माँ बगुलामुखी साधना व् प्रयोग MAA BAGLAMUKHI SADHNA PRYOG
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।।माँ बगलामुखी।।
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।।माँ बगलामुखी।।
1. ईश्वर की जो छः कलाएं तन्त्र में वर्णित हैं, उनमें यह ‘‘पीता’’ कला है। इसीलिए इनका रंग पीला है, उनका वस्त्र पीला है, माला भी पीली है। साधक जब मन्त्र चैतन्य कर लेता है, तब वह मंत्र ‘‘जिह्वाग्र’’ पर आ जाता है। यही ‘‘जिह्वा’’ का ‘अग्रभाग’ देवी द्वारा पकड़ना है, और उसका घन-घन जप ही ‘‘गदाभिघात’’ है।
2. भगवती बगला दश-महाविद्याओं में चतुर्थ श्रेणी में आती है और उनके आविर्भाव का हेतु, सृष्टि-कार्य में आने वाले विघ्नो का अवरोधन करना ही मुख्य है।
भगवती बगला ही समस्त चराचर प्राणि-समूह की चित्-शक्ति कुण्डलिनी है।
3. ऐहिक या पारलौकिक, देश या समाज के दुःखद, दुरूह अरिष्टों एवं शत्रुओं के दमन-शमन में इनके समकक्ष अन्य कोई नहीं है।
4. जो छिपे हुए शत्रुओं को नष्ट कर देती है, वह पीताम्बरा पीले उपचारों द्वारा पूज्या है ऐसा बगला उपनिषद् में लिखा है। (पूर्णतः स्व अनुभूति है।)
5. मंगलवार की चतुर्दशी तिथि को मकार तथा कुल-नक्षत्र-युक्त ‘‘वीर-रात्रि’’ के निशाद्र्व में बगला देवी का आविर्भाव हुआ था।
6. भवगती बगला को ‘‘ब्रम्हास्त्र-विद्या’’ के नाम से जाना जाता है क्यों कि इनकी सत्ता-महत्ता-अनादि, अनक्त व असीम है।
7. भगवती बगला लौकिक वैभव देने के साथ ही हमारी भीतरी छः शत्रु, काम, क्रोध, लोभ, मात्सर्य, मोह व ईष्र्यादि का नाश जितनी शीघ्र करती है उतना शीघ्र अन्य कोई भी नहीं करता, यह मेरा स्वयं अनुभव रहा है।
8. भगवती पीताम्बरा श्री बगला मुखि का सम्बन्ध ‘‘अथर्वा’’ नामक तेज स्वरूपा शक्ति से है। महाशक्ति कुण्डलिनी के प्रकाश का दूसरा नाम ही ‘‘अथर्वा’’ है एवं वही महा-माया कुण्डलिनी जब अपनी पीताभा का प्रसार करती है, तो ‘‘सिद्ध-पीताम्बरा’’ के नाम से अभिहित होती है।
9. श्री बगला मुखि का प्रसिद्ध तन्त्र ग्रन्थ है-‘‘सांख्यायन तन्त्र’’ जिसमें मोक्ष के अतिरिक्त ऐहिक सुख प्राप्त करने के उपाए दिए गए हैं। ऐहिक सुख के तीन स्वरूप होते हैं-
1. शान्तिक 2. पौष्टिक 3. आभिचारिक
शान्तिक – दैवी प्रकोप से उत्पन्न आधि-व्याधियों का शमन ‘‘शान्ति कर्म’’ से होता है।
पौष्टिक – धन-जन आदि लौकिक उपयोगी वस्तुओं की वृद्धि के लिए ‘‘पौष्टिक’’ कर्मों का अनुष्ठान करते हैं।
आभिचारिक – शत्रुओं के निग्रह के लिए आभिचारिक कर्म करते हैं।
इन तीनों कर्मों का अनुष्ठान ‘‘स्तम्भन’’ महा-शक्ति के रूप में होता है। मारण, मोहन, उच्चटनादि आदि आभिचारिक कर्मों में तो ‘‘स्तम्भन’’ शक्ति का साम्राज्य ही है। सांख्यायन तन्त्र तो प्रयोगों का अत्यन्त प्रचुर और विस्मयकारी भंडार है।
10. चम्पा का पुष्प भगवति बगलामुखि को अत्यंत प्रिय है।
11. अभिचारों की देवी ‘‘कृत्या’’ कहलाती है। कृत्या शब्द हिंसा का द्योतक है। आभिचारित प्रयोगों की नियन्त्री महाशक्ति ‘‘बगलामुखि’’ ही है।
12. भगवती के बारे में कहा गया है -शत्रु ज्ञात हो, अज्ञात हो या उनका समूह हो-साधक को उन पर निश्चित रूप से विजय प्राप्त होती है और रक्षा होती है।
13. बगला निर्माण और पालन कर्ती-वैष्णवी शक्ति है तो संहार-कत्र्री रूद्र शक्ति भी है।
14. भवगती बगलामुखि त्रि-शक्ति मयी देवी है। इनसे सृष्टि, स्थिति और संहार की तीनों क्रियाएं सम्पन्न होती है। विशेषतः स्तम्भन में तो इस विद्या का एक छत्र साम्राज्य है। ‘‘सांख्यांयन तन्त्र’’ प्रथम पटल, पृष्ठ 1 में लिखा है –
‘‘स्व-विद्या-रक्षिणी विद्या, स्व-मन्त्र-फल-दायिका।
स्व-कीर्ति-रक्षिणी विद्या, शत्रु-संहार-कारिका।।
पर-विद्या-छेदिनी च, पर-मन्त्र-विदारिणी।
पर-मंत्र-प्रयोगेषु, सदा विध्वंश-कारिका।।
परानुष्ठान-हारिणी, पर-कीर्ति-विनाशिनी।
पराऽऽपन्नाश-कृद् विद्या, परेषां भ्रम-कारिणी।।
ये वा विजय मिच्छन्ति, ये वा जन्तु-क्षयं कलौ।
ये वा क्रूर-मृगेभ्यश्च, जय मिच्छन्ति मानवाः।।
इच्छन्ति शान्ति-कर्माणि, वश्यं सम्मोहनादिकम्।
विद्वेषोच्चाटनं पुत्र! तेनोपास्य स्तवयं मनुः।।
15. माँ बगला मुखि को भ्रामरी, स्तम्भिनी, क्षोभिणी, रौद्र-रूपिणी पीताम्बरा देवी और त्रिनेत्री देवी कहते हैं।
16. यह सम्पूर्ण सिद्धियों की दात्री और दूसरों की शक्तियों को हरण करने वाली है।
17. माँ बगलामुखि के प्रयोग तो बहुत अधिक हैं। सबसे सरल ‘प्रयोग’ यही है कि माँ बगला का सदा स्मरण करते रहे। इनके स्मरण मात्र से सभी बाधाएं दूर होकर जीवन सुखी होता है। यही इनकी विशेष महिमा है
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