Tuesday, February 28, 2017

शिवपुराण के अनुसार ACCORDING TO SHIV PURAN

शिवपुराण के अनुसार ACCORDING  TO SHIV PURAN


भगवान शिव बहुत भोले हैं, यदि कोई भक्त सच्ची श्रद्धा से उन्हें सिर्फ एक लोटा पानी भी अर्पित करे तो भी वे प्रसन्न हो जाते हैं। इसीलिए उन्हें भोलेनाथ भी कहा जाता है। सावन में शिव भक्त भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए अनेक उपाय करते हैं।
कुछ ऐसे ही छोटे और अचूक उपायों के बारे शिवपुराण में भी लिखा है। ये उपाय इतने सरल हैं कि इन्हें बड़ी ही आसानी से किया जा सकता है। हर समस्या के समाधान के लिए शिवपुराण में एक अलग उपाय बताया गया है। सावन में ये उपाय विधि-विधान पूर्वक करने से भक्तों की हर इच्छा पूरी हो सकती है। ये उपाय इस प्रकार हैं-

शिवपुराण के अनुसार, भगवान शिव को प्रसन्न करने के उपाय इस प्रकार हैं-
1. भगवान शिव को चावल चढ़ाने से धन की प्राप्ति होती है।
2. तिल चढ़ाने से पापों का नाश हो जाता है।
3. जौ अर्पित करने से सुख में वृद्धि होती है।
4. गेहूं चढ़ाने से संतान वृद्धि होती है।

यह सभी अन्न भगवान को अर्पण करने के बाद गरीबों में बांट देना चाहिए।

शिवपुराण के अनुसार, जानिए भगवान शिव को कौन-सा रस (द्रव्य) चढ़ाने से क्या फल मिलता है-

1. बुखार होने पर भगवान शिव को जल चढ़ाने से शीघ्र लाभ मिलता है। सुख व संतान की वृद्धि के लिए भी जल द्वारा शिव की पूजा उत्तम बताई गई है।
2. तेज दिमाग के लिए शक्कर मिला दूध भगवान शिव को चढ़ाएं।
3. शिवलिंग पर गन्ने का रस चढ़ाया जाए तो सभी आनंदों की प्राप्ति होती है।
4. शिव को गंगा जल चढ़ाने से भोग व मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है।
5. शहद से भगवान शिव का अभिषेक करने से टीबी रोग में आराम मिलता है।
6. यदि शारीरिक रूप से कमजोर कोई व्यक्ति भगवान शिव का अभिषेक गाय के शुद्ध घी से करे तो उसकी कमजोरी दूर हो सकती है।

शिवपुराण के अनुसार, जानिए भगवान शिव को कौन-सा फूल चढ़ाने से क्या फल मिलता है-

1. लाल व सफेद आंकड़े के फूल से भगवान शिव का पूजन करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।
2. भगवान शिव की पूजा चमेली के फूल से करने पर वाहन सुख मिलता है।
3. अलसी के फूलों से शिव की पूजा करने पर मनुष्य भगवान विष्णु को प्रिय होता है।
4. शमी वृक्ष के पत्तों से पूजन करने पर मोक्ष प्राप्त होता है।
5. बेला के फूल से पूजा करने पर सुंदर व सुशील पत्नी मिलती है।
6. जूही के फूल से भगवान शिव की पूजा करें तो घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती।
7. कनेर के फूलों से भगवान शिव की पूजा करने से नए वस्त्र मिलते हैं।
8. हरसिंगार के फूलों से पूजन करने पर सुख-सम्पत्ति में वृद्धि होती है।
9. धतूरे के फूल से पूजन करने पर भगवान शंकर सुयोग्य पुत्र प्रदान करते हैं, जो कुल का नाम रोशन करता है।
10. लाल डंठलवाला धतूरा शिव पूजा में शुभ माना गया है।
11. दूर्वा से भगवान शिव की पूजा करने पर उम्र बढ़ती है।

इन उपायों से प्रसन्न होते हैं भगवान शिव

1. सावन में रोज 21 बिल्वपत्रों पर चंदन से ऊं नम: शिवाय लिखकर शिवलिंग पर चढ़ाएं। इससे आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं।
2. अगर आपके घर में किसी भी प्रकार की परेशानी हो तो सावन में रोज सुबह घर में गोमूत्र का छिड़काव करें तथा गुग्गुल का धूप दें।
3. यदि आपके विवाह में अड़चन आ रही है तो सावन में रोज शिवलिंग पर केसर मिला हुआ दूध चढ़ाएं। इससे जल्दी ही आपके विवाह के योग बन सकते हैं।
4. सावन में रोज नंदी (बैल) को हरा चारा खिलाएं। इससे जीवन में सुख-समृद्धि आएगी और मन प्रसन्न रहेगा।
5. सावन में गरीबों को भोजन कराएं, इससे आपके घर में कभी अन्न की कमी नहीं होगी तथा पितरों की आत्मा को शांति मिलेगी।
6. सावन में रोज सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निपट कर समीप स्थित किसी शिव मंदिर में जाएं और भगवान शिव का जल से अभिषेक करें और उन्हें काले तिल अर्पण करें। इसके बाद मंदिर में कुछ देर बैठकर मन ही मन में ऊं नम: शिवाय मंत्र का जाप करें। इससे मन को शांति मिलेगी।
7. सावन में किसी नदी या तालाब जाकर आटे की गोलियां मछलियों को खिलाएं। जब तक यह काम करें मन ही मन में भगवान शिव का ध्यान करते रहें। यह धन प्राप्ति का बहुत ही सरल उपाय है।

आमदनी बढ़ाने के लिए

सावन के महीने में किसी भी दिन घर में पारद शिवलिंग की स्थापना करें और उसकी यथा विधि पूजन करें। इसके बाद नीचे लिखे मंत्र का 108 बार जप करें-
ऐं ह्रीं श्रीं ऊं नम: शिवाय: श्रीं ह्रीं ऐं
प्रत्येक मंत्र के साथ बिल्वपत्र पारद शिवलिंग पर चढ़ाएं। बिल्वपत्र के तीनों दलों पर लाल चंदन से क्रमश: ऐं, ह्री, श्रीं लिखें। अंतिम 108 वां बिल्वपत्र को शिवलिंग पर चढ़ाने के बाद निकाल लें तथा उसे अपने पूजन स्थान पर रखकर प्रतिदिन उसकी पूजा करें। माना जाता है ऐसा करने से व्यक्ति की आमदानी में इजाफा होता है।

संतान प्राप्ति के लिए उपाय

सावन में किसी भी दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद भगवान शिव का पूजन करें। इसके पश्चात गेहूं के आटे से 11 शिवलिंग बनाएं। अब प्रत्येक शिवलिंग का शिव महिम्न स्त्रोत से जलाभिषेक करें। इस प्रकार 11 बार जलाभिषेक करें। उस जल का कुछ भाग प्रसाद के रूप में ग्रहण करें।
यह प्रयोग लगातार 21 दिन तक करें। गर्भ की रक्षा के लिए और संतान प्राप्ति के लिए गर्भ गौरी रुद्राक्ष भी धारण करें। इसे किसी शुभ दिन शुभ मुहूर्त देखकर धारण करें।

बीमारी ठीक करने के लिए उपाय

सावन में किसी सोमवार को पानी में दूध व काले तिल डालकर शिवलिंग का अभिषेक करें। अभिषेक के लिए तांबे के बर्तन को छोड़कर किसी अन्य धातु के बर्तन का उपयोग करें। अभिषेक करते समय ऊं जूं स: मंत्र का जाप करते रहें।
इसके बाद भगवान शिव से रोग निवारण के लिए प्रार्थना करें और प्रत्येक सोमवार को रात में सवा नौ बजे के बाद गाय के सवा पाव कच्चे दूध से शिवलिंग का अभिषेक करने का संकल्प लें। इस उपाय से बीमारी ठीक होने में लाभ मिलता है।

रुद्राक्ष TYPES OF RUDRAKSH

रुद्राक्ष TYPES OF RUDRAKSH

दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      

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वेदों, पुराणों एवं उपनिषदों में रुद्राक्ष की महिमा का विस्तार पूर्वक वर्णन प्राप्त होता है। एक कथा अनुसार देवर्षि नारद ने भगवान नारायण से रुद्राक्ष के विषय में जानना चाहा तो नारायण भगवान ने उनकी जिज्ञासा को दूर करने हेतु उन्हें एक कथा सुनाते हैं। वह बोले, हे देवर्षि नारद एक समय पूर्व त्रिपुर (असुर त्रिप्पुरा सुर) नामक पराक्रमी दैत्य ने पृथ्वी पर आतंक मचा रखा था तथा देवों को प्राजित करके तीनो लोकों पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लेता है। दैत्य के इस विनाशकारी कृत्य से सभी त्राही त्राही करने लगते हैं। ब्रह्मा, विष्णु और इन्द्र आदि देवता उससे मुक्ति प्राप्ति हेतु भगवान शिव की शरण में जाते हैं भगवान उनकी दारूण व्यथा को सुन उस दैत्य को हराने के लिए उससे युद्ध करते हैं त्रिपुर का वध करने के लिए भगवान शिव अपने नेत्र बंद करके अघोर अस्त्र का चिंतन करते हैं इस प्रकार दिव्य सहस्त्र वर्षों तक प्रभु ने अपने नेत्र बंद रखे अधिक समय तक नेत्र बंद रहने के कारण उनके नेत्रों से जल की कुछ बूंदें निकलकर पृथ्वी पर गिर गईं तथा उन अश्रु रूपी बूंदों से रुद्राक्ष के महान वृक्षो की उत्पति हुई।

एक अन्य मान्यता अनुसार एक समय भगवान आशुतोष शंकर जी हजारों वर्षों तक समाधि में लीन रहते हैं लंबे समय पश्चात जब भगवान भोलेनाथ अपनी तपस्या से जागते हैं, तब भगवान शिव की आखों से जल की कुछ बूँदें भूमि पर गिर पड़ती हैं। उन्हीं जल की बूँदों से रुद्राक्ष की उत्पत्ति हुई।

इस प्रकार एक अन्य कथा अनुसार एक बार दक्ष प्रजापति ने जब एक महायज्ञ का आयोजन किया तो उसने अपनी पुत्री सती व अपने दामाद भगवान शंकर को नहीं बुलाया इस पर शिव के मना करने के बावजूद भी देवी सती उस यज्ञ में शामिल होने की इच्छा से वहाँ जाती हैं किंतु पिता द्वारा पति के अपमान को देखकर देवी सती उसी समय वहां उस यज्ञ की अग्नि में अपने प्राणों का उत्सर्ग कर देती हैं। पत्नी सती की जली हुई देह को देख भगवान शिव के नेत्रों से अश्रु की धारा फूट पड़ती है। इस प्रकार भगवान शिव के आँसू (अर्शुविंद) जहाँ-जहाँ भी गिरे वहीं पर रूद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हो जाते हैं।


कहाँ पाए जाते हैं रुद्राक्ष

प्राकृतिक वनस्पतियों में रूद्राक्ष अत्यंत महत्वपूर्ण है। रुद्राक्ष के पेड़ भारत समेत विश्व के अनेक देशों में पाए जाते हैं। मुख्यतः यह पेड़ नेपाल, मलेशिया, मलाया, इंडोनेशिया, चीन, बर्मा और भारत में पाया जाता है। भारत में रुद्राक्ष के पेड़ पहाड़ी और मैदानी दोनों इलाकों में पाया जाता है। भारत के हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र, बिहार, असम, मध्य प्रदेश, उतरांचल, अरूणांचल प्रदेश, बंगाल, हरिद्वार, गढ़वाल और देहरादून के जंगलों में पर्याप्त मात्र में यह रुद्राक्ष पाए जाते हैं। इसके अलावा दक्षिण भारत में नीलगिरि और मैसूर में तथा कर्नाटक में भी रुद्राक्ष के वृक्ष देखे जा सकते हैं। रामेश्वरम में भी रुद्राक्ष पाया जाता है यहां का रुद्राक्ष काजू की भांति होता है। गंगोत्री और यमुनोत्री के क्षेत्र में भी रुद्राक्ष मिलते हैं।

जावा, बाला और मलयद्वीप में उत्पन्न रूद्राक्ष तथा भारत और नेपाल में उत्पन्न रूद्राक्षों से कहीं अधिक सामर्थयवान एवं ऊर्जाशील होते है। हिमालय तथा तराई-क्षेत्र में उत्पन्न रूद्राक्ष, दक्षिण भारत में उत्पन्न रूद्राक्षों की अपेक्षा अधिक प्रभावशली होते है। नेपाल में उत्पन्न गोल और कांटेदार एक-मुखी रूद्राक्ष बेहद ऊर्जावान एवं शक्तिशाली होता है। एक मुखी, दस मुखी तथा चैदहमुखी रूद्राक्ष मिलना अत्यन्त दुर्लभ है। पन्द्रह से इक्कीस मुखी तक रूद्रास बाजार में उपलब्ध नहीं है। जहाँ कहीं पर भी उपलब्ध है। वे पूजनघर में स्थान पाये हुये हैं।

रुद्राक्ष के पेड़ की लम्बाई 50 से लेकर 200 फिट तक होती है। वृक्ष में रूद्राक्ष फल के रूप में उत्पन्न होता है। इसके फूलों का रंग सफेद होता है तथा इस पर लगने वाला फल गोल आकार का होता है जिसके अंदर से मजबूत गुठली रुप में रुद्राक्ष प्राप्त होता है।

रुद्राक्ष श्वेत, लाल, पीत और कृष्ण इन चार रंगों में प्राप्त होता है। यह एकमुखी से चौदहमुखी तक प्राप्त होता है। विश्व में इसकी 123 जातियां उपलब्ध है। भारत में 25 जातियां पाई जाती है। यह गुणों में गुरु और स्निन्ध, स्वाद में मधुर और वीर्य में शीतवीर्य होता है। रुद्राक्ष वेदनाशामक, ज्वरशामक, अंगों को सुद़ृढ करने वाला, श्वासनलिकाओं के अवरोध को दूर करने वाला, विषनाशक और उदर कृमिनाशक है। यह एक उत्तम त्रिदोष शामक है। रुद्राक्ष वातनाशक तथा कफनाशक है। अनेक रोगों में यह बहुत उपयोगी है।



रुद्राक्ष धारण करने का शुभ महूर्त
मेष संक्रांति, पूर्णिमा, अक्षय त्रितय, दीपावली, चेत्र शुकल प्रतिपदा, अयन परिवर्तन काल ग्रहण काल, गुरु पुष्य, रवि पुष्य, द्वि और त्रिपुष्कर योग में रुद्राक्ष धारण करने से समस्त पापो का नाश होता है।

रुद्राक्ष धारण करने की विधि -
यदि किसी कारण वश रुद्राक्ष विशेष मंत्रो से धारण न कर सके तो सरल विधि से लाल धागे में पिरो कर गंगा जल से स्नान करा कर “ का जाप कर के चन्दन विल्व पत्र लाल पुष्प, धुप, दीप, दिखा कर।

''ॐ तत्पुरुशाये विदमहे महादेवाये धिमिही तन्नो रुद्र:प्रचोदयात''

इस से अभिमंत्रित कर के धारण करे और यथा शक्ति दान ब्राहमण को देवे।


असली रुद्राक्ष की पहचान


रूद्राक्ष किसी फैक्टरी में तैयार नहीं किया जाता। यह एक फल है जो पेड़ पर उगता है। इसलिए रूद्राक्ष नकली नहीं हो सकता भले ही कच्चा हो। पांच मुखी रूद्राक्ष बहुतायत में उगते हैं इस कारण यह सस्ते मिलते हैं लेकिन रूद्राक्ष की कुछ किस्में कम मिलती हैं इसी कारण इनका मूल्य काफी अधिक होता है।

शास्त्रों में कहा गया है की जो भक्त रुद्राक्ष धारण करते हैं भगवान भोलेनाथ उनसे हमेशा प्रसन्न रहते हैं। लेकिन सवाल यह उठता है अक्सर लोगों को रुद्राक्ष की असली माला नहीं मिल पाती है जिससे भगवान शिव की आराधना में खासा प्रभाव नहीं पड़ता है। अब हम आपको रुद्राक्ष के बारे में कुछ जानकारियां देने जा रहे हैं जिसके द्वारा आप असली और नकली रूद्राक्ष की पहचान कर सकते है और किस तरह नकली रूद्राक्ष बनाया जाता है -

रुद्राक्ष की पहचान के लिए रुद्राक्ष को कुछ घंटे के लिए पानी में उबालें यदि रुद्राक्ष का रंग न निकले या उस पर किसी प्रकार का कोई असर न हो, तो वह असली होगा। इसके आलावा आप रुद्राक्ष को पानी में डाल दें अगर वह डूब जाता है तो असली नहीं नहीं नकली। लेकिन यह जांच अच्छी नहीं मानी जाती है क्योंकि रुद्राक्ष के डूबने या तैरने की क्षमता उसके घनत्व एवं कच्चे या पके होने पर निर्भर करती है और रुद्राक्ष मेटल या किसी अन्य भारी चीज से भी बना रुद्राक्ष भी पानी में डूब जाता है।

सरसों के तेल मे डालने पर रुद्राक्ष अपने रंग से गहरा दिखे तो समझो वो एक दम असली है।

1- रूद्राक्ष को जल में डालने से यह डूब जाये तो असली अन्यथा नकली। किन्तु अब यह पहचान व्यापारियों के शिल्प ने समाप्त कर दी। शीशम की लकड़ी के बने रूद्राक्ष आसानी से पानी में डूब जाते हैं।
2- तांबे का एक टुकड़ा नीचे रखकर उसके ऊपर रूद्राक्ष रखकर फिर दूसरा तांबे का टुकड़ा रूद्राक्ष के ऊपर रख दिया जाये और एक अंगुली से हल्के से दबाया जाये तो असली रूद्राक्ष नाचने लगता है। यह पहचान अभी तक प्रमाणिक हैं।
3- शुद्ध सरसों के तेल में रूद्राक्ष को डालकर 10 मिनट तक गर्म किया जाये तो असली रूद्र्राक्ष होने पर वह अधिक चमकदार हो जायेगा और यदि नकली है तो वह धूमिल हो जायेगा।


1) प्रायः पानी में डूबने वाला रूद्राक्ष असली और जो पानी पर तैर जाए उसे नकली माना जाता है। लेकिन यह सच नहीं है। पका हुआ रूद्राक्ष पानी में डूब जाता है जबकी कच्चा रूद्राक्ष पानी पर तैर जाता है। इसलिए इस प्रक्रिया से रूद्राक्ष के पके या कच्चे होने का पता तो लग सकता है, असली या नकली होने का नहीं।
2) प्रायः गहरे रंग के रूद्राक्ष को अच्छा माना जाता है और हल्के रंग वाले को नहीं। असलियत में रूद्राक्ष का छिलका उतारने के बाद उस पर रंग चढ़ाया जाता है। बाजार में मिलने वाली रूद्राक्ष की मालाओं को पिरोने के बाद पीले रंग से रंगा जाता है। रंग कम होने से कभी-कभी हल्का रह जाता है। काले और गहरे भूरे रंग के दिखने वाले रूद्राक्ष प्रायः इस्तेमाल किए हुए होते हैं, ऐसा रूद्राक्ष के तेल या पसीने के
संपर्क में आने से होता है।

3) कुछ रूद्राक्षों में प्राकृतिक रूप से छेद होता है ऐसे रूद्राक्ष बहुत शुभ माने जाते हैं। जबकि ज्यादातर रूद्राक्षों में छेद करना पड़ता है।

4) दो अंगूठों या दो तांबे के सिक्कों के बीच घूमने वाला रूद्राक्ष असली है यह भी एक भ्रांति ही है। इस तरह रखी गई वस्तु किसी दिशा में तो घूमेगी ही। यह उस पर दिए जाने दबाव पर निर्भर करता है।

5) रूद्राक्ष की पहचान के लिए उसे सुई से कुरेदें। अगर रेशा निकले तो असली और न निकले तो नकली होगा।

6) नकली रूद्राक्ष के उपर उभरे पठार एकरूप हों तो वह नकली रूद्राक्ष है। असली रूद्राक्ष की उपरी सतह कभी भी एकरूप नहीं होगी। जिस तरह दो मनुष्यों के फिंगरप्रिंट एक जैसे नहीं होते उसी तरह दो रूद्राक्षों के उपरी पठार समान नहीं होते। हां नकली रूद्राक्षों में कितनों के ही उपरी पठार समान हो सकते हैं।

7) कुछ रूद्राक्षों पर शिवलिंग, त्रिशूल या सांप आदी बने होते हैं। यह प्राकृतिक रूप से नहीं बने होते बल्कि कुशल कारीगरी का नमूना होते हैं। रूद्राक्ष को पीसकर उसके बुरादे से यह आकृतियां बनाई जाती हैं। इनकी पहचान का तरीका आगे लिखूंगा।

8) कभी-कभी दो या तीन रूद्राक्ष प्राकृतिक रूप से जुड़े होते हैं। इन्हें गौरी शंकर या गौरी पाठ रूद्राक्ष कहते हैं। इनका मूल्य काफी अधिक होता है इस कारण इनके नकली होने की संभावना भी उतनी ही बढ़ जाती है। कुशल कारीगर दो या अधिक रूद्राक्षों को मसाले से चिपकाकर इन्हें बना देते हैं।

9) प्रायः पांच मुखी रूद्राक्ष के चार मुंहों को मसाला से बंद कर एक मुखी कह कर बेचा जाता है जिससे इनकी कीमत बहुत बढ़ जाती है। ध्यान से देखने पर मसाला भरा हुआ दिखायी दे जाता है।

10) कभी-कभी पांच मुखी रूद्राक्ष को कुशल कारीगर और धारियां बना अधिक मुख का बना देते हैं। जिससे इनका मूल्य बढ़ जाता है। प्राकृतिक तौर पर बनी धारियों या मुख के पास के पठार उभरे हुए होते हैं जबकी मानव निर्मित पठार सपाट होते हैं। ध्यान से देखने पर इस बात का पता चल जाता है।
इसी के साथ मानव निर्मित मुख एकदम सीधे होते हैं जबकि प्राकृतिक रूप से बने मुख पूरी तरह से सीधे नहीं होते।

11) प्रायः बेर की गुठली पर रंग चढ़ाकर उन्हें असली रूद्राक्ष कहकर बेच दिया जाता है। रूद्राक्ष की मालाओं में बेर की गुठली का ही उपयोग किया जाता है।

12) रूद्राक्ष की पहचान का तरीका- एक कटोरे में पानी उबालें। इस उबलते पानी में एक-दो मिनट के लिए रूद्राक्ष डाल दें। कटोरे को चूल्हे से उतारकर ढक दें। दो चार मिनट बाद ढक्कन हटा कर रूद्राक्ष निकालकर ध्यान से देखें। यदि रूद्राक्ष में जोड़ लगाया होगा तो वह फट जाएगा। दो रूद्राक्षों को चिपकाकर गौरीशंकर रूद्राक्ष बनाया होगा या शिवलिंग, सांप आदी चिपकाए होंगे तो वह अलग हो जाएंगे।

जिन रूद्राक्षों में सोल्यूशन भरकर उनके मुख बंद करे होंगे तो उनके मुंह खुल जाएंगे। यदि रूद्राक्ष प्राकृतिक तौर पर फटा होगा तो थोड़ा और फट जाएगा। बेर की गुठली होगी तो नर्म पड़ जाएगी, जबकि असली रूद्राक्ष में अधिक अंतर नहीं पड़ेगा।

यदि रूद्राक्ष पर से रंग उतारना हो तो उसे नमक मिले पानी में डालकर गर्म करें उसका रंग हल्का पड़ जाएगा। वैसे रंग करने से रूद्राक्ष को नुकसान नहीं होता है।


किस व्यवसाय में कौन सा रूद्राक्ष

प्रशानिक अधिकारी -- तेरह मुखी, एक मुखी
कोषाध्यक्ष -- आठ मुखी, बारह मुखी
जज न्यायधीश -- चौदह मुखी, दो मुखी
पुलिस तथा मिलेट्री वाले -- आठ मुखी, चार मुखी
बैंक कर्मी -- ग्यारह मुखी, चार मुखी
डाक्र, वैध -- ग्यारह मुखी
नर्स, केमिस्ट, कम्पाउन्डर -- तीन मुखी
वकील -- तेरह मुखी
नेता मंत्री, विधायक सांसद -- चौदह मुखी, एक मुखी
अध्यापक, धर्म प्रचारक -- चौदह मुखी, एक मुखी
लेखक, क्लर्क, टाइपिस्ट, स्टैनो -- ग्यारह मुखी, आठ मुखी
सिविल इन्जीनियर्स -- आठ मुखी, चौदह मुखी
कम्प्यूटर इंजीनियर्स -- साल मुखी, ग्यारह मुखी
रेल-बस चालक -- चौदह मुखी, गौरी शंकर
व्यवसायी दुकानदार -- चौदह मुखी, तेरह मुखी
उधोग पति, कारखाने दार -- चौदह मुखी, बारह मुखी
संगीतकार, कवि -- चौदह मुखी, नौ मुखी
डाक्टर, सर्जन -- चौदह मुखी, चार मुखी
डाक्टर, फिजीशियन -- दस मुखी, ग्यारह मुखी
होटल स्वामी -- चौदह मुखी, ग्यारह मुखी
ठेकेदार -- चौदह, तेरह व ग्यारह मुखी
नोट :-- पांचमुखी रूद्राक्ष साथ में अवश्य होना चाहिए।



रुद्राक्ष के स्वरुप
स्वरुप - एक मुखी रुद्राक्ष शिव का स्वरुप है।
लाभ - एक मुखी रुद्राक्ष ब्रहम हत्या आदि पापो को दूर करने वाला है।
मंत्र - एक मुखी रुद्राक्ष को ''ॐ ह्रीं नमः'' मंत्र का जाप कर के धारण करे।

स्वरुप - दो मुखी रुद्राक्ष देवता स्वरुप है, पापो को दूर करने वाला और अर्धनारीइश्वर स्वरुप है।
लाभ - दो मुखी रुद्राक्ष धारण करने से अर्धनारीइश्वर प्रस्सन होते है।
मंत्र - दो मुखी रुद्राक्ष को ''ॐ नमः'' का जाप कर के धारण करे।

स्वरुप- तीन मुखी रुद्राक्ष अग्नि स्वरुप है।
लाभ - तीन मुखी रुद्राक्ष हत्या आदि पापो को दूर करने में समर्थ है, शौर्य और ऐश्वर्या को बढाने वाला है।
मंत्र - तीन मुखी रुद्राक्ष को ''ॐ क्लीं नमः'' का जाप कर के धारण करे।

स्वरुप - चतुर्मुखी रुद्राक्ष साक्षात् ब्रह्म जी का स्वरुप है।
लाभ - चतुर्मुखी रुद्राक्ष के स्पर्श और दर्शन मात्र से धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, की प्राप्ति होती है।
मंत्र - चतुर्मुखी रुद्राक्ष को ''ॐ ह्रीं नमः'' मन्त्र का जाप कर के धारण करे।

स्वरुप - पञ्च मुखी रुद्राक्ष पञ्च देवो (विष्णु, शिव, गणेश, सूर्य और देवी) का स्वरुप है।
लाभ - ''पञ्च वक्त्रं तु रुद्राक्ष पञ्च ब्रहम स्वरूप्कम'' इस के धारण मात्र से नर हत्या का पाप मुक्त हो जाता है, इस को धारण करने से काल अग्नि स्वरुप अगम्य पाप दूर होते है।
मंत्र - पञ्च मुखी रुद्राक्ष को ''ॐ ह्रीं नमः'' मंत्र का जाप कर के धारण करे।

स्वरुप - छह मुखी रुद्राक्ष साक्षात् कार्तिके स्वरुप है।
लाभ - छह मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से श्री और आरोग्य की प्राप्ति होती है।
मंत्र - छह मुखी रुद्राक्ष को ''ॐ ह्रीं नमः'' मंत्र का जाप कर के धारण करे।

स्वरुप - सप्त मुखी रुद्राक्ष साक्षात् कामदेव स्वरुप है।
लाभ - सप्त मुखी रुद्राक्ष अत्यंत भाग्य शाली और स्वर्ण चोरो आदि पापो को दूर करता है।

स्वरुप - अष्टमुखी रुद्राक्ष - यह रुद्राक्ष साक्षात् साक्षी विनायक देव है।
लाभ - इस के धारण करने से पञ्च पातको का नाश होता है।
मंत्र - इस को ''ॐ हम नमः'' मंत्र का जाप कर के धारण करने से परम पद की प्राप्ति होती है।

स्वरुप - नवममुखी रुद्राक्ष - इसे भेरव और कपिल मुनि का प्रतीक माना गया है। नौ रूप धारण करने वाली भगवती दुर्गा इस की अधीश्तात्री मानी गई है।
लाभ - जो मनुष्य भगवती परायण हो कर अपनी बाई हाथ अथवा भुजा पर इस को धारण करता है, उस पर नव शक्तिया प्रसन्न होती है।
मंत्र - वह शिव के सामान बलि हो जाता है इसे ''ॐ ह्रीं हुं नमः'' का जाप कर के धारण करना चाहये।

स्वरुप - दश मुखी रुद्राक्ष साक्षात् भगवान जनादन है।
लाभ - इस के धारण करने से ग्रह, पिचाश, बेताल, ब्रम्ह राक्षश, और नाग आदि का भय दूर होता है।
मंत्र - इसे मंत्र ''ॐ ह्रीं नमः'' का जाप कर के धारण करना चाहिए।

स्वरुप - एकादश मुखी रुद्राक्ष एकादश रुदर स्वरुप है।
लाभ - शिखा पर धारण करने से पुण्य फल, श्रेष्ठ यज्ञो के फल की प्राप्ति होती है।
मंत्र - एकादश मुखी रुद्राक्ष को ''ॐ ह्रीं हम नमः'' का जाप कर के धारण करने से साधक सर्वत्र विजय होता है।

स्वरुप - द्वादश मुखी रुद्राक्ष महा विष्णु का स्वरुप है।
लाभ - इसे कान में धारण करने से द्वादश आदित्य भी प्रस्सन होते है।
मंत्र - इस रुद्राक्ष को ''ॐ क्रों क्षों रों नमः'' का जाप कर के धारण करने से साधक साक्षात् विष्णु जी को मही धारण करता है।

स्वरुप - तेरह मुखी रुद्राक्ष काम देश स्वरुप है।
लाभ - इस रुद्राक्ष को धारण करने से समस्त कामनाओ की इच्छा भोगो की प्राप्ति होती है।
मंत्र - इसे ''ॐ ह्रीं हुम नमः'' का जाप कर के धारण करना चाहये।

स्वरुप - चौदह मुखी रुद्राक्ष अक्षि से उत्पन हुआ है, यह भगवान का नेत्र स्वरुप है।
लाभ - इस को धारण करने से साधक शिव तुल्य हो कर सब व्यधियो और रोगों को हर लेता है और आरोग्य प्रदान करता है।
मंत्र - इस रुद्राक्ष को ''ॐ नमः शिवाय'' का जाप कर के धारण करना चाहिए।



रुद्राक्ष के प्रकार

आकार भेद से रूद्राक्ष अनेक प्रकार के होते हैं। रूद्राक्ष दाने पर उभरी हुई धारियों के आधार पर रूद्राक्ष के मुख निर्धारित किये जाते हैं। रूद्राक्ष के बीचों-बीच एक सिरे से दूसरे सिरे तक एक रेखा होती है जिसे मुख कहा जाता है। रूद्राक्ष में यह रेखाएं या मुख एक से 14 मुखी तक होते हैं और कभी-कभी 15 से 21 मुखी तक के रूद्राक्ष भी देखे गए हैं। आधी या टूटी हुई लाईन को मुख नहीं माना जाता है। जितनी लाईनें पूरी तरह स्पष्ट हों उतने ही मुख माने जाते हैं। पुराणों में प्रत्येक रुद्राक्ष का अलग-अलग महत्व और उप‍योगिता उल्लेख किया गया है -

एक मुखी - सूर्य,
दो मुखी - चंद्र,
तीन मुखी - मंगल,
चार मुखी - बुध,
पांच मुखी - गुरू,
छः मुखी - शुक्र,
सात मुखी - शनि,
आठ मुखी - राहू,
नौ मुखी - केतू,
10मुखी - भगवान महावीर,
11मुखी - इंद्र,
12मुखी - भगवान विष्णु,
13मुखी - इंद्र,
14मुखी - शनि, गौरी शंकर और गणेश रूद्राक्ष पाए जाते हैं।

एकमुखी रुद्राक्ष - एकमुखी रुद्राक्ष साक्षात रुद्र स्वरूप है। इसे परब्रह्म माना जाता है। सत्य, चैतन्यस्वरूप परब्रह्म का प्रतीक है। साक्षात शिव स्वरूप ही है। इसे धारण करने से जीवन में किसी भी वस्तु का अभाव नहीं रहता। लक्ष्मी उसके घर में चिरस्थायी बनी रहती है। चित्त में प्रसन्नता, अनायास धनप्राप्ति, रोगमुक्ति तथा व्यक्तित्व में निखार और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।

द्विमुखी रुद्राक्ष - शास्त्रों में दोमुखी रुद्राक्ष को अर्द्धनारीश्वर का प्रतीक माना जाता है। शिवभक्तों को यह रुद्राक्ष धारण करना अनुकूल है। यह तामसी वृत्तियों के परिहार के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है। इसे धारण करने से मानसिक शांति प्राप्त होती है। चित्त में एकाग्रता तथा जीवन में आध्यात्मिक उन्नति और पारिवारिक सौहार्द में वृद्धि होती है। व्यापार में सफलता प्राप्त होती है। स्त्रियों के लिए इसे सबसे उपयुक्त माना गया है।

तीनमुखी रुद्राक्ष - यह रुद्राक्ष ‍अग्निस्वरूप माना गया है। सत्व, रज और तम- इन तीनों यानी त्रिगुणात्मक शक्तियों का स्वरूप यह भूत, भविष्य और वर्तमान का ज्ञान देने वाला है। इसे धारण करने वाले मनुष्य की विध्वंसात्मक प्रवृत्तियों का दमन होता है और रचनात्मक प्रवृत्तियों का उदय होता है। किसी भी प्रकार की बीमारी, कमजोरी नहीं रहती। व्यक्ति क्रियाशील रहता है। यदि किसी की नौकरी नहीं लग रही हो, बेकार हो तो इसके धारण करने से निश्चय ही कार्यसिद्धी होती है।

चतुर्मुखी रुद्राक्ष - चतुर्मुखी रुद्राक्ष ब्रह्म का प्रतिनिधि है। यह शिक्षा में सफलता देता है। जिसकी बुद्धि मंद हो, वाक् शक्ति कमजोर हो तथा स्मरण शक्ति मंद हो उसके लिए यह रुद्राक्ष कल्पतरु के समान है। इसके धारण करने से शिक्षा आदि में असाधारण सफलता मिलती है।

पंचमुखी रुद्राक्ष - पंचमुखी रुद्राक्ष भगवान शंकर का प्रतिनिधि माना गया है। यह कालाग्नि के नाम से जाना जाता है। शत्रुनाश के लिए पूर्णतया फलदायी है। इसके धारण करने पर साँप-बिच्छू आदि जहरीले जानवरों का डर नहीं रहता। मानसिक शांति और प्रफुल्लता के लिए भी इसका उपयोग किया होता है।

षष्ठमुखी रुदाक्ष - यह षडानन कार्तिकेय का स्वरूप है। इसे धारण करने से खोई हुई शक्तियाँ जागृत होती हैं। स्मरण शक्ति प्रबल तथा बुद्धि तीव्र होती है। कार्यों में पूर्ण तथा व्यापार में आश्चर्यजनक सफलता प्राप्त होती है।

सप्तमुखी रुद्राक्ष - सप्तमुखी रुद्राक्ष को सप्तमातृका तथा ऋषियों का प्रतिनिधि माना गया है। यह अत्यंत उपयोगी तथा लाभप्रद रुद्राक्ष है। धन-संपत्ति, कीर्ति और विजय प्रदान करने वाला होता है साथ ही कार्य, व्यापार आदि में बढ़ोतरी कराने वाला है।

अष्टमुखी रुद्राक्ष - अष्टमुखी रुद्राक्ष को अष्टदेवियों का प्रतिनिधि माना गया है। यह ज्ञानप्राप्ति, चित्त में एकाग्रता में उपयोगी तथा मुकदमे में विजय प्रदान करने वाला है। धारक की दुर्घटनाओं तथा प्रबल शत्रुओं से रक्षा करता है। इस रुद्राक्ष को विनायक का स्वरूप भी माना जाता है। यह व्यापार में सफलता और उन्नतिकारक है।

नवममुखी रुद्राक्ष - नवमुखी रुद्राक्ष को नवशक्ति का प्रति‍‍निधि माना गया है। इसके अलावा इसे नवदुर्गा, नवनाथ, नवग्रह का भी प्रतीक भी माना जाता है। यह धारक को नई-नई शक्तियाँ प्रदान करने वाला तथा सुख-शांति में सहायक होकर व्यापार में वृद्धि कराने वाला होता है। इसे भैरव के नाम से भी जाना जाता है। इसके धारक की अकालमृत्यु नहीं होती तथा आकस्मिक दुर्घटना का भी भय नहीं रहता।

दशममुखी रुद्राक्ष - दशमुखी रुद्राक्ष दस दिशाएँ, दस दिक्पाल का प्रतीक है। इस रुद्राक्ष को धारण करने वाले को लोक सम्मान, कीर्ति, विभूति और धन की प्राप्ति होती है। धारक की सभी लौकिक-पारलौकिक कामनाएँ पूर्ण होती हैं।

एकादशमुखी रुद्राक्ष - यह रुद्राक्ष रूद्र का प्रतीक माना जाता है। इस रुद्राक्ष को धारण करने से किसी चीज का अभाव नहीं रहता तथा सभी संकट और कष्ट दूर हो जाते हैं। यह रुद्राक्ष भी स्त्रियों के लिए काफी फायदेमं रहता है। इसके बारे में यह मान्यता है कि जिस स्त्री को पुत्र रत्न की प्राप्ति न हो रही हो तो इस रुद्राक्ष के धारण करने से पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है|

द्वादशमुखी रुद्राक्ष - यह द्वादश आदित्य का स्वरूप माना जाता है। सूर्य स्वरूप होने से धारक को शक्तिशाली तथा तेजस्वी बनाता है। ब्रह्मचर्य रक्षा, चेहरे का तेज और ओज बना रहता है। सभी प्रकार की शारीरिक एवं मानसिक पीड़ा मिट जाती है तथा ऐश्वर्ययुक्त सुखी जीवन की प्राप्ति होती है।

त्रयोदशमुखी रुद्राक्ष - यह रुद्राक्ष साक्षात विश्वेश्वर भगवान का स्वरूप है यह। सभी प्रकार के अर्थ एवं सिद्धियों की पूर्ति करता है। यश-कीर्ति की प्राप्ति में सहायक, मान-प्रतिष्ठा बढ़ाने परम उपयोगी तथा कामदेव का भी प्रतीक होने से शारीरिक सुंदरता बनाए रख पूर्ण पुरुष बनाता है। लक्ष्मी प्राप्ति में अत्यंत उपयोगी सिद्ध होता है।

चतुर्दशमुखी रुद्राक्ष - इस रुद्राक्ष के बारे में यह मान्यता है कि यह साक्षात त्रिपुरारी का स्वरूप है। चतुर्दशमुखी रुद्राक्ष स्वास्थ्य लाभ, रोगमुक्ति और शारीरिक तथा मानसिक-व्यापारिक उन्नति में सहायक होता है। इसमें हनुमानजी की शक्ति निहित है। धारण करने पर आध्यात्मिक तथा भौतिक सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है।

माला जप में सावधानियॉ ROSAARY JAAP MALA

माला जप में सावधानियॉ  ROSAARY JAAP MALA
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जप में माला का प्रयोग क्यों होता है
आपने देखा होगा कि बहुत से लोग ध्यान करने के लिए, गुरुमन्त्र जप और भगवान का नाम जपने के लिए माला का प्रयोग करते हैं। कुछ लोग उंगलियों पर गिन कर भी ध्यान जप करते हैं। लेकिन शास्त्रों में माला पर जप करना अधिक शुद्घ और पुण्यदायी कहा गया है। इसके पीछे धार्मिक मान्याताओं के अलावा वैज्ञानिक कारण भी है। 

धार्मिक दृष्टिकोण : अंगिरा ऋषि के अनुसार “असंख्या तु यज्ज्प्तं, तत्सर्वं निष्फलं भवेत।” यानी बिना माला के संख्याहीन जप का कोई फल नहीं मिलता है।

इसका कारण यह है कि, जप से पहले जप की संख्या का संकल्प लेना आवश्यक होता है। संकल्प संख्या में कम ज्यादा होने पर जप निष्फल माना जाता है। इसलिए त्रुटि रहित जप के लिए माला का प्रयोग उत्तम माना गया है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण : जबकि वैज्ञानिक दृष्टि से यह माना जाता है कि अंगूठे और उंगली पर माला का दबाव पड़ने से एक विद्युत तरंग उत्पन्न होती है। यह धमनी के रास्ते हृदय चक्र को प्रभावित करता है जिससे मन एकाग्र और शुद्घ होता है। तनाव और चिंता से मुक्ति मिलती है।

माला जप मध्यमा उंगली और उंगूठे से ही क्यों किया जाता है : माना जाता है कि मध्यमा उंगली का हृदय से सीधा संबंध होता है। हृदय में आत्मा का वास है इसलिए मध्यमा उंगली और उंगूठे से जप किया जाता है।

माला में 108 मुनके का रहस्य
मंत्र जप व धारण करने के लिए जिस माला का उपयोग किया जाता है, उस माला में मोतियों की संख्या 108 होती है। शास्त्रों में इस 108 की संख्या का विशेष महत्व है। माला में 108 ही मुनके क्यों होते हैं, इसके पीछे कई धार्मिक और वैज्ञानिक कारण बताए गए हैं।

सूर्य से सम्बंध :
सूर्य की एक-एक कला का प्रतीक होता है माला का एक-एक मुनका। एक मान्यता के अनुसार माला के 108 मुनके और सूर्य की कलाओं का गहरा संबंध है। एक वर्ष में सूर्य 216000 कलाएं बदलता है और वर्ष में दो बार अपनी स्थिति भी बदलता है। छह माह उत्तरायण रहता है और छह माह दक्षिणायन। अत: सूर्य छह माह की एक स्थिति में 108000 बार कलाएं बदलता है। इसी संख्या 108000 से अंतिम तीन शून्य हटाकर माला के 108 मुनके निर्धारित किए गए हैं। माला का एक-एक मुनका सूर्य की एक-एक कला का प्रतीक है। सूर्य ही व्यक्ति को तेजस्वी बनाता है, समाज में मान-सम्मान दिलवाता है। सूर्य ही एकमात्र साक्षात दिखने वाले देवता हैं, इसी वजह से सूर्य की कलाओं के आधार पर मुनको की संख्या 108 निर्धारित की गई है।
अन्य मान्यता : 
एक सामान्य पूर्ण रूप से स्वस्थ व्यक्ति दिनभर में जितनी बार सांस लेता है, उसी से माला के मुनको  की संख्या 108 का संबंध है। सामान्यत: 24 घंटे में एक व्यक्ति 21600 बार सांस लेता है। दिन के 24 घंटों में से 12 घंटे दैनिक कार्यों में व्यतीत हो जाते हैं और शेष 12 घंटों में व्यक्ति सांस लेता है 10800 बार। इसी समय में देवी-देवताओं का ध्यान करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार व्यक्ति को हर सांस पर यानी पूजन के लिए निर्धारित समय 12 घंटे में 10800 बार ईश्वर का ध्यान करना चाहिए, लेकिन यह संभव नहीं हो पाता है। इसीलिए 10800 बार सांस लेने की संख्या से अंतिम दो शून्य हटाकर जप के लिए 108 संख्या निर्धारित की गई है। इसी संख्या के आधार पर जप की माला में 108 मोती होते हैं।

ज्योतिष की मान्यता :
ज्योतिष के अनुसार ब्रह्मांड को 12 भागों में विभाजित किया गया है। इन 12 भागों के नाम मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन हैं। इन 12 राशियों में नौ ग्रह सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु विचरण करते हैं। अत: ग्रहों की संख्या 9 का गुणा किया जाए राशियों की संख्या 12 में तो संख्या 108 प्राप्त हो जाती है। माला के मोतियों की संख्या 108 संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व करती है। एक अन्य मान्यता के अनुसार ऋषियों ने में माला में 108 मोती रखने के पीछे ज्योतिषी कारण बताया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुल 27 नक्षत्र बताए गए हैं। हर नक्षत्र के 4 चरण होते हैं और 27 नक्षत्रों के कुल चरण 108 ही होते हैं। माला का एक-एक मोती नक्षत्र के एक-एक चरण का प्रतिनिधित्व करता है।

संख्याहीन मंत्रों के जप से नहीं मिलता है पूर्ण पुण्य :
भगवान की पूजा के लिए कुश का आसन बहुत जरूरी है, इसके बाद दान-पुण्य जरूरी है। साथ ही, माला के बिना संख्याहीन किए गए जप का भी पूर्ण फल प्राप्त नहीं हो पाता है। अत: जब भी मंत्र जप करें, माला का उपयोग अवश्य करना चाहिए।
जप में किन माला का प्रयोग करना चहिये :
मंत्र जप के लिए उपयोग की जाने वाली माला रुद्राक्ष, तुलसी, स्फटिक, मोती या नगों से बनी होती है। यह माला बहुत चमत्कारी प्रभाव रखती है। ऐसी मान्यता है कि किसी मंत्र का जप इस माला के साथ करने पर दुर्लभ कार्य भी सिद्ध हो जाते हैं।
माला व मंत्र जप का फल : भगवान की पूजा के लिए मंत्र जप सर्वश्रेष्ठ उपाय है और पुराने समय से ही बड़े-बड़े तपस्वी, साधु-संत इस उपाय को अपनाते रहे हैं। जप के लिए माला की आवश्यकता होती है और इसके बिना मंत्र जप का फल प्राप्त नहीं हो पाता है।

रुद्राक्ष माला :
रुद्राक्ष से बनी माला मंत्र जप के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। रुद्राक्ष को महादेव का प्रतीक माना गया है। रुद्राक्ष में सूक्ष्म कीटाणुओं का नाश करने की शक्ति भी होती है। इसके साथ ही रुद्राक्ष वातावरण में मौजूद सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण करके साधक के शरीर में पहुंचा देता है।
क्यों किया जाता है माला का उपयोग :
जो भी व्यक्ति माला की मदद से मंत्र जप करता है, उसकी मनोकामनाएं बहुत जल्द पूर्ण होती हैं। माला से किए गए जप अक्षय पुण्य प्रदान करते हैं। मंत्र जप निर्धारित संख्या के आधार पर किए जाए तो श्रेष्ठ रहता है। इसीलिए माला का उपयोग किया जाता है।
माला से जप के नियमः माला के मोतियों से मालूम हो जाता है कि मंत्र जप की कितनी संख्या हो गई है। जप की माला में सबसे ऊपर एक बड़ा मोती होता है जो कि सुमेरू कहलाता है। सुमेरू से ही जप की संख्या प्रारंभ होती है और यहीं पर खत्म भी। जब जप का एक चक्र पूर्ण होकर सुमेरू मोती तक पहुंच जाता है तब माला को पलटा लिया जाता है। सुमेरू को लांघना नहीं चाहिए। जब भी मंत्र जप पूर्ण करें तो सुमेरू को माथे पर लगाकर नमन करना चाहिए। इससे जप का पूर्ण फल प्राप्त होता है।

वैसे तो मालाएं कई प्रकार की होती है लेकिन आध्यात्मिक उपयोग और महत्त्व की दृष्टि से निम्न प्रकार की मालाओं का प्रयोग सर्वाधिक किया जाता है - हल्दी की माला, जामुन की गुठली की माला, कमल गट्टे की माला, लाल चंदन की माला, स्फटिक एवं रुद्राक्ष, मूंगा की माला, नवरत्न की माला, रुद्राक्ष माला, शंख माला, स्फटिक माला, तुलसी स्फटिक माला, तुलसी की माला, वैयजंती माला आदि. श्रीश्याम ज्योतिष एवं वास्तु संस्थान सभी प्रकार की मालाएं उपलब्ध करता है.

हल्दी की माला : यह माला भगवान गणे्यजी की व भगवान बृहस्पति की उपासना के लिए उचित मानी गई है। यह माला विशेषकर धनु व मीन राशि वाले जातकों के लिए उपयोगी मानी जाती है। बृहस्पति (गुरु) को सभी देवताओं के गुरु माना जाता है, इन्हें ज्ञान का देवता भी कहा जाता है। यदि बच्चों का मन पढ़ाई में लगता हो तो इस माला को धारण करने से काफी लाभ मिलता है, इसको धारण करने से गुरु ग्रह संबंधित सभी दोष नष्ट हो जाते हैं।

जामुन की गुठली की माला : यह माला शनिदेव की उपासना के लिए उचित मानी जाती है। इसको धारण करने से शनि से संबंधित सभी दोष नष्ट हो जाते हैं। यह प्राय मकर व कुंभ राशि के जातकों के लिए उपयोगी मानी जाती है।

कमल गट्टे की माला : कहा जाता है मां लक्ष्मी देवी का श्रीमुख पदम के समान सुन्दर, कान्तियुक्त है, और पदम समान है आप पदम से पैदा हुई हैं और आप का एक नाम पदमाक्षि भी है आपकी प्रसन्नता के लिए कमल गट्टा प्रायः सरोवरों और झीलों में पैदा होता है यह कमल पुष्प का बीज माना जाता है। कमल पुष्प लक्ष्मी एवं विष्णु को अत्यधिक प्रिय है इसे अनेक नामों से जाना जाता है संस्कृत भाषा में पुण्डरीक, रक्तपदम, नीलपदंम हिन्दी में कमल पंजाबी में नीलोफर फारसी में गुलनीलोफर अरबी में करंबुलमा कहते हैं।जो मनुष्य उत्तम लक्ष्मी की प्राप्ति की कामना करता हो वह कमल गट्टे की 108 दाने की माला पर लक्ष्मी का मंत्र जप करने से शीघ्र सफलता मिलती है एवं धन आगमन होता है। कमल गट्टे की माला द्वारा कनक धारा मंत्र का जप करने से स्वर्ण वर्षा होती है ऐसा शास्त्रों का प्रमाण है। अक्षय तृतीया को कमलगट्टे की माला पर लक्ष्मी गायत्री मंत्र जप करने से सौ गुना अत्यधिक फल प्राप्त होता है। कमलगट्टे की माला धारण करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न रहती हैं तथा अपने भक्तों को हमेशा धनधान्य से शोभित करती हैं।

लाल चंदन की माला : चन्दन दो प्रकार के पाये जाते हैं रक्त एवं श्वेत रक्त-चन्दन की माला देवियों के लिए उपयुक्त है श्वेत चन्दन की माला देवताओं के लिए। चन्दन के वृक्ष प्रायः आसाम के जंगली क्षेत्रों में पाये जाते हैं इसकी लकड़ी भारी होती है जो पानी में डूब जाती है चन्दन का गुण शीतल है जो हर प्रकार से शीतलता प्रदान करता है। श्वेत चन्दन में मनमोहक सुगन्ध पायी जाती है यह इसका प्रधान गुण है चन्दन कई रोगों को शान्त करता है जैसे- तृषा, थकान, रक्त विकार, दस्त, सिर दर्द, वात पित्त, कफ, कृमि और वमन आदि। इसे अनेक भाषा में अनेक नामों से जाना जाता है।

मूंगा माला : यह खूबसूरत माला मूंगें के पत्थरों से बनायी गई है। मंगल ग्रह की शांति के लिए इस माला का प्रयोग किया जाता है। विशेषकर मेष और वृश्चिक राशि के जातकों के लिए उपयोगी मानी जाती है। मूंगा एक जैविक रत्न है। यह समुद्र से निकाला जाता है। अपनी रासायनिक संरचना में मूंगा कैल्शियम कार्बोनेट का रुप होता है। मूंगा मंगल ग्रह का रत्न है। अर्थात् मूंगा धारण करने से मंगल ग्रह से सम्बंधित सभी दोष दूर हो जाते है। मूंगा धारण करने से रक्त साफ होता है तथा रक्त से संबंधित सभी दोषदूर हो जाते है।मूंगा मेष तथा वृष्चिक राषि वालों के भाग्य को जगाता है। मूंगा धारण करने से मान-स्वाभिमान में बृद्धि होती है। तथा मूंगा धारण करने वाले पर भूत-प्रेत तथा जादू-टोने का असर नहीं होता। मूंगा धारण करने वाले की व्यापार या नौकरी में उन्नति होती है। मूंगा कम से कम सवा रती का या इससे ऊपर का पहनना चाहिए। मूंगा 5, 7, 9, 11 रती का शुभ होता है। मूंगे को सोने या तांबे में पहनना अच्छा माना जाता है।

नवरत्न की माला : ज्योतिष शास्त्र की भारतीय पद्धति में सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र शनि, राहु तथा केतु को ही मान्यता प्राप्त है। अनुभवों में पाया गया है कि रत्न परामर्श के समय उपरोक्त नवग्रहों को आधार मान कर दिया गया परामर्श अत्यधिक प्रभावी तथा अचूूक होता है। यहाँ पर हम इन्हीं नवग्रहों के आधार पर नवरत्न माला के बारे में परिचय प्राप्त करेंगे। असली नवरत्न माला में अनेक गुण पाये जाते हैं इसे धारण करने मात्र से अनेक सफलता एवं सिद्धियां प्राप्त होती हैं इसमें अपनी एक अद्भुत विशेषता होती है तथा अनेक तात्विक संरचनायें होती है।इसकेे अलग-अलग दानें अपने से सम्बन्धित ग्रहों की रश्मियों को अपने आप समाहित करके धारण करने वाले को लाभ प्रदान करती हैं इस नवरत्न माला में वैज्ञानिक आधार पर निम्न तात्विक सरंचाना पायी जाती हैं जैसे- अल्यूमिनियम आक्सीजन, क्रोमियम तथा लौह, कैल्शियम कार्बोनेट, मैग्नीशियम, बेरोलियम, मिनयिम, फ्लोरीन, हाइड्रोक्सिल, जिक्रोनियम, आदि तात्विक संरचनायें पायी जाती हैं।
समय-समय पर हुए शोध कार्यो तथा ज्योतिषियों को हुए विशेष अनुभवों के आधार पर प्रत्येक रत्न या रत्न नवग्रहों में से किसी एक ग्रह विशेष से सम्बद्ध किया गया है।
प्रस्तुत माला में सारे ग्रहों के रत्नों को समाहित किया गया है इस माला को धारण करने से अनेक लाभ हैं जैसे यश, सम्मान, वैभव, भौतिक समृद्धी में फायदा तथा कफ रोग, शीत रोग, ज्वर रोग आदि रोगों में लाभ होगा। तथा सुख समृद्धि की प्राप्ति होगी।

रुद्राक्ष की माला : रुद्राक्ष स्वयं कालाग्नि नाम रुद्र का स्वरूप है, पर-स्त्री गमन करने से जो पाप बनता है तथा अभक्ष्य भक्षण करने से जो पाप लगता है वह सब रुद्राक्ष के धारण करने से नष्ट हो जाते हैं। इसमें कोई संशय नहीं यह पंचतत्त्वों का प्रतीक है। अनेक औषध कार्य में इसका उपयोग होता है। यह सर्वकल्याणाकारी, मंगलप्रदाता एवं आयुष्यवर्द्धक है। महामृत्युंजय इत्यादि अनुष्ठानों में इसका ही प्रयोग होता है। यह अभीष्ट सिद्धि प्रदाता है। यह सर्वत्र सहज सुलभ होने के कारण इसका महत्व कुछ काम हो गया है परंतु शास्त्रीय दृष्टि से इसका महत्त्व कम नहीं है। पांचमुखी रुद्राख मेष, धनु, मीन, लग्न के जातकों के लिए अत्यन्त उपयोगी माना गया है।
रुद्राक्ष माला सभी प्रकार के सिद्धियों एवं जप के लिए सर्वोत्तम माना गया है रुद्राक्ष माला पर सभी प्रकार के जप किये जा सकते हैं तथा बाल्यावस्था से लेकर वृद्धवस्था तक के सभी व्यक्तियों के लिए रुद्राक्ष माला सर्वोपरि माना गया है। धारण करने के लिए एक दाने से लेकर 108 दाने तक माला धारण की जाती है तथा जप के लिए 27 दानें से लेकर 1008 दानें तक की माला उपयोग में लायी जाती है। आवश्यकता एवं इच्छानुसार एक से अनेक दानों तक की माला धारण की जा सकती है।शास्त्रों में प्रमाण मिलता है कि शरीर के अनेक अंग में रुद्राक्ष अधिक से अधिक धारण करने से ज्यादा लाभ मिलता है असली रुद्राक्ष माला धारण करने से रक्त चाप, वीर्य दोष मिला होता है बौद्विक विकास एवं मानसिक शान्ती होती है व्यापार आदि में लाभ होता है। सभी वर्गो के लिए सम्मान एवं कीर्ति प्राप्त होती है।

रुद्राक्ष माला के अनेक लाभ : ऊदर तथा गर्भाशय से रक्तचाप तथा हृदय रोग से सम्बन्धित अनेक बिमारियों के लिए छः मुखी रुद्राक्ष की माला को हाँडी में पानी डालकर भिगोये रखें प्रत्येक 24 घंटे पश्चात यह रुद्राक्ष का जल खाली पेट प्रातःकाल पीते रहें निश्चित लाभ होगा। मस्तिष्क सम्बन्धी विकारों से पीड़ित व्यक्तियों तथा मस्तिष्कीय कार्य करने वाले लोगां को शक्ति प्राप्ति के लिए चारमुखी रुद्राक्ष की माला चाँदी के किसी बरतन में पानी डालकर भिगोये रखना चाहिए। प्रत्येक 24 घंटे के अन्तराल से यह रुद्राक्ष जल प्रातः खाली पेट पियें। यह प्रयोग चमत्कारी प्रभाव प्रकट करता हैं।

शंख माला : शंख/ सीप अक्सर ज्वार भाटे के समय समुद्र के तट से प्राप्त होते है। इसको धारण करने वाले को संसार के समस्त प्रकार के लाभ मिलते है। इसके पहनने से चन्द्रमा संबंधी दोष नष्ट हो जाते है। यह माला विशेषकर कर्क राशि के जातकों के लिए उपयोगी मानी जाती है।

स्फटिक की माला : स्फटिक एक सामान्य प्राप्ति वाला रंगहीन तथा प्रायः पारदर्शक मिलने वाला अल्पमोली पत्थर है। यह पत्थर देखने में कांच जैसा प्रतीत होता है। सिलिका आक्साइड का एक रूप यह स्फटिक पत्थर स्वयं में विशेष आब तथा चमकयुक्त नहीं होता, लेकिन विशेष काट में काटने तथा पालिश करने पर इसमें चमक पैदा की जा सकती है। अच्छी काट के स्फटिक नगीने आभूषणों में प्रयोग किये जाते हैं। स्फटिक पत्थर से विशेष कटिंगदार मन के बना कर मालायें भी बनायी जाती हैं, जो अत्यन्त आकर्षक होने के बावजूद अल्पमोली होती हैं। स्फटिक पत्थर से बनी विभिन्न देवी देवताओं की मूर्तियां एवं यंत्र बनाये जाते हैं।

स्फटिक माला से अनेक लाभ
  • यह केवल स्वास्थ्य लाभ के लिए नहीं बल्कि आध्यात्मिक क्षेत्र एवं बुद्धि जनित कार्य करने वाले के लिए भी अत्यन्त लाभकारी है।
  • सोमवार को स्फटिक माला धारण करने से मन में पूर्णतः शान्ती की अनुभूति होती हैं एवं सिर दर्द नहीं होता।
  • शनिवार को स्फटिक माला धारण करने से रक्त से सम्बन्धित बिमारियों में लाभ होता है।
  • अत्यधिक बुखार होने की स्थिति में स्फटिक माला को पानी में धोकर कुछ देर नाभि पर रखने से बुखार कम होता है एवं आराम मिलता है।

तुलसी स्फटिक माला : स्फटिक अत्यन्त आकर्षक होने के बावजूद अल्पमोली होते हैं। स्फटिक पत्थर से विभिन्न देवी देवताओं की मूर्तियां एवं यंत्र बनाये जाते हैं तथा आयुर्वेद के अनुसार तुलसी के पौधे को चमत्कारी पौधा माना गया है। इससे बनी हुई माला पहनने से पाचन शक्ति, तेज बुखार, दिमाग की बिमारिया एवम् वायु संबंधित अनेक रोगों में लाभकारी है। यह केवल स्वास्थ्य लाभ के लिए नहीं बल्कि आध्यात्मिक क्षेत्र एवं बुद्धि जनित कार्य करने वाले के लिए भी अत्यन्त लाभकारी है। इसलिए तुलसी स्फटिक माला लक्ष्मीजी एवम् विष्णु जी की उपासना के लिए प्रयोग में लाई जाती है।सोमवार को यह माला धारण करने से मन में पूर्णतः शान्ती की अनुभूति होती हैं एवं सिर दर्द नहीं होता।
शनिवार को यह माला धारण करने से रक्त से सम्बन्धित बिमारियों में लाभ होता है।

तुलसी माला : तुलसी की माला विष्णु, राम और कृष्ण से संबंधित जपों की सिद्धि के लिए उपयोग में लाई जाती है। इसके लिए मंत्र ॐ विष्णवै नमः का जप श्रेष्ठ माना गया है। आयुर्वेद के अनुसार तुलसी के पौधे को चमत्कारी पौधा माना गया है। इससे बनी हुई माला पहनने से व्यक्ति की पाचन शक्ति, तेज बुखार, दिमाग की बिमारियॅा एवम् वायु संबंधित अनेक रोगों में लाभकारी है।

वैयजंती माला : यह मोती प्राय घास से प्राप्त होते है। यह माला भी शनिदेव की उपासना के लिए प्रयोग में लाई जाती है। इसको धारण करने से शनिदेव की कृपा दृष्टि तथा धारणकर्ता को अनेक प्रकार की सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। यह माला मकर व कुंभ राशि के जातकों के लिए उपयोगी है।

माला जप में सावधानियॉ  ROSAARY JAAP MALA


जप करते समय माला गोमुखी या किसी वस्त्र से ढकी होनी चाहिए अन्यथा जप का फल चोरी हो जाता है। जप के बाद जप-स्थान की मिट्टी मस्तक पर लगा लेनी चाहिए अन्यथा जप का फल इन्द्र को चला जाता है।

प्रातःकाल जप के समय माला नाभी के समीप होनी चाहिए, दोपहर में हृदय और शाम को मस्तक के सामने।
जप में तर्जनी अंगुली का स्पर्श माला से नहीं होना चाहिए। इसलिए गोमुखी के बड़े छेद से हाथ अन्दर डाल कर छोटे छेद से तर्जनी को बाहर निकलकर जप करना चाहिए। अभिचार कर्म में तर्जनी का प्रयोग होता है।

जप में नाखून का स्पर्श माला से नहीं होना चाहिए।सुमेरु के अगले दाने से जप आरम्भ करे, माला को मध्यमा अंगुली के मघ्य पोर पर रख कर दानों को अंगूठे की सहायता से अपनी ओर गिराए। सुमेरु को नहीं लांघना चाहिए। यदि एक माला से अधिक जप करना हो तो, सुमेरु तक पहुंच कर अंतिम दाने को पकड़ कर, माला पलटी कर के, माला की उल्टी दिशा में, लेकिन पहले की तरह ही जप करना चाहिए।


माला के उपयोग

सनातन (हिन्दू) धर्म में जप के लिए माला का प्रयोग होता है। क्योंकि किसी भी जप में संख्या का बहुत महत्त्व होता है। निश्चित संख्या में जप करने के लिए माला का प्रयोग करते हैं। माला फेरने से एकाग्रता भी बनी रहती है। वैसे तो माला के अन्य बहुत से प्रयोग हैं, लेकिन मैं यहां जप संबंधी बातें बताना चाहता हूँ। किसी देवी-देवता के मंत्र का जप करने के लिए एक निश्चित संख्या होती है। इन सभी संख्यों का निर्धारण बिना माना के संभव नहीं।

माला में १०८ (+१ सुमेरु) दाने (मनके) होने चाहिए। ५४, २७ या ३० (इत्यादि) मनको की माला से भी जप किया जाता है। साधना विशेष के लिए मनकों की संख्या का विचार है। दो मनकों के बीच डोरी में गांठ होना जरूर है, आमतौर से ढाई गांठ की माला अच्छी होती है। अर्थात् डोरी में मनके पिरोते समय साधक हर मनके के बाद ढाई गांठ लगाए। मनके पिरोते समय अपने इष्टदेव का जप करते रहना चाहिए।

देवता विषेश के लिए माला का चयन करना चाहिए-


  • हाथी दांत की माला गणेशजी की साधना के लिए श्रेष्ठ मानी गई है।
  • लाल चंदन की माला गणेशजी व देवी साधना के लिए उत्तम है।
  • तुलसी की माला से वैष्णव मत की साधना होती है (विष्णु, राम व कृष्ण)।
  • मूंगे की माला से लक्ष्मी जी की आराधना होती है। पुष्टि कर्म के लिए भी मूंगे की माला श्रेष्ठ होती है।
  • मोती की माला वशीकरण के लिए श्रेष्ठ मानी गई है।
  • पुत्र जीवा की माला का प्रयोग संतान प्राप्ति के लिए करते हैं।
  • कमल गट्टे की माला की माला का प्रयोग अभिचार कर्म के लिए होता है।
  • कुश-मूल की माला का प्रयोग पाप-नाश व दोष-मुक्ति के लिये होता है।
  • हल्दी की माला से बगलामुखी की साधना होती है।
  • स्फटिक की माला शान्ति कर्म और ज्ञान प्राप्ति; माँ सरस्वती व भैरवी की आराधना के लिए श्रेष्ठ होती है।
  • चाँदी की माला राजसिक प्रयोजन तथा आपदा से मुक्ति में विशेष प्रभावकरी होती है। 

जप से पूर्व निम्नलिखित मंत्र से माला की वन्दना करनी चाहिए–(साधना या देवता विशेष के लिए अलग-अलग माला-वन्दना होती है)

ॐ मां माले महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिणी।
चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तस्तस्मान्मे सिद्धिदा भव॥
ॐ अविघ्नं कुरु माले त्वं गृह्णामि दक्षिणे करे।
जपकाले च सिद्ध्यर्थं प्रसीद मम सिद्धये॥

विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )