Friday, December 27, 2019

शत्रु-विध्वंसिनी-स्तोत्र

शत्रु-विध्वंसिनी-स्तोत्र

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विनियोगः- 
ॐ अस्य श्रीशत्रु-विध्वंसिनी-स्तोत्र-मन्त्रस्य ज्वालत्-पावक ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्रीशत्रु-विध्वंसिनी देवता, मम शत्रु-पाद-मुख-बुद्धि-जिह्वा-कीलनार्थ, शत्रु-नाशार्थं, मम स्वामि-वश्यार्थे वा जपे पाठे च विनियोगः।
 ऋष्यादि-न्यासः- शिरसि ज्वालत्-पावक-ऋषये नमः। मुखे अनुष्टुप छन्दसे नमः, हृदि श्रीशत्रु-विध्वंसिनी देवतायै नमः, सर्वाङ्गे मम शत्रु-पाद-मुख-बुद्धि-जिह्वा-कीलनार्थ, शत्रु-नाशार्थं, मम स्वामि-वश्यार्थे वा जपे पाठे च विनियोगाय नमः।।


 कर-न्यासः- 

ॐ ह्रां क्लां अंगुष्ठाभ्यां नमः। ॐ ह्रीं क्लीं तर्जनीभ्यां नमः। ॐ ह्रूं क्लूं मध्यमाभ्यां नमः। ॐ ह्रैं क्लैं अनामिकाभ्यां नमः। ॐ ह्रौं क्लौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः। ॐ ह्रः क्लः करतल-करपृष्ठाभ्यां नमः।

 हृदयादि-न्यासः- 

ॐ ह्रां क्लां हृदयाय नमः। ॐ ह्रीं क्लीं शिरसे स्वाहा। ॐ ह्रूं क्लूं शिखायै वषट्। ॐ ह्रैं क्लैं कवचाय हुम्। ॐ ह्रौं क्लौं नेत्र-त्रयाय वौषट्। ॐ ह्रः क्लः अस्त्राय फट्।

 ध्यानः-  रक्तागीं शव-वाहिनीं त्रि-शिरसीं रौद्रां महा-भैरवीम्,
 धूम्राक्षीं भय-नाशिनीं घन-निभां नीलालकाऽलंकृताम्।
 खड्ग-शूल-धरीं महा-भय-रिपुध्वंशीं कृशांगीं महा-
 दीर्घागीं त्रि-जटीं महाऽनिल-निभां ध्यायेत् पिनाकीं शिवाम्।।


 मन्त्रः-

 “ॐ ह्रीं क्लीं पुण्य-वती-महा-माये सर्व-दुष्ट-वैरि-कुलं निर्दलय क्रोध-मुखि, महा-भयास्मि, स्तम्भं कुरु विक्रौं स्वाहा।।” (३००० जप)


 मूल स्तोत्रः-  
खड्ग-शूल-धरां अम्बां, महा-विध्वंसिनीं रिपून्।
 कृशांगींच महा-दीर्घां, त्रिशिरां महोरगाम्।।
 स्तम्भनं कुरु कल्याणि, रिपु विक्रोशितं कुरु।
 ॐ स्वामि-वश्यकरी देवी, प्रीति-वृद्धिकरी मम।।
 शत्रु-विध्वंसिनी देवी, त्रिशिरा रक्त-लोचनी।
 अग्नि-ज्वाला रक्त-मुखी, घोर-दंष्ट्री त्रिशूलिनी।।
 दिगम्बरी रक्त-केशी, रक्त पाणि महोदरी।
 यो नरो निष्कृतं घोरं, शीघ्रमुच्चाटयेद् रिपुम्।।


 ।।फल-श्रुति।। 
इमं स्तवं जपेन्नित्यं, विजयं शत्रु-नाशनम्।
 सहस्त्र-त्रिशतं कुर्यात्। कार्य-सिद्धिर्न संशयः।।
 जपाद् दशांशं होमं तु, कार्यं सर्षप-तण्डुलैः।
 पञ्च-खाद्यै घृतं चैव, नात्र कार्या विचारणा।।
 ।।श्रीशिवार्णवे शिव-गौरी-सम्वादे विभीषणस्य रघुनाथ-प्रोक्तं शत्रु-विध्वंसनी-स्तोत्रम्।।


 विशेषः-  

यह स्तोत्र अत्यन्त उग्र है। इसके विषय में निम्नलिखित तथ्यों पर ध्यान अवश्य देना चाहिए-
 (क) प्रथम और अन्तिम आवृति में नामों के साथ फल-श्रुति मात्र पढ़ें। पाठ नहीं होगा।
 (ग) घर में पाठ कदापि न किया जाए, केवल शिवालय, नदी-तट, एकान्त, निर्जन-वन, श्मशान अथवा किसी मन्दिर के एकान्त में ही करें।
 (घ) पुरश्चरण की आवश्यकता नहीं है। सीधे ‘प्रयोग’ करें। प्रत्येक ‘प्रयोग’ में तीन हजार आवृत्तियाँ करनी होगी।

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विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )