KAAL SARP YOG KAB BANTA HAI KASHT KARK कालसर्प योग कब बनता हैं कष्टकारक
प्राचीन विद्वानों ने कालसर्प के बारे में कोई विशेष जानकारी तो नहीं दी हैं परन्तु शोध से ज्ञात हुआ हैं की जब राहु और केतु के मध्य सभी गृह आ जाये तब कालसर्प बनता हैं कालसर्प के बारे में विषद व्याख्या तो वही कर सकता हैं जिसने इसका फल भुगता हैं यह योग संतान अवम यश का नाश करता हैं समस्त दुखो अवम रोग का कारन बनता हैं जातक एक ऐसे चक्रव्यूह में फंस जाता हैं की उसे पता ही नहीं चल पता ऐसी स्थितियों में प्रख्यात डॉक्टर भी गच्चा खाकर रोगी का इलाज नही कर पाता जब रोग के बारे में डॉक्टर निश्चित नही कर पाए व्याधि का शमन दवाइयों से नही हो पाए तो समझ लेना चाहिए की रोग कर्मज हैं जिसकी शांति या उपाय कर लेने पर ही राहत मिलती हैं कुछ विशेष कष्टकारक योग ....
१.चन्द्र या सूर्य से राहु आठवे भाव में हो
२.जन्म कुंडली में जातक की योनी सर्प हो
३.जन्मांग में सूर्य ग्रहण या चन्द्र ग्रहण हो
४,कालसर्प योग में राहु आठवे या बारहवे भाव में हो
५.चन्द्र ग्रहण होने पर चन्द्र मन अवम कल्पना का कारक होकर पीड़ित होता हैं तब जातक का मन किसी कार्य में नही लगेगा तो पतन निश्चित हैं सूर्य ग्रहण होने पर जातक आत्मिक रूप से परेशां रहता हैं
६. मंगल राहु का योग होने पर जातक की तर्क शक्ति प्रभावित रहती हैं- ऐसा जातक आलसी भी होता हैं जिससे प्रगति नही कर पता
७.बुध राहु का योग होने पर जड़त्व योग का निर्माण होता हैं यदि बुध कमजोर भी हो तो बोध्धिक कमजोरी के कारन प्रगति नही कर पायेगा
८,कालसर्प दोष में गुरु राहू का योग होने पर चांडाल योग का निर्माण होता हैं गुरु ज्ञान अवम पुण्य का कारक हैं यदि जातक शुभ प्रारब्ध के कारण सक्षम होगा तो अज्ञान अवम पाप प्रभाव के कारण शुभ प्रारब्ध के फल को स्थिर नही रख पायेगा
९.शुक्र राहू योग से अमोत्वक योग का निर्माण होता हैं शुक्र को प्रेम और लक्ष्मी का कारक माना जाता हैं प्रेम में कमी अवम लक्ष्मी की कमी सभी असफलताओ का मूल हैं
१०.शनि राहू योग से नंदी योग बनता हैं शनि राहू दोनों पृथकता करक ग्रह हैं इसीलिए इनका प्रभाव जातक को निराशा की और ले जायेगा
११. कालसर्प योग की स्थिति में केंद्र त्रिकोण में पाप ग्रह स्थित हो
१२. जातक का जन्म गंड मूल में हो ...इन सभी स्थितियों में कालसर्प अति कष्ट दायक बनता हैं
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