Friday, October 29, 2021

KAMAKHYA MANTRA कामाक्षा मन्त्र

KAMAKHYA MANTRA कामाक्षा मन्त्र


कामाक्षा मन्त्र

“ॐ नमः कामाक्षायै ह्रीं क्रीं श्रीं फट् स्वाहा।”

विधि- उक्त मन्त्र का किसी दिन १०८ बार जप कर, ११ बार हवन करें। फिर नित्य एक बार जप करें। इससे सभी प्रकार की सुख-शान्ति होगी।

YOGINI DASHA JAP MANTAR योगिनी दशा जप मंत्र

YOGINI DASHA JAP MANTAR योगिनी दशा जप मंत्र

तंत्र शास्त्र में 64 योगिनियों का जिक्र है और उनकी साधना प्रणाली भी शास्त्रों में मिलती है. इनमे प्रमुख अष्ट योगिनियों का तो तंत्रों में विशेष महत्व है और इनकी अष्ट भैरवों के साथ उपासना की जाती है . तंत्र ज्योतिष में अन्य अष्ट योगिनियों का जिक्र है जिनकी दशा ठीक वैसे ही चलती है जैसे विंशोत्तरी दशा. अष्ट योगिनियों को सत्ताईस नक्षत्रों के अनुसार विभाजित किया गया है और उसी के अनुसार उनकी दशा का निर्धारण किया गया है. योगिनी दशा भोग का एक निश्चित समय निर्धारित है. 

ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों की तरह योगिनी दशाएं भी अपने समय काल में सुख और दुःख का जातक को उनके कर्मानुसार फल देती है. योगिनी दशाओं कि कुल संख्या 8 है. इनमें से कोई सिद्ध दायिनी है, कोई मंगलकारक है, कोई कष्टकारी है, कोई सफलता प्रदायक आदि है. जीवन की सफलता के लिए इनके दशा काल में इनकी साधना साधक के लिए बहुत ही भाग्यशाली सिद्ध होती है. इन योगिनियों के नाम इस प्रकार से हैं : –


मंगला – मंगला देवी की कृपा जिस व्यक्ति पर हो जाती है उसको हर प्रकार के सुखों से सम्पन्न कर देती हैं. यथाभाव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में व्यक्ति का मंगल होता है.

पिंगला – पिंगला देवी की कृपा से सारे विघ्न शांत हो जाते हैं. धन-धान्य और उन्नति के मार्ग प्रशस्त होते हैं.

धान्या – धान्या देवी की कृपा से धन-धान्य की कभी क्षति नहीं होती है.

भ्रामरी – यदि भ्रामरी दशा में देवी की कृपा हो जाए तो शत्रु पक्ष पर विजय, समाज में मान-सम्मान तथा अनेक लाभ के अवसर आने लगते हैं.

भद्रिका – शत्रु का शमन और जीवन में आए समस्त व्यवधान समाप्त होने लगते हैं, यदि देवी की कृपा हो जाए.

उल्का – कार्यों में किसी भी प्रकार से यदि व्यवधान आ रहे हैं और अपनी दशा में उल्का देवी की व्यक्ति पर कृपा हो जाए तो तत्काल व्यक्ति के समस्त कार्यों में गति आने लगती है.

सिद्धा – सिद्धा दशा में परिवार में सुख-शान्ति, कार्य की सिद्धि, यश, धन लाभ आदि में आश्चर्यजनक रूप से फल मिलने लगते हैं. परन्तु यह उस दशा में ही सम्भव है जब देवी की कृपा हो जाए.

संकटा – यथानाम रोग, शोक और संकटों के कारण इस दशा का समय काल व्यक्ति को त्रस्त करता है. संकटों से मुक्ति के लिए मातृ रूप में योगिनी की पूजा करें तो देवी की कृपा होने लगती है.


योगिनी दशाओं को अनुकूल बनाने के लिए यथा भाव, सुविधा और समय निम्न प्रकार से साधना करें.


किसी शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि से पूर्णिमा तक प्रत्येक योगिनी दशा के कारक ग्रह के दिन से सम्बन्धित योगिनी दशा के कारक ग्रह के पांच-पांच हजार मंत्र पूरे कर लें. 

संकटा दशा के कारक ग्रह के लिए रविवार राहु के लिए तथा मंगलवार केतु के लिए चुनें. 

इसी प्रकार मंगला के कारक ग्रह चन्द्रमा के लिए सोमवार, 

पिंगला के लिए रविवार, 

धान्या के कारक ग्रह गुरू के लिए गुरूवार, 

भ्रामरी के मंगल के लिए मंगलवार, 

भद्रिका के ग्रह बुध के लिए बुधवार, 

उल्का के शनि ग्रह के लिए शनिवार 

और सिद्धा के लिए शुक्रवार चुनें.


योगिनी दशाओं का कुल समय काल 1 वर्ष से आरम्भ होकर क्रमशः 2, 3, 4, 5, 6, 7, और 8 वर्षों का होता है। 

जितने वर्ष तक योगिनी दशा का समय जन्मपत्री के अनुसार चल रहा है उतने वर्षों में निरन्तर नहीं तो अपनी समय की सुविधानुसार कुछ-कुछ अन्तराल से योगिनी दशाओं के समय काल में उनके मंत्र जप अवश्य करते रहें। 

साधना वांछित मंत्र जप साधना के लिए पीला आसन तथा गोघृत का दीपक जलाकर बैठें. सम्भव हो तो एक नवग्रह यंत्र अपनी पूजा में ध्यान के लिए स्थापित कर लें. अन्तिम अर्थात् पूर्णिमा को नवग्रह यंत्र अपनी पूजा में स्थाई रूप से स्थापित कर दें. तदन्तर में नित्य एक माला उस योगिनी देवी की करते रहें जिनकी दशा आप भोग रहे हैं.

योगिनियों के जप मंत्र

मंगला –

ऊँ नमों मंगले मंगल कारिणी, मंगल मे कर ते नमः

पिंगला –

ऊँ नमो पिंगले वैरिकारिणी, प्रसीद प्रसीद नमस्तुभ्यं

धान्या –

ऊँ धान्ये मंगलकारिणी, मंगलम मे कुरु ते नमः

भ्रामरी –

ऊँ नमो भ्रामरी जगतानामधीश्वरी भ्रामर्ये नमः

भद्रिका –

ऊँ भद्रिके भद्रं देहि देहि, अभद्रं दूरी कुरु ते नमः

उल्का –

ऊँ उल्के विघ्नाशिनी कल्याणं कुरु ते नमः

सिद्धा –

ऊँ नमो सिद्धे सिद्धिं देहि नमस्तुभ्यं

संकटा –

ऊँ ह्रीं संकटे मम रोगंनाशय स्वाहा।


योगिनी दशा के मंत्र

मंगला - ॐ ह्रीं मङ्गले मङ्गलायै स्वाहा । (जाप सङ्ख्या - १०००)

पिंगला - ॐ ग्लौं पिङ्गले वैरिकारिणी प्रसीद फट् स्वाहा । (जाप सङ्ख्या - २०००)

धान्या - ॐ श्रीं धनदे धान्यै स्वाहा । (जाप सङ्ख्या - ३०००)

भ्रामरी - ॐ भ्रामरि जगतामधीश्वरि भ्रामरि क्लीं स्वाहा । (जाप सङ्ख्या - ४०००)

भद्रिका - ॐ भद्रिके भद्रं देही अभद्रं नाशय स्वाहा । (जाप सङ्ख्या - ५०००)

उल्का - ॐ उल्के मम रोगं नाशय जृम्भय स्वाहा । (जाप सङ्ख्या - ६०००)

सिद्धा - ॐ ह्रीं सिद्धे मे सर्वमानसं साधय स्वाहा । (जाप सङ्ख्या - ७०००)

संकटा - ॐ ह्रीं सङ्कटे मम रोगं नाशय स्वाहा । (जाप सङ्ख्या - ८०००)

विकटा - ॐ नमो भगवति विकटे वीरपालिके प्रसीद, प्रसीद । (जाप सङ्ख्या - ८०००)

NAV GREH BEEJ MANTRA AND JAP नव ग्रह बीज मंत्र और दान

NAV GREH BEEJ MANTRA AND JAP नव ग्रह बीज मंत्र और दान

नौ ग्रह हमारी जिंदगी को प्रभावित करते हैं। जन्म कुंडली में ग्रह शुभ भी होते हैं और अशुभ भी। अगर कुंडली में ग्रह दोष है तो जानकार हमें ग्रहों से संबंधित दान और मंत्र जप का बोलते हैं। यहां प्रस्तुत है नवग्रहों के बीज मंत्र, तांत्रिक मंत्र, जप संख्या और दान संबंधित प्रमुख जानकारी |

जाप नव ग्रह शांति कैसे करें


दशा आरंभ होने पर शुक्ल पक्ष में ग्रह संबधी जो भी पहला वार आये, उस वार से जाप आरंभ करना चाहिए. राहु/केतु का कोई दिन नहीं होता है तो राहु के मंत्र जाप शनिवार से आरंभ करने चाहिए और केतु के जाप मंगलवार से आरंभ करने चाहिए.

जाप के माध्यम से ग्रह (ग्रह) शांति


ग्रह शांति के लिए तांत्रिक मंत्र हैं (सबसे शक्तिशाली और प्रभावी)


1) सूर्य = "ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः" 28000 + 5600 + 560 + 56 + 6 = 34, 222  (35,000)

2) चंद्र = "ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्रमसाय नमः" 44,000 + 8800 +880 + 88 + 9 = 53,777 (54,000)

3) मंगल = "ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः" 40,000 + 8000 +800 + 80 + 8 = 52,888 (53,000)

4) बुध = "'ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम:" 36,000 + 7200 +720 + 72 + 8 = 44,000

5) बृहस्पति = "ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:" 76,000 + 15200 + 1520 + 152 + 16 = 92,888 (93,000)

6) शुक्र = "ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम" 64,000 + 12800 + 1280 + 128 + 13 = 78,221 (79,000)

7) शनि = "ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनेशचार्ये नम:" 92,000 +18400+1840+184+19 = 1,12,443 (1,13,000)

8) राहु = "ॐ भ्रां भ्रीं भ्रों स: राहवे नम:" 72,000 +14400+1440+144+15 = 87,999 (88,000)

9) केतु = "ॐ स्रां स्रीं स्रों स: केतवे नम:" 68,000 + 13600+1360+136+14= 83,110 (84,000)



ग्रहों के लिए लघु तांत्रिक मंत्र हैं (मध्यम रेंज, ज्यादातर यंत्र और प्रसाद में प्रयोग किया जाता है)


(1) सूर्य = " ॐ घृणि: सूर्याय नम:"

(2) चंद्र = "ॐ सों सोमाय नम:"

(3) मंगल = "ॐ अंगारकाय नम:"

(4) बुध = "ॐ बुं बुधाय नमः"

(5) बृहस्पति = "ॐ बृं बृहस्पत्याय नमः"

(6) शुक्र = "ॐ शुं शुक्राय नमः"

(7) शनि = "ॐ शं शनैश्चराय नमः"

(8) राहु = "ॐ रां राहवे नमः"

(9) केतु = "ॐ के केतवे नम:"

सूर्य/रवि


सूर्य तांत्रिक मंत्र- ॐ ह्रां ह्रीं हौं स: सूर्याय नम:।

एकाक्षरी बीज मंत्र- ॐ घृणि: सूर्याय नम:

जप संख्या- 28000 + 5600 + 560 + 56 + 6 = 34, 222  (35,000)

दान- माणिक्य, गेहूं, धेनु, कमल, गुड़, ताम्र, लाल कपड़े, लाल पुष्प, सुवर्ण।


चंद्र/ सोम


सूर्य तांत्रिक मंत्र- 'ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चन्द्रमसे नम:'।

चंद्र एकाक्षरी मंत्र- ॐ सों सोमाय नम:।

जप संख्या- 44,000 + 8800 +880 + 88 + 9 = 53,777 (54,000)

दान- वंशपात्र, तंदुल, कपूर, घी, शंख।


मंगल/भौम


भौम मंत्र- 'ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:'।

भौम एकाक्षरी मंत्र- ॐ ॐ अंगारकाय नम:।

दान- प्रवाह, गेहूं, मसूर, लाल वस्त्र, गुड़, सुवर्ण ताम्र।

वृषभ जप संख्या- 40,000 + 8000 +800 + 80 + 8 = 52,888 (53,000)

बुध


बुध मंत्र- 'ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम:'।

बुध का एकाक्षरी मंत्र- 'ॐ बुं बुधाय नम:'।

जप संख्या- 36,000 + 7200 +720 + 72 + 8 = 44,000

दान- मूंग, हरा वस्त्र, सुवर्ण, कांस्य।


गुरु/बृहस्पति


गुरु मंत्र- 'ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:'।

गुरु का एकाक्षरी मंत्र- 'ॐ ब्रं बृहस्पतये नम:'।

जप संख्या- 76,000 + 15200 + 1520 + 152 + 16 = 92,888 (93,000)

दान- अश्व, शर्करा, हल्दी, पीला वस्त्र, पीतधान्य, पुष्पराग, लवण।



शुक्र


शुक्र मंत्र- 'ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम:'।

शुक्र का एकाक्षरी मंत्र- 'ॐ शुं शुक्राय नम:'।

जप संख्या- 64,000 + 12800 + 1280 + 128 + 13 = 78,221 (79,000)

दान- धेनु, हीरा, रौप्य, सुवर्ण, सुगंध, घी।


शनि


शनि मंत्र- 'ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम:'।

शनि का एकाक्षरी मंत्र- 'ॐ शं शनैश्चराय नम:'

जप संख्या- 92,000 + 18400 + 1840 + 184 + 19  = 1,12,443 (1,13,000)

दान- तिल, तेल, कुलित्‍थ, महिषी, श्याम वस्त्र।


राहु


राहु मंत्र- 'ॐ भ्रां भ्रीं भ्रों स: राहवे नम:'।

राहु का एकाक्षरी मंत्र- 'ॐ रां राहुवे नम:'।

जप संख्या-  72,000 + 14400 +1440 + 144 + 15 = 87,999 (88,000)

दान- गोमेद, अश्व, कृष्णवस्त्र, कम्बल, तिल, तेल, लोहा, अभ्रक।


केतु


केतु का तांत्रिक मंत्र- 'ॐ स्रां स्रीं स्रों स: केतवे नम:'।

केतु का एकाक्षरी मंत्र- 'ॐ के केतवे नम:'।

जप संख्या- 68,000 + 13600 + 1360 + 136 + 14 = 83,110 (84,000)

दान- तिल, कंबल, कस्तूरी, शस्त्र, नीम वस्त्र, तेल, कृष्णपुष्प, छाग, लौहपात्र।


किसी ग्रह/ग्रह का जाप कलियुग में 4 बार करना पड़ सकता है - ऐसा केवल कलियुग में लोगों में शुद्ध रहने की क्षमता की कमी के कारण होता है, अर्थात अनुष्ठान के दौरान पूरी तरह से शुद्ध।


जाप, हवन, तर्पण, मार्जन, ब्राह्मण भोजन की संख्या और प्रक्रिया


हवन = जाप का 1/10 भाग

तर्पण,= हवन का 1/10 भाग

मार्जन, = तर्पण का 1/10 भाग

ब्राह्मण भोजन = मार्जन का 1/10


उदाहरण के लिए:


मंत्र जाप = 100,000 (1,000 माला / माला की माला)

हवन = मंत्र जाप का 10% = 1,00,000 का 10% = 10,000 (100 माला)

तर्पण = हवन का 10% = 10,000 का 10% = 1,000 (10 माला)

मार्जन = तर्पण का 10% = 1,000 का 10% = 100 (1 माला)

ब्राह्मण भोजन = 100 का 10% = 10 ब्राह्मण


यदि हवन, तर्पण, मार्जन नहीं कर सकते  हो तो मन्त्र जाप के बाद तर्पण का संकल्प लेना चाहिए और तर्पण का दो बार जाप करना चाहिए और मार्जन के लिए दो बार जाप करना चाहिए, इस प्रकार वे अंक बन जाते हैं


हवन के बदले जप=2X100=200 माला

तर्पण के बदले जप=2X10=20 माला

मार्जन के बदले जप=2X1=2 माला

ब्राह्मण के स्थान पर जप = 1 माला (यदि 108 से कम हो तो कम से कम 1 माला करें)


विभिन्न ग्रहों के लिए समिधा (लकड़ी की छड़ें)।


(1) सूर्य = आक की लकड़ी

(2) चन्द्र = पलाश की लकड़ी

(3) मंगल = खैर की लकड़ी

(4) बुध = अपामार्ग की लकड़ी

(5) वृहस्पति = पीपल की लकड़ी

(6) शुक्र = गूलर की लकड़ी

(7) शनि = शमी की लकड़ी

(8) राहु = द्रुव

(9) केतु = कुशा


स्वाहा जोड़कर प्रत्येक आहुति के लिए समग्री


तिल (सफ़ेद तिल) = x (यह आप आहुति की संख्या के आधार पर तय करते हैं)

चावल = x 2

यव (जौ) = x 4

चीनी = x 8

गुड़ (गुड़) = x 8

दही (दही या दही) = x 8

घी (स्पष्ट मक्खन) = x 16


अब विशेष रूप से शुक्र ग्रह का उदाहरण लेते हैं।


शुक्र जाप =64,000

आहुति की संख्या "ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम: स्वाहा" कहने की आवश्यकता है = 64,000 का 10% = 6400 (इसका अर्थ है 64 माला


लेकिन व्यावहारिक होने के लिए, मैंने कभी भी इतनी आहुति नहीं डाली क्योंकि यह बहुत महंगा है, हालांकि यह करने के लिए आदर्श चीज है लेकिन यह महंगी है।

जैसे मैं क्या करूँगा, 1000 आहुति = 10 माला बनाओ। (माला = 108 मोतियों की माला), इसलिए मेरे पास 10 माला बची है, इसलिए मैं आदर्श 10 और माला हवन के बदले में 20 माला और करूँगा जो आवश्यक था।


लेकिन सावधान रहें, आपको हवन के संकल्प में यह घोषणा करनी होगी कि आप 1000 आहुति देंगे और फिर शेष आहुति के लिए दोहरा जाप करेंगे।

या आप होम को पूरी तरह छोड़ कर सीधे संकल्प लेकर 64X2 = 128 माला कर सकते हैं।


लेकिन मैं आमतौर पर कम से कम कुछ होम पसंद करता हूं, क्योंकि इसका मतलब है कि आप जो अग्नि को अर्पित कर रहे हैं, वह सूक्ष्म रूप में टूट जाता है और सीधे उस देवता के पास जाता है जिसके लिए आप होम कर रहे हैं।


और आगे होमम के लिए सामग्री के बारे में - मान लीजिए कि आपको 1,000 आहुतियों के लिए होमम करना है।

मान लीजिए इसमें 1600 ग्राम आहुति लगती है (=> x = 1600 ग्राम)


(बहुत मोटा उदाहरण, लेकिन मैं गणना में आसानी के लिए इस संख्या 1600 का उपयोग कर रहा हूं)


(1) तिल = 1600 ग्राम

(2) चावल = 800 ग्राम

(3) यव (जौ) = 400 ग्राम

(4) चीनी = 200 ग्राम

(5) गुड़ = 200 ग्राम

(6) दही (दही या दही) = 200 ग्राम

(7) घी = 100 ग्राम


मिश्रण का कुल वजन = 3500 ग्राम = 3.5 किग्रा


आपको इस मिश्रण के साथ मिश्रण चढ़ाना है ठीक है, आहुति के लिए "मिश्रण"।


याद रखें, तिल राशि को माध्य के रूप में लें।

और सटीक होने के लिए, यदि आप इसके बारे में बहुत वैज्ञानिक होना चाहते हैं, तो आहुति की कुल मात्रा की गणना करें जो आप एक छोटे चम्मच में डाल सकते हैं।

आप जितनी आहुति चाहते हैं, उससे गुणा करें, फिर आपको मिश्रण का कुल वजन मिलेगा जिसकी आपको आवश्यकता है और फिर मात्रा तय करें

विशिष्ट घटक तदनुसार।


याद रखें कि मिश्रण की यह रचना नवग्रह शांति के लिए है, अन्य उद्देश्य के होम के लिए, समिधा (लकड़ी), आहुति की सामग्री और मूल रूप से पूरी प्रक्रिया अलग हो सकती है। तो अगर यह आपका पहला होम है, तो याद रखें कि यह रचना नव ग्रह शांति पर ही लागू होती है।

Tuesday, October 26, 2021

TESTIMONIALS GURU KRIPA SE गुरु कृपा से

TESTIMONIALS GURU KRIPA SE गुरु कृपा से 



मैं 25 साल की आबिदाह खान भोपाल से हूँ, और एक प्राइवेट बैंक में काम करती हूँ, मुझे एक हिन्दू लड़के से प्यार हुआ बाद में धर्म के कारण बात बिगड़ गयी थी, मैं उससे सच्चा प्यार करती हूँ, उसको पाने के लिए मैंने कई मुल्ला मौलवी पीर दरगाह पर मन्नतें मांगी वशीकरण करवाना चाहा, पर उन्होंने मेरा पैसा और इज्जत दोनों का फायदा उठाया, मुझे मेरी दोस्त अमीना ने गुरु जी का नंबर देकर बोला की बहुत खतरनाक हिन्दू अघोरी है, और जायज पैसा लेता है, और काम पक्का करता है, जैसा वो कहे वैसे वैसे करेगी तो तेरा प्यार सर के बल चल कर आएगा, जैसे गुरु जी ने मुझे बताया बोलै करने को मैंने वैसे ही किया और सुनील से शादी किये हुए 5 साल हो गए हैं, हमारे 2 लड़के है, गुरु जी को खुदा सदा सलामत रखे |  



मैं 22 साल की परवीन हूँ, मेरा निकाह 18 साल होते ही हो गया था, और पहले ही साल में मुझे लड़का हो गया, मेरे शोहर मुझे गन्दी गलियां और मरते थे | पड़ोस में ही राजीव गुप्ता नाम का लड़का है वो मुझे मलहम दवाई दे देता था, न जाने मुझे कब उससे प्यार हो गया, पर वो मुझे कभी भी गलत तरिके से न बोलता और न ही देखता, मुझे समझ नहीं आ रहा था की क्या करूँ, मैंने कई इल्म के जानकारों को फोन करके अपने पैसे बर्बाद किये, पर कोई फायदा नहीं हुआ, मुझे वेबसाइट से गुरु जी का नंबर मिला, पर गुरूजी हिन्दू है तो मुझे लगा की वो नहीं कर पाएंगे, फिर भी गुरु जी से मैंने फोन पर बात  बताई, उन्होंने मुझे बहुत समझाया की मैं मुस्लिम शादी शुदा लड़की हूँ, और क्वारे हिन्दू लड़के से शादी करना बहुत मुश्किल होगा, मैंने उनसे कहा की मेरे शोहर से तल्ख करवा कर राजीव से शादी करवा दो, और जो कहोगे वो करुँगी, गुरु जी ने खा जो जैसा कहूंगा करोगी, तो ,मैंने बोला की काम बस होना चाहिए, जैसा गुरु जी बोले मैंने ६ महीने तक किया पहले 2 महीने मैं तलाक हो गया शोहर से, उन्होंने खुद ही दे दिया, ओर अब मैं अपने बेटे अमन के साथ राजीव से शादी कर रह रही हूँ, राजीव बनिया है पर बहुत ही नेक दिल इंसान हैं मेरे बेटे को अपने बेटे जैसा ही प्यार करते हैं और मुझे भी, गुरु जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया मेरी जिंदगी सवार दी आपने  |  



मैं एक मुस्लिम परिवार से आती हूँ और मेरे दो बार निकाह हो चूका है, पर दोनों ही बार तलाख हुआ, मेरी दोनों शादी से 3 लड़कियां और 1 लड़का है, और जिंदगी में मेरा शादी प्यार से विश्वास उठ गया. बहुत मुश्किल से बच्चों को पाल रही थी, जहाँ में रहती थी वहां इंदरदेव रहते थे उनकी बीवी गुजर गयी थी, वो गली में कुछ भी कभी प्रॉब्लम होती तो मेरे साथ खड़े होते थे, कभी कभी मेरे बच्चों के स्कुल की फ़ीस भी दे देते थे, मैं मन में उन्हें चाहती थी, मैंने दरगाह पर जाकर मन्नत भी मांगी और वशीकरण करवाया पर कोई फायदा नहीं हुआ वहां, मेरी लड़की को दौरे पड़ते थे और रात को हम दोनों को बुर गंदे सपने आते थे, बाहर इलाज करवाया पर कुछ हुआ नहीं, मुझे मेरी खाला की बेटी ने गुरु जी के बारे में बताया की बहुत कम पैसे में काम कर देते हैं और बहुत जबरदस्त काम करते है पर वो हिन्दू इल्म के जानकर हैं, मैंने गुरु जी से कांटेक्ट किया उन्होंने मेरी 16  साल की बेटी को 1 महीने में ठीक कर दिया, और फिर मेरा इलाज किया, मेरे ऊपर जो चीजें लगाई हुयी थी उन्हें हटाया, मैंने उनसे इन्दर देव से शादी करने की इच्छा बताई, उन्होंने मेरी योनि पूजा करवाई और सारे बंधन खुलवा दिए, 3  महीने में इन्दर मेरे पास आकर कहने लगे की तेरे बच्चों को भी देखूंगा उनकी शादी करवा दूंगा और तू मुझसे शादी कर ले,  मैं भी यही चाहती थी, अब मैं घर में इन्दर देव और बच्चों के साथ रहती हूँ, इन्दर का काम भी अब बहुत अच्छा चल रहा है, अल्ल्हा गुरु जी को सलामत रखे |




मेरा नाम सुनीता है और होटल में काम करती हूँ, मेरा 2  साल से वीरेंदर से रिलेशन चल रहा था, पर वो शादी के लिए मना करता रहा, मेने पंडित मौलवी पीर बाबा दरगाह सब जगह काम करवाया पर कुछ नहीं हुआ, गुरु जी की FB पर एड देखि और उन्हें फोन किया, गुरु जी ने मेरी और वीरेंदर की फोटो मांगी और बहुत सारी बातें पूछी जिसमे सेक्स की भी बातें पूछी, मुझे अजीब लगा, पर मैंने सब बताई, उन्होंने मुझे योनि पूजा के लिए कहा और उसके बारे में समझाया, फिर मैंने उनके आश्रम जाकर उनसे योनि पूजा करवाई, 11 दिन के अंदर वीरेंदर के मम्मी पापा मेरा घर पर आ कर शादी करने के लिए कह रहे थे, आज मेरी एक बेटी है और हम गुरु जी के आशीर्वाद से सब ठीक से रह रहे हैं |  



मैं मोनिका हूँ और मेरी उम्र 32 साल है 2 बच्चों की माँ हूँ, मेरे पति किन्ही कारन से छोड़ चले गए थे, मै एक फैक्ट्री में काम करती हूँ वहां मुझे सलमान मिला और मुझे सलमान से प्यार हो गया, मेरा उससे संबंध बना और उसने मुझसे वादा किया की वो मुझे और मेरे बच्चों को अपनाएगा, कुछ टाइम अच्छा निकल गया और में सलमान के प्यार में पागल होती गयी, मुझे सलमान के अलावा कुछ भी नहीं सूझता, पर धीरे धीरे सलमान मुझसे दुरी बनाने लगा जब पूछूं तो कोई न कोई बहाना बनता, और मुझसे अपने दोस्तों को मिलवाता और उन्हें खुश करने को कहता, मेरी तबियत भी खराब रहने लगी, बच्चे भी बिगड़ने लगे, और घर में बरकत भी खत्म होने लग पड़ी, रात को नींद नहीं आती और आती तो बुरे गंदे सपने दीखते, मेरी सहेलियों ने मुझे मौलवियों, दरगाह में अपनी प्रॉब्लम बताने को कहा, वहां कोई काम नहीं बना, सब भूखे मेरी इज्जत से खेलने की बात करने लगे, फिर मेरी एक सहेली ने बताया गुरु जी के बारे में की वो अघोरी है और शमसान वाले तांत्रिक है, उसके कहने पे मैं गुरु जी को अपनी प्रॉब्लम बताई, गुरु जी ने मेरा पूरा प्रॉब्लम जानकर सारा कुछ बताया की मुझे सलमान ने कैसे मौलवियों से वशीकरण करवाया था जिससे में उसे तन मन धन सब दे बैठी और वो मुझे नमाज पड़ने के लिए कहता था, गुरु जी ने बताया की मेरे 9 नाडी 72 कोण 10 द्वारों का बंधन हो गया है जिसकी वजह से सब कुछ जीवन में ठप पड़ गया है, गुरु जी ने मुझे कहा की बंधन खोलने होंगे और इसके लिए उन्हें अपनी शक्ति मेरे अंदर प्रवाहित करनी होगी, मैंने उनके कहे अनुसार किया और आज स्वस्थ महसूस करती हूँ, बच्चे पढाई ठीक से कर रहें हैं, और मैं अब सुपरवाइजर हूँ फैक्ट्री में तनख्वा 25000  हो गयी है, सलमान को फैक्ट्री वालों ने निकाल दिया धोखाधड़ी की वजह से, मेरी सहेली ने अगर गुरु जी के बारे में नहीं बताया होता तो पता नहीं मेरा क्या होता, गुरु जी को कोटि कोटि प्रणाम | 



मेरा नाम शबाना है मेरे अब्बू मौलवी हैं, बहुत जानकार है इलम के मैं मुंबई में रहती हूँ, और मैं नौकरी करती हूँ, मेरी अम्मी सौतेली है, वो अपने भाई से मेरा निकाह करवाना चाहती थी और मेरे अब्बू को इसके बदले अच्छी रकम भी मिलनी थी, मेरे मना करने पर मेरी बहुत पिटाई की गयी, जब घर वालों को लगा की पिटाई से भी काम नहीं बनेगा तो उन्होंने पता नहीं कौन सा काले इल्म मुझ पर ही कर दिया, मेरे अबू इस इल्म में माहरत रखते हैं और उनका बहुत नाम है, मैं पागलों जैसी रहने लगी, मुझे खौफ नाक साये दिखाई देते, और हवा आकर मेरे साथ जोर जबरदस्ती करके चली जाती, मेरी सौतेली अम्मी कहती की मैं उनके भाई के साथ निकाह के लिए जब तक राजी नहीं होती तब तक ऐसा ही चलेगा, मेरी मुश्किल यह थी की न तो पैसा था, न किसी मुल्ला मौलवी से मद्त ले सकती थी, क्यूंकि मेरे अब्बू को सब जानते थे और वो खुद यह काम करते हैं, मैंने कोई 25 से 30 हिन्दू पंडित तांत्रिकों को दिखाया बताया सबने हाथ कड़े कर दिए, फिर में उम्मीद खो चुकी थी, पर एक दिन गुरु जी का नंबर गूगल पर दिखा तो मैंने सोचा की एक और कोशिश कर देखती हूँ, गुरु जी ने मेरी सारी बात सुनी, उन्होंने मुझे बताया की मेरा वॉर उल्टा जायेगा और करने वाले की मोत भी हो सकती है, मैं अब्बू से प्यार करती हूँ मैंने गुरु जी को मना किया की मेरे अब्बू मरने नहीं चाहिए, उन्होंने मुझे कामाख्या योनि पूजा करवाई जिससे मेरे सारी दिक्कत खतम हो गयी अब्बू को लकवा हो गया है और सौतेली अम्मी के कूल्हे की हड्डी फिसल कर गिरने से टूट गयी, अब मैं उन्हें छोड़ कर मुंबई में ही अपने दोस्त के साथ रहती हूँ और बहुत जल्दी उससे शादी कर घर बसा लुंगी, गुरु जी आपका सहारा नहीं मिला होता तो मैं कब की मर जाती, आपका बहुत बहुत शुक्रिया | 









मेरा नाम सुमन है मैं दिल्ली में रहती हूँ, और मैं ब्यूटी पार्लर का काम करती हूँ, मेरे पड़ोस के सलमान से प्यार हो गया और फिजिकल रिलेशन करते हुए मैं और सलमान पकडे गए, मेरे पापा ने मुझे घर में बंद कर दिया और कहा की सलमान को वो मार देंगे में राजपूत घर से हूँ, मेरे पापा भाई शादी के लिए नहीं मान रहे थे, मैंने कई लोगों से जिनमे पंडित मुल्ला मौलवी बंगाली सभी तांत्रिकों से काम करवाया पर कुछ नहीं हुआ, पर गुरु जी को मैंने अपना प्रॉब्लम बताया और उन्होने ऑनलाइन वीडयो से  मुझे देख कर पूजा की और 3 दिन के अंदर ही  सलमान से शादी के लिए पापा मान गए, अब मेरी शादी हो गयी है सलमान से, धन्यवाद गुरु जी |


मैं लुधिआना से सिख फॅमिली की हूँ मेरा नाम परमजीत कौर है, बात उन दिनों की है जब मेरी लड़की 12 वर्ष की थी, और एक आवारा से लड़के के जाल में फंस गयी, पिटाई से लेकर सभी रस्ते हमने अपना लिए, पर उसकी दीवानगी पर कोई फर्क नहीं हुआ, हस्बंड भी मेरे कुछ सुनते नहीं है और हम लोग बहुत टाइम से कनाडा सेटल होना चाहते हैं, हमारा 5 लाख रूपये एजेंट ने खा लिए थे, जो न तो काम कर रहा था और न ही पैसे रिटर्न कर रहा था, हमने लड़की और एजेंट के पैसे के चक्कर में पंजाब हरियाणा उत्तरप्रदेश दिल्ली में कोई भी ऐसा  काम करने वाले  मजार पीर मौलवी बंगाली तांत्रिक नहीं छोड़ा गुरदवारे में भी बहुत मन्नते मांगी पर कोई भी काम नहीं बन रहा था, तभी मेरा जाना दिल्ली हुआ अपनी बेहेन के घर तिलक नगर, वहां पर मैंने गुरु जी के बारे  में सुना, मैंने गुरूजी को फोन किया और प्रॉब्लम बताई, गुरूजी ने मिलने को कहा, गुरु जी ने बताया की किस तरह से मेरा घर कुछ लोगों ने बाँध दिया है और मेरी बेटी पर भी करवा दिया है जिससे वो किसी की कुछ नहीं सुनती है, और हम अब परेशान है, गुरु जी ने मेरे तिल मस्से चोट निशान के हिसाब से कुछ बातें बताई जो मुझे नहीं पता था, उन्होंने मुझसे कहा की मेरी योनि पूजा होगी, जिससे लड़की और हस्बेंड भी मेरे वश में होकर मेरा कहा मानेंगे और जो भी बंधन हैं वो खुल जायेंगे, गुरु जी से मैंने योनि पूजा करवाई और लुधिआना चली गयी, मेरी लड़की की उस आवारा लड़के से फोन पर लड़ाई हो गयी और वो खुद कहने लगी हमसे की इस लड़के से वो अब नफरत करती है और उसके पुलिस में शिकायत दर्ज करवा दो, एजेंट ने खुद घर आकर 5  लाख वापिस कर दिए, हस्बंड मेरा और बच्चों का पहले से ज्यादा ख्याल रखते हैं, थैंक्यू गुरु जी आपने हमारी जिंदगी सवार दी |





























Thursday, October 21, 2021

LOVE MARRIAGE AND ASTROLOGY प्रेम विवाह और ज्योतिष

LOVE MARRIAGE AND ASTROLOGY प्रेम विवाह और ज्योतिष

पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव के कारण आज हमारे देश में भी प्रेम विवाह करने वालो की संख्या बढती जा रही हैं |आज युवावस्था में प्रवेश करते ही अभिभावकों का चिंतित होना वाजिब हैं क्योकि यह इश्क का रोग कब उनके लाडले या लाडली को सपेट में ले उन्हें पता ही नहीं चलता जब बात बढ़ जाती हैं  तभी उन्हें पता चलता हैं पर उस समय वे क्या कर सकते हैं सिवाय परेशान होने के , तो कई बार युवक युवती चाहकर भी प्रेम विवाह नहीं कर पाते आखिर ऐसा क्यों होता हैं इसके बारे में ज्योतिष शास्त्र द्वारा कुछ जानकारी प्राप्त करने की कोशिश करते हैं 

आज विश्व में चारो और योग की चर्चा हो रही हैं इसके संपर्क में आने वाला प्रत्येक व्यक्ति इसे अपनाता हैं ताकि जीवन में उसे आत्म संतुष्टि मिल सके इसी योग का ही एक स्वरूप प्रेम हैं| भगवद प्राप्ति के लिए भी प्रेम आवश्यक हैं, 

इस बारे में कहा गया हैं -

मिलही न रघुपति बिन अनुरागा |

किये जोग तप ज्ञान विरागा || 

अर्थात योग ,तप ज्ञान और वैराग्य में भी यदि प्रेम का पुट नहीं हो तो भगवद प्राप्ति नहीं होती प्रेम का जब प्रथम बार जब हृदय में प्रवेश होता हैं तो प्रत्येक जीव आहत हो जाता हैं अपने प्रेमी के दर्शन नहीं होने पर वह व्याकुल हो जाता हैं| आइये ज्योतिष के अनुसार प्रेम और प्रेम विवाह के बारे में जानकारी प्राप्त करे -

किसी जातक की कुंडली में पंचम भाव को प्रेम का भाव माना जाता हैं| सप्तम भाव विवाह का भाव हैं पुरुष जातक के लिए शुक्र विवाह का कारक ग्रह हैं तो स्त्री जातक के लिए गुरु विवाह का कारक ग्रह हैं शुक्र को प्रेम का कारक ग्रह भी माना जाता हैं |इस प्रकार पंचमेश और शुक्र प्रेम के कारक ग्रह होते हैं जब ये दोनों ग्रह कमजोर होते हैं तो जातक में विलासिता की भावना बढ़ जाती हैं इस पर यदि रहू और शुक्र का प्रभाव भी आ जाये तो ऐसा जातक प्रेम करने के लिए परेशान हो जाता हैं |उसका अपने मन पर कोई नियंत्रण नहीं होता यदि ये दोनों ग्रह चर राशी में भी हो तो जातक अपने और अपनी परिवार की इज्जत के बारे में भी नहीं सोचता ऐसा जातक शिथिल चरित्र का होता हैं यदि पंचमेश और शुक्र पर सूर्य और गुरु का शुभ प्रभाव हो तो जातक में प्यार की इच्छा रहती हैं पर उस पर सही निर्णय  भी लेने की क्षमता रखता हैं |

कब होता हैं प्रेम विवाह ............

१..पंचमेश और सप्तमेश का युति दृष्टि सम्बन्ध हो 

२.सप्तमेश और एकादशेश  का सम्बन्ध हो 

३..सप्तमेश और पंचमेश पर राहू का प्रभाव हो 

४ नवमेश और विवाह कारक का सम्बन्ध हो 

५.मंगल और शुक्र पर सप्तमेश का प्रभाव हो 

६.तीसरे भावेश     और सप्तमेश का शुक्र पर प्रभाव हो 

७.लग्नेश बलि होकर सप्तमेश और पंचमेश से सम्बन्ध बनाये 

८..योगकारक ग्रहों की दशा अंतर दशा हो 

९.लाभेश और विवाह कारक युति कर स्थित हो तो ऐसी स्थितियों में जातक का प्रेम विवाह हो जाता हैं यदि आपके गुण भी २० से अधिक मिल रहे हैं तो शादी की सम्भावना बढ़ जाती हैं |  यदि  जो ग्रह प्रेम विवाह में समस्या दे रहे उनका उपाय  और कुछ वशीकरण मंत्रो का जप भी कर लिया जाये तो प्रेम विवाह में सहायक होता हैं यदि आप भी किसी को दिलोजान से चाहते हैं तो फिर किसी ज्योतिषी का परामर्श आपको खुशिया दे सकता हैं |

SHANI SHANTI KE UPAY शनि शांति के उपाय

SHANI SHANTI KE UPAY शनि शांति के उपाय

 

आजकल आम जातक भी शनि से भयभीत हैं कई बार ऐसा होता हैं की शनि दोषी नहीं होने पर भी यदि उसे कोई शनि दोष के बारे में बता देता हैं तो वह परेशान हो जाता हैं परन्तु शनि  जितना अशुभ माना जाता हैं  उतना ही वह शुभ भी हो सकता हैं कोई भी ग्रह कभी शुभ या अशुभ नहीं होता वह अपनी अपनी जन्मांग स्थिति के अनुसार शुभ और अशुभ बनता हैं यदि शनि जन्मांग में शुभ हैं परन्तु निर्बल हैं तो उसका शुभ फल प्राप्त नही होता और नहीं अशुभ फल मिलता हैं   परन्तु शनि जन्मांग में अशुभ होने पर जातक को अधिक परेशान करता हैं ऐसी स्थिति में शनि की शांति के उपाय करना चाहिए .........

१..शनि निर्बल होकर जब अशुभ फल दे तो लोहे की वस्तुओ, काले तिल, उड़द, तेल, चमड़े से बनी वस्तु, काला कम्बल, काला कपडा , काला छाता कुल्थी जूते अदि का दान किसी योग्य  गरीब या ब्राह्मण को देना चाहिए |

२..जब शनि अशुभ हो तो मजदूरो को उनकी मजदूरी अवश्य दे उनसे बेगार कभी नहीं ले |

३..किसी विकलांग की सेवा और उसको कोई उपयोगी वस्तु दे |

४शनि दोष निवारण के लिए किसी शुभ शनिवार से प्रारंभ कर १०० ग्राम तेल में २५० ग्राम गुड डालकर बुलबुले उठने तक गर्म करे फिर उसे निचे उतारकर उसमे अपनी छाया देखे फिर उसे रोटी पर रखकर किसी काली गाय या काले कुते को खिलाये |

५..शनिवार के दिन जब शुभ योग बन रहा हो तब तेल में पुड़ी तलकर बनाये फिर काले बैंगन की उसी बचे तेल से सब्जी बनाये सब्जी को पुड़ी पर रखकर पैकेट बनाये इस प्रकार पैकेट बनाकर भिखारी या किसी असहाय व्यक्ति को खाने को दे ऐसा आप २१ शनिवार करे तो आपको अवश्य राहत प्राप्त होगीं |

६..शनिवार के दिन से प्रारंभ कर तेल का दीपक जलाकर शनि मंत्र ॐ प्राम प्रिम प्रौम सः  शनये नमः  का जप करे तो राहत मिलेगी |

७..शनिवार को उड़द की दाल के बड़े बनाकर कौओ  को खिलाने पर शनि दोष कम होता हैं |

८..शनिवार को हनुमान चालीसा बजरंग बाण का पाठ करने पर भी राहत मिलती हैं |

९..शनिवार को सूर्यास्त के पश्चात् एक तेल का दीपक काला धागा बड़ा और जल लेकर पीपल के पेड़ की परिक्रमा   करते हुए सात बार धागा लपेटे इस समय शनि देव का स्मरण करते रहे फिर जल चढ़ाकर दीपक जलाते हुए शनि देव से प्रार्थना करे की मुझ पर कृपा करे और मेरी समस्याए कम हो जाये ऐसा करने पर भी राहत मिलती हैं 

१०..काले सुरमे को सर पर से सात बार उतारकर जमीं में दबाने पर भी राहत मिलती हैं आप भी यदि शनि पीड़ा के कारण परेशान हैं तो इनमे से कोई उपाय अपनी सुविधा के अनुसार करे तो अवश्य शनि देव की कृपा प्राप्त होगी  

MANGLIK DOSH AND SANTAN SUKH मंगली दोष एंव संतान सुख

MANGLIK DOSH AND SANTAN SUKH मंगली दोष एंव संतान सुख


जिस प्रकार कोई ग्रह शुभ अवश्था मे स्थित होने पर जीवन मे शुभता लाता है। उसी प्रकार कोई ग्रह अशुभ होने पर पीडाकारक भी बनता है। मंगल को पापग्रह माना जाता है। यह   आक्समिकता का कारक ग्रह माना जाता है। जन्मंाग चक्र मे मंगल भाव विशेष मे स्थित होने पर मंगली दोष बनता है। मंगली दोष होने पर आमजन एव ज्योतिषि दाम्पत्य जीवन के लिए कष्टकारी मानते है। कोई भी पापग्रह जब किसी ग्रह या भाव  को पीडित करता है। तो उस ग्रह  या भाव सम्बंधी शुभफलो का नाश होता है। इसी प्रकार यदि मंगल दोष कि स्थिति मे संतान कारक ग्रह या भाव  भी मंगल से पीडित हो तो जातक को संतान सुख कमजोर रहता है।

मंगल को गर्भपात का कारक ग्रह माना जाता है। इसलिए मंगली दोष कि कुछ विशेष स्थिति मे गर्भपात के कारण संतान सुख नही मिल पाता । जब मंगली दोष द्वितिय या अष्टम भाव के कारक बन रहा हो तो ऐसे दम्पतियो को गर्भपात के कारण  विशेष परेशानी होती है। कई बार ऐसा भी देखा गया है। कि मंगली दोष कि स्थिति चिकित्सकिय उपचार के उपरांत भी संतान सुख मे परेशानी देती है। ऐसा भी नही होता कि मंगली दोष कि यह स्थिति गर्भपात करवाएगी । संभव है। जब शुभ ग्रह कि दशा मे शुभ ग्रह कि अन्तर्दशा हो तो गर्भपात कि स्थिति नही बनती । ऐसे समय मे कुछ परेशानी रहती है। वर्तमान समय मे किसी विशेष समस्या के लिए किसी विशेष ग्रह को ही उतर दायी मानते है। जब गर्भपात कि समस्या आए तो मंगल को उतर दायी न मानकर ग्रहो के  योग अवयोग कि जानकारी प्राप्त कर वैदिक उपायो के साथ चिकित्सकीय उपचार करना चाहिए ।

मंगल को रक्त का कारक ग्रह माना जाता है। जब किसी गर्भवती महिला को रक्त कि कमी के कारक संतान सुख मे बाधा आ रही हो तो मंगल कि स्थिति का अवलोकन अवश्य करे। मंगल के निर्बल होकर स्थित होने पर जातक को रक्त कि कमी रहती है। जब ऐसी महिला जातक गर्भवती होती है। तो उसका रक्त कम होने लगता है। रक्त कि कमी के कारण महिला एव बच्चे दोनो को परेशानी उठानी पडती है। जब प्रसव काल का समय आता है। तो ऐसे समय मे इन्हे विशेष सावधानी बरतनी चाहिए।मंगली दोष के कारण जरुरी नही है। कि संतान सुख मे परेशानी आए।

मंगल जब रोग का कारण बनकर उपस्थित होता है। तो इन्हे गुप्त रोगो के कारण परेशानी उठानी पडती है। गुप्त रोगो के कारण जब संतान सुख मे बाधा उत्पन्न होती है। तो मंगल एव शुक्र ग्रह कि स्थिति अच्छी नहि कही जा सकती । संभव है। कि अकेला पीडित शुक्र या मंगल इस प्रकार कि समस्या उत्पन्न कर रहा हो । जब गुप्तांगो से किसी कारणवश स्क्त स्त्राव हो रहा हो तो ऐसी स्थिति मे मंगल पीडित होता है। मंगली दोष होने पर भी इस प्रकार कि स्थिति  पैदा होती है। अतः दम्पति को मंगली दोष के उपचार के साथ अन्य सावधानियाॅ भी बरतनी चाहिए। जिससे दम्पति को संतान सुख कि प्राप्ति सुगम हो सकें ।

वर्तमान मे सिजेरियन द्वारा संतान को जन्म देना बढता जा रहा है। प्राचीन काल मे सिजेरियन सुविधा नही होने पर प्रसव काल मे प्रसुता कि मूत्यु अधिक होती थी लेकिन सिजेरियन के कारण यह समस्या कम हो गई । कई बार यह भी देखा गया है। कि चिकित्सक पैसो कि खतिर तो कुछ आधुनिक महिला शारीरिक कारणो से सिजेरियन को उचित मनती है। सिजेरियन प्रसव कि स्थिति मंगल एव केतु ग्रह कि प्रतिकुलता का कारण है। कुजवत केतु, होने से जब यह संतान सुख कारण भाव पर अपना प्रभाव डालता है। तो सिजेरियन प्रसव होता है। जब मंगल एव केतु का प्रभाव पंचम एव अष्टम भाव पर होता है। तब यह समस्या अधिक आती है। इसलिए प्रसव काल से पूर्व ही वैदिक उपाय करना समझदारी कही जा सकती है।

MANGAL DOSH KAB BHANG HOTA HAI मंगल दोष कब भंग होता है

 MANGAL DOSH KAB BHANG HOTA HAI मंगल दोष कब भंग होता है

जन्मांग चक्र मे मंगल लग्न, द्वितीय , चतुर्थ सप्तम अष्टम एव द्वादश भाव मे स्थित होने पर मंगल दोष होता है। चन्द्र एव शुक्र से भी मगल इस स्थिति मे होने पर मगल दोष निर्मित होता हैं। यदि मंगल दोष दोनों प्रकार से निर्मित हो रहा हो तो उसका प्रभाव भी अघिक होता है। विवाह से पूर्व ही यदि मगल दोष का ध्यान रखकर उसका उपाय कर लिया जाए तो वर कन्या का दाम्पत्य जीवन सुखद रहता हैं। विवाह के समय भी यदि वर कन्या की कुण्डली के मगल का मिलान कर दिया जाए तो उनका दाम्पत्य जीवन सुखद रहता है। शास्त्रो में मंगल दोष होने पर आवश्यक उपायो के साथ मंगल दोष भंग की स्थितियां भी बताई गई हैं। मंगल दोंष भंग की स्थिति जन्मांग चक्र में होंने पर अन्य पाप ग्रहों की स्थिति का भी विश्लेषण करना आवश्यक हो जाता हैं । कई बार ऐसा होता हैं कि जन्मांग चक्र में मंगल दोष भंग होने के बावजुद भी वर कन्या का दाम्पत्य जीवन सुखद नही बनता । उनके दाम्पत्य जीवन में अनेक प्रकार की समस्याएं आती रहती हैं। इन समस्याओ का समय रहते समाधान कर लिया जाए तो दाम्पत्य जीवन टुटने से बचाया जा सकता है । इसके लिए मंगल दोष भंग की स्थितियो को जानना आवश्यक है।

इसके लिए कुछ प्रमुख सुत्र 

अजे लग्ने, व्यये चापे , पाताले वृश्चिके स्थिते।

वृषे जाये, घटे रंध्रे, भौम दोषो न विघते ।।

अर्थात मेष का मंगल लग्न , वृश्चिक का चैथे भाव में , वृषभ का सप्तम भाव में एवं कुभ का आठवे व धनु का द्वादश भाव मे होने पर मंगल दोष नही रहता ।

मेंष राशि में मंगल लग्नेश होकर जब लग्न मे ही स्थित होता है तब वह परम योग कारक ग्रह हो जाता है। ऐसी स्थिति मे रूचक योग का निर्माण होता है। जिसके कारण मंगल का पाप प्रभाव कम हो जाता है। इस स्थिति मे यदि मंगल षडबलहीन होकर स्थित हो तो उसका स्वास्य्थ अवश्य कमजोर होगा । जिससे जीवन साथी का पूर्ण सुख प्राप्त नही होगा । चतुर्थ भाव में वृश्चिक राशि में मंगल स्थित होने पर भी रूचक योग बनता है । मंगल अपनी राशि मे स्थित होने से योगकारक बनता है । इस स्थिति मे सिह लग्न होने से मंगल केन्द्र त्रिकोण का स्वामी होकर दाम्पत्य जीवन को सुखद बनाता है । सप्तम भाव में वृषभ राशि मे मंगल लग्नेश होकर स्थित होता है ।इसलिए ऐसी स्थिति मे दाम्पत्य जीवन चलता रहता है ।

अष्टम भाव मे कुंभ राशि मे मंगल पंचमेश एवं दशमेश होकर स्थित होता है । ऐसा कर्क लग्न मे ही धटित होता है । कर्क लग्न मे मंगल नीच राशि मे स्थित होकर भी परम योगकारक होने के कारण मंगल शुभ फल प्रदान करता है । ऐसा मंगल अपनी दोनो राशियो से शुभ स्थित होने के कारण होता है । मंगल कुंभ राशि में स्थित होकर अपनी मेष राशि से ग्यारवहवां एवं वृरिचक राशि से चतुर्थ स्थान पर स्थित होता है ।जिससे मंगल दाम्पत्य जीवन के लिए परेशानी पैदा नही कर पाता 

मंगल दोष होने पर दुसरी कुण्डली में भी मंगल दोष होने पर मंगल दोष का प्रभाव कम हो जाता है। जिस प्रकार जहर को जहर काटता हैं। उसी प्रकार मंगल दोष के प्रभाव को दुसरी कुण्डली में उपस्थ्ति मंगल दोष दुर करे तो कोई आश्चर्य नही होना चाहीए 

परन्तु मानसागरी में एक श्लोक मिलता हैं जो इस प्रकार है 

त्रिषट एकादशे राहु, त्रिषट एकादशे शनि । 

त्रिषट एकादशे भौम:सर्व दोष विनाशकृत ।। 

अर्थात तीसरे ,छठे या एकादश भाव में राहु , शनि या मंगल मे से कोई ग्रह स्थित हो तो ऐसी स्थिति सभी प्रकार के दोषो का नाश करती है । उपचय भावो मे पापग्रह स्थित होने पर वे शुभफलदायक बन जाते है।अर्थात मंगल दोष का शमन इस स्थिति में हो जाता है। इस प्रकार यदि वर की कुण्डली में मंगल दोष स्थित हो एवं कन्या की कुण्डली में तृतीय षष्ठ या एकादश भाव में मंगल राहु या शनि हो तो मंगल दोष का निवारण हो जाता है।

KAAL SARP YOG KAB BANTA HAI KASHT KARK कालसर्प योग कब बनता हैं कष्टकारक

KAAL SARP YOG KAB BANTA HAI KASHT KARK कालसर्प योग कब बनता हैं कष्टकारक


 प्राचीन विद्वानों ने कालसर्प के बारे में कोई विशेष जानकारी तो नहीं दी हैं परन्तु शोध से ज्ञात हुआ हैं की जब राहु और केतु के मध्य सभी गृह आ जाये तब कालसर्प बनता हैं कालसर्प के बारे में विषद व्याख्या तो वही कर सकता हैं जिसने इसका फल भुगता हैं यह योग संतान अवम यश का नाश करता हैं समस्त दुखो अवम रोग का कारन बनता हैं जातक एक ऐसे चक्रव्यूह में फंस जाता हैं की उसे पता ही नहीं चल पता ऐसी स्थितियों में प्रख्यात डॉक्टर भी गच्चा खाकर रोगी का इलाज नही कर पाता जब रोग के बारे में डॉक्टर निश्चित नही कर पाए व्याधि का शमन दवाइयों से नही हो पाए तो समझ लेना चाहिए की रोग कर्मज   हैं जिसकी शांति या उपाय कर लेने पर  ही राहत  मिलती हैं कुछ विशेष कष्टकारक योग ....

१.चन्द्र या सूर्य से राहु  आठवे भाव में हो 

२.जन्म कुंडली में जातक की योनी सर्प हो 

३.जन्मांग में सूर्य ग्रहण या चन्द्र ग्रहण हो 

४,कालसर्प योग में राहु आठवे या बारहवे भाव में हो 

५.चन्द्र ग्रहण होने पर चन्द्र मन अवम कल्पना का कारक   होकर पीड़ित होता हैं तब जातक का मन किसी कार्य में नही लगेगा तो पतन निश्चित हैं सूर्य ग्रहण होने पर जातक आत्मिक रूप से परेशां रहता हैं 

६. मंगल राहु का योग होने पर जातक की तर्क शक्ति प्रभावित रहती हैं- ऐसा जातक आलसी भी होता हैं जिससे प्रगति नही कर पता 

७.बुध राहु का योग होने पर जड़त्व योग का निर्माण होता हैं यदि बुध कमजोर भी हो तो बोध्धिक कमजोरी के कारन प्रगति  नही कर पायेगा 

८,कालसर्प दोष में गुरु राहू का योग होने पर चांडाल योग का निर्माण होता हैं गुरु ज्ञान अवम पुण्य का कारक हैं यदि जातक शुभ प्रारब्ध के कारण सक्षम होगा तो अज्ञान अवम पाप प्रभाव के कारण शुभ प्रारब्ध के फल को स्थिर नही रख पायेगा 

९.शुक्र राहू योग से अमोत्वक योग का निर्माण होता हैं शुक्र को प्रेम और लक्ष्मी का कारक माना जाता हैं प्रेम में कमी अवम लक्ष्मी की कमी सभी असफलताओ का मूल हैं 

१०.शनि राहू योग से नंदी योग बनता हैं शनि राहू दोनों पृथकता करक ग्रह हैं इसीलिए इनका प्रभाव जातक को निराशा की और ले जायेगा 

११. कालसर्प योग की स्थिति में केंद्र त्रिकोण में पाप ग्रह स्थित हो 

१२. जातक का जन्म गंड मूल में हो ...इन सभी स्थितियों में कालसर्प अति कष्ट दायक बनता हैं 

ISHT DEV KRIPA ईष्ट देव कृपा

ISHT DEV KRIPA ईष्ट देव कृपा

ईष्ट कृपा से प्राप्त होती है सुख शांति एवं समृद्धि

 
भारतीय संस्कृति में पूजा पाठ का विशेष महत्व है। प्रत्येक व्यक्ति चाहे वो आस्तिक हो या नास्तिक, परेशानियो के समय तो किसी देव की स्तुति प्रारंभ कर ही देता है। लेकिन फल कुछ ही लोगों को प्राप्त होता है। कई बार यह देखने में आता है। कि व्यक्ति प्रतिदिन 2,3 घंटे पूजा करता है। फिर भी उसे वह मान सम्मान नही मल पाता जो 10.15 मिनट पूजा करने वाले किसी व्यक्ति को सहज ही प्राप्त हो जाता है। इसका कारण व्यक्ति द्वारा ईष्ट देव का निर्णय सोच समझ कर नही किया गया है। प्रकृति भी कई बार संकेतों द्वारा किसी ईष्ट देव की पूजा करने हेतु जागृत करती है। फिर भी ऐसा अवसर हर किसी को प्राप्त नही होता। यदि प्राप्त हो भी जाता है तो भुल हो जाती है। अतः अपने ईष्ट निर्णय हेतु हम आपको उपर्युक्त मार्गदर्शन दे रहे है। जिससे आपको ईष्ट निर्णय एवं उनकी उपासना में कोई गलती न हो एवं आपको सुख शांति भी प्राप्त हो सके।

जन्म कुण्डली में लग्न एवं लग्नेश पर जिस ग्रह का सर्वाधिक प्रभाव है। उसी से व्यक्ति का तत्व निर्धारित होता है। हमारा शरीर पंचमहाभुतो से विचित्र संयोजन द्वारा निर्मित हैं। व्यक्ति पृथ्वी तत्व से प्रभावित हो तो शिव की अग्नि तत्व से प्रभावित हो तो दुर्गा या शक्ति की वायु तत्व से प्रभावित होने पर विष्णु की जल तत्वसे प्रभावित होने पर गणेश जी की एवं आकाश तत्व से प्रभावित होने पर विष्णु आराधना लाभदायक रहती है।

पंचम भाव में सूर्य स्थित होने पर सूर्य आराधना या शिव उपासना, चंद स्थित  होने पर किसी देवी की या शिव उपासना, मंगल स्थित होने पर हनुमान जी या कार्तिकेय की आराधना, बुध स्थित होने पर गणपति या विष्णु उपासना वृहस्पति स्थित  होने पर सूर्य शुक्र  स्थित होने पर लक्ष्मी उपासना, शनि स्थित  होने पर हनुमान जी एवं भैरव उपासना राहु स्थित  होने पर सरस्वती उपासना एवं केतु  स्थित होने पर गणपति उपासना आपके लिए फलदायक रहती हैं।

अपनी राशि के अनुसार भी ईष्ट उपासना करने पर आपको सुख शांति एवं समृद्धि अवश्य प्राप्त होती है। यदि आपकी राशि मेष या वृश्चिक है तो आपके ईष्ट देव हनुमान जी होंगें। इसलिए आपको हनुमान जी की उपासना लाभदायक रहेगी। 

आपकी राशि वृषभ या तुला हो तो लक्ष्मी जी की, 
मिथुन या कन्या हो तो गणेश जी की, 
कर्क राशि हो तो किसी देवी की , 
सिंह राशि हो तो  सूर्य की उपासना, 
धनु या मीन राशि हो तो विष्णु , 
मकर या कुंभ राशि हो तो भैरव उपासना करनी चाहिए।

यदि आपकी जन्म पत्रिका में पचंम भाव कोई ग्रह नही हैं, तो आप देखे की पचंम भाव पर किसी ग्रह कि दृष्टि हैं।  पंचमेश पर किसी ग्रह कि दृष्टि हैं। इन दोनों दृष्टिकारक ग्रहों में से बलवान ग्रह के आधार पर ईष्ट का निर्णय करें यदि पंचम भाव एवं पंचमेश  पर कई ग्रहों की दृष्टि हैं, तो दोनो पर कौनसा ग्रह दृष्टि कर रहा है। उसमे से बलवान ग्रह कौनसा है। उसी के  आधार पर अपना ईष्ट देव जाने।

यदि पंचम भाव एवं पंचमेश   पर किसी ग्रह की दृष्टि नही है। तो आप पंचम भाव एवं पंचमेश  मे से कौनसा बली है। यदि भाव बली है तो उसके तत्व के आधार पर एवं पंचमेश बली हो तो ग्रह के अनुसार ईष्ट निर्णय करें।

यदि आपके पास जन्म पत्रिेका नही है। तो आप जिस देव कि सर्वाधिक पूजा अर्चना करने की चाहत रखते है। जिस देवी देवता के मंदिर के सामने जाते ही आपका मन श्रद्धा से झुक जाता है। आपको लगता है की अमुक देवी देवता की उपासना करने पर मुझे सुकुन मिलता है। तो आपके ईष्ट देव वही है। आप चाहे तो इनकी पूजा नित्य प्रति करें। आपको परिणाम भी उतम प्राप्त होगा।

आपके जो ईष्ट देव है उनकी विशेष पूजा साल में एक बार अवश्य करे। उनको पूजा पाठ में जितना संभव हो व्यवस्था करे। पूजा करते समय पूर्ण श्रद्धा एवं भक्ति भाव बनाए रखें।

आप अपने ईष्ट की पूजा उपासना करते समय प्रतिदिन उनके विशेष स्त्रोत या चालिसा का पाठ अवश्य करे। यदि प्रतिदिन संभव न हो तो महिने मे उनके लिए निर्धारित तिथि या वार विशेष के दिन इसका पाठ अवश्य करे। अपने ईष्ट का यदि कोई प्रतिकात्मक यंत्र हो तो उसे भी आप अवश्य धारण करें।

JANAMKALIN ASHUBH YOG PIDA AUR NIVARN जन्मकालीन अशुभ योग पीड़ा व निवारण

JANAMKALIN ASHUBH YOG PIDA AUR NIVARN जन्मकालीन अशुभ योग पीड़ा व निवारण


जन्मकालीन अशुभ योग पीड़ा व निवारण

पूर्व जन्म मे किए गये पूण्य व पापो का फल मनुष्य को निश्चयात्मक रूप से भोगना पडता हैं। लग्न कुंडली व अन्य पंचांग के जन्मगत योग केवल जातक के शुभाशुभ कर्मोंका मात्र संकेत है। इन कर्माे को तीन भागो में विभक्त किया गया है। संचित, प्रारब्ध और क्रियामाण। जन्मजन्मांतर की इस यात्रा मे वर्तमान जन्म तक किया गया कर्म संचित हैं जिसे एक साथ भोगना असंभव है। इन संचित कर्मा मे से जो कर्म वर्तमान जन्म मे भोगने के लिए तय कर दिए हैं वे प्रारब्ध एवं जो कर्म हम वर्तमान मे निरंतर कर रहे हैं वे कियामाण कर्म है। जन्मगत स्थिति इन्ही कर्मो को लेकर निर्धारित की जाती है।

कुण्डली मे शुभ लग्न एवं शुभ गृह योगो के होने पर भी कइ्र बार जातक को असफलताएं मिलति हैं। वास्तव मे लग्नगत स्थिति अनुसार ही सफलता होने पर भी जातक को निराशा रहती हैं। इस स्थिति में जन्मगत स्थिति को ध्यान में रख अशुभ योगों का उपाय करना सफलता में वृद्धि करता हैं।

1 अमावस्याः 

अमावस्या को दर्श भी कहते है। अमावस्या में जन्म होने पर माता पिता व स्वयं की दरिद्रता यश ,धन , मान सम्मान में कमी आती हैं। अमावस्या भी दो प्रकार की होती हैं। इनमें से कुछ अर्थात सर्वथा चन्द्र रहित अमावस्या का जन्म हो तो अशुभ फल ज्यादा होता हैं। इसके निवारणार्थ सूर्य व चंद्र की शांति रूद्राभिषेक एवं घी सहित छायापात्र का दान करना चाहिए।

2 कृष्ण चतुर्दशीः 

कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी में जन्म होने पर भी अशुभ फल मिलता हैं। पाराशर के अनुसार कृष्ण चतुर्दशी तिथि के 6 भाग कर उसमें किस भाग में जन्म अशुभ है उसके बारे में कहा गया है कि प्रथम षष्ठंाश में जन्म शुभ, द्वितीय में पिता का नाश, तृतीय में माता का नाश, चतुर्थ में मामा का नाश, पंचम में वंश का नाश तथा छठे भाग में धन व स्वयं को नष्ट करता है। इसमें भी गृह पूजन माता पिता व जातक का अभिषेक ब्राह्मण भोजन व छायापात्र का दान किसी कर्मकांडी से करवाने पर विशेष लाभ होता हैं।

3 क्रांति साम्य या महापात: 

क्रांति साम्य का आरंभ व अंत पंचांगों में सामान्यतया दिया रहता है। सूर्य व चंद्र की क्रांति समान होने पर अर्थात सूर्य व चंद्र जब जोडे में एक साथ 1,5,2,10,7,11,6,12,4,8,3,9 राशियों में हो तो क्रांति साम्य नामक महादोष होता है। इसका विचार मुर्हुत चिन्तामणि के अनुसार दिया है। इसी को गणना कर आरंभ व अंत गणित ज्योतिष द्वारा निकाला जाता है। इसमें भी जन्म अशुभ है। योग्य कमग्कांडी ब्राह्मण से शांति कर्म करवाएं।

4 यमघण्ट योग: 

रविवार के दिन मघा , सोमवार को विशाखा, मंगलवार को आद्रा, बुधवार को मूल, गुरूवार को कृतिका, शुक्रवार को रोहिणी व शनिवार को हस्त नक्षत्र होने पर यमघण्ट योग बनता है। यह योग भी किसी भी शुभ कार्य के लिए वर्जित होने के साथ जन्म में भी अशुभ है। योग्य कर्मकांडी लेकर शांति करवाएं।

5 दग्धादि योग: 

रविवार को 12, सोमवार को 11, मंगलवार को 5, बुधवार को 3, गुरूवार को 6 , शुक्रवार को 8, व शनिवार को 9 वीं तिथ होने पर दग्ध योग बनता है। इसमें भी जन्म होना अशुभ है। वार तिथ विशेष के देवता की पूजा अर्चना, रूद्राभिषेक व महामृत्युजंय जाप लाभकारी हैं।

6 व्यतिपात- 

वैधृति योग- सूर्य व चंद्र की क्रांति समान होने पर यदि दोनों एक अयन में हो तो व्यतिपात योग होता है। किसी योग्य कर्मकांडी से छायापात्र दान, रूद्राभिषेक व महामृत्युजंय जाप करायें।

7 सार्पशीर्ष- 

अमावस्या के दिन यदि अनुराधा नक्षत्र हो तो उसका तृतीय व चतुर्थ नक्षत्र चरण सार्पशीर्ष कहलाता है। यह स्थिति मार्गशीर्ष मास में बनती है। सार्पशीर्ष भी जन्म व शुभ कार्यो में वर्जित है। किसी योग्य आचार्य से सलाह लें।

8 एक जन्म नक्षत्र- 

यदि पिता व पुत्र, माता व पुत्री, दो भाईयों, दो बहिनों या भाई बहिनों का नक्षत्र एक ही हो तो कमजोर ग्रह स्थिति वाले को मुत्यु तुल्य कष्ट हेता है। सामान्यतया ऐसी स्थिति में प्रत्येक जातक को कुछ न कुछ कष्ट अवश्य रहता है। इसकी शांति हेतु नक्षत्र देवता के वैदिक मंत्र से पूजा कर, अभिषेक, ब्राह्मण भोजन, सामथ्र्य अनुसार दान दें। गणेश, अम्बिका पूजन, नवग्रह पूजन भी अवश्य करें या कराएं जिससे शुभ फलों की प्राप्ति हो सके।

संक्रांति

सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश का समय संक्रांति कहलाता है। स्पष्ट मान से 6 घण्टा 24 मिनट आगे व इतना ही समय पीछे मक संक्रांति का अशुभ प्रभाव विशेष रहता है। यदि संका्रति रविवार को हो तो घोरा, सोमवार ध्वांक्षी, मंगलवार महोदरी, बुधवार मन्दा, गुरूवार मन्दाकिनी, शुक्रवार को मिश्रा व शनिवार का राक्षसी नाम की संक्रांति होती है। इसमें भी जन्म होना जातक को परम अनिष्टाकारी है। इसमें भी नवग्रहों का यज्ञ विधि विधान से कर छायापात्र दान, अभिषेक, गोदान, स्वर्णदान व ब्राह्मण भोजन करने से शांति मिलती है।

10 भद्राकरण- 

भद्रा या विष्टिकरण में जन्म हो पर शुभ दिन लग्न में रूद्राभिषेक, पीपल पूजा व प्रदक्षिणा, सूर्य सूक्त, पुरूष सुक्त व गणपति मुक्ति का पाठ करने से जीवन में खुशहाली आती है।

11 सूर्यग्रहण- 

पृथ्वी सूर्य की, चंद्र पृथ्वी की परिक्रमा कर रहा है। इस परिक्रमा के दौरान जब पृथ्वी और सूर्य के मध्य चंद्र आ जाता है तो पृथ्वी के कुछ भागों पर सूर्य का प्रकाश नही पहुंच पाता। सूर्य पर काली परछाई दिखने लगती है। इसे सूर्यग्रहण कीते है। सूर्य ग्रहण हमेशा अमावस्या को होता है। यदि अमावस्या के दिन समाप्ति समय में सूर्य चंद्र राहु केतु से 15 डिग्री 21 से कम अंतर पर हो तो सूर्य ग्रहण इससे अधिक व 18 डिग्री 27 के मध्य हो तो कभी कभार व ज्यादा अंतर होने पर सुर्यग्रहण नही होता है। इसका समय सामान्यतया प्रत्येक पंचांग में दिया हुआ रहता ह। इसमें जन्म होने से जातक को शारीरिक मानसिक व आर्थिक कष्ट के साथ मृत्यु भय भी होता है। किसी योग्य कर्मकांडी से सूर्य चंद्र व राहु की पूजा, नक्षत्रेश की पूजा व हवन करवाने से राहत मिलती हैं।

12 चन्द्रग्रहण- 

जब चंद्र एवं सूर्य के बीच पृथ्वी आ जाती है तो इस स्थिति में चंद्रग्रहण होता है। चंद्रग्रहण पूर्णिमा को होता है। इसमें पृथ्वी छाया के कारण चंद्र दिखाई नही देता है। इसका मान भी पंचांगों में दिया रहता है। इसकी भी शांति सुर्य, चंद्र व राहु की मूर्ति बनाकर पूजा हवन व नक्षत्र स्वामी की पूजा-अर्चना कर करवानी चाहिए।

13 गण्डान्त- 

तिथि, नक्षत्र व लग्न के भेद से तीन प्रकार का गण्डान्त होता है। पूर्णा तिथि व नंदा की संधि अर्थात पूर्णा तिथि 5,10,15 के अन्त की दो घडी व नंदा के प्रारंभ की 2 घडी कुल मिलाकर 4 घडी का तिथि गण्डांत समय अशुभ रहता है।    

कर्क व सिंह लग्न, वृश्चिक व घनु लग्न, मीन व मेष लग्न की संधि का 24 मिनट का समय अर्थात कर्क लग्न के अन्तिम 12 मिनट व सिंह लग्न के प्रारंभ के 12 मिनट का समय लग्न गण्डंात कहलाता है। यह भी जन्म में शुभ नही है।

रेवती व अश्विनी, ज्येष्ठा व मूल, आश्लेषा व मघा की संधि का 96 मिनट का समय अर्थात रेवती की अन्तिम 48 मिनट व अश्विनी प्रारंभ की 48 मिनट का समय नक्षत्र गण्डांत कहलाता है। इसमें जन्म होना भी अशुभ है।

पाराशर के अनुसार इन गण्डांतों में जन्म होने पर सूतक निकल जाने के उपरांत पिता गण्डांत की शांति अवश्य कराए, इससे पहले पिता पुत्र का मुहं नही देखे। तिथि गण्ड में बैल का दान, नक्षत्र गण्ड में गोदान व लग्न गण्डांत में स्वर्ण दान से दोष निवारण होता है। गण्डांत के पूर्व भाग में जन्म होने पर पिता-पुत्र व अन्त भाग में जन्म होने पर माता-पुत्र का इकट्ठा अभिषेक करें जिससे शांति मिल सके।

14 त्रिखल जन्म- 

तीन पुत्र जन्म के बाद पुत्री का व तीन पुत्रियो के बाद पुत्र का जन्म त्रिखल जन्म कहलाता है। ऐसी स्थिति में माता पिता के कुल में अरिष्ट का भय रहता है। अरिष्ट निवारणार्थ शांति आवश्यक है।

15 प्रसव विकार- 

पाराशर के अनुसार समय से पूर्व/पश्चात हीनांग या अधिकांश सिर विहिन दो सिरवाला, जुडे हुए सिर या किसी अंग वाला, स्त्री में प्शु आकृति व प्शु में मानवाकृति वाला प्रसव, प्रसव विकार कहलाता है। जुडवां विजातिय प्रसव होने पर भी अनिष्ट होता है। गाय-भैंस का विकृत प्रसव होने पर किसी गरीब को दान में दे दे। स्त्री प्रसव विकार में दिनभर व्रत रखकर अगले दिन रूद्र सूक्त व शांति सूक्त का पाठ व किसी कर्मकांडी से शांति विधान करवाए।

ग्रहों की नीच स्थिति में होने पर जन्म भी एक विकार है। सूर्य यदि तुला राशि में परम नीचांश पर हो तो हजार राजयोगों को नष्ट करता है। शनि से दुगुना मंगल, मंगल से दुगुना बुध,बुध से आठ गुना गुरू, गुरू से आठ गुना शुक्र, शुक्र से 16 गुना चंद्र व चंद्र से 32 गुना सूर्य बलवान होता है। अर्थात इसकी नीचता तीव्रतम अशुभकारी है। इस हेतु तुलास्थ सूर्य में सूर्य की मूर्ति का दान व वृश्चिक चंद्र में शिवार्चन व चंद्र मूर्ति दान करने से नीच गत प्रभाव दूर होता है।

16 मूलदोष- 

पाराशर के अनुसार मूल के प्रथम चरण में पिता का दूसरे चरण में माता का, तीसरे चरण में धन धान्य का चैथे चरण में धन लाभ होता है। पिता का अरिष्ट 1 वर्ष के भीतर माता का 3 वर्ष के भीतर धन नाश 2 वर्ष के भीतर व स्वयं का नाश एक वर्ष के भीतर होता है।

मतानुसार मूलवास पृथ्वी, पाताल व स्वर्ग में रहता है। वैशाख, ज्येष्ठ मार्गशीर्ष व फाल्गुन मास में पाताल आषाढ, आश्विन भाद्रापद व माघ मास में मूल वास स्वर्ग में रहता है। इनमें जन्म होने पर मध्यम कष्ट रहता है। शेष मासों में जन्म होने पर अरिष्ट तीव्र होता है। सूतक समाप्त होने पर मास या वर्ष के भीतर या शीघ्र जब भी मूल नक्षत्र पडे तब शांति करवा देनी चाहिए।

17 ज्येष्ठ- 

ज्येष्ठा गण्ड या गण्डान्त में उत्पन्न होने पर माता-पिता व स्वयं का नाश होता है। इसकी शांति हेतु इन्द्र प्रधान, अग्नि अधि व राक्षस को प्रत्यधि देवता समझकर शांति करना चाहिए।

18 अन्य गण्ड नक्षत्र- 

1 आश्लेषा के प्रथम चरण में जन्म होने पर शुभ,द्वितीय चरण में धन हानि, तृतीय चरण में माता-पिता को कष्ट होता है। 

2  मघा के प्रथम चरण में माता को कष्ट, द्वितीय चरण पिता कष्ट, तृतीय में सुख व चतुर्थ में शुभ रहता है। 

3 रेवती के प्रथम चरण में राजपद प्राप्ति, द्वितीय में मंत्री पद , तृतीय में ऐश्वर्यवान, चतुर्थ में मान-सम्मान मिलता है।

गण्ड का अपवाद- 

1 गण्ड नक्षत्र में चंद्र अग्नेश का युति दृष्टि सम्बन्ध हो।

2 रविवार व अश्विनी, रवि,बुधवार को ज्येष्ठा, रेवती हो तो गण्डदोष कम होता है।

3 अभिजित मूर्हुत मे जन्म हो।

4 चंद्र व वृह., बलवान हो, बलवान वृह., लग्नेश से शुभ सम्बन्ध बनाए।

5 दिन में मूल का दुसरा चरण रात में प्रथम चरण हो तो दोष प्रभावी होता है।

6 चंद्र बली होकर लग्न, लग्नेश से सम्बन्ध बनाए तो गण्डदोष में कुछ कमी अवश्य आती है लेकिन सूक्ष्म अशुभ प्रभाव रहता ही है। जिस प्रकार नीबू की एक बूंद ही दूध को खट्टा करने में काफी है उसी प्रकार इसका प्रभाव अत्यंत सूक्ष्म होने पर भी विद्यमान रहता है। अतः किसी योग्य कर्मकांडी से सलाह मशविरा कर उपाय करना चाहिए।

GUPT ROG AND JYOTISH गुप्त रोग एवं ज्योतिष

GUPT ROG AND JYOTISH गुप्त रोग एवं ज्योतिष

 

शुभ कर्मों के कारण ही मानव जीवन मिलता है। जीव योनियों में मानव जीवन ही सर्वश्रेष्ठ है। लेकिन क्या मानव जीवन को प्राप्त करना ही पर्याप्त है या जीवन में पूर्ण स्वास्थ्य प्राप्त कर अंतिम अवस्था को प्राप्त करना? निःसंदेह पहला सुख निरोगी काया ही है। यदि स्वास्थ्य अच्छा नहीं हो तो मानव जीवन पिंजरे में बंद पक्षी की तरह ही कहा जाएगा। गुप्त रोग अर्थात् ऐसे रोग जो दिखते नहीं हो  लेकिन वर्तमान में इसका तात्पर्य यौन रोगों से लिया जाता है। यदि समय रहते इनका चिकित्सकीय एवं ज्योतिषीय उपचार दोनों कर लिए जाएं तो इन्हें घातक होने से रोका जा सकता है। 

ज्योतिष के अनुसार किसी रोग विशेष की उत्पत्ति जातक के जन्म समय में किसी राशि एवं नक्षत्र विशेष में पाप ग्रहों की उपस्थिति, उन पर पाप प्रभाव, पाप ग्रहों के नक्षत्र में उपस्थिति एवं पाप ग्रह अधिष्ठित राशि के स्वामी द्वारा युति या दृष्टि रोग की संभावना को बताती है। 

इन रोग कारक ग्रहों की दशा एवं दशाकाल में प्रतिकूल गोचर रहने पर रोग की उत्पत्ति होती है। ग्रह, नक्षत्र, राशि एवं भाव मानव शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों का प्रतिनिधित्व करते हैं। 

वृश्चिक राशि व शुक्र को यौन अंगों का, पंचम भाव को गर्भाशय, आंत व शुक्राणु का षष्ठ भाव को गर्भ मूत्र की रोगों, गुर्दे, आंत रोग, गठिया और मूत्रकृच्छ का सप्तम भाव को शुक्राशय, अंडाशय, गर्भाशय, वस्ति, मूत्र व मूत्राशय, प्रोस्टेट ग्रंथि, मूत्रद्वार, शुक्र एवं अष्टम भाव को गुदा, लिंग, योनि और मासिक चक्र का तथा नक्षत्रों में पूर्वाफाल्गुनी को गुप्तांग एवं कब्जियत, उत्तरा फाल्गुनी को गुदा लिंग व गर्भाशय और हस्त को प्रमेह कारक माना गया है। 

राशियों में कन्या राशि संक्रामक गुप्त रोगों वसामेह व शोथ विकार और तुला राशि दाम्पत्य कालीन रोगों की कारक कही गई है। ग्रहों में मंगल को गर्भपात, ऋतुस्राव व मूत्रकृच्छ, बृहस्पति को वसा की अधिकता से उत्पन्न रोग व पेट रोग और शुक्र को प्रमेह, वीर्य की कमी, प्रजनन तंत्र के रोग, मूत्र रोग गुप्तांग शोथ, शीघ्र पतन व धातु रोग का कारक माना गया है। 

इन कारकों पर अशुभ प्रभाव का आना या कारक ग्रहों का रोग स्थान या षष्ठेश से संबंधित होना या नीच नवांश अथवा नीच राशि में उपस्थित होना यौन रोगों का कारण बनता है।    MOB 9953255600

इसके अतिरिक्त निम्नलिखित ज्योतिषीय ग्रह योगों के कारण भी यौन रोग हो सकते हैं। 

शनि, मंगल व चंद्र यदि अष्टम, षष्ठ द्वितीय या द्वादश में हों तो काम संबंधी रोग होता है। इनका किसी भी प्रकार से संबंध स्थापित करना भी यौन रोगों को जन्म देता है। 

कर्क या वृश्चिक नवांश में यदि चंद्र किसी पाप ग्रह से युत हो तो गुप्त रोग होता है। 

यदि अष्टम भाव में कई पाप ग्रह हो या बृहस्पति द्वादश स्थान में हो या षष्ठेश व बुध यदि मंगल के साथ हो  तो जननेंद्रिय रोग होता है। 

शनि, सूर्य व शुक्र यदि पंचम स्थान में हो, या दशम स्थान में स्थित मंगल से शनि का युति, दृष्टि संबंध हो या लगन में सूर्य व सप्तम में मंगल हो तो प्रमेह, मधुमेह या वसामेह होता है। चतुर्थ में चंद्र व शनि हों या विषम राशि लग्न में शुक्र हो या शुक्र सप्तम में लग्नेश से दृष्ट हो या शुक्र की राशि में चंद्र स्थित हो तो जातक अल्प वीर्य वाला होता है। 

शनि व शुक्र दशम या अष्टम में शुभ दृष्टि से रहित हों, षष्ठ या द्वादश भाव में जल राशिगत शनि पर शुभ ग्रहों का प्रभाव न हो या विषम राशिगत लग्न को समराशिगत मंगल देखे या शुक्र, चंद्र व लग्न पुरुष राशि नवांश में हों या शनि व शुक्र दशम स्थान में हों या शनि शुक्र से षष्ठ या अष्टम स्थान में हो तो जातक नपुंसक होता है। 

चंद्र सम राशि या बुध विषम राशि में मंगल से दृष्ट हो या षष्ठ या द्वादश भाव में नीचगत शनि हो या शनि व शुक्र पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो जातक नपुंसक होता है। 

राहु, शुक्र व शनि में से कोई एक या सब उच्च राशि में हों, कर्क में सूर्य तथा मेष में चंद्र हो तो वीर्यस्राव या धातु रोग होता है। लग्न में चंद्र व पंचम स्थान में बृहस्पति व शनि हों तो धातु रोग होता है। 

कन्या लग्न में शुक्र मकर या कुंभ राशि में स्थित हो व लग्न को बुध और शनि देखते हांे तो धातु रोग होता है। 

यदि अष्टम स्थान में मंगल व शुक्र हांे तो वायु प्रकोप व शुक्र मंगल की राशि में मंगल से युत हो तो भूमि संसर्ग से अंडवृद्धि होती है। 

लग्नेश छठे भाव में हो तो षष्ठेश जिस भाव में होगा उस भाव से संबंधित अंग रोगग्रस्त होता है। 

यदि यह संबंध शुक्र/पंचम/सप्तम/अष्टम से हो जाए तो निश्चित रूप से यौन रोग होगा। 

यदि जन्मांग में शुक्र किसी वक्री ग्रह की राशि में हो या लग्न में लग्नेश व सप्तम में शुक्र हो तो यौन सुख अपूर्ण रहता है।

Wednesday, October 20, 2021

LAKSHMI SHABAR MANTRA लक्ष्मी शाबर मन्त्र

LAKSHMI SHABAR MANTRA लक्ष्मी शाबर मन्त्र



“विष्णु-प्रिया लक्ष्मी, शिव-प्रिया सती से प्रकट हुई। कामाक्षा भगवती आदि-शक्ति, युगल मूर्ति अपार, दोनों की प्रीति अमर, जाने संसार। दुहाई कामाक्षा की। आय बढ़ा व्यय घटा। दया कर माई। ॐ नमः विष्णु-प्रियाय। ॐ नमः शिव-प्रियाय। ॐ नमः कामाक्षाय। ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं फट् स्वाहा।”


विधिः- 

धूप-दीप-नैवेद्य से पूजा कर सवा लक्ष जप करें। लक्ष्मी आगमन एवं चमत्कार प्रत्यक्ष दिखाई देगा। रुके कार्य होंगे। लक्ष्मी की कृपा बनी रहेगी।

SARASWATI MANTRA FOR BRAIN बुद्धि बढ़ाने और पढ़ा हुआ न भूलने सरस्वती का मंत्र

SARASWATI MANTRA FOR BRAIN बुद्धि बढ़ाने और पढ़ा हुआ न भूलने सरस्वती का मंत्र


मंत्र


नमो भगवती सरस्वती परमेश्वरी वाक्य वादिनी है विद्या देही भगवती हंस वाहिनी बुद्धि में देही प्रज्ञा देही,देही विद्या देही,देही परमेश्वरी सरस्वती स्वाहा।

विधी- 
यह मंत्र अत्यन्त तीव्र एवं प्रभावी होता है। बसंत पंचमी के दिन या किसी भी रविवार को सरस्वती माता के चित्र के समक्ष दूध से बना प्रसाद चढ़ाकर उक्त मंत्र का विधि पूर्वक 108 बार जप करें तथा खीर का भोजन करें तो यह मंत्र सिद्ध हो जाता है। फिर जब भी पढ़ने बैठे इस मंत्र का 7 बार जप करें तो पढ़ा हुआ तुरंत याद हो जाता है और बुद्धि तीव्र हो जाती है।


SARV KARYA SIDDHI MANTAR सर्वकार्य सिद्धि मंत्र

SARV KARYA SIDDHI MANTAR सर्वकार्य सिद्धि मंत्र

होली की रात्रि में स्नान आदि से निवृत होकर साधना कक्ष में धूप दीप आदि जलाकर गुरू स्थापना तथा गुरू पूजन कर निम्न सर्वकार्य सिद्धि मंत्र का प्रयोग करें।

मंत्र- 
नमो सात समुन्द्र के बीच शिला, शिला के ऊपर सूलेमान पैगम्बर बैठा। सुलेमान पैगम्बर के चार मवक्किल तारिया, सारिया, जारिया, जमारिया। एक मवक्किल पूर्व को धाया देव-दानव को बाधिलाया दूसरा मवक्किल आश्रम को धाया भूत-प्रेत बाधि लाया तीसरा मवक्किल दक्षिण को धाया डाकिनी शाकिनी को पकडि लाया चारि मवक्किल चहुँ दिशी धावै। छल छिद्र मोऊ रहन न पावै रोग-दोष को बहावे शब्द साचा पिण्ड काचा। फुरो मंत्र ईश्वरो बाचा।

विधि- 
उक्त मंत्र का विधि विधान से किया जाना चाहिए। सर्वप्रथम कपड़े के चार पुतले बनाये फिर उन चारो पुतलांे को रात्रि के समय चारों कोनो में गाड़़ दें। तत् पश्चात् धूप-दीप जलाकर उक्त मंत्र का 108 बार जाप करें ऐसा करने से यह मंत्र सिद्ध हो जाता है और आपके सारे कार्य स्वयं सिद्ध होने लगते हैं।

VYAPAR BUSINESS VARDHAK MANTAR PRYOG व्यापार वर्धक मंत्र प्रयोग

VYAPAR BUSINESS VARDHAK MANTAR PRYOG व्यापार वर्धक मंत्र प्रयोग


मंत्र 

भवरा भवर करे मन मेरा, डण्डी खोल व्यापार बडेरा। व्यापार बड़ा और कारज कर, नहीं करे तो काली मैया काल कालजो फेड खावे ठं ठं फट्।

विधी- 
किसी भी होली अथवा दिवाली के दिन इस मंत्र को शाबर मंत्र विधी द्वारा 10 हजार मंत्र जपकर सिद्ध करके फिर प्रयोग करें। व्यापार में वृद्धि या फिर रूके हुये व्यापार को फिर से चलाने के लिए यह मंत्र अचूक प्रभावी है। किसी भी शनिवार की रात्री में 3 मुट्ठी काली मिर्च 3 गोमती चक्र लेकर एक लाल कपड़े में बांध कर पोटली बना लें फिर उसके सामने धूप-दीप जला कर 1 माला मंत्र जप करें। फिर रविवार की सुबह दुकान पर जाकर दुकान को खोल कर साफ करें तथा गंगा जल या गोमुत्र का दुकान में छीटा मारे तब दीपक जला कर गुगुल घूनी करें और पोटली को दरवाजे पर बांध दे ऐसा करने से व्यापार में वृद्धि होती है तथा दिन दुगुनी रात चैगुनी तरक्की होती है उक्त मंत्र का जाप निरन्तर करना चाहिए।

SARV SAMMOHAN MANTRA सर्व सम्मोहन मंत्र

SARV SAMMOHAN MANTRA सर्व सम्मोहन मंत्र

पद्मनी अन्जन मेरा नाम इस नगरी में पैसे के मौहो सगरा ग्राम न्याय करता राजा मौहो फर्स बैठा पंच मौहो पनघट की पनिहार मौहो इस नगरी में पैसे के छŸाीस पवना मौहो कोऊ जो मार मार करता आवै ताहि नरसिंह वीर बाबा पद के अंगूठा तरे घेर घेर लावे मेरी भक्ति गुरू की शक्ति करो मंत्र इश्वरो वाचा। सत्य नाम आदेश गुरू का।

विधी- 
शनिवार तथा रविवार की रात में भगवान नरसिंह देव जी का सोड़षोपचार पूजन करें सर्वप्रथम भगवान नरसिंह जी का चित्र स्थापित कर उन्हे आसन पर बैठाये तथा गुगुल का धूप दीप जलाकर अस्ट गंध चंदन फूल,रोजी, कुकुम,अक्षत,पान सुपारी लौग आदि चढ़ाकर पूजन करें फिर उक्त शाबर मंत्र का ग्यारह सौ बार तप करें तत्पश्चात् गुगुल घी तथा शक्कर मिलाकर एक सौ एक बार मंत्र पढ़ते हुये हवन करें कपास के रूई से बŸाी बनाकर काजल,पारे। इस काजल को आखों में आजकर या मस्तक पर टीका लगाकर उक्त मंत्र का सात बार जप करें फिर जहाँ भी जाये जो भी देखे वह आपके सम्मोहन में खो जायेगे।

BHUT PRET DUR KARNE KA MANTAR भूत प्रेत दूर करने का मंत्र

 BHUT PRET DUR KARNE KA MANTAR भूत प्रेत दूर करने का मंत्र

नमो आदेश गुरू को हे! हनुमंत वीर विरन के वीर निहारे तरकश में नवलख तीर खन बाएँ खन दाहिने कबहुक आगे होए धनी गुसाई सेबसा उनकी काया मगन होय इंद्रासन दो लोक में बहार देखे मशान हमारी या ‘अमुक’ की देही छल छिद्र व्यापै तो यति हनुमंत की आन मेरी भक्ति गुरू की शक्ति फुरों मंत्र इश्वरो वाचा।

विधी-
इस मंत्र की सिद्धी के लिए पूजा स्थान में हनुमान जी का चित्र लगाकर पूर्ण विधी विधान से पूजन करें फिर उक्त मंत्र का ग्यारह सौ बार जप करे धूप दीप नैवेध चढ़ाकर हनुमान जी से प्रार्थना करें कि मुझे आशिर्वाद प्रदान करें। फिर जिस व्यक्ति या बच्चे को ऊपरी बाधा या भूत प्रेत इत्यादि बाधा हो उसे उक्त मंत्र को सात बार पढ़तेे हुये नीम के पत्र से झाड़ दे इसके प्रभाव से तुरंत ही रोगी स्वस्थ हो जाता है।

CHOR PAKADNE KA SHABAR MANTAR चोर पकड़ने का शाबर मंत्र

CHOR PAKADNE KA SHABAR MANTAR चोर पकड़ने का शाबर मंत्र


नाहर सिंह वीर हरै कपडे नाहर सिंह वीर चावल चपड़े सरसों के फक-फक करै सार को छोड़े चोर को पकड़े आदेश गुरू को।

विधी- 
इस मंत्र को सिद्ध करने का तरीका यह है कि चाँदी का एक सिक्का लंे जिसमें छेद न हो, फिर इसे दूध तथा गंगा जल से धोकर धूप, लोबान जलाकर पूजन करें तत्पश्चात् शनि पुष्य नक्षत्र के दिन गोबर से जमीन को लीप कर उस पर सफेद कपड़ा बिछाकर दूध से धोकर सुखाया गया चावल रख कर उसी पर चाँदी का सिक्का भी रख दे फिर लोबान धूप गुगुल जलाकर उक्त मंत्र का 108 बार जप करंे। जब प्रयोग करना हो तब या किसी चोर की पहचान करना हो तो उन्ही चावलो पर सात बार मंत्र पढ़ते हुये उसी चाँदी के सिक्के के बराबर चावल तौल कर जिस व्यक्ति पर शक हो उन्हे थोड़ा-थोड़ा चबवा दें। जिसने भी चोरी किया होगा उसके मुह से निश्चय ही खून गिरने लगेगा। (यह प्रयोग अनुभूत तथा प्रमाणिक है)

विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )