Friday, October 27, 2017

जगह स्थान का बंधन

 जगह  स्थान  का  बंधन


दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      

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बाघ  बिजली  सर्प  चोर  चारो  बाँधूँ   एक  ठोर  धरती  माता  आकाश  पिता  रक्ष  रक्ष  श्री  परमेश्वरि  कालका  की  वाचा  दुहाई  ईश्वर   महादेव  की  आदेश

 11 बार  जप  कर  3 ताली  बजाओ  जगह  स्थान  का  बंधन  हो  जायेगा  |








सूर्य देव के बारे में रोचक जानकारी

सूर्य  देव  के बारे में रोचक जानकारी


दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      

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सूर्य से पृथ्वी की दूरी कितनी है ?, सूर्य पृथ्वी से कितना बड़ा है ?, सूर्य का प्रकाश कितनी दंर में धरती पर पहुंचता है ? क्या आपने कभी इन सवालों के जवाब जानना चाहे ? अगर हाँ, तो आज आपको इनके जवाब तो मिलेगे ही साथ में सूर्य के बारे में 34 ग़ज़ब रोचक तथ्य भी मिलेगे.

1. सूर्य द्वारा छोड़े गए 800 अरब से ज्यादा न्यूट्राॅन आपके शरीर में से गुजर गये होंगे जब तक आपने ये वाक्य पढ़ा है.

2. हमारी आकाशगंगा में 200,000,000,000 तारे मौजूद है इनमें से एक सूर्य भी है जो पृथ्वी के सबसे नजदीक का तारा है.

3. सूर्य के भीतरी भाग का तापमान 14,999,726 डिग्री सेल्सियस और ऊपरी सतह का तापमान 5507 °C है.

4. सूर्य 4.6 अरब साल पुराना है. अभी इसकी हाइड्रोजन खत्म होने में 5 अरब साल और लगेगे.

5. सूर्य हमारे सोलर सिस्टम की सबसे बड़ी वस्तु है. यह इतना बड़ा है कि इसमें 13 लाख पृथ्वी समा सकती है.

6. सूरज के प्रकाश को धरती तक पहुंचने में 499 seconds यानि 8.3 मिनट लगते है.

7. सूर्य एक गैस का गोला है यह 72% Hydrogen, 26% Helium और 2% Carbon & Oxygen से मिलकर बना हुआ है. इस पर कुछ भी ठोस नही है.

8. सूर्य का गुरूत्वाकर्षण बल इतना शक्तिशाली है कि 6 अरब दूर स्थित प्लूटों ग्रह भी अपनी कक्षा में घूम रहा है.

9. अगर कोई भी वस्तु सूरज के 20 लाख 22 हज़ार किलोमीटर के दायरे में आती है तो सूर्य उसे अपनी तरफ खींच लेता है.

10. यदि पृथ्वी पर आपका वजन 1 किलो है तो यह सूर्य पर 27 किलो हो जाएगा. क्योंकि सूर्य का गूरूत्वाकर्षण बल धरती से 27 गुना ज्यादा है.

11. सूर्य का व्यास 1,392,684 km है यानि पृथ्वी से 109 गुना बड़ा.

12. सूर्य का वजन 2 octillion ton है. मतलब, पृथ्वी से 333,060 गुना वज़नदार. (2 octillion tons = 1,989,100,000,000,000,000,000 billion kg).

13. हमारे सौरमंडल में मौजूद सभी ग्रह सूर्य के चारों और चक्कर लगाते है और जितने दिन में ये एक चक्कर लगाते है वहाँ उतने ही दिन का साल बन जाता है जैसे पृथ्वी अपना चक्कर 365 दिनों में पूरा करती है.

14. आकाशगंगा में 5% ऐसे तारें भी है जो सूरज से ज्यादा बड़े और चमकदार है.

15. सूर्य पर मौजूद 7 करोड़ टन hydrogen, हर सेकंड 6 करोड़ 95 लाख टन helium और 5 लाख टन gamma किरणों में बदल रही है. यही सूर्य की तेज रोशनी का कारण भी है.

16. यदि एक पेंसिल की नोक जितना सूरज पृथ्वी पर आ जाए तो भी 145km दूर से ही आपकी जलकर मौत हो जाएगी.

17. सूर्य, पृथ्वी से 14 करोड़ 96 लाख किलोमीटर की दूरी पर है. यदि एक चीता आज पृथ्वी से दौड़ना शुरू करे तो उसे सूर्य तक पहुंचने में 151 साल लग जाएगे.

18. यदि धरती से 1500ft/sec की स्पीड से सूरज की तरफ गोली मारी जाए तो इसे वहाँ तक पहुंचने में 10 साल लग जाएगे.

19. यदि सूर्य के बीच से एक बूँद जितना भाग उठाकर धरती पर रख दिया जाए तो दुनिया की ऐसी कोई चीज नही जो उसे 150 किलोमीटर तक नीचे जाने से रोक दे.

20. सौरमंडल का 99.86% वजन अकेले सूर्य का है.

21. नार्वे अकेला ऐसा देश है जहाँ 76 दिन तक सूरज नही छिपता.

22. जितनी दूर पृथ्वी से चंद्रमा है उससे 400 गुना ज्यादा दूर सूर्य है. और यह आकार में भी चंद्रमा से 400 गुना बड़ा है.

23. अगर सूर्य की एक घंटे की सारी energy को सोलर प्लेटों के सहारे बिजली में convert करे तो यह दुनिया की एक साल की बिजली की खपत के बराबर होगी.

24. जैसे पृथ्वी को अपनी धुरी के समक्ष चक्कर पूरा करने में 24 घंटे लगते है वैसे ही सूर्य को 25 दिन लगते है.

25. अगर धरती का आकार मटर के दाने जितना और बृहस्पति का आकार एक गोल्फ बाॅल जितना कर दिया जाए तो सूर्य का आकार एक फुटबाॅल जितना होगा.

26. हर second सूर्य से एक ख़रब परमाणु बमों जितनी एनर्जी निकल रही है.

27. सूर्य के अंदर nuclear fusion रिएक्शन होती है ये बिल्कुल hydrogen bomb के फूटने पर होने वाली रिएक्शन जैसी है.

28. सूर्य का असली रंग सफेद है इसके वातावरण की वजह से ये पीला दिखाई पड़ता है.

29. यदि पूरी धरती पर सौर ऊर्जा की प्लेट लगा दी जाए तो हर एक मीटर से 164 watt बिजली बनेगी.

30. सूर्य ग्रहण तब होता है जब सूर्य और पृथ्वी के बीच में चंद्रमा आ जाता है. यह ज्यादा से ज्यादा 20 मिनट तक हो सकता है.

31. सूर्य अब तक आकाशगंगा के 20 चक्कर काट चुका है. इसे एक चक्कर पूरा करने में 2500 लाख साल लग जाते है.

32. अगर सूर्य की चमक एक दिन धरती पर न पहुंचे तो धरती कुछ ही घंटो में बर्फ की तरह जम जाएगी.

33. वैज्ञानिक कहते है, कि आज से लगभग 7 अरब 70 करोड़ साल बाद सूर्य का आकार 200 गुना बड़ा हो जाएगा और ये एक बड़े से लाल गोले का रूप ले लेगा. तब इसका आकार बुध ग्रह तक पहुंच जाएगा.

34. हर सेकंड सूर्य का द्रव्यमान 50 लाख टन कम हो रहा है. जब यह लाल गोला बन जाएगा तब वापिस से छोटा होने लगेगा. और एक दिन ऐसा आएगा जब यह धरती जितना रह जाएगा.

Sunday, October 22, 2017

चमत्कारी महा मृत्युंजय मन्त्र

चमत्कारी महा मृत्युंजय मन्त्र


दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      

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ॐ हौं जूं सः 
ॐ भूर्भुवः स्वः 
ॐ त्र्यम्‍बकं यजामहे 
ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं 
ॐ सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् 
ॐ भर्गो देवस्य धीमहि
ॐ उर्वारुकमिव बन्‍धनान् 
 ॐ धियो यो न: प्रचोदयात्
ॐ मृत्‍योर्मुक्षीय मामृतात्
ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !!

यह उपरोक्त पूरा एक मंत्र है

शिवलिंग पर मट्ठे से अभिषेक करवाएं

उच्च कोटि के ब्राह्मण पंडित  विद्वान् आचार्य या स्वयं से १२५००० जप हवन मार्जन तर्पण ब्रह्म भोज इत्यादि करने से असाध्य से असाध्य रोगों में लाभ प्राप्त होता है |

Thursday, October 19, 2017

सर्व मनोकामना पूर्ण करने का एक विशेष अघोरी टोटका

सर्व मनोकामना पूर्ण करने का एक विशेष अघोरी टोटका 

दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      

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यह टोटका मुझे गुरवर  सिद्ध अघोरी ने दिया था जन कल्याण के लिए | यह टोटका कभी खली नहीं जायेगा ऐसे मेरे गुरुवर के वचन हैं, यह टोटका धन, प्रेम, विवाह, ग्रह दोष, वाद विवाद न्यायालय, बीमारी आदि हर कार्य में सफलता दिलाता है,
जो आज तक कभी भी विफल नहीं हुआ है|
किसी भी मनोकामना को मन मैं तीव्र इच्छा रखते हुए प्रातः उठें

सूर्योदय से तीन धंटे के भीतर करना है |

विष्णु उपासक  ग्यारह ब्राह्मणो के नित्य चरण स्पर्श १०८ दिन करें  और आशीर्वाद अवश्य लें |
रूद्र शिव उपासक  ग्यारह ब्राह्मणो के नित्य चरण स्पर्श १०८ दिन करें  और आशीर्वाद अवश्य लें |
शक्ति देवी उपासक ग्यारह ब्राह्मणियों (ब्राह्मण सौभाग्यवती स्त्रियों ) के नित्य चरण स्पर्श १०८ दिन करें और आशीर्वाद अवश्य लें |

अगर समस्या अति गंभीर हो तब इसे लगातार छः मास तक करें |

इसके साथ अगर यह किया जाये तो फल अतिशिग्र्ह मिलता है |

विष्णु उपासक चरण स्पर्श कर केला या नारियल कोई ऋतू फल ब्राह्मणो को भेंट करें तो अति उत्तम होगा |
रूद्र शिव उपासक चरण स्पर्श कर दूध, या गुड़  ब्राह्मणो को भेंट करें तो अति उत्तम होगा |
शक्ति देवी उपासक चरण स्पर्श कर ब्राह्मणियों (ब्राह्मण सौभाग्यवती स्त्रियों )  को  द्रव्य धन भेंट करें तो अति उत्तम होगा |

मैं स्वयं इस प्रयोग को करता हूँ और अभी तक हर कार्य मैं सफलता मिली है, ईश्वर की कृपा से मान - सम्मान , सुख भोग ऐश्वर्य  सब प्राप्त हो रहा है

Tuesday, October 17, 2017

छोटी दीपावाली (Choti Diwali)

छोटी दीपावाली (Choti Diwali)


दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      

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छोटी दीपावाली हर साल कार्तिक कृष्ण चतुदर्शी को यानी दीपावली के एक दिन पहले मनाया जाता है। पर इसे "रूप चतुर्दशी" और "नरक चतुर्दशी" के नाम से भी जाना जाता है। छोटी दीपावाली , दीपावाली के एक दिन पहले मनाया जाता हैं । इसमें भी दीप दान किये जाते हैं । दरवाजे पर दीपक लगाये जाते हैं । धूमधाम से घर के सभी सदस्यों के साथ त्यौहार मनाया जाता हैं ।
छोटी दीपावाली / नरक चतुर्दशी पूजा विधि ( Choti Diwali / Pujan Vidhi)
भविष्य पुराण के अनुसार इस के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान का महत्व होता हैं | इस दिन स्नान करते वक्त तिल एवं तेल से नहाया जाता हैं इसके साथ नहाने के बाद सूर्य देव को अर्ध्य अर्पित करते हैं | इस दिन प्रभात के समय नरक के भय को दूर करने के लिए स्नान अवश्य किया जाता है। स्नान के दौरान अपामार्ग (चिचड़ा)/अकबक के पत्ते को सिर के ऊपर निम्न मंत्र पढ़ते हुए घुमाते हैं।

हर पापमपामार्ग भ्राम्यमाणं पुन: पुन:।
आपदं किल्बिषं चापि ममापहर सवर्श:।
अपामार्ग नमस्तेस्तु शरीरं मम शोधय॥

मन्त्र अर्थ - हे अपामार्ग! मैं काँटों और पत्तों सहित तुम्हें अपने मस्तक पर बार-बार घुमा रहा हूँ। तुम मेरे पाप हर लो।
स्नान के पश्चात् 'यम' के चौदह नामों को तीन-तीन बार उच्चारण करके तर्पण (जल-दान) किया जाता है। । साथ ही 'श्री भीष्म' को भी तीन अञ्जलियाँ जल-दान देकर तर्पण करते हैं । । जल-अञ्जलि हेतु यमराज के निम्नलिखित १४ नामों का तीन बार उच्चारण करना चाहिये-
ॐ यमाय नम:
ॐ धर्मराजाय नम:
ॐ मृत्यवे नम:
ॐ अंतकाय नम:
ॐ वैवस्वताय नम:
ॐ कालाय नम:
ॐ सर्वभुतक्षयाय नम:
ॐ औढुम्बराय नम:
ॐ दध्नाय नम:
ॐ नीलाय नम:
ॐ परमेष्ठिने नम:
ॐ वृकोदराय नम:
ॐ चित्राय नम:
ॐ चित्रगुप्ताय नम:
इस दिन शाम को घर से बाहर नरक निवृत्ति के लिये सर्वप्रथम यम-देवता के लिए धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष-स्वरूप चार बत्तियों का दीपक जलाया जाता है। इसके बाद गो-शाला, देव-वृक्षों के नीचे, रसोई-घर, स्नानागार आदि में दीप जलाये जाते हैं एवं यमराज की पूजा भी की जाती है। 'दीप-दान' के बाद नित्य का पूजन करे।

नरकासुर का वध:-
राक्षस नरकासुर ने भगवान इंद्र को हराकर, माता अदिति के कान की बालियां छीन ली थी और प्रज्ञज्योतिशपुर (नेपाल के दक्षिण में एक प्रांत) में शासन करने लगा। नरकासुर ने देवताओं और संतों की सोलह हजार कन्यायों को भी अपने कैद में कर लिया था। तब भगवान कृष्णा ने नरकासुर का वध किया और सभी कन्यायों को मुक्ता करवाया तथा माता अदिति की बालियां भी वापस उन्हें ( माता अदिति ) सौंपी। इन कन्याओं ने भगवान कृष्णा को हीं अपना पति मान लिया था। अत: भगवान श्री कृष्णा ने उन सभी सोलह हजार कन्याओं से शादी कर ली। भगवान श्री कृष्ण ने कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी तिथि को हीं नरकासुर का वध किया था। इसलिए छोटी दीपावली को नरक चतुर्दशी भी कहते हैं। नरकासुर का वध और 16 हजार कन्याओं के बंधन मुक्त होने के उपलक्ष्य में नरक चतुर्दशी के दिन दीपदान की परंपरा शुरू हुई। एक अन्य मान्यता के अनुसार नरक चतुर्दशी के दिन सुबह स्नान करके यमराज की पूजा और संध्या के समय दीप दान करने से नर्क के यातनाओं और अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। इस कारण भी नरक चतु्र्दशी के दिन दीपदान और पूजा का विधान है। इस दिन प्रातः काल स्नान करके यम तर्पण एवं शाम के समय दीप दान का बड़ा महत्व है।
नरक चतुर्दशी हनुमान जयंती :-
एक मान्यता हैं कि कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चौदस के दिन हीं हनुमान जी ने माता अंजना के गर्भ से जन्म लिया था । इस दिन दुखों एवं कष्टों से मुक्ति पाने के लिए हनुमान जी की भक्ति की जाती हैं जिसमे कई लोग हनुमान चालीसा, हनुमानअष्टक जैसे पाठ करते हैं । कहते हैं कि आज के दिन हनुमान जयंती होती हैं । इसका उल्लेख वाल्मीकि रामायण में मिलता हैं | ( इसलिए भारत में दो बार हनुमान जयंती मनाया जाता हैं । एक बार चैत्र की पूर्णिमा और दूसरी बार कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चौदस के दिन|)


नरक चतुर्दशी कथा :-
इसे नरक निवारण चतुर्दशी कहा जाता हैं इसके पीछे एक पौराणिक कथा हैं जो इस प्रकार हैं :- रंति देव नाक के एक प्रतापी राजा थे । स्वभाव से बहुत ही शांत एवं पुण्य आत्मा, इन्होने कभी भी गलती से भी किसी का अहित नहीं किया । जब इनकी मृत्यु का समय आया तो यम दूत इनके पास आये और इन्हें पता चला कि इन्हें मोक्ष नहीं बल्कि नरक मिला हैं । तब उन्होंने यम दूत से पूछा कि जब मैंने कोई पाप नहीं किया तो मुझे नरक क्यूँ भोगना पड़ रहा हैं । तब यमदूतों ने उन्हें बताया कि एक बार अज्ञानवश आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा चला गया था । उसी के कारण आपका नरक योग हैं । तब राजा रंति ने हाथ जोड़कर यमराज से कुछ समय देने को कहा ताकि वे अपनी गलती सुधार सके । उनके अच्छे आचरण के कारण यमराज ने उन्हें यह मौका दिया । तब राजा रंति ने अपने गुरु से सारी बात कही और उपाय बताने का आग्रह किया । तब गुरु ने उन्हें सलाह दी कि वे हजार ब्राह्मणों को भोज कराये और उनसे क्षमा मांगे । रंति देव ने यही किया । उनके कार्य से सभी ब्राह्मण प्रसन्न हुए और उनके आशीर्वाद के फल से रंति देव को मोक्ष मिला । वह दिन कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चौदस का था इसलिए इस दिन को नरक निवारण चतुर्दशी कहा जाता हैं |

रूप चतुर्दशी :-
हिरण्यगर्भ नामक एक राजा थे । उन्होंने राज पाठ छोड़कर तप में अपना जीवन व्यतीत करने का निर्णय किया । उन्होंने कई वर्षो तक तपस्या की लेकिन उनके शरीर पर कीड़े लग गए । उनका शरीर जैसे सड़ गया । हिरण्यगर्भ को इस बात से बहुत कष्ट हुआ और उन्होंने नारद मुनि से अपनी व्यथा कही । तब नारद मुनि ने उनसे कहा कि आप योग साधना के दौरान शरीर की स्थिति सही नहीं रखते इसलिए ऐसा परिणाम सामने आया । तब हिरण्यगर्भ ने इसका निवारण पूछा । तो नारद मुनि ने उनसे कहा कि कार्तिक मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के दिन शरीर पर लेप लगा कर सूर्योदय से पूर्व स्नान करे साथ ही रूप के देवता श्री कृष्ण की पूजा कर उनकी आरती करे इससे आपको पुन : अपना सौन्दर्य प्राप्त होगा । उन्होने वही किया और अपने शरीर को पूर्व रूप में पा लिया । तभी से इस दिन को रूप चतुर्दशी के नाम से जाना जाता हैं । इस के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान का बहुत महत्व हैं । इसके साथ नहाने के बाद सूर्य देव को अर्ध्य अर्पित करते हैं और श्री कृष्णा की उपासना का भी प्रचलन है।

धन-धान्य व सुख-संम्पदा के लिए

धन-धान्य व सुख-संम्पदा के लिए

दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      

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हर अमावस्या को घर में एक छोटा सा आहुति प्रयोग करें।

सामग्री:
1. काले तिल, 2. जौं, 3. चावल, 4. गाय का घी, 5. चंदन पाउडर, 6. गूगल, 7. गुड़, 8. देशी कर्पूर, गौ चंदन या कण्डा।

विधि: गौ चंदन या कण्डे को किसी बर्तन में डालकर हवनकुंड बना लें, फिर उपरोक्त ८ वस्तुओं के मिश्रण से तैयार सामग्री से, घर के सभी सदस्य एकत्रित होकर नीचे दिये गये देवताओं की 1-1 आहुति दें।
आहूति मंत्र
1. ॐ कुल देवताभ्यो नमः
2. ॐ ग्राम देवताभ्यो नमः
3. ॐ ग्रह देवताभ्यो नमः
4. ॐ लक्ष्मीपति देवताभ्यो नमः
5. ॐ विघ्नविनाशक देवताभ्यो नमः

DHANVANTRI DHANTERAS SAMPURN PUJA VIDHI धन्वंतरि धनतेरस सम्पूर्ण पूजा विधि

DHANVANTRI DHANTERAS SAMPURN PUJA VIDHI धन्वंतरि धनतेरस सम्पूर्ण पूजा विधि


दक्षिणा 501 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      

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 धनतेरस पवित्र पर्व है। इस दिन धन और आरोग्य के लिए भगवान धन्वंतरि पूजे जाते हैं।

धनतेरस  का दिन नर्इ खरीद के लिए शुभ माना जाता है। इसी दिन से दीपावली के पर्व का श्रीगणेश होता है आैर बाजारों में त्योहार जैसी रौनक दिखार्इ देने लगती है। धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है। इस तिथि को वे समुद्र मंथन से प्रकट हुए थे।

 उनके हाथ में अमृत कलश था। भगवान धन्वंतरि आयुर्वेद के जनक हैं। वे समस्त रोग, शोक आैर संताप का निवारण कर देते हैं। धनतेरस के दिन उनका पूजन करने से आरोग्य, सुख, समृद्घि आैर दीर्घायु की प्राप्ति होती है। जानिए कैसे करें भगवान धन्वंतरि का पूजन...

प्रातः स्नान आदि दैनिक क्रियाआें से निवृत्त होने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें। तत्पश्चात पूजन स्थल पर भगवान धन्वंतरि की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। यह स्थान एेसा हो कि आपका मुख पूर्व दिशा की आेर रहे। यह सूर्य देव की दिशा है जो जीवन के लिए शक्ति देते हैं।

इसके पश्चात इस मंत्र के साथ भगवान धन्वंतरि का आह्वान करना चाहिए-

सत्यं च येन निरतं रोगं विधूतं, अन्वेषित च सविधिं आरोग्यमस्य। गूढं निगूढं औषध्यरूपम्, धन्वन्तरिं च सततं प्रणमामि नित्यं।।

भगवान धन्वंतरि को चावल, रोली, पुष्प, गंध, जल चढ़ाएं आैर भोग अर्पित करें। संभव हो तो खीर का भोग लगाएं। इस पौराणिक मंत्र से भी भगवान धन्वंतरि शीघ्र प्रसन्न होते हैं -

ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये:। अमृतकलश हस्ताय सर्व भयविनाशाय सर्व रोगनिवारणाय। त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप। श्री धनवंतरी स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः॥

रोगनाश के लिए यह मंत्र बोलकर भगवान से प्रार्थना करें-

ऊं रं रूद्र रोग नाशाय धनवंतर्ये फट्।। 

पूजन में फल, दक्षिणा आदि चढ़ाने के बाद धूप, दीप आैर कपूर प्रज्वलित कर भगवान की आरती करें।

ये हैं पूजन शुभ मुहूर्त प्रदोष काल (वृषभ लग्न)

भगवान धन्वंतरि को प्रसन्न करने का अत्यंत सरल मंत्र है:

ॐ धन्वंतराये नमः॥

आरोग्य प्राप्ति हेतु धन्वंतरि देव का पौराणिक मंत्र


पवित्र  धन्वंतरि स्तो‍त्र :

ॐ शंखं चक्रं जलौकां दधदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः।
सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक परिविलसन्मौलिमंभोजनेत्रम॥
कालाम्भोदोज्ज्वलांगं कटितटविलसच्चारूपीतांबराढ्यम।
वन्दे धन्वंतरिं तं निखिलगदवनप्रौढदावाग्निलीलम॥
ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये:
अमृतकलश हस्ताय सर्व भयविनाशाय सर्व रोगनिवारणाय
त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप
श्री धनवंतरी स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः॥

अर्थात् परम भगवन को, जिन्हें सुदर्शन वासुदेव धन्वंतरि कहते हैं, जो अमृत कलश लिए हैं, सर्व भयनाशक हैं, सर्व रोग नाश करते हैं, तीनों लोकों के स्वामी हैं और उनका निर्वाह करने वाले हैं; उन विष्णु स्वरूप धन्वंतरि को सादर नमन है।

धन तेरस पूजा विधि 

एक लकड़ी के बेंच पर रोली के माध्यम से स्वस्तिक का निशान बनाये।
फिर एक मिटटी के दिए को उस बेंच पर रख कर जलाएं।
दिए के आस पास तीन बारी गंगा जल का छिडकाव करें।
दिए पर रोली का तिलक लगायें। उसके बाद तिलक पर चावल रखें।
दिए में थोड़ी चीनी डालें।
इसके बाद 1 रुपये का सिक्का दिए में डालें।
दिए पर थोड़े फूल चढायें।
दिए को प्रणाम करें।
परिवार के सदस्यों को तिलक लगायें।
अब दिए को अपने घर के गेट के पास रखें। उसे दाहिने तरह रखें और यह सुनिश्चित करें की दिए की लौं दक्षिण दिशा की तरफ हो।
इसके बाद यम देव के लिए मिटटी का दिया जलायें और फिर धन्वान्तारी पूजा घर में करें।
अपने पूजा घर में भेठ कर धन्वान्तारी मंत्र का 108 बार जाप करें। “ॐ धन धनवंतारये नमः
जब आप 108 बारी मंत्र का जाप कर चुके होंगे तब इन पंक्तियों का उच्चारण करें “है धन्वान्तारी देवता में इन पंक्तियों का उच्चारण अपने चरणों में अर्पण करता हूँ।
धन्वान्तारी पूजा के बाद भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पंचोपचार पूजा करना अनिवार्य है।
भगवान गणेश और माता लक्ष्मी के लिए मिटटी के दियें जलाएं। धुप जलाकर उनकी पूजा करें। भगवान गणेश और माता लक्ष्मी के चरणों में फूल चढायें और मिठाई का भोग लगायें।

 *  सबसे पहले मिट्टी का हाथी और धन्वंतरि भगवानजी का चित्र स्थापित करें।

*  शुद्ध चांदी या तांबे की आचमनी से जल का आचमन करें।

* श्रीगणेश का ध्यान व पूजन करें।

* हाथ में अक्षत-पुष्प लेकर भगवान धन्वंतरि का ध्यान करें।

* इस मंत्र से ध्यान करें :

* मंत्र :  देवान कृशान सुरसंघनि पीडितांगान
दृष्ट्वा दयालुर मृतं विपरीतु कामः
पायोधि मंथन विधौ प्रकटौ भवधो
धन्वन्तरि: स भगवानवतात सदा नः
ॐ धन्वन्तरि देवाय नमः
ध्यानार्थे अक्षत पुष्पाणि समर्पयामि...

* पुष्प अर्पित कर दें और जल का आचमन करें।

* 3 बार जल के छींटे दें और यह बोलें ... मंत्र : पाद्यं अर्घ्यं आचमनीयं समर्पयामि।
* भगवान धन्वंतरि के चित्र का जल के छींटों और मंत्र से स्नान कराएं।

* मंत्र : ॐ धनवन्तरयै नमः
  मंत्र :स्नानार्थे जलं समर्पयामि
*  पंचामृत स्नान कराएं

*  मंत्र : ॐ धनवन्तरायै नमः
मंत्र : पंचामृत स्नानार्थे पंचामृत समर्पयामि ||
* फिर जल से स्नान कराएं।

* मंत्र : पंचामृत स्नानान्ते शुद्धोधक स्नानं समर्पयामि ||
* इत्र छिड़कें।

मंत्र : सुवासितं इत्रं समर्पयामि
* वस्त्र या मौली अर्पित करें

मंत्र : वस्त्रं समर्पयामि
*  रोली या लाल चंदन से तिलक करें।

मंत्र : गन्धं समर्पयामि (इत्र चढ़ाएं)
मंत्र : अक्षतान् समर्पयामि (चावल चढ़ाएं)
मंत्र : पुष्पं समर्पयामि (फूल चढ़ाएं)
मंत्र : धूपम आघ्रापयामि (अगरबत्ती जलाएं)
मंत्र : दीपकं दर्शयामि ( जलते दीपक की पूजा करें फिर उसी से आरती घुमाएं)
मंत्र : नैवेद्यं निवेद्यामि (प्रसाद चढ़ाएं, प्रसाद के आसपास पानी घुमाएं)
मंत्र : आचमनीयं जलं समर्पयामि... (अपने आसन के आसपास पानी छोड़ें)
मंत्र : ऋतुफलं समर्पयामि (फल चढ़ाएं, फल के चारों तरफ पानी घुमाएं)
मंत्र : ताम्बूलं समर्पयामि (पान चढ़ाएं)
मंत्र : दक्षिणा समर्पयामि (चांदी-सोने के सिक्के अगर खरीदें हैं तो उन्हें अर्पित करें या फिर घर में रखें रुपए-पैसे चढ़ाएं।

मंत्र : कर्पूर नीराजनं दर्शयामि ( कर्पूर जलाकर आरती करें)

* धन्वंतरि जी से यह प्रार्थना करें : हे आयुर्वेद के जनक धन्वंतरि देव समस्त जगत को निरोग कर मानव समाज को दीर्घायुष्य प्रदान करें। हमें सपरिवार आरोग्य का वरदान प्रदान करें।

* धन तेरस की शाम को प्रदोषकाल में अपने घर के मुख्य दरवाजे पर अन्न की ढेरी पर दोनों तरफ दीपक जलाएं और उस समय यमराजजी का ध्यान करें। यह मंत्र बोलें।

मंत्र : मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन च मया सह |
त्रयोदश्यां दीपदानात सूर्यजः प्रीयता मिति ||

कुबेर मं‍त्र : ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधि पतये धनधान्य समृद्धि में देहि दापय दापय स्वाहा।।
अंत में मां लक्ष्मी, कुबेर, गणेश, मिट्टी के हाथी और धन्वंतरि जी सबका एक साथ पूजन करें। आरती करें। आपकी धनतेरस पूजन संपन्न हुई।

धनतेरस कथा (Dhanteras Katha in Hindi)
कहा (Dhanteras Story in Hindi) जाता है कि इसी दिन यमराज से राजा हिम के पुत्र की रक्षा उसकी पत्नी ने किया था, जिस कारण दीपावली से दो दिन पहले मनाए जाने वाले ऐश्वर्य का त्यौहार धनतेरस पर सायंकाल को यम देव के निमित्त दीपदान किया जाता है। इस दिन को यमदीप दान भी कहा जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से यमराज के कोप से सुरक्षा मिलती है और पूरा परिवार स्वस्थ रहता है। इस दिन घरों को साफ-सफाई, लीप-पोत कर स्वच्छ और पवित्र बनाया जाता है और फिर शाम के समय रंगोली बना दीपक जलाकर धन और वैभव की देवी मां लक्ष्मी का आवाहन किया जाता है।

यमराज पूजन के 3 तरीके

 यमराज पूजन के 3 तरीके

दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      

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धनतेरस यम दीपदान विषेश

* घर के मुख्य द्वार पर यम के लिए आटे का दीपक बनाकर अनाज की ढेरी पर  रखें।

* रात को दक्षिण दिशा में घर की स्त्रियां बड़े दीपक में तेल डालकर चार बत्तियां जलाएं।

* एक दीपक घर के मंदिर में जलाकर जल, रोली, चावल, गुड़, फूल, नैवेद्य आदि सहित यम का पूजन करें।

यमराज का मंत्र :


'मृत्युना दंडपाशाभ्याम्‌ कालेन श्यामया सह।
त्रयोदश्यां दीपदानात्‌ सूर्यजः प्रयतां मम।



धनत्रयोदशी पर करणीय कृत्यों में से एक महत्त्वपूर्ण कृत्य है, यम के निमित्त दीपदान। 

निर्णयसिन्धु में निर्णयामृत और स्कन्दपुराण के कथन से कहा गया है कि ‘कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को घर से बाहर प्रदोष के समय यम के निमित्त दीपदान करने से अकालमृत्यु का भय दूर होता है।'

यमदेवता भगवान् सूर्य के पुत्र हैं, उनकी माता का नाम संज्ञा है।

वैवस्वत मनु, अश्विनीकुमार एवं रैवंत उनके भाई हैं तथा यमुना जी उनकी बहिन है।

यमराज प्रत्येक प्राणी के शुभाशुभ कर्मों के अनुसार गति देने का कार्य करते हैं इसी कारण उन्हें धर्मराज कहा गया है।

इस सम्बन्ध में वे त्रुटि रहित व्यवस्था की स्थापना करते हैं।
उनका पृथक् से एक लोक है जिसे उनके नाम से ही ‘यमलोक' कहा जाता है।

ऋग्वेद (९ /११ /७ ) में कहा गया है कि इनके लोक में निरन्तर अनश्वर अर्थात् जिसका नाश न हो ऐसी ज्योति जगमगाती रहती है।

यह लोक स्वयं अनश्वर है और इसमें कोई मरता नहीं हैं।

यम की आँखें लाल हैं, उनके हाथ में पाश रहता है।
इनका शरीर नीला है और ये देखने में उग्र हैं।

भैंसा इनकी सवारी हैं, ये साक्षात् काल हैं।

यम-दीपदान....

स्कन्दपुराण में कहा गया है कि कार्तिक के कृष्ण पक्ष में त्रयोदशी के प्रदोषकाल में यमराज के निमित्त दीप और नैवेद्य समर्पित करने पर अपमृत्यु अर्थात् अकाल मृत्यु का नाश होता है, ऐसा स्वयं यमराज ने कहा था।

यम-दीपदान के लिए मिट्टी का एक बड़ा दीपक लें और उसे स्वच्छ जल से धो लें।

तदुपरान्त स्वच्छ रुई लेकर दो लम्बी बत्तियॉं बना लें।
उन्हें दीपक में एक -दूसरे पर आड़ी इस प्रकार रखें कि दीपक के बाहर बत्तियों के चार मुँह दिखाई दें।

अब उसे तिल के तेल से भर दें और साथ ही उसमें कुछ काले तिल भी डाल दें।

इस प्रकार तैयार किए गए दीपक का रोली, अक्षत एवं पुष्प से पूजन करें, उसके पश्चात् घर के मुख्य दरवाजे के बाहर थोड़ी -सी खील अथवा गेहूँ से ढेरी बनाकर उसके ऊपर दीपक को रखना है।

दीपक को रखने से पहले प्रज्वलित कर लें और दक्षिण दिशा की ओर देखते हुए निम्मलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए चार मुँह के दीपक को खील आदि की ढेरी के ऊपर रख दें।

मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन च मया सह। त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतामिति।

अर्थात:- त्रयोदशी को दीपदान करने से मृत्यु, पाश, दण्ड, काल और लक्ष्मी के साथ सूर्य-नन्दन यम प्रसन्न हों।

‘स्कन्द’ आदि पुराणों में, 'निर्णयसिन्धु’ आदि धर्मशास्त्रीय निबन्धों में एवं ‘ज्योतिष सागर’ जैसी पत्रिकाओं में धनत्रयोदशी के करणीय कृत्यों में यमदीपदान को प्रमुखता दी जाती है।

कभी आपने सोचा है कि धनत्रयोदशी पर यह
दीपदान क्यों किया जाता है.?

हिन्दू धर्म में प्रत्येक करणीय कृत्य के पीछे कोई न कोई पौराणिक कथा अवश्य जुड़ी होती हैं।
धनत्रयोदशी पर यम-दीपदान भी इसी प्रकार पौराणिक कथा से जुड़ा हुआ है।

स्कन्दपुराण के वैष्णवखण्ड के अन्तर्गत कार्तिक मास महात्म्य में इससे सम्बन्धित पौराणिक कथा का संक्षिप्त उल्लेख हुआ है।

एक बार यमदूत बालकों एवं युवाओं के प्राण हरते समय परेशान हो उठे।
उन्हें बड़ा दुःख हुआ कि वे बालकों एवं युवाओं के प्राण हरने का कार्य करते हैं, परन्तु करते भी क्या.? उनका कार्य ही प्राण हरना ही है।

अपने कर्तव्य से वे कैसे च्युत होते?

एक और कर्तव्यनिष्ठा का प्रश्न था, दुसरी ओर जिन बालक एवं युवाओं का प्राण हरकर लाते थे, उनके परिजनों के दुःख एवं विलाप को देखकर स्वयं को होने वाले मानसिक क्लेश का प्रश्न था।

ऐसी स्थिति में जब वे बहुत दिन तक रहने लगे, तो विवश होकर वे अपने स्वामी यमराज के पास पहुँचे और कहा कि-‘‘महाराज, आपके आदेश के अनुसार हम प्रतिदिन वृद्ध, बालक एवं युवा व्यक्तियों के प्राण हरकर लाते हैं, परन्तु जो अपमृत्यु के शिकार होते हैं, उन बालक एवं युवाओं के प्राण हरते समय हमें मानसिक क्लेश होता है।

उसका कारण यह है कि उनके परिजन अत्याधिक विलाप करते हैं और जिससे हमें बहुत अधिक दुःख होता है।
क्या बालक एवं युवाओं को असामयिक मृत्यु से छुटकारा नहीं मिल सकता है ?’’

ऐसा सुनकर धर्मराज बोले ‘‘दूतगण तुमने बहुत अच्छा प्रश्न किया है, इससे पृथ्वी वासियों का कल्याण होगा।

कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को प्रतिवर्ष प्रदोषकाल में जो अपने घर के दरवाजे पर निम्नलिखित मन्त्र से उत्तम दीप देता है, वह अपमृत्यु होने पर भी यहॉं ले आने के योग्य नहीं है।

मृत्युना पाश्दण्डाभ्यां कालेन च मया सह।
त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतामिति॥

उसके बाद से ही अपमृत्यु अर्थात असामयिक मृत्यु से बचने के उपाय के रूप में धन-त्रयोदशी पर यम के निमित्त दीपदान एवं नैवेद्य समर्पित करने का कृत्य प्रतिवर्ष किया जाता है।

यमराज की सभा...

देवलोक की चार प्रमुख सभाओं में से एक है ‘यमसभा'

यमसभा का वर्णन महाभारत के सभापर्व में हुआ है, इस सभा का निर्माण विश्वकर्मा जी ने किया था।

यह अत्यन्त विशाल सभा है, इसकी १०० योजन लम्बाई एवं १०० योजन लम्बाई एवं १०० योजन चौड़ाई है।

इस प्रकार यह वर्गाकार है।

यह सभा न तो अधिक शीतल है और न ही अधिक गर्म है अर्थात् यहा का तापक्रम अत्यन्त सुहावना है।
यह सभी के मन को अत्यन्त आनन्द देने वाली है।

न वहॉं शोक हैं, न बुढ़ापा है, न भूख है, न प्यास है और न ही वहॉं कोई अप्रिय वस्तु है।

इस प्रकार वहॉं दुःख, कष्ट एवं पीड़ा के करणों का अभाव है।
वहॉं दीनता, थकावट अथवा प्रतिकूलता नाममात्र को भी नही है।

वहा सदैव पत्रित सुगन्ध वाली पुष्प मालाएँ एवं अन्य कई रम्य वस्तुएँ विद्यमान रहती हैं।

यमसभा में अनेक राजर्षि और ब्रह्मर्षि यमदेव की उपासना करते रहते हैं।

ययाति, नहुश, पुरु, मान्धाता, कार्तवीर्य, अरिष्टनेमी, कृती, निमि, प्रतर्दन, शिवि आदि राजा मरणोणरान्त यहां बैठकर उपासना करते हैं।

कठोर तपस्या करने वाले, उत्तम व्रत का पालन करने वाले सत्यवादी, शान्त, संन्यासी तथा अपने पुण्यकर्म से शुध्द एवं पवित्र महापुरुषों का ही इस सभा में प्रवेश होता है।

विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )