Friday, December 27, 2019

साबर साधना

साबर साधना

दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      

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 साबर साधनाओं में आसन जाप और शारीर कीलन का महत्त्व है ! आप लोगो की सुविधा के लिए आसन जाप की आसान विधि दी जा रही है ! 

किसी भी साधना को करने से पहले इन मंत्रो का प्रयोग अवश्य करें ! यह मंत्र स्वयं सिद्ध है , इन्हें सिद्ध करने की कोई आवश्यकता नहीं है !

आसन बिछाते हुए इस मन्त्र का जाप करे और आसन को नमस्कार करे -
ॐ नमो आदेश श्री गुरूजी को,
अंतर मन्त्र ढाई कंकर
जय शिव शंकर

अब आसन पर बैठ कर आसन जाप पढ़े - 

सत नमो आदेश,गुरूजी को आदेश,
ॐ गुरूजी मन मारू मैदा करू,करू चकनाचूर
पांच महेश्वर आज्ञा करे तो बैठू आसन पूर
श्री नाथ जी गुरूजी को आदेश आदेश आदेश


पूजा के बाद आसन उठाते हुए इस मन्त्र का जाप करे, आसन उठाने का मन्त्र -
ॐ सत नमो आदेश,गुरूजी को आदेश
ॐ गुरूजी, ॐ तरो तरो महेश्वर करणी उतारो पार
संत चले घर अपने मंदिर जय जयकार
श्रीनाथजी गुरूजी को आदेश आदेश आदेश

   

In any type of difficulty

In any type of difficulty

दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      
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“Om pa me ae me hum” " ॐ पा में ऐ में हुम" 

any time when you are in midst of any difficulty just repeat/chant 101 times, this great mantra.
 

श्रीहनुमत्-मन्त्र-चमत्कार-अनुष्ठान

श्रीहनुमत्-मन्त्र-चमत्कार-अनुष्ठान

  दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      
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 १॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, वायु-सुताय, अञ्जनी-गर्भ-सम्भूताय, अखण्ड-ब्रह्मचर्य-व्रत-पालन-तत्पराय, धवली-कृत-जगत्-त्रितयाय, ज्वलदग्नि-सूर्य-कोटि-समप्रभाय, प्रकट-पराक्रमाय, आक्रान्त-दिग्-मण्डलाय, यशोवितानाय, यशोऽलंकृताय, शोभिताननाय, महा-सामर्थ्याय, महा-तेज-पुञ्जः-विराजमानाय, श्रीराम-भक्ति-तत्पराय, श्रीराम-लक्ष्मणानन्द-कारणाय, कवि-सैन्य-प्राकाराय, सुग्रीव-सख्य-कारणाय, सुग्रीव-साहाय्य-कारणाय, ब्रह्मास्त्र-ब्रह्म-शक्ति-ग्रसनाय, लक्ष्मण-शक्ति-भेद-निवारणाय, शल्य-विशल्यौषधि-समानयनाय, बालोदित-भानु-मण्डल-ग्रसनाय, अक्षकुमार-छेदनाय, वन-रक्षाकर-समूह-विभञ्जनाय, द्रोण-पर्वतोत्पाटनाय, स्वामि-वचन-सम्पादितार्जुन, संयुग-संग्रामाय, गम्भीर-शब्दोदयाय, दक्षिणाशा-मार्तण्डाय, मेरु-पर्वत-पीठिकार्चनाय, दावानल-कालाग्नि-रुद्राय, समुद्र-लंघनाय, सीताऽऽश्वासनाय, सीता-रक्षकाय, राक्षसी-संघ-विदारणाय, अशोक-वन-विदारणाय, लंका-पुरी-दहनाय, दश-ग्रीव-शिरः-कृन्त्तकाय, कुम्भकर्णादि-वध-कारणाय, बालि-निर्वहण-कारणाय, मेघनाद-होम-विध्वंसनाय, इन्द्रजित-वध-कारणाय, सर्व-शास्त्र-पारंगताय, सर्व-ग्रह-विनाशकाय, सर्व-ज्वर-हराय, सर्व-भय-निवारणाय, सर्व-कष्ट-निवारणाय, सर्वापत्ति-निवारणाय, सर्व-दुष्टादि-निबर्हणाय, सर्व-शत्रुच्छेदनाय, भूत-प्रेत-पिशाच-डाकिनी-शाकिनी-ध्वंसकाय, सर्व-कार्य-साधकाय, प्राणि-मात्र-रक्षकाय, राम-दूताय-स्वाहा।।

 २॰ ॐ नमो हनुमते, रुद्रावताराय, विश्व-रुपाय, अमित-विक्रमाय, प्रकट-पराक्रमाय, महा-बलाय, सूर्य-कोटि-समप्रभाय, राम-दूताय-स्वाहा।।


(प्रस्तुत विधान के प्रत्येक मन्त्र के ११००० ‘जप‘ एवं दशांश ‘हवन’ से सिद्धि होती है। हनुमान जी के मन्दिर में, ‘रुद्राक्ष’ की माला से, ब्रह्मचर्य-पूर्वक ‘जप करें। नमक न खाए तो उत्तम है। कठिन-से-कठिन कार्य इन मन्त्रों की सिद्धि से सुचारु रुप से होते हैं।)

ब्रह्मचर्य रक्षा मंत्र

ब्रह्मचर्य रक्षा मंत्र

दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      

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यह प्रयोग स्वयं सिद्ध है ! इसे सिद्ध करने की कोई आवश्यकता नहीं है ! फिर भी पर्व काल में एक माला जप ले !
 जिन लोगों की साधना बार बार स्वप्नदोष की वजह से भंग हो जाती है वह इसका इस्तेमाल जरुर करे !
 एक बात का हमेशा ख्याल रखे कि यदि आपका मन पवित्र नहीं है तो किसी भी उपाय से ब्रह्मचर्य की रक्षा नहीं हो सकती !


 || मंत्र |  “सत नमो आदेश ! गुरूजी को आदेश !
 पारा पारा महापारा पारा पहुंचा दशमे द्वारा दशमे द्वारे कौन पहुंचाए ?
 गुरु गोरखनाथ पहुचाये , जो न पहुंचाए तो हनुमान का ब्रहमचर्य खंडित हो जाये ,
 माता अन्जनी की आन चले , गुरु गोरख का वान चले ,
 मेरा ब्रहमचर्य जाये तो हनुमान त्रिया राज्य में रानी मैनाकनी को भोग के आये !
 दादा गुरु मत्स्येन्द्रनाथ आओ जैसे हनुमान का ब्रहमचर्य रखा हमारी भी लाज बचाओ !
 ॐ गुरूजी भग में लिंग , लिंग में पारा जो राखे वही गुरु हमारा !
 काम कामनी की यह आग इसे मिटावे गोरखनाथ
 माया का पर्दा देयो हटा दादा गुरु मत्स्येन्द्रनाथ !
 दुहाई दादा गुरु मत्स्येन्द्रनाथ की ! आदेश गुरु गोरख के !
 नाथ जी गुरूजी को आदेश आदेश आदेश !


 || विधि ||
 

रात को सोते समय इस मंत्र को 21 बार जप करे और लाल लंगोट धारण करे ! लंगोट धारण करते वक़्त भी इस मंत्र का जाप करे !
 भगवान से हमारी यही कामना है कि आपको साधनाओं में सफलता प्रदान करे !

दर्शन हेतु श्री काली मन्त्र

दर्शन हेतु श्री काली मन्त्र


दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      

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 “डण्ड भुज-डण्ड, प्रचण्ड नो खण्ड। प्रगट देवि, तुहि झुण्डन के झुण्ड। खगर दिखा खप्पर लियां, खड़ी कालका। तागड़दे मस्तङ्ग, तिलक मागरदे मस्तङ्ग। चोला जरी का, फागड़ दीफू, गले फुल-माल, जय जय जयन्त। जय आदि-शक्ति। जय कालका खपर-धनी। जय मचकुट छन्दनी देव। जय-जय महिरा, जय मरदिनी। जय-जय चुण्ड-मुण्ड भण्डासुर-खण्डनी, जय रक्त-बीज बिडाल-बिहण्डनी। जय निशुम्भ को दलनी, जय शिव राजेश्वरी। अमृत-यज्ञ धागी-धृट, दृवड़ दृवड़नी। बड़ रवि डर-डरनी ॐ ॐ ॐ।।”

 विधि- 

नवरात्रों में प्रतिपदा से नवमी तक घृत का दीपक प्रज्वलित रखते हुए अगर-बत्ती जलाकर प्रातः-सायं उक्त मन्त्र का ४०-४० जप करे। कम या ज्यादा न करे। जगदम्बा के दर्शन होते हैं।

सभा मोहन

सभा मोहन


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“गंगा किनार की पीली-पीली माटी। चन्दन के रुप में बिके हाटी-हाटी।। तुझे गंगा की कसम, तुझे कामाक्षा की दोहाई। मान ले सत-गुरु की बात, दिखा दे करामात। खींच जादू का कमान, चला दे मोहन बान। मोहे जन-जन के प्राण, तुझे गंगा की आन। ॐ नमः कामाक्षाय अं कं चं टं तं पं यं शं ह्रीं क्रीं श्रीं फट् स्वाहा।।”

 विधिः- 
जिस दिन सभा को मोहित करना हो, उस दिन उषा-काल में नित्य कर्मों से निवृत्त होकर ‘गंगोट’ (गंगा की मिट्टी) का चन्दन गंगाजल में घिस ले और उसे १०८ बार उक्त मन्त्र से अभिमन्त्रित करे। फिर श्री कामाक्षा देवी का ध्यान कर उस चन्दन को ललाट (मस्तक) में लगा कर सभा में जाए, तो सभा के सभी लोग जप-कर्त्ता की बातों पर मुग्ध हो जाएँगे।

शत्रु-विध्वंसिनी-स्तोत्र

शत्रु-विध्वंसिनी-स्तोत्र

    दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      
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विनियोगः- 
ॐ अस्य श्रीशत्रु-विध्वंसिनी-स्तोत्र-मन्त्रस्य ज्वालत्-पावक ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्रीशत्रु-विध्वंसिनी देवता, मम शत्रु-पाद-मुख-बुद्धि-जिह्वा-कीलनार्थ, शत्रु-नाशार्थं, मम स्वामि-वश्यार्थे वा जपे पाठे च विनियोगः।
 ऋष्यादि-न्यासः- शिरसि ज्वालत्-पावक-ऋषये नमः। मुखे अनुष्टुप छन्दसे नमः, हृदि श्रीशत्रु-विध्वंसिनी देवतायै नमः, सर्वाङ्गे मम शत्रु-पाद-मुख-बुद्धि-जिह्वा-कीलनार्थ, शत्रु-नाशार्थं, मम स्वामि-वश्यार्थे वा जपे पाठे च विनियोगाय नमः।।


 कर-न्यासः- 

ॐ ह्रां क्लां अंगुष्ठाभ्यां नमः। ॐ ह्रीं क्लीं तर्जनीभ्यां नमः। ॐ ह्रूं क्लूं मध्यमाभ्यां नमः। ॐ ह्रैं क्लैं अनामिकाभ्यां नमः। ॐ ह्रौं क्लौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः। ॐ ह्रः क्लः करतल-करपृष्ठाभ्यां नमः।

 हृदयादि-न्यासः- 

ॐ ह्रां क्लां हृदयाय नमः। ॐ ह्रीं क्लीं शिरसे स्वाहा। ॐ ह्रूं क्लूं शिखायै वषट्। ॐ ह्रैं क्लैं कवचाय हुम्। ॐ ह्रौं क्लौं नेत्र-त्रयाय वौषट्। ॐ ह्रः क्लः अस्त्राय फट्।

 ध्यानः-  रक्तागीं शव-वाहिनीं त्रि-शिरसीं रौद्रां महा-भैरवीम्,
 धूम्राक्षीं भय-नाशिनीं घन-निभां नीलालकाऽलंकृताम्।
 खड्ग-शूल-धरीं महा-भय-रिपुध्वंशीं कृशांगीं महा-
 दीर्घागीं त्रि-जटीं महाऽनिल-निभां ध्यायेत् पिनाकीं शिवाम्।।


 मन्त्रः-

 “ॐ ह्रीं क्लीं पुण्य-वती-महा-माये सर्व-दुष्ट-वैरि-कुलं निर्दलय क्रोध-मुखि, महा-भयास्मि, स्तम्भं कुरु विक्रौं स्वाहा।।” (३००० जप)


 मूल स्तोत्रः-  
खड्ग-शूल-धरां अम्बां, महा-विध्वंसिनीं रिपून्।
 कृशांगींच महा-दीर्घां, त्रिशिरां महोरगाम्।।
 स्तम्भनं कुरु कल्याणि, रिपु विक्रोशितं कुरु।
 ॐ स्वामि-वश्यकरी देवी, प्रीति-वृद्धिकरी मम।।
 शत्रु-विध्वंसिनी देवी, त्रिशिरा रक्त-लोचनी।
 अग्नि-ज्वाला रक्त-मुखी, घोर-दंष्ट्री त्रिशूलिनी।।
 दिगम्बरी रक्त-केशी, रक्त पाणि महोदरी।
 यो नरो निष्कृतं घोरं, शीघ्रमुच्चाटयेद् रिपुम्।।


 ।।फल-श्रुति।। 
इमं स्तवं जपेन्नित्यं, विजयं शत्रु-नाशनम्।
 सहस्त्र-त्रिशतं कुर्यात्। कार्य-सिद्धिर्न संशयः।।
 जपाद् दशांशं होमं तु, कार्यं सर्षप-तण्डुलैः।
 पञ्च-खाद्यै घृतं चैव, नात्र कार्या विचारणा।।
 ।।श्रीशिवार्णवे शिव-गौरी-सम्वादे विभीषणस्य रघुनाथ-प्रोक्तं शत्रु-विध्वंसनी-स्तोत्रम्।।


 विशेषः-  

यह स्तोत्र अत्यन्त उग्र है। इसके विषय में निम्नलिखित तथ्यों पर ध्यान अवश्य देना चाहिए-
 (क) प्रथम और अन्तिम आवृति में नामों के साथ फल-श्रुति मात्र पढ़ें। पाठ नहीं होगा।
 (ग) घर में पाठ कदापि न किया जाए, केवल शिवालय, नदी-तट, एकान्त, निर्जन-वन, श्मशान अथवा किसी मन्दिर के एकान्त में ही करें।
 (घ) पुरश्चरण की आवश्यकता नहीं है। सीधे ‘प्रयोग’ करें। प्रत्येक ‘प्रयोग’ में तीन हजार आवृत्तियाँ करनी होगी।

नव-नाथ-स्मरण

नव-नाथ-स्मरण


दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      

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“आदि-नाथ ओ स्वरुप, उदय-नाथ उमा-महि-रुप। जल-रुपी ब्रह्मा सत-नाथ, रवि-रुप विष्णु सन्तोष-नाथ। हस्ती-रुप गनेश भतीजै, ताकु कन्थड-नाथ कही जै। माया-रुपी मछिन्दर-नाथ, चन्द-रुप चौरङ्गी-नाथ। शेष-रुप अचम्भे-नाथ, वायु-रुपी गुरु गोरख-नाथ। घट-घट-व्यापक घट का राव, अमी महा-रस स्त्रवती खाव। ॐ नमो नव-नाथ-गण, चौरासी गोमेश। आदि-नाथ आदि-पुरुष, शिव गोरख आदेश। ॐ श्री नव-नाथाय नमः।।”

 विधिः- 

उक्त स्मरण का पाठ प्रतिदिन करे। इससे पापों का क्षय होता है, मोक्ष की प्राप्ति होती है। सुख-सम्पत्ति-वैभव से साधक परिपूर्ण हो जाता है। २१ दिनों तक २१ पाठ करने से इसकी सिद्धि होती है।

नवनाथ-स्तुति

नवनाथ-स्तुति


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“आदि-नाथ कैलाश-निवासी, उदय-नाथ काटै जम-फाँसी। सत्य-नाथ सारनी सन्त भाखै, सन्तोष-नाथ सदा सन्तन की राखै। कन्थडी-नाथ सदा सुख-दाई, अञ्चति अचम्भे-नाथ सहाई। ज्ञान-पारखी सिद्ध चौरङ्गी, मत्स्येन्द्र-नाथ दादा बहुरङ्गी। गोरख-नाथ सकल घट-व्यापी, काटै कलि-मल, तारै भव-पीरा। नव-नाथों के नाम सुमिरिए, तनिक भस्मी ले मस्तक धरिए। रोग-शोक-दारिद नशावै, निर्मल देह परम सुख पावै। भूत-प्रेत-भय-भञ्जना, नव-नाथों का नाम। सेवक सुमरे चन्द्र-नाथ, पूर्ण होंय सब काम।।”

 विधिः- 

प्रतिदिन नव-नाथों का पूजन कर उक्त स्तुति का २१ बार पाठ कर मस्तक पर भस्म लगाए। इससे नवनाथों की कृपा मिलती है। साथ ही सब प्रकार के भय-पीड़ा, रोग-दोष, भूत-प्रेत-बाधा दूर होकर मनोकामना, सुख-सम्पत्ति आदि अभीष्ट कार्य सिद्ध होते हैं। २१ दिनों तक, २१ बार पाठ करने से सिद्धि होती है।

  

नवनाथ-शाबर-मन्त्र

नवनाथ-शाबर-मन्त्र


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“ॐ नमो आदेश गुरु की। ॐकारे आदि-नाथ, उदय-नाथ पार्वती। सत्य-नाथ ब्रह्मा। सन्तोष-नाथ विष्णुः, अचल अचम्भे-नाथ। गज-बेली गज-कन्थडि-नाथ, ज्ञान-पारखी चौरङ्गी-नाथ। माया-रुपी मच्छेन्द्र-नाथ, जति-गुरु है गोरख-नाथ। घट-घट पिण्डे व्यापी, नाथ सदा रहें सहाई। नवनाथ चौरासी सिद्धों की दुहाई। ॐ नमो आदेश गुरु की।।”
 

विधिः- 
पूर्णमासी से जप प्रारम्भ करे। जप के पूर्व चावल की नौ ढेरियाँ बनाकर उन पर ९ सुपारियाँ मौली बाँधकर नवनाथों के प्रतीक-रुप में रखकर उनका षोडशोपचार-पूजन करे। तब गुरु, गणेश और इष्ट का स्मरण कर आह्वान करे। फिर मन्त्र-जप करे। प्रतिदिन नियत समय और निश्चित संख्या में जप करे। ब्रह्मचर्य से रहे, अन्य के हाथों का भोजन या अन्य खाद्य-वस्तुएँ ग्रहण न करे। स्वपाकी रहे। इस साधना से नवनाथों की कृपा से साधक धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष को प्राप्त करने में समर्थ हो जाता है। उनकी कृपा से ऐहिक और पारलौकिक-सभी कार्य सिद्ध होते हैं।

 विशेषः-

’शाबर-पद्धति’ से इस मन्त्र को यदि ‘उज्जैन’ की ‘भर्तृहरि-गुफा’ में बैठकर ९ हजार या ९ लाख की संख्या में जप लें, तो परम-सिद्धि मिलती है और नौ-नाथ प्रत्यक्ष दर्शन देकर अभीष्ट वरदान देते हैं।

सर्व-कामना-सिद्धि स्तोत्र

सर्व-कामना-सिद्धि स्तोत्र


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 श्री हिरण्य-मयी हस्ति-वाहिनी, सम्पत्ति-शक्ति-दायिनी।
 मोक्ष-मुक्ति-प्रदायिनी, सद्-बुद्धि-शक्ति-दात्रिणी।।१
 सन्तति-सम्वृद्धि-दायिनी, शुभ-शिष्य-वृन्द-प्रदायिनी।
 नव-रत्ना नारायणी, भगवती भद्र-कारिणी।।२
 धर्म-न्याय-नीतिदा, विद्या-कला-कौशल्यदा।
 प्रेम-भक्ति-वर-सेवा-प्रदा, राज-द्वार-यश-विजयदा।।३
 धन-द्रव्य-अन्न-वस्त्रदा, प्रकृति पद्मा कीर्तिदा।
 सुख-भोग-वैभव-शान्तिदा, साहित्य-सौरभ-दायिका।।४
 वंश-वेलि-वृद्धिका, कुल-कुटुम्ब-पौरुष-प्रचारिका।
 स्व-ज्ञाति-प्रतिष्ठा-प्रसारिका, स्व-जाति-प्रसिद्धि-प्राप्तिका।।५
 भव्य-भाग्योदय-कारिका, रम्य-देशोदय-उद्भाषिका।
 सर्व-कार्य-सिद्धि-कारिका, भूत-प्रेत-बाधा-नाशिका।
 अनाथ-अधमोद्धारिका, पतित-पावन-कारिका।
 मन-वाञ्छित॒फल-दायिका, सर्व-नर-नारी-मोहनेच्छा-पूर्णिका।।७
 साधन-ज्ञान-संरक्षिका, मुमुक्षु-भाव-समर्थिका।
 जिज्ञासु-जन-ज्योतिर्धरा, सुपात्र-मान-सम्वर्द्धिका।।८
 अक्षर-ज्ञान-सङ्गतिका, स्वात्म-ज्ञान-सन्तुष्टिका।
 पुरुषार्थ-प्रताप-अर्पिता, पराक्रम-प्रभाव-समर्पिता।।९
 स्वावलम्बन-वृत्ति-वृद्धिका, स्वाश्रय-प्रवृत्ति-पुष्टिका।
 प्रति-स्पर्द्धी-शत्रु-नाशिका, सर्व-ऐक्य-मार्ग-प्रकाशिका।।१०
 जाज्वल्य-जीवन-ज्योतिदा, षड्-रिपु-दल-संहारिका।
 भव-सिन्धु-भय-विदारिका, संसार-नाव-सुकानिका।।११
 चौर-नाम-स्थान-दर्शिका, रोग-औषधी-प्रदर्शिका।
 इच्छित-वस्तु-प्राप्तिका, उर-अभिलाषा-पूर्णिका।।१२
 श्री देवी मङ्गला, गुरु-देव-शाप-निर्मूलिका।
 आद्य-शक्ति इन्दिरा, ऋद्धि-सिद्धिदा रमा।।१३
 सिन्धु-सुता विष्णु-प्रिया, पूर्व-जन्म-पाप-विमोचना।
 दुःख-सैन्य-विघ्न-विमोचना, नव-ग्रह-दोष-निवारणा।।१४


 ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं श्रीसर्व-कामना-सिद्धि महा-यन्त्र-देवता-स्वरुपिणी श्रीमहा-माया महा-देवी महा-शक्ति महालक्ष्म्ये नमो नमः।
 ॐ ह्रीं श्रीपर-ब्रह्म परमेश्वरी। भाग्य-विधाता भाग्योदय-कर्त्ता भाग्य-लेखा भगवती भाग्येश्वरी ॐ ह्रीं।
 कुतूहल-दर्शक, पूर्व-जन्म-दर्शक, भूत-वर्तमान-भविष्य-दर्शक, पुनर्जन्म-दर्शक, त्रिकाल-ज्ञान-प्रदर्शक, दैवी-ज्योतिष-महा-विद्या-भाषिणी त्रिपुरेश्वरी। अद्भुत, अपुर्व, अलौकिक, अनुपम, अद्वितीय, सामुद्रिक-विज्ञान-रहस्य-रागिनी, श्री-सिद्धि-दायिनी। सर्वोपरि सर्व-कौतुकानि दर्शय-दर्शय, हृदयेच्छित सर्व-इच्छा पूरय-पूरय ॐ स्वाहा।
 ॐ नमो नारायणी नव-दुर्गेश्वरी। कमला, कमल-शायिनी, कर्ण-स्वर-दायिनी, कर्णेश्वरी, अगम्य-अदृश्य-अगोचर-अकल्प्य-अमोघ-अधारे, सत्य-वादिनी, आकर्षण-मुखी, अवनी-आकर्षिणी, मोहन-मुखी, महि-मोहिनी, वश्य-मुखी, विश्व-वशीकरणी, राज-मुखी, जग-जादूगरणी, सर्व-नर-नारी-मोहन-वश्य-कारिणी, मम करणे अवतर अवतर, नग्न-सत्य कथय-कथय।
 अतीत अनाम वर्तनम्। मातृ मम नयने दर्शन। ॐ नमो श्रीकर्णेश्वरी देवी सुरा शक्ति-दायिनी। मम सर्वेप्सित-सर्व-कार्य-सिद्धि कुरु-कुरु स्वाहा। ॐ श्रीं ऐं ह्रीं क्लीं श्रीमहा-माया महा-शक्ति महा-लक्ष्मी महा-देव्यै विच्चे-विच्चे श्रीमहा-देवी महा-लक्ष्मी महा-माया महा-शक्त्यै क्लीं ह्रीं ऐं श्रीं ॐ।
 ॐ श्रीपारिजात-पुष्प-गुच्छ-धरिण्यै नमः। ॐ श्री ऐरावत-हस्ति-वाहिन्यै नमः। ॐ श्री कल्प-वृक्ष-फल-भक्षिण्यै नमः। ॐ श्री काम-दुर्गा पयः-पान-कारिण्यै नमः। ॐ श्री नन्दन-वन-विलासिन्यै नमः। ॐ श्री सुर-गंगा-जल-विहारिण्यै नमः। ॐ श्री मन्दार-सुमन-हार-शोभिन्यै नमः। ॐ श्री देवराज-हंस-लालिन्यै नमः। ॐ श्री अष्ट-दल-कमल-यन्त्र-रुपिण्यै नमः। ॐ श्री वसन्त-विहारिण्यै नमः। ॐ श्री सुमन-सरोज-निवासिन्यै नमः। ॐ श्री कुसुम-कुञ्ज-भोगिन्यै नमः। ॐ श्री पुष्प-पुञ्ज-वासिन्यै नमः। ॐ श्री रति-रुप-गर्व-गञ्हनायै नमः। ॐ श्री त्रिलोक-पालिन्यै नमः। ॐ श्री स्वर्ग-मृत्यु-पाताल-भूमि-राज-कर्त्र्यै नमः।
 श्री लक्ष्मी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीशक्ति-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीदेवी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्री रसेश्वरी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्री ऋद्धि-यन्त्रेभ्यो नमः। श्री सिद्धि-यन्त्रेभ्यो नमः। श्री कीर्तिदा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीप्रीतिदा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीइन्दिरा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्री कमला-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीहिरण्य-वर्णा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीरत्न-गर्भा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीसुवर्ण-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीसुप्रभा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपङ्कनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीराधिका-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपद्म-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीरमा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीलज्जा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीजया-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपोषिणी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीसरोजिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीहस्तिवाहिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीगरुड़-वाहिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीसिंहासन-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीकमलासन-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीरुष्टिणी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपुष्टिणी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीतुष्टिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीवृद्धिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपालिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीतोषिणी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीरक्षिणी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीवैष्णवी-यन्त्रेभ्यो नमः।
 श्रीमानवेष्टाभ्यो नमः। श्रीसुरेष्टाभ्यो नमः। श्रीकुबेराष्टाभ्यो नमः। श्रीत्रिलोकीष्टाभ्यो नमः। श्रीमोक्ष-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीभुक्ति-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीकल्याण-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीनवार्ण-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीअक्षस्थान-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीसुर-स्थान-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीप्रज्ञावती-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपद्मावती-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीशंख-चक्र-गदा-पद्म-धरा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीमहा-लक्ष्मी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीलक्ष्मी-नारायण-यन्त्रेभ्यो नमः। ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं श्रीमहा-माया-महा-देवी-महा-शक्ति-महा-लक्ष्मी-स्वरुपा-श्रीसर्व-कामना-सिद्धि महा-यन्त्र-देवताभ्यो नमः।
 ॐ विष्णु-पत्नीं, क्षमा-देवीं, माध्वीं च माधव-प्रिया। लक्ष्मी-प्रिय-सखीं देवीं, नमाम्यच्युत-वल्लभाम्। ॐ महा-लक्ष्मी च विद्महे विष्णु-पत्नि च धीमहि, तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्। मम सर्व-कार्य-सिद्धिं कुरु-कुरु स्वाहा।



 विधिः- 


 १॰ उक्त सर्व-कामना-सिद्धी स्तोत्र का नित्य पाठ करने से सभी प्रकार की कामनाएँ पूर्ण होती है।
 २॰ इस स्तोत्र से ‘यन्त्र-पूजा भी होती हैः-
 ‘सर्वतोभद्र-यन्त्र’ तथा ‘सर्वारिष्ट-निवारक-यन्त्र’ में से किसी भी यन्त्र पर हो सकती है। ‘श्रीहिरण्यमयी’ से लेकर ‘नव-ग्रह-दोष-निवारण’- १४ श्लोक से इष्ट का आवाहन और स्तुति है। बाद में “ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं” सर्व कामना से पुष्प समर्पित कर धऽयान करे और यह भावना रखे कि- ‘मम सर्वेप्सितं सर्व-कार्य-सिद्धिं कुरु कुरु स्वाहा।’
 फिर अनुलोम-विलोम क्रम से मन्त्र का जप करे-”ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीमहा-माया-महा-शक्त्यै क्लीं ह्रीं ऐं श्रीं ॐ।”
 स्वेच्छानुसार जप करे। बाद में “ॐ श्रीपारिजात-पुष्प-गुच्छ-धरिण्यै नमः” आदि १६ मन्त्रों से यन्त्र में, यदि षोडश-पत्र हो, तो उनके ऊपर, अन्यथा यन्त्र में पूर्वादि-क्रम से पुष्पाञ्जलि प्रदान करे। तदनन्तर ‘श्रीलक्ष्मी-तम्त्रेभ्यो नमः’ और ‘श्री सर्व-कामना-सिद्धि-महा-यन्त्र-देवताभ्यो नमः’ से अष्टगन्ध या जो सामग्री मिले, उससे ‘यन्त्र’ में पूजा करे। अन्त में ‘लक्ष्मी-गायत्री’ पढ़ कर पुष्पाजलि देकर विसर्जन करे।

श्री गणेश मन्त्र देपालसर (चूरु) गणेशजी

श्री गणेश मन्त्र  देपालसर (चूरु) गणेशजी


दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      

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“ॐ नमो सिद्ध-विनायकाय सर्व-कार्य-कर्त्रे सर्व-विघ्न-प्रशमनाय सर्व-राज्य-वश्य-करणाय सर्व-जन-सर्व-स्त्री-पुरुष-आकर्षणाय श्रीं ॐ स्वाहा।”

 विधि- 

नित्य-कर्म से निवृत्त होकर उक्त मन्त्र का निश्चित संख्या में नित्य १ से १० माला ‘जप’ करे। बाद में जब घर से निकले, तब अपने अभीष्ट कार्य का चिन्तन करे। इससे अभीष्ट कार्व सुगमता से पूरे हो जाते हैं।

कार्य-सिद्धि हेतु गणेश शाबर मन्त्र

कार्य-सिद्धि हेतु गणेश शाबर मन्त्र

दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      

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“ॐ गनपत वीर, भूखे मसान, जो फल माँगूँ, सो फल आन। गनपत देखे, गनपत के छत्र से बादशाह डरे। राजा के मुख से प्रजा डरे, हाथा चढ़े सिन्दूर। औलिया गौरी का पूत गनेश, गुग्गुल की धरुँ ढेरी, रिद्धि-सिद्धि गनपत धनेरी। जय गिरनार-पति। ॐ नमो स्वाहा।”
 
विधि-  
सामग्रीः- धूप या गुग्गुल, दीपक, घी, सिन्दूर, बेसन का लड्डू। 
दिनः- बुधवार, गुरुवार या शनिवार। निर्दिष्ट वारों में यदि ग्रहण, पर्व, पुष्य नक्षत्र, सर्वार्थ-सिद्धि योग हो तो उत्तम। 
समयः- रात्रि १० बजे। जप संख्या-१२५। 
अवधिः- ४० दिन।

 किसी एकान्त स्थान में या देवालय में, जहाँ लोगों का आवागमन कम हो, भगवान् गणेश की षोडशोपचार से पूजा करे। घी का दीपक जलाकर, अपने सामने, एक फुट की ऊँचाई पर रखे। सिन्दूर और लड्डू के प्रसाद का भोग लगाए और प्रतिदिन १२५ बार उक्त मन्त्र का जप करें। प्रतिदिन के प्रसाद को बच्चों में बाँट दे। चालीसवें दिन सवा सेर लड्डू के प्रसाद का भोग लगाए और मन्त्र का जप समाप्त होने पर तीन बालकों को भोजन कराकर उन्हें कुछ द्रव्य-दक्षिणा में दे। सिन्दूर को एक डिब्बी में सुरक्षित रखे। एक सप्ताह तक इस सिन्दूर को न छूए। उसके बाद जब कभी कोई कार्य या समस्या आ पड़े, तो सिन्दूर को सात बार उक्त मन्त्र से अभिमन्त्रित कर अपने माथे पर टीका लगाए। कार्य सफल होगा।

शत्रु-नाशक प्रयोग-श्रीकृष्ण कीलक

शत्रु-नाशक प्रयोग-श्रीकृष्ण कीलक


दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      
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 श्रीकृष्ण कीलक

 ॐ गोपिका-वृन्द-मध्यस्थं, रास-क्रीडा-स-मण्डलम्।
 क्लम प्रसति केशालिं, भजेऽम्बुज-रूचि हरिम्।।
 विद्रावय महा-शत्रून्, जल-स्थल-गतान् प्रभो !
 ममाभीष्ट-वरं देहि, श्रीमत्-कमल-लोचन !।।
 भवाम्बुधेः पाहि पाहि, प्राण-नाथ, कृपा-कर !
 हर त्वं सर्व-पापानि, वांछा-कल्प-तरोर्मम।।
 जले रक्ष स्थले रक्ष, रक्ष मां भव-सागरात्।
 कूष्माण्डान् भूत-गणान्, चूर्णय त्वं महा-भयम्।।
 शंख-स्वनेन शत्रूणां, हृदयानि विकम्पय।
 देहि देहि महा-भूति, सर्व-सम्पत्-करं परम्।।
 वंशी-मोहन-मायेश, गोपी-चित्त-प्रसादक !
 ज्वरं दाहं मनो दाहं, बन्ध बन्धनजं भयम्।।
 निष्पीडय सद्यः सदा, गदा-धर गदाऽग्रजः !
 इति श्रीगोपिका-कान्तं, कीलकं परि-कीर्तितम्।
 यः पठेत् निशि वा पंच, मनोऽभिलषितं भवेत्।
 सकृत् वा पंचवारं वा, यः पठेत् तु चतुष्पथे।।
 शत्रवः तस्य विच्छिनाः, स्थान-भ्रष्टा पलायिनः।
 दरिद्रा भिक्षुरूपेण, क्लिश्यन्ते नात्र संशयः।।
 ॐ क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय गोपी-जन-वल्लभाय स्वाहा।।
 
विशेष – 
एक बार माता पार्वती कृष्ण बनी तथा श्री शिवजी माँ राधा बने। उन्हीं पार्वती रूप कृष्ण की उपासना हेतु उक्त ‘कृष्ण-कीलक’ की रचना हुई।

 यदि रात्रि में घर पर इसके 5 पाठ करें, तो मनोकामना पूरी होगी। दुष्ट लोग यदि दुःख देते हों, तो सूर्यास्त के बाद चैराहे पर एक या पाँच पाठ करे, तो शत्रु विच्छिन होकर दरिद्रता एवं व्याधि से पीड़ित होकर भाग जायेगें।

आकर्षण-मन्त्र(Attraction-mantra)

आकर्षण-मन्त्र(Attraction-mantra)

  दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      
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सर्व-जन-आकर्षण-मन्त्र

 १॰ “ॐ नमो आदि-रुपाय अमुकस्य आकर्षणं कुरु कुरु स्वाहा।”
 

विधि- 
१ लाख जप से उक्त मन्त्र सिद्ध होता है। ‘अमुकस्य’ के स्थान पर साध्य या साध्या का नाम जोड़े। “आकर्षण’” का अर्थ विशाल दृष्टि से लिया जाना चाहिए। सूझ-बूझ से उक्त मन्त्र का उपयोग करना चाहिए। मान्त्र-सिद्धि के बाद प्रयोग करना चाहिए। प्रयोग के समय अनामिका उँगली के रक्त से भोज-पत्र के ऊपर पूरा मन्त्र लिखना चाहिए। जिसका आकर्षण करना हो, उस व्यक्ति का नाम मन्त्र में जोड़ कर लिखें। फिर उस भोज-पत्र को शहद में डाले। बाद में भी मन्त्र का जप करते रहना चाहिए। कुछ ही दिनों में साध्य वशीभूत होगा।

 २॰ “ॐ हुँ ॐ हुँ ह्रीं।”
 ३॰ “ॐ ह्रों ह्रीं ह्रां नमः।”
 ४॰ “ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं इँ नमः।”


 विधि- 

उक्त मन्त्र में से किसी भी एक मन्त्र का जप करें। प्रतिदिन १० हजार जप करने से १५ दिनों में साधक की आकर्षण-शक्ति बढ़ जाती है। ‘जप’ के साध्य का ध्यान करना चाहिए।

अक्षय-धन-प्राप्ति मन्त्र

अक्षय-धन-प्राप्ति मन्त्र

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प्रार्थना
हे मां लक्ष्मी, शरण हम तुम्हारी।
पूरण करो अब माता कामना हमारी।।
धन की अधिष्ठात्री, जीवन-सुख-दात्री।
सुनो-सुनो अम्बे सत्-गुरु की पुकार।
शम्भु की पुकार, मां कामाक्षा की पुकार।।
तुम्हें विष्णु की आन, अब मत करो मान।
आशा लगाकर अम देते हैं दीप-दान।।

मन्त्र- 

“ॐ नमः विष्णु-प्रियायै, ॐ नमः कामाक्षायै। ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्रीं क्रीं क्रीं श्रीं श्रीं श्रीं फट् स्वाहा।”

विधि- 

‘दीपावली’ की सन्ध्या को पाँच मिट्टी के दीपकों में गाय का घी डालकर रुई की बत्ती जलाए। ‘लक्ष्मी जी’ को दीप-दान करें और ‘मां कामाक्षा’ का ध्यान कर उक्त प्रार्थना करे। मन्त्र का १०८ बार जप करे। ‘दीपक’ सारी रात जलाए रखे और स्वयं भी जागता रहे। नींद आने लगे, तो मन्त्र का जप करे। प्रातःकाल दीपों के बुझ जाने के बाद उन्हें नए वस्त्र में बाँधकर ‘तिजोरी’ या ‘बक्से’ में रखे। इससे श्रीलक्ष्मीजी का उसमें वास हो जाएगा और धन-प्राप्ति होगी। प्रतिदिन सन्ध्या समय दीप जलाए और पाँच बार उक्त मन्त्र का जप करे।

सर्व-कार्य-सिद्धि जञ्जीरा मन्त्र sarv karya janjira mantra sadhana

सर्व-कार्य-सिद्धि जञ्जीरा मन्त्र sarv karya janjira mantra sadhana 


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सर्व-कार्य-सिद्धि जञ्जीरा मन्त्र

“या उस्ताद बैठो पास, काम आवै रास। ला इलाही लिल्ला हजरत वीर कौशल्या वीर, आज मज रे जालिम शुभ करम दिन करै जञ्जीर। जञ्जीर से कौन-कौन चले? बावन वीर चलें, छप्पन कलवा चलें। चौंसठ योगिनी चलें, नब्बे नारसिंह चलें। देव चलें, दानव चलें। पाँचों त्रिशेम चलें, लांगुरिया सलार चलें। भीम की गदा चले, हनुमान की हाँक चले। नाहर की धाक चलै, नहीं चलै, तो हजरत सुलेमान के तखत की दुहाई है। एक लाख अस्सी हजार पीर व पैगम्बरों की दुहाई है। चलो मन्त्र, ईश्वर वाचा। गुरु का शब्द साँचा।”

विधि- 
उक्त मन्त्र का जप शुक्ल-पक्ष के सोमवार या मङ्गलवार से प्रारम्भ करे। कम-से-कम ५ बार नित्य करे। अथवा २१, ४१ या १०८ बार नित्य जप करे। ऐसा ४० दिन तक करे। ४० दिन के अनुष्ठान में मांस-मछली का प्रयोग न करे। जब ‘ग्रहण’ आए, तब मन्त्र का जप करे।
यह मन्त्र सभी कार्यों में काम आता है। भूत-प्रेत-बाधा हो अथवा शारीरिक-मानसिक कष्ट हो, तो उक्त मन्त्र ३ बार पढ़कर रोगी को पिलाए। मुकदमे में, यात्रा में-सभी कार्यों में इसके द्वारा सफलता मिलती है।

Saturday, November 16, 2019

राम रक्षा स्त्रोत

राम रक्षा स्त्रोत

दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      
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॥ श्रीरामरक्षास्तोत्रम्‌ ॥
श्रीगणेशायनम: ।
अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य ।
बुधकौशिक ऋषि: ।
श्रीसीतारामचंद्रोदेवता ।
अनुष्टुप्‌ छन्द: । सीता शक्ति: ।
श्रीमद्‌हनुमान्‌ कीलकम्‌ ।
श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ॥

अर्थ: — इस राम रक्षा स्तोत्र मंत्र के रचयिता बुध कौशिक ऋषि हैं, सीता और रामचंद्र देवता हैं, अनुष्टुप छंद हैं, सीता शक्ति हैं, हनुमान जी कीलक है तथा श्री रामचंद्र जी की प्रसन्नता के लिए राम रक्षा स्तोत्र के जप में विनियोग किया जाता हैं |

॥ अथ ध्यानम्‌ ॥
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्दद्पद्‌मासनस्थं ।
पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्‌ ॥
वामाङ्‌कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं ।
नानालङ्‌कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम्‌ ॥

ध्यान धरिए — जो धनुष-बाण धारण किए हुए हैं,बद्द पद्मासन की मुद्रा में विराजमान हैं और पीतांबर पहने हुए हैं, जिनके आलोकित नेत्र नए कमल दल के समान स्पर्धा करते हैं, जो बाएँ ओर स्थित सीताजी के मुख कमल से मिले हुए हैं- उन आजानु बाहु, मेघश्याम,विभिन्न अलंकारों से विभूषित तथा जटाधारी श्रीराम का ध्यान करें |
॥ इति ध्यानम्‌ ॥

चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्‌ ।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्‌ ॥१॥

श्री रघुनाथजी का चरित्र सौ करोड़ विस्तार वाला हैं | उसका एक-एक अक्षर महापातकों को नष्ट करने वाला है |

ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्‌ ।
जानकीलक्ष्मणॊपेतं जटामुकुटमण्डितम्‌ ॥२॥

नीले कमल के श्याम वर्ण वाले, कमलनेत्र वाले , जटाओं के मुकुट से सुशोभित, जानकी तथा लक्ष्मण सहित ऐसे भगवान् श्री राम का स्मरण करके,
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम्‌ ।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम्‌ ॥३॥

जो अजन्मा एवं सर्वव्यापक, हाथों में खड्ग, तुणीर, धनुष-बाण धारण किए राक्षसों के संहार तथा अपनी लीलाओं से जगत रक्षा हेतु अवतीर्ण श्रीराम का स्मरण करके,

रामरक्षां पठॆत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम्‌ ।
शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ॥४॥

मैं सर्वकामप्रद और पापों को नष्ट करने वाले राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करता हूँ | राघव मेरे सिर की और दशरथ के पुत्र मेरे ललाट की रक्षा करें |

कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती ।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥५॥

कौशल्या नंदन मेरे नेत्रों की, विश्वामित्र के प्रिय मेरे कानों की, यज्ञरक्षक मेरे घ्राण की और सुमित्रा के वत्सल मेरे मुख की रक्षा करें |

जिव्हां विद्दानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित: ।
स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥६॥

मेरी जिह्वा की विधानिधि रक्षा करें, कंठ की भरत-वंदित, कंधों की दिव्यायुध और भुजाओं की महादेवजी का धनुष तोड़ने वाले भगवान् श्रीराम रक्षा करें |

करौ सीतपति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित्‌ ।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥७॥

मेरे हाथों की सीता पति श्रीराम रक्षा करें, हृदय की जमदग्नि ऋषि के पुत्र (परशुराम) को जीतने वाले, मध्य भाग की खर (नाम के राक्षस) के वधकर्ता और नाभि की जांबवान के आश्रयदाता रक्षा करें |

सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु: ।
ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत्‌ ॥८॥

मेरे कमर की सुग्रीव के स्वामी, हडियों की हनुमान के प्रभु और रानों की राक्षस कुल का विनाश करने वाले रघुश्रेष्ठ रक्षा करें |

जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्‌घे दशमुखान्तक: ।
पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामोSखिलं वपु: ॥९॥

मेरे जानुओं की सेतुकृत, जंघाओं की दशानन वधकर्ता, चरणों की विभीषण को ऐश्वर्य प्रदान करने वाले और सम्पूर्ण शरीर की श्रीराम रक्षा करें |

एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठॆत्‌ ।
स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत्‌ ॥१०॥

शुभ कार्य करने वाला जो भक्त भक्ति एवं श्रद्धा के साथ रामबल से संयुक्त होकर इस स्तोत्र का पाठ करता हैं, वह दीर्घायु, सुखी, पुत्रवान, विजयी और विनयशील हो जाता हैं |

पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्‌मचारिण: ।
न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥११॥

जो जीव पाताल, पृथ्वी और आकाश में विचरते रहते हैं अथवा छद्दम वेश में घूमते रहते हैं , वे राम नामों से सुरक्षित मनुष्य को देख भी नहीं पाते |
रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन्‌ ।

नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१२॥
राम, रामभद्र तथा रामचंद्र आदि नामों का स्मरण करने वाला रामभक्त पापों से लिप्त नहीं होता. इतना ही नहीं, वह अवश्य ही भोग और मोक्ष दोनों को प्राप्त करता है |

जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम्‌ ।
य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्द्दय: ॥१३॥

जो संसार पर विजय करने वाले मंत्र राम-नाम से सुरक्षित इस स्तोत्र को कंठस्थ कर लेता हैं, उसे सम्पूर्ण सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं |

वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्‌ ।
अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम्‌ ॥१४॥

जो मनुष्य वज्रपंजर नामक इस राम कवच का स्मरण करता हैं, उसकी आज्ञा का कहीं भी उल्लंघन नहीं होता तथा उसे सदैव विजय और मंगल की ही प्राप्ति होती हैं |

आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर: ।
तथा लिखितवान्‌ प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥१५॥

भगवान् शंकर ने स्वप्न में इस रामरक्षा स्तोत्र का आदेश बुध कौशिक ऋषि को दिया था, उन्होंने प्रातः काल जागने पर उसे वैसा ही लिख दिया |

आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम्‌ ।
अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान्‌ स न: प्रभु: ॥१६॥

जो कल्प वृक्षों के बगीचे के समान विश्राम देने वाले हैं, जो समस्त विपत्तियों को दूर करने वाले हैं (विराम माने थमा देना, किसको थमा देना/दूर कर देना ? सकलापदाम = सकल आपदा = सारी विपत्तियों को) और जो तीनो लोकों में सुंदर (अभिराम + स्+ त्रिलोकानाम) हैं, वही श्रीमान राम हमारे प्रभु हैं |

तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥

जो युवा,सुन्दर, सुकुमार,महाबली और कमल (पुण्डरीक) के समान विशाल नेत्रों वाले हैं, मुनियों की तरह वस्त्र एवं काले मृग का चर्म धारण करते हैं |

फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥

जो फल और कंद का आहार ग्रहण करते हैं, जो संयमी , तपस्वी एवं ब्रह्रमचारी हैं , वे दशरथ के पुत्र राम और लक्ष्मण दोनों भाई हमारी रक्षा करें |

शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्‌ ।
रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ ॥१९॥

ऐसे महाबली – रघुश्रेष्ठ मर्यादा पुरूषोतम समस्त प्राणियों के शरणदाता, सभी धनुर्धारियों में श्रेष्ठ और राक्षसों के कुलों का समूल नाश करने में समर्थ हमारा त्राण करें |

आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्‌ग सङि‌गनौ ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणा वग्रत: पथि सदैव गच्छताम्‌ ॥२०॥

संघान किए धनुष धारण किए, बाण का स्पर्श कर रहे, अक्षय बाणों से युक्त तुणीर लिए हुए राम और लक्ष्मण मेरी रक्षा करने के लिए मेरे आगे चलें |

संनद्ध: कवची खड्‌गी चापबाणधरो युवा ।
गच्छन्‌मनोरथोSस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: ॥२१॥

हमेशा तत्पर, कवचधारी, हाथ में खडग, धनुष-बाण तथा युवावस्था वाले भगवान् राम लक्ष्मण सहित आगे-आगे चलकर हमारी रक्षा करें |

रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।
काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम: ॥२२॥

भगवान् का कथन है की श्रीराम, दाशरथी, शूर, लक्ष्मनाचुर, बली, काकुत्स्थ , पुरुष, पूर्ण, कौसल्येय, रघुतम,

वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम: ।
जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम: ॥२३॥

वेदान्त्वेघ, यज्ञेश,पुराण पुरूषोतम , जानकी वल्लभ, श्रीमान और अप्रमेय पराक्रम आदि नामों का

इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्‌भक्त: श्रद्धयान्वित: ।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ॥२४॥

नित्यप्रति श्रद्धापूर्वक जप करने वाले को निश्चित रूप से अश्वमेध यज्ञ से भी अधिक फल प्राप्त होता हैं |

रामं दूर्वादलश्यामं पद्‌माक्षं पीतवाससम्‌ ।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर: ॥२५॥

दूर्वादल के समान श्याम वर्ण, कमल-नयन एवं पीतांबरधारी श्रीराम की उपरोक्त दिव्य नामों से स्तुति करने वाला संसारचक्र में नहीं पड़ता |

रामं लक्शमण पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम्‌ ।
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्‌
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम्‌ ।
वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम्‌ ॥२६॥

लक्ष्मण जी के पूर्वज , सीताजी के पति, काकुत्स्थ, कुल-नंदन, करुणा के सागर , गुण-निधान , विप्र भक्त, परम धार्मिक , राजराजेश्वर, सत्यनिष्ठ, दशरथ के पुत्र, श्याम और शांत मूर्ति, सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर, रघुकुल तिलक , राघव एवं रावण के शत्रु भगवान् राम की मैं वंदना करता हूँ |

रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥

राम, रामभद्र, रामचंद्र, विधात स्वरूप , रघुनाथ, प्रभु एवं सीताजी के स्वामी की मैं वंदना करता हूँ |

श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम ।
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम ।
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥

हे रघुनन्दन श्रीराम ! हे भरत के अग्रज भगवान् राम! हे रणधीर, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ! आप मुझे शरण दीजिए |

श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥

मैं एकाग्र मन से श्रीरामचंद्रजी के चरणों का स्मरण और वाणी से गुणगान करता हूँ, वाणी द्धारा और पूरी श्रद्धा के साथ भगवान् रामचन्द्र के चरणों को प्रणाम करता हुआ मैं उनके चरणों की शरण लेता हूँ |

माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र: ।
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र: ।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु ।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥

श्रीराम मेरे माता, मेरे पिता , मेरे स्वामी और मेरे सखा हैं | इस प्रकार दयालु श्रीराम मेरे सर्वस्व हैं. उनके सिवा में किसी दुसरे को नहीं जानता |

दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा ।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम्‌ ॥३१॥

जिनके दाईं और लक्ष्मण जी, बाईं और जानकी जी और सामने हनुमान ही विराजमान हैं, मैं उन्ही रघुनाथ जी की वंदना करता हूँ |

लोकाभिरामं रनरङ्‌गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्‌ ।
कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥

मैं सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर तथा रणक्रीड़ा में धीर, कमलनेत्र, रघुवंश नायक, करुणा की मूर्ति और करुणा के भण्डार की श्रीराम की शरण में हूँ |

मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्‌ ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥

जिनकी गति मन के समान और वेग वायु के समान (अत्यंत तेज) है, जो परम जितेन्द्रिय एवं बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं, मैं उन पवन-नंदन वानारग्रगण्य श्रीराम दूत की शरण लेता हूँ |

कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्‌ ।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम्‌ ॥३४॥

मैं कवितामयी डाली पर बैठकर, मधुर अक्षरों वाले ‘राम-राम’ के मधुर नाम को कूजते हुए वाल्मीकि रुपी कोयल की वंदना करता हूँ |

आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम्‌ ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्‌ ॥३५॥

मैं इस संसार के प्रिय एवं सुन्दर उन भगवान् राम को बार-बार नमन करता हूँ, जो सभी आपदाओं को दूर करने वाले तथा सुख-सम्पति प्रदान करने वाले हैं |

भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम्‌ ।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम्‌ ॥३६॥

‘राम-राम’ का जप करने से मनुष्य के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं | वह समस्त सुख-सम्पति तथा ऐश्वर्य प्राप्त कर लेता हैं | राम-राम की गर्जना से यमदूत सदा भयभीत रहते हैं |

रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे ।
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोSस्म्यहम्‌ ।
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥

राजाओं में श्रेष्ठ श्रीराम सदा विजय को प्राप्त करते हैं | मैं लक्ष्मीपति भगवान् श्रीराम का भजन करता हूँ | सम्पूर्ण राक्षस सेना का नाश करने वाले श्रीराम को मैं नमस्कार करता हूँ | श्रीराम के समान अन्य कोई आश्रयदाता नहीं | मैं उन शरणागत वत्सल का दास हूँ | मैं हमेशा श्रीराम मैं ही लीन रहूँ | हे श्रीराम! आप मेरा (इस संसार सागर से) उद्धार करें |

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥

(शिव पार्वती से बोले –) हे सुमुखी ! राम- नाम ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ के समान हैं | मैं सदा राम का स्तवन करता हूँ और राम-नाम में ही रमण करता हूँ |
इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम्‌ ॥

॥ श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥


राम रक्षा स्त्रोत को ग्यारह बार एक बार में पढ़ लिया जाए तो पूरे दिन तक इसका प्रभाव रहता है।
अगर आप रोज ४५ दिन तक राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करते हैं तो इसके फल की अवधि बढ़ जाती है। इसका प्रभाव दुगुना तथा दो दिन तक रहने लगता है और भी अच्छा होगा यदि कोई राम रक्षा स्त्रोत को नवरात्रों में प्रतिदिन ११ बार पढ़े ।

सरसों के दाने एक कटोरी में रख लें। कटोरी के नीचे कोई ऊनी वस्त्र या आसन होना चाहिए। राम रक्षा मन्त्र को ११ बार पढ़ें और इस दौरान आपको अपनी उँगलियों से सरसों के दानों को कटोरी में घुमाते रहना है। ध्यान रहे कि आप किसी आसन पर बैठे हों और राम रक्षा यंत्र आपके सम्मुख हो या फिर श्री राम कि प्रतिमा या फोटो आपके आगे होनी चाहिए जिसे देखते हुए आपको मन्त्र पढ़ना है।
ग्यारह बार के जाप से सरसों सिद्ध हो जायेगी और आप उस सरसों के दानों को शुद्ध और सुरक्षित पूजा स्थान पर रख लें। जब आवश्यकता पड़े तो कुछ दाने लेकर आजमायें। सफलता अवश्य प्राप्त होगी।
वाद विवाद या मुकदमा हो तो उस दिन सरसों के दाने साथ लेकर जाएँ और वहां दाल दें जहाँ विरोधी बैठता है या उसके सम्मुख फेंक दें। सफलता आपके कदम चूमेगी।
खेल या प्रतियोगिता या साक्षात्कार में आप सिद्ध सरसों को साथ ले जाएँ और अपनी जेब में रखें। अनिष्ट की आशंका हो तो भी सिद्ध सरसों को साथ में रखें। यात्रा में साथ ले जाएँ आपका कार्य सफल होगा।
राम रक्षा स्त्रोत से पानी सिद्ध करके रोगी को पिलाया जा सकता है परन्तु पानी को सिद्ध करने कि विधि अलग है। इसके लिए ताम्बे के बर्तन को केवल हाथ में पकड़ कर रखना है और अपनी दृष्टि पानी में रखें और महसूस करें कि स्त्रोत की सारी शक्ति पानी में जा रही है। इस समय अपना ध्यान श्री राम की स्तुति में लगाये रखें। मन्त्र बोलते समय प्रयास करें कि आपको हर वाक्य का अर्थ ज्ञात रहे।

अतुल सम्पदा एवं विजय दायिनी अर्जुन-कृतम् श्रीदुर्गा-स्तवनम्

अतुल सम्पदा एवं विजय दायिनी अर्जुन-कृतम् श्रीदुर्गा-स्तवनम्


दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      
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अथ श्री अर्जुन-कृतम् श्रीदुर्गा-स्तवनम्

अथ विनियोग:- 
ॐ अस्य श्रीभगवती दुर्गा स्तोत्र मन्त्रस्य श्रीकृष्णार्जुन स्वरूपी नर नारायणो ऋषिः, अनुष्टुप् छन्द:, श्रीदुर्गा देवता, ह्रीं बीजं, ऐं शक्ति, श्रीं कीलकं, मम अभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः

ऋष्यादिन्यास-
श्रीकृष्णार्जुन स्वरूपी नर नारायण ऋषिभ्यो नमः शिरसि । अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे । श्रीदुर्गा देवतायै नमः हृदि । ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये । ऐं शक्त्यै नमः पादयो । श्रीं कीलकाय नमः नाभौ । मम अभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।।

अथ करन्यास:- 
ॐ ह्रां अंगुष्ठाभ्याम नमः । ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां स्वाहा । ॐ ह्रूं मध्यमाभ्याम वषट् । ॐ ह्रैं अनामिकाभ्यां हुं । ॐ ह्रौं कनिष्ठाभ्यां वौष्ट् । ॐ ह्रः करतल करपृष्ठाभ्यां फट् ।।

अथ अंग-न्यास:- 
ॐ ह्रां हृदयाय नमः । ॐ ह्रीं शिरसें स्वाहा । ॐ ह्रूं शिखायै वषट् । ॐ ह्रैं कवचायं हुं । ॐ ह्रौं नैत्र-त्रयाय वौष्ट् । ॐ ह्रः अस्त्राय फट् ।।

अथ ध्यानम् ।।
सिंहस्था शशि-शेखरा मरकत-प्रख्या चतुर्भिर्भुजैः, शँख चक्र-धनुः-शरांश्च दधती नेत्रैस्त्रिभिः शोभिता।
आमुक्तांगद-हार-कंकण-रणत्-कांची-क्वणन् नूपुरा, दुर्गा दुर्गति-हारिणी भवतु नो रत्नोल्लसत्-कुण्डला।।

अथ मानस पूजनम् - ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नमः लं पृथिव्यात्मकं गन्धं समर्पयामि । ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नमः हं आकाशात्मकं पुष्पं समर्पयामि । ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नमः यं वाय्वात्मकं धूपं घ्रापयामि । ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नमः रं वह्नयात्मकं दीपं दर्शयामि । ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नमः वं अमृतात्मकं नैवेद्यं निवेदयामि । ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नमः सं सर्वात्मकं ताम्बूलं समर्पयामि ।।

अथ श्री अर्जुन-कृतम् श्रीदुर्गा-स्तवनम् प्रारम्भः ।।

श्रीअर्जुन उवाच -
नमस्ते सिद्ध-सेनानि, आर्ये मन्दर-वासिनी, कुमारी कालि कापालि, कपिले कृष्ण-पिंगले।।1।।
भद्र-कालि! नमस्तुभ्यं, महाकालि नमोऽस्तुते। चण्डि चण्डे नमस्तुभ्यं, तारिणि वर-वर्णिनि।।2।।
कात्यायनि महा-भागे, करालि विजये जये, शिखि पिच्छ-ध्वज-धरे, नानाभरण-भूषिते।।3।।
अटूट-शूल-प्रहरणे, खड्ग-खेटक-धारिणे, गोपेन्द्रस्यानुजे ज्येष्ठे, नन्द-गोप-कुलोद्भवे।।4।।
महिषासृक्-प्रिये नित्यं, कौशिकि पीत-वासिनि, अट्टहासे कोक-मुखे, नमस्तेऽस्तु रण-प्रिये।।5।।
उमे शाकम्भरि श्वेते, कृष्णे कैटभ-नाशिनि, हिरण्याक्षि विरूपाक्षि, सुधू्राप्ति नमोऽस्तु ते।।6।।
वेद-श्रुति-महा-पुण्ये, ब्रह्मण्ये जात-वेदसि, जम्बू-कटक-चैत्येषु, नित्यं सन्निहितालये।।7।।
त्वं ब्रह्म-विद्यानां, महा-निद्रा च देहिनाम्। स्कन्ध-मातर्भगवति, दुर्गे कान्तार-वासिनि।।8।।
स्वाहाकारः स्वधा चैव, कला काष्ठा सरस्वती। सावित्री वेद-माता च, तथा वेदान्त उच्यते।।9।।
स्तुतासि त्वं महा-देवि विशुद्धेनान्तरात्मा। जयो भवतु मे नित्यं, त्वत्-प्रसादाद् रणाजिरे।।10।।
कान्तार-भय-दुर्गेषु, भक्तानां चालयेषु च। नित्यं वससि पाताले, युद्धे जयसि दानवान्।।11।।
त्वं जम्भिनी मोहिनी च, माया ह्रीः श्रीस्तथैव च। सन्ध्या प्रभावती चैव, सावित्री जननी तथा।।12।।
तुष्टिः पुष्टिर्धृतिदीप्तिश्चन्द्रादित्य-विवर्धनी। भूतिर्भूति-मतां संख्ये, वीक्ष्यसे सिद्ध-चारणैः।।13।।

।। फल-श्रुति ।।
यः इदं पठते स्तोत्रं, कल्यं उत्थाय मानवः। यक्ष-रक्षः-पिशाचेभ्यो, न भयं विद्यते सदा।।1।।
न चापि रिपवस्तेभ्यः, सर्पाद्या ये च दंष्ट्रिणः। न भयं विद्यते तस्य, सदा राज-कुलादपि।।2।।
विवादे जयमाप्नोति, बद्धो मुच्येत बन्धनात्। दुर्गं तरति चावश्यं, तथा चोरैर्विमुच्यते।।3।।
संग्रामे विजयेन्नित्यं, लक्ष्मीं प्राप्न्नोति केवलाम्। आरोग्य-बल-सम्पन्नो, जीवेद् वर्ष-शतं तथा।।4।।
।। इति श्री अर्जुन-कृतम् श्रीदुर्गा-स्तवनम् समाप्तम् ।।


मित्रों, इस अनुष्ठान से सभी प्रकार की बाधाएं समाप्त हो जाती है तथा दरिद्रता का नाश हो जाता है । व्यक्ति के ऊपर मंडराने वाला शासकीय संकट एवं शत्रु बाधा की समाप्ति हो जाती है, इसके लिये यह अनुभूत एवं सिद्ध प्रयोग है ।। महाभारत युद्ध के मैदान में अर्जुन अपनों को देखकर मोहग्रसित हो गए थे, तब भगवान कृष्ण ने गीता सुनायी थी । उसके बाद भी विजय होगी की नहीं ? कौरवों की इतनी विशाल सेना देखकर अर्जुन चिंतित थे, तब भगवान ने भगवती दुर्गा देवी की आराधना करने को कहा था ।। मित्रों, उस समय अर्जुन ने जिस स्तोत्र से भगवती माँ दुर्गा का स्तवन किया था और जिस स्तवन से प्रशन्न होकर माँ दुर्गा ने विजय का वरदान दिया था ये वही भगवती दुर्गा का स्तवन है । इस स्तोत्र के माहात्म्य में लिखा है, कि- यक्ष, राक्षस, पिशाच, शत्रु, सर्पादि का भय, शासकीय संकट, शत्रु बाधा एवं मुकदमे आदि का भय समाप्त हो जाता है तथा सर्वत्र विजय की प्राप्ति होती है । बंधन में पड़े जीव की मुक्ति हो जाती है, विवाद में विजय की प्राप्ति होती है, संग्राम में विजय, अतुलनीय सम्पदा, आरोग्य के साथ ही व्यक्ति बल, रूप-गुण आदि से सम्पन्न होकर शतायु होता है ।।

प्रयोग विधि - 

यह स्तोत्र महाभारत के भीष्म पर्व में वर्णित है । इसकी साधना भगवती दुर्गा के मन्दिर अथवा घर में एकान्त में करनी चाहिये । 
घी के दीपक में बत्ती के लिये अपनी नाप के बराबर रूई के सूत को 5 बार मोड़कर बट देवें तथा बटी हुई बत्ती को कुंकुम से रंगकर भगवती के सामने दीपक जलायें ।।
नवरात्र काल में अथवा सर्वार्थ सिद्धि योग में इस अनुष्ठान को आरम्भ करें । कुल 9 या 21 दिन पाठ करें तथा प्रतिदिन 9 या 21 बार आवृत्ति करें । पाठ के बाद दशांस हवन करें । 
लाल वस्त्र एवं लाल ही आसन का प्रयोग करें । 
साधना काल में ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य है ।। 
नित्य ही दुर्गा-पूजा के साथ सप्तशती-पाठ करने के बाद उपरोक्त स्तवन का ३१ पाठ प्रतिदिन १ महिने तक किए जायें अथवा नवरात्र काल में नव दिन १०८ पाठ नित्य किए जायें तो उपरोक्त “दुर्गा-स्तवन” सिद्ध हो जाता है । फिर व्यक्ति इससे मनोवान्छित कामना की पूर्ति कर सकता है ।।

राहू के खराब होने की निशानियाँ

राहू के खराब होने की निशानियाँ


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किसी दिन अचानक से तनाव और अशांति हमे घेर लेती है , उस से पहले हम एक दम से ठीक थे , अब अचानक से डर लगने लगा , घबराहट होने लगी , मन में आने लगा की मै अब मर जाऊँगा | अब हम इसका न तो कारण जान सकते है और न ही विश्लेष्ण कर पाते है की ऐसा क्यों हुआ | हमारे मन में जो मानसिक विछिप्त्ता हो रही है उसी का कारण राहू होता है | 
दिमाकी खराबी होना राहू के खराब होने की निशानी होती है | बिना किसी कारण के दुश्मन बन जाना ससुराल से सम्बन्ध खराब हो जाना , घर से काला कुता गुम हो जाना , बैठे बिठाए मरने या किसी को मारने के ख्याल पैदा हो जाना , एक्सीडेंट हो जाना , बिल्ली का घर में रोना , काले रंग के रिश्तेदार की नजर में फर्क हो जाना , हाथ के नाख़ून झड़ जाना , एक छोटे से नुक्सान को एक बड़े नुक्सान में बदल जाना आदि राहू के खराब होने की निशानियाँ होती है|

राहू खराब हो जिसका उसे सिर पर चोटी हमेशा रखनी चाहिये | दक्षिण दिशा वाले मुख्य दरवाज़े में निवास से बचना चाहिए | यदि घर का मुख्य दरवाज़ा दक्षिण दिशा का हो तो उसकी देहलीज के निचे चांदी का चोरस तार दबवा देना चाहिए | ससुराल से सम्बन्ध खराब नही करने चाहिए |अपने परिवार के लोगों के साथ मिलकर रहे यानी की संयुक्त परिवार में रहने की कोसिस करनी चाहिए | नीले रंग के वस्त्र का प्रयोग नही करना चाहिए |

Thursday, November 14, 2019

काल सर्प योग और उसका निराकरण

काल सर्प योग और उसका निराकरण


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काल सर्प योग और उसका आसान निराकरण

काल सर्प योग कुंडली का एक योग है।प्रायः ज्योतिषी काल सर्प योग की चर्चा करते रहते है और उसकी शांति का उपाय कराते रहते है।कुंडली मे जब सारे ग्रह राहु और केतु केमध्य आ जाते है तो काल सर्प योग होता है।इस योग के नागों के नाम पर होता है और कई तरह का होता है।
इस योग में जन्म लेने वाले का सारा काम अधूरा और असफल होता रहता है।कोई भी जरूरी काम होते होते अंतिम समय मे असफल हो जाय करता है।जातक काफी परेशान रहता है।उसका स्वभाव भी थोड़ा सामान्य से अलग हो जाता है।उसे रात सपने में सांप दिखाई पड़ते है।
इनकी शांति के लिए शिव पूजन नाग पूजन सर्प सूक्त का पाठ।चांदी का सर्प बनाकर उसका पूजन और दान सर्प मंत्र का प्रयोग इत्यादि है।ज्योतिर्लिंग खास कर त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिलिंग स्थान पर इसका वैदिक रीति से शांति किया जाता है।
सर्प दंश से विष उतारने वालो से काल सर्प योग का विष उतारा जाता है।ठीक वैसे जैसे सर्प दंश वाले का उतारा जाता है।
इसके लिए आज आप लोगो को एक स्वयं सिद्ध मंत्र दे रहा हूँ जिसे आप लोगो को सिद्ध करने की जरूरत नही जब भी कोई सर्प दंश का मरीज आपके पास आता है थोड़ा पानी लेकर उस पर 108 बार मंत्र पढ़ कर फुंक दे और वही पानी रोगी को पिला दें।इस से तुरंत वह व्यक्ति सर्प विष से मुक्त हो जाता है।
वैसे ही थोड़े पानी पर इस मन्त्र को पढ़ कर फूँक कर काल सर्प के पीड़ित को यह पानी पिला दें।तुरंत उसका काल सर्प योग समाप्त हो जाता है।अगर नित्य इस मंत्र का जाप किया जाए और उसकापानी काल सर्प योग वाला पिये तो समस्त काल सर्प का दुष्प्रभाव समाप्त हो जाता है।

मंत्र है-

खँ खः 



उपरोक्त सिर्फ 2 अक्षर का मंत्र है।पढ़ कर प्रयोग करके देखें।

Sunday, November 10, 2019

राहु गायत्री

राहु गायत्री

दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      

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राहु की उपासना में शीघ्र ही फल प्राप्ति के लिए राहु गायत्री का जप करने का विधान है । साधक अपनी श्रद्धा व सामर्थ्य के अनुसार इसका जितना चाहे जप कर सकता है ।

ॐ शिरोरूपाय विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्नो राहु प्रचोदयात् ।

राहु स्तोत्र का पाठ भी राहु पीड़ा दूर करने में शुभ प्रभाव दिखाता है

राहुर्दानवमन्त्री च सिंहिकाचित्तनन्दन: ।
अर्धकाय: सदा क्रोधी चन्द्ररादित्यविमर्दन: ।।
रौद्रो रुद्रप्रियो दैत्य: स्वर्भानुर्भानुभीतिद: ।
ग्रहराज: सुधापायी राकातिथ्यभिलाषक: ।।
कालदृष्टि: कालरुप: श्रीकण्ठहृदयाश्रय: ।
विधुं तुद: सैंहिकेयो घोररुपो महाबल: ।।
ग्रहपीड़ाकरो दंष्ट्री रक्तनेत्रो महोदर: ।
पंचविंशति नामानि स्मृत्वा राहुं सदा नर: ।।
य: पठेन्महती पीड़ा तस्य नश्यति केवलम् ।
आरोग्यं पुत्रमतुलां श्रियं धान्यं पशूंस्तथा ।।
ददाति राहुस्तस्मै य: पठते स्तोत्रमुत्तमम ।
सततं पठते यस्तु जीवेद्वर्षशतं नर: ।।

Friday, November 8, 2019

List of Swars as per Nakshatra

List of Swars as per Nakshatra


दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      
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Naming your child based on Swar Siddhanta can give positive results in the growth and development of the child. The most common practice to name a child is based on the quarter of the constellation (Nakshatra) occupied by the radical Moon i.e. the Moon position at the time of the birth




Nakshatra

Nakshatra



दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      
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• Fixed Nakshatra
• Movable Nakshatra
• Cruel Nakshatra
• Ordinary Nakshatra
• Short Nakshatra
• Gentle Nakshatra
• Ferocious Nakshatra

Star grouping in Vedic Astrology

As per Vedic Astrology if we divide the zodiac into twenty-seven (27) equal parts then each part would be of 13° 20′ and each part is called a Nakshatra. If we begin from Aries (i.e. beginning position as per Nirayana) then all Nakshatra can be named as per the following list.

Ashvini - Short
Bharani - Cruel
Krittika - Ordinary
Rohini - Fixed
Mrigashirsha - Gentle
Ardra - Ferocious
Punarvasu- Movable
Pushya - Short
Ashlesha - Ferocious
Magha- Cruel
Purva Phalguni - Cruel
Uttara Phalguni- Fixed
Hasta - Short
Chitra - Gentle
Swati - Movable
Vishakha - Ordinary
Anuradha - Gentle
Jyeshtha - Ferocious
Mula - Ferocious
Purva Ashadha- Cruel
Uttara Ashadha- Fixed
Abhijit - Short
Shravana - Movable
Dhanishtha - Movable
Shatabhisha - Movable
Purva Bhadrapada - Cruel
Uttara Bhadrapada - Fixed
Revati - Gentle

These 28 Nakshatra are divided into seven groups. The classification of Nakshatra into seven groups is as following -
Fixed Nakshatra

Following four Nakshatra are considered fixed in nature.

Rohini (4)
Uttara Phalguni (12)
Uttara Ashadha (21)
Uttara Bhadrapada (26)

Fixed Nakshatra category is also known as Dhruva, Sthira and constant. All works which are fixed in nature are done in these Nakshatra e.g. laying the foundation, digging a well, house building, Upanayana, agriculture, starting service etc.

Movable Nakshatra

Following five Nakshatra are considered movable in nature.

Punarvasu (7)
Swati (15)
Shravana (22)
Dhanishtha (23)
Shatabhisha (24)

Movable Nakshatra category is also known as Chara and Chala. All movable activities like riding on vehicles, horses, elephants and journeys can be done in these Nakshatra(s). Apart from these activities, any other work needing motion can be done in these Nakshatra.

Cruel Nakshatra

Following five Nakshatra are considered cruel in nature.

Bharani (2)
Magha (10)
Purva Phalguni (11)
Purva Ashadha (20)
Purva Bhadrapada (25)

Cruel Nakshatra category is also known as Ugra and Krura Nakshatra category. All these Nakshatra(s) are aggressive in nature and suitable for killing, cheating, works involving use of fire, theft, poisoning, research on poisonous medicines, purchase or sale and use of arms, surgical operations, obtaining license of a gun etc.

Ordinary Nakshatra

Following two Nakshatra are considered ordinary in nature.

Krittika (3)
Vishakha (16)

Ordinary Nakshatra category is also known as Mishra, Sadharana and mixed. These Nakshatra are good for fire related works, welding, melting, gas works, fabrications, preparing medicines, Agnihotra, etc.

Short Nakshatra

Following four Nakshatra are considered short in appearance.

Ashvini (1)
Pushya (8)
Hasta (13)
Abhijit (21-a)

Short Nakshatra category is also known as Kshipra, Laghu and dynamic Nakshatra. These Nakshatra are suitable for construction, starting a shop, selling, sex, starting education, making and wearing ornaments, fine arts, learning and display of arts, etc.

All acts done under movable Nakshatra can also be done during short Nakshatra. Pushya Nakshatra is not considered good for marriage ceremony.

Gentle Nakshatra

Following four Nakshatra are considered gentle in nature.

Mrigashirsha (5)
Chitra (14)
Anuradha (17)
Revati (27)

Gentle Nakshatra category is also known as Mridu, Maitra and friendly. Activities e.g. singing, learning music, making and wearing clothes, playing, learning game skills, making friends, making and wearing ornaments can be done in these Nakshatra.

All activities which can be done during fixed Nakshatra can also be done during gentle Nakshatra.

Ferocious Nakshatra

Following four Nakshatra are considered ferocious in nature.

Ardra (6)
Ashlesha (9)
Mula (19)
Jyeshtha (18)

Ferocious Nakshatra category is also known as Teekshna, Daruna and bitter. These Nakshatra are good for staring Tantrik acts, killing, black magic, aggressive and deadly deeds, to divide others, to train and tame animals and for Sadhana or Hatha Yoga(s).

All activities which can be done during cruel Nakshatra can also be done during ferocious Nakshatra.

विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )