Tuesday, August 8, 2017

SADHNA KE NIYAM साधना के नियम

SADHNA KE NIYAM साधना के नियम


• साधनाओं को कोई भी गृहस्थ संपन्न कर सकता है, इसके लिये किसी भी विशेष वर्ग या जाति के आधार पर कोई बन्धन नहीं है, जिसको भी इस प्रकार की साधनाओं में आस्था हो, वह इन साधनाओं को संपन्न कर सकता है

• इस प्रकार की साधनाओं में पुरुष या स्त्री, युवा या वृद्ध, विवाहित या अविवाहित जैसा कोई भेद नहीं है, कोई भी साधना संपन्न कर सकता है
महिलाओं के लिये रजस्वला-समय किसी भी प्रकार की साधना के लिए वर्जित है, जिस दिन रजस्वला हो उस दिन से अगले पांच दिनों तक वह किसी भी प्रकार की साधना या पूजा अनुष्ठान संपन्न न करे, परन्तु यदि उसने अनुष्ठान प्रारम्भ कर दिया हो और बीच में रजस्वला हो गयी हो, तो उस अनुष्ठान या साधना को पांच दिनों के लिये छोड़ दे और छटे दिन स्नान कर, सर को धो कर, पवित्र होकर पुनः साधना या अनुष्ठान प्रारम्भ कर सकती है, ऐसा होने पर साधना में व्यवधान नहीं माना जाता पीछे जहां तक साधना की है या जीतनी संख्या में जप कर ली है, उसके आगे की गणना की जा सकती है

• प्रत्येक साधना की जप संख्या, दिनों की संख्या निश्चित होती है; तब तक साधना चलती रहे, उस अवधि में साधक को चाहिए कि एक समय भोजन करें और सात्त्विक आहार ग्रहण करें, मांस, शराब, प्याज, लहसुन आदि वर्जित है; भोजन का सीधा सम्बन्ध है, अतः शुद्ध खान-पान के मामले में सतर्कता बरतें, होटल में खाना यथासंभव टालें, क्योंकि वहां पर शुद्धता का पूरा ध्यान नहीं रह पाता, जो कि इस कार्य के लिये आवश्यक होता है

• साधना करते समय किसी भी प्रकार की वस्तु खाना या सेवन करना अनुकूल नहीं हैं, व्यक्ति मंत्र जप प्रारम्भ करने से पूर्व दूध, चाय या भोजन ले सकता है
जब मंत्र जप चालू हो तब चाय, जल, भी पीना वर्जित है, यदि ऐसी स्थिति उत्पन्न भी हो जाये, तो इसके बाद पवित्रीकरण करने के उपरांत ही पुनः मंत्र जप प्रारम्भ करना चाहिए

• साधनाकाल में यथासंभव भूमि पर सोना उचित रहता है, भूमि पर किसी भी प्रकार का बिछौना सो सकते हैं, विशेष परिस्थितियों में पलंग आदि का उपयोग कर सकते हैं, परन्तु जहां तक संभव हो भूमि शयन ही करें

• साधनाकाल में स्त्री संसर्ग सर्वथा वर्जित है, इस अवधि में पूरी तरह से ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें, इस अवधि में फ़िल्मी पत्रिकाएं पढ़ना, सिनेमा देखना, अन्य स्त्रियों से लम्बिई बातचीत करना आदि निषेध है, यथासंभव मन को संयत और शांत बनाए रखें

• साधना प्रारम्भ करने से पूर्व स्नान कर लेता उचित रहता है, यदि बीमार हो या अशक्त हो, तो ऐसी परिस्थिति में कपड़ा भिगोकर पुरे शरीर को पौंछ लेता चाहिए, परन्तु जहां तक हो सके स्नान करना ही उत्तम माना जाता है

• पैंट, निकर या पायजामा पहन कर साधना नहीं की जा सकती, इसके लिये धोती पहनना उचित माना गया है

• एक धोती कमर के नीची पहिन लें और गुरु पीताम्बर ओढ़ लें, परन्तु यदि सर्दी का मौसम हो, तो उनी कम्बल भी ओढ़ सकता है, धोती हमेशा धूलि हुई स्वच्छ हो

• साधना काल में क्षौर कर्म नहीं करवाना चाहिए, अर्थात सर के या दाढ़ी के बाल नहीं कटावें

• साधना काल में बीडी-सिगरेट, तम्बाकू, पान आदि का सेवन वर्जित है, जितने दिन तक साधना चले उतने दिन तक किसी प्रकार का व्यसन न करें

• साधना काल में स्नान करते समय साबुन का प्रयोग किया जा सकता है, परन्तु इत्र आदि का प्रयोग न करें, साधना के बाद कहीं बहार जाते समय जूतों का प्रयोग किया जा सकता है

• यदि साधक नौकरी या व्यापार कर रहा हो और रात्रिकालीन साधना हो, तो दिन में नौकरी कर सकतें, यदि साधना पूरी होने तक व्यापार अथवा नौकरी से अवकाश ले लें, तो ज्यादा उचित रहता है

• साधना काल में सिनेमा देखना या किसी राग-रंग, गायन, संगीत महफिल आदि में भाग लेता वर्जित है

• साधना काल में कम से कम बोलें, बहुत अधिक आवश्यक होने पर ही बातचीत करें और उतनी ही बातचीत करें, जीतनी जरूरी है, व्यर्थ में गप्पे लगाना बहस करना सर्वथा वर्जित हैं

• साधना घर के एकांत कक्ष में, किसी मन्दिर, नदी तट आदि स्थान पर जाकर की जा सकती है, पर इस बात का ध्यान रखें कि साधना स्थल ऐसा हो, जो शांत और कोलाहल से दूर हो; वह स्थान ऐसा होना चाहिए, जहां किसी प्रकार का व्यवधान उपस्थित न होता हो

• साधना प्रारंभ करने से पूर्व साधना संबंदी सारे उपकरण चित्र, यंत्र, माला आदि एक स्थान पर एकत्र कर लेनी चाहिए, पूजन सामग्री की व्यवस्था भी पहले से ही कर लेनी चाहिए, साथ ही साथ अपने गुरु या साधना बताने वाले व्यक्ति से साधना से सम्बंधित सरे तथ्य पहले से ही भली प्रकार समझ लेने चाहिए

• कभी-कभी साधना काल में आखोने के सामने कई अजीबोगरीब दृश्य दिखाई पड़ते हैं, कई बार विचित्र आवाजें सुनाई पड़ती है, कई बार ऐसा भी अनुभव होता है, कि जैसे आपको कोई आवाज दे रहा हो, परन्तु इन बातों की तरफ ध्यान नहीं देना चाहिए और बराबर अपनी साधना में लगे रहना चाहिए

• साधना काल में अपने सामने जल का लोटा भर रख देना चाहिए, उबासी, जम्भाई या अपां वायु के निकलने पर जल को कानों से स्पर्श कर लेने से यह दोष मिट जाता है; यदि बीच में लघुशंका तेवर हो जाय, तो उठ कर लघुशंका कर लेता चाहिए, पर इसके बाद पुनः स्नान कर दूसरी धोती पहिन कर ही साधना में बैठना चाहिए

• साधनाकाल में माला हाथ से गिरानी नहीं चाहिए, इस बात का पूरा-पूरा ध्यान रखें, यदि गिर जाय, तो पुनः प्रारम्भ से मंत्र जप करना चाहिए, ज्यादा अच्छा यह होगा कि गौमुखी (माला रखने का वस्त्र) में माला रख कर मंत्र जप करें, जिससे कि माला गिरने की समस्या नहीं रहे, गौमुखी किसी भी प्रकार के कपडे की हो सकती हैं

• किसी भी प्रकार की साधना या मंत्र जप प्रारम्भ करने से पूर्व दीक्षित होना जरूरी है, क्योंकि दीक्षा प्राप्त साधक ही अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर सकता हैं; इसके बाद साधना प्रारम्भ करें, तो सबसे पहले एक माला गुरु मंत्र की जप कर, गुरु की पूजा कर उनके सामने निवेदन कर मंत्र जप प्रारम्भ करें, ऐसा क्रम नित्य रखना चाहिए, जिससे कि अप्रत्यक्ष रूप से गुरु सहायक बने रहे

• मंत्र जप के बीच में कैसी भी परिस्थिति आ जाय, उठाना नहीं चाइए, किसी से बातचीत होठों या संकेतों से नहीं करना चाहिए, यदि ऐसी परिस्थिति आ भी जाय तो उठ कर आचमन तथा पवित्रिकर्ण कर पुनः साधना में बैठे

• साधना के प्रति साधक को पूरा विश्वास और श्रद्धा होनी चाहिए, बिना आस्था, विश्वास के कोई भी साधना सफल नहीं हो सकती

• साधक सर्वथा शांत बने रहे, किसी भी प्रकार का सन्देह मन में नहीं आवें और न उग्रता अथावा क्रोध ही प्रदर्शित करें, साधना की अवधि में अशुद्ध भाषण न करें, असत्य न बोलें और कोई ऐसा कार्य न करें जो निति के विरुद्ध हो, पूरी निष्ठा और गुरु आशीर्वाद लेकर साधना में प्रवृत्त होने से निश्चय ही सफलता प्राप्त होती है

- ये किसी भी प्रकार की साधना के आधारभूत तथ्य है, जो साधक को अपनाने चाहिए, ऐसा करने पर उसे सफलता स्वाभाविक रूप में मिल जाती है




साधक को चाहिए कि वह सोकर उठते ही दिन की शुरुवात निम्न विधि विधान से करे।
सोकर उठते ही सर्व प्रथम अपने हाथों को मिला कर कर दर्शन करे।और
मन्त्र उच्चारण द्वारा हम अपने दिन की शुरुआत करें तो मन अत्यंत शांत रहता है ।और हर कार्य में सफलता मिलती है।साधक को शुभ समाचार मिलता है।और दिन शुभ कारी हो जाता है।।।
प्रात: कर दर्शन..सुबह बिस्तर से उठने पर
कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती ।
करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम ॥
फिर.गुरु का चिंतन व् गुरु मन्त्र का जप 108 वाग् बीज.से।अगर गुरु नहीं है तो कोई बात नहीं सिर्फ ॐ गुरुवे नमःका जाप करो
ईस्ट चिंतन मानसिक हृदय में पूजन .
पुनः धरती माता को प्रणाम...बिस्तर त्याग करे
पृथ्वी क्षमा प्रार्थना....
समुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मंडिते ।
विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं पाद स्पर्शं क्षमश्वमे।
पैर जमीन पर रखने के पूर्व इस प्रकार से क्षमा मांग लें।एक संत के अनुसार क्षमा मांग कर पैर जमीन पर रखने से कोई दुर्घटना नही होती।अगर आप चाहते हैं कि एक्सीडेंट ना हो तो यह नित्य करते रहें।
पुनः दन्त व् मुख शोधन स्नानादि.
स्नान मन्त्र...
गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती ।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु ॥ करके
पुनः मार्तण्ड भैरव सूर्य भगवान को अर्ध्य देवे
.ह्रां ह्रीं ह्रूं हंसः श्री मार्तण्ड भैरवाय प्रकाश शक्ति सहिताय इदम् अर्ध्यम गृहण ग्रहण गृह्नापय गृहणापय.
सूर्य मण्डल में ही निज ईस्ट जो भी हो उनके गायत्री से अर्ध्य प्रदान करे.
...................
ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानु: शशी भूमिसुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्र: शनिराहुकेतव: कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्।।
से ग्रह स्तुति व् गणेश बटुक योगिनी पितृ गण मातृ गण सर्व मनुष्यादि गब व् गुरु चतुस्टय व् अदि गुरु परम्परा को तर्पण कर मूल देवता को तर्पण व् उनके सपरिवार देवता को तर्पण करके..
पुनः शुद्ध वस्त्र धारण कर बाये हाथ में जल लेकर ळं वं रं यं हं इस मत्र को दाहिने हथेली से 7 बार जप कर अपने ऊपर प्रणव या माया बीज से छिड़के.फिर भस्म आदि धारण करके आचमन व् नित्य क्रिया न्यासादि जप आदि स्वमार्ग से तर्पण आदि क्रम प्रारम्भ करना व् जप आदि करना चाहिए।श्री राधे।।सिर्फ गुरु कृपा केवलं।।
इसके बाद जो पिछले अंक में मैंने गायत्री सप्तश्लोकी दुर्गा और बटुक भैरव का पाठ करे।
हाँ,भोजन करते समय खाने के पहले कुत्ते को ग्रास जरूर निकाले और कुत्ते। को जरूर खिलाये।कुत्ता भैरव का वाहन है।
वैसे ज्योतिष शास्त्र कहता है कि खाने के पहले एक ग्रास गाय को एक कुत्ते को और एक कौव्वा को  निकालने से कई ग्रह शांत हो जाते है।घर से कलह दूर हो जाता है।घर में बीमारिया नही होती और घर में धन की आवक भी होती है।हर तरह की खुशहाली आती है।

RUDRAKSH DHARAN KARNE KI SARAL VIDHI रुद्राक्ष धारण सरल विधि

RUDRAKSH DHARAN KARNE KI SARAL VIDHI रुद्राक्ष धारण सरल विधि


♦ यदि किसी कारणवश रुद्राक्ष को विशेष मन्त्रों से धारण न कर सकें तो इस सरल विधि का प्रयोग करके धारण कर सकते हैं ।
♦ सरल विधि यह है कि रुद्राक्ष के मनकों को शुद्ध लाल धागे में माला तैयार करने के बाद गंगाजल सहित पंचामृत और पंचगव्य को मिलाकर स्नान करवायें और प्रतिष्ठा के समय श्रद्धा और विश्वास के साथ *ॐ नमः शिवाय* मन्त्र को बोलें । उसके पश्चात दोबारा गंगाजल में शुद्ध करते हुए चन्दन, बिल्वपत्र, लाल पुष्प, धूप, दीप द्वारा पूजन करते हुए *ॐ तत्पुरुषाय विदमहे महादेवाय धीमहि तन्नो रूद्र: प्रचोदयात* मन्त्र से अभिमन्त्रित करके धारण कर लिजिए ।
♦ शिवपूजन, मन्त्र, जप, उपासना आरम्भ करने से पहले ऊपर लिखी विधि के अनुसार रुद्राक्ष माला को धारण करें एवं एक अन्य रुद्राक्ष की माला का पूजन करके जाप करना चाहिए । इसके अतिरिक्त नीचे लिखी सावधानियों को भी ध्यान में पढ़ें और ग्रहण करें ।
♦ जो रुद्राक्ष कीड़ों ने दूषित किया हो, जो टूटा-फूटा हो, जिसमें उभरे हुए दाने न हों और पूरा-पूरा गोल न हो इस प्रकार के रुद्राक्षों को धारण नहीं करना चाहिए । जो रुद्राक्ष छिद्र करते हुए फट गये हों (जो शुद्ध रुद्राक्ष न हों) उन्हें धारण न करें ।
♦ धारण करने से पहले परीक्षण कर लें कि रुद्राक्ष असली है या नकली । जानकार ऐसा बताते हैं कि नकली रुद्राक्ष पानी में तैरने लगेगा और असली रुद्राक्ष पानी में डूब जाएगा ।
♦ जो रुद्राक्ष गोल, चिकना, मोटा, कांटेदार हो उसे ही धारण करना चाहिए ।
♦ एक बहुत अच्छी विधि यह भी है कि आप बड़ी ही श्रद्धा पूर्वक एक पीतल का कोई बर्तन लें । उसमें चन्दन से *ओम नमः शिवाय* लिखकर रुद्राक्ष को उस पीतल के बर्तन में रख दें । फिर इसी पंचाक्षरी मन्त्र - *ओम नमः शिवाय* को बोलते हुए एक-एक करके उस रुद्राक्ष के ऊपर 108 बिल्वपत्र रख दीजिये और फिर प्रातः रुद्राक्ष को प्रणाम् करके धारण कर लें ।
♦ रुद्राक्ष के दानों को तेज धूप में 6 घण्टे तक रखने से अगर रुद्राक्ष चटके नहीं (टूटे नहीं) तो असली रुद्राक्ष माने जाते हैं ।
♦ रुद्राक्ष धारण करने पर अण्डा, मीट, शराब, लहसुन, प्याज, बीड़ी, सिगरेट आदि व्यसनों का त्याग करना चाहिए ।
♦ जप आदि कार्यो में छोटा रुद्राक्ष ही विशेष फलदायक होता है और बड़ा रुद्राक्ष रोगों पर विशेष फलदायी माना जाता है ।
♦ रुद्राक्ष शिवलिंग से या फिर शिव प्रतिमा से स्पर्श कराकर धारण करना चाहिए ।
♦ रुद्राक्ष धारण करने के बाद सुबह और शाम भगवान शिव का पूजन और पंचाक्षरी मन्त्र - *ओम नमः शिवाय* का जाप करना चाहिए ।


रुद्राक्ष शाबर मंत्र

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ॐ गुरुजी
अकल सकल सुमेरु की छाया शिव शक्ति मिल वृक्ष लगाया ।
एक डाल अगम को गई - एक डाल उत्तर को गई ।
एक डाल पश्चिम को गई - एक डाल दक्षिण को गई ।
एक डाल आकाश को गई - एक डाल पाताल को गई ।
उसी पेड़ के फल लगा रुद्राक्ष का ।
एक मुखी रुद्राक्ष उकार को बरणे ।
दो मुखी रुद्राक्ष सूर्य चन्द्र को बरणे ।
तीन मुखी रुद्राक्ष तीन देवों को बरणे ।
चार मुखी रुद्राक्ष चार वेदों को बरणे ।
पांच मुखी रुद्राक्ष पांच पांडवों को बरणे ।
छः मुखी रुद्राक्ष छः दर्शनों (जति) को बरणे ।
सात मुखी रुद्राक्ष सात सायरों (सति) को बरणे ।
आठ मुखी रुद्राक्ष आठ कुली पर्वतों को बरणे ।
नौ मुखी रुद्राक्ष नौ कुली नाग को बरणे ।
दस मुखी रुद्राक्ष दस अवतारों को बरणे ।
ग्यारह मुखी रुद्राक्ष ग्यारह रुद्र शंकर को बरणे ।
बारह मुखी रुद्राक्ष बारह पंथों को बरणे ।
तेरह मुखी रुद्राक्ष तेरह रत्नों को बरणे ।
चौदह मुखी रुद्राक्ष चौदह विद्याओं को बरणे ।
पंद्रह मुखी रुद्राक्ष पंद्रह तिथियों को बरणे ।
सोलह मुखी रुद्राक्ष सोलह कलाओं को बरणे ।
सत्रह मुखी रुद्राक्ष सीता सतवंती को बरणे ।
अठारह मुखी रुद्राक्ष अठारह भार वनस्पति को बरणे ।
उन्नीस मुखी रुद्राक्ष शिव पार्वती गणेश को बरणे ।
बीस मुखी रुद्राक्ष विश्वासु मुनि साधु को बरणे ।
इक्कीस मुखी रुद्राक्ष एक अलख को बरणे ।
हाथ बांधे हतनापुर का राज पावे, कान के बांधे कनकापुर का राज पावे, कंठ गले के बांधे सात द्विप का राज पावे, मस्तक के बांधे कैलाशपुरी का राज पावे । नहीं जाने रुद्राक्ष जाप अठ्ठत्तर गऊ का लागे पाप, बांधे रुद्राक्ष जाणे जाप जन्म जन्म का पाप समाप्त ।  रुद्राक्ष जाप समाप्त हुआ शिव ध्यान में दत्तात्रेय महाराज ने कहा ।  श्री नाथजी गुरुजी को आदेश आदेश आदेश ।

विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )