दीवाली लक्ष्मी षोडशोपचार पूजा विधि
लक्ष्मी पूजा विधिहम दीवाली के दौरान लक्ष्मी पूजा विधि को विस्तृत रूप से उपलब्ध करा रहे हैं। दीवाली पूजा के लिए लोगों को महा-लक्ष्मी की नवीन प्रतिमा खरीदनी चाहिए। यह पूजा विधि श्री लक्ष्मी की नवीन प्रतिमा या मूर्ति के लिए उपलब्ध कराई गई है। इस पूजा विधि में लक्ष्मीजी की पूजा करने के लिए सोलह चरण शामिल है जिसे षोडशोपचार पूजा के नाम से जाना जाता है।
ध्यान (Dhyana)
भगवती लक्ष्मी का ध्यान पहले से अपने सम्मुख प्रतिष्ठित श्रीलक्ष्मी की नवीन प्रतिमा में करें।
दीवाली के दौरान श्री लक्ष्मी पूजा
या सा पद्मासनस्थ विपुल कति तति पद्म पथ्रयथक्षि,
गम्भीरवर्थ नाभिस्थानभार नंनिथ, शुब्र वस्थ्रोथरीय,
लक्ष्मीर दिव्यै गजेन्द्रै मणि गण खचित्है स्थापिथ हेम कुम्भै,
र्निथ्यं सा पद्म हस्था मम वसथु गृहे सर्व मङ्गल्य युक्था.
मन्त्र अर्थ - भगवती लक्ष्मी कमल के आसन पर विराजमान हैं, कमल की पंखुड़ियों के समान सुन्दर बड़े-बड़े जिनके नेत्र हैं, जिनकी विस्तृत कमर और गहरे आवर्तवाली नाभि है, जो पयोधरों के भार से झुकी हुई और सुन्दर वस्त्र के उत्तरीय से सुशोभित हैं, जो मणि-जटित दिव्य स्वर्ण-कलशों के द्वारा स्नान किए हुए हैं, वे कमल-हस्ता सदा सभी मङ्गलों के सहित मेरे घर में निवास करें।
आवाहन (Aavahan)
श्रीभगवती लक्ष्मी का ध्यान करने के बाद, निम्न मन्त्र पढ़ते हुये श्रीलक्ष्मी की प्रतिमा के सम्मुख आवाहन-मुद्रा दिखाकर, उनका आवाहन करें।
आगच्छा देव -देवेशि ! तेजोमयी महा -लक्ष्मी !
क्रियामनाम माया पूजाम , गृहाण सुर -वंदिते !
॥श्री लक्ष्मी -देवी आवाहयामि ॥
मन्त्र अर्थ - हे देवताओं की ईश्वरि! तेज-मयी हे महा-देवि लक्ष्मि! देव-वन्दिते! आइए, मेरे द्वारा की जानेवाली पूजा को स्वीकार करें।
॥मैं भगवती श्रीलक्ष्मी का आवाहन करता हूँ॥
पुष्पाञ्जलि आसन (Pushpanjali Asana)
आवाहन करने के बाद निम्न मन्त्र पढ़ कर उन्हें आसन के लिये पाँच पुष्प अञ्जलि में लेकर अपने सामने छोड़े।
नाना -रत्न -समायुक्तं , कर्त्ता -स्वर -विभूषिताम ।
आसनं देव -देवेश ! प्रीत्यर्थं प्रति -गृह्यताम ॥
॥श्री लक्ष्मी -देव्यै आसनार्थे पञ्च -पुष्पाणि समर्पयामि ॥
मन्त्र अर्थ - हे देवताओं की ईश्वरि! विविध प्रकार के रत्नों से युक्त स्वर्ण-सज्जित आसन को प्रसन्नता हेतु ग्रहण करें।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी के आसन के लिए मैं पाँच पुष्प अर्पित करता हूँ॥
स्वागत (Swagat)
पुष्पांजलि-रूप आसन प्रदान करने के बाद, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुये हाथ जोड़कर श्रीलक्ष्मी का स्वागत करें।
श्री लक्ष्मी देवी स्वागतम
मन्त्र अर्थ - हे देवि, लक्ष्मि! आपका स्वागत है।
पाद्य (Padya)
स्वागत कर निम्न-लिखित मन्त्र से पाद्य (चरण धोने हेतु जल) समर्पित करें।
पाद्यं गृहाण देवेशि , सर्व -क्षमा -सामर्थे , भोह !
भक्त्या समर्पितं देवी , महा -लक्ष्मी ! नमोस्तु ते ॥
॥श्री लक्ष्मी -देव्यै पाद्यं नमः ॥
मन्त्र अर्थ - सब प्रकार के कल्याण करने में समर्थ हे देवेश्वरि! पैर धोने का जल भक्ति-पूर्वक समर्पित है, स्वीकार करें। हे महा-देवि, लक्ष्मि! आपको नमस्कार है।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी को पैर धोने के लिए यह जल है-उन्हें नमस्कार॥
अर्घ्य (Arghya)
पाद्य समर्पण के बाद उन्हें अर्घ्य (शिर के अभिषेक हेतु जल) समर्पित करें।
नमस्ते देव -देवेशि ! नमस्ते कमल -धारिणी !
नमस्ते श्री महा -लक्ष्मी , धनदा -देवी ! अर्घ्यम गृहाण ।
गंधा -पुष्पाक्षतैर्युक्तं , फल -द्रव्य -समन्वितम ॥
गृहाण तोयमर्घ्यर्थं , परमेश्वरि वत्सले !
॥श्री लक्ष्मी -देव्यै अर्घ्यम स्वाह ॥
मन्त्र अर्थ - हे श्री लक्ष्मि! आपको नमस्कार। हे कमल को धारण करनेवाली देव-देवेश्वरि! आपको नमस्कार। हे धनदा देवि, श्रीलक्ष्मि! आपको नमस्कार। शिर के अभिषेक के लिए यह जल (अर्घ्य) स्वीकार करें। हे कृपा-मयि परमेश्वरि! चन्दन-पुष्प-अक्षत से युक्त, फल और द्रव्य के सहित यह जल शिर के अभिषेक के लिये स्वीकार करें।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये अर्घ्य समर्पित है॥
स्नान (Snana)
अर्घ्य के बाद निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को जल से स्नान कराएँ।
गंगासरस्वतीरवापयोश्णीनर्मदाजलैः ।
स्नापितासि माया देवी तथा शान्तिम कुरुष्व में ॥
आदित्यवर्णे तपसोधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोथ बिल्वः ।
तस्य फलानि तपस्या नुदन्तु मयंतरायाश्चा बाह्य अलक्ष्मीः ।
॥श्री लक्ष्मी -देव्यै जलस्नानं समर्पयामि ॥
पञ्चामृतस्नान (Panchamrita Snana)
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को पञ्चामृतस्नान से स्नान कराएँ।
दधि मधु घृतश्चैव पयश्चा शर्करायुतम ।
पंचामृतं समानितम स्नानार्थम प्रतिगृह्यताम ॥
ॐ पञ्चनद्यः सरस्वतीमपियंति सस्त्रोतसः ।
सरस्वती तू पंचधास्योदेशभावत सरित ।
॥श्री लक्ष्मी -देव्यै पंचामृतस्नानं समर्पयामि ॥
गन्धस्नान (Gandha Snana)
अब निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को गन्ध मिश्रित जल से स्नान कराएँ।
मलयाचल सम्भूतं चन्दनागरूमिश्रितम् ।
चन्दनम देवदेवेशी स्नानार्थम प्रतिगृह्यताम ॥
॥श्री लक्ष्मी -देव्यै गंधस्नानाम समर्पयामि ॥
शुद्ध स्नान (Shuddha Snana)
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को शुद्ध जल से स्नान कराएँ।
मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम् । तदिदं कल्पितं देवि ।
स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥ स्नानार्थ जलं समर्पयामि । ( गंगाजल चढावें )
वस्त्र (Vastra)
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को मोली के रूप में वस्त्र समर्पित करें।
दिव्याम्बरं नूतनं ही क्षौमम त्वतिमनोहरम ।
दीयमानं माया देवी ग्रहण जगदम्बिके ॥
उपैतू मम देवसखः कीर्तिश्च मणिना सहा ।
प्रादुर्भूतो सुराष्ट्रेस्मिन कीर्तिमृद्धि ददातु में ॥
॥श्री लक्ष्मी -देव्यै वस्त्रम समर्पयामि ॥
मधुपर्क (Madhuparka)
श्री लक्ष्मी को दूध व शहद का मिश्रण, मधुपर्क अर्पित करें।
ॐ कपिलम दाढ़ी कुंदेंदुधवलम मधुसंयुतम ।
स्वर्णपात्रस्थितम देवी मधुपर्कं ग्रहण भोह ॥
॥श्री लक्ष्मी -देव्यै मधुपर्कं समर्पयामि ॥
आभूषण (Abhushana)
मधुपर्क के बाद निम्न मन्त्र पढ़ कर आभूषण चढ़ायें।
रत्नकंकडा वैदूर्यमुक्ताहारायुतनी च ।
सुप्रसन्नेना माणसा दत्तानि स्वीकुरुषवा में ॥
क्षुपतिपापसमलम ज्येष्ठामलक्ष्मीम नाशयाम्यहम ।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वाणिर्नुदा में ग्रहत ॥
॥श्री लक्ष्मी -देव्यै आभूषणानि समर्पयामि ॥
रक्तचन्दन (Raktachandana)
आभूषण के बाद निम्न मन्त्र पढ़ कर श्री लक्ष्मी को लाल चन्दन चढ़ायें।
ॐ रक्तचन्दनासम्मिश्रम परिजातासमुद्भवम
माया दत्तं गृहाणाशु चन्दनम गंधसंयुतम ॥
॥श्री लक्ष्मी -देव्यै रक्तचन्दनम समर्पयामि ॥
सिन्दुर (Sindoor)
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को तिलक के लिये सिन्दूर चढ़ायें।
ॐ सिन्दूरं रक्तवर्णश्च सिन्दूरतिलकप्रिये ।
भक्त्या दत्तं माया देवी सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम ॥
॥श्री लक्ष्मी -देव्यै सिन्दूरं समर्पयामि ॥
कुङ्कुम (Kumkuma)
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को अखण्ड सौभाग्य रूपी कुङ्कुम चढ़ायें।
ॐ कुंकुमम कामदं दिव्यम कुंकुमम कामरूपिणाम ।
अखण्डाकामसौभाग्यम कुंकुमम प्रतिगृह्यताम ॥
॥श्री लक्ष्मी -देव्यै कुंकुमम समर्पयामि ॥
अबीरगुलाल (Abira-Gulala)
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को अबीरगुलाल चढ़ायें।
अबिराश्चा गुललाम च चोवा -चंदनमेवा च ।
श्रृंगारार्थं माया दत्तं ग्रहण परमेश्वरि ॥
॥श्री लक्ष्मी -देव्यै अबिरगुलालम समर्पयामि ॥
सुगन्धितद्रव्य (Sugandhitadravya)
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को सुगन्धित द्रव्य चढ़ायें।
ॐ तैलानी च सुगन्धीनि द्रव्याणि विविधानि च ।
माया दत्तानि लेपार्थं ग्रहण परमेश्वरि ॥
॥श्री लक्ष्मी -देव्यै सुगंधित तैलं समर्पयामि ॥
अक्षत (Akshata)
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को अक्षत चढ़ायें।
अक्षताश्चा सुरश्रेष्ठा कुंकुमाक्ताः सुशोभिताः ।
माया निवेदिता भक्त्या पूजार्थं प्रतिगृह्यताम ॥
॥श्री लक्ष्मी -देव्यै अक्षतं समर्पयामि ॥
गन्ध-समर्पण/चन्दन-समर्पण (Gandha-Samarpan/Chandan-Samarpan)
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को चन्दन समर्पित करें।
श्री -खंडा -चन्दनम दिव्यम , गन्धदायम सुमनोहरम ।
विलेपनं महा -लक्ष्मी ! चन्दनम प्रति -गृह्यताम ॥
॥श्री लक्ष्मी -देव्यै चन्दनम समर्पयामि ॥
मन्त्र अर्थ - हे महा-लक्ष्मि! मनोहर और सुगन्धित चन्दन शरीर में लगाने हेतु ग्रहण करें।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये चन्दन समर्पित करता हूँ॥
पुष्प-समर्पण (Pushpa-Samarpan)
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को पुष्प समर्पित करें।
यथा -प्राप्त -ऋतू -पुष्पैः , विल्व -तुलसी -डालैश्चा !
पूजयामि महा -लक्ष्मी ! प्रसीदा में सुरेश्वरि !
॥श्री लक्ष्मी -देव्यै पुष्पम समर्पयामि ॥
मन्त्र अर्थ - अर्थात्-हे महा-लक्ष्मि! ऋतु के अनुसार प्राप्त पुष्पों और विल्व तथा तुलसी-दलों से मैं आपकी पूजा करता हूँ। हे देवेश्वरि! मुझ पर आप प्रसन्न हों।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये पुष्प समर्पित करता हूँ॥
अङ्ग-पूजन (Anga-Pujan)
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवती लक्ष्मी के अङ्ग-देवताओं का पूजन करना चाहिए। बाएँ हाथ में चावल, पुष्प व चन्दन लेकर प्रत्येक मन्त्र काउच्चारण करते हुए दाहिने हाथ से श्री लक्ष्मी की मूर्ति के पास छोड़ें।
ॐ चपलायै नमः पादौ पूजयामि ।
ॐ चंचलायी नमः जानुनी पूजयामि ।
ॐ कमलायै नमः कटिं पूजयामि ।
ॐ कात्यायन्यै नमः नाभिम पूजयामि ।
ॐ जगन्मात्रे नमः जेठाराम पूजयामि ।
ॐ विश्व -वल्लभायै नमः वक्ष -स्थलम पूजयामि ।
ॐ कमला -वासिन्यै नमः हस्तौ पूजयामि ।
ॐ कमला -पत्राक्ष्यै नमः नेत्र -त्रयं पूजयामि ।
ॐ श्रियै नमः शिरः पूजयामि ।
अष्ट-सिद्धि पूजा (Ashta-Siddhi Puja)
अङ्ग-देवताओं की पूजा करने के बाद पुनः बाएँ हाथ में चन्दन, पुष्प व चावल लेकर दाएँ हाथ से भगवती लक्ष्मी की मूर्ति के पास ही अष्ट-सिद्धियों की पूजा करें।
ॐ अणिम्ने नमः । ॐ महिम्ने नमः।
ॐ गरिम्णे नमः। ॐ लघिम्ने नमः।
ॐ प्राप्त्यै नमः। ॐ प्रकामयी नमः।
ॐ ईशितायी नमः। ॐ वशितायी नमः।
अष्ट-लक्ष्मी पूजा (Ashta-Lakshmi Puja)
अष्ट-सिद्धियों की पूजा के बाद उपर्युक्त विधि से भगवती लक्ष्मी की मूर्ति के पास ही अष्ट-लक्ष्मियों की पूजा चावल, चन्दन और पुष्प से करें।
ॐ आद्या -लक्ष्म्यै नमः । ॐ विद्या -लक्ष्म्यै नमः ।
ॐ सौभाग्य -लक्ष्म्यै नमः । ॐ अमृत -लक्ष्म्यै नमः।
ॐ कामलक्ष्यै नमः । ॐ सत्य -लक्ष्म्यै नमः।
ॐ भोगा -लक्ष्म्यै नमः। ॐ योग -लक्ष्म्यै नमः।
धूप-समर्पण (Dhoop-Samarpan)
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को धूप समर्पित करें।
वनस्पति रसोद भूतो गन्धाढ़्यो सुमनोहरः ।
आघ्रेयः सर्व देवानां धूपोढ़्यं प्रतिगृहयन्ताम्।।
॥श्री लक्ष्मी -देव्यै धूपं समर्पयामि ॥
मन्त्र अर्थ - अर्थात्-वृक्षों के रस से बनी हुई, सुन्दर, मनोहर, सुगन्धित और सभी देवताओं के सूँघने के योग्य यह धूप आप ग्रहण करें।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये मैं धूप समर्पित करता हूँ॥
दीप-समर्पण (Deep-Samarpan)
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को दीप समर्पित करें।
सज्यम वर्ती -संयुक्तं च , वह्निना योजितं मया ,
दीपम गृहाण देवेशि ! त्रैलोक्य -तिमिरापहम ।
भक्त्या दीपम प्रयच्छामि , श्री लक्ष्म्यै परात्परायै ।
त्राहि मां निर्याद घोराड , दीपोयाम प्रति -गृह्यताम ॥
॥श्री लक्ष्मी -देव्यै दीपम समर्पयामि ॥
मन्त्र अर्थ - हे देवेश्वरि! घी के सहित और बत्ती से मेरे द्वारा जलाया हुआ, तीनों लोकों के अँधेरे को दूर करनेवाला दीपक स्वीकार करें। मैं भक्ति-पूर्वक परात्परा श्रीलक्ष्मी-देवी को दीपक प्रदान करता हूँ। इस दीपक को स्वीकार करें और घोर नरक से मेरी रक्षा करें।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये मैं दीपक समर्पित करता हूँ॥
नैवेद्य-समर्पण (Naivedhya-Samarpan)
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को नैवेद्य समर्पित करें।
शर्करा-खण्ड-खाद्यानि दधि-क्षीर-घृतानि च
आहारो भक्ष्य- भोज्यं च नैवैद्यं प्रति- गृहृताम।।
॥यथामशतः श्री लक्ष्म्यै -देव्यै नैवेद्यम समर्पयामि –
ॐ प्राणाय स्वाहा। ॐ अपानाय स्वाहा ।
ॐ सामान्य स्वाहा । ॐ उदानाय स्वाहा । ॐ व्यानाय स्वाहा ॥
मन्त्र अर्थ - शर्करा-खण्ड (बताशा आदि), खाद्य पदार्थ, दही, दूध और घी जैसी खाने की वस्तुओं से युक्त भोजन आप ग्रहण करें।
॥यथा-योग्य रूप भगवती श्रीलक्ष्मी को मैं नैवेद्य समर्पित करता हूँ - प्राण के लिये, अपान के लिये, समान के लिये, उदान के लिये और व्यान के लिये स्वीकार हो॥
आचमन-समर्पण/जल-समर्पण (Achamana-Samarpan/Jal-Samarpan )
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए आचमन के लिए श्रीलक्ष्मी को जल समर्पित करें।
ततः पनियम समर्पयामि इति उत्तरापोशनं ।
हस्ता -प्रक्षालनाम समर्पयामि । मुख -प्रक्षालनाम ।
करोद्वर्तनार्थे चन्दनम समर्पयामि ।
मन्त्र अर्थ - नैवेद्य के बाद मैं पीने और आचमन (उत्तरा-पोशन) के लिये, हाथ धोने के लिये, मुख धोने के लिये जल और हाथों में लगाने के लिये चन्दन समर्पित करता हूँ।
ताम्बूल-समर्पण (Tambool-Samarpan)
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को ताम्बूल (पान, सुपारी के साथ) समर्पित करें।
पूंगीफ़लं महादिव्यं नागवल्ली दलैर्युतम्।
एला-चूर्णादि संयुक्तं ताम्बुलं प्रतिगृहृताम।।
॥श्री लक्ष्मी -देव्यै मुख -वासरथं पूगी -फलम -युक्तं ताम्बूलं समर्पयामि ॥
मन्त्र अर्थ - पान के पत्तों से युक्त अत्यन्त सुन्दर सुपाड़ी, कपूर और इलायची से प्रस्तुत ताम्बूल आप स्वीकार करें।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी के मुख को सुगन्धित करने के लिये सुपाड़ी से युक्त ताम्बूल मैं समर्पित करता हूँ॥
दक्षिणा (Dakshina)
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को दक्षिणा समर्पित करें।
हिरण्य गर्भ गर्भस्थ हेमबीज विभावसो:।
अनन्त पुण्य फलदा अथ: शान्तिं प्रयच्छ मे।।
॥श्री लक्ष्मी -देव्यै सुवर्ण -पुष्प -दक्षिणाम समर्पयामि ॥
मन्त्र अर्थ - असीम पुण्य प्रदान करनेवाली स्वर्ण-गर्भित चम्पक पुष्प से मुझे शान्ति प्रदान करिये।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये मैं स्वर्ण-पुष्प-रूपी दक्षिणा प्रदान करता हूँ॥
प्रदक्षिणा (Pradakshina)
अब श्रीलक्ष्मी की प्रदक्षिणा (बाएँ से दाएँ ओर की परिक्रमा) के साथ निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को फूल समर्पित करें।
यानि यानि च पापानि , जन्मांतर -कृतानि च ।
तानी तानी विनश्यन्ति , प्रदक्षिणाम पदे पदे ॥
अन्यथा शरणम नास्ति , त्वमेव शरणम देवी !
तस्मात् कारुण्य -भावेन, क्षमास्व परमेश्वरि ॥
॥श्री लक्ष्मी -देव्यै प्रदक्षिणाम समर्पयामि ॥
मन्त्र अर्थ - पिछले जन्मों में जो भी पाप किये होते हैं, वे सब प्रदक्षिणा करते समय एक-एक पग पर क्रमशः नष्ट होते जाते हैं। हे देवि! मेरे लिये कोई अन्य शरण देनेवाला नहीं हैं, तुम्हीं शरण-दात्री हो। अतः हे परमेश्वरि! दया-भाव से मुझे क्षमा करो।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी को मैं प्रदक्षिणा समर्पित करता हूँ॥
वन्दना-सहित पुष्पाञ्जलि (Vandana-Sahit Pushpanjali)
अब वन्दना करे और निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को पुष्प समर्पित करें।
कर -कृतं वा कायजं कर्मजं वा ,
श्रवण -नयनजं वा माणसं वापराधम ।
विडितमविदितं वा , सर्वमेतत क्षमास्व ,
जाया जाया करुणाब्धे , श्री महा -लक्ष्मी त्राहि ।
॥श्री लक्ष्मी -देव्यै मंत्र -पुष्पांजलि समर्पयामि ॥
मन्त्र अर्थ - हे दया-सागर, श्रीलक्ष्मि! हाथों-पैरों द्वारा किये हुये या शरीर या कर्म से उत्पन्न, कानों-आँखों से उत्पन्न या मन के जो भी ज्ञात या अज्ञात मेरे अपराध हों, उन सबको आप क्षमा करें। आपकी जय हो, जय हो। मेरी रक्षा करें।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये मैं मन्त्र-पुष्पांजलि समर्पित करता हूँ॥
साष्टाङ्ग-प्रणाम (Sashtanga-Pranam)
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को साष्टाङ्ग प्रणाम (प्रणाम जिसे आठ अङ्गों के साथ किया जाता है) कर नमस्कार करें।
ॐ भवानी ! तवं महा -लक्ष्मीः सर्व -काम-प्रदायिनी ।
प्रसन्ना संतुष्ठ भाव देवी ! नमोअस्तु ते ।
॥अनेन पूजनेना श्री लक्ष्मी -देवी प्रीयतां , नमो नमः ॥
मन्त्र अर्थ - हे भवानी! आप सभी कामनाओं को देनेवाली महा-लक्ष्मी हैं। हे देवि! आप प्रसन्न और सन्तुष्ट हों। आपको नमस्कार।
॥इस पूजन से श्रीलक्ष्मी देवी प्रसन्न हों, उन्हें बारम्बार नमस्कार॥
क्षमा-प्रार्थना (Kshama-Prarthana)
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए पूजा के दौरान हुई किसी ज्ञात-अज्ञात भूल के लिए श्रीलक्ष्मी से क्षमा-प्रार्थना करें।
आवाहनं न जानामि , न जानामि विसर्जनं ॥
पूजा -कर्म न जानामि , क्षमास्व परमेश्वरि ॥
मंत्र -हीनं क्रिया -हीनं , भक्ति हीनं सुरेश्वरि !
माया यत -पूजितं देवी ! परिपूर्णं तदस्तु में ॥
अनेन यथा -मिलितोपचारा -द्रव्यै कृता पूजनेना श्री लक्ष्मी -देवी प्रीयतां
॥श्री लक्ष्मी -देव्यै अर्पणमस्तु ॥
मन्त्र अर्थ - न मैं आवाहन करना जानता हूँ, न विसर्जन करना। पूजा-कर्म भी मैं नहीं जानता। हे परमेश्वरि! मुझे क्षमा करो। मन्त्र, क्रिया और भक्ति से रहित जो कुछ पूजा मैंने की है, हे देवि! वह मेरी पूजा सम्पूर्ण हो।
यथा-सम्भव प्राप्त उपचार-वस्तुओं से मैंने जो यह पूजन किया है, उससे भगवती श्रीलक्ष्मी प्रसन्न हों।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी को यह सब पूजन समर्पित है॥
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