Sunday, May 24, 2020

सूर्य साधना SUN SURYA SADHNA

सूर्य साधना SUN SURY SADHNA


भगवान सूर्य की उपासना कौन नहीं करना चाहेगा ? भगवान् सूर्य सबका मंगल करने वाले है , वह ग्रहों के राजा माने जाते है ! सूर्य देवता को साक्षात देव माना जाता है जो प्रतिदिन सारी सृष्टि को दर्शन देते है ! शास्त्रों के अनुसार सूर्य उदय के समय ब्रह्मा रुपी गायत्री का ध्यान कर गायत्री मन्त्र का जप करे , जब सूर्य सिर के ऊपर आ जाये तो विष्णु रुपी गायत्री का ध्यान कर गायत्री मन्त्र का जप करे और शाम के समय शिव रुपी गायत्री का ध्यान कर गायत्री मन्त्र का जप करे ! सूर्य उदय के समय कुमारी का ध्यान करे और मध्यान्ह में नवयुवती का ध्यान करे और शाम के समय वृद्ध रुपी गायत्री का ध्यान करे ! सूर्यास्त के बाद गायत्री जप निषेध माना जाता है !

ज्योतिष  के अनुसार सूर्य के अस्त हो जाने के बाद जन्म कुंडली पर विचार नहीं करना चाहिए क्योंकि जब ग्रहों के राजा सूर्य अस्त हो जाये तो वेद का तीसरा नेत्र कहे जाने वाले ज्योतिष को भी विश्राम देना चाहिए ! भगवान् सूर्य के बारह नाम है , वह प्रत्येक राशि में अपना अलग प्रभाव और अलग रूप दिखाते है ! प्रातःकाल भगवान् सूर्य को उनके बारह नामो से जल देने का पुण्य एक हज़ार गौ दान के बराबर है !

ज्योतिष ने सूर्य को सरकार का कारक माना है यदि राजा का 'कर' मतलब सरकार का टैक्स चोरी किया जाये तो सूर्य बुरा फल देते है इसलिए हमें हमारा टैक्स जरूर भरना चाहिए ! भगवान् सूर्य की कृपा से तेज़ , बल और बुद्धि की वृद्धि होती है और चर्म रोग आदि अनेक व्याधिया शांत होती है !

सूर्य पूजन केवल सूर्य के रहते ही किया जाता है सूर्यास्त के बाद सूर्य पूजन करने से शनि का कोप सहना पड़ता है क्योंकि सूर्यास्त के बाद सूर्य के शत्रु शनि का समय शुरू हो जाता है और शनि इस काल में बलवान हो जाते है क्योंकि उन्हें काल का बल मिल जाता है ! वैदिक ज्योतिष में भी सूर्यास्त के बाद सूर्य पूजन की मनाही है यदि सूर्य सप्तम भाव में हो और व्यक्ति सूर्यास्त के बाद दान करे तो उस व्यक्ति को अपने जीवन में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है , पर कुछ विद्वानों का मत है कि सूर्य का पूजन सूर्यास्त के बाद करना चाहिए और ऐसे विद्वानों का यह भी कहना है कि सूर्य को जल देने के लिए जल में चीनी मिलानी चाहिए !

यदि डूबे हुए सूर्य को प्रणाम किया जाये और पूजन किया जाये तो सूर्य का विपरीत फल मिलता है और व्यक्ति भी डूबे हुए सूर्य की तरह ही डूब जाता है ! यहाँ ध्यान देने योग्य यह बात है कि सूर्य पूजन में सदैव जल में गुड़ मिलाया जाता है क्योंकि सूर्य एक गर्म ग्रह है और गुड़ को भी गर्म माना जाता है पर पता नहीं किस आधार पर यह विद्वान सूर्य पूजन में चीनी इस्तेमाल करने की राय देते है !  ऐसे विद्वानों को यदि महामूर्ख की उपाधि दी जाये तो महामूर्ख शब्द का अपमान होगा ! केवल प्रसिद्धि के लिए यह विद्वान् लोगो को गलत राह दिखा रहे है ! सूर्य पूजन में लाल वस्तुओं का इस्तेमाल किया जाता है !


सूर्य द्वादशनाम स्तोत्र

आदित्यं प्रथमं नाम द्वितीयं तु दिवाकर:।
तृतीयं भास्कर: प्रोक्तं चतुर्थं तु प्रभाकर:।।1।।
पंचमं तु सहस्त्रांशु षष्ठं त्रैलोक्यलोचन:।
सप्तमं हरिदश्वश्य अष्टमं च विभावसु:।।2।।
नवमं दिनकर: प्रोक्तों दशमं द्वादशात्मक:।
एकादशं त्रयोमूर्ति द्वादशं सूर्य एव च।।3।।

यदि किसी जातक(Native) की जन्म कुण्डली में सूर्य की महादशा चली हुई है अथवा सूर्य की अन्तर्दशा चली हुई है तब उसे “सूर्य द्वादश नाम स्तोत्र” का प्रतिदिन जाप करना चाहिए और स्तोत्र के जाप के बाद प्रतिदिन सूर्य भगवान की पूजा भी करनी चाहिए. ऎसा करने पर सूर्य की महादशा/अन्तर्दशा में हर प्रकार की समस्या का निवारण हो जाएगा.

सूर्य अष्टकं सूर्य अष्टक स्तोत्र सूर्याष्टक स्तोत्र


आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर | 
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तुते ||

सप्ताश्वरथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम् | 
श्वेतपद्मधरं देवं तँ सूर्यं प्रणमाम्यहं || 

लोहितं रथमारूढं सर्वलोकपितामहम् | 
महापापहरं देवं तँ सूर्यं प्रणमाम्यहं || 

त्रैगुण्यं च महाशूरं ब्रह्मविष्णुमहेश्वरं | 
महापापहरं देवं तँ सूर्यं प्रणमाम्यहं || 

बृंहितं तेजःपुंजं च वायुमाकाशमेव च | 
प्रभुं च सर्वलोकानां तँ सूर्यं प्रणमाम्यहं || 

बन्धूकपुष्पसंकाशं हारकुण्डलभूषितम् |
एकचक्रधरं देवं तँ सूर्यं प्रणमाम्यहं ||

तँ सूर्य जगत्कर्तारं महातेजःप्रदीपनम् |
महापापहरं देवं तँ सूर्यं प्रणमाम्यहं || 

तँ सूर्यं जगतां नाथं ज्ञानविज्ञानमोक्षदम् |
महापापहरं देवं तँ सूर्यं प्रणमाम्यहं || 

|| श्रीशिवप्रोक्तं सूर्याष्टकं सम्पूर्णं || 


आदित्य हृदय स्तोत्र संपूर्ण पाठ ADITY HRIDY STOTRAM SAMPURN PATH


आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ नियमित करने सेअप्रत्याशित लाभ मिलता है। आदित्य हृदय स्तोत्र के पाठ से नौकरी में पदोन्नति, धन प्राप्ति, प्रसन्नता, आत्मविश्वास के साथ-साथ समस्त कार्यों में सफलता मिलती है। हर मनोकामना सिद्ध होती है। सरल शब्दों में कहें तो आदित्य ह्रदय स्तोत्र हर क्षेत्र में चमत्कारी सफलता देता है। 

ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्‌ । रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्‌ ॥1॥
दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्‌ । उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा ॥2॥
राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्मं सनातनम्‌ । येन सर्वानरीन्‌ वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3॥
आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्‌ । जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम्‌ ॥4॥
सर्वमंगलमागल्यं सर्वपापप्रणाशनम्‌ । चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम्‌ ॥5॥

रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्‌ । पुजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्‌ ॥6॥
सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावन: । एष देवासुरगणांल्लोकान्‌ पाति गभस्तिभि: ॥7॥
एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिव: स्कन्द: प्रजापति: । महेन्द्रो धनद: कालो यम: सोमो ह्यापां पतिः ॥8॥
पितरो वसव: साध्या अश्विनौ मरुतो मनु: । वायुर्वहिन: प्रजा प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकर: ॥9॥
आदित्य: सविता सूर्य: खग: पूषा गभस्तिमान्‌ । सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकर: ॥10॥

हरिदश्व: सहस्त्रार्चि: सप्तसप्तिर्मरीचिमान्‌ । तिमिरोन्मथन: शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान्‌ ॥11॥
हिरण्यगर्भ: शिशिरस्तपनोऽहस्करो रवि: । अग्निगर्भोऽदिते: पुत्रः शंखः शिशिरनाशन: ॥12॥
व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजु:सामपारग: । घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥13॥
आतपी मण्डली मृत्यु: पिगंल: सर्वतापन:। कविर्विश्वो महातेजा: रक्त:सर्वभवोद् भव: ॥14॥
नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावन: । तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन्‌ नमोऽस्तु ते ॥15॥

नम: पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नम: । ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नम: ॥16॥
जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नम: । नमो नम: सहस्त्रांशो आदित्याय नमो नम: ॥17॥
नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नम: । नम: पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥18॥
ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सुरायादित्यवर्चसे । भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नम: ॥19॥
तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने । कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नम: ॥20॥

तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे । नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥21॥
नाशयत्येष वै भूतं तमेष सृजति प्रभु: । पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभि: ॥22॥
एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठित: । एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम्‌ ॥23॥
देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतुनां फलमेव च । यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमं प्रभु: ॥24॥
एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च । कीर्तयन्‌ पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव ॥25॥

पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगप्ततिम्‌ । एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ॥26॥
अस्मिन्‌ क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि । एवमुक्ता ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम्‌ ॥27॥
एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत्‌ तदा ॥ धारयामास सुप्रीतो राघव प्रयतात्मवान्‌ ॥28॥
आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान्‌ । त्रिराचम्य शूचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान्‌ ॥29॥
रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थं समुपागतम्‌ । सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत्‌ ॥30॥

अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमना: परमं प्रहृष्यमाण: । निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥31॥

।।सम्पूर्ण ।।




||  मन्त्र  || 

सत नमो आदेश ! 
गुरूजी को आदेश !
ॐ गुरूजी ! ओमकार निरंजन निराकार सूर्य मन्त्र  तत सार !
गगन मंडल का कौन राजा कौन धर्म कौन जाति ! 

ॐ गुरूजी गगन मंडल का सूरज राजा , 
सात अश्व रथ सवार सत धर्म जाति का क्षत्रिय , 
ब्रहम आत्मा रूद्र का अवतार तीन काल का काल निर्माण ,
प्रथमे मित्र नाम द्वितीय विष्णु , तृतीय वरुण नाम , 
चतुर्थे सूर्य नाम , पंचमे भानु नाम , षष्ठमें तपन नाम ,
सप्तमे इन्द्र नाम , अष्टमे खगे नाम , नवमे गभस्ति नाम ,
दशमे यमाय नाम, एकादश हरिन्यरेता नाम , द्वादशे दिवाकर नाम , 
एता द्वादश नाम नमो नमः ! 

ॐ गुरूजी गगन मंडल में जय जय ओमकार  , 
कोटि देवता अपने ग्रह सवार सात वार सताईस नक्षत्र नौ ग्रह बारह राशि पंद्रह तिथि ! 
आओ सिद्धो राखो मन खोजो  पवन खोजो सुर आवागमन ! 
त्रिकुटी भई कोटि प्रकाश ! 
निर्मल ज्योत दशवे द्वार सिद्ध साधक भरलो साखी श्री शम्भु यति गुरु गोरक्षनाथ जी ने भाखी ! 

ॐ भास्कराय विद्महे दिवाकराय धीमही तन्नो सूर्य प्रचोदयात मन्त्र पढ़ अग्नि को जलाये सो नर सूर्य लोक में जाये 
बिना मन्त्र अग्नि को जलाये सो नर नरक में जाये ! 
इतना सूर्य मन्त्र  गायत्री सम्पूर्ण भया ! 
श्री नाथजी गुरूजी को आदेश ! 
अनन्त कोट सिद्धो में , त्र्यम्बक  क्षेत्र  अनुपान शिला पर बैठ श्री शंभु यति गुरु गोरक्षनाथ जी ने पढ़ कथ कर सुनाया !
श्री नाथजी गुरूजी को आदेश आदेश ! 


||  विधि  ||



इस मन्त्र से सूर्य उदय के समय सूर्य देव को जल दे और फिर इस मन्त्र का दो घंटे जप करे  ! ऐसा करने से मन्त्र सिद्ध हो जायेगा ! सूर्य देव को चढ़ाये जाने वाले जल में गुड़ मिलाये ! ऐसा ४१ दिन करे मन्त्र सिद्ध हो जायेगा ! जब भी कभी पूजन के लिए आग जलाये तो इस मन्त्र का जाप करे अनेक योगी धूने में आग लगाते समय इसी मन्त्र का जाप करते है ! वस्त्र कोई भी पहन सकते है माला की कोई आवश्यकता नहीं क्योंकि सच्चे साधुओं के पास तो रहने के लिए झोपड़ी भी नहीं होती तो मणियों की माला और रंग बिरंगे  वस्त्र कहाँ से लाये ! साधु बनकर ही इस मन्त्र का जप करे !


||  विशेष विधि  ||



यदि सूर्य देव पर त्राटक करते हुए दोपहर में रोज इस मन्त्र का जाप किया जाये तो भगवान् सूर्य साक्षात दर्शन देते है ! पहले एक मिनट त्राटक करे फिर धीरे धीरे यह अभ्यास एक घंटे तक ले जाये ! ऐसी साधना सूर्य पुत्र कर्ण ने की थी , पर इस साधना को सिद्ध गुरु की देख रेख में ही करे और जब भी सूर्य त्राटक करे तो साथ में साबर सोम गायत्री का जाप रात्रि में करते हुए चन्द्र पर त्राटक जरूर करे जितने दिन चन्द्र दर्शन न हो उतने दिन केवल सोम गायत्री मन्त्र  का जप करे ! सोम गायत्री अपने गुरुदेव से प्राप्त करे !


भगवान् सूर्य आप सबका कल्याण करे और गलत प्रचार करने वाले विद्वानों को भी सद्बुद्धि दे !

आदित्य हृदय स्तोत्र AADITY HRIDAY STOTR

आदित्य हृदय स्तोत्र AADITY HRIDAY STOTR

संकल्प


ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद् भगवतोमहापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्त्तमानस्य अद्य ब्रह्मणोन्हि द्वितिय परार्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशति तमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे आर्यावर्तैकदेशे विक्रमनाम संवतरे अत्राद्य महामंगल्य फलप्रद मासोत्तमे मासे पुण्यपवित्र ( PLS .CHANGE IT श्रावणमासे शुभे कृष्ण पक्षे अमावस्या तिथौ सौम्यावासरे अद्य श्री सूर्यग्रहण पुण्यकाले अस्माकं सदगुरुदेवं पादानां परम पूज्य ) परिवार सहितानां च आयुआरोग्य ऐश्वर्य यशः कीर्ति पुष्टि वृद्धिअर्थे तथा समस्त जगति राजहारे सर्वत्र सुखशांति यशोविजय लाभादि प्राप्तयर्थे, सर्वोपद्रव शमनार्थे,  स्तोत्र पाठ अहं करिष्ये।


'आदित्यहृदय स्तोत्र'

विनियोग

ॐ अस्य आदित्य हृदयस्तोत्रस्यागस्त्यऋषिरनुष्टुपछन्दः, आदित्येहृदयभूतो
भगवान ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्मविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः।

ऋष्यादिन्यास

ॐ अगस्त्यऋषये नमः, शिरसि। 
अनुष्टुपछन्दसे नमः, मुखे। 
आदित्यहृदयभूतब्रह्मदेवतायै नमः हृदि।
ॐ बीजाय नमः, गुह्यो। 
रश्मिमते शक्तये नमः, पादयो। 
ॐ तत्सवितुरित्यादिगायत्रीकीलकाय नमः नाभौ।

करन्यास

ॐ रश्मिमते अंगुष्ठाभ्यां नमः। 
ॐ समुद्यते तर्जनीभ्यां नमः।
ॐ देवासुरनमस्कृताय मध्यमाभ्यां नमः। 
ॐ विवरवते अनामिकाभ्यां नमः।
ॐ भास्कराय कनिष्ठिकाभ्यां नमः। 
ॐ भुवनेश्वराय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।

हृदयादि अंगन्यास

ॐ रश्मिमते हृदयाय नमः। 
ॐ समुद्यते शिरसे स्वाहा। 
ॐ देवासुरनमस्कृताय शिखायै वषट्।
ॐ विवस्वते कवचाय हुम्। 
ॐ भास्कराय नेत्रत्रयाय वौषट्। 
ॐ भुवनेश्वराय अस्त्राय फट्।

इस प्रकार न्यास करके निम्नांकित मंत्र से भगवान सूर्य का ध्यान एवं नमस्कार करना चाहिए-

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।


ततो युद्धपरिश्रान्तम् समरे चिन्तया स्थितम । रावणम् चाग्रतो दृष्टवा युद्धाय समुपस्थितम ॥ 1

दैवतैश्च समागम्य दृष्टुमभ्यागतो रणम । उपागम्या ब्रवीद्राम-मगस्तयो भगवान् ऋषिः ॥ 2 

उधर श्रीरामचन्द्रजी युद्ध से थककर चिंता करते हुए रणभूमि में खड़े हुए थे । इतने में रावण भी युद्ध के लिए उनके सामने उपस्थित हो गया । यह देख भगवान् अगस्त्य मुनि, जो देवताओं के साथ युद्ध देखने के लिए आये थे, श्रीराम के पास जाकर बोले ।

राम राम महाबाहो शृणु गुह्यम सनातनम । येन सर्वानरीन वत्स समरे विजयिष्यसि ॥ 3 

आदित्यहृदयम् पुण्यम सर्वशत्रु-विनाशनम । जयावहम् जपेन्नित्य-मक्षय्यम परमम् शिवम् ॥ 4 

सर्वमंगल-मांगलयम सर्वपाप प्रणाशनम् । चिंताशोक-प्रशमन-मायुरवर्धन-मुत्तमम् ॥ 5 

सबके ह्रदय में रमन करने वाले महाबाहो राम ! यह सनातन गोपनीय स्तोत्र सुनो ! वत्स ! इसके जप से तुम युद्ध में अपने समस्त शत्रुओं पर विजय पा जाओगे । इस गोपनीय स्तोत्र का नाम है 'आदित्यहृदय' । यह परम पवित्र और संपूर्ण शत्रुओं का नाश करने वाला है । इसके जप से सदा विजय कि प्राप्ति होती है । यह नित्य अक्षय और परम कल्याणमय स्तोत्र है । सम्पूर्ण मंगलों का भी मंगल है । इससे सब पापों का नाश हो जाता है । यह चिंता और शोक को मिटाने तथा आयु का बढ़ाने वाला उत्तम साधन है ।

रश्मिमन्तम समुद्यन्तम देवासुर-नमस्कृतम् । पूजयस्व विवस्वन्तम भास्करम् भुवनेश्वरम् ॥ 6 

सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मि-भावनः । एष देवासुरगणान् लोकान पाति गभस्तिभिः ॥ 7 

एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः । महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपामपतिः ॥ 8 

पितरो वसवः साध्या ह्यश्विनौ मरुतो मनुः । वायुर्वहनी: प्रजाप्राण ऋतु कर्ता प्रभाकरः ॥ 9 

भगवान् सूर्य अपनी अनंत किरणों से सुशोभित हैं । ये नित्य उदय होने वाले, देवता और असुरों से नमस्कृत, विवस्वान नाम से प्रसिद्द, प्रभा का विस्तार करने वाले और संसार के स्वामी हैं । तुम इनका रश्मिमंते नमः, समुद्यन्ते नमः, देवासुरनमस्कृताये नमः, विवस्वते नमः, भास्कराय नमः, भुवनेश्वराये नमः इन मन्त्रों के द्वारा पूजन करो।संपूर्ण देवता इन्ही के स्वरुप हैं । ये तेज़ की राशि तथा अपनी किरणों से जगत को सत्ता एवं स्फूर्ति प्रदान करने वाले हैं । ये अपनी रश्मियों का प्रसार करके देवता और असुरों सहित समस्त लोकों का पालन करने वाले हैं ।
ये ही ब्रह्मा, विष्णु शिव, स्कन्द, प्रजापति, इंद्र, कुबेर, काल, यम, चन्द्रमा, वरुण, पितर , वसु, साध्य, अश्विनीकुमार, मरुदगण, मनु, वायु, अग्नि, प्रजा, प्राण, ऋतुओं को प्रकट करने वाले तथा प्रकाश के पुंज हैं ।

आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गभस्तिमान । सुवर्णसदृशो भानुर-हिरण्यरेता दिवाकरः ॥ 10 

हरिदश्वः सहस्रार्चि: सप्तसप्ति-मरीचिमान । तिमिरोन्मन्थन: शम्भुस्त्वष्टा मार्ताण्ड अंशुमान ॥ 11 

हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनो भास्करो रविः । अग्निगर्भोsदिते: पुत्रः शंखः शिशिरनाशान: ॥ 12 

व्योम नाथस्तमोभेदी ऋग्य जुस्सामपारगः । धनवृष्टिरपाम मित्रो विंध्यवीथिप्लवंगम: ॥ 13 

आतपी मंडली मृत्युः पिंगलः सर्वतापनः । कविर्विश्वो महातेजाः रक्तः सर्वभवोद्भव: ॥ 14 

नक्षत्रग्रहताराणा-मधिपो विश्वभावनः । तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन्नमोस्तुते ॥ 15 

इनके नाम हैं आदित्य(अदितिपुत्र), सविता(जगत को उत्पन्न करने वाले), सूर्य(सर्वव्यापक), खग, पूषा(पोषण करने वाले), गभस्तिमान (प्रकाशमान), सुवर्णसदृश्य, भानु(प्रकाशक), हिरण्यरेता(ब्रह्मांड कि उत्पत्ति के बीज), दिवाकर(रात्रि का अन्धकार दूर करके दिन का प्रकाश फैलाने वाले), हरिदश्व, सहस्रार्चि(हज़ारों किरणों से सुशोभित), सप्तसप्ति(सात घोड़ों वाले), मरीचिमान(किरणों से सुशोभित), तिमिरोमंथन(अन्धकार का नाश करने वाले), शम्भू, त्वष्टा, मार्तण्डक(ब्रह्माण्ड को जीवन प्रदान करने वाले), अंशुमान, हिरण्यगर्भ(ब्रह्मा), शिशिर(स्वभाव से ही सुख प्रदान करने वाले), तपन(गर्मी पैदा करने वाले), अहस्कर, रवि, अग्निगर्भ(अग्नि को गर्भ में धारण करने वाले), अदितिपुत्र, शंख, शिशिरनाशन(शीत का नाश करने वाले), व्योमनाथ(आकाश के स्वामी), तमभेदी, ऋग, यजु और सामवेद के पारगामी, धनवृष्टि, अपाम मित्र (जल को उत्पन्न करने वाले), विंध्यवीथिप्लवंगम (आकाश में तीव्र वेग से चलने वाले), आतपी, मंडली, मृत्यु, पिंगल(भूरे रंग वाले), सर्वतापन(सबको ताप देने वाले), कवि, विश्व, महातेजस्वी, रक्त, सर्वभवोद्भव (सबकी उत्पत्ति के कारण), नक्षत्र, ग्रह और तारों के स्वामी, विश्वभावन(जगत कि रक्षा करने वाले), तेजस्वियों में भी अति तेजस्वी और द्वादशात्मा हैं। इन सभी नामो से प्रसिद्द सूर्यदेव ! आपको नमस्कार है ।

नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रए नमः । ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः ।। 16 

जयाय जयभद्राय हर्यश्वाए नमो नमः । नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः ॥ 17 

नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नमः । नमः पद्मप्रबोधाय मार्तण्डाय नमो नमः ॥ 18 

ब्रह्मेशानाच्युतेषाय सूर्यायादित्यवर्चसे । भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः ॥ 19

तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने । कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषाम् पतये नमः ॥ 20 

पूर्वगिरी उदयाचल तथा पश्चिमगिरी अस्ताचल के रूप में आपको नमस्कार है । ज्योतिर्गणों (ग्रहों और तारों) के स्वामी तथा दिन के अधिपति आपको प्रणाम है ।आप जयस्वरूप तथा विजय और कल्याण के दाता हैं । आपके रथ में हरे रंग के घोड़े जुते रहते हैं । आपको बारबार नमस्कार है । सहस्रों किरणों से सुशोभित भगवान् सूर्य ! आपको बारम्बार प्रणाम है । आप अदिति के पुत्र होने के कारण आदित्य नाम से भी प्रसिद्द हैं, आपको नमस्कार है ।उग्र, वीर, और सारंग सूर्यदेव को नमस्कार है । कमलों को विकसित करने वाले प्रचंड तेजधारी मार्तण्ड को प्रणाम है । 
आप ब्रह्मा, शिव और विष्णु के भी स्वामी है । सूर आपकी संज्ञा है, यह सूर्यमंडल आपका ही तेज है, आप प्रकाश से परिपूर्ण हैं, सबको स्वाहा कर देने वाली अग्नि आपका ही स्वरुप है, आप रौद्ररूप धारण करने वाले हैं, आपको नमस्कार है । आप अज्ञान और अन्धकार के नाशक, जड़ता एवं शीत के निवारक तथा शत्रु का नाश करने वाले हैं । आपका स्वरुप अप्रमेय है । आप कृतघ्नों का नाश करने वाले, संपूर्ण ज्योतियों के स्वामी और देवस्वरूप हैं, आपको नमस्कार है ।

तप्तचामिकराभाय वह्नये विश्वकर्मणे । नमस्तमोsभिनिघ्नाये रुचये लोकसाक्षिणे ॥ 21 

नाशयत्येष वै भूतम तदेव सृजति प्रभुः । पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः ॥ 22 

एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः । एष एवाग्निहोत्रम् च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम ॥ 23 

वेदाश्च क्रतवश्चैव क्रतुनाम फलमेव च । यानि कृत्यानि लोकेषु सर्व एष रविः प्रभुः ॥  24 

आपकी प्रभा तपाये हुए सुवर्ण के समान है, आप हरी और विश्वकर्मा हैं, तम के नाशक, प्रकाशस्वरूप और जगत के साक्षी हैं, आपको नमस्कार है ।रघुनन्दन ! ये भगवान् सूर्य ही संपूर्ण भूतों का संहार, सृष्टि और पालन करते हैं । ये अपनी किरणों से गर्मी पहुंचाते और वर्षा करते हैं ।  
ये सब भूतों में अन्तर्यामी रूप से  स्थित होकर उनके सो जाने पर भी जागते रहते हैं । ये ही अग्निहोत्र तथा अग्निहोत्री पुरुषों को मिलने वाले फल हैं । देवता, यज्ञ और यज्ञों के फल भी ये ही हैं । संपूर्ण लोकों में जितनी क्रियाएँ होती हैं उन सबका फल देने में ये ही पूर्ण समर्थ हैं ।  

|| फलश्रुति||

 (फलश्रुति का भी पाठ करना होता है | )

एन मापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च । कीर्तयन पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव ॥  25 

पूज्यस्वैन-मेकाग्रे देवदेवम जगत्पतिम । एतत त्रिगुणितम् जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ॥ 26 

अस्मिन क्षणे महाबाहो रावणम् तवं वधिष्यसि । एवमुक्त्वा तदाsगस्त्यो जगाम च यथागतम् ॥ 27 

एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोsभवत्तदा । धारयामास सुप्रितो राघवः प्रयतात्मवान ॥  28

आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वा तु परम हर्षमवाप्तवान् । त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान ॥  29 

रावणम प्रेक्ष्य हृष्टात्मा युद्धाय समुपागमत । सर्वयत्नेन महता वधे तस्य धृतोsभवत् ॥  30 

अथ रवि-रवद-न्निरिक्ष्य रामम | मुदितमनाः परमम् प्रहृष्यमाण: । 
निशिचरपति-संक्षयम् विदित्वा सुरगण-मध्यगतो वचस्त्वरेति ॥  31 

इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये युद्धकाण्डे पंचाधिकशततमः सर्गः।

राघव ! विपत्ति में, कष्ट में, दुर्गम मार्ग में तथा और किसी भय के अवसर पर जो कोई पुरुष इन सूर्यदेव का कीर्तन करता है, उसे दुःख नहीं भोगना पड़ता । इसलिए तुम एकाग्रचित होकर इन देवाधिदेव जगदीश्वर कि पूजा करो । इस आदित्यहृदय का तीन बार जप करने से तुम युद्ध में विजय पाओगे । महाबाहो ! तुम इसी क्षण रावण का वध कर सकोगे । यह कहकर अगस्त्यजी जैसे आये थे वैसे ही चले गए । उनका उपदेश सुनकर महातेजस्वी श्रीरामचन्द्रजी का शोक दूर हो गया । उन्होंने प्रसन्न होकर शुद्धचित्त से आदित्यहृदय को धारण किया और तीन बार आचमन करके शुद्ध हो भगवान् सूर्य की और देखते हुए इसका तीन बार जप किया । इससे उन्हें बड़ा हर्ष हुआ । फिर परम पराक्रमी रघुनाथ जी ने धनुष उठाकर रावण की और देखा और उत्साहपूर्वक विजय पाने के लिए वे आगे बढे । उन्होंने पूरा प्रयत्न करके रावण के वध का निश्चय किया । उस समय देवताओं के मध्य में खड़े हुए भगवान् सूर्य ने प्रसन्न होकर श्रीरामचन्द्रजी की और देखा और निशाचरराज रावण के विनाश का समय निकट जानकर हर्षपूर्वक कहा - 'रघुनन्दन ! अब जल्दी करो' । इस प्रकार भगवान् सूर्य कि प्रशंसा में कहा गया और वाल्मीकि रामायण के युद्ध काण्ड में वर्णित यह आदित्य हृदयम मंत्र संपन्न होता है ।

Saturday, May 9, 2020

ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका हिमाचल प्रदेश JYOTISH TANTR MANTR YANTR TONA TOTKA HIMACHAL PRADESH HP

ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका हिमाचल प्रदेश JYOTISH TANTR MANTR YANTR TONA TOTKA HIMACHAL PRADESH HP



कॉल करें आपका कार्य गोपनीय रहेगा और काम भी निश्चित होगा । दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है 

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प्रेम विवाह के लिए वाशिकरण Vashikaran for Love Marriage

खोया प्यार पाने के लिए वाशिकरण Vashikaran to get back Lost Love Again

बॉय फ्रेंड गर्ल फ्रैंड को अपने वश में रखने के लिए वाशिकरण Vashikaran to Control Boy friend/Girl Friend

पति को अपने वश में रखने के लिए वाशिकरण Vashikaran to Control Husband

समलैंगिक को अपने वश में रखने के लिए वाशिकरण Vashikaran to Control Same Sex/ Gay

पत्नी को वापस पाने के लिए वाशिकरण Vashikaran to get back your Wife

पति को वापस मिलने या पाने के लिए वाशिकरण Vashikaran to get back your Husband

बॉय फ्रेंड को वापस मिलने या पाने के लिए वाशिकरण Vashikaran to get back your Boy Friend

गर्ल फ्रेंड को वापस मिलने या पाने के लिए वाशिकरण Vashikaran to get back your Girl Friend

खोया प्यार वापस पाने के लिए वाशिकरण Vashikaran to get back your lost Love Back

डाइवोर्स केस जितने के लिए अनुष्ठान Anushthan for Divorce Cases

सम्पति विवाद जितने के लिए अनुष्ठान Anushthan for Property Cases

केस जितने के लिए अनुष्ठान Anushthan for Court Cases

नेतागिरी में सफलता के लिए अनुष्ठान Special Anushthan for Political Carrier

Amroh, Anu Bajuri Balh Bassi-Jhaniara Brahlari Changer Darogan Pati Kot Daruhi Dei Ka Naun Dhaned Jangal Ropa Khiah Lohakharian Kuthera Laleen Majhog Sultani Mati Tihra Nalti Neri Pharnol Ropa Sasan Ser Balauni Tibbi

2 Nadaun  Amlehar Badaran Badheda Balhduhak Bara Basaral Batran Behrad Bela Bhadrol Bhandru Bharmoti Khurad Bhumpal Booni Chouru Dangri Dhaneta Faste Gahli Galore Khas Gauna Ghaloon Goeis Gawal Pathar Hareta Hathol Jalari Jasai Jhalan Jol Sappar Kaloor Kamlah Karndola  lasi Karaur Kashmir Kitpal Kohla Kotla-Chillian Lahar Kotlu Lahra Mair Manjheli Majhiyar Malag Mann Mansai Nara Naryah Pansai Panyali Phahal Putdiyal Rail Rangas Sanahi Saproh Sareri Uttap

3 Bijhari Baragran Barsar Balh Bihal Balyah Bani Bhakreri Bhel Bijhari Chakmoh Dalchera Dandru Dandvi Dhangota Dhabdiyana Garli Ghangotkalan Ghori Dhabiri Gyaragran Jangli Jajri Jhanjhyani Jore Amb Jyoli Devi Karsai Kalauhan Kalwal Kanoh Karer Kathiyana Kulehra Kyarabag Lohdar Maharal Makkar Morsu Sultani Nanawan Pahlu Pathliyar Raili Sakroh Samaila Samtana Sathwin Sour Sohari Tikker Rajputana Tippar Usnadkalan

4 Bhoranj  Aghaar Amroh Badehar Bahanwi Bhakera Bhalwani Bhaunkhar Bhoranj Bhukkar Dhamrol Dhirad Garsad Hanoh Jahu Jharlog Kakkar Karha Karohata Kharwar Ludar Mahadev Manvin Mehal Mundkhar Nandhan Pandwin Paplah Patta Sadhrian Sahanwin Taal Tikkar Didwin Tikkar Minhansa Ukhali

5 Sujanpur Baghera Bairi Banal Chabutra Chaloh Chamiana Darla Dera Dhamriyana Jangal Jol Karot Kheri Lambri Panoh Patlandar Rangar Ree Spahal Tihra

6 Bamson Amman Badhani Bafrin Bagbara Bajroh Bajrol Baloh Barara Barin Bhater Bherda Bohni Chamboh Chamned Charian Di Dhar Dadu Dari Darvyar Dhalot Dhanwan Dharog Dimmi Duggha Gasota Gawardu Jandaru Kakkar Kale Amb Kanjyan Keharwin Khanauli Kot Langsa Lambloo Nadsin Pandehad Pounhanj Panjot Patnaun Sikandar Samirpur Sarakar Swahal Tappre Tikker Buhla Uhal Utpur

Friday, May 8, 2020

TOTAL FRAUD NAKLI BANGALI BABA

TOTAL FRAUD NAKLI BANGALI BABA



  


Thursday, May 7, 2020

PITR KAVACH PATH पितृ कवच का पवित्र पाठ

PITR KAVACH PATH पितृ कवच का पवित्र पाठ

कृणुष्व पाजः प्रसितिम् न पृथ्वीम् याही राजेव अमवान् इभेन।
तृष्वीम् अनु प्रसितिम् द्रूणानो अस्ता असि विध्य रक्षसः तपिष्ठैः॥
तव भ्रमासऽ आशुया पतन्त्यनु स्पृश धृषता शोशुचानः।
तपूंष्यग्ने जुह्वा पतंगान् सन्दितो विसृज विष्व-गुल्काः॥
प्रति स्पशो विसृज तूर्णितमो भवा पायु-र्विशोऽ अस्या अदब्धः।
यो ना दूरेऽ अघशंसो योऽ अन्त्यग्ने माकिष्टे व्यथिरा दधर्षीत्॥
उदग्ने तिष्ठ प्रत्या-तनुष्व न्यमित्रान् ऽओषतात् तिग्महेते।
यो नोऽ अरातिम् समिधान चक्रे नीचा तं धक्ष्यत सं न शुष्कम्॥
ऊर्ध्वो भव प्रति विध्याधि अस्मत् आविः कृणुष्व दैव्यान्यग्ने।
अव स्थिरा तनुहि यातु-जूनाम् जामिम् अजामिम् प्रमृणीहि शत्रून्। अग्नेष्ट्वा तेजसा सादयामि॥


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Loss due to Pitr Dosh पितृ दोष से हानि

Loss due to Pitr Dosh पितृ दोष से हानि


Loss due to Pitr Dosh पितृ दोष से हानि

(1) संतान न होना, संतान हो तो विकलांग, मंदबुद्धि या चरित्रहीन अथवा होकर मर जाना ।
(2) नौकरी, व्यवसाय में हानि, बरकत न हो ।
(3) परिवार में ऐक्य न हो, अशांति हो ।
(4) घर के सदस्यों में एक या अधिक लोगों का अस्वस्थ होना, इलाज करवाने पर ठीक न होना ।
(5) घर के युवक-युवतियों का विवाह न होना या विवाह में विलंब होना ।

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(6) अपनों के द्वारा धोखा दिया जाना ।
(7) दुर्घटनादि होना, उनकी पुनरावृत्ति होना ।
(8) मांगलिक कार्यों में विघ्न होना ।
(9) परिवार के सदस्यों में किसी को प्रेत-बाधा होना इत्यादि......।

Pitr Dosh due to Abortion भ्रूण हत्या से भी पितृदोष लगता है

Pitr Dosh due to Abortion भ्रूण हत्या से भी पितृदोष लगता है

भ्रूण हत्या से भी पितृदोष लगता है। पितृ दोष निवारण के उपाय :-

(1) पीपल के वृ्क्ष की पूजा करने से पितृ दोष की शान्ति होती है, इसके साथ ही सोमवती अमावस्या को दूध की खीर बनाकर, पितरों को अर्पित करने से भी यह दोष कम होता है या फिर प्रत्येक अमावस्या को एक ब्राह्मण को भोजन कराने व दक्षिणा वस्त्र भेंट करने से पितृ दोष कम होता है । Pitradosh

(2) प्रत्येक अमावस्या को कंडे की धूनी लगाकर उसमें खीर का भोग लगाकर दक्षिण दिशा में पितरों का आव्हान करने व उनसे अपने कर्मों के लिये क्षमायाचना करने से भी लाभ मिलता है।


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(3) सूर्योदय के समय किसी आसन पर खड़े होकर सूर्य को निहारने, उससे शक्ति देने की प्रार्थना करने और गायत्री मंत्र का जाप करने से भी सूर्य मजबूत होता है।

(4) सूर्य को मजबूत करने के लिए माणिक भी पहना जाता है, मगर यह कुंडली में सूर्य की स्थिति पर निर्भर करता है।

(5) सोमवती अमावस्या के दिन पितृ दोष निवारण पूजा करने से भी पितृ दोष में लाभ मिलता है।

(6) कौओं और मछलियों को, चावल और घी मिलाकर बनाये गये लड्डू हर शनिवार को देना

Pitrdosh Nivaran Mantra Sadhna पितृदोष निवारण मंत्र साधना

Pitrdosh Nivaran Mantra Sadhna पितृदोष निवारण मंत्र साधना

Pitrdosh Nivaran Mantra Sadhna पितृदोष निवारण मंत्र साधना

सर्वप्रथम किसी बाजोट पर सफेद वस्त्र बिछाये,भोजपत्र पर अष्टगंध के स्याही में अनार का कलम डुबोकर यंत्र लिखें, यंत्र को कपड़े पर स्थापित कर दे । यंत्र के सामने तिल के तेल का दीपक जलाएं और सुगंधित धूप जलाए,तील के लड्डू का प्रसाद भी किसी प्लेट में रखिये । काली हकीक माला से 11 माला जाप करे और जाप के बाद पितृदेवता से आशीर्वाद का प्रार्थना करे । साधना समाप्ति पर सभी सामग्री को सफेद कपड़े में बांधकर शुद्ध जल में विसर्जित कर दे ।


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मंत्र-
।। ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं मम् सर्व पितृ प्रसीद प्रसीद ह्रौं ह्रीं ह्रां नम: ।।
Om hraam hreem hroum mam sarv pitru prasid prasid hroum hreem hraam namah

If you have Mars effect then do this fast for the peace of Mars

If you have Mars effect  then do this fast for the peace of Mars

In the Puranas, the description of Mangalahari vrat is found. It is said about this fast that the fast is very beneficial for them if there is a problem in the girl's or horoscope due to the unconsciousness of Mangal in the horoscope of a male or female.

The beginning of this fast goes from the first day of the Shukla paksh. But the beginning of this fast in more months is considered inauspicious. Bath in new yoga and take a new red dress. Establish the idol of Tamale's Mars deity in a copper vessel. In the absence of the statue, the copper mangle can also be used. If you take the device, then put the shawl, curve, and the land on the three corners of the saffron or red sandalwood. Then take a bath and worship with red sandalwood and red flowers. Mix reddish wheat flour with jute in jag and make offerings to Lord Mangal. Resolution Take-

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 mm mangal graha pida nivaranaarth tatha cha shighra vivaharth mangal graha pujanam aham karishye.


Then pronounce the goddess Kart, the Psalm, and the 108 names of the goddess. Then remove the idol from the vessel and place it on one side and donate to a young Brahmin full of jaggery in the vessel. Keep such fast continuously for one year. After one year, celebrate fast. This fast is very beneficial.

उधार दिए पैसे अटके हुए है

Loaned money is stuck उधार दिए पैसे अटके हुए है


उधार दिए पैसे अटके हुए है ? लोग पैसे लेकर देते नहीं है ? तो करें ये आसान और अचूक उपाय, आने लगेंगे आपके पैसे। 

हमारे जीवन में धन की स्थिति बहुत महत्वपूर्ण है। आजकल हर काम पैसे से ही होता है। चाहे कोई इंसान काम आये या न आये तो काम नहीं अटकता परन्तु पैसे न हो तो काम अटक जाता है। पैसे के मामले में सभी सक्षम नहीं होते या ये कहें कि सभी पैसे वाले नहीं होते। कुछ लोग धन से सम्पन्न होते है। जिनसे पैसे लेकर मध्यम वर्गीय लोग अपना काम निकालते है। इसके अलावा दोस्ती - रिश्तेदारी में भी सभी एक दूसरे से पैसे का लेन - देन करके काम निकालते है। दिए हुए पैसे वापस आ जाये जब तक तो सब ठीक होता है परन्तु अगर दिए हुए पैसे अटक जाते है या ये कहें कि जिसे दिए है, वो हमारे पैसे देने में आनाकानी करे तो फिर मामला बिगड़ जाता है। उससे रिश्ते तो ख़राब होते ही है साथ में पैसे अटकने से हमारे सोचे हुए काम भी नहीं होते। तब ये लगता है कि मदद करने की कोशिश की और फंस गए। भलाई का जमाना ही नहीं है।

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उस समय मन में ये विचार आता है कि हमारे अटके हुए पैसे वापस कैसे आये ? परन्तु यह एक बहुत समस्या है , जिसका जवाब किसी के पास निश्चित रूप से नहीं होता है। मैं आपको अपने अटके हुए पैसे वापस लेने का एक बहुत ही आसान और सटीक उपाय बता रहा हूँ। जिससे आपके अटके हुए पैसे वापस आजायेंगे और व्यवहार भी बना रहेगा।

अपने अटके हुए पैसे वापस लेने के लिए आप एक अभिमंत्रित गोमती चक्र लेकर अँधेरा होने पर किसी चौराहे पर जाकर एक छोटा सा खड्डा खोदकर उस व्यक्ति का नाम लेते हुए गोमती चक्र को उसमे दबा दें। कुछ ही समय में आपका पैसे वापस आने लग जायेगा।

Witchcraft टोने - टोटके को काटें

Witchcraft टोने - टोटके को काटें

क्या आप किसी टोने - टोटके या तंत्र - मंत्र से पीड़ित है ? तो उस टोटके को काटें इस आसान उपाय से।

यदि आपको लगता है किआपके ऊपर या आपके पति के ऊपर किसी ने टोना टोटका कर रखा है , या कोई ऊपरी बाधा आपका काम बिगाड़ रही है या आपको कुछ घर में कुछ महसूस होता है, दिखता नहीं है, तो आप अवश्य रूप से तांत्रिक शक्ति के शिकार है। यह कार्य आपके परिवार , रिश्तेदार , दोस्त , व्यापार साथी करवा सकते है। इस समस्या के निवारण हेतु ये अचूक बता रहा हूँ।


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किसी भी अमावस्या को एक अलग कमरे में लकड़ी की चौकी पर गेहूं की ढ़ेरी पर एक ताम्बे का जल से भरा पात्र रखें। इस पात्र में एक चांदी का सिक्का और एक अभिमंत्रित गोमती चक्र भी डालिये। फिर रुद्राक्ष की माला से "ॐ नमो तन्त्रम फट निकरी "पीड़ित का नाम बोले" निकरी फट स्वाहा" का एक माला जप करें। जाप के बाद जल से चांदी का सिक्का और गोमती चक्र निकाल कर जल पीड़ित व्यक्ति को पिला दें। जल पिलाने से पहले गोमती चक्र को पीड़ित के ऊपर से सात बार उसारें। चांदी का सिक्का किसी मंदिर में दान करें और गोमती चक्र को बहते पानी में प्रवाहित कर दें। गेहू किसी गाय को खिला दें। वैसे तो एक बार में ही इस उपाय से असर हो जायेगा , परन्तु नहीं हो तो दो -तीन बार दोहराएं तो अवश्य फर्क पड़ेगा।

Are you suffering from pitra dosha क्या आप पितृ दोष से पीड़ित है

Are you suffering from pitra dosha क्या आप पितृ दोष से पीड़ित है


तो करें ये आसान और अचूक उपाय और मनाएं अपने पितरों को।

आज हर व्यक्ति किसी न किसी बात से परेशान है। उसके कोई न कोई परेशानी चलती रहती है। वह एक परेशानी से छुटकारा पाता है और दूसरी परेशानी चालू हो जाती है। वह बहुत कोशिश करता है सब कुछ ठीक रखने की , परन्तु कोई आगे से आगे कोई न कोई मुसीबत खड़ी हो जाती है। वह शारीरिक रूप से या मानसिक रूप से या तो खुद परेशान रहता है अथवा उसके घर में कोई न कोई सदस्य किसी न किसी तरीके से पीड़ित रहता है। इसके अलावा हर समय आर्थिक परेशानी भी चलती रहती है। तब उसे लगता है कि मेरे साथ ऐसा क्यों होता है। इस बात को जानने के लिए व्यक्ति जैसे किसी ज्योतिषी के पास जाता है और उसे पता चलता है कि उसे पितृ दोष है तो वह और भी ज्यादा चिंतित हो जाता है। वह सोचता है कि कोई जिन्दा आदमी नाराज हो तो उसे तो कैसे भी मना लें। परन्तु मरे हुए व्यक्ति को कैसे मनाया जाएँ। अर्थात पितरों को कैसे मनाया जाएँ।
इस परेशानी के लिए मैं आपको एक बहुत ही आसान और सटीक उपाय बता रहा हूँ। इस उपाय को करने के बाद आप स्वयं ही कुछ समय बाद लाभ महसूस करने लग जायेंगे।

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इसके लिए आप किसी भी शुभ मुहूर्त का चयन करें। सूर्योदय से पहले उठ कर , स्नान करके एक लकड़ी की चौकी बाजोट पर नीला कपड़ा बिछाकर उसपर पितृदोष यंत्र के साथ राहु यंत्र को विराजमान करें। तिलक लगा कर भोग लगाएं। तिल्ली के तेल के दीपक के साथ धूप अगरबत्ती करें। किसी ताम्बे की थाली में रोली अर्थात कुमकुम से एक त्रिकोण बनाएं। प्रत्येक कोण पर एक अभिमंत्रित लघु नारियल रखें। त्रिकोण पर चावल और नैवेद्य अर्पित करें। फिर नीले हकीक की माला से  :-

ॐ श्री सर्व पित्रदोष निवारणाय क्लेश दन दन सुख शान्ति देहि देहि फ़ट् स्वाहा 

का तीन माला जप करें। जप के बाद प्रणाम करके उठ जाएँ। अगले दिन पुनः मंत्र जाप करें। इस तरह लगातार दस दिन तक मंत्र जाप करें। दसवें दिन किसी वृद्ध जोड़े को भोजन करवा कर दान दक्षिणा के साथ वस्त्र भेंट करें। बाकि सारी सामग्री को बहते जल में प्रवाहित कर दें।

If you are Manglik यदि मांगलिक है तो

If you are Manglik यदि मांगलिक है तो

यदि मांगलिक है तो इस व्रत से करें मंगल की शांति / If you have Mars effect  then do this fast with the peace of Mars

पुराणों में मंगलहारी व्रत का वर्णन मिलता है। इस व्रत के विषय में कहा जाता है कि जिस कन्या अथवा पुरुष की कुंडली में मंगल दोष के कारण विवाह नहीं हो रहा हो या मंगल की अशुभता के कारण जीवन में परेशानी आ रही हो तो उनके लिए यह व्रत बहुत लाभदायक है।

दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      

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इस व्रत का आरम्भ शुक्ल पक्ष के पहले मंगलवार से जाता है। परन्तु अधिक मास में इस व्रत का आरम्भ अशुभ माना जाता है। शुभ योग में प्रातः स्नान करके नए लाल वस्त्र धारण करें। ताम्बे की मंगल देवता की मूर्ति को किसी ताम्बे के पात्र में स्थापित करें। मूर्ति के अभाव में ताम्बे का त्रिकोण मंगल यंत्र भी ले सकते है। यंत्र ले तो उसके तीनों कोनों पर केसर या लाल चंदन से शूराय, वक्र , और भूमिज लिखें। फिर स्नान करवा कर लाल चंदन और लाल पुष्प से पूजन करे। लाल रंग के फलों के साथ भुने हुए गेहूं को गुड़ में मिलकर भोग बनाये तथा भगवान मंगल को अर्पति करें। संकल्प ले-

मम मंगल ग्रह पीड़ा निवारणार्थ तथा च शीघ्र विवाहार्थ मंगल ग्रह पूजनम अहम् करिष्ये।

फिर मंगल देवता के कवच , स्तोत्र , व १०८ नाम का उच्चारण करे। फिर मूर्ति को पात्र से निकाल कर एक तरफ रख दे तथा पात्र में गुड़ भर के किसी युवा ब्राह्मण को दान करें। इस तरह लगातार एक वर्ष तक व्रत रखें। एक वर्ष बाद व्रत का उद्यापन करें। यह व्रत बहुत लाभकारी है।

Simple detailed interpretation of Nadi Kut for marriage नाड़ी कूट का सरल विस्तृत विवेचन

Simple detailed interpretation of Nadi Kut for marriage नाड़ी  कूट का सरल विस्तृत विवेचन 


अष्टकूट मिलान में सबसे महत्वपूर्ण नाड़ी कूट को माना गया है।  नाड़ी मिलान जन्म नक्षत्र के आधार पर होता है आयुर्वेद के अनुसार मानव शरीर में तीन प्रकार की नाड़ी होती है जो विभिन्न गुणों का प्रतिनिधित्व करती है इनमे पहली नाड़ी आद्य नाड़ी होती है जो वायु प्रधान होती है दूसरी मध्य नाड़ी होती है जो पित्त प्रधान होती है तीसरी अन्त्य नाड़ी होती है जो कफ प्रधान होती है आद्य नाड़ी का चंचल व अस्थिर स्वभाव होता है मध्य नाड़ी का उष्ण स्वभाव होता है अन्त्य नाड़ी का शीतल स्वभाव होता है।  व्यक्ति के शरीर में वात पित्त कफ की संतुलित निश्चित मात्रा होती है जिस व्यक्ति में इन नाड़ियों में से जिस गुण की प्रधानता होती है वही उस व्यक्ति की नाड़ी होती है, स्वस्थ रहने के लिए वातिक जातक को वात प्रधान, पैत्तिक जातक को पित्त प्रधान तथा कफज जातक को कफ प्रधान वस्तुओं का सेवन करना हानिकारक होता है।  यदि देह में नाड़ियों का संतुलन बिगड़ जाये तो रोग पीड़ा उत्पन्न हो जाती है।  इसी तरह ज्योतिष में भी नाड़ियो के आधार पर प्राणी को तीन भागों में विभक्त किया गया है नाड़ी का सम्बन्ध व्यक्ति की शारीरिक धातु से होता है। इसलिए विवाह से पहले वर वधू का नाड़ी मिलान किया जाता है।  क्योकि  दोनों की एक ही नाड़ी होने पर संतान उत्पत्ति में बाधा आती है।

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नाड़ी दोष विशेष :-  

नाड़ी मिलान में मात्र दो ही स्थिति होती है या तो नाड़ी सामान होती है या फिर अलग अलग होती है।  इसलिए इस मिलान में पूर्ण ८ गुण मिलते है अथवा ० गुण मिलते है।  अर्थात वर वधू की अलग अलग नाड़ी हो तो शुद्ध नाड़ी मानी जाती है और यदि   समान नाड़ी हो तो अशुद्ध नाड़ी होती है जो अशुभ होती है. यह महादोष होता है।  ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नाड़ी दोष केवल ब्राह्मणों को लगता है नाड़ी  दोषस्तु विप्राणां  परन्तु अनुभव सिद्ध बात यह है कि यह दोष यदि अन्य जातियों के गुण मिलान में आया है तो उनके संतान उत्पत्ति में अवश्य बाधा आई है। 


नाड़ी दोष परिहार :- 

ज्योतिष शास्त्र में नाड़ी दोष के निम्न परिहार बताये गए है जो मेरे विचार से तो अत्यावश्यक हो तो ही उपयोग में लेने चाहिए।

यदि वर वधू का जन्म एक ही राशि व नक्षत्र में हो तो नाड़ी दोष का परिहार हो जाता है।  परंतु इसमें नक्षत्र चरण भेद अवश्य होना चाहिए। उसमे वधू के नक्षत्र का चरण वर के नक्षत्र चरण के बाद होना चाहिए।

वर वधू की राशि एक ही हो परंतु नक्षत्र अलग अलग हो परन्तु वधू का जन्म नक्षत्र वर के जन्म नक्षत्र के बाद होना चाहिए

वर वधू की राशि अलग हो परन्तु नक्षत्र एक ही हो किन्तु वधू की राशि वर की राशि के बाद की होनी चाहिए।  इस तरह से भी नाड़ी दोष का परिहार होता है।

यदि वर या कन्या का जन्म नक्षत्र आर्द्रा, रोहिणी , मृगशिरा , ज्येष्ठा , श्रवण , रेवती, या उत्तराभाद्रपद में से कोई है तो भी नाड़ी दोष नही लगता।

यदि वर कन्या के राशि स्वामी गुरु, बुध , अथवा शुक्र में से कोई हो तो भी नाड़ी दोष नही लगता है.

Scientific interpretation of Marriage matching गुण मिलान की वैज्ञानिक व्याख्या

Scientific interpretation of Marriage matching गुण मिलान की वैज्ञानिक व्याख्या

प्राचीन विद्वानों ने वर वधू के सफल वैवाहिक जीवन के लिया मेलापक को महत्वपूर्ण माना है. मेलापक से वर वधू की शारीरिक व मानसिक स्थिति के साथ दोनों के विचार गुण अवगुण जनन शक्ति स्वास्थ्य शिक्षा व संभावित आर्थिक स्थिति आदि के बारे में जान सकते है, मेलापक का आधार ३६ गुण है. विवाह के लिए काम से काम १८ गुण मिलने चाहिए. इसके अतिरिक्त और भी कुछ विशेष नियम है जिनके होने पर गुण मिलने के बाद भी विवाह नही होता,

भारतीय ज्योतिष में शरीर को लग्न व चन्द्रमा को मन माना गया है. ज्योतिष में राशि का प्रमुख आधार चन्द्रमा ही है , इसलिए गुण मिलान के लिए ८ में से ४ को चंद्र अर्थात जन्म राशि को ही आधार बनाया है शेष ४ को जन्म नक्षत्र का आधार बनाया है , नक्षत्र का आधार भी चन्द्रमा ही होता है लड़के लड़की के गुण का मिलान ८ क्षेत्रों से किया जाता है इन क्षेत्रों को ज्योतिष में अष्टकूट कहते है इस अष्टकूट के आधार पर ही निश्चय किया जाता है कि विवाह शुभ होगा या नही। अष्टकूट में राशि के आधार पर कुल १५ गुण प्राप्त होते है तथा नक्षत्र के आधार पर २१ गुण प्राप्त होते है

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  1. वर्ण मिलान :- वर्ण मिलान राशि के आधार पर होता है वर्ण ४ होते है १२ राशियों में ३ =३ राशियों पर एक वर्ण प्रतिनिधित्व करता है वर्ण मिलान से लड़के लड़की की अहम् भावना देखी जाती है जल तत्त्व राशि का ब्राह्मण वर्ण होता है अग्नि तत्त्व राशि का क्षत्रिय वर्ण होता है पृथ्वी तत्त्व राशि का वैश्य वर्ण होता है तथा वायु तत्त्व राशि का शुद्र वर्ण होता है 
  2. वश्य मिलान :- वश्य मिलान राशि के आधार पर होता है वश्य मिलान से दोनों के परस्पर लगाव तथा आकर्षण का ज्ञान किया जाता है वश्य चतुष्पद द्विपद जलचर वनचर तथा कीट संज्ञक होता है 
  3. तारा मिलान :- तारा मिलान जन्म नक्षत्र के आधार पर होता है इससे होने वाले पति पत्नी के स्वास्थ्य के विषय में ज्ञान किया जाता है प्रत्येक नक्षत्र से १० वें तथा १९वें नक्षत्र का स्वामी एक ही ग्रह होता है जिस नक्षत्र में जातक जन्म होता है वह जन्म नक्षत्र, उससे १० वा अनुजन्म नक्षत्र तथा उससे १९ वा त्रि जन्म नक्षत्र कहलाता है 
  4. योनि मिलान :- योनि मिलान जन्म नक्षत्र से होता है योनि मिलान द्वारा भावी वर वधु की परस्पर शारीरिक संतुष्टि देखी जाती है मिलान हेतु १४ योनियों को २७ नक्षत्रों में विभाजित किया गया है जन्म नक्षत्र से यह ज्ञात हो जाता है कि लड़का लड़की किस नक्षत्र के है तथा उन १४ योनियों में ही आपस में दोनों के नक्षत्रों से गणना करके योनि का निर्धारण किया जाता है 
  5. ग्रह मैत्री :- ग्रह मैत्री से वर वधू के परस्पर बौद्धिक व आध्यात्मिक सम्बन्धों का ज्ञान होता है ग्रह मिलान का आधार राशि होता है वर वधू के राशि स्वामी ग्रह की आपसी मित्र सम शत्रुता के आधार पर मैत्री का निर्धारण किया जाता है 
  6. गण मिलान :- गन मिलान का आधार जन्म नक्षत्र होता है। इससे वर वधू के स्वभाव के बारे में पता लगता है २७ नक्षत्रों को ३ गणों में विभाजित किया गया है ये देवगण, मनुष्य गण , तथा राक्षस गण के नाम से जाने जाते है ये सतोगुणी तमोगुणी तथा रजोगुणी होते है व्यक्ति का जो गण होता है उसी के अनुरूप उसका स्वभाव होता है।
  7. भकूट मिलान :- भकूट मिलान से वर वधू के होने वाले परिवार एवम बच्चों के साथ पारिवारिक मेलजोल के बारे में जाना जाता है इसका आधार जन्म राशि होता है इससे ज्ञात किया जाता है कि वर वधू की राशियाँ आपस में कितनी दूरी पर है भकूट मिलान में यदि दोनों की राशियां आपस में छठी और आठवी में तो दोनों की मृत्यु तक होने की सम्भावना होती है नवम पंचम हो तो संतान हानि, दूसरी बारहवीं हो तो निर्धनता में जीवन निकलता है इनके आलावा शुभ होती है 
  8. नाड़ी मिलान :- यह सबसे प्रमुख दोष है इसलिए इसे महादोष की संज्ञा दी गई है जिस प्रकार किसी को रक्त दान करने से पहले दोनो का ग्रुप मिलाया जाता है कि एक का रक्त दूसरे को अनुकूल रहेगा या नही उसी प्रकार नाड़ी दोष से देखा जाता है कि वर वधू के सम्बन्ध बनने के बाद दोनों का स्वास्थ्य कैसा रहेगा संतान सम्बन्धी कोई पीड़ा तो नही रहेगी ना। इसका आधार जन्म नक्षत्र होता हैइस प्रकार गुण मिलान का संक्षिप्त विवेचन कर यह बताया गया है कि किस प्रकार गुण मिलान प्रक्रिया कार्य करती है

If you do not get the fame of the work done यदि आपको किये हुए काम का यश नहीं मिलता है

If you do not get the fame of the work done यदि आपको किये हुए काम का यश नहीं मिलता है


तो ये आसान और अचूक उपाय आपके लिए है।

आज हर व्यक्ति अपने परिवार और मित्र जनों के लिए मुसीबत के समय हरसम्भव सहायता के लिए तैयार रहता है। अपनी जी जान लगाकर सब कुछ करने को तैयार रहता है। घर का हर सदस्य एक दूसरे के लिए हमेशा कुछ न कुछ करना चाहता है और करता भी है परन्तु उसे की हुई सहायता अथवा सेवा का यश नहीं मिलता। अर्थात सेवा तो वह व्यक्ति करता है और नाम किसी और का हो जाता है। जैसे:-

माता पिता अपने बच्चों के लिए बहुत कुछ परेशानी उठा के उनका जीवन बनाते है। परन्तु बच्चे ये ही कहते है कि आपने हमारे लिए कुछ नहीं किया। 
बच्चे अपने माता पिता को हर प्रकार का आराम देने की कोशिश में लगे रहते है। परन्तु माता पिता उनको शाबाशी या आशीर्वाद देने की बजाय ये कहते है कि तुमने कुछ नहीं किया। 
एक भाई अपने माता पिता की बहुत सेवा करता है , परन्तु उस सेवा का सारा यश उसको न मिलकर दूसरे भाई को मिल जाता है। माता पिता दूसरे भाई को ही सब कुछ मानते है और जो सेवा करता है उसे कोई यश या नाम नहीं मिलता। तब वह दुखी हो जाता है। 
इसी तरह एक बहु अपने सास ससुर की बहुत सेवा करती है। परन्तु उसे उसकी सेवा का यश मिलने की बजाय बुराई ही मिलती है और यश दूसरे भाई की पत्नी को मिल जाता है। 
ऑफिस में भी जी जान से जो मेहनत करके कम्पनी को आगे ले जाता है उसे कोई नाम नहीं मिलता और जो बॉस की चापलूसी करता है उसे उस मेहनत का सारा क्रेडिट मिल जाता है।
इस तरह की परेशानी आज लगभग हर व्यक्ति के जीवन में रोज आती है। अपने कर्म के प्रतिफल को पाने और उसका लाभ लेने के लिए व्यक्ति को रोज लड़ना पड़ता है। रोज सफाई देनी पड़ती है।

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इस परेशानी के निवारण के लिए आपको सबसे अचूक और आसान उपाय बता रहा हूँ। जो हर व्यक्ति की इस परेशानी को दूर कर देगा। यह आसान और अचूक होने के साथ सात्विक भी है। इसमें खुद का भी नुकसान नहीं है और किसी दूसरे का भी नुकसान नहीं है।

यह उपाय आपको शुक्लपक्ष के रविवार से आरम्भ करना है। रविवार को रात्रि में सोते समय अपने सिरहाने ताम्बे के बर्तन में पानी भरकर उसमें थोड़ा सा शहद मिला दें , उसके साथ सोने व चांदी का सिक्का या अंगूठी रख दें। दूसरे दिन सुबह उठकर सबसे पहले उस पानी को ही पियें। कुछ दिनों में आप अपने प्रति लोगों के व्यवहार को सकारात्मक रूप से बदलता देखेंगे।

विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )