जन्म कुंडली का सबसे महत्वपूर्ण भाव दशम भाव
जन्म कुंडली का सबसे महत्वपूर्ण भाव दशम भाव होता है। दशम भाव पिता, व्यापार, उच्च नौकरी, राजनीति, राजसुख, प्रतिष्ठा, विश्वविख्याति का कारक भाव माना जाता है। इसे कर्म भाव भी कहते हैं। जातक अपने कर्म से महान विख्यात एवं यशस्वी भी होता है और अपने पिता का नाम रोशन करने वाला भी होता है। यदि इस भाव का स्वामी बलवान होकर कहीं भी हो उस प्रकार से फल प्रदाता होता है।दशमेश का मतलब होता है दशम भाव में जो भी राशि नंबर होगा, उस भाव के स्वामी को दशमेश कहा जाएगा। यथा दशम भाव में कुंभ यानी 11 नंबर लिखे होंगे तो उसका स्वामी शनि होगा। यदि इस भाव में 5 नंबर लिखा है तो सिंह राशि होगी, यदि 12 नंबर लिखा है तो मीन राशि होगी।
दशमेश नवांश कुंडली में जिस ग्रह की राशि में होता है उसी ग्रह के कारकत्व अनुरूप व्यवसाय व्यक्ति के लिए लाभदायक होता है। ग्रहों के कारकत्व निम्न प्रकार है -
*सूर्य राज्य, फल-फूल, वृक्ष, पशु, वन, दवा, चिकित्सा, नेत्र, कंबल, लकड़ी, भूषण, मंत्र, भूमि, यात्रा, अग्नि, आत्मा, पिता, लाल चंदन, पराक्रम, धैर्य, साहस, न्याय प्रियता, गेहूं, घी ।
*चंद्र जलीय पदार्थ, पशुपालन, डेरी उद्योग, कपड़ा, सुगंधित पदार्थ, कल्पना शक्ति, नेत्र, स्त्री सहयोग, भेड़, बकरी, स्त्री संबंधी पदार्थ, कृषि, गन्ना, चांदी, चावल, सफेद वस्त्र, सिल्क का कपड़ा, चमकीली वस्तु, यात्रा, तालाब, क्षय रोग, खारी वस्तुएं, माता, मन, प्रजा।
*मंगल भूमि, अग्नि, गरमी, घाव, राज्य सेवा, पुलिस, फौज, शस्त्र, युद्ध, बिजली, राज दरबार, मिट्टी से बनी वस्तुएं, डैंटिस्ट, अनुशासन, स्पोर्ट्स, तांबा, रक्त चंदन, मसूर, गुड़, ज्वलनशील पदार्थ।
*बुध विद्या, गणित ज्ञान, लेखन वृत्ति, काव्यगम, ज्योतिष, हरी वस्तुएं, शिल्प, दलाली, कमीशन, वाक शक्ति, त्वचा, चिकित्सा, वकालत, अध्यापन, संपादन, प्रकाशन, अभिनय, हास परिहास, व्याकरण, रत्न पारखी, कांसा, डाक्टर, गला, नाचना, पुरोहित।
*गुरु शिक्षक, तर्क, मंदिर, मठ, देवालय, धर्म, नीतिज्ञ, राजा, सेना, तप, दान, परोपकार, पीला रंग, वेद-पुराण आदि से उपदेश, धन, न्याय, वाहन, परमार्थ, स्वास्थ्य, घी, चने, गेहूं, हल्दी, जौ, प्याज, लहसून, मोम, ऊन, पुखराज।
*शुक्र रूप सौंदर्य, भोग विलास एवं सांसारिक सुख, सुगंधित एवं श्रंगारिक प्रसाधन, श्वेत एवं रेशमी वस्त्र, चांदी, आभूषण, गीत-संगीत, नृत्य, गायन, वाद्य, सिनेमा, अभिनेता, उत्तम वस्त्रों का व्यवसाय, मंत्री पद, सलाहकार, जलीय स्थान, दक्षिण पूर्व दिशा।
*शनि मजदूर एवं दास वर्ग, शारीरिक परिश्रम, कारखाने, वनस्पति, नौकरी, निंदित कार्यो से धनोपार्जन, हाथी, घोड़ा, चमड़ा, लोहा, मिथ्या भाषण, कृषि, शस्त्रागार, सीसा, तेल, लकड़ी, विष, पशु, ठेकेदारी।
*राहु गुप्त धन, लॉटरी, शेयर, विष, तिल, तेल, लोहा, वायुयान संबंधी ज्ञान, मशीनरी, चित्रकारी, फोटोग्राफी, वैद्यक, जासूसी अनुसंधान, कंबल, गोमेद।
*केतु गुप्त विद्या, वैराग्य, तीर्थाटन, भिक्षावृत्ति, चर्म रोग, काले वस्त्र, कंबल, विष, शस्त्र, फोड़ा, फुंसी, गर्भपात, चेचक, अत्यंत कठिन कार्य, मंत्रसिद्धि, तत्वज्ञान, दु:ख, शोक, संघर्ष।
कारकत्व शब्दों तक ही सीमित नहीं इनकी परिधि अत्यंत विस्तृत है - जैसे ‘राज्य’ शब्द सूर्य का कारकत्व है। इस छोटे से शब्द में राजा, मंत्री, गवर्नर, राष्ट्रपति, छोटे-मोटे तमाम सरकारी कर्मचारी व अधिकारी, राजनेता, विधायक, सांसद आदि सभी वर्ग जिनका परोक्ष अथवा अपरोक्ष रूप में सरकार से किसी न किसी प्रकार से कोई संबंध है, शामिल हैं। जन्म कुंडली का एकादश भाव ‘आय भाव’ तथा द्वितीय भाव ‘धन भाव’ कहलाता है। इनके स्वामियों के बलाबल और आपस में संबंध के आधार पर व्यवसाय संबंधी आय व धन का विचार किया जाता है।
दशम स्थान स्थित राशि की दिशा में अथवा दशमेश जिस नवांश में होगा, उस नवांश संबंधी राशि की दिशा में व्यवसाय संबंधी लाभ होगा। मेष, सिंह व धनु राशियां ‘पूर्व’ दिशा की स्वामी है। मिथुन, तुला व कुंभ राशियां ‘पश्चिम’ दिशा की स्वामी है। कर्क, वृश्चिक व मीन राशियां ‘उत्तर’ दिशा की स्वामी है तथा वृष, कन्या तथा मकर राशियां ‘दक्षिण’ दिशा की स्वामी है। उपरोक्त विचार ‘लग्न कुंडली’ के साथ ‘चंद्र कुंडली’ व ‘सूर्य कुंडली’ से भी करने पर सूक्ष्म निष्कर्ष पर पहुंचने में काफी सहायता मिलेगी।
कुछ रोचक बाते :
* लग्न का स्वामी और दशम भाव का स्वामी यदि एक साथ हों तो ऐसा जातक नौकरी में विशेष उन्नति पाता है।
* दशमेश के साथ शुक्र हो और द्वादश भाव में बुध हो तो वह जातक महात्मा, पुण्यात्मा होता है, लेकिन दशमेश व शुक्र केंद्र में होना चाहिए।
* दशम भाव का स्वामी केंद्र या त्रिकोण (पंचम, नवम भाव को कहते है) में हो तो वह जातक राजपत्रित अधिकारी होता है।
* दशम भाव में स्वराशिस्थ सूर्य पिता से धन लाभ दिलाता है।
* दशम भाव में मीन या धनु राशि हो और उसका स्वामी गुरु यदि त्रिकोण में हो तो वह सभी सुखों को पाने वाला होता है।
* दशम भाव का स्वामी उच्च का होकर कहीं भी हो तो वह अपने बल-पराक्रम से सभी कार्यों में सफलता पाता है।
* पंचम भाव में गुरु व दशम भाव में चंद्रमा शुभ स्थिति में हो तो वह जातक विवेकशील, बुद्धिमान व तपस्वी होता है।
* एकादश भाव का स्वामी दशम में व दशम भाव का स्वामी एकादश भाव में हो या नवम भाव का स्वामी दशम में और दशम भाव का स्वामी नवम भाव में हो तो ऐसा जातक लोकप्रिय, शासक यानी मंत्री या कलेक्टर भी हो सकता है।
* लग्न का स्वामी व दशम भाव का स्वामी बलवान यानी अपनी राशि में हो या उच्च राशि में हो तो वह जातक प्रतिष्ठित, विश्वविख्यात तथा यशस्वी होता है।
* दशम भाव में शुक्र-चंद्र की युति जातक को चिकित्सक बना देती है।
* कन्या या मीन लग्न हो और उसका स्वामी उच्च या अपनी राशि में हो तो वह जातक अपने द्वारा अर्जित धन से उत्तम कार्य करता हुआ संपूर्ण सुखों को भोगने वाला होता है।
* दशम भाव में उच्च का मंगल या स्वराशि का मंगल सप्तम भाव में मंत्री या पुलिस विभाग में उच्च पद दिलाता है।
* दशम भाव में उच्च का सूर्य कर्क लग्न में होगा तो उस जातक को धन, कुटुंब से परिपूर्ण बनाएगा व उच्च पदाधिकारी भी बनाएगा।
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