Wednesday, October 2, 2019

श्रीगरुडस्य द्वादशनाम स्तोत्रम् Shri Garudasya Dwadasha Nam Stotram

श्रीगरुडस्य द्वादशनाम स्तोत्रम् Shri Garudasya Dwadasha Nam Stotram


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सुपर्णं वैनतेयं च नागारिं नागभीषणम् ।
जितान्तकं विषारिं च अजितं विश्वरुपिणम् ।
गरुत्मन्तं खगश्रेष्ठं तार्क्ष्यं कश्यपनन्दनम् ॥ १ ॥
द्वादशैतानि नामानि गरुडस्य महात्मनः ।
यः पठेत् प्रातरुत्थाय स्नाने वा शयनेऽपि वा ॥ २ ॥
विषं नाक्रामते तस्य न च हिंसन्ति हिंसकाः ।
संग्रामे व्यवहारे च विजयस्तस्य जायते ।।
बन्धनान्मुक्तिमाप्नोति यात्रायां सिद्धिरेव च ॥ ३ ॥
॥ इति बृहद्तन्त्रसारे श्रीगरुडस्य द्वादशनाम स्तोत्रम् संपूर्णं ॥


महात्मा गरुडाजी के बारह नाम इसप्रकार हैं-


१) सुपर्ण (सुंदर पंखवाले) 
२) वैनतेय (विनताके पुत्र )
३) नागारि ( नागोकें शत्रु ) 
४) नागभीषण ( नागोंकेलिये भयंकर ) 
५) जितान्तक ( कालको भी जीतनेवाले )
६) विषारिं (विषके शत्रु ) 
७) अजित ( अपराजेय )
८) विश्वरुपी ( सर्बस्वरुप ) 
९) गरुत्मान् ( अतिशय पराक्रमसम्पन्न ) 
१०) खगश्रेष्ठ ( पक्षियोंमे सर्वश्रेष्ठ )
११) तार्क्ष (गरुड ) 
१२) कश्यपनन्दन ( महर्षि कश्यपके पुत्र ) 

इन बारह नामों का जो नित्य प्रातः काल उठकर स्नान के समय या सोते समय पाठ करता है, उसपर किसी भी प्रकारके विष का प्रभाव नहीं पडता, उसे कोई हिंसक प्राणी मार नहीं सकता, युद्ध में तथा व्यवहार में उसे विजय प्राप्त होती है, वह बन्धन से मुक्ति प्राप्त कर लेता है और उसे यात्रा मे सिद्धि मिलती है ।

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विशेष सुचना

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