MANGAL DOSH KAB BHANG HOTA HAI मंगल दोष कब भंग होता है
जन्मांग चक्र मे मंगल लग्न, द्वितीय , चतुर्थ सप्तम अष्टम एव द्वादश भाव मे स्थित होने पर मंगल दोष होता है। चन्द्र एव शुक्र से भी मगल इस स्थिति मे होने पर मगल दोष निर्मित होता हैं। यदि मंगल दोष दोनों प्रकार से निर्मित हो रहा हो तो उसका प्रभाव भी अघिक होता है। विवाह से पूर्व ही यदि मगल दोष का ध्यान रखकर उसका उपाय कर लिया जाए तो वर कन्या का दाम्पत्य जीवन सुखद रहता हैं। विवाह के समय भी यदि वर कन्या की कुण्डली के मगल का मिलान कर दिया जाए तो उनका दाम्पत्य जीवन सुखद रहता है। शास्त्रो में मंगल दोष होने पर आवश्यक उपायो के साथ मंगल दोष भंग की स्थितियां भी बताई गई हैं। मंगल दोंष भंग की स्थिति जन्मांग चक्र में होंने पर अन्य पाप ग्रहों की स्थिति का भी विश्लेषण करना आवश्यक हो जाता हैं । कई बार ऐसा होता हैं कि जन्मांग चक्र में मंगल दोष भंग होने के बावजुद भी वर कन्या का दाम्पत्य जीवन सुखद नही बनता । उनके दाम्पत्य जीवन में अनेक प्रकार की समस्याएं आती रहती हैं। इन समस्याओ का समय रहते समाधान कर लिया जाए तो दाम्पत्य जीवन टुटने से बचाया जा सकता है । इसके लिए मंगल दोष भंग की स्थितियो को जानना आवश्यक है।
इसके लिए कुछ प्रमुख सुत्र
अजे लग्ने, व्यये चापे , पाताले वृश्चिके स्थिते।
वृषे जाये, घटे रंध्रे, भौम दोषो न विघते ।।
अर्थात मेष का मंगल लग्न , वृश्चिक का चैथे भाव में , वृषभ का सप्तम भाव में एवं कुभ का आठवे व धनु का द्वादश भाव मे होने पर मंगल दोष नही रहता ।
मेंष राशि में मंगल लग्नेश होकर जब लग्न मे ही स्थित होता है तब वह परम योग कारक ग्रह हो जाता है। ऐसी स्थिति मे रूचक योग का निर्माण होता है। जिसके कारण मंगल का पाप प्रभाव कम हो जाता है। इस स्थिति मे यदि मंगल षडबलहीन होकर स्थित हो तो उसका स्वास्य्थ अवश्य कमजोर होगा । जिससे जीवन साथी का पूर्ण सुख प्राप्त नही होगा । चतुर्थ भाव में वृश्चिक राशि में मंगल स्थित होने पर भी रूचक योग बनता है । मंगल अपनी राशि मे स्थित होने से योगकारक बनता है । इस स्थिति मे सिह लग्न होने से मंगल केन्द्र त्रिकोण का स्वामी होकर दाम्पत्य जीवन को सुखद बनाता है । सप्तम भाव में वृषभ राशि मे मंगल लग्नेश होकर स्थित होता है ।इसलिए ऐसी स्थिति मे दाम्पत्य जीवन चलता रहता है ।
अष्टम भाव मे कुंभ राशि मे मंगल पंचमेश एवं दशमेश होकर स्थित होता है । ऐसा कर्क लग्न मे ही धटित होता है । कर्क लग्न मे मंगल नीच राशि मे स्थित होकर भी परम योगकारक होने के कारण मंगल शुभ फल प्रदान करता है । ऐसा मंगल अपनी दोनो राशियो से शुभ स्थित होने के कारण होता है । मंगल कुंभ राशि में स्थित होकर अपनी मेष राशि से ग्यारवहवां एवं वृरिचक राशि से चतुर्थ स्थान पर स्थित होता है ।जिससे मंगल दाम्पत्य जीवन के लिए परेशानी पैदा नही कर पाता
मंगल दोष होने पर दुसरी कुण्डली में भी मंगल दोष होने पर मंगल दोष का प्रभाव कम हो जाता है। जिस प्रकार जहर को जहर काटता हैं। उसी प्रकार मंगल दोष के प्रभाव को दुसरी कुण्डली में उपस्थ्ति मंगल दोष दुर करे तो कोई आश्चर्य नही होना चाहीए
परन्तु मानसागरी में एक श्लोक मिलता हैं जो इस प्रकार है
त्रिषट एकादशे राहु, त्रिषट एकादशे शनि ।
त्रिषट एकादशे भौम:सर्व दोष विनाशकृत ।।
अर्थात तीसरे ,छठे या एकादश भाव में राहु , शनि या मंगल मे से कोई ग्रह स्थित हो तो ऐसी स्थिति सभी प्रकार के दोषो का नाश करती है । उपचय भावो मे पापग्रह स्थित होने पर वे शुभफलदायक बन जाते है।अर्थात मंगल दोष का शमन इस स्थिति में हो जाता है। इस प्रकार यदि वर की कुण्डली में मंगल दोष स्थित हो एवं कन्या की कुण्डली में तृतीय षष्ठ या एकादश भाव में मंगल राहु या शनि हो तो मंगल दोष का निवारण हो जाता है।
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