Thursday, November 8, 2018

Maha Lakshmi Sthavam महा लक्ष्मी स्थावं

Maha Lakshmi Sthavam
महा लक्ष्मी स्थावं

ॐ अस्य श्री महा लक्ष्मी महा मन्थरस्य नारद ऋषि, देवी गयथ्री चन्द श्री महालक्ष्मिर देवथा, स्रीं भीजं, ह्रीं शक्थि, क्लीं कीलकं, ममोपर्थ सर्व दुरिथ उपसमर्थं, सर्व्भीष्ट सिध्यर्थं, महा लक्ष्मी स्थाव जपं करिष्ये, स्राम इथ्यद्षि षडङ्गं. हूर्भुवस्वरोम् इथि दिग् बन्ध.

अध ध्यानं

सरसिजनिलये सरोज हस्थे,
धवल थारंसुक गन्ध मलय शोभे,
हगवथि हरि वल्लभे मनोज्ञे,
त्रिभुवनभूथिकारि प्रसीध मह्यं.

या सा पद्मासनस्थ विपुल कति तति पद्म पथ्रयथक्षि,
गम्भीरवर्थ नाभिस्थानभार नंनिथ, शुब्र वस्थ्रोथरीय,
लक्ष्मीर दिव्यै गजेन्द्रै मणि गण खचित्है स्थापिथ हेम कुम्भै,
र्निथ्यं सा पद्म हस्था मम वसथु गृहे सर्व मङ्गल्य युक्था.

सर्व मङ्गल मङ्गल्ये, शिवे सर्वार्थ साधके,
सारण्ये थ्रयंबिके देवी, नारायणि नमोस्थुथे.

ॐ महा लक्ष्म्यै नाम

सर्व मङ्गल मङ्गल्ये, शिवे सर्वार्थ साधके,
सारण्ये थ्रयंबिके देवी, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 1

नारायणि, महा मये, कोउसेयंबर धारिणी,
पद्म हस्थे, पद्म नयने, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 2

उध्यच्छाथर्क सदृशी, पसन्गुस वरयुधे,
वराभय करे देवी, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 3

ध्येये विधीस विनुथे, परमङ्गे च संस्थिधे,
कोउसेय पीठ वसने, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 4

जनिथ्री सर्व लोकानां, सर्व देव नमस्कृथे,
पद्म द्वय करे देवी, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 5

शुद्धजाम्बुनाध करे, थेजो रोपे, वर प्रधे,
पीथंबर धरे देवी, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 6

आध्यशक्थे, सर्व मूर्थे, विष्णु वमन्ग संस्थिथे,
सर्व भूशोज्ज्वले देवी, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 7

स्रिमतः सोउभग्य धयिनि, रथन कङ्कण शोभिनि,
रथन कुम्भ धरे देवी, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 8

विज्ञान रूपे, सुखधे, सर्व कल्याणि कारिणी,
सर्व सोउभ्ग्यधे देवी, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 9

सनथानि, सदानन्दे, सनकधयापि स्थुथे,
सर्व स्वरूपे, सर्वेसे, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 10

विचिथ्र वग भूथिकारि, विचिथ्राकर रूपिणी,
विचिथ्र महीमे देवी, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 11

अनन्थ कल्याण निधे, अनन्थसन संस्थिथे,
अनन्थथल्प सयाने, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 12

विस्वरूपे, विस्वकये, विस्वम्भर वर प्रिये,
विस्वम्भरधार भूथे, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. १३

पद्मासने, पद्म ऊरु, पद्माक्षी पद्म संभवे,
पद्मनाभ प्रिये देवी, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 14

दारिद्र्य दुख सामानि, दीनर्थि चेदह कारिणी,
करुनमस्रुणा दृष्टि, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 15

सरनप्थ पर्थ्राने, सरनगथ वथ्सले,
श्री पुष्टि कीर्थिधे देवी, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 16

सर्व दुरिथोप सामानि, सर्व दुख विनासिनि,
सर्व सप्तः प्रधे देवी, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 17

सर्णगथ दीनर्थ, पर्थ्रण पारयने,
सर्वस्यर्थि हरे देवी, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 18

ससि शेखर संस्थाने, कमनीय गुणस्रये,
धन धन्य प्रधे देवी, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 19

क्षीर सागर संभूथे, राजनि कर सोशरी,
राज राजर्चिथे देवी, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 20

महाविध्ये, महा मये, महा भय निवारिणी,
महा वनि, महा कलि, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 21

महारथ्यै महा शक्थ्यै, महामथ्यै नमो नाम,
महा वराह विभवे, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 22

मधु कैदब विध्रवे, मधु सूधन वल्लभे,
मधु मास प्रिये देवी, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 23

ससुरसुर गन्धर्वा, पूजिथे परमासने,
सर्व दुष्ट थमो हन्थ्री, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 24

शुभ लक्षण संयुक्थे, शुभ लक्षण लक्षिथे,
शुभ संप्रप्थि कारिणी. महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 25

दुर्गसुर प्राण हन्थ्री, दुर्ग दुर्गथि भन्जने,
दुर्गर्थि भन्जने दुर्गे, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 26

कला रथ्रि, महा माये, कला त्रय स्वरूपिनि,
कलकल प्रिये देवी, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 27

पुरु हूथ प्रिये देवी, पुरुहूथ्नुजा प्रिये,
पुरुषार्थ प्रधे देवी, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 28

विष्णु वक्ष स्थले संस्थे, विस्व व्यापि स्वरूपिनि,
विस्वलोक प्रिये देवी, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 29

गुनथ्रयस्य जननि, गुनथ्राय विधायिनी,
गुण त्रय विवेकग्ने, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 30

ग़ोव्रि, गोदावरी, गङ्गे, गोमथि बिन्दु वासिनि,
जतिले चण्डिके ब्राह्मी, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 31

नारायणि, नाध रूपे, चञ्चले, दण्ड धारिणी,
भद्रे, निध्रे, वैष्णवीथि, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 32

वामे बलाहके देवी, वेद वेदये वर प्रधे,
श्ररस्वथि, वेग वाथि, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 33

भूथिधे स्मृथि रूपेसे, सिथे मेधे च वामने,
द्रोउपदी, रथन मकुते, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 34

रथन मलये, सुधा धरे, श्री देवी, सगरथ्मजे,
माधवी, मधुर न्धे, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 35

कलिन्धि, कामुके, कलि, मकरन्धे, माधलसे,
वारुणी, विघ्न सामानि, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 36

देव धूथि, महा भूथे, पाप नासिनि, भरतहि,
हेमंभुजसने देवी, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 37

पद्म सद्मधिभि वन्ध्ये, पद्म पथ्रयथेक्षणे,
भर्घवि, भाग्य जननि, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 38

नाम कमल वसिन्यै, नारायण्यै नमो नाम,
कृष्ण प्रियायै सथथं, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 39

पद्म पित्रा विसलक्षि, पद्म राग समा प्रभे,
महा पद्म निधे, देवी, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 40

सर्व संपातः स्वरूपिन्यै, सर्वरध्यै नमो नाम,
हरि भक्थि प्रधे, देवी, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 41

कृष्ण वक्ष स्थिथे, कृष्णे, कृष्ण वर्ण प्रशोभिथे,
पूर्ण चन्द्र प्रभे देवी, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 42

सर्व संप्तः अधिष्टथ्री, यशोध गर्भ संभवे,
शोभने, सर्व रथद्ये, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 43

नमो वृधि स्वरूपयै, महा देव्यै नमो नाम,
श्र्वर्ग लक्ष्मी, राज लक्ष्मी, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 44

सर्वधरे विष्णु रूपे, शुध सथ्व स्वरूपिनि,
नारायण परे देवी, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 45

हिरण्य वर्णे, हरिणी, श्र्वर्न राजथस्रजे,
चन्द्रे हिरण्मयी लक्ष्मी, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 46

विष्णोर मनोनुकूलिनि, विष्णु पदोपजीविनि,
विष्णु पथ्नि, विष्णु मये, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 47

नमोस्थेस्थु महा मये, श्री पीदे, सुर पूजिथे,
संक, चक्र, गध हस्थे, महा लक्ष्मी नमोस्थुथे. 48

नमस्थे गरुदरुदे, कोलसुर भयं करि,
सर्व पाप हरे, देवी, महा लक्ष्मी नमोस्थुथे. 49

सर्वज्ञे सर्व वर्धे, सर्व दुष्ट भयं करी,
सर्व दुख हरे, देवी, महा लक्ष्मी नमोस्थुथे. 50

सिधि बुधि प्रधे देवी, भक्थि मुक्थि प्रदायिनी,
मन्थर मूर्थे, सदा देवी, महा लक्ष्मी नमोस्थुथे. 51

अध्यन्थ रहिथे, देवी, अधि शक्थि महेस्वरि,
योगजे योग संभूथे, महा लक्ष्मी नमोस्थुथे. 52

स्थूल सूक्ष्म महा रोउध्रे, महा शक्थि महो धरे,
महा पाप हरे देवी, महा लक्ष्मी नमोस्थुथे. 53

पद्मासना स्थिथे, देवी, पर ब्रह्म स्वरूपिनि,
पर मेसि, जगन मथ, महा लक्ष्मी नमोस्थुथे. 54

श्र्वेथम्बर धरे, देवी, नानालंकर भूषिथे,
जगत स्थिथे, जगद वन्ध्ये, महा लक्ष्मी नमोस्थुथे. 55

नमस्थे हगवथ्यम्ब, क्षमा शीले, परतः परे,
शुध सथ्व स्वरूपयै, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 56

उपमे सर्व सध्वीनाम्, कोपधि परि वर्जिथे,
देवीनां देवी संपूजये, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 57

सर्व जयधे देवी, सर्व शत्रु भयपहे,
सर्वाभीष्ट प्रधे देवी, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 58

सर्वेषां परम मथ, सर्व भन्धव रूपिणी,
चथुर वर्ग प्रधे, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 59

हारिके विपधां रसे, हर्ष मङ्गल धयिके,
चण्डिके, मङ्गल देवी, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 60

मङ्गले च मन्गलग्नि, सर्व मङ्गल मङ्गले,
साथ मन्गलधे देवी, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 61

मन्गलधिषिथे देवी, मङ्गलानां च मङ्गले.,
संसार मन्गलधरे, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 62

सरांस मन्गलधरे, सरासर विवेचनी,
पूज्ये, सुखप्रधे देवी, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 63

यम लोक भव कर्थ्री, यम पूज्ये, यमग्रजे,
यम निग्रह रूपायै, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 64

समा स्वभवे सर्वेसि, सर्व संग विवर्जिथे,
कारुण्य विग्रहे देवी, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 65

कङ्काल क्रूर कामाक्षी, मीनाक्षी कर्म भेदिनि,
माधुर्य रूप शीलय, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 66

महा मन्थर वाथी, मन्थर, गम्ये, मन्थर प्रियन्कारि,
मनुष्य मनसा गम्ये, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 67

आस्वथ वात निम्भाधि, वृक्ष राज स्वरूपिनि,
सर्व वृक्ष आधार भूथे, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 68

दक्षिणय करुणा रूपे, दक्षिण मुर्थ्य वल्लभे,
दक्ष यज्ञ विनसिन्यै, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 69

अचिन्थ्य लक्षणे, अव्यक्थे, अर्ध मथ्रे महेस्वरि,
अम्रुथर्नव मध्यस्थे, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 70

चथु सष्टि कला विधये, चथु सष्टि कलथ्मिके,
चथु सष्टि कला पूज्ये, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 71

कला शोदसा संपूर्णे, कला काष्टधि रूपिणी,
कला कलथ्मिके देवी, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 72

थुलदि कननोतः भूथे, थुलसि वन चारिणी,
थुलसि धाम रसिके, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 73

पञ्चसथ वर्ण सर्वाङ्गे, पञ्चसद वर्ण रूपिणी,
पञ्च थथ्वथ्मिके देवी, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 74

सर्व पाप प्रसमनि, श्रर्वपद्वि निवारिणी,
श्रर्वेस्वर्य प्रिये देवी, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 75

परमाथम प्रिये देवी, परमाथम स्वरूपिनि,
पर परैक रसिके, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 76

महा लक्ष्मी स्थावं पुण्यं, य पदेतः भक्थिमान नर,
सर्व सिधिमवप्नोथि, महालक्ष्मि नमोस्थुथे. 77

अभार्यो लभाथे भार्यां, विनीथं ससुथं सथीं,
सुशीलां सुन्दरीं रम्यं, अथि सुप्रिया वधिनीं. 78

पुत्र पोउथ्र वधीं शुद्धं, कुलजां कोमलंबरां,
अपुत्रो लभाथे पुत्रं, वैष्णवं, चिरान जीविनां. 79

हाथ बन्धुर लबेतः बन्धुं, धन ब्रुष्टो धनं लबेतः,
कीर्थि हीनो लबेतः कीर्थिं, प्रथिष्टं च लबेतः ध्रुवं. 80

येका कालं पदेन नित्यं, महा पाप विनासनं,
ड्विकलम् य पदेन नित्यं, धन धन्य समन्विथ. 81

त्रिकालं य पदेन नित्यं, महा सथृ विनासनं,
महा लक्ष्मीर भावेन नित्यं, प्रसन्न वरद शुभ. 82

इथि श्री महा पुरनन्थर गथ, महालक्ष्मि स्थावं संपूर्णं. |

दीवाली लक्ष्मी षोडशोपचार पूजा विधि

दीवाली लक्ष्मी षोडशोपचार पूजा  विधि

लक्ष्मी पूजा विधि

हम दीवाली के दौरान लक्ष्मी पूजा विधि को विस्तृत रूप से उपलब्ध करा रहे हैं। दीवाली पूजा के लिए लोगों को महा-लक्ष्मी की नवीन प्रतिमा खरीदनी चाहिए। यह पूजा विधि श्री लक्ष्मी की नवीन प्रतिमा या मूर्ति के लिए उपलब्ध कराई गई है। इस पूजा विधि में लक्ष्मीजी की पूजा करने के लिए सोलह चरण शामिल है जिसे षोडशोपचार पूजा के नाम से जाना जाता है।

ध्यान (Dhyana)

भगवती लक्ष्मी का ध्यान पहले से अपने सम्मुख प्रतिष्ठित श्रीलक्ष्मी की नवीन प्रतिमा में करें।

दीवाली के दौरान श्री लक्ष्मी पूजा
या सा पद्मासनस्थ विपुल कति तति पद्म पथ्रयथक्षि,
गम्भीरवर्थ नाभिस्थानभार नंनिथ, शुब्र वस्थ्रोथरीय,
लक्ष्मीर दिव्यै गजेन्द्रै मणि गण खचित्है स्थापिथ हेम कुम्भै,
र्निथ्यं सा पद्म हस्था मम वसथु गृहे सर्व मङ्गल्य युक्था.

मन्त्र अर्थ - भगवती लक्ष्मी कमल के आसन पर विराजमान हैं, कमल की पंखुड़ियों के समान सुन्दर बड़े-बड़े जिनके नेत्र हैं, जिनकी विस्तृत कमर और गहरे आवर्तवाली नाभि है, जो पयोधरों के भार से झुकी हुई और सुन्दर वस्त्र के उत्तरीय से सुशोभित हैं, जो मणि-जटित दिव्य स्वर्ण-कलशों के द्वारा स्नान किए हुए हैं, वे कमल-हस्ता सदा सभी मङ्गलों के सहित मेरे घर में निवास करें।

आवाहन (Aavahan)

श्रीभगवती लक्ष्मी का ध्यान करने के बाद, निम्न मन्त्र पढ़ते हुये श्रीलक्ष्मी की प्रतिमा के सम्मुख आवाहन-मुद्रा दिखाकर, उनका आवाहन करें।

आगच्छा  देव -देवेशि ! तेजोमयी  महा -लक्ष्मी !
क्रियामनाम माया  पूजाम , गृहाण  सुर -वंदिते !
॥श्री  लक्ष्मी -देवी   आवाहयामि ॥

मन्त्र अर्थ - हे देवताओं की ईश्वरि! तेज-मयी हे महा-देवि लक्ष्मि! देव-वन्दिते! आइए, मेरे द्वारा की जानेवाली पूजा को स्वीकार करें।
॥मैं भगवती श्रीलक्ष्मी का आवाहन करता हूँ॥

पुष्पाञ्जलि आसन (Pushpanjali Asana)

आवाहन करने के बाद निम्न मन्त्र पढ़ कर उन्हें आसन के लिये पाँच पुष्प अञ्जलि में लेकर अपने सामने छोड़े।
नाना -रत्न -समायुक्तं , कर्त्ता -स्वर -विभूषिताम ।
आसनं  देव -देवेश ! प्रीत्यर्थं  प्रति -गृह्यताम ॥
॥श्री  लक्ष्मी -देव्यै  आसनार्थे  पञ्च -पुष्पाणि  समर्पयामि ॥

मन्त्र अर्थ - हे देवताओं की ईश्वरि! विविध प्रकार के रत्नों से युक्त स्वर्ण-सज्जित आसन को प्रसन्नता हेतु ग्रहण करें।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी के आसन के लिए मैं पाँच पुष्प अर्पित करता हूँ॥

स्वागत (Swagat)

पुष्पांजलि-रूप आसन प्रदान करने के बाद, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुये हाथ जोड़कर श्रीलक्ष्मी का स्वागत करें।
श्री लक्ष्मी देवी स्वागतम

मन्त्र अर्थ - हे देवि, लक्ष्मि! आपका स्वागत है।

पाद्य (Padya)

स्वागत कर निम्न-लिखित मन्त्र से पाद्य (चरण धोने हेतु जल) समर्पित करें।
पाद्यं गृहाण  देवेशि , सर्व -क्षमा -सामर्थे , भोह !
भक्त्या  समर्पितं  देवी , महा -लक्ष्मी ! नमोस्तु  ते ॥
॥श्री  लक्ष्मी -देव्यै  पाद्यं  नमः ॥

मन्त्र अर्थ - सब प्रकार के कल्याण करने में समर्थ हे देवेश्वरि! पैर धोने का जल भक्ति-पूर्वक समर्पित है, स्वीकार करें। हे महा-देवि, लक्ष्मि! आपको नमस्कार है।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी को पैर धोने के लिए यह जल है-उन्हें नमस्कार॥

अर्घ्य (Arghya)

पाद्य समर्पण के बाद उन्हें अर्घ्य (शिर के अभिषेक हेतु जल) समर्पित करें।
नमस्ते  देव -देवेशि ! नमस्ते  कमल -धारिणी !
नमस्ते  श्री  महा -लक्ष्मी , धनदा -देवी ! अर्घ्यम  गृहाण ।
गंधा -पुष्पाक्षतैर्युक्तं , फल -द्रव्य -समन्वितम ॥
गृहाण  तोयमर्घ्यर्थं , परमेश्वरि  वत्सले !
॥श्री  लक्ष्मी -देव्यै  अर्घ्यम  स्वाह ॥

मन्त्र अर्थ - हे श्री लक्ष्मि! आपको नमस्कार। हे कमल को धारण करनेवाली देव-देवेश्वरि! आपको नमस्कार। हे धनदा देवि, श्रीलक्ष्मि! आपको नमस्कार। शिर के अभिषेक के लिए यह जल (अर्घ्य) स्वीकार करें। हे कृपा-मयि परमेश्वरि! चन्दन-पुष्प-अक्षत से युक्त, फल और द्रव्य के सहित यह जल शिर के अभिषेक के लिये स्वीकार करें।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये अर्घ्य समर्पित है॥

स्नान (Snana)

अर्घ्य के बाद निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को जल से स्नान कराएँ।
गंगासरस्वतीरवापयोश्णीनर्मदाजलैः ।
स्नापितासि  माया  देवी  तथा  शान्तिम  कुरुष्व  में ॥
आदित्यवर्णे  तपसोधिजातो  वनस्पतिस्तव  वृक्षोथ  बिल्वः ।
तस्य  फलानि  तपस्या  नुदन्तु  मयंतरायाश्चा  बाह्य  अलक्ष्मीः ।
॥श्री  लक्ष्मी -देव्यै  जलस्नानं  समर्पयामि ॥

पञ्चामृतस्नान (Panchamrita Snana)

निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को पञ्चामृतस्नान से स्नान कराएँ।
दधि  मधु  घृतश्चैव  पयश्चा  शर्करायुतम ।
पंचामृतं  समानितम  स्नानार्थम  प्रतिगृह्यताम ॥
ॐ  पञ्चनद्यः  सरस्वतीमपियंति  सस्त्रोतसः ।
सरस्वती  तू  पंचधास्योदेशभावत  सरित ।
॥श्री  लक्ष्मी -देव्यै  पंचामृतस्नानं  समर्पयामि ॥

गन्धस्नान (Gandha Snana)

अब निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को गन्ध मिश्रित जल से स्नान कराएँ।
मलयाचल सम्भूतं चन्दनागरूमिश्रितम् ।
चन्दनम  देवदेवेशी  स्नानार्थम  प्रतिगृह्यताम ॥
॥श्री  लक्ष्मी -देव्यै गंधस्नानाम  समर्पयामि ॥

शुद्ध स्नान (Shuddha Snana)

निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को शुद्ध जल से स्नान कराएँ।
मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम् । तदिदं कल्पितं देवि ।
स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥ स्नानार्थ जलं समर्पयामि । ( गंगाजल चढावें )

वस्त्र (Vastra)

निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को मोली के रूप में वस्त्र समर्पित करें।

दिव्याम्बरं  नूतनं  ही  क्षौमम  त्वतिमनोहरम ।
दीयमानं  माया  देवी  ग्रहण  जगदम्बिके ॥
उपैतू  मम  देवसखः  कीर्तिश्च   मणिना  सहा ।
प्रादुर्भूतो  सुराष्ट्रेस्मिन  कीर्तिमृद्धि  ददातु  में ॥
॥श्री  लक्ष्मी -देव्यै  वस्त्रम  समर्पयामि ॥

मधुपर्क (Madhuparka)

श्री लक्ष्मी को दूध व शहद का मिश्रण, मधुपर्क अर्पित करें।
ॐ  कपिलम  दाढ़ी  कुंदेंदुधवलम  मधुसंयुतम ।
स्वर्णपात्रस्थितम  देवी मधुपर्कं  ग्रहण  भोह ॥
॥श्री  लक्ष्मी -देव्यै  मधुपर्कं  समर्पयामि ॥

आभूषण (Abhushana)

मधुपर्क के बाद निम्न मन्त्र पढ़ कर आभूषण चढ़ायें।
रत्नकंकडा  वैदूर्यमुक्ताहारायुतनी  च ।
सुप्रसन्नेना  माणसा  दत्तानि  स्वीकुरुषवा  में ॥
क्षुपतिपापसमलम  ज्येष्ठामलक्ष्मीम  नाशयाम्यहम ।
अभूतिमसमृद्धिं  च  सर्वाणिर्नुदा  में  ग्रहत ॥
॥श्री  लक्ष्मी -देव्यै  आभूषणानि  समर्पयामि ॥

रक्तचन्दन (Raktachandana)

आभूषण के बाद निम्न मन्त्र पढ़ कर श्री लक्ष्मी को लाल चन्दन चढ़ायें।
ॐ  रक्तचन्दनासम्मिश्रम  परिजातासमुद्भवम
माया  दत्तं  गृहाणाशु  चन्दनम  गंधसंयुतम ॥
॥श्री  लक्ष्मी -देव्यै  रक्तचन्दनम  समर्पयामि ॥

सिन्दुर (Sindoor)

निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को तिलक के लिये सिन्दूर चढ़ायें।
ॐ  सिन्दूरं  रक्तवर्णश्च  सिन्दूरतिलकप्रिये ।
भक्त्या  दत्तं  माया  देवी  सिन्दूरं  प्रतिगृह्यताम ॥
॥श्री  लक्ष्मी -देव्यै  सिन्दूरं  समर्पयामि ॥

कुङ्कुम (Kumkuma)

निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को अखण्ड सौभाग्य रूपी कुङ्कुम चढ़ायें।

ॐ  कुंकुमम  कामदं  दिव्यम  कुंकुमम  कामरूपिणाम ।
अखण्डाकामसौभाग्यम  कुंकुमम  प्रतिगृह्यताम ॥
॥श्री  लक्ष्मी -देव्यै  कुंकुमम  समर्पयामि ॥

अबीरगुलाल (Abira-Gulala)

निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को अबीरगुलाल चढ़ायें।
अबिराश्चा  गुललाम  च  चोवा -चंदनमेवा  च ।
श्रृंगारार्थं  माया  दत्तं  ग्रहण  परमेश्वरि ॥
॥श्री  लक्ष्मी -देव्यै  अबिरगुलालम  समर्पयामि ॥

सुगन्धितद्रव्य (Sugandhitadravya)

निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को सुगन्धित द्रव्य चढ़ायें।
ॐ  तैलानी  च  सुगन्धीनि  द्रव्याणि  विविधानि  च ।
माया  दत्तानि  लेपार्थं  ग्रहण  परमेश्वरि ॥
॥श्री  लक्ष्मी -देव्यै  सुगंधित  तैलं  समर्पयामि ॥

अक्षत (Akshata)

निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को अक्षत चढ़ायें।
अक्षताश्चा  सुरश्रेष्ठा  कुंकुमाक्ताः  सुशोभिताः ।
माया  निवेदिता  भक्त्या  पूजार्थं  प्रतिगृह्यताम ॥
॥श्री  लक्ष्मी -देव्यै  अक्षतं  समर्पयामि ॥

गन्ध-समर्पण/चन्दन-समर्पण (Gandha-Samarpan/Chandan-Samarpan)

निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को चन्दन समर्पित करें।
श्री -खंडा -चन्दनम  दिव्यम , गन्धदायम  सुमनोहरम ।
विलेपनं  महा -लक्ष्मी ! चन्दनम  प्रति -गृह्यताम ॥
॥श्री  लक्ष्मी -देव्यै  चन्दनम  समर्पयामि ॥

मन्त्र अर्थ - हे महा-लक्ष्मि! मनोहर और सुगन्धित चन्दन शरीर में लगाने हेतु ग्रहण करें।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये चन्दन समर्पित करता हूँ॥

पुष्प-समर्पण (Pushpa-Samarpan)

निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को पुष्प समर्पित करें।
यथा -प्राप्त -ऋतू -पुष्पैः , विल्व -तुलसी -डालैश्चा !
पूजयामि  महा -लक्ष्मी ! प्रसीदा  में  सुरेश्वरि !
॥श्री  लक्ष्मी -देव्यै  पुष्पम  समर्पयामि ॥
मन्त्र अर्थ - अर्थात्-हे महा-लक्ष्मि! ऋतु के अनुसार प्राप्त पुष्पों और विल्व तथा तुलसी-दलों से मैं आपकी पूजा करता हूँ। हे देवेश्वरि! मुझ पर आप प्रसन्न हों।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये पुष्प समर्पित करता हूँ॥

अङ्ग-पूजन (Anga-Pujan)

निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवती लक्ष्मी के अङ्ग-देवताओं का पूजन करना चाहिए। बाएँ हाथ में चावल, पुष्प व चन्दन लेकर प्रत्येक मन्त्र काउच्चारण करते हुए दाहिने हाथ से श्री लक्ष्मी की मूर्ति के पास छोड़ें।

ॐ  चपलायै  नमः  पादौ  पूजयामि ।
ॐ  चंचलायी  नमः जानुनी  पूजयामि ।
ॐ  कमलायै  नमः कटिं  पूजयामि ।
ॐ  कात्यायन्यै  नमः नाभिम  पूजयामि ।
ॐ  जगन्मात्रे  नमः जेठाराम  पूजयामि ।
ॐ  विश्व -वल्लभायै  नमः वक्ष -स्थलम  पूजयामि ।
ॐ  कमला -वासिन्यै   नमः हस्तौ  पूजयामि ।
ॐ  कमला -पत्राक्ष्यै  नमः नेत्र -त्रयं  पूजयामि ।
ॐ  श्रियै नमः शिरः  पूजयामि ।

अष्ट-सिद्धि पूजा (Ashta-Siddhi Puja)

अङ्ग-देवताओं की पूजा करने के बाद पुनः बाएँ हाथ में चन्दन, पुष्प व चावल लेकर दाएँ हाथ से भगवती लक्ष्मी की मूर्ति के पास ही अष्ट-सिद्धियों की पूजा करें।

ॐ  अणिम्ने  नमः । ॐ  महिम्ने  नमः।
ॐ  गरिम्णे  नमः। ॐ  लघिम्ने  नमः।
ॐ  प्राप्त्यै  नमः। ॐ  प्रकामयी  नमः।
ॐ  ईशितायी  नमः। ॐ  वशितायी नमः।

अष्ट-लक्ष्मी पूजा (Ashta-Lakshmi Puja)

अष्ट-सिद्धियों की पूजा के बाद उपर्युक्त विधि से भगवती लक्ष्मी की मूर्ति के पास ही अष्ट-लक्ष्मियों की पूजा चावल, चन्दन और पुष्प से करें।

ॐ  आद्या -लक्ष्म्यै  नमः । ॐ  विद्या -लक्ष्म्यै  नमः ।
ॐ  सौभाग्य -लक्ष्म्यै  नमः । ॐ  अमृत -लक्ष्म्यै  नमः।
ॐ  कामलक्ष्यै  नमः । ॐ  सत्य -लक्ष्म्यै  नमः।
ॐ  भोगा -लक्ष्म्यै  नमः। ॐ  योग -लक्ष्म्यै  नमः।

धूप-समर्पण (Dhoop-Samarpan)

निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को धूप समर्पित करें।
वनस्पति रसोद भूतो गन्धाढ़्यो  सुमनोहरः ।
आघ्रेयः सर्व देवानां धूपोढ़्यं प्रतिगृहयन्ताम्।।
॥श्री  लक्ष्मी -देव्यै  धूपं  समर्पयामि ॥

मन्त्र अर्थ - अर्थात्-वृक्षों के रस से बनी हुई, सुन्दर, मनोहर, सुगन्धित और सभी देवताओं के सूँघने के योग्य यह धूप आप ग्रहण करें।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये मैं धूप समर्पित करता हूँ॥

दीप-समर्पण (Deep-Samarpan)

निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को दीप समर्पित करें।

सज्यम  वर्ती -संयुक्तं  च , वह्निना  योजितं  मया ,
दीपम  गृहाण  देवेशि ! त्रैलोक्य -तिमिरापहम ।
भक्त्या  दीपम  प्रयच्छामि , श्री  लक्ष्म्यै  परात्परायै ।
त्राहि  मां  निर्याद  घोराड , दीपोयाम  प्रति -गृह्यताम ॥
॥श्री  लक्ष्मी -देव्यै  दीपम  समर्पयामि ॥

मन्त्र अर्थ - हे देवेश्वरि! घी के सहित और बत्ती से मेरे द्वारा जलाया हुआ, तीनों लोकों के अँधेरे को दूर करनेवाला दीपक स्वीकार करें। मैं भक्ति-पूर्वक परात्परा श्रीलक्ष्मी-देवी को दीपक प्रदान करता हूँ। इस दीपक को स्वीकार करें और घोर नरक से मेरी रक्षा करें।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये मैं दीपक समर्पित करता हूँ॥

नैवेद्य-समर्पण (Naivedhya-Samarpan)

निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को नैवेद्य समर्पित करें।
शर्करा-खण्ड-खाद्यानि दधि-क्षीर-घृतानि च
आहारो भक्ष्य- भोज्यं च नैवैद्यं प्रति- गृहृताम।।
॥यथामशतः  श्री  लक्ष्म्यै -देव्यै  नैवेद्यम  समर्पयामि  –
ॐ  प्राणाय  स्वाहा। ॐ  अपानाय स्वाहा ।
ॐ  सामान्य  स्वाहा । ॐ  उदानाय  स्वाहा । ॐ  व्यानाय  स्वाहा ॥

मन्त्र अर्थ - शर्करा-खण्ड (बताशा आदि), खाद्य पदार्थ, दही, दूध और घी जैसी खाने की वस्तुओं से युक्त भोजन आप ग्रहण करें।
॥यथा-योग्य रूप भगवती श्रीलक्ष्मी को मैं नैवेद्य समर्पित करता हूँ - प्राण के लिये, अपान के लिये, समान के लिये, उदान के लिये और व्यान के लिये स्वीकार हो॥

आचमन-समर्पण/जल-समर्पण (Achamana-Samarpan/Jal-Samarpan )

निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए आचमन के लिए श्रीलक्ष्मी को जल समर्पित करें।

ततः  पनियम  समर्पयामि  इति  उत्तरापोशनं ।
हस्ता -प्रक्षालनाम  समर्पयामि । मुख -प्रक्षालनाम ।
करोद्वर्तनार्थे  चन्दनम  समर्पयामि ।

मन्त्र अर्थ - नैवेद्य के बाद मैं पीने और आचमन (उत्तरा-पोशन) के लिये, हाथ धोने के लिये, मुख धोने के लिये जल और हाथों में लगाने के लिये चन्दन समर्पित करता हूँ।

ताम्बूल-समर्पण (Tambool-Samarpan)

निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को ताम्बूल (पान, सुपारी के साथ) समर्पित करें।
पूंगीफ़लं महादिव्यं नागवल्ली दलैर्युतम्।
एला-चूर्णादि संयुक्तं ताम्बुलं प्रतिगृहृताम।।
॥श्री  लक्ष्मी -देव्यै  मुख -वासरथं  पूगी  -फलम -युक्तं  ताम्बूलं  समर्पयामि ॥

मन्त्र अर्थ - पान के पत्तों से युक्त अत्यन्त सुन्दर सुपाड़ी, कपूर और इलायची से प्रस्तुत ताम्बूल आप स्वीकार करें।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी के मुख को सुगन्धित करने के लिये सुपाड़ी से युक्त ताम्बूल मैं समर्पित करता हूँ॥

दक्षिणा (Dakshina)

निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को दक्षिणा समर्पित करें।
हिरण्य गर्भ गर्भस्थ हेमबीज विभावसो:।
अनन्त पुण्य फलदा अथ: शान्तिं प्रयच्छ मे।।
॥श्री  लक्ष्मी -देव्यै  सुवर्ण -पुष्प -दक्षिणाम  समर्पयामि ॥

मन्त्र अर्थ - असीम पुण्य प्रदान करनेवाली स्वर्ण-गर्भित चम्पक पुष्प से मुझे शान्ति प्रदान करिये।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये मैं स्वर्ण-पुष्प-रूपी दक्षिणा प्रदान करता हूँ॥

प्रदक्षिणा (Pradakshina)

अब श्रीलक्ष्मी की प्रदक्षिणा (बाएँ से दाएँ ओर की परिक्रमा) के साथ निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को फूल समर्पित करें।

यानि  यानि  च  पापानि , जन्मांतर -कृतानि  च ।
तानी  तानी  विनश्यन्ति , प्रदक्षिणाम  पदे  पदे ॥
अन्यथा   शरणम  नास्ति , त्वमेव  शरणम  देवी !
तस्मात्  कारुण्य -भावेन, क्षमास्व  परमेश्वरि ॥
॥श्री  लक्ष्मी -देव्यै  प्रदक्षिणाम  समर्पयामि ॥

मन्त्र अर्थ - पिछले जन्मों में जो भी पाप किये होते हैं, वे सब प्रदक्षिणा करते समय एक-एक पग पर क्रमशः नष्ट होते जाते हैं। हे देवि! मेरे लिये कोई अन्य शरण देनेवाला नहीं हैं, तुम्हीं शरण-दात्री हो। अतः हे परमेश्वरि! दया-भाव से मुझे क्षमा करो।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी को मैं प्रदक्षिणा समर्पित करता हूँ॥

वन्दना-सहित पुष्पाञ्जलि (Vandana-Sahit Pushpanjali)

अब वन्दना करे और निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को पुष्प समर्पित करें।
कर -कृतं  वा  कायजं कर्मजं  वा ,
श्रवण -नयनजं  वा  माणसं  वापराधम ।
विडितमविदितं  वा , सर्वमेतत  क्षमास्व ,
जाया  जाया  करुणाब्धे , श्री  महा -लक्ष्मी  त्राहि ।
॥श्री  लक्ष्मी -देव्यै  मंत्र -पुष्पांजलि  समर्पयामि ॥

मन्त्र अर्थ - हे दया-सागर, श्रीलक्ष्मि! हाथों-पैरों द्वारा किये हुये या शरीर या कर्म से उत्पन्न, कानों-आँखों से उत्पन्न या मन के जो भी ज्ञात या अज्ञात मेरे अपराध हों, उन सबको आप क्षमा करें। आपकी जय हो, जय हो। मेरी रक्षा करें।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये मैं मन्त्र-पुष्पांजलि समर्पित करता हूँ॥

साष्टाङ्ग-प्रणाम (Sashtanga-Pranam)

निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को साष्टाङ्ग प्रणाम (प्रणाम जिसे आठ अङ्गों के साथ किया जाता है) कर नमस्कार करें।
ॐ  भवानी ! तवं  महा -लक्ष्मीः  सर्व -काम-प्रदायिनी ।
प्रसन्ना  संतुष्ठ  भाव  देवी ! नमोअस्तु  ते ।
॥अनेन  पूजनेना  श्री  लक्ष्मी -देवी  प्रीयतां , नमो  नमः ॥

मन्त्र अर्थ - हे भवानी! आप सभी कामनाओं को देनेवाली महा-लक्ष्मी हैं। हे देवि! आप प्रसन्न और सन्तुष्ट हों। आपको नमस्कार।
॥इस पूजन से श्रीलक्ष्मी देवी प्रसन्न हों, उन्हें बारम्बार नमस्कार॥

क्षमा-प्रार्थना (Kshama-Prarthana)

निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए पूजा के दौरान हुई किसी ज्ञात-अज्ञात भूल के लिए श्रीलक्ष्मी से क्षमा-प्रार्थना करें।
आवाहनं  न  जानामि , न  जानामि  विसर्जनं ॥
पूजा -कर्म न  जानामि , क्षमास्व  परमेश्वरि ॥
मंत्र -हीनं  क्रिया -हीनं , भक्ति  हीनं  सुरेश्वरि !
माया  यत -पूजितं  देवी ! परिपूर्णं  तदस्तु  में ॥
अनेन  यथा -मिलितोपचारा -द्रव्यै  कृता पूजनेना  श्री  लक्ष्मी -देवी  प्रीयतां
॥श्री  लक्ष्मी -देव्यै  अर्पणमस्तु ॥

मन्त्र अर्थ - न मैं आवाहन करना जानता हूँ, न विसर्जन करना। पूजा-कर्म भी मैं नहीं जानता। हे परमेश्वरि! मुझे क्षमा करो। मन्त्र, क्रिया और भक्ति से रहित जो कुछ पूजा मैंने की है, हे देवि! वह मेरी पूजा सम्पूर्ण हो।
यथा-सम्भव प्राप्त उपचार-वस्तुओं से मैंने जो यह पूजन किया है, उससे भगवती श्रीलक्ष्मी प्रसन्न हों।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी को यह सब पूजन समर्पित है॥

Tuesday, November 6, 2018

दीपावली : पूजन सामग्री की सूची

दीपावली : पूजन सामग्री की सूची

दीपावली का प्रमुख पर्व लक्ष्मी पूजन होता है। इस दिन रात्रि को जागरण करके धन की देवी लक्ष्मी माता का पूजन विधिपूर्वक करना चाहिए एवं घर के प्रत्येक स्थान को स्वच्छ करके वहां दीपक लगाना चाहिए जिससे घर में लक्ष्मी का वास एवं दरिद्रता का नाश होता है। दीपावली पर पूजन सामग्री का विशेष महत्व हैं। आपके लिए प्रस्तुत हैं दीपावली के पूजन सामग्री की सूची:- 

* लक्ष्मीजी का पाना (अथवा मूर्ति)

* गणेशजी की मूर्ति

* सरस्वती का चित्र

* धूप बत्ती (अगरबत्ती)

* चंदन

* कपूर

* केसर

* यज्ञोपवीत 5

* कुंकु

* चावल

* अबीर

* गुलाल, अभ्रक

* हल्दी

* सौभाग्य द्रव्य- मेहँदी

* चूड़ी, काजल, पायजेब,

* बिछुड़ी आदि आभूषण।

* नाड़ा

* रुई

* रोली, सिंदूर

* सुपारी, पान के पत्ते

* पुष्पमाला, कमलगट्टे

* धनिया खड़ा

* सप्तमृत्तिका

* सप्तधान्य

* कुशा व दूर्वा

* पंच मेवा

* गंगाजल

* शहद (मधु)

* शकर

* घृत (शुद्ध घी)

* दही

* दूध

* ऋतुफल (गन्ना, सीताफल, सिंघाड़े इत्यादि)

* नैवेद्य या मिष्ठान्न (पेड़ा, मालपुए इत्यादि)

* इलायची (छोटी)

* लौंग

* मौली

* इत्र की शीशी

* तुलसी दल

* सिंहासन (चौकी, आसन)

* पंच पल्लव (बड़, गूलर, पीपल, आम और पाकर के पत्ते)

* औषधि (जटामॉसी, शिलाजीत आदि)

* चांदी का सिक्का

* लक्ष्मीजी को अर्पित करने हेतु वस्त्र

* गणेशजी को अर्पित करने हेतु वस्त्र

* अम्बिका को अर्पित करने हेतु वस्त्र

* जल कलश (ताँबे या मिट्टी का)

* सफेद कपड़ा (आधा मीटर)

* लाल कपड़ा (आधा मीटर)

* पंच रत्न (सामर्थ्य अनुसार)

* दीपक

* बड़े दीपक के लिए तेल

* ताम्बूल (लौंग लगा पान का बीड़ा)

* श्रीफल (नारियल)

* धान्य (चावल, गेहूं)

* लेखनी (कलम)

* बही-खाता, स्याही की दवात

* तुला (तराजू)

* पुष्प (गुलाब एवं लाल कमल)

* एक नई थैली में हल्दी की गाँठ,

* खड़ा धनिया व दूर्वा आदि

* खील-बताशे

* अर्घ्य पात्र सहित अन्य सभी पात्र

Monday, November 5, 2018

वैभव प्रदाता श्री सूक्त SHRI SUKTAM

वैभव प्रदाता श्री सूक्त SHRI SUKTAM

॥वैभव प्रदाता श्री सूक्त॥
हरिः ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्र​जाम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥१॥

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥२॥

अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम् ।
श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ॥३॥

कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।
पद्मे स्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥४॥

प्रभासां यशसा लोके देवजुष्टामुदाराम् ।
पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥५॥

आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः ।
तस्य फलानि तपसानुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥६॥

उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह ।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ॥७॥

क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद गृहात् ॥८॥

गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।
ईश्वरींग् सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥९॥

मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि ।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥१०॥

कर्दमेन प्रजाभूता सम्भव कर्दम ।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ॥११॥

आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस गृहे ।
नि च देवी मातरं श्रियं वासय कुले ॥१२॥

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥१३॥

आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् ।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥१४॥

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पूरुषानहम् ॥१५॥

यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् ।
सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् ॥१६॥

पद्मानने पद्म ऊरु पद्माक्षी पद्मासम्भवे ।
त्वं मां भजस्व पद्माक्षी येन सौख्यं लभाम्यहम् ॥१७॥

अश्वदायि गोदायि धनदायि महाधने ।
धनं मे जुषताम् देवी सर्वकामांश्च देहि मे ॥१८॥

पुत्रपौत्र धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवे रथम् ।
प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु माम् ॥१९॥

धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः ।
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणं धनमश्नुते ॥२०॥

वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा ।
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु ॥२१॥

न क्रोधो न च मात्सर्य न लोभो नाशुभा मतिः ।
भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तं जपेत्सदा ॥२२॥

वर्षन्तु ते विभावरि दिवो अभ्रस्य विद्युतः ।
रोहन्तु सर्वबीजान्यव ब्रह्म द्विषो जहि ॥२३॥

पद्मप्रिये पद्म पद्महस्ते पद्मालये पद्मदलायताक्षि ।
विश्वप्रिये विष्णु मनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सन्निधत्स्व ॥२४॥

या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी ।
गम्भीरा वर्तनाभिः स्तनभर नमिता शुभ्र वस्त्रोत्तरीया ॥२५॥

लक्ष्मीर्दिव्यैर्गजेन्द्रैर्मणिगणखचितैस्स्नापिता हेमकुम्भैः ।
नित्यं सा पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमाङ्गल्ययुक्ता ॥२६॥

लक्ष्मीं क्षीरसमुद्र राजतनयां श्रीरङ्गधामेश्वरीम् ।
दासीभूतसमस्त देव वनितां लोकैक दीपांकुराम् ॥२७॥

श्रीमन्मन्दकटाक्षलब्ध विभव ब्रह्मेन्द्रगङ्गाधराम् ।
त्वां त्रैलोक्य कुटुम्बिनीं सरसिजां वन्दे मुकुन्दप्रियाम् ॥२८॥

सिद्धलक्ष्मीर्मोक्षलक्ष्मीर्जयलक्ष्मीस्सरस्वती ।
श्रीलक्ष्मीर्वरलक्ष्मीश्च प्रसन्ना मम सर्वदा ॥२९॥

वरांकुशौ पाशमभीतिमुद्रां करैर्वहन्तीं कमलासनस्थाम् ।
बालार्क कोटि प्रतिभां त्रिणेत्रां भजेहमाद्यां जगदीस्वरीं त्वाम् ॥३०॥

सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥३१॥

सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुक गन्धमाल्यशोभे ।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥३२॥

विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम् ।
विष्णोः प्रियसखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम् ॥३३॥

महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नीं च धीमहि ।
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॥३४॥

श्रीवर्चस्यमायुष्यमारोग्यमाविधात् पवमानं महियते ।
धनं धान्यं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः ॥३५॥

ऋणरोगादिदारिद्र्यपापक्षुदपमृत्यवः ।
भयशोकमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥३६॥

य एवं वेद ॐ महादेव्यै च विष्णुपत्नीं च धीमहि ।
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥३७॥

108 Kuber Names Ashtottara Shatanamavali of Lord Kuber

108 Kuber Names Ashtottara Shatanamavali of Lord Kuber

1 ॐ कुबेराय नमः।
2 ॐ धनदाय नमः।
3 ॐ श्रीमाते नमः।
4 ॐ यक्षेशाय नमः।
5 ॐ गुह्य​केश्वराय नमः।
6 ॐ निधीशाय नमः।
7 ॐ शङ्करसखाय नमः।
8 ॐ महालक्ष्मीनिवासभुवये नमः।
9 ॐ महापद्मनिधीशाय नमः।
10 ॐ पूर्णाय नमः।
11 ॐ पद्मनिधीश्वराय नमः।
12 ॐ शङ्ख्यनिधिनाथाय नमः।
13 ॐ मकराख्यनिधिप्रियाय नमः।
14 ॐ सुखसम्पतिनिधीशाय नमः।
15 ॐ मुकुन्दनिधिनायकाय नमः।
16 ॐ कुन्दाक्यनिधिनाथाय नमः।
17 ॐ नीलनित्याधिपाय नमः।
18 ॐ महते नमः।
19 ॐ वरन्नित्याधिपाय नमः।
20 ॐ पूज्याय नमः।
21 ॐ लक्ष्मिसाम्राज्यदायकाय नमः।
22 ॐ इलपिलापतये नमः।
23 ॐ कोशाधीशाय नमः।
24 ॐ कुलोचिताय नमः।
25 ॐ अश्वारूढाय नमः।
26 ॐ विश्ववन्द्याय नमः।
27 ॐ विशेषज्ञानाय नमः।
28 ॐ विशारदाय नमः।
29 ॐ नलकूबरनाथाय नमः।
30 ॐ मणिग्रीवपित्रे नमः।
31 ॐ गूढमन्त्राय नमः।
32 ॐ वैश्रवणाय नमः।
33 ॐ चित्रलेखामनःप्रियाय नमः।
34 ॐ एकपिनाकाय नमः।
35 ॐ अलकाधीशाय नमः।
36 ॐ पौलस्त्याय नमः।
37 ॐ नरवाहनाय नमः।
38 ॐ कैलासशैलनिलयाय नमः।
39 ॐ राज्यदाय नमः।
40 ॐ रावणाग्रजाय नमः।
41 ॐ चित्रचैत्ररथाय नमः।
42 ॐ उद्यानविहाराय नमः।
43 ॐ विहरसुकुथूहलाय नमः।
44 ॐ महोत्सहाय नमः।
45 ॐ महाप्राज्ञाय नमः।
46 ॐ सदापुष्पक वाहनाय नमः।
47 ॐ सार्वभौमाय नमः।
48 ॐ अङ्गनाथाय नमः।
49 ॐ सोमाय नमः।
50 ॐ सौम्यादिकेश्वराय नमः।
51 ॐ पुण्यात्मने नमः।
52 ॐ पुरूहुतश्रियै नमः।
53 ॐ सर्वपुण्यजनेश्वराय नमः।
54 ॐ नित्यकीर्तये नमः।
55 ॐ निधिवेत्रे नमः।
56 ॐ लंकाप्राक्तन नायकाय नमः।
57 ॐ यक्षिनीवृताय नमः।
58 ॐ यक्षाय नमः।
59 ॐ परमशान्तात्मने नमः।
60 ॐ यक्षराजे नमः।
61 ॐ यक्षिणि हृदयाय नमः।
62 ॐ किन्नरेश्वराय नमः।
63 ॐ किंपुरुशनाथाय नमः।
64 ॐ नाथाय नमः।
65 ॐ खट्कायुधाय नमः।
66 ॐ वशिने नमः।
67 ॐ ईशानदक्ष पार्स्वस्थाय नमः।
68 ॐ वायुवाय समास्रयाय नमः।
69 ॐ धर्ममार्गैस्निरताय नमः।
70 ॐ धर्मसम्मुख संस्थिताय नमः।
71 ॐ नित्येश्वराय नमः।
72 ॐ धनाधयक्षाय नमः।
73 ॐ अष्टलक्ष्म्याश्रितलयाय नमः।
74 ॐ मनुष्य धर्मण्यै नमः।
75 ॐ सकृताय नमः।
76 ॐ कोष लक्ष्मी समाश्रिताय नमः।
77 ॐ धनलक्ष्मी नित्यवासाय नमः।
78 ॐ धान्यलक्ष्मीनिवास भुवये नमः।
79 ॐ अश्तलक्ष्मी सदवासाय नमः।
80 ॐ गजलक्ष्मी स्थिरालयाय नमः।
81 ॐ राज्यलक्ष्मीजन्मगेहाय नमः।
82 ॐ धैर्यलक्ष्मी-कृपाश्रयाय नमः।
83 ॐ अखण्डैश्वर्य संयुक्ताय नमः।
84 ॐ नित्यानन्दाय नमः।
85 ॐ सुखाश्रयाय नमः।
86 ॐ नित्यतृप्ताय नमः।
87 ॐ निधित्तरै नमः।
88 ॐ निराशाय नमः।
89 ॐ निरुपद्रवाय नमः।
90 ॐ नित्यकामाय नमः।
91 ॐ निराकाङ्क्षाय नमः।
92 ॐ निरूपाधिकवासभुवये नमः।
93 ॐ शान्ताय नमः।
94 ॐ सर्वगुणोपेताय नमः।
95 ॐ सर्वज्ञाय नमः।
96 ॐ सर्वसम्मताय नमः।
97 ॐ सर्वाणिकरुणापात्राय नमः।
98 ॐ सदानन्दक्रिपालयाय नमः।
99 ॐ गन्धर्वकुलसंसेव्याय नमः।
100 ॐ सौगन्धिककुसुमप्रियाय नमः।
101 ॐ स्वर्णनगरीवासाय नमः।
102 ॐ निधिपीठ समस्थायै नमः।
103 ॐ महामेरुत्तरस्थायै नमः।
104 ॐ महर्षिगणसंस्तुताय नमः।
105 ॐ तुष्टाय नमः।
106 ॐ शूर्पणकज्येष्ठाय नमः।
107 ॐ शिवपूजारताय नमः।
108 ॐ अनघाय नमः।
109 ॐ राजयोगसमायुक्ताय नमः।
110 ॐ राजसेखरपूज्याय नमः।
111 ॐ राजराजाय नमः।

कुबेर पूजा विधि KUBER PUJA VIDHI

कुबेर पूजा विधि KUBER PUJA VIDHI

दीवाली  श्री कुबेर पूजा
आपके पास श्री कुबेर की मूर्ति है तो वह पूजा में उपयोग की जा सकती है। अगर आपके पास कुबेर की मूर्ति नहीं है तो उसके बदले आप तिजोरी या गहनों के बक्से को श्री कुबेर के रूप में मानिये और उसकी पूजा कीजिये। तिजोरी, बक्से आदि की पूजा से पहले सिन्दूर से स्वस्तिक-चिह्न बनाना चाहिए और उस पर 'मौली' बाँधना चाहिए।

ध्यान 
सर्व प्रथम निम्नलिखित मन्त्र द्वारा श्री कुबेर का ध्यान करें।

मनुज –ब्रह्मा –विमान –स्थितम, 
गरुड़ –रत्न –निभं निधि –नायकम। 
शिव –सखम  मुकुटादि –विभूषिताम , 
वर –गड़े दधतं भजे  तुन्दिलम ॥

मन्त्र अर्थ - मानव-स्वरूप विमान पर विराजमान, श्रेष्ठ गरुड़ के समान सभी निधियों के स्वामी, भगवान् शिव के मित्र, मुकुट आदि से सुशोभित और हाथों में वर-मुद्रा एवं गदा धारण करनेवाले भव्य श्रीकुबेर की मैं वन्दना करता हूँ। 

आवाहन 
भगवान् श्रीकुबेर का ध्यान करने के बाद तिजोरी-बक्से आदि के सम्मुख आवाहन-मुद्रा दिखाकर, निम्न मन्त्र द्वारा उनका आवाहन करें।

आवाहयामि  देव ! त्वामिहायाहि  कृपाम  कुरु । 
कोषम  वर्ध्दन्या  नित्यं , तवं  परी–रक्ष  सुरेश्वर ॥ 
॥ श्री  कुबेर –देवम  आवाहयामि ॥

मन्त्र अर्थ - हे देव, सुरेश्वर! मैं आपका आवाहन करता हूँ। आप यहाँ पधारें, कृपा करें। सदा मेरे भण्डार की वृद्धि करें और रक्षा करें। 
॥मैं श्रीकुबेर देव का आवाहन करता हूँ॥

पुष्पाञ्जलि-आसन 
आवाहन करने के बाद निम्न मन्त्र पढ़कर श्रीकुबेर देव के आसन के लिए पाँच पुष्प अञ्जलि में लेकर अपने सामने, तिजोरी-बक्से आदि के निकट छोड़े।
नाना –रत्न –समायुक्तं  कर्त्य –स्वर –विभूषिताम । 
आसनं  देव –देवेश ! प्रीत्यर्थं  प्रति -गृह्यताम ॥ 
॥ श्री  कुबेर -देवाय  आसनार्थे  पंचा -पुष्पाणि  समर्पयामि ॥

मन्त्र अर्थ - हे देवताओं के ईश्वर! विविध प्रकार के रत्न से युक्त स्वर्ण-सज्जित आसन को प्रसन्नता हेतु ग्रहण करें। 
॥भगवान् श्रीकुबेर के आसन के लिए मैं पाँच पुष्प अर्पित करता हूँ॥

नव उपचार पूजन
इसके बाद 'चन्दन-अक्षत-पुष्प-धूप-दीप-नैवेद्य' से भगवान् श्रीकुबेर का पूजन निम्न मन्त्रों द्वारा करें।

ॐ  श्री  कुबेराय  नमः  पद्यों  पद्यम  समर्पयामि । 
ॐ  श्री  कुबेराय  नमः शिरसि  अर्घ्यम  समर्पयामि । 
ॐ  श्री  कुबेराय  नमः गन्धाक्षतं समर्पयामि । 
ॐ  श्री  कुबेराय  नमः पुष्पम  समर्पयामि । 
ॐ  श्री  कुबेराय  नमः धूपं  घ्रापयामि । 
ॐ  श्री  कुबेराय  नमः दीपम  दर्शयामि । 
ॐ  श्री  कुबेराय  नमः नैवेद्यम  समर्पयामि । 
ॐ  श्री  कुबेराय  नमः आचमनीयं  समर्पयामि । 
ॐ  श्री  कुबेराय  नमः ताम्बूलं  समर्पयामि । 

पूजन समर्पण
इस प्रकार पूजन करने के बाद बाएँ हाथ में गन्ध, अक्षत, पुष्प लेकर दाहिने हाथ द्वारा निम्न मन्त्र पढ़ते हुए 'तिजोरी-बक्से' आदि पर छोड़े।

ॐ  श्री  कुबेराय  नमः । 
अनेन  पूजने  श्री  धनाध्यक्ष -श्री  कुबेर  प्रियतम । 
नमो  नमः ।

मन्त्र अर्थ - श्रीकुबेर को नमस्कार! इस पूजन से श्रीकुबेर भगवान् प्रसन्न हों, उन्हें बारम्बार नमस्कार। 

॥इसके साथ श्री-कुबेर पूजा समाप्त हुयी॥ 

DHANVANTRI PUJA VIDHI धन्वन्तरि पूजा विधि

DHANVANTRI PUJA VIDHI धन्वन्तरि  पूजा  विधि


हिन्दू धर्म में धन्वंतरि देवताओं के वैद्य माने गए हैं। धन्वंतरि महान चिकित्सक थे। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार धनवंतरि भगवान विष्णु के अवतार समझे गए हैं। समुद्र मंथन के दौरान धन्वंतरि का पृथ्वी लोक में अवतरण हुआ था।

शरद पूर्णिमा को चंद्रमा, कार्तिक द्वादशी को कामधेनु गाय, त्रयोदशी को धन्वंतरि, चतुर्दशी को काली माता और अमावस्या को भगवती लक्ष्मी जी का सागर से प्रादुर्भाव हुआ था। इसीलिए दीपावली के दो दिन पूर्व धनतेरस को भगवान धन्वंतरि का जन्म धनतेरस के रूप में मनाया जाता है।

धन्वन्तरि  त्रयोदशी के दिन इस पूजा को करें


आचमन
पांच नदीयों का जल पांच पात्र  से तीन बार लेकर आचमन  करें

ॐ  आत्मा -तत्त्वं  शोधयामि  स्वाहा।
ॐ  विद्या -तत्त्वं  शोधयामि  स्वाहा ।
ॐ  शिवा -तत्त्वं शोधयामि स्वाहा ।


सङ्कल्प
 आचमन के बाद पांच पात्र से जल लकर हाथ स्वच्छ करें .
दाहिने हाथ में स्वच्छ जल अक्षत, पुष्प आदि लेकर संकल्प बोलें


पूजा  संकल्प  मंत्र 

ॐ  तत्सत  अद्येतस्य  ब्रह्मनोहनी  द्वितीय -प्रहारार्द्धे  श्वेत-वराह -कल्पे
जम्बू -द्वीप  भारत -खंड  अमुक -प्रदेशे  अमुक -पुण्य -क्षेत्र  कलियुगे
कलि -प्रथम -चराने  अमुक -संवत्सरे  कार्तिक -मासे  कृष्ण -पक्षे
त्रयोदशी -तिथौ  अमुक -वासरे  अमुक -गोत्रोत्पन्नो  अमुक -नाम -अहम्
श्री  धन्वन्तरि -देवता -प्रीति -पूर्वकम  आयुष्य -आरोग्य -ऐश्वर्या -अभिवृद्धयर्थं
श्री  धन्वन्तरि -पूजनामहम  करिष्यामि ।

मन्त्र अर्थ - ॐ तत्सत् (ब्रह्म ही एक-मात्र सत्य है)। आज ब्रह्मा के प्रथम दिवस के इस दूसरे पहर में, श्वेत-वराह नामक कल्प में, 'जम्बू' नामक द्वीप में, 'भरत' के भू-खण्ड में, अमुक नामक 'प्रदेश' में, अमुक पवित्र 'क्षेत्र' में, 'कलियुग' में, 'कलि' के प्रथम चरण में, अमुक 'सम्वत्सर' में, कार्तिक 'मास' में, कृष्ण 'पक्ष' में, त्रयोदशी 'तिथि' में, अमुक 'दिवस' में, अमुक 'मैं' में उत्पन्न, अमुक 'नाम' वाला 'मैं', श्रीधन्वन्तरि देवता की प्रसन्नता-पूर्वक आयु, आरोग्य और ऐश्वर्य की अभिवृद्धि के लिए मैं श्रीधन्वन्तरि की पूजा करूँगा।
इस प्रकार संकल्प पढ़कर दाहिने हाथ में लिया हुआ जल अपने सम्मुख छोड़ दे।


आत्म-शोधन
संकल्प  पाठ के बाद जल अपने पर व् पूजा सामग्री पर छिड़कें
ॐ  अपवित्रः  पवित्रो  व  सर्वावस्थां  गतोपि  व ।
यह  स्मरेत  पुण्डरीकाक्षं  सा  बाह्याभ्यन्तरः  शुचिः ॥
मन्त्र अर्थ - अपवित्र हो या पवित्र अथवा किसी भी दशा में हो, जो कमल-नयन इष्ट – देवता का स्मरण करता है, वह बाहर और भीतर दोनों प्रकार से पवित्र हो जाता है।


ध्यान
भगवान  धन्वन्तरि  का  ध्यान शुद्ध घी के दीपक के सामने करें

भगवान  धन्वन्तरि

चतुर्भुजम  पिता -वस्त्रम  सर्वालंकारा -शोभितं ।
ध्याये  धन्वन्तरिम  देवम  सुरसुरा -नमस्कृतम ॥1॥

युवनाम  पुण्डरीकाक्षं  सर्वाभरणा -भूषिताम ।
दधानममृतस्यैव  कमण्डलूम  श्रिया -युतं ॥2॥

यज्ञ -भोग  -भुजं   देवम  सुरसुरा -नमस्कृतम ।
ध्याये  धन्वन्तरिम  देवम  श्वेताम्बर -धर्म  शुभम ॥3॥

मन्त्र अर्थ - मैं चार भुजाओंवाले, पीले वस्त्र पहने हुए, सभी प्रकार के आभूषणों से सुशोभित, सुरों और असुरों द्वारा वन्दित भगवान् धन्वन्तरि का ध्यान करता हूँ॥१॥
तरुण, कमल-नयन, सभी अलंकारों से विभूषित, अमृत-पूर्ण कमण्डलु लिये हुए, यज्ञ-भाग को खानेवाले, देवों और दानवों से वन्दित, श्री से युक्त, भगवान् धन्वन्तरि का मैं ध्यान करता हूँ॥२-३॥

आवाहन
आवाहन  मुद्रा प्रदर्शित करते हुए भगवान  धन्वन्तरि  का आवाहन  करें दोनों हाथों के को नमस्कार मुद्रा में दोनों  अंगुष्ठों को अंदर मोड़ कर रखें 

आगच्छा  देवा -देवेश ! तेजोराशि  जगत्पते !
क्रियामनाम  माया  पूजाम  ग्रहण  सूरा -सत्तामा !
॥श्री  धन्वन्तरि -देवम  आवाहयामि ॥

मन्त्र अर्थ - हे देवताओं के ईश्वर! तेज-सम्पन्न हे संसार के स्वामिन्! हे देवोत्तम! आइये, मेरे द्वारा की जानेवाली पूजा को स्वीकार करें।
॥मैं भगवान् श्रीधन्वन्तरि का आवाहन करता हूँ॥


पुष्पाञ्जलि
निम्न मंत्र को बोलते हुए पांच पुष्पोव को हाथ में लेकर भगवान  श्री  धन्वन्तरि को पुष्पांजलि दें
नाना -रत्न -समायुक्तं , कर्ता -स्वर -विभूषिताम ।
असणं  देवा -देवेश ! प्रीत्यर्थं  प्रति -गृह्यताम ॥
॥श्री  धन्वन्तरि -देवया  आसनार्थे  पंचा -पुष्पाणि  समर्पयामि ॥

मन्त्र अर्थ - हे देवताओं के ईश्वर! विविध प्रकार के रत्न से युक्त स्वर्ण-सज्जित आसन को प्रसन्नता हेतु ग्रहण करें।
॥भगवान् श्रीधन्वन्तरि के आसन के लिये मैं पाँच पुष्प अर्पित करता हूँ॥


स्वागत  

श्री  धन्वन्तरि -देवा ! स्वागतम ।
मन्त्र अर्थ - हे भगवान् धन्वन्तरि ! आपका स्वागत है।


 पाद्य-समर्पण
भगवान् धन्वन्तरि के चरण जल से धोएं

पद्यम  गृहण देवेश , सर्व -क्षमा -समर्थ , भोह !
भक्त्या  समर्पितं  देवा , लोकनाथ ! नमोअस्तु  ते ॥
॥श्री  धन्वन्तरि -देवया  पद्यम  नमः ॥

मन्त्र अर्थ - सब प्रकार के कल्याण करने में सक्षम हे देवेश्वर! पैर धोने का जल भक्ति-पूर्वक समर्पित है। उसे स्वीकार करें। हे विश्वेश्वर भगवन्! आपको नमस्कार है।
॥भगवान् श्रीधन्वन्तरि को पैर धोने के लिये यह जल है-उन्हें नमस्कार॥


अर्घ्य-समर्पण
शिर के अभिषेक के लिये अर्घ्य करें

नमस्ते  देवा -देवेश ! नमस्ते  धरणी -धरा !
नमस्ते  जगदाधरा ! अर्घ्यायम  प्रति -गृह्यताम ।
गंधा -पुष्पाक्षतैर्युक्तं , पहाला   -द्रव्य -समन्वितम ।
गृहण  तोयमर्घ्यर्थम , परमेश्वर  वत्सला !
॥श्री  धन्वन्तरि -देवया  अर्घ्यम  स्वाहा ॥

मन्त्र अर्थ - हे देवेश्वर! आपको नमस्कार। हे धरती को धारण करनेवाले! आपको नमस्कार। हे जगत् के आधार-स्वरूप! आपको नमस्कार। शिर के अभिषेक के लिये यह जल (अर्घ्य) स्वीकार करें। हे कृपालु परमेश्वर! चन्दन-पुष्प-अक्षत से युक्त, फल और द्रव्य के सहित यह जल शिर के अभिषेक के लिये स्वीकार करें।
॥भगवान् श्रीधन्वन्तरि के लिये अर्घ्य समर्पित है॥


 गन्ध-समर्पण/चन्दन-समर्पण 

श्री -खंडा -चन्दनम  दिव्यम  गन्धाढ्यम  सुमनोहरम ।
विलेपनं  सूरा -श्रेष्ठ ! चन्दनम  प्रति -गृह्यताम ॥
॥श्री  धन्वन्तरि -देवया  चन्दनम  समर्पयामि ॥

मन्त्र अर्थ - हे देवोत्तम! मनोहर और सुगन्धित चन्दन शरीर में लगाने हेतु ग्रहण करें।
॥भगवान् श्रीधन्वन्तरि के लिये चन्दन समर्पित करता हूँ॥


पुष्प-समर्पण

सेवन्तिका -वाकुला -चम्पका -पाटबजैह , पुन्नगा -जाती -करवीरा -रसाला -पुष्पैः ।
विल्व -प्रवाला -तुलसी -दला -मल्लिकाभिस्त्वं , पूजयामि  जगदीश्वर ! में  प्रसीदा ॥
॥श्री  धन्वन्तरि -देवया  पुष्पम  समर्पयामि ॥

मन्त्र अर्थ - हे लोकेश्वर! श्वेत गुलाब (सेमन्ती), बकुल, चम्पा, लाल-पीला कमल, पुन्नाग (लोध्र), मालती, कनेर पुष्पों और बेल, मूँगे, तुलसी तथा मालती की पत्तियों द्वारा मैं आपकी पूजा करता हूँ। मुझ पर आप प्रसन्न हों।
॥भगवान् श्रीधन्वन्तरि के लिये पुष्प समर्पित करता हूँ॥


धूप-समर्पण

वनस्पति -रसोद्भूतो  गन्धाढ्यः  सुमनोहरः ।
अग्रेयह सर्व -देवानाम , धूपवायाम  प्रति -गृह्यताम ॥
॥श्री  धन्वन्तरि -देवया  धूपं  समर्पयामि ॥

मन्त्र अर्थ - वृक्षों के रस से बनी हुई, सुन्दर, मनोहर, सुगन्धित और सभी देवताओं के सूँघने के योग्य यह धूप आप ग्रहण करें।
॥भगवान् श्रीधन्वन्तरि के लिये मैं धूप समर्पित करता हूँ॥


दीप-समर्पण
सज्यम  वर्ती -संयुक्तं  च  वह्निना  योजितं  माया ,
दीपम  गृहण  देवेश ! त्रैलोक्य -तिमिरापहम ।
भक्त्या  दीपम  प्रयच्छामि  देवया  परमात्मने ।
त्राहि  मां  निरायड  घोरडिपोअयम  प्रति -गृह्यताम ॥
॥श्री  धन्वन्तरि -देवया  दीपम  समर्पयामि ॥

मन्त्र अर्थ - हे देवेश्वर! घी के सहित और बत्ती से मेरे द्वारा जलाया हुआ, तीनो लोकों के अँधेरे को दूर करनेवाला दीपक स्वीकार करें। मैं भक्ति-पूर्वक परमात्मा भगवान् को दीपक प्रदान करता हूँ। इस दीपक को स्वीकार करें और घोर नरक से मेरी रक्षा करें।
॥भगवान् श्रीधन्वन्तरि के लिये मैं दीपक समर्पित करता हूँ॥


 नैवेद्य-समर्पण
शर्करा -खंडा -खाद्यानि  दधि -क्षीरा -घृतनि  च ।
अहारो भक्ष्य -भोज्यं  च  नैवेद्यम  प्रति -गृह्यताम ।

॥यथामशतः  श्री  धन्वन्तरि -देवया  नैवेद्यम  समर्पयामि –
ॐ  प्राणाय  स्वाहा । ॐ  अपानाय स्वाहा । ॐ  व्यानाय  स्वाहा ।
ॐ  उदानाय  स्वाहा । ॐ  समानय  स्वाहा ॥
मन्त्र अर्थ - शर्करा-खण्ड (बताशा आदि), खाद्य पदार्थ, दही, दूध और घी जैसी खाने की वस्तुओं से युक्त भोजन आप ग्रहण करें।
॥यथा-योग्य रूप भगवान् श्रीधन्वन्तरि को मैं नैवेद्य समर्पित करता हूँ-प्राण के लिये, अपान के लिये, व्यान के लिये, उदान के लिये और समान के लिये स्वीकार हो॥


आचमन-समर्पण/जल-समर्पण

ततः  पनियम  समर्पयामि  इति उत्तरापोशनं ।
हस्ता -प्रक्षालनाम  समर्पयामि । मुख -प्रक्षालनाम ।
करोद्वर्तनार्थे  चन्दनम  समर्पयामि ।

मन्त्र अर्थ - नैवेद्य के बाद मैं पीने और आचमन (उत्तरा-पोशन) के लिये, हाथ धोने के लिये, मुख धोने के लिये जल और हाथों में लगाने के लिये चन्दन समर्पित करता हूँ।

ताम्बूल-समर्पण

पूगी -फलम  महा -दिव्यम  नागा -वल्ली-दलैर्युतम ।
कर्पूरैला -समायुक्तं  ताम्बूलं  प्रति -गृह्यताम ॥
॥श्री  धन्वन्तरि  देवया  मुख -वासरथं  पूगी -पहला -युक्तं  ताम्बूलं  समर्पयामि ॥

मन्त्र अर्थ - पान के पत्तों से युक्त अत्यन्त सुन्दर सुपाड़ी, कपूर और इलायची से प्रस्तुत ताम्बूल आप स्वीकार करें।
॥भगवान् श्रीधन्वन्तरि के मुख को सुगन्धित करने के लिये सुपाड़ी से युक्त ताम्बूल मैं समर्पित करता हूँ॥


दक्षिणा

हिरण्य -गर्भा -गर्भस्थं  हेम -विजम  विभावसोः ।
अनंता -पुण्य -फलदमतः  शान्तिम  प्रयच्छा  में ॥
॥श्री  धन्वन्तरि  देवया  सुवर्ण -पुष्प -दक्षिणाम  समर्पयामि ॥

मन्त्र अर्थ - असीम पुण्य प्रदान करनेवाले स्वर्ण-गर्भित चम्पक पुष्प से मुझे शान्ति प्रदान करिये।
॥भगवान् श्रीधन्वन्तरि के लिये मैं स्वर्ण-पुष्प-रुपी दक्षिणा प्रदान करता हूँ॥

प्रदक्षिणा
पुश हाथ में लेकर  बाएं से दाएं प्रदक्षिणा करें

यानि  की  च  पापानि  जन्मांतर -कृतानि  च ।
तानी  तानी  विनश्यन्ति  प्रदक्षिणाम  पदे पदे॥
अन्यथा  शरणम  नास्ति  त्वमेव  शरणम  प्रभो !
तस्मात्  कारुण्य -भावना  क्षमस्व  परमेश्वर ॥
॥श्री  धन्वन्तरि  देवया  प्रदक्षिणाम  समर्पयामि ॥

मन्त्र अर्थ - पिछले जन्मों में जो भी पाप किये होते हैं, वे सब प्रदक्षिणा करते समय एक-एक पग पर क्रमशः नष्ट होते जाते हैं। हे प्रभो! मेरे लिये कोई अन्य शरण देनेवाला नहीं है, तुम्हीं शरण-दाता हो। अतः हे परमेश्वर! दया-भाव से मुझे क्षमा करो।
॥भगवान् श्रीधन्वन्तरि को मैं प्रदक्षिणा समर्पित करता हूँ॥

वन्दना-सहित पुष्पाञ्जलि
पुष्पों के साथ वंदना करें

करा -कृतं  व  कयजाम  कर्मजं  व , श्रवण -नयनजं  व  माणसं  वापराधम ।
विडितमविदितं  व  सर्वमेतत  क्षमस्व , जय  जय  करुणाब्धे , श्री  महा  देवा  शम्भो !
॥श्री  धन्वन्तरि  देवतायै  मंत्र -पुष्पम  समर्पयामि ॥

मन्त्र अर्थ - हे दया-सागर, श्री महा-देव, कल्याण-कर! हाथों-पैरों द्वारा किये हुए या शरीर या कर्म से उत्पन्न, कानों-आँखों से उत्पन्न या मन के जो भी ज्ञात या अज्ञात मेरे अपराध हों, उन सबको आप क्षमा करें। आपकी जय हो, जय हो।
॥भगवान् श्रीधन्वन्तरि के लिये मैं मन्त्र-पुष्पांजलि समर्पित करता हूँ॥

साष्टाङ्ग-प्रणाम

नमः  सर्व -हितार्थाय  जगदाधरा -हेतवे ।
साष्टांगोयम  प्रयत्नेन  माया  कृतः ॥
नमोअस्त्वनन्ताय  सहस्रा -मूर्तये  सहस्रा -पदाक्षि -शिरोरु -बहावे ।

मन्त्र अर्थ - सभी का कल्याण करनेवाले, जगत् के आधारभूत आपके लिये मैंने प्रयत्न-पूर्वक यह साष्टाङ्ग प्रणाम किया है-अनन्त भगवान् के लिये, सहस्रों स्वरुपवाले भगवान् के लिये, सहस्रों पैर-आँख-शिर-ऊर और बाहुवाले भगवान् के लिये नमस्कार है।

क्षमा-प्रार्थना

आवाहनं  न  जानामि  न  जानामि  विसर्जनं ।
पूजा -कर्मा  न  जानामि  क्षमस्व  परमेश्वर ॥
मंत्र -हिनम  क्रिया -हिनम  भक्ति -हिनम  सुरेश्वर !
माया  यात -पूजितं  देवा ! परिपूर्णं  तदस्तु  में ॥
अपराध -सहस्राणि  क्रियन्तेहर्निशं  मया।
दासोअहमिति  मां  मत्वा  क्षमस्व  परमेश्वर ।
विधेहि  देवा ! कल्याणम  विधेहि  विपुलं  श्रियम ।
रूपम  देहि , जायँ  देहि , यशो  देहि , द्विषो  जाहि ॥
यस्य  स्मृत्या  च  नामोक्त्या  तपो -यज्ञ -क्रियादिषु ।
न्यूनम  सम्पूर्णतम  यति  सद्यो  वनडे  तमच्युतम ॥
अन्ना  यथा -मिलितोपचारा -द्रव्यैः  कृता-पूजनेना  श्री  धन्वन्तरि -देवः  प्रियतम ।

॥श्री  धन्वन्तरि -देवरपानमस्तु ॥

मन्त्र अर्थ - न मैं आवाहन करना जानता हूँ, न विसर्जन करना। पूजा-कर्म भी मैं नहीं जानता। हे परमेश्वर! मुझे क्षमा करो। मन्त्र, क्रिया और भक्ति से रहित जो कुछ पूजा मैंने की है, हे भगवन्! वह मेरी पूजा सम्पूर्ण हो। मैं रात-दिन सहस्रों अपराध किया करता हूँ। 'मैं दास हूँ'-ऐसा मानकर, हे परमेश्वर! मुझे क्षमा करें। हे भगवन्! मुझे रूप, विजय और यश दें। मेरे शत्रुओं का नाश करें।
तपस्या और यज्ञादि क्रियाओं में जिनके नाम का स्मरण और उच्चारण करने से सारी कमी तुरन्त पूरी हो जाती है, मैं उन अच्युत भगवान् की वन्दना करता हूँ।
यथा-सम्भव प्राप्त उपचार-वस्तुओं से मैंने जो यह पूजन किया है, उससे भगवान् श्रीधन्वन्तरि प्रसन्न हों।
॥भगवान् श्रीधन्वन्तरि को यह सब पूजन समर्पित है॥




भगवान धन्वंतरि को प्रसन्न करने का अत्यंत सरल मंत्र है:

ॐ धन्वंतराये नमः॥

आरोग्य प्राप्ति हेतु धन्वंतरि देव का पौराणिक मंत्र 

ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये:
अमृतकलश हस्ताय सर्व भयविनाशाय सर्व रोगनिवारणाय
त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप
श्री धनवंतरी स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः॥

अर्थात् परम भगवन को, जिन्हें सुदर्शन वासुदेव धन्वंतरि कहते हैं, जो अमृत कलश लिए हैं, सर्व भयनाशक हैं, सर्व रोग नाश करते हैं, तीनों लोकों के स्वामी हैं और उनका निर्वाह करने वाले हैं; उन विष्णु स्वरूप धन्वंतरि को सादर नमन है।

पवित्र  धन्वंतरि स्तो‍त्र : 

ॐ शंखं चक्रं जलौकां दधदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः।
सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक परिविलसन्मौलिमंभोजनेत्रम॥
कालाम्भोदोज्ज्वलांगं कटितटविलसच्चारूपीतांबराढ्यम।
वन्दे धन्वंतरिं तं निखिलगदवनप्रौढदावाग्निलीलम॥

विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )