Sunday, May 24, 2020

सूर्य साधना SUN SURYA SADHNA

सूर्य साधना SUN SURY SADHNA


भगवान सूर्य की उपासना कौन नहीं करना चाहेगा ? भगवान् सूर्य सबका मंगल करने वाले है , वह ग्रहों के राजा माने जाते है ! सूर्य देवता को साक्षात देव माना जाता है जो प्रतिदिन सारी सृष्टि को दर्शन देते है ! शास्त्रों के अनुसार सूर्य उदय के समय ब्रह्मा रुपी गायत्री का ध्यान कर गायत्री मन्त्र का जप करे , जब सूर्य सिर के ऊपर आ जाये तो विष्णु रुपी गायत्री का ध्यान कर गायत्री मन्त्र का जप करे और शाम के समय शिव रुपी गायत्री का ध्यान कर गायत्री मन्त्र का जप करे ! सूर्य उदय के समय कुमारी का ध्यान करे और मध्यान्ह में नवयुवती का ध्यान करे और शाम के समय वृद्ध रुपी गायत्री का ध्यान करे ! सूर्यास्त के बाद गायत्री जप निषेध माना जाता है !

ज्योतिष  के अनुसार सूर्य के अस्त हो जाने के बाद जन्म कुंडली पर विचार नहीं करना चाहिए क्योंकि जब ग्रहों के राजा सूर्य अस्त हो जाये तो वेद का तीसरा नेत्र कहे जाने वाले ज्योतिष को भी विश्राम देना चाहिए ! भगवान् सूर्य के बारह नाम है , वह प्रत्येक राशि में अपना अलग प्रभाव और अलग रूप दिखाते है ! प्रातःकाल भगवान् सूर्य को उनके बारह नामो से जल देने का पुण्य एक हज़ार गौ दान के बराबर है !

ज्योतिष ने सूर्य को सरकार का कारक माना है यदि राजा का 'कर' मतलब सरकार का टैक्स चोरी किया जाये तो सूर्य बुरा फल देते है इसलिए हमें हमारा टैक्स जरूर भरना चाहिए ! भगवान् सूर्य की कृपा से तेज़ , बल और बुद्धि की वृद्धि होती है और चर्म रोग आदि अनेक व्याधिया शांत होती है !

सूर्य पूजन केवल सूर्य के रहते ही किया जाता है सूर्यास्त के बाद सूर्य पूजन करने से शनि का कोप सहना पड़ता है क्योंकि सूर्यास्त के बाद सूर्य के शत्रु शनि का समय शुरू हो जाता है और शनि इस काल में बलवान हो जाते है क्योंकि उन्हें काल का बल मिल जाता है ! वैदिक ज्योतिष में भी सूर्यास्त के बाद सूर्य पूजन की मनाही है यदि सूर्य सप्तम भाव में हो और व्यक्ति सूर्यास्त के बाद दान करे तो उस व्यक्ति को अपने जीवन में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है , पर कुछ विद्वानों का मत है कि सूर्य का पूजन सूर्यास्त के बाद करना चाहिए और ऐसे विद्वानों का यह भी कहना है कि सूर्य को जल देने के लिए जल में चीनी मिलानी चाहिए !

यदि डूबे हुए सूर्य को प्रणाम किया जाये और पूजन किया जाये तो सूर्य का विपरीत फल मिलता है और व्यक्ति भी डूबे हुए सूर्य की तरह ही डूब जाता है ! यहाँ ध्यान देने योग्य यह बात है कि सूर्य पूजन में सदैव जल में गुड़ मिलाया जाता है क्योंकि सूर्य एक गर्म ग्रह है और गुड़ को भी गर्म माना जाता है पर पता नहीं किस आधार पर यह विद्वान सूर्य पूजन में चीनी इस्तेमाल करने की राय देते है !  ऐसे विद्वानों को यदि महामूर्ख की उपाधि दी जाये तो महामूर्ख शब्द का अपमान होगा ! केवल प्रसिद्धि के लिए यह विद्वान् लोगो को गलत राह दिखा रहे है ! सूर्य पूजन में लाल वस्तुओं का इस्तेमाल किया जाता है !


सूर्य द्वादशनाम स्तोत्र

आदित्यं प्रथमं नाम द्वितीयं तु दिवाकर:।
तृतीयं भास्कर: प्रोक्तं चतुर्थं तु प्रभाकर:।।1।।
पंचमं तु सहस्त्रांशु षष्ठं त्रैलोक्यलोचन:।
सप्तमं हरिदश्वश्य अष्टमं च विभावसु:।।2।।
नवमं दिनकर: प्रोक्तों दशमं द्वादशात्मक:।
एकादशं त्रयोमूर्ति द्वादशं सूर्य एव च।।3।।

यदि किसी जातक(Native) की जन्म कुण्डली में सूर्य की महादशा चली हुई है अथवा सूर्य की अन्तर्दशा चली हुई है तब उसे “सूर्य द्वादश नाम स्तोत्र” का प्रतिदिन जाप करना चाहिए और स्तोत्र के जाप के बाद प्रतिदिन सूर्य भगवान की पूजा भी करनी चाहिए. ऎसा करने पर सूर्य की महादशा/अन्तर्दशा में हर प्रकार की समस्या का निवारण हो जाएगा.

सूर्य अष्टकं सूर्य अष्टक स्तोत्र सूर्याष्टक स्तोत्र


आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर | 
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तुते ||

सप्ताश्वरथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम् | 
श्वेतपद्मधरं देवं तँ सूर्यं प्रणमाम्यहं || 

लोहितं रथमारूढं सर्वलोकपितामहम् | 
महापापहरं देवं तँ सूर्यं प्रणमाम्यहं || 

त्रैगुण्यं च महाशूरं ब्रह्मविष्णुमहेश्वरं | 
महापापहरं देवं तँ सूर्यं प्रणमाम्यहं || 

बृंहितं तेजःपुंजं च वायुमाकाशमेव च | 
प्रभुं च सर्वलोकानां तँ सूर्यं प्रणमाम्यहं || 

बन्धूकपुष्पसंकाशं हारकुण्डलभूषितम् |
एकचक्रधरं देवं तँ सूर्यं प्रणमाम्यहं ||

तँ सूर्य जगत्कर्तारं महातेजःप्रदीपनम् |
महापापहरं देवं तँ सूर्यं प्रणमाम्यहं || 

तँ सूर्यं जगतां नाथं ज्ञानविज्ञानमोक्षदम् |
महापापहरं देवं तँ सूर्यं प्रणमाम्यहं || 

|| श्रीशिवप्रोक्तं सूर्याष्टकं सम्पूर्णं || 


आदित्य हृदय स्तोत्र संपूर्ण पाठ ADITY HRIDY STOTRAM SAMPURN PATH


आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ नियमित करने सेअप्रत्याशित लाभ मिलता है। आदित्य हृदय स्तोत्र के पाठ से नौकरी में पदोन्नति, धन प्राप्ति, प्रसन्नता, आत्मविश्वास के साथ-साथ समस्त कार्यों में सफलता मिलती है। हर मनोकामना सिद्ध होती है। सरल शब्दों में कहें तो आदित्य ह्रदय स्तोत्र हर क्षेत्र में चमत्कारी सफलता देता है। 

ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्‌ । रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्‌ ॥1॥
दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्‌ । उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा ॥2॥
राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्मं सनातनम्‌ । येन सर्वानरीन्‌ वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3॥
आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्‌ । जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम्‌ ॥4॥
सर्वमंगलमागल्यं सर्वपापप्रणाशनम्‌ । चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम्‌ ॥5॥

रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्‌ । पुजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्‌ ॥6॥
सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावन: । एष देवासुरगणांल्लोकान्‌ पाति गभस्तिभि: ॥7॥
एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिव: स्कन्द: प्रजापति: । महेन्द्रो धनद: कालो यम: सोमो ह्यापां पतिः ॥8॥
पितरो वसव: साध्या अश्विनौ मरुतो मनु: । वायुर्वहिन: प्रजा प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकर: ॥9॥
आदित्य: सविता सूर्य: खग: पूषा गभस्तिमान्‌ । सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकर: ॥10॥

हरिदश्व: सहस्त्रार्चि: सप्तसप्तिर्मरीचिमान्‌ । तिमिरोन्मथन: शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान्‌ ॥11॥
हिरण्यगर्भ: शिशिरस्तपनोऽहस्करो रवि: । अग्निगर्भोऽदिते: पुत्रः शंखः शिशिरनाशन: ॥12॥
व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजु:सामपारग: । घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥13॥
आतपी मण्डली मृत्यु: पिगंल: सर्वतापन:। कविर्विश्वो महातेजा: रक्त:सर्वभवोद् भव: ॥14॥
नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावन: । तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन्‌ नमोऽस्तु ते ॥15॥

नम: पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नम: । ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नम: ॥16॥
जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नम: । नमो नम: सहस्त्रांशो आदित्याय नमो नम: ॥17॥
नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नम: । नम: पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥18॥
ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सुरायादित्यवर्चसे । भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नम: ॥19॥
तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने । कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नम: ॥20॥

तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे । नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥21॥
नाशयत्येष वै भूतं तमेष सृजति प्रभु: । पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभि: ॥22॥
एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठित: । एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम्‌ ॥23॥
देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतुनां फलमेव च । यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमं प्रभु: ॥24॥
एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च । कीर्तयन्‌ पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव ॥25॥

पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगप्ततिम्‌ । एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ॥26॥
अस्मिन्‌ क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि । एवमुक्ता ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम्‌ ॥27॥
एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत्‌ तदा ॥ धारयामास सुप्रीतो राघव प्रयतात्मवान्‌ ॥28॥
आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान्‌ । त्रिराचम्य शूचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान्‌ ॥29॥
रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थं समुपागतम्‌ । सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत्‌ ॥30॥

अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमना: परमं प्रहृष्यमाण: । निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥31॥

।।सम्पूर्ण ।।




||  मन्त्र  || 

सत नमो आदेश ! 
गुरूजी को आदेश !
ॐ गुरूजी ! ओमकार निरंजन निराकार सूर्य मन्त्र  तत सार !
गगन मंडल का कौन राजा कौन धर्म कौन जाति ! 

ॐ गुरूजी गगन मंडल का सूरज राजा , 
सात अश्व रथ सवार सत धर्म जाति का क्षत्रिय , 
ब्रहम आत्मा रूद्र का अवतार तीन काल का काल निर्माण ,
प्रथमे मित्र नाम द्वितीय विष्णु , तृतीय वरुण नाम , 
चतुर्थे सूर्य नाम , पंचमे भानु नाम , षष्ठमें तपन नाम ,
सप्तमे इन्द्र नाम , अष्टमे खगे नाम , नवमे गभस्ति नाम ,
दशमे यमाय नाम, एकादश हरिन्यरेता नाम , द्वादशे दिवाकर नाम , 
एता द्वादश नाम नमो नमः ! 

ॐ गुरूजी गगन मंडल में जय जय ओमकार  , 
कोटि देवता अपने ग्रह सवार सात वार सताईस नक्षत्र नौ ग्रह बारह राशि पंद्रह तिथि ! 
आओ सिद्धो राखो मन खोजो  पवन खोजो सुर आवागमन ! 
त्रिकुटी भई कोटि प्रकाश ! 
निर्मल ज्योत दशवे द्वार सिद्ध साधक भरलो साखी श्री शम्भु यति गुरु गोरक्षनाथ जी ने भाखी ! 

ॐ भास्कराय विद्महे दिवाकराय धीमही तन्नो सूर्य प्रचोदयात मन्त्र पढ़ अग्नि को जलाये सो नर सूर्य लोक में जाये 
बिना मन्त्र अग्नि को जलाये सो नर नरक में जाये ! 
इतना सूर्य मन्त्र  गायत्री सम्पूर्ण भया ! 
श्री नाथजी गुरूजी को आदेश ! 
अनन्त कोट सिद्धो में , त्र्यम्बक  क्षेत्र  अनुपान शिला पर बैठ श्री शंभु यति गुरु गोरक्षनाथ जी ने पढ़ कथ कर सुनाया !
श्री नाथजी गुरूजी को आदेश आदेश ! 


||  विधि  ||



इस मन्त्र से सूर्य उदय के समय सूर्य देव को जल दे और फिर इस मन्त्र का दो घंटे जप करे  ! ऐसा करने से मन्त्र सिद्ध हो जायेगा ! सूर्य देव को चढ़ाये जाने वाले जल में गुड़ मिलाये ! ऐसा ४१ दिन करे मन्त्र सिद्ध हो जायेगा ! जब भी कभी पूजन के लिए आग जलाये तो इस मन्त्र का जाप करे अनेक योगी धूने में आग लगाते समय इसी मन्त्र का जाप करते है ! वस्त्र कोई भी पहन सकते है माला की कोई आवश्यकता नहीं क्योंकि सच्चे साधुओं के पास तो रहने के लिए झोपड़ी भी नहीं होती तो मणियों की माला और रंग बिरंगे  वस्त्र कहाँ से लाये ! साधु बनकर ही इस मन्त्र का जप करे !


||  विशेष विधि  ||



यदि सूर्य देव पर त्राटक करते हुए दोपहर में रोज इस मन्त्र का जाप किया जाये तो भगवान् सूर्य साक्षात दर्शन देते है ! पहले एक मिनट त्राटक करे फिर धीरे धीरे यह अभ्यास एक घंटे तक ले जाये ! ऐसी साधना सूर्य पुत्र कर्ण ने की थी , पर इस साधना को सिद्ध गुरु की देख रेख में ही करे और जब भी सूर्य त्राटक करे तो साथ में साबर सोम गायत्री का जाप रात्रि में करते हुए चन्द्र पर त्राटक जरूर करे जितने दिन चन्द्र दर्शन न हो उतने दिन केवल सोम गायत्री मन्त्र  का जप करे ! सोम गायत्री अपने गुरुदेव से प्राप्त करे !


भगवान् सूर्य आप सबका कल्याण करे और गलत प्रचार करने वाले विद्वानों को भी सद्बुद्धि दे !

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विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )