Tuesday, February 28, 2017

माला जप में सावधानियॉ ROSAARY JAAP MALA

माला जप में सावधानियॉ  ROSAARY JAAP MALA
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जप में माला का प्रयोग क्यों होता है
आपने देखा होगा कि बहुत से लोग ध्यान करने के लिए, गुरुमन्त्र जप और भगवान का नाम जपने के लिए माला का प्रयोग करते हैं। कुछ लोग उंगलियों पर गिन कर भी ध्यान जप करते हैं। लेकिन शास्त्रों में माला पर जप करना अधिक शुद्घ और पुण्यदायी कहा गया है। इसके पीछे धार्मिक मान्याताओं के अलावा वैज्ञानिक कारण भी है। 

धार्मिक दृष्टिकोण : अंगिरा ऋषि के अनुसार “असंख्या तु यज्ज्प्तं, तत्सर्वं निष्फलं भवेत।” यानी बिना माला के संख्याहीन जप का कोई फल नहीं मिलता है।

इसका कारण यह है कि, जप से पहले जप की संख्या का संकल्प लेना आवश्यक होता है। संकल्प संख्या में कम ज्यादा होने पर जप निष्फल माना जाता है। इसलिए त्रुटि रहित जप के लिए माला का प्रयोग उत्तम माना गया है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण : जबकि वैज्ञानिक दृष्टि से यह माना जाता है कि अंगूठे और उंगली पर माला का दबाव पड़ने से एक विद्युत तरंग उत्पन्न होती है। यह धमनी के रास्ते हृदय चक्र को प्रभावित करता है जिससे मन एकाग्र और शुद्घ होता है। तनाव और चिंता से मुक्ति मिलती है।

माला जप मध्यमा उंगली और उंगूठे से ही क्यों किया जाता है : माना जाता है कि मध्यमा उंगली का हृदय से सीधा संबंध होता है। हृदय में आत्मा का वास है इसलिए मध्यमा उंगली और उंगूठे से जप किया जाता है।

माला में 108 मुनके का रहस्य
मंत्र जप व धारण करने के लिए जिस माला का उपयोग किया जाता है, उस माला में मोतियों की संख्या 108 होती है। शास्त्रों में इस 108 की संख्या का विशेष महत्व है। माला में 108 ही मुनके क्यों होते हैं, इसके पीछे कई धार्मिक और वैज्ञानिक कारण बताए गए हैं।

सूर्य से सम्बंध :
सूर्य की एक-एक कला का प्रतीक होता है माला का एक-एक मुनका। एक मान्यता के अनुसार माला के 108 मुनके और सूर्य की कलाओं का गहरा संबंध है। एक वर्ष में सूर्य 216000 कलाएं बदलता है और वर्ष में दो बार अपनी स्थिति भी बदलता है। छह माह उत्तरायण रहता है और छह माह दक्षिणायन। अत: सूर्य छह माह की एक स्थिति में 108000 बार कलाएं बदलता है। इसी संख्या 108000 से अंतिम तीन शून्य हटाकर माला के 108 मुनके निर्धारित किए गए हैं। माला का एक-एक मुनका सूर्य की एक-एक कला का प्रतीक है। सूर्य ही व्यक्ति को तेजस्वी बनाता है, समाज में मान-सम्मान दिलवाता है। सूर्य ही एकमात्र साक्षात दिखने वाले देवता हैं, इसी वजह से सूर्य की कलाओं के आधार पर मुनको की संख्या 108 निर्धारित की गई है।
अन्य मान्यता : 
एक सामान्य पूर्ण रूप से स्वस्थ व्यक्ति दिनभर में जितनी बार सांस लेता है, उसी से माला के मुनको  की संख्या 108 का संबंध है। सामान्यत: 24 घंटे में एक व्यक्ति 21600 बार सांस लेता है। दिन के 24 घंटों में से 12 घंटे दैनिक कार्यों में व्यतीत हो जाते हैं और शेष 12 घंटों में व्यक्ति सांस लेता है 10800 बार। इसी समय में देवी-देवताओं का ध्यान करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार व्यक्ति को हर सांस पर यानी पूजन के लिए निर्धारित समय 12 घंटे में 10800 बार ईश्वर का ध्यान करना चाहिए, लेकिन यह संभव नहीं हो पाता है। इसीलिए 10800 बार सांस लेने की संख्या से अंतिम दो शून्य हटाकर जप के लिए 108 संख्या निर्धारित की गई है। इसी संख्या के आधार पर जप की माला में 108 मोती होते हैं।

ज्योतिष की मान्यता :
ज्योतिष के अनुसार ब्रह्मांड को 12 भागों में विभाजित किया गया है। इन 12 भागों के नाम मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन हैं। इन 12 राशियों में नौ ग्रह सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु विचरण करते हैं। अत: ग्रहों की संख्या 9 का गुणा किया जाए राशियों की संख्या 12 में तो संख्या 108 प्राप्त हो जाती है। माला के मोतियों की संख्या 108 संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व करती है। एक अन्य मान्यता के अनुसार ऋषियों ने में माला में 108 मोती रखने के पीछे ज्योतिषी कारण बताया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुल 27 नक्षत्र बताए गए हैं। हर नक्षत्र के 4 चरण होते हैं और 27 नक्षत्रों के कुल चरण 108 ही होते हैं। माला का एक-एक मोती नक्षत्र के एक-एक चरण का प्रतिनिधित्व करता है।

संख्याहीन मंत्रों के जप से नहीं मिलता है पूर्ण पुण्य :
भगवान की पूजा के लिए कुश का आसन बहुत जरूरी है, इसके बाद दान-पुण्य जरूरी है। साथ ही, माला के बिना संख्याहीन किए गए जप का भी पूर्ण फल प्राप्त नहीं हो पाता है। अत: जब भी मंत्र जप करें, माला का उपयोग अवश्य करना चाहिए।
जप में किन माला का प्रयोग करना चहिये :
मंत्र जप के लिए उपयोग की जाने वाली माला रुद्राक्ष, तुलसी, स्फटिक, मोती या नगों से बनी होती है। यह माला बहुत चमत्कारी प्रभाव रखती है। ऐसी मान्यता है कि किसी मंत्र का जप इस माला के साथ करने पर दुर्लभ कार्य भी सिद्ध हो जाते हैं।
माला व मंत्र जप का फल : भगवान की पूजा के लिए मंत्र जप सर्वश्रेष्ठ उपाय है और पुराने समय से ही बड़े-बड़े तपस्वी, साधु-संत इस उपाय को अपनाते रहे हैं। जप के लिए माला की आवश्यकता होती है और इसके बिना मंत्र जप का फल प्राप्त नहीं हो पाता है।

रुद्राक्ष माला :
रुद्राक्ष से बनी माला मंत्र जप के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। रुद्राक्ष को महादेव का प्रतीक माना गया है। रुद्राक्ष में सूक्ष्म कीटाणुओं का नाश करने की शक्ति भी होती है। इसके साथ ही रुद्राक्ष वातावरण में मौजूद सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण करके साधक के शरीर में पहुंचा देता है।
क्यों किया जाता है माला का उपयोग :
जो भी व्यक्ति माला की मदद से मंत्र जप करता है, उसकी मनोकामनाएं बहुत जल्द पूर्ण होती हैं। माला से किए गए जप अक्षय पुण्य प्रदान करते हैं। मंत्र जप निर्धारित संख्या के आधार पर किए जाए तो श्रेष्ठ रहता है। इसीलिए माला का उपयोग किया जाता है।
माला से जप के नियमः माला के मोतियों से मालूम हो जाता है कि मंत्र जप की कितनी संख्या हो गई है। जप की माला में सबसे ऊपर एक बड़ा मोती होता है जो कि सुमेरू कहलाता है। सुमेरू से ही जप की संख्या प्रारंभ होती है और यहीं पर खत्म भी। जब जप का एक चक्र पूर्ण होकर सुमेरू मोती तक पहुंच जाता है तब माला को पलटा लिया जाता है। सुमेरू को लांघना नहीं चाहिए। जब भी मंत्र जप पूर्ण करें तो सुमेरू को माथे पर लगाकर नमन करना चाहिए। इससे जप का पूर्ण फल प्राप्त होता है।

वैसे तो मालाएं कई प्रकार की होती है लेकिन आध्यात्मिक उपयोग और महत्त्व की दृष्टि से निम्न प्रकार की मालाओं का प्रयोग सर्वाधिक किया जाता है - हल्दी की माला, जामुन की गुठली की माला, कमल गट्टे की माला, लाल चंदन की माला, स्फटिक एवं रुद्राक्ष, मूंगा की माला, नवरत्न की माला, रुद्राक्ष माला, शंख माला, स्फटिक माला, तुलसी स्फटिक माला, तुलसी की माला, वैयजंती माला आदि. श्रीश्याम ज्योतिष एवं वास्तु संस्थान सभी प्रकार की मालाएं उपलब्ध करता है.

हल्दी की माला : यह माला भगवान गणे्यजी की व भगवान बृहस्पति की उपासना के लिए उचित मानी गई है। यह माला विशेषकर धनु व मीन राशि वाले जातकों के लिए उपयोगी मानी जाती है। बृहस्पति (गुरु) को सभी देवताओं के गुरु माना जाता है, इन्हें ज्ञान का देवता भी कहा जाता है। यदि बच्चों का मन पढ़ाई में लगता हो तो इस माला को धारण करने से काफी लाभ मिलता है, इसको धारण करने से गुरु ग्रह संबंधित सभी दोष नष्ट हो जाते हैं।

जामुन की गुठली की माला : यह माला शनिदेव की उपासना के लिए उचित मानी जाती है। इसको धारण करने से शनि से संबंधित सभी दोष नष्ट हो जाते हैं। यह प्राय मकर व कुंभ राशि के जातकों के लिए उपयोगी मानी जाती है।

कमल गट्टे की माला : कहा जाता है मां लक्ष्मी देवी का श्रीमुख पदम के समान सुन्दर, कान्तियुक्त है, और पदम समान है आप पदम से पैदा हुई हैं और आप का एक नाम पदमाक्षि भी है आपकी प्रसन्नता के लिए कमल गट्टा प्रायः सरोवरों और झीलों में पैदा होता है यह कमल पुष्प का बीज माना जाता है। कमल पुष्प लक्ष्मी एवं विष्णु को अत्यधिक प्रिय है इसे अनेक नामों से जाना जाता है संस्कृत भाषा में पुण्डरीक, रक्तपदम, नीलपदंम हिन्दी में कमल पंजाबी में नीलोफर फारसी में गुलनीलोफर अरबी में करंबुलमा कहते हैं।जो मनुष्य उत्तम लक्ष्मी की प्राप्ति की कामना करता हो वह कमल गट्टे की 108 दाने की माला पर लक्ष्मी का मंत्र जप करने से शीघ्र सफलता मिलती है एवं धन आगमन होता है। कमल गट्टे की माला द्वारा कनक धारा मंत्र का जप करने से स्वर्ण वर्षा होती है ऐसा शास्त्रों का प्रमाण है। अक्षय तृतीया को कमलगट्टे की माला पर लक्ष्मी गायत्री मंत्र जप करने से सौ गुना अत्यधिक फल प्राप्त होता है। कमलगट्टे की माला धारण करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न रहती हैं तथा अपने भक्तों को हमेशा धनधान्य से शोभित करती हैं।

लाल चंदन की माला : चन्दन दो प्रकार के पाये जाते हैं रक्त एवं श्वेत रक्त-चन्दन की माला देवियों के लिए उपयुक्त है श्वेत चन्दन की माला देवताओं के लिए। चन्दन के वृक्ष प्रायः आसाम के जंगली क्षेत्रों में पाये जाते हैं इसकी लकड़ी भारी होती है जो पानी में डूब जाती है चन्दन का गुण शीतल है जो हर प्रकार से शीतलता प्रदान करता है। श्वेत चन्दन में मनमोहक सुगन्ध पायी जाती है यह इसका प्रधान गुण है चन्दन कई रोगों को शान्त करता है जैसे- तृषा, थकान, रक्त विकार, दस्त, सिर दर्द, वात पित्त, कफ, कृमि और वमन आदि। इसे अनेक भाषा में अनेक नामों से जाना जाता है।

मूंगा माला : यह खूबसूरत माला मूंगें के पत्थरों से बनायी गई है। मंगल ग्रह की शांति के लिए इस माला का प्रयोग किया जाता है। विशेषकर मेष और वृश्चिक राशि के जातकों के लिए उपयोगी मानी जाती है। मूंगा एक जैविक रत्न है। यह समुद्र से निकाला जाता है। अपनी रासायनिक संरचना में मूंगा कैल्शियम कार्बोनेट का रुप होता है। मूंगा मंगल ग्रह का रत्न है। अर्थात् मूंगा धारण करने से मंगल ग्रह से सम्बंधित सभी दोष दूर हो जाते है। मूंगा धारण करने से रक्त साफ होता है तथा रक्त से संबंधित सभी दोषदूर हो जाते है।मूंगा मेष तथा वृष्चिक राषि वालों के भाग्य को जगाता है। मूंगा धारण करने से मान-स्वाभिमान में बृद्धि होती है। तथा मूंगा धारण करने वाले पर भूत-प्रेत तथा जादू-टोने का असर नहीं होता। मूंगा धारण करने वाले की व्यापार या नौकरी में उन्नति होती है। मूंगा कम से कम सवा रती का या इससे ऊपर का पहनना चाहिए। मूंगा 5, 7, 9, 11 रती का शुभ होता है। मूंगे को सोने या तांबे में पहनना अच्छा माना जाता है।

नवरत्न की माला : ज्योतिष शास्त्र की भारतीय पद्धति में सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र शनि, राहु तथा केतु को ही मान्यता प्राप्त है। अनुभवों में पाया गया है कि रत्न परामर्श के समय उपरोक्त नवग्रहों को आधार मान कर दिया गया परामर्श अत्यधिक प्रभावी तथा अचूूक होता है। यहाँ पर हम इन्हीं नवग्रहों के आधार पर नवरत्न माला के बारे में परिचय प्राप्त करेंगे। असली नवरत्न माला में अनेक गुण पाये जाते हैं इसे धारण करने मात्र से अनेक सफलता एवं सिद्धियां प्राप्त होती हैं इसमें अपनी एक अद्भुत विशेषता होती है तथा अनेक तात्विक संरचनायें होती है।इसकेे अलग-अलग दानें अपने से सम्बन्धित ग्रहों की रश्मियों को अपने आप समाहित करके धारण करने वाले को लाभ प्रदान करती हैं इस नवरत्न माला में वैज्ञानिक आधार पर निम्न तात्विक सरंचाना पायी जाती हैं जैसे- अल्यूमिनियम आक्सीजन, क्रोमियम तथा लौह, कैल्शियम कार्बोनेट, मैग्नीशियम, बेरोलियम, मिनयिम, फ्लोरीन, हाइड्रोक्सिल, जिक्रोनियम, आदि तात्विक संरचनायें पायी जाती हैं।
समय-समय पर हुए शोध कार्यो तथा ज्योतिषियों को हुए विशेष अनुभवों के आधार पर प्रत्येक रत्न या रत्न नवग्रहों में से किसी एक ग्रह विशेष से सम्बद्ध किया गया है।
प्रस्तुत माला में सारे ग्रहों के रत्नों को समाहित किया गया है इस माला को धारण करने से अनेक लाभ हैं जैसे यश, सम्मान, वैभव, भौतिक समृद्धी में फायदा तथा कफ रोग, शीत रोग, ज्वर रोग आदि रोगों में लाभ होगा। तथा सुख समृद्धि की प्राप्ति होगी।

रुद्राक्ष की माला : रुद्राक्ष स्वयं कालाग्नि नाम रुद्र का स्वरूप है, पर-स्त्री गमन करने से जो पाप बनता है तथा अभक्ष्य भक्षण करने से जो पाप लगता है वह सब रुद्राक्ष के धारण करने से नष्ट हो जाते हैं। इसमें कोई संशय नहीं यह पंचतत्त्वों का प्रतीक है। अनेक औषध कार्य में इसका उपयोग होता है। यह सर्वकल्याणाकारी, मंगलप्रदाता एवं आयुष्यवर्द्धक है। महामृत्युंजय इत्यादि अनुष्ठानों में इसका ही प्रयोग होता है। यह अभीष्ट सिद्धि प्रदाता है। यह सर्वत्र सहज सुलभ होने के कारण इसका महत्व कुछ काम हो गया है परंतु शास्त्रीय दृष्टि से इसका महत्त्व कम नहीं है। पांचमुखी रुद्राख मेष, धनु, मीन, लग्न के जातकों के लिए अत्यन्त उपयोगी माना गया है।
रुद्राक्ष माला सभी प्रकार के सिद्धियों एवं जप के लिए सर्वोत्तम माना गया है रुद्राक्ष माला पर सभी प्रकार के जप किये जा सकते हैं तथा बाल्यावस्था से लेकर वृद्धवस्था तक के सभी व्यक्तियों के लिए रुद्राक्ष माला सर्वोपरि माना गया है। धारण करने के लिए एक दाने से लेकर 108 दाने तक माला धारण की जाती है तथा जप के लिए 27 दानें से लेकर 1008 दानें तक की माला उपयोग में लायी जाती है। आवश्यकता एवं इच्छानुसार एक से अनेक दानों तक की माला धारण की जा सकती है।शास्त्रों में प्रमाण मिलता है कि शरीर के अनेक अंग में रुद्राक्ष अधिक से अधिक धारण करने से ज्यादा लाभ मिलता है असली रुद्राक्ष माला धारण करने से रक्त चाप, वीर्य दोष मिला होता है बौद्विक विकास एवं मानसिक शान्ती होती है व्यापार आदि में लाभ होता है। सभी वर्गो के लिए सम्मान एवं कीर्ति प्राप्त होती है।

रुद्राक्ष माला के अनेक लाभ : ऊदर तथा गर्भाशय से रक्तचाप तथा हृदय रोग से सम्बन्धित अनेक बिमारियों के लिए छः मुखी रुद्राक्ष की माला को हाँडी में पानी डालकर भिगोये रखें प्रत्येक 24 घंटे पश्चात यह रुद्राक्ष का जल खाली पेट प्रातःकाल पीते रहें निश्चित लाभ होगा। मस्तिष्क सम्बन्धी विकारों से पीड़ित व्यक्तियों तथा मस्तिष्कीय कार्य करने वाले लोगां को शक्ति प्राप्ति के लिए चारमुखी रुद्राक्ष की माला चाँदी के किसी बरतन में पानी डालकर भिगोये रखना चाहिए। प्रत्येक 24 घंटे के अन्तराल से यह रुद्राक्ष जल प्रातः खाली पेट पियें। यह प्रयोग चमत्कारी प्रभाव प्रकट करता हैं।

शंख माला : शंख/ सीप अक्सर ज्वार भाटे के समय समुद्र के तट से प्राप्त होते है। इसको धारण करने वाले को संसार के समस्त प्रकार के लाभ मिलते है। इसके पहनने से चन्द्रमा संबंधी दोष नष्ट हो जाते है। यह माला विशेषकर कर्क राशि के जातकों के लिए उपयोगी मानी जाती है।

स्फटिक की माला : स्फटिक एक सामान्य प्राप्ति वाला रंगहीन तथा प्रायः पारदर्शक मिलने वाला अल्पमोली पत्थर है। यह पत्थर देखने में कांच जैसा प्रतीत होता है। सिलिका आक्साइड का एक रूप यह स्फटिक पत्थर स्वयं में विशेष आब तथा चमकयुक्त नहीं होता, लेकिन विशेष काट में काटने तथा पालिश करने पर इसमें चमक पैदा की जा सकती है। अच्छी काट के स्फटिक नगीने आभूषणों में प्रयोग किये जाते हैं। स्फटिक पत्थर से विशेष कटिंगदार मन के बना कर मालायें भी बनायी जाती हैं, जो अत्यन्त आकर्षक होने के बावजूद अल्पमोली होती हैं। स्फटिक पत्थर से बनी विभिन्न देवी देवताओं की मूर्तियां एवं यंत्र बनाये जाते हैं।

स्फटिक माला से अनेक लाभ
  • यह केवल स्वास्थ्य लाभ के लिए नहीं बल्कि आध्यात्मिक क्षेत्र एवं बुद्धि जनित कार्य करने वाले के लिए भी अत्यन्त लाभकारी है।
  • सोमवार को स्फटिक माला धारण करने से मन में पूर्णतः शान्ती की अनुभूति होती हैं एवं सिर दर्द नहीं होता।
  • शनिवार को स्फटिक माला धारण करने से रक्त से सम्बन्धित बिमारियों में लाभ होता है।
  • अत्यधिक बुखार होने की स्थिति में स्फटिक माला को पानी में धोकर कुछ देर नाभि पर रखने से बुखार कम होता है एवं आराम मिलता है।

तुलसी स्फटिक माला : स्फटिक अत्यन्त आकर्षक होने के बावजूद अल्पमोली होते हैं। स्फटिक पत्थर से विभिन्न देवी देवताओं की मूर्तियां एवं यंत्र बनाये जाते हैं तथा आयुर्वेद के अनुसार तुलसी के पौधे को चमत्कारी पौधा माना गया है। इससे बनी हुई माला पहनने से पाचन शक्ति, तेज बुखार, दिमाग की बिमारिया एवम् वायु संबंधित अनेक रोगों में लाभकारी है। यह केवल स्वास्थ्य लाभ के लिए नहीं बल्कि आध्यात्मिक क्षेत्र एवं बुद्धि जनित कार्य करने वाले के लिए भी अत्यन्त लाभकारी है। इसलिए तुलसी स्फटिक माला लक्ष्मीजी एवम् विष्णु जी की उपासना के लिए प्रयोग में लाई जाती है।सोमवार को यह माला धारण करने से मन में पूर्णतः शान्ती की अनुभूति होती हैं एवं सिर दर्द नहीं होता।
शनिवार को यह माला धारण करने से रक्त से सम्बन्धित बिमारियों में लाभ होता है।

तुलसी माला : तुलसी की माला विष्णु, राम और कृष्ण से संबंधित जपों की सिद्धि के लिए उपयोग में लाई जाती है। इसके लिए मंत्र ॐ विष्णवै नमः का जप श्रेष्ठ माना गया है। आयुर्वेद के अनुसार तुलसी के पौधे को चमत्कारी पौधा माना गया है। इससे बनी हुई माला पहनने से व्यक्ति की पाचन शक्ति, तेज बुखार, दिमाग की बिमारियॅा एवम् वायु संबंधित अनेक रोगों में लाभकारी है।

वैयजंती माला : यह मोती प्राय घास से प्राप्त होते है। यह माला भी शनिदेव की उपासना के लिए प्रयोग में लाई जाती है। इसको धारण करने से शनिदेव की कृपा दृष्टि तथा धारणकर्ता को अनेक प्रकार की सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। यह माला मकर व कुंभ राशि के जातकों के लिए उपयोगी है।

माला जप में सावधानियॉ  ROSAARY JAAP MALA


जप करते समय माला गोमुखी या किसी वस्त्र से ढकी होनी चाहिए अन्यथा जप का फल चोरी हो जाता है। जप के बाद जप-स्थान की मिट्टी मस्तक पर लगा लेनी चाहिए अन्यथा जप का फल इन्द्र को चला जाता है।

प्रातःकाल जप के समय माला नाभी के समीप होनी चाहिए, दोपहर में हृदय और शाम को मस्तक के सामने।
जप में तर्जनी अंगुली का स्पर्श माला से नहीं होना चाहिए। इसलिए गोमुखी के बड़े छेद से हाथ अन्दर डाल कर छोटे छेद से तर्जनी को बाहर निकलकर जप करना चाहिए। अभिचार कर्म में तर्जनी का प्रयोग होता है।

जप में नाखून का स्पर्श माला से नहीं होना चाहिए।सुमेरु के अगले दाने से जप आरम्भ करे, माला को मध्यमा अंगुली के मघ्य पोर पर रख कर दानों को अंगूठे की सहायता से अपनी ओर गिराए। सुमेरु को नहीं लांघना चाहिए। यदि एक माला से अधिक जप करना हो तो, सुमेरु तक पहुंच कर अंतिम दाने को पकड़ कर, माला पलटी कर के, माला की उल्टी दिशा में, लेकिन पहले की तरह ही जप करना चाहिए।


माला के उपयोग

सनातन (हिन्दू) धर्म में जप के लिए माला का प्रयोग होता है। क्योंकि किसी भी जप में संख्या का बहुत महत्त्व होता है। निश्चित संख्या में जप करने के लिए माला का प्रयोग करते हैं। माला फेरने से एकाग्रता भी बनी रहती है। वैसे तो माला के अन्य बहुत से प्रयोग हैं, लेकिन मैं यहां जप संबंधी बातें बताना चाहता हूँ। किसी देवी-देवता के मंत्र का जप करने के लिए एक निश्चित संख्या होती है। इन सभी संख्यों का निर्धारण बिना माना के संभव नहीं।

माला में १०८ (+१ सुमेरु) दाने (मनके) होने चाहिए। ५४, २७ या ३० (इत्यादि) मनको की माला से भी जप किया जाता है। साधना विशेष के लिए मनकों की संख्या का विचार है। दो मनकों के बीच डोरी में गांठ होना जरूर है, आमतौर से ढाई गांठ की माला अच्छी होती है। अर्थात् डोरी में मनके पिरोते समय साधक हर मनके के बाद ढाई गांठ लगाए। मनके पिरोते समय अपने इष्टदेव का जप करते रहना चाहिए।

देवता विषेश के लिए माला का चयन करना चाहिए-


  • हाथी दांत की माला गणेशजी की साधना के लिए श्रेष्ठ मानी गई है।
  • लाल चंदन की माला गणेशजी व देवी साधना के लिए उत्तम है।
  • तुलसी की माला से वैष्णव मत की साधना होती है (विष्णु, राम व कृष्ण)।
  • मूंगे की माला से लक्ष्मी जी की आराधना होती है। पुष्टि कर्म के लिए भी मूंगे की माला श्रेष्ठ होती है।
  • मोती की माला वशीकरण के लिए श्रेष्ठ मानी गई है।
  • पुत्र जीवा की माला का प्रयोग संतान प्राप्ति के लिए करते हैं।
  • कमल गट्टे की माला की माला का प्रयोग अभिचार कर्म के लिए होता है।
  • कुश-मूल की माला का प्रयोग पाप-नाश व दोष-मुक्ति के लिये होता है।
  • हल्दी की माला से बगलामुखी की साधना होती है।
  • स्फटिक की माला शान्ति कर्म और ज्ञान प्राप्ति; माँ सरस्वती व भैरवी की आराधना के लिए श्रेष्ठ होती है।
  • चाँदी की माला राजसिक प्रयोजन तथा आपदा से मुक्ति में विशेष प्रभावकरी होती है। 

जप से पूर्व निम्नलिखित मंत्र से माला की वन्दना करनी चाहिए–(साधना या देवता विशेष के लिए अलग-अलग माला-वन्दना होती है)

ॐ मां माले महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिणी।
चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तस्तस्मान्मे सिद्धिदा भव॥
ॐ अविघ्नं कुरु माले त्वं गृह्णामि दक्षिणे करे।
जपकाले च सिद्ध्यर्थं प्रसीद मम सिद्धये॥

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विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )