Tuesday, October 17, 2017

यमराज पूजन के 3 तरीके

 यमराज पूजन के 3 तरीके

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धनतेरस यम दीपदान विषेश

* घर के मुख्य द्वार पर यम के लिए आटे का दीपक बनाकर अनाज की ढेरी पर  रखें।

* रात को दक्षिण दिशा में घर की स्त्रियां बड़े दीपक में तेल डालकर चार बत्तियां जलाएं।

* एक दीपक घर के मंदिर में जलाकर जल, रोली, चावल, गुड़, फूल, नैवेद्य आदि सहित यम का पूजन करें।

यमराज का मंत्र :


'मृत्युना दंडपाशाभ्याम्‌ कालेन श्यामया सह।
त्रयोदश्यां दीपदानात्‌ सूर्यजः प्रयतां मम।



धनत्रयोदशी पर करणीय कृत्यों में से एक महत्त्वपूर्ण कृत्य है, यम के निमित्त दीपदान। 

निर्णयसिन्धु में निर्णयामृत और स्कन्दपुराण के कथन से कहा गया है कि ‘कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को घर से बाहर प्रदोष के समय यम के निमित्त दीपदान करने से अकालमृत्यु का भय दूर होता है।'

यमदेवता भगवान् सूर्य के पुत्र हैं, उनकी माता का नाम संज्ञा है।

वैवस्वत मनु, अश्विनीकुमार एवं रैवंत उनके भाई हैं तथा यमुना जी उनकी बहिन है।

यमराज प्रत्येक प्राणी के शुभाशुभ कर्मों के अनुसार गति देने का कार्य करते हैं इसी कारण उन्हें धर्मराज कहा गया है।

इस सम्बन्ध में वे त्रुटि रहित व्यवस्था की स्थापना करते हैं।
उनका पृथक् से एक लोक है जिसे उनके नाम से ही ‘यमलोक' कहा जाता है।

ऋग्वेद (९ /११ /७ ) में कहा गया है कि इनके लोक में निरन्तर अनश्वर अर्थात् जिसका नाश न हो ऐसी ज्योति जगमगाती रहती है।

यह लोक स्वयं अनश्वर है और इसमें कोई मरता नहीं हैं।

यम की आँखें लाल हैं, उनके हाथ में पाश रहता है।
इनका शरीर नीला है और ये देखने में उग्र हैं।

भैंसा इनकी सवारी हैं, ये साक्षात् काल हैं।

यम-दीपदान....

स्कन्दपुराण में कहा गया है कि कार्तिक के कृष्ण पक्ष में त्रयोदशी के प्रदोषकाल में यमराज के निमित्त दीप और नैवेद्य समर्पित करने पर अपमृत्यु अर्थात् अकाल मृत्यु का नाश होता है, ऐसा स्वयं यमराज ने कहा था।

यम-दीपदान के लिए मिट्टी का एक बड़ा दीपक लें और उसे स्वच्छ जल से धो लें।

तदुपरान्त स्वच्छ रुई लेकर दो लम्बी बत्तियॉं बना लें।
उन्हें दीपक में एक -दूसरे पर आड़ी इस प्रकार रखें कि दीपक के बाहर बत्तियों के चार मुँह दिखाई दें।

अब उसे तिल के तेल से भर दें और साथ ही उसमें कुछ काले तिल भी डाल दें।

इस प्रकार तैयार किए गए दीपक का रोली, अक्षत एवं पुष्प से पूजन करें, उसके पश्चात् घर के मुख्य दरवाजे के बाहर थोड़ी -सी खील अथवा गेहूँ से ढेरी बनाकर उसके ऊपर दीपक को रखना है।

दीपक को रखने से पहले प्रज्वलित कर लें और दक्षिण दिशा की ओर देखते हुए निम्मलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए चार मुँह के दीपक को खील आदि की ढेरी के ऊपर रख दें।

मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन च मया सह। त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतामिति।

अर्थात:- त्रयोदशी को दीपदान करने से मृत्यु, पाश, दण्ड, काल और लक्ष्मी के साथ सूर्य-नन्दन यम प्रसन्न हों।

‘स्कन्द’ आदि पुराणों में, 'निर्णयसिन्धु’ आदि धर्मशास्त्रीय निबन्धों में एवं ‘ज्योतिष सागर’ जैसी पत्रिकाओं में धनत्रयोदशी के करणीय कृत्यों में यमदीपदान को प्रमुखता दी जाती है।

कभी आपने सोचा है कि धनत्रयोदशी पर यह
दीपदान क्यों किया जाता है.?

हिन्दू धर्म में प्रत्येक करणीय कृत्य के पीछे कोई न कोई पौराणिक कथा अवश्य जुड़ी होती हैं।
धनत्रयोदशी पर यम-दीपदान भी इसी प्रकार पौराणिक कथा से जुड़ा हुआ है।

स्कन्दपुराण के वैष्णवखण्ड के अन्तर्गत कार्तिक मास महात्म्य में इससे सम्बन्धित पौराणिक कथा का संक्षिप्त उल्लेख हुआ है।

एक बार यमदूत बालकों एवं युवाओं के प्राण हरते समय परेशान हो उठे।
उन्हें बड़ा दुःख हुआ कि वे बालकों एवं युवाओं के प्राण हरने का कार्य करते हैं, परन्तु करते भी क्या.? उनका कार्य ही प्राण हरना ही है।

अपने कर्तव्य से वे कैसे च्युत होते?

एक और कर्तव्यनिष्ठा का प्रश्न था, दुसरी ओर जिन बालक एवं युवाओं का प्राण हरकर लाते थे, उनके परिजनों के दुःख एवं विलाप को देखकर स्वयं को होने वाले मानसिक क्लेश का प्रश्न था।

ऐसी स्थिति में जब वे बहुत दिन तक रहने लगे, तो विवश होकर वे अपने स्वामी यमराज के पास पहुँचे और कहा कि-‘‘महाराज, आपके आदेश के अनुसार हम प्रतिदिन वृद्ध, बालक एवं युवा व्यक्तियों के प्राण हरकर लाते हैं, परन्तु जो अपमृत्यु के शिकार होते हैं, उन बालक एवं युवाओं के प्राण हरते समय हमें मानसिक क्लेश होता है।

उसका कारण यह है कि उनके परिजन अत्याधिक विलाप करते हैं और जिससे हमें बहुत अधिक दुःख होता है।
क्या बालक एवं युवाओं को असामयिक मृत्यु से छुटकारा नहीं मिल सकता है ?’’

ऐसा सुनकर धर्मराज बोले ‘‘दूतगण तुमने बहुत अच्छा प्रश्न किया है, इससे पृथ्वी वासियों का कल्याण होगा।

कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को प्रतिवर्ष प्रदोषकाल में जो अपने घर के दरवाजे पर निम्नलिखित मन्त्र से उत्तम दीप देता है, वह अपमृत्यु होने पर भी यहॉं ले आने के योग्य नहीं है।

मृत्युना पाश्दण्डाभ्यां कालेन च मया सह।
त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतामिति॥

उसके बाद से ही अपमृत्यु अर्थात असामयिक मृत्यु से बचने के उपाय के रूप में धन-त्रयोदशी पर यम के निमित्त दीपदान एवं नैवेद्य समर्पित करने का कृत्य प्रतिवर्ष किया जाता है।

यमराज की सभा...

देवलोक की चार प्रमुख सभाओं में से एक है ‘यमसभा'

यमसभा का वर्णन महाभारत के सभापर्व में हुआ है, इस सभा का निर्माण विश्वकर्मा जी ने किया था।

यह अत्यन्त विशाल सभा है, इसकी १०० योजन लम्बाई एवं १०० योजन लम्बाई एवं १०० योजन चौड़ाई है।

इस प्रकार यह वर्गाकार है।

यह सभा न तो अधिक शीतल है और न ही अधिक गर्म है अर्थात् यहा का तापक्रम अत्यन्त सुहावना है।
यह सभी के मन को अत्यन्त आनन्द देने वाली है।

न वहॉं शोक हैं, न बुढ़ापा है, न भूख है, न प्यास है और न ही वहॉं कोई अप्रिय वस्तु है।

इस प्रकार वहॉं दुःख, कष्ट एवं पीड़ा के करणों का अभाव है।
वहॉं दीनता, थकावट अथवा प्रतिकूलता नाममात्र को भी नही है।

वहा सदैव पत्रित सुगन्ध वाली पुष्प मालाएँ एवं अन्य कई रम्य वस्तुएँ विद्यमान रहती हैं।

यमसभा में अनेक राजर्षि और ब्रह्मर्षि यमदेव की उपासना करते रहते हैं।

ययाति, नहुश, पुरु, मान्धाता, कार्तवीर्य, अरिष्टनेमी, कृती, निमि, प्रतर्दन, शिवि आदि राजा मरणोणरान्त यहां बैठकर उपासना करते हैं।

कठोर तपस्या करने वाले, उत्तम व्रत का पालन करने वाले सत्यवादी, शान्त, संन्यासी तथा अपने पुण्यकर्म से शुध्द एवं पवित्र महापुरुषों का ही इस सभा में प्रवेश होता है।

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विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )