
९७ ओम ऊर्जस्विने नम:
९८ ओम ऊनपादाय नम:
९९ ओम ऋकाराक्षरपूजिताय नम:
१०० ओम ऋषिप्रोक्तपुराणज्ञाय नम:
१०१ ओम ऋषिभि: परिपूजिताय नम:
१०२ ओम ऋग्वेदवन्द्याय नम:
१०३ ओम ऋग्रूपिणे नम:
१०४ ओम ऋजुमाग्रप्रवर्तकाय नम:
१०५ ओम लुलितोद्धारकाय नम:
१०६ ओम लूतभवपाश प्रभद्बजनाय नम:
१०७ ओम लूकाररूपकाय नम:
१०८ ओम लब्धधर्ममाग्र प्रवर्तकाय नम:
१०१ ओम एकाधिपत्य सामग्रज्यप्रदाय नम:
११० ओम ऐनौघनाशनाय नम:
१११ ओम एकपादे नम:
११२ ओम एकस्भै नम:
११३ ओम एकोनविंशतिमास भुक्तिदाय नम:
११४ ओम ऐकोनविंशतिवर्ष दशाय नम:
११५ ओम एणाङ्कपूजिताय नम:
११६ ओम एैश्वर्यफलप्रदाय नम:
११७ ओम ऐन्द्राय नम:
११८ ओम ऐरावतसुपूजिताय नम:
११९ ओम आोरजपसुप्रीताय नम:
१२० ओम आोरपरिपूजियाय नम:
१२१ ओम आोरबीजाय नम:
१२२ ओम औदाय नर्म:हस्ताय नम:
१२३ ओम औन्नत्यदाय काय नम:
१२४ ओम औदाय नर्म:गुणाय नम:
१२५ ओम औदाय नर्म:शीलाय नम:
१२६ ओम औषधकारकाय नम:
१२७ ओम कराजसन्नद्धधनुषे नम:
१२८ ओम करुणानिधाय नम:
१२९ ओम कालाय नम:
१३० ओम कठिनचित्तााय नम:
१३१ ओम कालमेघसमप्रभाय नम:
१३२ ओम किरीटिने नम:
१३३ ओम कर्मकृते नम:
१३४ ओम कारयित्रो नम:
१३५ ओम कालसहोदराय नम:
१३६ ओम कालाम्बराय नम:
१३७ ओम काकवाहाय नम:
१३८ ओम कर्मठाय नम:
१३९ ओम काश्पान्वयाय नम:
१४० ओम कलचप्रभदिने नम:
१४१ ओम कालरूपिणे नम:
१४२ ओम कारणाय नम:
१४३ ओम कारिमूर्तये नम:
१४४ ओम कालभत्र्रो नम:
१४५ ओम करीटमुकुटोज्वलाय नम:
१४६ ओम काय कारणकालज्ञाय नम:
१४७ ओम काद्बचनाभरथान्विताय नम:
१४८ ओम कालदंष्टा्राय नम:
१४९ ओम ोधरूपाय नम:
१५० ओम करालिने नम:
१५१ ओम कृष्णकेतनाय नम:
१५२ ओम कालात्मने नम:
१५३ ओम कालकत्र्रो नम:
१५४ ओम कृतान्ताय नम:
१५५ ओम ष्णगोप्रियाय नम:
१५६ ओम कालाग्निरुद्ररूपाय नम:
१५७ ओम कश्यपात्मजसंभवाय नम:
१५८ ओम कृष्णवर्णहयाय नम:
१५९ ओम कृष्णगोक्षीरसुप्रियाय नम:
१६० ओम कृष्णगोघृतसुप्रीताय नम:
१६१ ओम कृष्णगोदधिषुप्रियाय नम:
१६२ ओम कृष्णगावैकचित्तााय नम:
१६३ ओम कृष्णगोदानसुप्रियाय नम:
१६४ ओम कृष्णगोदत्ताहृदयाय नम:
१६५ ओम कृष्णगोरक्षणप्रियाय नम:
१६६ ओम कृष्णगोग्रासचित्तास्य सर्वप़ीडा निवारकाय नम:
१६७ ओम कृष्णगोदानशान्तस्य शान्तिफलप्रदाय नम:
१६८ ओम कृष्णभाव प्रियाय नम:
१६९ ओम कृष्णगोस्नानकामस्य र्गैां स्नानफलप्रदाय नम:
१७० ओम कृष्णगोरक्षणस्यान् सर्वाभीष्ट फलप्रदाय नम:
१७१ ओम कृष्ण गाव प्रियाय नम:
१७२ ओम कपिलापशुषुप्रियाय नम:
१७३ ओम कपिलाक्षीरपानस्य सोमपानफलप्रदाय नम:
१७४ ओम कपिलादानसुप्रीताय नम:
१७५ ओम कपिलाज्यहुतप्रियाय नम:
१७६ ओम कृष्णाय नम:
१७७ ओम कृत्तिाकान्तस्थाय नम:
१७८ ओम कृष्णगोवत्ससुप्रियाय नम:
१७९ ओम कृष्णमाल्याम्बरधराय नम:
१८० ओम कृष्णवर्णतनूरुहाय नम:
१८१ ओम कृष्णकेवते नम:
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