Monday, June 26, 2017

काल सरप योग के लिए सरल उपाय

काल सरप योग के लिए सरल उपाय


 "नारायण नागबलि " जैसी जटिल और महंगी उपचार की कोई जरूरत नहीं है।

आपको 5 बुधवार को शिव मंदिर जाना होगा और प्रार्थना करेंगे कि जन्म कुंडली में काला सरप योग की समस्या को शांत कर दें  और बाकि ग्रहों को शिव के आशीर्वाद से पूर्ण प्रभाव दें ।

फिर आपको शिव की मूर्ति के पैरों पर अपने सिर को रखकर इस  मंत्र - ओम नमः शिवया  21 बार पढ़ना होगा।

तुलसी का उपयोग करते हुए धन बढ़ाना

तुलसी का उपयोग करते हुए धन बढ़ाना

तुलसी की पत्तियों को पारंपरिक भारतीय चिकित्सा और चिकित्सा पद्धतियों में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया है, जैसे प्राचीन काल से आयुर्वेद। वे धार्मिक विवाहों, अनुष्ठानों, हवन और कई हिंदू देवताओं और देवी की पूजा की एक विस्तृत और विविध श्रेणी में भी उपयोग किए जाते हैं।

हिन्दू धर्म ने हमेशा वैदिक काल से तुलसी को बहुत महत्व दिया है। तुस्ली को देवी या धन और धन लक्ष्मी देवी के रूप में माना जाता है और इसलिए यह लक्ष्मी की पत्नी भगवान विष्णु को भी स्वतः ही प्रिय है।

इसलिए, तुलसी की ईमानदारी से पूजा विष्णु और लक्ष्मी दोनों की पूजा करने के दोहरे लाभ देती है


1 किसी भी शुभ दिन, तिथी, शुभ मुहूर्त, हिंदू त्योहार या किसी भी शुक्रवार को किया जा सकता है।

२ साधक  को तुलसी की पूजा करना होगा और उसके बाद धन मामलों  के लिए प्रार्थना करना होगा।

3 फिर, तुलसी की जड़ का एक छोटा सा हिस्सा काट कर गंगा जल से शुद्ध करना चाहिए और फिर छोटे  लाल रंग के कपड़े में बांध लेना चाहिए ।

4 फिर इसे  एक चांदी के  लॉकेट के अंदर डालकर गर्दन में पहनना चाहिए।

5 साधक  को हमेशा तुलसी को पानी देना चाहिए और जहां तक ​​संभव हो, तुलसी के दोनों तरफ शुद्ध घी  के दो दीया प्रज्वलित करें। महिला को मासिक चक्र के दौरान तुलसी की पूजा  नहीं करना चाहिए।

6 हर दिन तुलसी पौधे को पूजा या पानी देने में असमर्थ होने पर, गुरुवार को कम से कम ऐसा करने का प्रयास करें, यह स्वयं पैसा और वित्त से संबंधित सभी मामलों में शुभ सबसे शक्तिशाली उपाय है।

हनुमान चालीसा के दुर्लभ और गुप्त लाभ

हनुमान चालीसा के दुर्लभ और गुप्त लाभ

हनुमान या श्री राम उपासक हैं, उनके लिए हनुमान चालीसा जप करना अनिवार्य है बिना उन्हें संतुष्ट करना बहुत कठिन है।

यदि  साड़  सती चल रही हो  तो, हर रात हनुमान की तस्वीर के सामने एक तिल के तेल का दिया प्रज्वलित करें  इसके बाद उसे 11 बार हनुमान चालीसा पढ़ना चाहिए। इस उपाय को सोने से पहले हर दिन किया जाना चाहिए।

यदि कोई धन और भोजन चाहता है, तो चालीस को दोपहर में 11 बार पढ़ना चाहिए।

यदि कोई शक्ति प्राप्त करना चाहता है, तो उसे ब्रह्मा मुहूर्त में 21 बार हनुमान चालिसा को पढ़ना चाहिए। उन्हें अपने दैनिक भोजन को भोग के रूप में हनुमान को प्रस्तुत करना चाहिए और केवल सात्विक भोजन  प्याज, मसाले, किसी भी प्रकार का नमक का प्रयोग नहीं होना चाहिए

अगर व्यक्ति जीवन में चमत्कारी सफलता प्राप्त करना चाहता है, तो 108 दिनों के लिए 108 बार दैनिक हनुमान चालीसा पढ़ना चाहिए। अवश्य सफलता मिलेगी

साधना को पूरा करने के बाद, साधक को हनुमान और श्री राम की निरंतर अनुग्रह प्राप्त करने के लिए हर रोज  11 बार हनुमान चालीसा पढ़ना चाहिए।

बीमारियों से छुटकारा पाने के लिए, हनुमान चालीसा को ब्रह्मा मुहूर्त में 40 दिनों के लिए 31 बार पढ़ना चाहिए

अदालत के मामलों और अन्य समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए, शाम को हनुमान चालीसा को 21 बार हर रोज पढ़े
मानसिक शक्ति पाने के लिए और किसी भी प्रकार के भय से छुटकारा पाने के लिए, हनुमान चालीसा में ११ बार हर रोज पढ़े।

भूत से छुटकारा पाने के लिए, शाम 11 बजे हनुमान चालीसा दीपक कपूर और गुग्गुल के साथ करें और गुगुल की गंध हर जगह पहुंचें।

बुद्धिमत्ता प्राप्त करने के लिए, चन्दन के साथ भोजपात्र पर उल्लेखित मंत्र को लिखें और भोजपात्र को रोल करें और इसे अपने मुंह में रखें और 21 दिन के लिए शाम को हनुमान चालिसा को 21 बार पढ़ें । अगर क्षतिग्रस्त हो जाए तो भोजपति को बदला जा सकता है। मंत्र - हनुमान मूल मंत्र

सभी तीनो लोकों की प्रशंसा और सम्मान प्राप्त करने के लिए, हनुमान चालीसा को 21000 बार एक निश्चित संख्या के भीतर पढ़ना चाहिए ।

सन्यासी और निडर बनने के लिए हनुमान चालिसा को 21 बार पढ़ना चाहिए


हर किसी के जीवन में कई लोग हैं जो हमेशा आप को अवमानना ​​या आपके खिलाफ घृणा फैलते हैं, ऐसे लोगों को रोकने के लिए, हनुमान चालीसा को 11 बार दैनिक पढ़ना चाहिए । यदि प्रतिदिन 11 बार पढ़ा जाता है तो यह खतरों, देखा या अनपेक्षित हटा देता है

चालीसा पूरे जीवन के लिए हनुमान आपकी  मार्गदर्शन करता है कि आप क्या करें और आपको सिखाता है कि जीवन में गलत या सही क्या है। यह आपको एक धर्मी व्यक्ति बनाता है

यह आपके जीवन में सभी प्रकार के दोष या कठिनाइयों को निकालता है। आपका मन ज्ञान का सागर बन जाएगा।

व्यक्ति खुद के चारों ओर एक भ्रामक आभा उत्पन्न करता है और हर कोई उसके प्रति आकर्षित होता है।

भगवान हनुमान आपकी सभी इच्छाओं को हमेशा पूरा करेंगे, हनुमान चालीसा को भक्ति के साथ प्रतिदिन पढ़ना चाहिए ।

हर समस्या के लिए जो आप जीवन में सामना करते हैं, हनुमान आपकी मदद करने और मार्गदर्शन करने के लिए सहयता करते हैं

वह कार्य पूरा करने के लिए आपके सभी प्रयासों को सफल बना देगा। अगर किसी को अवसाद से गुजरना पड़ता है, तो वह बिना हनुमान चालीसा को 11 गुणा रोजाना पढ़ना चाहिए।

भगवान हनुमान स्वयं उस व्यक्ति को निर्देशित करते हैं जो हनुमान चालीसा को पढ़ता है और यदि वह व्यक्ति ऐसा करता है तो बिना किसी शक के वह महान नाम और प्रसिद्धि प्राप्त करेंगे। यह कई लोगों द्वारा एक अनुभवी तथ्य है
जिस व्यक्ति ने 108 दिन के लिए इस स्तोत्र 108 बार बिना किसी संदेह के पाठ पढ़ा, वैकुंठ पहुंचता है।

जो कोई कार्य या काम करने से पहले इस स्तोत्र को पढ़ता है, उसे निश्चित रूप से सफलता मिलेगी और भगवान शिव स्वयं इस तथ्य का साक्षी है।

व्यक्ति को हनुमान, राम, लक्ष्मण, सीता और शिव की कृपा मिलती है। निसंदेह।

कोई भी व्यक्ति कभी भी उस व्यक्ति को बेवकूफ बनाना या बनाने में सक्षम नहीं होगा जो हनुमान चालीसा को दैनिक पढ़ता है। हनुमान भक्त के सामने जादू स्वचालित रूप से खत्म हो जाएगा वह कभी शनि  देव या मंगल ग्रह  देव की वजह से ग्रह का अनुभव नहीं करेंगे।

यदि वह हनुमान चालीसा के छंदों को श्री राम जय राम मंत्र के सम्पुट के साथ मंत्र करते हैं तो आश्चर्यजनक लाभ प्राप्त होंगे।

दुश्मन स्थम्भन करने के लिए मंत्र तंत्र यंत्र

दुश्मन स्थम्भन करने के लिए मंत्र तंत्र यंत्र


स्थम्भन मंत्र लगातार 1000 बार जप किया जाना है। फिर वास्तविक प्रयोग के लिए, एक यंत्र को भोजपति पर हराल और हल्दी पाउडर के पेस्ट के साथ समान मात्रा में दोनों लिखकर तैयार किया जाना चाहिए। मंत्र को एक अनारकी लकड़ी  का उपयोग करके लिखा जाना चाहिए। याद रखें कि केवल देवनागरी संस्करण में लिखना है

फिर इस तैयार यंत्र को एक हरे रंग के कपड़े के टुकड़े में लपेटा कर ताबीज बना लेना चाहिए

तबीज़ को तब दुश्मन के घर  परिसर में गाड़ देना चाहिए। यदि दुश्मन एक अपार्टमेंट में रहता है, तो उसे अपार्टमेंट के अंदर छिपाया जाना चाहिए
ॐ नमो भगवते शत्रुनाम बुद्धि स्तम्भय स्तम्भय स्वाहा

Sunday, June 25, 2017

असंतुष्ट पत्नियों के पति के लिए टोटका

असंतुष्ट पत्नियों के पति के लिए टोटका


पति को  शुक्ल पक्ष के सोमवार को भगवान शिव से प्रार्थना करें कि वह अपनी पत्नी को सौहार्दपूर्ण बनाने में सफल होने के लिए आशीर्वाद दें, फिर, आने वाले बुधवार को, सुहग समग्री किन्नर / हिजरा को दान करना चाहिए और कुछ नकदी  देनी चाहिए। सुहाग समग्री सेट बाजार में आसानी से उपलब्ध हैं।

संक्रांति के दिन घर में गोमुत्र को छिड़कना,  एकमात्र अपवाद अगर संक्रांति रविवार को लगती है

कामसूत्र के कुछ संस्करणों के अनुसार, महिलाओं में शारीरिक संबंधों की इच्छा और इच्छा का स्तर पुरुषों से कहीं आठ गुना ज्यादा होती है।

GRIH BADHA SHANTI SHABAR MANTAR गृह बाधा शान्ति शाबर मन्त्र

 GRIH BADHA SHANTI SHABAR MANTAR गृह बाधा शान्ति शाबर मन्त्र

यह मंत्र जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में साधक की रक्षा करता है । कोई भी व्यक्ति इसे सिद्ध करके स्वयं को
सुरक्षित कर सकता है । 

जिसने इसे सिद्ध कर लिया हो, ऐसा व्यक्ति कहीं भी जाए, उसको किसी प्रकार की शारीरिक हानि की आशंका नहीं रहेगी । 

केवल आततायी से सुरक्षा ही नहीं, बल्कि रोग-व्याधि से मुक्ति दिलाने में भी यह मंत्र अद्भुत प्रभाव दिखाता है । 

इसके अतिरिक्त किसी दूकान या मकान में प्रेत-बाधा, तांत्रिक-अभिचार प्रयोग, कुदृष्टि आदि कारणों से धन-धान्य, व्यवसाय आदि की वृद्धि न होकर सदैव हानिकारक स्थिति हो, ऐसी स्थिति में इस मंत्र का प्रयोग करने से उस द्थान के समस्त दोष-विघ्न और अभिशाप आदि दुष्प्रभाव समाप्त हो जाते हैं ।

मन्त्रः-

“ॐ नमो आदेश गुरु को। ईश्वर वाचा अजपी बजरी बाड़ा, बज्जरी में बज्जरी बाँधा दसौं दुवार छवा और के घालो तो पलट बीर उसी को मारे । पहली चौकी गणपति, दूजी चौकी हनुमन्त, तिजी चौकी भैंरो, चौथी चौकी देत रक्षा करन को आवे श्री नरसिंह देवजी । शब्द साँचा पिण्ड काँचा, ऐ वचन गुरु गोरखनाथ का जुगोही जुग साँचा, फुरै मन्त्र ईशवरी वाचा ।”

विधिः-

इस मंत्र को मंत्रोक्त किसी भी एक देवता के मंदिर में या उसकी प्रतिमा के सम्मुख देवता का पूजन कर २१ दिन तक प्रतिदिन १०८ बार जप कर सिद्ध करें ।

प्रयोगः-

साधक कहीं भी जाए, रात को सोते समय इस मंत्र को पढ़कर अपने आसन के चारों ओर रेखा खींच दे या जल की पतली धारा से रेखा बना ले, फिर उसके भीतर निश्चित होकर बैठे अथवा सोयें ।

रोग व्याधि में इस मंत्र को पढ़ते हुए रोगी के शरीर पर हाथ फेरा जाए तो मात्र सात बार यह क्रिया करने से ही तत्काल वह व्यक्ति व्याधि से मुक्त हो जाता है ।

घर में जितने द्वार हो उतनी लोहे की कील लें । जितने कमरे हों, प्रति कमरा दस ग्राम के हिसाब से साबुत काले उड़द लें । थोड़ा-सा सिन्दूर तेल या घी में मिलाकर कीलों पर लगा लें । 

कीलों और उड़द पर 7-7 बार अलग-अलग मंत्र पढ़कर फूंक मारकर अभिमंत्रित कर लें । व्याधि-ग्रस्त घर के प्रत्येक कमरे या दुकान में जाकर मंत्र पढ़कर उड़द के दाने सब कमरे के चारों कोनों में तथा आँगन में बिखेर दें और द्वार पर कीलें ठोक दें ।

बालक या किसी व्यक्ति को नजर लग जाए, तो उसको सामने बिठाकर मोरपंख या लोहे की छुरी से मंत्र को सात बार पढ़ते हुए रोगी को झाड़ना चाहिए । यह क्रिया तीन दिन तक सुबह-शाम दोनों समय करें ।

माँ दुर्गा कवच

माँ दुर्गा कवच

ऋषि मार्कंड़य ने पूछा जभी !
दया करके ब्रह्माजी बोले तभी !!
के जो गुप्त मंत्र है संसार में !
हैं सब शक्तियां जिसके अधिकार में !!
हर इक का कर सकता जो उपकार है !
जिसे जपने से बेडा ही पार है !!
पवित्र कवच दुर्गा बलशाली का !
जो हर काम पूरे करे सवाल का !!
सुनो मार्कंड़य मैं समझाता हूँ !
मैं नवदुर्गा के नाम बतलाता हूँ !!
कवच की मैं सुन्दर चोपाई बना !
जो अत्यंत हैं गुप्त देयुं बता !!
नव दुर्गा का कवच यह, पढे जो मन चित लाये !
उस पे किसी प्रकार का, कभी कष्ट न आये !!
कहो जय जय जय महारानी की !
जय दुर्गा अष्ट भवानी की !!
पहली शैलपुत्री कहलावे !
दूसरी ब्रह्मचरिणी मन भावे !!
तीसरी चंद्रघंटा शुभ नाम !
चौथी कुश्मांड़ा सुखधाम !!
पांचवी देवी अस्कंद माता !
छटी कात्यायनी विख्याता !!
सातवी कालरात्रि महामाया !
आठवी महागौरी जग जाया !!
नौवी सिद्धिरात्रि जग जाने !
नव दुर्गा के नाम बखाने !!
महासंकट में बन में रण में !
रुप होई उपजे निज तन में !!
महाविपत्ति में व्योवहार में !
मान चाहे जो राज दरबार में !!
शक्ति कवच को सुने सुनाये !
मन कामना सिद्धी नर पाए !!
चामुंडा है प्रेत पर, वैष्णवी गरुड़ सवार !
बैल चढी महेश्वरी, हाथ लिए हथियार !!
कहो जय जय जय महारानी की !
जय दुर्गा अष्ट भवानी की !!
हंस सवारी वारही की !
मोर चढी दुर्गा कुमारी !!
लक्ष्मी देवी कमल असीना !
ब्रह्मी हंस चढी ले वीणा !!
ईश्वरी सदा बैल सवारी !
भक्तन की करती रखवारी !!
शंख चक्र शक्ति त्रिशुला !
हल मूसल कर कमल के फ़ूला !!
दैत्य नाश करने के कारन !
रुप अनेक किन्हें धारण !!
बार बार मैं सीस नवाऊं !
जगदम्बे के गुण को गाऊँ !!
कष्ट निवारण बलशाली माँ !
दुष्ट संहारण महाकाली माँ !!
कोटी कोटी माता प्रणाम !
पूरण की जो मेरे काम !!
दया करो बलशालिनी, दास के कष्ट मिटाओ !
चमन की रक्षा को सदा, सिंह चढी माँ आओ !!
कहो जय जय जय महारानी की !
जय दुर्गा अष्ट भवानी की !!
अग्नि से अग्नि देवता !
पूरब दिशा में येंदरी !!
दक्षिण में वाराही मेरी !
नैविधी में खडग धारिणी !!
वायु से माँ मृग वाहिनी !
पश्चिम में देवी वारुणी !!
उत्तर में माँ कौमारी जी!
ईशान में शूल धारिणी !!
ब्रहामानी माता अर्श पर !
माँ वैष्णवी इस फर्श पर !!
चामुंडा दसों दिशाओं में, हर कष्ट तुम मेरा हरो !
संसार में माता मेरी, रक्षा करो रक्षा करो !!
सन्मुख मेरे देवी जया !
पाछे हो माता विजैया !!
अजीता खड़ी बाएं मेरे !
अपराजिता दायें मेरे !!
नवज्योतिनी माँ शिवांगी !
माँ उमा देवी सिर की ही !!
मालाधारी ललाट की, और भ्रुकुटी कि यशर्वथिनी !
भ्रुकुटी के मध्य त्रेनेत्रायम् घंटा दोनो नासिका !!
काली कपोलों की कर्ण, मूलों की माता शंकरी !
नासिका में अंश अपना, माँ सुगंधा तुम धरो !!
संसार में माता मेरी, रक्षा करो रक्षा करो !!
ऊपर वाणी के होठों की !
माँ चन्द्रकी अमृत करी !!
जीभा की माता सरस्वती !
दांतों की कुमारी सती !!
इस कठ की माँ चंदिका !
और चित्रघंटा घंटी की !!
कामाक्षी माँ ढ़ोढ़ी की !
माँ मंगला इस बनी की !!
ग्रीवा की भद्रकाली माँ !
रक्षा करे बलशाली माँ !!
दोनो भुजाओं की मेरे, रक्षा करे धनु धारनी !
दो हाथों के सब अंगों की, रक्षा करे जग तारनी !!
शुलेश्वरी, कुलेश्वरी, महादेवी शोक विनाशानी !
जंघा स्तनों और कन्धों की, रक्षा करे जग वासिनी !!
हृदय उदार और नाभि की, कटी भाग के सब अंग की !
गुम्हेश्वरी माँ पूतना, जग जननी श्यामा रंग की !!
घुटनों जन्घाओं की करे, रक्षा वो विंध्यवासिनी !
टकखनों व पावों की करे, रक्षा वो शिव की दासनी !!
रक्त मांस और हड्डियों से, जो बना शरीर !
आतों और पित वात में, भरा अग्न और नीर !!
बल बुद्धि अंहकार और, प्राण ओ पाप समान !
सत रज तम के गुणों में, फँसी है यह जान !!
धार अनेकों रुप ही, रक्षा करियो आन !
तेरी कृपा से ही माँ, चमन का है कल्याण !!
आयु यश और कीर्ति धन, सम्पति परिवार !
ब्रह्मणी और लक्ष्मी, पार्वती जग तार !!
विद्या दे माँ सरस्वती, सब सुखों की मूल !
दुष्टों से रक्षा करो, हाथ लिए त्रिशूल !!
भैरवी मेरी भार्या की, रक्षा करो हमेश !
मान राज दरबार में, देवें सदा नरेश !!
यात्रा में दुःख कोई न, मेरे सिर पर आये !
कवच तुम्हारा हर जगह, मेरी करे सहाए !!
है जग जननी कर दया, इतना दो वरदान !
लिखा तुम्हारा कवच यह, पढे जो निश्चय मान !!
मन वांछित फल पाए वो, मंगल मोड़ बसाए !
कवच तुम्हारा पढ़ते ही, नवनिधि घर मे आये !!
ब्रह्माजी बोले सुनो मार्कंड़य !
यह दुर्गा कवच मैंने तुमको सुनाया !!
रहा आज तक था गुप्त भेद सारा !
जगत की भलाई को मैंने बताया !!
सभी शक्तियां जग की करके एकत्रित !
है मिट्टी की देह को इसे जो पहनाया !!
चमन जिसने श्रद्धा से इसको पढ़ा जो !
सुना तो भी मुह माँगा वरदान पाया !!
जो संसार में अपने मंगल को चाहे !
तो हरदम कवच यही गाता चला जा !!
बियाबान जंगल दिशाओं दशों में !
तू शक्ति की जय जय मनाता चला जा !!
तू जल में तू थल में तू अग्नि पवन में !
कवच पहन कर मुस्कुराता चला जा !!
निडर हो विचर मन जहाँ तेरा चाहे !
चमन पाव आगे बढ़ता चला जा !!
तेरा मान धन धान्य इससे बढेगा !
तू श्रद्धा से दुर्गा कवच को जो गाए !!
यही मंत्र यन्त्र यही तंत्र तेरा !
यही तेरे सिर से हर संकट हटायें !!
यही भूत और प्रेत के भय का नाशक !
यही कवच श्रद्धा व भक्ति बढ़ाये !!
इसे निसदिन श्रद्धा से पढ़ कर !
जो चाहे तो मुह माँगा वरदान पाए !!
इस स्तुति के पाठ से पहले कवच पढे !
कृपा से आधी भवानी की, बल और बुद्धि बढे !!
श्रद्धा से जपता रहे, जगदम्बे का नाम !
सुख भोगे संसार में, अंत मुक्ति सुखधाम !!
कृपा करो मातेश्वरी, बालक चमन नादाँ !
तेरे दर पर आ गिरा, करो मैया कल्याण !!
!! जय माता दी !!

Sunday, June 18, 2017

ग्रहों के इष्ट देवता

ग्रहों के इष्ट देवता 


यहां प्रत्येक ग्रह के लिए देवत्व दिए गए हैं जो आपके कुंडली के अनुसार आपके इष्ट देवता हो सकते हैं।

  • सूर्य-विष्णु, राम, शिव
  • चंद्र-कृष्ण, शिव, पार्वती
  • मंगल-हनुमान, सुब्रमण्य, श्री नरसिंह
  • बुध- विष्णु
  • बृहस्पति - विष्णु, श्री वामन, दत्तात्रेय
  • शुक्र - महा लक्ष्मी, परशुराम, मा गोरी
  • शनि- शनिदेव, हनुमान, कुरमा, शिव, विष्णु
  • राहु-मादुर्गा, वरहा
  • केतु-गणेश 
  • लगन -कल्कि


षोडशोपचार हनुमान पूजा विधि

षोडशोपचार हनुमान पूजा विधि 

Sankalpa (सङ्कल्प)
Lord Hanuman Puja should begin with the Sankalpa. For that one should clean the right hand palm by taking water into it through five-vessel (पञ्च-पात्र). After that one should take fresh water, Akshata, flowers etc. into cleaned right hand palm and read following Sankalpa Mantra. After reading Sankalpa Mantra water should be dropped at the ground.

Hanuman Puja

ॐ तत्सत आद्या अमुक संवत्सरे मासोत्तम , अमुक तिथौ ,
अमुक वासरे, अमुक गोत्रोत्पन्नोअहं अमुक नामा अदि ...
सरल कामना सिद्ध्यर्थं श्री हनुमत्पूजं करिष्ये ।

Avahana (आवाहन)
After taking Sankalpa, one should chant following Mantra in front of the Murti, by showing Avahan Mudra (Avahan Mudra is formed by joining both palms and folding both thumbs inwards).

श्रीहनामतः प्राण यह प्राण हनुमतो जीवा इहा स्थितः
सर्वेन्द्रियाणि , वैमनस्तवाकचक्षुरजिहवाघराना पाणिपदपेउपस्थानी
हनुमता इहागटया सुखम चिराम तिष्ठन्तु स्वाहा।

श्रीराम चरणाभ्योनयुगलसतहीरा माणसं ।
आवाहयामि वरदम हनुमन्तं भीष्टदम ॥

॥ॐ श्री हनुमते नमः आवाहनं समर्पयामि ॥

Dhyana (ध्यान)
Dhyana should be done in front of already installed Lord Hanuman statue in front of you. Following Mantra should be chanted while meditating on Lord Hanuman.

कर्णिकारा सुवर्णाभं वर्णनीयम गुणोत्तमम ।
अर्णवोल्लंघनोडयुक्ताम टुर्ना ध्यायामि मारुतिं ॥

॥ॐ श्री हनुमते नमः ध्यानम समर्पयामि ॥

Asana (आसन)
After meditation of Lord Hanuman, take five flowers in Anjali (by joining palm of both hands) and leave them in front of the Murti to offer seat to Lord Hanuman while chanting following Mantra.

नवरतनमयम दिव्यम चतुरस्रमानुत्तमम ।
सुवर्णमासनं तुभ्यं कल्पये कपि नायका॥
॥ॐ श्री हनुमते नमः असंयम समर्पयामि ॥

पद्य (पाद्य)
After offering seat to Lord Hanuman offer Him water to wash the feet while chanting following Mantra.

सुवर्णकलशानितम सुष्ठु वसितमदारत ।
पादयोः पद्यमनघम प्रति ग्रहण प्रसीदा में ॥

॥ॐ श्री हनुमते नमः पद्यम समर्पयामि ॥

Arghya (अर्घ्य)
After Padya offering, offer water to Lord Hanuman for head Abhishekam while chanting following Mantra.

कुसुमाक्षातसम्मिश्रम गृह्यताम कपि पुंगवा
दास्यामि ते अंजनी पुत्र सवमार्घ्य रत्नसंयुतम ॥

॥ॐ श्री हनुमते नमः अर्घ्यम समर्पयामि ॥

Achamana (आचमन)
After Arghya offering, offer water to Lord Hanuman for Achamana (water for sipping) while chanting following Mantra.

महारक्षासदर्पघ्ने सुराधिपासुपूजिता ।
विमलं शमलाघ्ना तवं गृहणाचमनीयकम ॥

॥ॐ श्री हनुमते नमः आचमनं समर्पयामि ॥

Snana Mantra (स्नान मन्त्र)
पंचामृत स्नानं (पञ्चामृत स्नानम्)
After Achamana, now give a bath with Panchamrita (the mixture of milk, curd, honey, Ghee and sugar) to Lord Hanuman while chanting following Mantra.

मध्वाज्याक्षिरादधिभिः सगुडैर्मन्त्रसंयुतैः ।
पंचामृत पृथक स्नानेह सिंचामी तवं कपीश्वरः ॥

॥ॐ श्री हनुमते नमः पंचामृत स्नानं समर्पयामि ॥

शुद्धोदका स्नानं (शुद्धोदक स्नानम्)
After Panchamrita Snanam, now give a bath with pure water (Gangajal) to Lord Hanuman while chanting following Mantra.

सुवर्णकलशनेटिगंगाडिसारिदुद्भवः ।
शुद्धोदकैः कपिशा त्वामभिषिञ्चमी मरुते ॥

॥ॐ श्री हनुमते नमः शुद्धोदका स्नानं समर्पयामि ॥

Maunji Mekhala (मौञ्जी मेखला)
After Snana offering, offer Maunji Mekhala (the girdle of Munja grass) to Lord Hanuman while chanting following Mantra.

ग्रथितं नवभि रत्नैर्मखलाम त्रिगुणीकृतं ।
मौञ्जीम भुंजमाईं पीतम ग्रहण पवनात्मज ॥

॥ॐ श्री हनुमते नमः मौञ्जी मेखला समर्पयामि ॥

कटिसूत्र and कौपीन (कटिसूत्र एवं कौपीन)
After Maunji Mekhala offering, now offer Katisutra (sacred belts around the waist) and Kaupina (loin cloth) to Lord Hanuman while chanting following Mantra.

कतिसूत्रम गृहाणेदं कौपीनम ब्रह्मचारिणः ।
कौषेयम कपिशार्दूला हरिदृक्तं सुमंगलम ॥

॥ॐ श्री हनुमते नमः कतिसूत्रम and कौपीनम समर्पयामि ॥

Uttariya (उत्तरीय)
After Katisutra and Kaupina offering, now offer clothes for upper body parts to Lord Hanuman while chanting following Mantra.

पीताम्बरं सुवर्णाभामुत्तरियार्थमेवा च ।
दास्यामि जानकी प्राणत्राणकरना गृह्यताम ॥

॥ॐ श्री हनुमते नमः उत्तरीयम समर्पयामि ॥

यज्ञोपवीत (यज्ञोपवीत)
After Uttariya offering, offer Yajnopavita to Lord Hanuman while chanting following Mantra.

श्रौतस्मार्तादि कर्तृणां सांगोपांग पहला प्रदम ।
यज्ञोपवीतमनगम धारायनीलानंदना ॥

॥ॐ श्री हनुमते नमः यज्ञोपवीतं समर्पयामि ॥

गंध (गन्ध)
After Yajnopavita offering, offer scent to Lord Hanuman while chanting following Mantra.

दिव्या कर्पूरा संयुक्तं मृगनाभि समन्वितम ।
सकुंकुमम पितागणधाम ललाटे धारय प्रभो ॥
॥ॐ श्री हनुमते नमः गंधम समर्पयामि ॥

Akshata (अक्षत)
After Gandha offering, offer Akshata (unbroken rice) to Lord Hanuman while chanting following Mantra.

हरिदृक्तानाक्षातनस्त्वं कुमकुमा द्रव्यमिश्रितं ।
धराया श्री गंध मध्ये शुभा शोभना वृद्धये ॥
॥ॐ श्री हनुमते नमः अक्षतं समर्पयामि ॥

Pushpa (पुष्प)
After अक्षता offering, offer flowers to Lord Hanuman while chanting following Mantra.
नीलोत्पलैः कोकनदैः कहलारेह कमलेरपी ।
कुमुदयः पुण्डरी कैस्त्वं पूजयामि कपीश्वरः ॥
मल्लिका जाती पुष्पैश्चि पटलैः कुटजैरपि ।
केतकी बकुलिश्चुतैः पुन्नागिरनागकेसरैः ॥
चम्पाकैः शतपत्रैश्चे करविरैरमनोहरैः ।
पूज्ये तवं कपि श्रेष्ठ सविलवई तुलसीदलैः ॥
॥ॐ श्री हनुमते नमः पुष्पाणि समर्पयामि ॥

Granthi Puja (ग्रन्थि पूजा)
Now perform Granthi Puja (to prepare sacred thread for Doraka by making thirteen knots) while chanting following Mantra(s).
ग्रंथि पूजा मंत्र

अंजनी सुनावे नमः , प्रथम ग्रंथिम पूजयामि ।
हनुमते नमः , द्वितीय ग्रंथिम पूजयामि ।
वायुपुत्राय नमः , तृतीया ग्रंथिम पूजयामि ।
महाबलाय नमः , चतुर्थ ग्रंथिम पूजयामि ।
रमेष्टाय नमः , पंचम ग्रंथिम पूजयामि ।
फाल्गुन सख्या नमः , षष्ठम ग्रंथिम पूजयामि ।
पिङ्गाक्षाय नमः , सप्तम ग्रंथिम पूजयामि ।
अमिता विक्रमाया नमः , अष्टम ग्रंथिम पूजयामि ।
सीता शोका विनाशनाय नमः , नवम ग्रंथिम पूजयामि ।
कपीश्वराय नमः , दशम ग्रंथिम पूजयामि ।
लक्ष्मण प्राण दात्रे नमः , एकादशा ग्रंथिम पूजयामि ।
दशग्रीवदर्पघ्नाया नमः , द्वादशा ग्रंथिम पूजयामि ।
भविष्यद्ब्राह्मणे नमः , त्रयोदशा ग्रंथिम पूजयामि ।

Anga Puja (अङ्ग पूजा)
Now worship those Gods who are body parts of Lord Hanuman itself. For that take Gandha, Akshata and Pushpa in left hand and leave them near to Lord Hanuman statue with right hand while chanting following Mantra(s).
अंग पूजा मंत्र

हनुमते नमः , पादौ पूजयामि ।
सुग्रीव सख्या नमः , गुल्फौ पूजयामि ।
अँगड़ा मित्राय नमः , जंघे पूजयामि ।
रामदासिया नमः , ऊरु पूजयामि ।
ाक्षाह्नया नमः , कटिं पूजयामि ।
लंका दहनाय नमः , बालम पूजयामि ।
राममनिदया नमः , नाभिम पूजयामि ।
सगरोललंघनाया नमः , माध्यम पूजयामि ।
लंका मर्दनाया नमः , केशवालिम पूजयामि ।
संजीवनिहारट्रे नमः , सतानौ पूजयामि ।
सौमित्रप्राणदाय नमः , वक्षः पूजयामि ।
कुंठित दशा कंठाय नमः , कण्ठं पूजयामि ।
रामभिषेका करने नमः , हस्तौ पूजयामि ।
मंत्ररचिता रामयनय नमः , वक्त्रं पूजयामि ।
प्रसन्नदेवदान्य नमः , वदनं पूजयामि ।
पिंगनेत्रया नमः , नेत्रे पूजयामि ।
श्रुति पराजय नमः , श्रुतिम पूजयामि ।
ऊर्ध्वपुंड्राधारिने नमः , कपोलम पूजयामि ।
मणिकण्ठमालिने नमः , शिरः पूजयामि ।
सर्वाभीष्ट प्रदाय नमः , सर्वांगं पूजयामि ।

Dhupam (धूपं):

अब भगवान श्री Hanuman को Dhupa प्रस्ताव निम्नलिखित मंत्र जप करते हुए।

दिव्यम सगुग्गुलाम सज्यम दशांगाम सावह्निकम ।
ग्रहण मरुते धूपं सुप्रियाम घ्राणतर्पणम ॥
॥ॐ श्री हनुमते नमः धूपमाघ्रापयामि ॥

Deepam (दीपं)
Now offer Deep to Lord Hanuman while chanting following Mantra.
दीपम मंत्र
घृता पुरितामुज्ज्वलं सितसूर्यसमप्रभम ।
अतुलम तवा दास्यामि व्रत पूर्तये सुदीपकं ॥
॥ॐ श्री हनुमते नमः दीपम दर्शयामि ॥

Naivedya (नैवेद्य)
Now offer Naivedya to Lord Hanuman while chanting following Mantra.
नैवेद्य मंत्र
सशकापूपसुपद्यपायासानी च यत्वतः ।
साक्षिरा दाढ़ी सज्यम चा सपुपम घृतपाचितम ॥
॥ॐ श्री हनुमते नमः नैवेद्यम निवेदयामि ॥

Paniya (पानीय)
Now offer pure water to Lord Hanuman while chanting following Mantra.
पनिया मंत्र
गोदावरी जलम शुद्धं स्वर्ण पत्रहरितम प्रियं ।
पनियम पवनोद्भूतम स्वीकुरु तवं दयानिधे ॥
॥ॐ श्री हनुमते नमः पनियम समर्पयामि ॥

Uttaraposhana (उत्तरापोषण)
Now offer water to Lord Hanuman for Uttaraposhana (ritual of Achamana and thanksgiving to Anna-Datta) while chanting following Mantra.
उत्तरपोषणा मंत्र
अपोशनं नमस्तेस्तु पापराशि त्रिनानालं ।
कृष्णवेणी जलनेवा कुरुष्व पवनात्मज ॥
॥ॐ श्री हनुमते नमः उत्तरापोशनं समर्पयामि ॥

Hasta Prakshalana (हस्त प्रक्षालन)
Now offer water to Lord Hanuman for the washing of hands while chanting following Mantra.
हस्ता प्रक्षालना मंत्र
दिवाकर सुतानिता जलना स्पृशा गांधीना ।
हस्तप्रक्षालनार्थाय स्वीकुरुष्व दयानिधे ॥
॥ॐ श्री हनुमते नमः हस्तौ प्रक्षालयितुं जलम समर्पयामि ॥

Shuddha Achamaniyam (शुद्ध आचमनीयं)
Now offer Gangajal or pure water to Lord Hanuman for Achamana while chanting following Mantra.
शुद्ध आचमनीयं मंत्र
रघुवीरपाड़ा न्यासस्थिरा माणसा मरुते ।
कावेरी जला पुर्नना स्वीकुरवाचमनीयकम ॥
॥ॐ श्री हनुमते नमः शुद्ध आचमनीयं जलम समर्पयामि ॥

Suvarna Pushpa (सुवर्ण पुष्प)
Now offer gold color or yellow flowers to Lord Hanuman while chanting following Mantra.
Suvarna Pushpa Mantra
वायुपुत्र नमस्तुभ्यं पुष्पम सौवर्णकम प्रियं ।
पूजयिष्यामि ते मुर्द्धिना नवरत्न समुज्ज्वलं ॥
॥ॐ श्री हनुमते नमः सुवर्ण पुष्पम समर्पयामि ॥

Tambula (ताम्बूल)
Now offer Tambula (Paan with betel nuts) to Lord Hanuman while chanting following Mantra.
ताम्बूला मंत्र
ताम्बूलमानघा स्वामिन प्रयत्नेन प्रकल्पितम ।
अवलोक्य नित्यं ते पुरतो रचितं माया ॥
॥ॐ श्री हनुमते नमः ताम्बूलं समर्पयामि ॥

Nirajana/Aarti (नीराजन/आरती)
After Tambula Samarpan, perform Lord Hanuman Aarti after chanting following Mantra.
निराजना मंत्र
Shatakotimaharatna Divyasadratna Patrake।
निराजना मिदं दृष्टेरातिथि कुरु मरुते ॥
॥ॐ श्री हनुमते नमः नीराजनं समर्पयामि ॥

Pushpanjali (पुष्पाञ्जलि):

पुष्पांजली को भगवान हनुमान के साथ करते हुए निम्नलिखित मंत्र जप मंत्र।

मूर्धानं दिवो ारतीम पृथिव्या वैश्वानरामृता अजातामग्निम ।
कविं समरजामतिथिम जननमा सन्ना पत्रं जनयन्ता देवः ॥
॥ॐ श्री हनुमते नमः पुष्पांजलि समर्पयामि ॥

Pradakshina (प्रदक्षिणा):

अब मंत्र के बाद जप करते समय प्रतीकात्मक प्रसाद (फूलों से भगवान हनुमान के दाहिनी ओर खड़े होकर) फूल देते हैं।

पपोहं पापकर्माहं पापात्मा पापा सम्भवः ।
त्राहिमाम पुण्डरीकाक्ष सर्व पाप हरो भवः ॥
॥ॐ श्री हनुमते नमः प्रदक्षिणाम समर्पयामि ॥

Namaskara (नमस्कार):

अब निम्नलिखित मंत्र जप करते हुए भगवान हनुमान को श्रद्धांजलि देते हैं।
नमस्कार मंत्र

नमस्तेस्तु महावीर नमस्ते वायुनन्दनः ।
विलोक्य कृपया नित्यं त्राहिमाम भक्त वत्सलः ॥
॥ॐ श्री हनुमते नमः नमस्कारम समर्पयामि ॥ ,

Doraka Grahana (दोरक ग्रहण)
Now devotee should accept the Dorak (the sacred thread prepared during Granthi Puja) and tie it to the right hand while chanting following Mantra.
दोराका ग्रहण मंत्र
ये पुत्र पौत्रादि समस्त भाग्यम वाञ्छति वयोस्तनयं प्रपूज्य ।
त्रयोदशग्रंथियुतम तदंकवधनन्ति हस्ते वरदोरा सूत्रम ॥
॥ॐ श्री हनुमते नमः दोराका ग्रहणं करोमि ॥

Purvadora-Kottarana (पूर्वदोर-कोत्तारण)
After Dorak Grahanam, perform the ritual of Purvadora-Kottarana while chanting following Mantra.

पुरवादोरा कोट्टराना मंत्र
अंजनी गर्भा सम्भूता रामकार्यार्थ सम्भवः ।
वरदोराकृता भासा रक्षा मम प्रतिवत्सरम ॥
॥ॐ श्री हनुमते नमः पुरवादोराकामुत्तरयामि ॥

Prarthana (प्रार्थना)
Now pray to Lord Hanuman while chanting following Mantra.
प्रार्थना मंत्र
अन्ना भगवन कार्य प्रतिपादक विग्रहः ।
हनुमान परिणीता भूत्वा प्रार्थितो हृदि तिष्ठतु ॥
॥ॐ श्री हनुमते नमः प्रार्थनाम करोमि ॥

Vayana Dana (वायन दान)
Now offer Vayana (sweets, etc.) while chanting following Mantra.

वायना दाना मंत्र
यस्य स्मृत्या चा नमोट्टाया तयो यजनक्रियादिषु ।
न्यूनम सम्पूर्णतम यति सद्यो वनडे तमच्युतम ॥
॥ॐ श्री हनुमते नमः वयनम ददामि ॥

Vayana Grahana (वायन ग्रहण)
The following Mantra should be chanted while accepting the offered Vayana.
वायना ग्रहण मंत्र
ददाति प्रतिगृह्णाति हनुमनेवा नाह स्वयं ।
वृत्तस्यास्य चा पूर्त्यार्थम प्रति गृह्णातु वयनम ॥

॥ॐ श्री हनुमते नमः वयनम प्रतिग्राह्यामि ॥

सर्प गायत्री मंत्र

सर्प गायत्री मंत्र

।। ऊँ नवकुल नागाय विदमहे विषदन्ताय धीमही तन्नो सर्प: प्रचोदयात।।


को कालसर्प योग यंत्र के सामने श्रद्धावश पाठ एक माला नित्य अवश्य पाठ करें। कोई जरूरी नहीं है कि आप त्रयम्बकेश्वर में ही पाठ करायें। आप स्वयं कर पाठ कर सकते हैं। सबसे अच्छा है आप एक माला शुक्र आधारित सम्पुट युक्तं महामृत्युपन्जय मंत्र का एक माला पारद शिवलिंग के सामने अवश्य करें।

महामृत्युं जय मंत्र

महामृत्युं जय मंत्र

।। ऊँ हौं जूं स: ऊँ भूभुर्व: स्व:।
ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिम पुष्टिवर्धनम।
ऊर्वारूकमिव बन्ध‍नात मृर्त्योिमुक्षीय मामृतात।
स्व: भुव: भू: ऊँ स: जूं हौं ऊँ ।।

नवग्रह पूजन मंत्र

नवग्रह पूजन मंत्र 

ऊँ ब्रह्मामुरारिस्त्रिपुरान्ताकारी भानु: शशी भूमिसुतो बुधश्च ।गुरुश्च शुक्र: शनिराहुकेतव: सर्वे ग्रहा: शान्तिकरा भवन्तु ।।

सन्तान गोपाल मंत्र

सन्तान गोपाल मंत्र

।। ऊँ श्रीं ह्रीं क्लींं ग्लौं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगतपते। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत: ।।

नोट :- उपरोक्त संतान गोपाल मंत्र एवं संतान गोपाल स्त्रोवत को संतान गोपाल यंत्र एवं श्री कृष्ण‍ भगवान के फोटो के सामने प्रात: स्नांन करने के बाद पीले की आसन पर एक माला जप करना है। उसके बाद गीताप्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित ’’ श्रीहरिवंश पुराण ‘’ का पाठ करना है। बीच में अधूरे अध्याय को छोड़कर नहीं उठना चाहिये। अध्याय को पूरे करके ही उठना चाहिये।

नेत्रोपनिषद

नेत्रोपनिषद

नित्यो प्रात: सूर्योदय के समय सूर्य को सूर्य का मंत्र ।। ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम: ।। बोलते हुए तांबे की गड़वी/लोटा में जल, अक्षत, लाल चन्द न, लाल गुलाब/गुड़हल का फुल, सिंदूर एवं गुड़/चीनी डालकर नित्य/ अर्ध्यस देना चाहिये उसके बाद इसका (नेत्रोपनिषद का) नित्यु प्रात: पाठ करने से नेत्र ज्यो ति (आंखों की रोशनी) ठीक रहती है तथा खोई हुई ज्योिति (आंखों की रोशनी) पुन: प्राप्ते होने की संभावना होती है।

ऊँ नमो भगवते सूर्य्याय अक्षय तेजसे नम: ।
ऊँ खेचराय: नम: ।
ऊँ महते नम: । ऊँ रजसे नम: ।
ऊँ असतोमासदगमय ।
तमसो मा ज्योमतिर्गमय ।
मृत्योार्मामतंगमय ।
उष्णोो भगवान शुचिरूप: । हंसो भगवान हंसरूप: ।
इमां चक्षुष्मसति विद्यां ब्राह्मणोनित्यकमधीयते ।
न तस्या्क्षिरोगो भवति न तस्यर कुलेन्धोर भवति । अष्टौय ब्राह्मणान प्राहयित्वा् विद्यासिद्धिर्भविष्योति ।
ऊँ विश्व‍ रूप घृणन्तंा जात वेदसंहिरण्यिमय ज्यो‍तिरूपमतं ।
सहस्त्रवरश्मिधिश: तधा वर्तमान: पुर: प्रजाना ।
मुदयतेष्यु सूर्य्य: । ऊँ नमो भगवते आदित्यारय अहोवाहनवाहनाय स्वा्हा ।
हरि ऊँ तत्सेत् ब्रहमणो नम: ।
ऊँ नम: शिवाय ।
ऊँ सूर्य्यायर्पणमस्तु ।

शनि मृत्युंजय स्तोत्र श्री शनैश्चर नामावलि

शनि मृत्युंजय स्तोत्र श्री शनैश्चर नामावलि

किसी प्राणी का अमर होना तो असंभव है, किंतु मृत्युंजय स्तोत्र में किसी व्यक्ति की अकाल मृत्यु, अपमृत्यु पर विजय प्रधान करने की एक अलौकिक क्षमता मौजूद है। शारीरिक, मानसिक कष्टों के शमन का सर्वाधिकार प्राप्त कारक शनिदेव हैं। भक्तों के कल्याणार्थ मातेश्वरी पार्वती के आग्रह पर आशुतोष शिव जी ने इस स्तोत्र को सुनाया और कहा कि, इस शनि मृत्युंजय स्तोत्र के श्रद्धा-भक्ति पूर्वक नियमानुसार पाठ करने से अनुष्ठान कर्ता शनिदेव का कृपा पात्र बनकर सभी आधि-व्याधियों से मुक्त हो जाता है।
‘मृत्युंजय’ शब्द का सामान्य अर्थ मृत्यु पर विजय प्राप्त करना होता है। किसी प्राणी का अमर होना तो असंभव है, किंतु मृत्युंजय स्तोत्र में किसी व्यक्ति की अकाल मृत्यु, अपमृत्यु पर विजय प्रधान करने की एक अलौकिक क्षमता मौजूद है। शारीरिक, मानसिक कष्टों के शमन का सर्वाधिकार प्राप्त कारक शनिदेव हैं। भक्तों के कल्याणार्थ मातेश्वरी पार्वती के आग्रह पर आशुतोष शिव जी ने इस स्तोत्र को सुनाया और कहा कि, इस शनि मृत्युंजय स्तोत्र के श्रद्धा-भक्ति पूर्वक नियमानुसार पाठ करने से अनुष्ठान कर्ता शनिदेव का कृपा पात्र बनकर सभी आधि-व्याधियों से मुक्त हो जाता है। वह सुख सम्पति, सन्तान सुख प्राप्त कर अकाल व अपमृत्यु से निर्भय रहता हुआ निष्पाप हो जाता है। अन्त में वह शनिदेव की कृपा से मोक्ष मार्ग का अनुगामी बन जाता है। आशा है, पीडि़त व्यक्ति इससे लाभ उठाने का सत्प्रयास करेंगे।
इससे केवल पारलौकिक ही नहीं ऐहिक सुख-सम्पत्ति विद्या, यश पारिवारिक सुख की प्राप्ति होती है। यदि नियम पूर्वक कम से कम 11 अथवा 11 पाठ विधान पूर्वक करें या विद्वानों से करवायें और यथाशक्ति हवन और ब्राह्मण भोजन करायें तो धन-धान्य, संतति एवं विजय प्राप्ति का सुअवसर मिलता है।

महाकाल शनैश्चराय नम:
नीलाद्रि शोभाञ्चित दिव्य मूर्ति:
खड्गी त्रिदण्डी शरचाप हस्त:।
शम्भूर्महाकाल शनि
पुरारिर्जयत्यशेषासुर नाशकारी ।।१।।
नीले पर्वत जैसी शोभा वाले दिव्य मूर्ति, खड्गधरी, त्रिदंडी, धनुषवाण वाले साक्षात शम्भु, महाकाल, शनि, पुरारी अशेष तथा समस्त असुरों का नाश करने वाले वे देव (शिव) सद विजयी होते हैं।
मेरुपृष्ठे समासीनं सामरस्ये स्थितं शिवम्।
प्रणम्य शिरसा गौरी पृच्छतिस्म जगद्धितम् ।।२।।
सुमेर पर्वत के पृष्ठ में समासीन सामरस्य में स्थित जगत का हित करने वाले भगवान शिव को सिर झुकाकर प्रणाम करती हुई माता पार्वती ने पूछा।
पार्वत्युवाच
भगवन! देवदेवेश! भक्तानुग्रहकारक!
अल्पमृत्युविनाशाय यत्त्वया पूर्व सूचितम् ।।३।।
तदेव त्वं महाबाहो ! लोकानां हितकारकम्।
तव मूर्ति प्रभेदस्य महाकालस्य साम्प्रतम् ।।४।।

पार्वती ने कहा –
हे भगवन्! देवाधिदेव! भक्तों पर अनुग्रह करने वाले! अल्प मृत्यु के शमन के लिए आपने जो पहले सूचित किया है, हे महाबाहो! वही लोकहित का कारक है। महाकाल की मूर्ति भेद ही प्रेरक है।
शनेर्मृत्र्युञ्ञय-स्तोत्रं बू्रहि मे नेत्रजन्मन:।
अकाल मृत्युहरणमपमृत्यु निवारणम्।।५।।
हे त्रिनेत्र! मुझे नेत्र से उत्पन्न शनि का मृत्युंजय स्तोत्र सुनाएं जो अकाल मृत्यु का हरण करता है तथा अपमृत्यु का निवारण करता है।
शनिमन्त्रप्रभेदा ये तैर्युक्तं यत्स्तवं शुभम्।
प्रतिनाम चतुथ्र्यन्तं नमोऽस्तु मनुनायुतम्।।६।।
शनि के मन्त्रों के जो भेद हैं, उनसे युक्त जो स्तव है, उस शुभदयक प्रत्येक (मनुयुक्त) नाम को चतुर्थी पर्यन्त मेरा नमस्कार है।
श्रीश्वर उवाच
नित्ये प्रियतमे गौरि सर्वलोकोपकारकम्।
गुह्याद्गुह्यतमं दिव्यं सर्वलोकहितेरते।।७।।
श्री महेश्वर बोले –
समस्त लोक के कल्याण में परायण रहने वाली हे प्रिये! गौरि! यह शनि मृत्युंजय स्तोत्र अत्यधिक दिव्य और सब जनों का उपकार करने वाला है।
शनि मृत्युञ्ञयस्तोत्रं प्रवक्ष्यामि तवाऽधुना।
सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं सर्वशत्रु विमर्दनम्।।८।।
मैं तुमसे शनि मृत्युंजय स्तोत्र को अब कहता हूँ। वह स्तोत्र सब मंगलों को करने वाला और सब शत्रुओं का दमन करने वाला है।
सर्वरोगप्रशमनं सर्वापद्विनिवारणम्।
शरीरारोग्यकरणमायुर्वृद्धिकरं नृणाम्।।९।।
यह स्तोत्र सब मनुष्यों के रोगों का शमन करने वाला, आपत्तियों का निवारण करने वाला, शरीर को आरोग्य देने वाला और आयुवृृद्धि करने वाला है।
यदि भक्तासि मे गौरी गोपनीयं प्रयत्नत:।
गोपितं सर्वतन्त्रेषु तच्छृणुष्व महेश्वरी।।१०।।
हे गौरि! यदि मेरी भक्त हो तो हे शिवे ! सब तन्त्रों में गुप्त और प्रयत्न पूर्वक गोपनीय रखे जाने वाले उस स्तोत्र को सुनो।

श्री शनैश्चर नामावलि

(जप हेतु)
श्री शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए शनि उपासक तरह-तरह के अनुष्ठानों व पूजा पाठ का सहारा लिया करता है। लेकिन सबके लिए सभी उपाय आसान नहीं होते। कुछ लोगों के पास धन व समय की कमी रहती है तो किसी की शारीरिक स्थिति ठीक नहीं रहती। नामों का नियमित जप सभी प्रकार के संकटों के निवारण के लिए अमोघ माना गया है। नाम जप से जातक के अंदर एक ऐसी शक्ति जागृत होती है जो सभी प्रकार की कठिनाइयों पर विजय पाने के लिए जातक को मात्रा प्रोत्साहित ही नहीं करती बल्कि उसे विजयी बना देती है।

१ ओम अमितभाषिणे नम:
२ ओम अघहराय नम:
३ ओम अशेषदुरितापहाय नम:
४ ओम अघोररूपाय नम:
५ ओम अतिदीर्घकायाय नम:
६ ओम अशेषभ्यानकाय नम:
७ ओम अनन्ताय नम:
८ ओम अन्नदात्रो नम:
९ ओम अश्वत्थूलजपप्रियाय नम:
१० ओम अतिसपत्प्रदाय नम:
११ ओम अमोघाय नम:
१२ ओम अन्यस्तुत्याप्रकोपिताय नम:
१३ ओम अपराजिताय नम:
१४ ओम अद्वितीयाय नम:
१५ ओम अतितेजसे नम:
१६ ओम अभयप्रदाय नम:
१७ ओम अष्टमस्थाय नम:
१८ ओम अद्बजननिभाय नम:
१९ ओम अखिलात्मने नम:
२० ओम अर्कनन्दनाय नम:
२१ ओम अतिदारुणाय नम:
२२ ओम अक्षोभ्याय नम:
२३ ओम अप्सरोभि:प्रपूजिताय नम:
२४ ओम अभीष्टफलदाय नम:
२५ अरिष्टमथनाय नम:
२६ ओम अमरपूजिताय नम:
२७ ओम अनुग्राह्याय नम:
२८ ओम प्रमेयपराम-विभीषणाय नम:
२९ ओम असाध्ययोगाय नम:
३० ओम अखिलदोघ्राय नम:
३१ ओम अपराकृताय नम:
३२ ओम अप्रमेयाय नम:
३३ ओम अतिसुखदाय नम:
३४ ओम अमरपूजिताय नम:
३५ ओम अवलोकात्सर्वनाशाय नम:
३६ ओम अश्वत्थामाद्विरायुधाय नम:
३७ ओम अपराधसहिष्णवे नम:
३८ ओम अश्वथमसुपूजिताय नम:
३९ ओम अनन्तपुण्यफलदाय नम:
४० ओम अतृप्ताय नम:
४१ ओम अतिबलाय नम:
४२ ओम अवलोकात्सर्ववन्द्याय नम:
४३ ओम अक्षीणकरुणानिधये नम:
४४ ओम अविद्यामूलनाशाय नम:
४५ ओम अक्षय्यफलदायकाय नम:
४६ ओम आनन्दपरिपूर्णाय नम:
४७ ओम आयुष्कारकाय नम:
४८ ओम आश्रितेष्टार्थवरदाय नम:
४९ ओम आधिव्याधिहराय नम:
५० ओम आनन्दमयाय नम:
५१ ओम आनन्दकराय नम:
५२ ओम आयुधधारकाय नम:
५३ ओम आत्मचाधिकारिणे नम:
५४ ओम आत्स्तुत्यपरायणाय नम:
५५ ओम आयुष्कराय नम:
५६ ओम आनुपूव्र्याय नम:
५७ ओम आत्मायत्ताजगत्त्रायाय नम:
५८ ओम आत्मनामजपपीताय नम:
५९ ओम आत्माधिकफलप्रदाय नम:
६० ओम आदित्यसंभवाय नम:
६१ ओम आर्तिभद्बजनाय नम:
६२ ओम आत्मक्षकाय नम:
६३ ओम आपद्धान्धवाय नम:
६४ ओम आनन्दरूपाय नम:
६५ ओम आयु:प्रदाय नम:
६६ ओम आकर्णपूर्णचापाय नम:
६७ ओम आत्मोष्टिद्विप्रदाय नम:
६८ ओम आनुकूल्याय नम:
६९ ओम आत्मरूपप्रतिमादान सुप्रियाय नम:
७० ओम आमारामाय नम:
७१ ओम आदिदेवाय नम:
७२ ओम आपन्नार्तिविनाशनाय नम:
७३ ओम इन्दिरार्चितपादाय नम:
७४ ओम इन्द्रभोगफलप्रदाय नम:
७५ ओम इन्द्रदेवस्वरूपाय नम:
७६ ओम इष्टेष्टवरदायकाय नम:
७७ ओम इष्टापूर्तिप्रदाय नम:
७८ ओम इन्दुमतीष्टवरदायकाय नम:
७९ ओम इन्दिरारमणप्रीताय नम:
८० ओम इन्द्रवंशनृपार्चिताय नम:
८१ ओम इहामुत्रोष्टफलदाय नम:
८२ ओम इन्दिरारमणार्चिताय नम:
८३ ओम ईद्धियाय नम:
८४ ओम ईश्वरप्रीताय नम:
८५ ओम ईष्णात्रायवर्जिताय नम:
८६ ओम उमास्वरूपाय नम:
८७ ओम उद्बोध्याय नम:
८८ ओम उशनाय नम:
८९ ओम उतसवप्रियाय नम:
९० ओम उमादेव्यर्चनप्रीताय नम:
९१ ओम उच्चस्थोस्चफलप्रदाय नम:
९२ ओम उरुप्रकाशाय नम:
९३ ओम उच्चस्थयोगदाय नम:
९४ ओम उरुपरामाय नम:
९५ ओम ऊध्र्वलोकादिसद्बचारिणे नम:
९६ ओम ऊण्र्वलोकादि नायकाय नम:
९७ ओम ऊर्जस्विने नम:
९८ ओम ऊनपादाय नम:
९९ ओम ऋकाराक्षरपूजिताय नम:
१०० ओम ऋषिप्रोक्तपुराणज्ञाय नम:
१०१ ओम ऋषिभि: परिपूजिताय नम:
१०२ ओम ऋग्वेदवन्द्याय नम:
१०३ ओम ऋग्रूपिणे नम:
१०४ ओम ऋजुमाग्रप्रवर्तकाय नम:
१०५ ओम लुलितोद्धारकाय नम:
१०६ ओम लूतभवपाश प्रभद्बजनाय नम:
१०७ ओम लूकाररूपकाय नम:
१०८ ओम लब्धधर्ममाग्र प्रवर्तकाय नम:
१०१ ओम एकाधिपत्य सामग्रज्यप्रदाय नम:
११० ओम ऐनौघनाशनाय नम:
१११ ओम एकपादे नम:
११२ ओम एकस्भै नम:
११३ ओम एकोनविंशतिमास भुक्तिदाय नम:
११४ ओम ऐकोनविंशतिवर्ष दशाय नम:
११५ ओम एणाङ्कपूजिताय नम:
११६ ओम एैश्वर्यफलप्रदाय नम:
११७ ओम ऐन्द्राय नम:
११८ ओम ऐरावतसुपूजिताय नम:
११९ ओम आोरजपसुप्रीताय नम:
१२० ओम आोरपरिपूजियाय नम:
१२१ ओम आोरबीजाय नम:
१२२ ओम औदाय नर्म:हस्ताय नम:
१२३ ओम औन्नत्यदाय काय नम:
१२४ ओम औदाय नर्म:गुणाय नम:
१२५ ओम औदाय नर्म:शीलाय नम:
१२६ ओम औषधकारकाय नम:
१२७ ओम कराजसन्नद्धधनुषे नम:
१२८ ओम करुणानिधाय नम:
१२९ ओम कालाय नम:
१३० ओम कठिनचित्तााय नम:
१३१ ओम कालमेघसमप्रभाय नम:
१३२ ओम किरीटिने नम:
१३३ ओम कर्मकृते नम:
१३४ ओम कारयित्रो नम:
१३५ ओम कालसहोदराय नम:
१३६ ओम कालाम्बराय नम:
१३७ ओम काकवाहाय नम:
१३८ ओम कर्मठाय नम:
१३९ ओम काश्पान्वयाय नम:
१४० ओम कलचप्रभदिने नम:
१४१ ओम कालरूपिणे नम:
१४२ ओम कारणाय नम:
१४३ ओम कारिमूर्तये नम:
१४४ ओम कालभत्र्रो नम:
१४५ ओम करीटमुकुटोज्वलाय नम:
१४६ ओम काय कारणकालज्ञाय नम:
१४७ ओम काद्बचनाभरथान्विताय नम:
१४८ ओम कालदंष्टा्राय नम:
१४९ ओम ोधरूपाय नम:
१५० ओम करालिने नम:
१५१ ओम कृष्णकेतनाय नम:
१५२ ओम कालात्मने नम:
१५३ ओम कालकत्र्रो नम:
१५४ ओम कृतान्ताय नम:
१५५ ओम ष्णगोप्रियाय नम:
१५६ ओम कालाग्निरुद्ररूपाय नम:
१५७ ओम कश्यपात्मजसंभवाय नम:
१५८ ओम कृष्णवर्णहयाय नम:
१५९ ओम कृष्णगोक्षीरसुप्रियाय नम:
१६० ओम कृष्णगोघृतसुप्रीताय नम:
१६१ ओम कृष्णगोदधिषुप्रियाय नम:
१६२ ओम कृष्णगावैकचित्तााय नम:
१६३ ओम कृष्णगोदानसुप्रियाय नम:
१६४ ओम कृष्णगोदत्ताहृदयाय नम:
१६५ ओम कृष्णगोरक्षणप्रियाय नम:
१६६ ओम कृष्णगोग्रासचित्तास्य सर्वप़ीडा निवारकाय नम:
१६७ ओम कृष्णगोदानशान्तस्य शान्तिफलप्रदाय नम:
१६८ ओम कृष्णभाव प्रियाय नम:
१६९ ओम कृष्णगोस्नानकामस्य र्गैां स्नानफलप्रदाय नम:
१७० ओम कृष्णगोरक्षणस्यान् सर्वाभीष्ट फलप्रदाय नम:
१७१ ओम कृष्ण गाव प्रियाय नम:
१७२ ओम कपिलापशुषुप्रियाय नम:
१७३ ओम कपिलाक्षीरपानस्य सोमपानफलप्रदाय नम:
१७४ ओम कपिलादानसुप्रीताय नम:
१७५ ओम कपिलाज्यहुतप्रियाय नम:
१७६ ओम कृष्णाय नम:
१७७ ओम कृत्तिाकान्तस्थाय नम:
१७८ ओम कृष्णगोवत्ससुप्रियाय नम:
१७९ ओम कृष्णमाल्याम्बरधराय नम:
१८० ओम कृष्णवर्णतनूरुहाय नम:
१८१ ओम कृष्णकेवते नम:

श्री शनि चालीसा आरती

श्री शनि चालीसा आरती

शनि चालीसा का पाठ सबसे सरल है। अतः यहां सर्वाधिक प्रचलित चालीसा प्रस्तुत की जा रही है। शनि चालीसा भी हनुमान चालीसा जैसे ही अति प्रभावशाली है। शनि प्रभावित जातकों के समस्त कष्टों का हरण शनि चालीसा के पाठ द्वारा भी किया जा सकता है। सांसारिक किसी भी प्रकार का शनिकृत दोष, विवाह आदि में उत्पन्न बाधाएं इस शनि चालीसा की 21 आवृति प्रतिदिन पाठ लगातार 21 दिनों तक करने से दूर होती हैं और जातक शांति सुख सौमनस्य को प्राप्त होता है। अन्य तो क्या पति-पत्नी कलह को भी 11 पाठ के हिसाब से यदि कम से कम 21 दिन तक किया जाये तो अवश्य उन्हें सुख सौमनस्यता की प्राप्ति होती है।

श्री शनि चालीसा

दोहा
जय-जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महराज।
करहुं कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज।।
चौपाई
जयति-जयति शनिदेव दयाला।
करत सदा भक्तन प्रतिपाला।।
चारि भुजा तन श्याम विराजै।
माथे रतन मुकुट छवि छाजै।।
परम विशाल मनोहर भाला।
टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला।।
कुण्डल श्रवण चमाचम चमकै।
हिये माल मुक्तन मणि दमकै।।
कर में गदा त्रिशूल कुठारा।
पल विच करैं अरिहिं संहारा।।
पिंगल कृष्णो छाया नन्दन।
यम कोणस्थ रौद्र दुःख भंजन।।
सौरि मन्द शनी दश नामा।
भानु पुत्रा पूजहिं सब कामा।।
जापर प्रभु प्रसन्न हों जाहीं।
रंकहु राउ करें क्षण माहीं।।
पर्वतहूं तृण होई निहारत।
तृणहंू को पर्वत करि डारत।।
राज मिलत बन रामहि दीन्हा।
कैकइहूं की मति हरि लीन्हा।।
बनहूं में मृग कपट दिखाई।
मात जानकी गई चुराई।।
लषणहि शक्ति बिकल करि डारा।
मचि गयो दल में हाहाकारा।।
दियो कीट करि कंचन लंका।
बजि बजरंग वीर को डंका।।
नृप विक्रम पर जब पगु धारा।
चित्रा मयूर निगलि गै हारा।।
हार नौलखा लाग्यो चोरी।
हाथ पैर डरवायो तोरी।।
भारी दशा निकृष्ट दिखाओ।
तेलिहुं घर कोल्हू चलवायौ।।
विनय राग दीपक महं कीन्हो।
तब प्रसन्न प्रभु ह्नै सुख दीन्हों।।
हरिशचन्द्रहुं नृप नारि बिकानी।
आपहुं भरे डोम घर पानी।।
वैसे नल पर दशा सिरानी।
भूंजी मीन कूद गई पानी।।
श्री शकंरहि गहो जब जाई।
पारवती को सती कराई।।
तनि बिलोकत ही करि रीसा।
नभ उड़ि गयो गौरि सुत सीसा।।
पाण्डव पर ह्नै दशा तुम्हारी।
बची द्रोपदी होति उघारी।।
कौरव की भी गति मति मारी।
युद्ध महाभारत करि डारी।।
रवि कहं मुख महं धरि तत्काला।
लेकर कूदि पर्यो पाताला।।
शेष देव लखि विनती लाई।
रवि को मुख ते दियो छुड़ाई।।
वाहन प्रभु के सात सुजाना।
गज दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना।।
जम्बुक सिंह आदि नख धारी।
सो फल ज्योतिष कहत पुकारी।।
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं।
हय ते सुख सम्पत्ति उपजावैं।।
गर्दभहानि करै बहु काजा।
सिंह सिद्धकर राज समाजा।।
जम्बुक बुद्धि नष्ट करि डारै।
मृग दे कष्ट प्राण संहारै।।
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी।
चोरी आदि होय डर भारी।।
तैसहिं चारि चरण यह नामा।
स्वर्ण लोह चांदी अरु ताम्बा।।
लोह चरण पर जब प्रभु आवैं।
धन सम्पत्ति नष्ट करावैं।।
समता ताम्र रजत शुभकारी।
स्वर्ण सर्व सुख मंगल भारी।।
जो यह शनि चरित्रा नित गावै।
कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै।।
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला।
करैं शत्राु के नशि बल ढीला।।
जो पंडित सुयोग्य बुलवाई।
विधिवत शनि ग्रह शान्ति कराई।।
पीपल जल शनि-दिवस चढ़ावत।
दीप दान दै बहु सुख पावत।।
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा।
शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा।।
दोहा
प्रतिमा श्री शनिदेव की, लोह धातु बनवाय।
प्रेम सहित पूजन करै, सकल कष्ट कटि जाय।।
चालीसा नित नेम यह, कहहिं सुनहिं धरि ध्यान।नि ग्रह सुखद ह्नै, पावहिं नर सम्मान।।
कर्मफल दाता श्री शनिदेव की भक्ति और आरती करने से हर प्रकार के कष्टों का शमन हो जाता है। श्री शनिदेव को काला कपड़ा और लोहा बहुत प्रिय है। उन्हें आक का फूल बहुत भाता है। शनिवार और अमावस्या तिथि को उनको उड़द, गुड़, काले तिल और सरसों का तेल चढ़ाना लाभप्रद रहता है।

श्रद्धापूर्वक उनकी आरती करने से सब प्रकार की प्रतिकूलताएं समाप्त हो जाता हैं।


दोहा
जय गणेश, गिरजा, सुवन,
मंगल करण कृपाल।
दीनन के दुख दूर करि,
कीजै नाथ निहाल।।
जय-जय श्री शनिदेव प्रभु,
सुनहंु विनय महाराज।
करहंु कृपा रक्षा करो,
राखहुं जन की लाज।।
आरती श्री शनिदेव तुम्हारी।।
प्रेम विनय से तुमको ध्याऊं, सुधि लो बेगि हमारी।।
आरती श्री शनिदेव तुम्हारी।।
देवों में तुम देव बड़े हो, भक्तों के दुख हर लेते।
रंक को राजपाट, धन-वैभव, पल भर में दे देते।
तेरा कोई पार न पाया तेरी महिमा न्यारी।
आरती श्री शनिदेव तुम्हारी।।
वेद के ज्ञाता, जगत-विधाता तेरा रूप विशाला।
कर्म भोग करवा भक्तों का पाप नाश कर डाला।
यम-यमुना के प्यारे भ्राता, भक्तों के भयहारी।
आरती श्री शनिदेव तुम्हारी।।
स्वर्ण सिंहासन आप विराजो, वाहन सात सुहावे।
श्याम भक्त हो, रूप श्याम, नित श्याम ध्वजा फहराये।
बचे न कोई दृष्टि से तेरी, देव-असुर नर-नारी।।
आरती श्री शनिदेव तुम्हारी।।
उड़द, तेल, गुड़, काले तिल का तुमको भोग लगावें।
लौह धातु प्रिय, काला कपड़ा, आक का गजरा भावे।
त्यागी, तपसी, हठी, यती, क्रोधी सब छबी तिहारी।
आरती श्री शनिदेव तुम्हारी।।
शनिवार प्रिय शनि अमावस, तेलाभिषेक करावे।
शनिचरणानुरागी मदन तेरा आशीर्वाद नित पावे।
छाया दुलारे, रवि सुत प्यारे, तुझ पे मैं बलिहारी।
आरती श्री शनिदेव तुम्हारी।।

नवग्रह पीड़ाहर स्तोत्र

नवग्रह पीड़ाहर स्तोत्र

मनुष्य भी अन्य प्राणियों की तरह पूर्वकृत कर्मों से बने प्रारब्ध को भोगा करता है। किंतु अन्य प्राणियों की तरह वह सिर्फ प्रारब्ध भोगने के लिए विवश नहीं है। क्योंकि उसके पास कर्म करने का अधिकार है जिससे वह पूर्वकृत अशुभ कर्मों की कड़वाहट को कम कर सकता है। कोई बड़ा अनुठान न सही, केवल नवग्रह पीड़ाहर स्तोत्र का पाठ कर मनुष्य अपना जीवन सुखमय बना सकता है।

जब मनुष्य चारों तरफ से तरह-तरह की परेशानियों से घिर जाता है तो उसकी समझ में नहीं आता कि क्या करूं और कहां जाऊं। धीरे-धीरे मानसिक व शारीरिक रोगों का शिकंजा भी उस पर कसने लगता है। ऐसी स्थिति में वह इतना निराश हो जाता है कि वह अपने आपको प्रारब्ध की बेडिय़ों में जकड़ा एक विवश प्राणी मान हाथ पर हाथ रख चुपचाप बैठे हुए अपने कर्मों को कोसता रहता है। किंतु ऐसा करना उचित नहीं। माना यह बात शत प्रतिशत सही है कि हम जो भी सुख दुख भोगते हैं वह हमारे अपने कर्मों के फलस्वरूप ही प्राप्त हो रहें हैं किंतु हमें वर्तमान समय में कर्म करने का जो दुर्लभ अवसर प्राप्त हुआ है उसका लाभ भी उठाना चाहिए। इस वर्तमान समय में पूर्व कृत पापों के प्रायश्चित वाले शुभ कर्म भी कर सकते हैं। ग्रहों के माध्यम से प्राप्त होने वाले निज कर्मों के भोग को भी हम संबंधित ग्रहों को प्रसन्न करने वाले अनुष्ठान कर प्रभावित कर सकते हैं। यदि बड़े अनुष्ठान न कर पायें तो भी निराश नहीं होना चाहिए।

नवग्रह पीड़ा हर स्तोत्र का नियमित पाठ करने से हमारा जीवन सुखमय बन सकता है। हमें हर प्रकार की पीड़ा व कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है।
किसी विशेष उदेश्य की पूर्ति हेतु इस स्तोत्र को प्रतिदिन 11 बार पाठ लगातार 21 दिनों तक करें। 21 दिनों के अनुष्ठान के बाद दशांश हवन, तर्पण व मार्जन कर ब्राह्मण भोजन करायें। उसके बाद नित्य इस स्तोत्र का एक बार पाठ अवश्य करें। शीघ्र लाभ मिलेगा।

नवग्रह पीड़ाहर स्तोत्र

ग्रहाणामादिरादित्यो लोकरक्षण कारक:।
विषमस्थान संभूतां पीडां हरतु मे रवि:।।
रोहिणीश: सुधामूर्ति: सुधागात्र: सुधशन:।
विषमस्थान संभूतां पीडां हरतु मे विधु:।।
भूमिपुत्रो महातेजा जगतां भयकृत्सदा।
वृष्टिकुदृष्टिहर्ता च पीडां हरतु मे कुज:।।
उत्पातरूपो जगतां चन्द्रपुत्रो महाद्युति:।
सूर्यप्रियकरो विद्वान्पीडां हरतु में बुध:।।
देवमन्त्री विशालाक्ष: सदा लोकहिते रत:।
अनेक शिष्यसंपूर्ण: पीडां हरतु में गुरु:।।
दैत्यमन्त्री गुरुस्तेषां प्राणदाश्च महामति:।
प्रभुस्ताराग्रहाणां च पीडां हरतु मे भृगु:।।
सूर्यपुत्रो दीर्घदेहो विशालाक्ष: शिवप्रिय:।
दीर्घचार: प्रसन्नात्मा पीडां हरतु मे शनि:।।
महाशिरो महावक्त्रो दीर्घदंष्ट्रो महाबल:।
अतनु: ऊध्र्वकेशश्च पीडां हरतु में शिखी।।
अनेक रूपवर्णेश्च शतशोऽथ सहश:।
उत्पातरूपो जगतां पीडां हरतु मे तम:।।

आदित्य हृदय स्तोत्र

आदित्य हृदय स्तोत्र

सूर्यग्रहण में जप करने का संकल्प

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद् भगवतोमहापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्त्तमानस्य अद्य ब्रह्मणोन्हि द्वितिय परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशति तमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे आर्यावर्तैकदेशे विक्रमनाम संवतरे अत्राद्य महामंगल्य फलप्रद मासोत्तमे मासे पुण्यपवित्र श्रावणमासे शुभे कृष्ण पक्षे अमावस्या तिथौ सौम्यावासरे अद्य श्रीसूर्यग्रहण पुण्यकाले अस्माकं सदगुरुदेवं पादानां परम पूज्य संत श्री आसारामजी बापूनां परिवार सहितानां च आयुआरोग्य ऐश्वर्य यशः कीर्ति पुष्टि वृद्धिअर्थे तथा समस्त जगति राजहारे सर्वत्र सुखशांति यशोविजय लाभादि प्राप्तयर्थे, सर्वोपद्रव शमनार्थे, महामृत्युंजय मंत्रस्य तथा ॐ ह्रीं, ॐ ह्रूं विष्णवे नमः, ॐ क्रों ह्रीं आं वैवस्ताय धर्मराजाय भक्तानुग्रह कृते नमः स्वाहा, ॐ ह्रां ह्रीं ह्रों सः श्री सूर्याय नमः इत्यादि मंत्राणां च जपं अहं करिष्ये।

‘आदित्यहृदय स्तोत्र’

विनियोग
ॐ अस्य आदित्य हृदयस्तोत्रस्यागस्त्यऋषिरनुष्टुपछन्दः, आदित्येहृदयभूतो
भगवान ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्मविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः।
ऋष्यादिन्यास
ॐ अगस्त्यऋषये नमः, शिरसि। अनुष्टुपछन्दसे नमः, मुखे। आदित्यहृदयभूतब्रह्मदेवतायै नमः हृदि।
ॐ बीजाय नमः, गुह्यो। रश्मिमते शक्तये नमः, पादयो। ॐ तत्सवितुरित्यादिगायत्रीकीलकाय नमः नाभौ।
करन्यास
ॐ रश्मिमते अंगुष्ठाभ्यां नमः। ॐ समुद्यते तर्जनीभ्यां नमः।
ॐ देवासुरनमस्कृताय मध्यमाभ्यां नमः। ॐ विवरवते अनामिकाभ्यां नमः।
ॐ भास्कराय कनिष्ठिकाभ्यां नमः। ॐ भुवनेश्वराय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।
हृदयादि अंगन्यास
ॐ रश्मिमते हृदयाय नमः। ॐ समुद्यते शिरसे स्वाहा। ॐ देवासुरनमस्कृताय शिखायै वषट्।
ॐ विवस्वते कवचाय हुम्। ॐ भास्कराय नेत्रत्रयाय वौषट्। ॐ भुवनेश्वराय अस्त्राय फट्।
इस प्रकार न्यास करके निम्नांकित मंत्र से भगवान सूर्य का ध्यान एवं नमस्कार करना चाहिए-
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
आदित्यहृदय स्तोत्र
ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्।
रावणं चाग्रतो दृष्टवा युद्धाय समुपस्थितम्।।1।।
दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्।
उपगम्याब्रवीद् राममगरत्यो भगवांस्तदा।।2।।
उधर श्री रामचन्द्रजी युद्ध से थककर चिन्ता करते हुए रणभूमि में खड़े थे। इतने में रावण भी युद्ध के लिए उनके सामने उपस्थित हो गया। यह देख भगवान अगस्त्य मुनि, जो देवताओं के साथ युद्ध देखने के लिए आये थे, श्रीराम के पास जाकर बोले।
राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्यं सनातनम्।
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे।।3।।
‘सबके हृदय में रमण करने वाले महाबाहो राम ! यह सनातन गोपनीय स्तोत्र सुनो। वत्स ! इसके जप से तुम युद्ध में अपने समस्त शत्रुओं पर विजय पा जाओगे।’
आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्।
जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम्।।4।।
सर्वमंगलमांगल्यं सर्वपापप्रणाशनम्।
चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वधैनमुत्तमम्।।5।।
‘इस गोपनीय स्तोत्र का नाम है ‘आदित्यहृदय’। यह परम पवित्र और सम्पूर्ण शत्रुओं का नाश करने वाला है। इसके जप से सदा विजय की प्राप्ति होती है। यह नित्य अक्ष्य और परम कल्याणमय स्तोत्र है। सम्पूर्ण मंगलों का भी मंगल है। इससे सब पापों का नाश हो जाता है। यह चिन्ता और शोक को मिटाने तथा आयु को बढ़ाने वाला उत्तम साधन है।’
रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्।
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्।।6।।
‘भगवान सूर्य अपनी अनन्त किरणों से सुशोभित (रश्मिमान्) हैं। ये नित्य उदय होने वाले (समुद्यन्), देवता और असुरों से नमस्कृत, विवस्वान् नाम से प्रसिद्ध, प्रभा का विस्तार करने वाले (भास्कर) और संसार के स्वामी (भुवनेश्वर) हैं। तुम इनका (रश्मिमते नमः, समुद्यते नमः, देवासुरनमस्कताय नमः, विवस्वते नमः, भास्कराय नमः, भुवनेश्वराय नमः इन नाम मंत्रों के द्वारा) पूजन करो।’
सर्वदेवतामको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः।
एष देवासुरगणाँल्लोकान् पाति गभस्तिभिः।।7।।
‘सम्पूर्ण देवता इन्हीं के स्वरूप हैं। ये तेज की राशि तथा अपनी किरणों से जगत को सत्ता एवं स्फूर्ति प्रदान करने वाले हैं। ये ही अपनी रश्मियों का प्रसार करके देवता और असुरों सहित सम्पूर्ण लोकों का पालन करते हैं।’
एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः।
महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः।।8।।
पितरो वसवः साध्या अश्विनौ मरुतो मनुः।
वायुर्वन्हिः प्रजाः प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः।।9।।
‘ये ही ब्रह्मा, विष्णु, शिव, स्कन्द, प्रजापति, इन्द्र, कुबेर, काल, यम, चन्द्रमा, वरूण, पितर, वसु, साध्य, अश्विनीकुमार, मरुदगण, मनु, वायु, अग्नि, प्रजा, प्राण, ऋतुओं को प्रकट करने वाले तथा प्रभा के पुंज हैं।’
आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गर्भास्तिमान्।
सुवर्णसदृशो भानुहिरण्यरेता दिवाकरः।।10।।
हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान्।
तिमिरोन्मथनः शम्भूस्त्ष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान्।।11।।
हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनोऽहरकरो रविः।
अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शंखः शिशिरनाशनः।।12।।
व्योमनाथस्तमोभेदी ऋम्यजुःसामपारगः।
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः।।13।।
आतपी मण्डली मृत्युः पिंगलः सर्वतापनः।
कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोदभवः।।14।।
नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः।
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते।।15।।
‘इन्हीं के नाम आदित्य (अदितिपुत्र), सविता (जगत को उत्पन्न करने वाले), सूर्य (सर्वव्यापक), खग (आकाश में विचरने वाले), पूषा (पोषण करने वाले), गभस्तिमान् (प्रकाशमान), सुर्वणसदृश, भानु (प्रकाशक), हिरण्यरेता (ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के बीज), दिवाकर (रात्रि का अन्धकार दूर करके दिन का प्रकाश फैलाने वाले), हरिदश्व (दिशाओं में व्यापक अथवा हरे रंग के घोड़े वाले), सहस्रार्चि (हजारों किरणों से सुशोभित), तिमिरोन्मथन (अन्धकार का नाश करने वाले), शम्भू (कल्याण के उदगमस्थान), त्वष्टा (भक्तों का दुःख दूर करने अथवा जगत का संहार करने वाले), अंशुमान (किरण धारण करने वाले), हिरण्यगर्भ (ब्रह्मा), शिशिर (स्वभाव से ही सुख देने वाले), तपन (गर्मी पैदा करने वाले), अहरकर (दिनकर), रवि (सबकी स्तुति के पात्र), अग्निगर्भ (अग्नि को गर्भ में धारण करने वाले), अदितिपुत्र, शंख (आनन्दस्वरूप एवं व्यापक), शिशिरनाशन (शीत का नाश करने वाले), व्योमनाथ (आकाश के स्वामी), तमोभेदी (अन्धकार को नष्ट करने वाले), ऋग, यजुः और सामवेद के पारगामी, घनवृष्टि (घनी वृष्टि के कारण), अपां मित्र (जल को उत्पन्न करने वाले), विन्ध्यीथीप्लवंगम (आकाश में तीव्रवेग से चलने वाले), आतपी (घाम उत्पन्न करने वाले), मण्डली (किरणसमूह को धारण करने वाले), मृत्यु (मौत के कारण), पिंगल (भूरे रंग वाले), सर्वतापन (सबको ताप देने वाले), कवि (त्रिकालदर्शी), विश्व (सर्वस्वरूप), महातेजस्वी, रक्त (लाल रंगवाले), सर्वभवोदभव (सबकी उत्पत्ति के कारण), नक्षत्र, ग्रह और तारों के स्वामी, विश्वभावन (जगत की रक्षा करने वाले), तेजस्वियों में भी अति तेजस्वी तथा द्वादशात्मा (बारह स्वरूपों में अभिव्यक्त) हैं। (इन सभी नामों से प्रसिद्ध सूर्यदेव !) आपको नमस्कार है।’
नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः।।16।।
‘पूर्वगिरी उदयाचल तथा पश्चिमगिरि अस्ताचल के रूप में आपको नमस्कार है। ज्योतिर्गणों (ग्रहों और तारों) के स्वामी तथा दिन के अधिपति आपको प्रणाम है।’
जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः।
नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः।।17।।
‘आप जय स्वरूप तथा विजय और कल्याण के दाता है। आपके रथ में हरे रंग के घोड़े जुते रहते हैं। आपको बारंबार नमस्कार है। सहस्रों किरणों से सुशोभित भगवान सूर्य ! आपको बारंबार प्रणाम है। आप अदिति के पुत्र होने के कारण आदित्य नाम से प्रसिद्ध है, आपको नमस्कार है।’
नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नमः।
नमः पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते।।18।।
‘(परात्पर रूप में) आप ब्रह्मा, शिव और विष्णु के भी स्वामी हैं। सूर आपकी संज्ञा हैं, यह सूर्यमण्डल आपका ही तेज है, आप प्रकाश से परिपूर्ण हैं, सबको स्वाहा कर देने वाला अग्नि आपका ही स्वरूप है, आप रौद्ररूप धारण करने वाले हैं, आपको नमस्कार है।’
तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः।।20।।
‘आप अज्ञान और अन्धकार के नाशक, जड़ता एवं शीत के निवारक तथा शत्रु का नाश करने वाले हैं, आपका स्वरूप अप्रमेय है। आप कृतघ्नों का नाश करने वाले, सम्पूर्ण ज्योतियों के स्वामी और देवस्वरूप हैं, आपको नमस्कार है।’
तप्तचामीकराभाय हस्ये विश्वकर्मणे।
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे।।21।।
‘आपकी प्रभा तपाये हुए सुवर्ण के समान है, आप हरि (अज्ञान का हरण करने वाले) और विश्वकर्मा (संसार की सृष्टि करने वाले) हैं, तम के नाशक, प्रकाशस्वरूप और जगत के साक्षी हैं, आपको नमस्कार है।’
नाशयत्येष वै भूतं तमेव सृजति प्रभुः।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः।।22।।
‘रघुनन्दन ! ये भगवान सूर्य ही सम्पूर्ण भूतों का संहार, सृष्टि और पालन करते हैं। ये ही अपनी किरणों से गर्मी पहुँचाते और वर्षा करते हैं।’
एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः।
एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम्।।23।।
‘ये सब भूतों में अन्तर्यामीरूप से स्थित होकर उनके सो जाने पर भी जागते रहते हैं। ये ही अग्निहोत्र तथा अग्निहोत्री पुरुषों को मिलने वाले फल हैं।’
देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमप्रभुः।।24।।
‘(यज्ञ में भाग ग्रहण करने वाले) देवता, यज्ञ और यज्ञों के फल भी ये ही हैं। सम्पूर्ण लोकों में जितनी क्रियाएँ होती हैं, उन सबका फल देने में ये ही पूर्ण समर्थ हैं।’
एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च।
कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव।।25।।
‘राघव ! विपत्ति में, कष्ट में, दुर्गम मार्ग में तथा और किसी भय के अवसर पर जो कोई पुरुष इन सूर्यदेव का कीर्तन करता है, उसे दुःख नहीं भोगना पड़ता।’
पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम्।
एतत् त्रिगुणितं जप्तवा युद्धेषु विजयिष्ति।।26।।
‘इसलिए तुम एकाग्रचित होकर इन देवाधिदेव जगदीश्वर की पूजा करो। इस आदित्य हृदय का तीन बार जप करने से तुम युद्ध में विजय पाओगे।’
अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि।
एवमुक्त्वा ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम्।।27।।
‘महाबाहो ! तुम इसी क्षण रावण का वध कर सकोगे।’ यह कहकर अगस्त्य जी जैसे आये थे, उसी प्रकार चले गये।
एतच्छ्रुत्वा महातेजा, नष्टशोकोऽभवत् तदा।
धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान्।।28।।
आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान्।
त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान्।।29।।
रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थे समुपागमत्।
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत्।।30।।
उनका उपदेश सुनकर महातेजस्वी श्रीरामचन्द्रजी का शोक दूर हो गया। उन्होंने प्रसन्न होकर शुद्धचित्त से आदित्यहृदय को धारण किया और तीन बार आचमन करके शुद्ध हो भगवान सूर्य की ओर देखते हुए इसका तीन बार जप किया। इससे उन्हें बड़ा हर्ष हुआ। फिर परम पराक्रमी रघुनाथजी ने धनुष उठाकर रावण की ओर देखा और उत्साहपूर्वक विजय पाने के लिए वे आगे बढ़े। उन्होंने पूरा प्रयत्न करके रावण के वध का निश्चय किया।
अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितनाः परमं प्रहृष्यमाणः।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति।।31।।
उस समय देवताओं के मध्य में खड़े हुए भगवान सूर्य ने प्रसन्न होकर श्रीरामचन्द्रजी की ओर देखा और निशाचराज रावण के विनाश का समय निकट जानकर हर्षपूर्वक कहा ‘रघुनन्दन ! अब जल्दी करो’।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये युद्धकाण्डे पंचाधिकशततमः सर्गः।

पितृ -दोष शांति के सरल उपाय

विभिन्न ऋण और पितृ दोष

पितृ -दोष शांति के सरल उपाय
पितर या पितृ गण कौन हैं ?
पितृ गण हमारे पूर्वज हैंजिनका ऋण हमारे ऊपर है ,क्योंकि उन्होंने कोई ना कोई उपकार हमारे जीवन के लिए किया है | मनुष्य लोक से ऊपर पितृ लोक है,पितृ लोक के ऊपर सूर्य लोक है एवं इस से भी ऊपर स्वर्ग लोक है| आत्मा जब अपने शरीर को त्याग कर सबसे पहले ऊपर उठती है तो वह पितृ लोक में जाती है ,वहाँहमारे पूर्वज मिलते हैं |अगर उस आत्मा के अच्छे पुण्य हैं तो ये हमारे पूर्वज भी उसको प्रणाम कर अपने को धन्य मानते हैं की इस अमुक आत्मा ने हमारे कुल में जन्म लेकर हमें धन्य किया |इसके आगे आत्मा अपने पुण्य के आधार पर सूर्य लोक की तरफ बढती है |वहाँ से आगे ,यदि और अधिक पुण्य हैं, तो आत्मा सूर्य लोक को बेध कर स्वर्ग लोक की तरफ चली जाती है,लेकिन करोड़ों में एक आध आत्मा ही ऐसी होती है ,जो परमात्मा में समाहित होती है |जिसे दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता | मनुष्य लोक एवं पितृ लोक में बहुत सारी आत्माएं पुनः अपनी इच्छा वश ,मोह वश अपने कुल में जन्म लेती हैं|
पितृ दोष क्या होता है?
हमारे ये ही पूर्वज सूक्ष्म व्यापक शरीर से अपने परिवार को जब देखते हैं ,और महसूस करते हैं कि हमारे परिवार के लोग ना तो हमारे प्रति श्रद्धा रखते हैं और न ही इन्हें कोई प्यार या स्नेह है और ना ही किसी भी अवसर पर ये हमको याद करते हैं,ना ही अपने ऋण चुकाने का प्रयास ही करते हैं तो ये आत्माएं दुखी होकर अपने वंशजों को श्राप दे देती हैं,जिसे “पितृ- दोष” कहा जाता है |
पितृ दोष एक अदृश्य बाधा है .ये बाधा पितरों द्वारा रुष्ट होने के कारण होती है |पितरों के रुष्ट होने के बहुत से कारण हो सकते हैं ,आपके आचरण से,किसी परिजन द्वारा की गयी गलती से ,श्राद्ध आदि कर्म ना करने से ,अंत्येष्टि कर्म आदि में हुई किसी त्रुटि के कारण भी हो सकता है |
इसके अलावा मानसिक
अवसाद,व्यापार में नुक्सान ,परिश्रम के अनुसार फल न मिलना ,वैवाहिक जीवन में समस्याएं.,कैरिअर में समस्याएं या संक्षिप्त में कहें तो जीवन के हर क्षेत्र में व्यक्ति और उसके परिवार को बाधाओं का सामना करना पड़ता है ,
पितृ दोष होने पर अनुकूल ग्रहों की स्थिति ,गोचर ,दशाएं होने पर भी शुभ
फल नहीं मिल पाते,
कितना भी पूजा पाठ ,देवी ,देवताओं की अर्चना की जाए ,
उसका शुभ फल नहीं मिल पाता|
पितृ दोष दो प्रकार से प्रभावित करता है
:
१.अधोगति .
वाले पितरों के कारण
२. .उर्ध्वगति वाले पितरों के कारण
अधोगति वाले पितरों के दोषों
का मुख्य कारण परिजनों द्वारा किया गया गलत आचरण,
परिजनों की अतृप्त इच्छाएं ,जायदाद
के प्रति मोह और उसका गलत लोगों द्वारा उपभोग
होने पर,विवाहादिमें परिजनों द्वारा गलत निर्णय .परिवार के किसी
प्रियजन को अकारण
कष्ट देने पर पितर क्रुद्ध हो जाते हैं ,
परिवार जनों को श्राप दे देते हैं और अपनी शक्ति से
नकारात्मक फल प्रदान करते हैं|
उर्ध्व गति वाले पितर सामान्यतः पितृदोष उत्पन्न नहीं करते ,
परन्तु उनका किसी भी
रूप में अपमान होने पर अथवा परिवार के पारंपरिक रीति-
रिवाजों का निर्वहन नहीं
करने पर वह पितृदोष उत्पन्न करते हैं |
इनके द्वारा उत्पन्न पितृदोष से व्यक्ति की
भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति बिलकुल बाधित हो जाती है ,
फिर चाहे कितने भी
प्रयास क्यों ना किये जाएँ ,कितने भी पूजा पाठ क्यों ना किये जाएँ,
उनका कोई भी कार्य
ये पितृदोष सफल नहीं होने देता |
पितृ दोष निवारण के लिए सबसे पहले ये जानना ज़रूरी होता है कि किस गृह के कारण और किस प्रकार का पितृ दोष उत्पन्न हो रहा है ?
जन्म पत्रिका और पितृ दोष
जन्म पत्रिका में लग्न ,पंचम ,अष्टम और द्वादश भाव से पितृदोष का विचार किया जाता है |पितृ दोष में ग्रहों में मुख्य रूप से सूर्य ,चन्द्रमा ,गुरु ,शनि ,और राहू -केतु की स्थितियों से पितृ दोष का विचार किया जाता है |इनमें से भी गुरु ,
शनि और राहु की भूमिका प्रत्येक पितृ दोष में महत्वपूर्ण होती है |
इनमें सूर्य से पिता या पितामह , चन्द्रमा से माता या मातामह ,मंगल से भ्राता या भगिनी और शुक्र से पत्नी का विचार किया जाता है |अधिकाँश लोगों की जन्म पत्रिका में मुख्य रूप से क्योंकि गुरु ,शनि और राहु से पीड़ित होने पर ही पितृ दोष उत्पन्न होता है ,इसलिए विभिन्न उपायों को करने के साथ साथ व्यक्ति यदि पंचमुखी ,सातमुखी और आठ मुखी रुद्राक्ष भी धारण कर ले , तो पितृ दोष का निवारण शीघ्र हो जाता है |पितृ दोष निवारण के लिए इन रुद्राक्षों को धारण करने के अतिरिक्त इन ग्रहों के अन्य उपाय जैसे मंत्र जप और स्तोत्रों का पाठ करना भी श्रेष्ठ होता है |

विभिन्न ऋण और पितृ दोष

:
हमारे ऊपर मुख्य रूप से ५ ऋण होते हैं जिनका कर्म न करने(ऋण न चुकाने पर ) हमें निश्चित रूप से श्राप मिलता है ,ये ऋण हैं : मातृ ऋण ,पितृ ऋण ,मनुष्य ऋण ,देव ऋण और ऋषि ऋण |
मातृ ऋण : माता एवं माता पक्ष के सभी लोग जिनमेंमा,मामी ,नाना ,नानी ,मौसा ,मौसी और इनके तीन पीढ़ी
के पूर्वज होते हैं ,क्योंकि माँ का स्थान परमात्मा से भी ऊंचा माना गया है अतः यदि माता के प्रति कोई गलत शब्द बोलता है ,अथवा माता के पक्ष को कोई कष्ट देता रहता है,तो इसके फलस्वरूप उसको नाना प्रकार के कष्ट भोगने पड़ते हैं |इतना ही नहीं ,इसके बाद भी कलह और कष्टों का दौर भी परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी चलता ही रहता है |
पितृ ऋण: : पिता पक्ष के लोगों जैसे बाबा ,ताऊ ,चाचा, दादा-दादी और इसके पूर्व की तीन पीढ़ी का श्राप हमारे जीवन को प्रभावित करता है |पिता हमें आकाश की तरह छत्रछाया देता है,हमारा जिंदगी भर पालन -पोषण करता है ,और अंतिम समय तक हमारे सारे दुखों को खुद झेलता रहता है |पर आज के के इस भौतिक युग में पिता का सम्मान क्या नयी पीढ़ी कर रही है ?पितृ -भक्ति करना मनुष्य का धर्म है ,इस धर्म का पालन न करने पर उनका श्राप नयी पीढ़ी को झेलना ही पड़ता है ,इसमें घर में आर्थिक अभाव,दरिद्रता ,संतानहीनता ,संतान को विबिन्न प्रकार के कष्ट आना या संतान अपंग रह जाने से जीवन भर कष्ट की प्राप्तिआदि |
देव ऋण :माता -पिता प्रथम देवता हैं,जिसके कारण भगवान गणेश महान बने |इसके बाद हमारे इष्ट भगवान शंकर जी ,दुर्गा माँ ,भगवान विष्णु आदि आते हैं ,जिनको हमारा कुल मानता आ रहा है ,हमारे पूर्वज भी भीअपने अपने कुल देवताओं को मानते थे , लेकिन नयी पीढ़ी ने बिलकुल छोड़ दिया है |इसी कारण भगवान /कुलदेवी /कुलदेवता उन्हें नाना प्रकार के कष्ट /श्राप देकर उन्हें अपनी उपस्थिति का आभास कराते हैं|
ऋषि ऋण : जिस ऋषि के गोत्र में पैदा हुए ,वंश वृद्धि की ,उन ऋषियों का नाम अपने नाम के साथ जोड़ने में नयी पीढ़ी कतराती है ,उनके ऋषि तर्पण आदि नहीं करती है | इस कारण उनके घरों में कोई मांगलिक कार्यनहीं होते हैं,इसलिए उनका श्राप पीडी दर पीढ़ी प्राप्त होता रहता है |
मनुष्य ऋण : माता -पिता के अतिरिक्त जिन अन्य मनुष्यों ने हमें प्यार दिया ,दुलार दिया ,हमारा ख्याल रखा ,समय समय पर मदद की |गाय आदि पशुओं का दूध पिया |जिन अनेक मनुष्यों ,पशुओं ,पक्षियों ने हमारी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मदद की ,उनका ऋण भी हमारे ऊपर हो गया |लेकिन लोग आजकल गरीब ,बेबस ,लाचार लोगों की धन संपत्ति हरण करके अपने को ज्यादा गौरवान्वित महसूस करते हैं|इसी कारण देखने में आया है कि ऐसे लोगों का पूरा परिवार जीवन भर नहीं बस पाता है,वंश हीनता ,संतानों का गलत संगति में पड़ जाना,परिवार के सदस्यों का आपस में सामंजस्य न बन पाना ,परिवार कि सदस्यों का किसी असाध्य रोग से ग्रस्त रहना इत्यादि दोष उस परिवार में उत्पन्न हो जाते हैं |ऐसे परिवार को पितृ दोष युक्त या शापित परिवार कहा जाता है| रामायण में श्रवण कुमार के माता -पिता के श्राप के कारण दशरथ केपरिवार को हमेशा कष्ट झेलना पड़ा,ये जग -ज़ाहिर है |इसलिए परिवार कि सर्वोन्नती के पितृ दोषों का निवारण करना बहुत आवश्यक है|

पितृ-दोष कि शांति के उपाय : –

सामान्य उपायों में षोडश पिंड दान ,सर्प पूजा ,ब्राह्मण को गौ -दान ,कन्या -दान,कुआं ,बावड़ी ,तालाब आदि बनवाना ,मंदिर प्रांगण में पीपल ,बड़(बरगद) आदि देव वृक्ष लगवाना एवं विष्णु मन्त्रों का जाप आदि करना,प्रेत श्राप को दूर करने के लिए श्रीमद्द्भागवत का पाठ करना चाहिए |
वेदों और पुराणों में पितरों की संतुष्टि के लिए मंत्र ,स्तोत्र एवं सूक्तों का वर्णन है ,
जिसके नित्य
पठन से किसी भी प्रकार की पितृ बाधा क्यों ना हो ,शांत हो जाती है |
अगर नित्य पठन संभव
ना हो , तो कम से कम प्रत्येक माह की अमावस्या और आश्विन कृष्ण पक्ष
अमावस्या अर्थात
पितृपक्ष में अवश्य करना चाहिए |
वैसे तो कुंडली में किस प्रकार का पितृ दोष है उस पितृ दोष के प्रकार के हिसाब से पितृदोष शांति करवाना अच्छा होता है ,लेकिन कुछ ऐसे सरल सामान्य उपाय भी हैं,
जिनको करने से
पितृदोष शांत हो जाता है ,ये उपाय निम्नलिखित हैं :—-
सामान्य उपाय :
१ .ब्रह्म पुराण (२२०/१४३ )में पितृ गायत्री मंत्र दिया गया है ,इस मंत्र कि प्रतिदिन १ माला या अधिक जाप करने से पितृ दोष में अवश्य लाभ होता है|
मंत्र : देवताभ्यः पित्रभ्यश्च महा योगिभ्य एव च
| नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः || ”
२. मार्कंडेय पुराण (९४/३ -१३ )में वर्णित इस चमत्कारी पितृ स्तोत्र का नियमित पाठ करने से भी पितृ प्रसन्न होकर स्तुतिकर्ता मनोकामना कि पूर्ती करते हैं ———–
पुराणोक्त पितृ -स्तोत्र :
अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा।
तान् नमस्याम्यहं सर्वान् पितृनप्सूदधावपि।।
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा।
द्यावापृथिव्योश्च तथा नमस्यामि कृतांजलिः।।
देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्।
अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येऽहं कृतांजलिः।।
प्रजापतं कश्यपाय सोमाय वरूणाय च।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृतांजलिः।।
नमो गणेभ्यः सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे।।
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम्।।
अग्निरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम्।
अग्निषोममयं विश्वं यत एतदशेषतः।।
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तयः।
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिणः।।
तेभ्योऽखिलेभ्यो योगिभ्यः पितृभ्यो यतमानसः।
नमो नमो नमस्ते मे प्रसीदन्तु स्वधाभुजः।।
अर्थ:
रूचि बोले – जो सबके द्वारा पूजित, अमूर्त, अत्यन्त तेजस्वी, ध्यानी तथा दिव्यदृष्टि सम्पन्न हैं, उन पितरों को मैं सदा नमस्कार करता हूँ।
जो इन्द्र आदि देवताओं, दक्ष, मारीच, सप्तर्षियों तथा दूसरों के भी नेता हैं, कामना की पूर्ति करने वाले उन पितरो को मैं प्रणाम करता हूँ।
जो मनु आदि राजर्षियों, मुनिश्वरों तथा सूर्य और चन्द्रमा के भी नायक हैं, उन समस्त पितरों को मैं जल और समुद्र में भी नमस्कार करता हूँ।
नक्षत्रों, ग्रहों, वायु, अग्नि, आकाश और द्युलोक तथा पृथ्वी के भी जो नेता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।
जो देवर्षियों के जन्मदाता, समस्त लोकों द्वारा वन्दित तथा सदा अक्षय फल के दाता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।
प्रजापति, कश्यप, सोम, वरूण तथा योगेश्वरों के रूप में स्थित पितरों को सदा हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।
सातों लोकों में स्थित सात पितृगणों को नमस्कार है। मैं योगदृष्टिसम्पन्न स्वयम्भू ब्रह्माजी को प्रणाम करता हूँ।
चन्द्रमा के आधार पर प्रतिष्ठित तथा योगमूर्तिधारी पितृगणों को मैं प्रणाम करता हूँ। साथ ही सम्पूर्ण जगत् के पिता सोम को नमस्कार करता हूँ।
अग्निस्वरूप अन्य पितरों को मैं प्रणाम करता हूँ, क्योंकि यह सम्पूर्ण जगत् अग्नि और सोममय है।
जो पितर तेज में स्थित हैं, जो ये चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं तथा जो जगत्स्वरूप एवं ब्रह्मस्वरूप हैं, उन सम्पूर्ण योगी पितरो को मैं एकाग्रचित्त होकर प्रणाम करता हूँ। उन्हें बारम्बार नमस्कार है। वे स्वधाभोजी पितर मुझपर प्रसन्न हों।
विशेष – मार्कण्डेयपुराण में महात्मा रूचि द्वारा की गयी पितरों की यह स्तुति ‘पितृस्तोत्र’ कहलाता है। पितरों की प्रसन्नता की प्राप्ति के लिये इस स्तोत्र का पाठ किया जाता है। इस स्तोत्र की बड़ी महिमा है। श्राद्ध आदि के अवसरों पर ब्राह्मणों के भोजन के समय भी इसका पाठ करने-कराने का विधान है।
३.भगवान भोलेनाथ की तस्वीर या प्रतिमा के समक्ष बैठ कर या घर में ही भगवान भोलेनाथ का ध्यान कर निम्न मंत्र की एक माला नित्य जाप करने से समस्त प्रकार के पितृ- दोष संकट बाधा आदि शांत होकर शुभत्व की प्राप्ति होती है |मंत्र जाप प्रातः या सायंकाल कभी भी कर सकते हैं :
मंत्र : “ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय च धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात |
४.अमावस्या को पितरों के निमित्त पवित्रता पूर्वक बनाया गया भोजन तथा चावल बूरा ,घी एवं एक रोटी गाय को खिलाने से पितृ दोष शांत होता है |
५ . अपने माता -पिता ,बुजुर्गों का सम्मान,सभी स्त्री कुल का आदर /सम्मान करने और उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करते रहने से पितर हमेशा प्रसन्न रहते हैं |
६ . पितृ दोष जनित संतान कष्ट को दूर करने के लिए “हरिवंश पुराण ” का श्रवण करें या स्वयं नियमित रूप से पाठ करें |
७ . प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती या सुन्दर काण्ड का पाठ करने से भी इस दोष में कमी आती है |
८.सूर्य पिता है अतः ताम्बे के लोटे में जल भर कर ,उसमें लाल फूल ,लाल चन्दन का चूरा ,रोली आदि डाल कर सूर्य देव को अर्घ्य देकर ११ बार “ॐ घृणि सूर्याय नमः ” मंत्र का जाप करने से पितरों की प्रसन्नता एवं उनकी ऊर्ध्व गति होती है |
९. अमावस्या वाले दिन अवश्य अपने पूर्वजों के नाम दुग्ध ,चीनी ,सफ़ेद कपडा ,दक्षिणा आदि किसी मंदिर में अथवा किसी योग्य ब्राह्मण को दान करना चाहिए |
१० .पितृ पक्ष में पीपल की परिक्रमा अवश्य करें | अगर १०८ परिक्रमा लगाई जाएँ ,तो पितृ दोष अवश्य दूर होगा |
विशिष्ट उपाय :
१.किसी मंदिर के परिसर में पीपल अथवा बड़ का वृक्ष लगाएं और रोज़ उसमें जल डालें ,उसकी देख -भाल करें ,जैसे-जैसे वृक्ष फलता -फूलता जाएगा,पितृ -दोष दूर होता जाएगा,क्योकि इन वृक्षों पर ही सारे देवी -देवता ,इतर -योनियाँ ,पितर आदि निवास करते हैं |
२. यदि आपने किसी का हक छीना है,या किसी मजबूर व्यक्ति की धन संपत्ति का हरण किया है,तो उसका हक या संपत्ति उसको अवश्य लौटा दें |
३.पितृ दोष से पीड़ित व्यक्ति को किसी भी एक अमावस्या से लेकर दूसरी अमावस्या तक अर्थात एक माह तक किसी पीपल के वृक्ष के नीचे सूर्योदय काल में एक शुद्ध घी का दीपक लगाना चाहिए,ये क्रम टूटना नहीं चाहिए |
एक माह बीतने पर जो अमावस्या आये उस दिन एक प्रयोग और करें :–
इसके लिए किसी देसी गाय या दूध देने वाली गाय का थोडा सा गौ -मूत्र प्राप्त करें|उसे थोड़े एनी जल में मिलकर इस जल को पीपल वृक्ष की जड़ों में डाल दें |इसके बाद पीपल वृक्ष के नीचे ५ अगरबत्ती ,एक नारियल और शुद्ध घी का दीपक लगाकर अपने पूर्वजों से श्रद्धा पूर्वक अपने कल्याण की कामना करें,और घर आकर उसी दिन दोपहर में कुछ गरीबों को भोजन करा दें |ऐसा करने पर पितृ दोष शांत हो जायेगा|
४ .घर में कुआं हो या पीने का पानी रखने की जगह हो ,उस जगह की शुद्धता का विशेष ध्यान रखें,क्योंके ये पितृ स्थान माना जाता है | इसके अलावा पशुओं के लिए पीने का पानी भरवाने तथा प्याऊ लगवाने अथवा आवारा कुत्तों को जलेबी खिलाने से भी पितृ दोष शांत होता है|
५ . अगर पितृ दोष के कारण अत्यधिक परेशानी हो,संतान हानि हो या संतान को कष्ट हो तो किसी शुभ समय अपने पितरों को प्रणाम कर उनसे प्रण होने की प्रार्थना करें और अपने dwara जाने-अनजाने में किये गए अपराध / उपेक्षा के लिए क्षमा याचना करें ,फिर घर में श्रीमदभागवद का यथा विधि पाठ कराएं,इस संकल्प ले साथ की इसका पूर्ण फल पितरों को प्राप्त हो |ऐसा करने से पितर अत्यंत प्रसन्न होते हैं ,क्योंके उनकी मुक्ति का मार्ग आपने प्रशस्त किया होता है|
६. पितृ दोष की शांति हेतु ये उपाय बहुत ही अनुभूत और अचूक फल देने वाला देखा गया है,वोह ये कि- किसी गरीब की कन्या के विवाह में गुप्त रूप से अथवा प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक सहयोग करना |(लेकिन ये सहयोग पूरे दिल से होना चाहिए ,केवल दिखावे या अपनी बढ़ाई कराने के लिए नहीं )|इस से पितर अत्यंत प्रसन्न होते हैं ,क्योंकि इसके परिणाम स्वरुप मिलने वाले पुण्य फल से पितरों को बल और तेज़ मिलता है ,जिस से वह ऊर्ध्व लोकों की ओरगति करते हुए पुण्य लोकों को प्राप्त होते हैं.|
७. अगर किसी विशेष कामना को लेकर किसी परिजन की आत्मा पितृ दोष उत्पन्न करती है तो तो ऐसी स्थिति में मोह को त्याग कर उसकी सदगति के लिए “गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र ” का पाठ करना चाहिए.|
८.पितृ दोष दूर करने का अत्यंत सरल उपाय : इसके लिए सम्बंधित व्यक्ति को अपने घर के वायव्य कोण(N -W )में नित्य सरसों
का तेल में बराबर मात्रा में अगर का तेल मिलाकर दीपक पूरे पितृ पक्ष में नित्य
लगाना चाहिए+दिया पीतल का हो तो ज्यादा अच्छा है ,दीपक कम से कम १०
मिनट नित्य जलना आवश्यक है लाभ प्राप्ति के लिए |
इन उपायों के अतिरिक्त वर्ष की प्रत्येक अमावस्या को दोपहर के समय गूगल की धूनी पूरे घर में सब जगह घुमाएं ,शाम को आंध्र होने के बाद पितरों के निमित्त शुद्ध भोजन बनाकर एक दोने में साड़ी सामग्री रख कर किसी बबूल के वृक्ष अथवा पीपल या बड़ किजद में रख कर आ जाएँ,पीछे मुड़कर न देखें.|नित्य प्रति घर में देसी कपूर जाया करें|ये कुछ ऐसे उपाय हैं,जो सरल भी हैं और प्रभावी भी,और हर कोई सरलता से इन्हें कर पितृ दोषों से मुक्ति पा सकता है|लेकिन किसी भी प्रयोग की सफलता आपकी पितरों के प्रति श्रद्धा के ऊपर निर्बर करती है|आप सदा खुश रहे,सुख समृद्धि में वृद्धि हो,इस कामना के साथ ……….
ज्योतिष शास्त्र में कई प्रकार के दोषों के बारे में बताया गया है। इनमें पितृ दोष भी एक है। पूर्वजों के कार्यों के फलस्वरूप आने वाली पीढ़ी पर पड़ने वाले अशुभ प्रभाव को पितृ दोष कहते हैं।
इस दोष को दूर करने के लिए किसी भी अमावस्या, पूर्णिमा या पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म करने से पितृ तृप्त होकर हमारे जीवन के दुखों को मिटाने में सहयोग करते हैं।
आइए जानते हैं पितृ दोष से मुक्ति के आसान उपाय।
1. पितृ पक्ष में पितृ तर्पण से दोषों की शांति होती है। पितृ श्राद्ध और तर्पन करना जरूरी है।
2. अमावस्या और पूर्णिमा के दिन पितरों के लिए धूप देने से भी पितृ दोष मिटता है। इस दिन गुड़ और घी के मिश्रण से कंडे पर धूप देने से पितरों को तृप्ति मिलती है।
3. सरल भोजन, सादा रहन-सहन, पवित्रता, सत्यभाषी एवं निर्दिष्ट परम्परा के अनुसार रहने से भी पितृदोष मिटता है। ऐसे व्यक्ति को पितर आशीर्वाद देते हैं।
4. प्रतिदिन सुबह और शाम को हनुमान चालीसा या अष्टक पढ़ने से तत्काल ही पितरों की ओर से जारी बाधा दूर हो जाती है।

पित्तृ दोष के अन्य सरल उपाय :-

हर अमावस्याक को कुल खानदान के एक-एक व्यषक्ति से या परिवार में जो भी सदस्यन उपस्थित हो उससे बराबर मात्रा में धन लेकर धर्मस्थाीन की गोलक में दान दें। हर अमावस्यार को ।। ऊँ नम: भगवते वासुदेवाय।। या ।। ऊँ विष्णदवे नम: ।। जपते हुए पीपल का 108 बार परिक्रमा करें।

विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )