Thursday, July 11, 2024

नक्षत्र चरण फल NAKSHATRA CHARAN

नक्षत्र चरण फल NAKSHATRA CHARAN



प्रत्येक नक्षत्र मे चार चरण होते है और एक चरण 3 अंश 20 कला का होता है। यह नवमांश जैसा ही है यानि इससे राशि के नौ वे भाग का फलित मिलता है। प्रत्येक चरण मे तीन ग्रह का प्रभाव होता है 1- राशि स्वामी, 2- नक्षत्र स्वामी, 3- चरण स्वामी।

अश्वनी नक्षत्र चरण फल:

प्रथम चरण : इसमे मंगल, केतु और मंगल का प्रभाव है। मेष 00 अंश से 03 अंश 20 कला। इसका स्वामी मंगल है। यह शारारिक क्रिया, साहस, प्रेरणा, प्रारम्भ का द्योतक है। जातक मध्यम कद, बकरे जैसा मुंह, छोटी नाक और भुजा, कर्कश आवाज, संकुचित नेत्र, कृश, धायल अथवा नष्ट अंग वाला होता है।
इसके गुणदोष - शारारिक सक्रियता, साहस, प्रोत्साहन, आवेगी बली. भावनावश परिणाम की बिना चिंता कार्य है। जातक नृप सामान, निर्भीक, साहसी, अफवाहो के प्रति आकर्षित, मितव्ययी, वासनायुक्त, भावुक होता है।

द्वितीय चरण : इसमे मंगल, केतु और शुक्र का प्रभाव है। मेष 03 अंश 20 कला से 06 अंश 40 कला। इसका स्वामी शुक्र है। यह अवबोध, अविष्कार, साकार कल्पना का द्योतक है। जातक श्याम वर्णी, चौड़े कन्धे, लम्बी नाक, लम्बी भुजा, छोटा ललाट, खिले नेत्र, मधुर वाणी, कमजोर जोड़ वाला होता है।
इसके गुणदोष - अवबोध, आविष्कारी, अश्विनीकुमार जैसी सदभावना, कल्पनाओ (भौतिक) को साकार करना है। जातक धार्मीक, हंसमुख, धनवान होता है।

तृतीय चरण : इसमे मंगल, केतु और बुध का प्रभाव है। मेष 06|40 से 10|00 अंश। इसका स्वामी बुध है। यह विनोद, संचार, फुर्ती, व्यापकता का द्योतक है। जातक काले बिखरे बाल, सुन्दर नेत्र व नाक, गौर वर्ण, वाकपटु, पतले जांध व नितम्ब वाला होता है।
इसके गुणदोष - विनोद, आदान-प्रदान, विस्तीर्ण योग्यता, दिमागी फुर्ती है। जातक विद्वान, ज्ञानवान, भोजन प्रेमी, भौतिकवादी, अशांत, तर्क आधारी, साहसिक होता है।

चतुर्थ चरण : इसमे मंगल, केतु और चन्द्र का प्रभाव है। मेष 10|00 से 13|20 अंश , इसका स्वामी चन्द्र है। यह चेतना, भावुकता, सहानुभूति का द्योतक है। जातक व्याकुल नेत्र, साहसी, ठिगना, नट अथवा नृत्यक, भ्रमणशील; खुरदरे नख, विरल कड़े रोम, कृश, भाई हीन होता है।
इसके गुणदोष - सामूहिक चेतना, महत्व, जानकारी, भावुकता है। जातक ईश्वर से डरने वाला, धार्मिक, पौरुषयुक्त, स्त्री संग प्रेमी, चरित्रवान, गुरुभक्त होता है।


भरणी नक्षत्र चरण फल

प्रथम चरण - इसका स्वामी सूर्य है। इसमे मंगल, शुक्र सूर्य का प्रभाव है। राशि मेष 13।20 से 16।40 अंश। नवमांश - सिंह। सृजन, स्वकेन्द्रित, संकल्प, दृढ़ निश्चय इसके गुणधर्म है।
जातक सिंह के सामान आँखे, मोटी नाक, छोड़ा ललाट, घनी भोंहे, घने पतले रोम, आगे का फैला शरीर होता है।
इसकी शिक्षा अच्छी होती है, यह ज्योतिषी, न्यायाधीश, आध्यात्म अध्यापक, नर्सरी टीचर आदि हो सकता है। जातक अहंकारी, कठोर प्रकृति वाला, शत्रुओ से रक्षा करने वाला, विशाल, चोरी की प्रवृत्ति वाला होता है।

द्वितीय चरण - इसका स्वामी बुध है। इसमे मंगल, शुक्र, बुध का प्रभाव है। राशि मेष 16।40 से 20।00 अंश। नवमांश कन्या। सेवा, संगठन कार्य प्रबंध, धैर्य, निस्वार्थता, परोपकार की भावना इसके गुणधर्म है।
जातक श्याम वर्ण, मृग सामान नेत्र, पतली कमर, कठोर पैर के पंजे, मोटा-लटकता पेट, मोटी भुजा व कंधे, डरपोक, बकवादी, सुयोग्य नृत्यक, डांस टीचर होता है।
जातक विपरीत लिंग का आशिक़, चतुर, मूर्तिकला का ज्ञानी, धर्मिक होता है। इस पाद मे प्रेम विवाह की सम्भावना रहती है।

तृतीय चरण - इसका स्वामी शुक्र है। इसमे मगल, शुक्र, शुक्र का प्रभाव है। राशि मेष 20।00 से 23।20 अंश। नवमांश तुला। समय मे सहमत होना या एक ही समय मे अनेक कार्य होना, अवधि विहीन प्रेम और रति, विपरीत लिंग का अत्यधिक आकर्षण, अभिलाषा की पूर्ति इसके गुणधर्म है।
जातक कड़े रोम वाला, चंचल, धवल नेत्र, रति निरत, कुलटा स्त्री का पति, हत्यारा, विशाल शरीर वाला होता है।जातक घमंडी, योगीन्द्र, पंडित, सामान्य स्वभावी, स्वयं का उद्योग करने वाला, अत्यधिक कामुक और कामातुर, वाचाल होता है।
✽ इस चरण मे मगल, + शुक्र, + शुक्र का प्रभाव वश यौन आकर्षण, यौनाचार, यौनक्रीड़ा, यौनकर्म, रति इत्यादि की बहुलता होती है।

चतुर्थ चरण - इसका स्वामी मंगल है। इसमे मंगल, शुक्र, मंगल का प्रभाव है। राशि मेष 23।20 से 26।40 अंश। नवमांश वृश्चिक। अत्यधिक ऊर्जा, रूकावट इसके गुणधर्म है।
जातक वानर मुखी, भूरे केश, गुप्तरोग रोगी, हिंसक, असत्यवादी, धातादिक योग, मित्र से सदव्यवहारी होता है। यह विस्फोटक ऊर्जावान होता है, यदि ऊर्जा का प्रवाह ठीक हो, तो जातक अन्वेषक या अविष्कारक, स्त्री रोग विशेषज्ञ, छायाकार, पैथालॉजिस्ट, जासूस होता है।
जातक कुसत्संगी, क्रूर, अहंकारी, दुर्दम, झूठा, स्वेच्छाचारी, वाचाल, कुछ अच्छी आदते वाला होता है।
आचार्यो ने चरण फल सूत्रो मे बताया है परतु फलित मे बहुत अंतर है।
मानसागराचार्य : भरणी के पहले चरण मे चोर, दूसरे चरण मे काल भाषा हीन, तीसरे चरण मे योगीन्द्र, चौथे चरण मे निर्धन होता है।
यवनाचार्य : भरणी के पहले चरण मे त्यागी, दूसरे चरण मे धनी व सुखी, तीसरे चरण मे क्रूर कर्म करने वाला, चौथे चरण मे दरिद्र होता है।


कृतिका नक्षत्र चरण फल ।

प्रथम चरण - इसका स्वामी गुरु है। इसमे मंगल, सूर्य, गुरु, का प्रभाव है। राशि मेष 26।40 से 30।00 अंश। नवमांश धनु। यह परोपकार, निस्वार्थ, महानता, उदारता, इच्छाशक्ति, ताकत, सेना अनुशरण, शुभ लक्षणो का द्योतक है।
जातक लम्बा, क्रश, चौड़ा ललाट, लम्बे कान, अश्व मुखी, धूमने-फिरने वाला, ज्ञानी, निर्मम, बहुरुपिया होता है। जातक बुद्धिमान, अनुशासित, रोगी किन्तु दीर्घायु, अनेक प्रकार से संतोषी, अनेक उपाधिया प्राप्त होता है।

द्वितीय चरण - इसका स्वामी शनि। इसमे शुक्र, सूर्य, शनि का प्रभाव है। राशि वृषभ 30।00 से 33।20 अंश। नवमांश मकर। यह सदाचार, नीति, भौतिकता, मातृपक्ष का द्योतक है।
जातक श्यामवर्णी, विषम नेत्र, क्रूरदृष्टि, नीच, प्रकृति विरुद्ध, वैर-विरोध करने वाला होता है। जातक की मृत्यु मघा के अंत मे या रेवती नक्षत्र मे होती है।
जातक आध्यत्मिक व्यक्ति से नफरत करने वाला, धार्मिक साहित्य का विरोधी, दूसरो को धार्मिक ग्रंथो का विरोध करने के लिए प्रेरित करने वाला, यदाकदा यशस्वी होता है।
तृतीय चरण - इसका स्वामी शनि है। इसमे शुक्र, सूर्य, शनि का प्रभाव है। राशि वृषभ 33।20 से 36।40 अंश। नवमांश कुम्भ। यह मानवता, भविष्यवाद, प्राचीन सत्ता, कर्तव्य, ज्ञान का द्योतक है।
जातक गंभीर नेत्र वाला, टेड़े सर व मुख वाला, आत्मा से द्रवित, अल्पबुद्धि, प्रतिकूल कर्मी, असत्य और अधिक बोलने वाला होता है। जातक वीर, अभिमानी, शीघ्र गर्म होने वाला, वेश्यागामी, तुच्छ जीवन वाला होता है।

चतुर्थ चरण - इसका स्वामी गुरु है। इसमे शुक्र, सूर्य, गुरु, का प्रभाव है। राशि वृषभ 36।40 से 40।00 अंश। नवमांश मीन। यह शीलता, सूक्ष्म ग्राह्यता, परोपकारिता, रचना का द्योतक है।
जातक कोमल अंग, सुन्दर शरीर व नाक, बड़े नेत्र, यज्ञ व धर्म कार्यो में रुचिवान, स्थिर, शुभ लक्षण वाला, पालन-पौषण करने वाला, चोरी की आदत वाला, नम्र किन्तु घमंडी, चिंतित, व्याकुल, कष्टमय, रोगी, मानसिक मुसीबतो से त्रस्त रहता है।
आचार्यों ने चरण फल सूत्र रूप मे कहा है किन्तु फलादेश मे अंतर बहुत है।
यवनाचार्य : प्रथम चरण मे तेजश्वी, दूसरे मे शास्त्र विज्ञानी, तीसरे मे शूर, चौथे मे दीर्घायु व पुत्रवान होता है।
मानसागराचार्य : प्रथम पाद मे शुभ लक्षणो से युक्त, द्वितीय मे यशस्वी, तृतीय मे पुत्रवान, चतुर्थ मे वीर होता है।


रोहिणी नक्षत्र चरण फल ।

प्रथम चरण - इसका स्वामी मंगल है। इसमे शुक्र, चंद्र, मंगल का प्रभाव है। राशि वृषभ 40।00 से 43।20 तक। नवमांश मेष। यह शरीरिक सुख, आध्यात्म, भोग का द्योतक है।
जातक छोटा उदर वाला, मेढे के सामान नेत्र, पिंगल वर्ण, क्रोधी, दूसरो के धन को हड़पने वाला होता है।
जातक वासना युक्त, लालची, कटुभाषी, देखने में सुन्दर तीखे नाक-नक़्शे वाला होता है।
द्वितीय चरण - इसका स्वामी शुक्र है। इसमे शुक्र, चंद्र, शुक्र का प्रभाव है। राशि वृषभ 43।20 से 46।40 तक। नवमांश वृषभ। यह विषम स्थति, भौतिकवाद, क्रांति का द्योतक है।
जातक बड़ी आँखोवाला, भैसा जैसा मुंह वाला, ऊँची नाक, घने केश, वृहद कंधे व भुजा तथा कमर, गौरवर्णी, भद्र आदतो वाला, सुवक्ता, रोगी जैसा किन्तु जितेन्द्रिय होता है।
तृतीय चरण - इसका स्वामी बुध है। इसमे शुक्र, चंद्र, बुध का प्रभाव है। राशि वृषभ 46।40 से 50।00 तक। नवमांश मिथुन। यह वाणिज्य, रचना, लचीलापन, नम्यता, कर्कशता, सम्पत्ति का द्योतक है।
जातक स्थिर, सुन्दर नेत्र, कोमल शरीर, मोहक वाणी, माधुर्य और हास्य रस मे रत, निपुण, बातूनी होता है।
जातक ठोस भक्त, प्रशंसा के योग्य, दानी, अंकगणित निपुण, धार्मिक और प्रसन्न होता है।
चतुर्थ चरण - इसका स्वामी चन्द्र है। इसमे शुक्र, चंद्र, चन्द्र का प्रभाव है। राशि वृषभ 50।00 से 53।20 तक। नवमांश कर्क। यह भौतिक सुरक्षा, मातृपक्ष, स्वामित्व का द्योतक है।
जातक मृत पुत्र वाला, युवतियो मे रत, लम्बी नाक, विशाल नेत्र, बड़े अंग, बड़े पैर, स्वजनो का द्वेषी होता है।
जातक धनवान, दूसरो का मन समझने मे सशक्त, भविष्यवक्ता, बुद्धिमान, सन्तुलित जीवन वाला होता है।
आचर्यों ने चरण फल सूत्ररूप में कहा है लेकिन उसमे बहुत अंतर है।
यवनाचार्य : पहले चरण मे सौभाग्य, दूसरे चरण मे पीड़ा, तीसरे मे डरपोकपन, चौथे मे सत्यवादी होता है।
मानसागराचार्य : प्रथम चरण मे शुभ लक्षणवाला, द्वितीय मे विद्वान, तृतीय मे सौभाग्यशाली, चतुर्थ मे कुलभूषण होता है।


मर्गशिरा नक्षत्र चरण फल ।

प्रथम चरण - इसका स्वामी सूर्य है। इसमे शुक्र, मंगल, सूर्य का प्रभाव है। राशि वृषभ 53।20 से 56।40 अंश। नवमांश सिंह। यह स्थायीकरण, स्वयोजना, रचना का द्योतक है।
जातक व्याघ्र के सामान नेत्र, सुन्दर दांत, चौड़ी नाक, भूरे बाल, कड़े नख, अहंकारी, अल्पकर्मी बातूनी होता है।
जातक शिक्षित, मेघावी, होशियार, भावुक, अन्वेषक, आवेगी, सृजनात्मक होता है। पुरुष संतति की दुविधा होती है, कन्या संतति होती है। दाम्पत्य जीवन साधारण होता है।

द्वितीय चरण - इसका स्वामी बुध है। इसमे शुक्र, मंगल, बुध का प्रभाव है। राशि वृषभ 56।40 से 60।00 अंश। नवमांश कन्या। यह परिकलन, गणना, भेदभाव, फर्क, व्यंग का द्योतक है।
जातक सम्मानीय, अल्प साहसी, डरपोक, दुबला-पतला, जुआरी, कुंठाग्रस्त, धन संचयी दुःख से प्रलाप करने वाला होता है।
इस चरणोत्पन्न जातक प्रायोगिक, सामाजिक, गणितज्ञ, मनोरंजक, गायन और संगीत में रुचिवान अच्छा सैनिक होता है। यदि यह चरण पाप प्रभाव मे हो, तो जातक अपमिश्रण करने वाला होता है। परिवार मे छोटे-मोटे विरोधाभास होते रहते है। इसके साथ धोखा हो सकता है।

तृतीय चरण- इसका स्वामी शुक्र है। इसमे बुध, मंगल, शुक्र का प्रभाव है। राशि मिथुन 60।00 से 63।20 अंश। नवमांश तुला। यह दिमागी दौड़, सामाजिकता का द्योतक है।
जातक लम्बे धने रोम, बड़े ऊँचे कंधे व भुजा, ऊँची नाक, मयूर समान नेत्र, दूर्वा (घास) के सामान अस्तिया, श्याम वर्ण, पतले हस्त वाला होता है। टांगे लम्बी और पतली होती है।
जातक ज्यादा सोच-विचार करने वाला, सामाजिक रोमांटिक (प्रणय प्रेमी, कल्पना जीवी) उच्च जन संपर्क अधिकारी होता है। इनके एक से अधिक स्त्रियो से प्रेम प्रसंग होते है।

चतुर्थ चरण - इसका स्वामी मंगल है। इसमे बुध, मंगल, मंगल का प्रभाव है। राशि मिथुन 63।20 से 66।40 अंश। नवमांश वृश्चिक। यह विद्ववता पूर्ण बहस, शक या अविश्वास, आध्यात्मिक उन्नति का द्योतक है।
जातक घट के सामान सिर वाला, नासिका के मध्य मे चोट लगना, धार्मिक, वाचाल, क्रियाशील, हिंसक, सेनापति होता है।
जातक अच्छा अन्वेषक, अत्यधिक सन्देह करने वाला, आवेगी होता है। इन्हे अच्छे परामर्शदाता की महत्वपूर्ण निर्णय लेने मे आवश्यकता होती है। यदि ये अपनी ऊर्जा का सदुपयोग करे तो ज्योतिषी, निवेशक, रचनात्मक लेखक, पादरी या पुरोहित हो सकते है।
आचर्यो ने चरण फल सूत्र रूप में कहा है लेकिन उसमे अन्तर बहुत है।
यवनाचार्य : मृगशीर्ष प्रथम चरण मे राजा, द्वितीय मे तस्कर, तृतीय मे भोगी, चतुर्थ मे धन-धान्य युक्त होता है।
मानसागराचार्य : पहले मे धनधान्यापार्जक, दूसरे मे पर स्त्री गामी, तीसरे मे भाग्यवान, चौथे मे निर्धन होता है।
⃝ इसके प्रथम और द्वितीय चरण वृषभ मे आते है अतएव जातक की संतान सुन्दर, मेघावी, सृजनात्मक, प्रचुर भौतिकता लाने वाली होती है।
⃝ इसके तृतीय और चतुर्थ चरण मिथुन मे आते है अतएव लेखन, जनवक्ता, प्रभावपूर्ण भाषण, जिज्ञासावृत्ति, अक्ल खोज प्रकट करते है।
⃝ स्त्री जातक गलत विचारो को व्यक्त करने में भी नही हिचकिचाति है इस कारण मित्र भी शत्रु बन जाते है।

आर्द्रा चरण फल

प्रथम चरण - इसका स्वामी गुरु है। इसमे बुध, राहु, गुरु का प्रभाव है। राशि मिथुन 66।40 से 70।00 अंश। नवमांश धनु। यह खोज-बीन, भौतिकवाद, प्रसन्नता का द्योतक है।
जातक रक्त वर्ण, समशरीर, सुन्दर नाक, लम्बा चेहरा, घनी तीखी भौहे वाला होता है। वाणी प्रभावी व चातुर्यपूर्ण होती है। जातक के मन मे हमेशा संक्षोभ होता है जिससे दुविधा के कारण कुछ निश्चित नही कर पता है अतः इस तूफान के निवारण के लिए ध्यान करना चाहिए।

द्वितीय चरण - इसका स्वामी शनि है। इसमे बुध, राहु, शनि का प्रभाव है। राशि मिथुन 70।00 से 73।20 अंश। नवमांश मकर। यह भौतिकवाद, निराशा, कष्ट का द्योतक है।
जातक की भौंहे सुन्दर, बदन इकहरा, हल्का कृष्ण वर्ण, छोटा चहेरा, दीर्घ वक्ष, यौन वासना युक्त होता है। यह चरण अत्यधिक भ्रष्टाचार का द्योतक है। आर्द्रा नक्षत्र की ऋणात्मक विशेषता इस चरण मे सबसे ज्यादा होती है परन्तु जातक व्यवहारिक और भौतिक होता है। बुध और शनि शुभ स्थान में हो, तो भौतिकता कड़ी मेहनत के 32 वर्ष की उम्र पश्चात प्राप्त होती है।

तृतीय चरण - इसका स्वामी शनि है। इसमे बुध, राहु, शनि का प्रभाव है। राशि मिथुन 73।20 से 76।40 अंश। नवमांश कुम्भ। यह विज्ञान, शोध, प्रोत्साहन, मानसिक गतिविधि का द्योतक है।
जातक बड़ा मुंह, बड़ा वक्ष, मोटी कमर, लम्बी भुजा वाला, स्थूल सर वाला, कपटी, दुष्ट, उभरी शिराएं वाला, आँखो से मन की बात जानना कठिन होता है। जातक सामाजिक कार्यकर्त्ता, व्यक्तियो का शरीरिक रूप से मददगार, कर्मठ, तेज दिमाग वाला होता है।

चतुर्थ चरण - इसका स्वामी गुरु है। इसमे बुध, राहु, गुरु का प्रभाव है। राशि मिथुन 76।40 से 80।00 अंश। नवमांश मीन। यह संवेदना, अनुकम्पा, शांति का द्योतक है।
जातक मादक नयन, वाचाल, चौड़ा ललाट, बलिष्ठ शरीर, गुलाबी होंठ, पीले दांत, जुआरी, दुष्ट व निरर्थक प्रलापी होता है। जातक भावुक, हास्यास्पद, दानी, बिना हिचकिचाहट के दूसरो धन से मददगार, स्थिर दिमाग, लाभदायक गतिविधियो मे सलग्न रहता है।
आचार्यो ने चरण फल सूत्र रूप मे कहा है परन्तु फलित मे अंतर बहुत है।
यवनाचार्य : आर्द्रा के प्रथम चरण मे खर्चीला, द्वितीय मे दरिद्री, तृतीय मे अल्पायु, चतुर्थ मे तस्कर होता है।
मानसागराचार्य : आर्द्रा के पहले पाद मे कटुभाषी, दूसरे मे धनवान, तीसरे मे भाग्यवान चौथे मे धन-धन्य भोगी होता है।


पुनर्वसु नक्षत्र चरण फल ।

प्रथम चरण - इसके स्वामी मंगल है। इसमे बुध, गुरु, मंगल का प्रभाव है। मिथुन 80।00 से 83।20 अंश । नवमांश मेष। यह गति, साहसिक / जोखिम के काम, दर्शन, आध्यात्मिक मार्ग, मित्रता का द्योतक है।
जातक ताम्र वर्ण, अरुण और समुन्नत नेत्र, विशाल वक्ष, शिक्षा व कला मे निपुण, मज़ाकी स्वाभाव का होता है।
जातक कुशल, गुणी, सृजनात्मक होता है। कार्य प्रारम्भ मे जल्दबाज बाद मे सामान्य और सफल होता है। ये आसानी से मित्र और महिला मित्र बना लेते है। इनकी संतान समर्पित होती है। बिना ओरो को नुकसान पहुंचाये धन कमाने मे माहिर होते है।

द्वितीय चरण - इसके स्वामी शुक्र है। इसमे बुध, गुरु, शुक्र का प्रभाव है। मिथुन 83।20 से 86।40 अंश। नवमांश वृषभ। यह स्थाईत्व, भौतिकता, यात्रा का द्योतक है।
जातक श्याम वर्णी, मोटा शरीर, लम्बे श्वेत नेत्र, मनस्वी (मनन, चिंतन, विचार) मधुर भाषी कलाविद होता है। जातक संपत्ति का संग्रहक, बिना मेहनत किये कमाने मे कलाविद, संचार कुशल, सफल व्यापारी होता है।

तृतीय चरण - इसके स्वामी बुध है। इसमे बुध, गुरु, बुध का प्रभाव है। मिथुन 86।40 से 90।00 अंश। नवमांश मिथुन। यह कल्पना, मानसिक केंद्र, विज्ञान का द्योतक है।
जातक गोल श्वेत नेत्र, सुन्दर देह निपुण, मेघावी, रति क्रीड़ा दक्ष, कला साहित्य विज्ञान का ज्ञाता होता है। इस चरण मे धन अर्जित करने की ऊर्जा होती है। जातक उच्च शिक्षा प्राप्त, साहित्य प्रेमी, संधर्ष से धनी होता है।

चतुर्थ चरण - इसके स्वामी चन्द्र है। इसमे चन्द्र, गुरु,चंद्र का प्रभाव है। कर्क 90।00 से 93।00 अंश। नवमांश कर्क। यह माँ बनना, मातृत्व, फैलाव, पोषण का द्योतक है।
जातक स्वच्छ, सुन्दर गौर वर्ण, बड़ा पेट अथवा कमर. दिव्य आभा युक्त मुखड़ा, बड़े नेत्र, छोटी भुजा होती है। इस पाद में पुनर्वसु के सबसे घनात्मक प्रभाव होते है। जातक अत्यधिक देख-भाल करने वाला, दानी, आध्यत्मिक ज्ञान के लिए परिश्रमी, रचनात्मक लेखक, नाम और शोहरत वाला होता है।
आचर्यों ने चरण फल सूत्र रूप मे कहा है परन्तु अंतर बहुत है।
यवनाचार्य : पुनर्वसु के प्रथम चरण मे सुखी, द्वितीय मे विद्वान, तृतीय मे रोगी, चतुर्थ में मृदुभाषी होता है।
मानसागराचार्य : पुनर्वसु के पहले चरण मे चोर, दूसरे मे महात्मा, तीसरे मे देव-गुरु भक्त, चौथे मे धनी होता है।


पुष्य नक्षत्र चरण फलादेश।

प्रथम चरण - इसका स्वामी सूर्य है। इसमे चन्द्र, शनि, सूर्य का प्रभाव है। कर्क 93।20 से 96।40 अंश। नवमांश सिंह। यह तीव्र प्रकाश का आकर्षण, उपलब्धता, सम्पदा, सकारात्मकता, पैतृक गर्व का द्योतक है।
जातक लाल गुलाबी कान्ति वाला, बिलाव (बिल्ली) के सामान चेहरा वाला, लम्बे हाथ तथा पैर, विवाह के लिए प्रवासी, कला प्रिय होता है।
जातक जबाबदारी के लिए विश्वनीय, व्यवसायिक जीवन के लिए गंभीर, परिवार के प्रति चिन्तित, विवाह मे अड़चन, दाम्पत्य जीवन दुःखद होता है। कोई-कोई जातक मजदुर होता है।

द्वितीय चरण - इसका स्वामी बुध है। इसमे चन्द्र, शनि, बुध का प्रभाव है। कर्क 96।40 से 100।00 अंश। नवमांश कन्या। यह धैर्य, निरतन्तर उद्योग, शुक्र के आलावा सभी ग्रहो के लाभ का द्योतक है।
जातक सुन्दर नेत्र, सुकुमार कोमल देह, गौर वर्ण, युवती के सामान सुडोल व पुष्ट अंगो वाला, मधुर वाणी युक्त, बुद्धिमान, अालसी लेकिन प्रभावी वक्ता होता है।
नौकर समान कार्यकारी, स्त्री या पुरुष जातक निज सचिव या शासकीय नौकर होते है। स्वास्थ सम्बन्धी बाधा और शरीरिक गड़बड़ी होती है।

तृतीय चरण - इसका स्वामी शुक्र है। इसमे चन्द्र, शनि, शुक्र का प्रभाव है। कर्क 100।00 से 103।20 अंश। नवमांश तुला। यह आराम, सुविधा, समाज प्रियता, अनुकूलता, अनुरूपता, सतही प्रगाढ़ता का द्योतक है।
जातक श्याम वर्णी, स्थूल देह, धनुषाकार भौंहे, सुंदर नाक व आंख, विलासी, क्षीणभाग्य, जाति बन्धु का हित करने वाला होता है।
जातक सामाजिक, यौन क्रिया का इच्छुक, पारिवारिक जीवन की अपेक्षा व्यावसायिक जीवन चाहने वाला, जीवन मे आराम और सुविधा भोगने वाला कार्य के प्रति लगनशील होता है।

चतुर्थ चरण - इसका स्वामी मंगल है। इसमे चन्द्र, शनि, मंगल का प्रभाव है। कर्क 103।20 से 106।40 अंश। नवमांश वृश्चिक। यह स्वर्गीय ज्ञान, अत्याचार, जुल्म, निर्भरता का द्योतक है।
जातक घड़ियाल / घंटे के समान सिर वाला, बाकी तिरछी भौंहे, लंबी भुजाए, सेवारत, अल्पबुद्धि, दुष्कर्मी, असहनशील होता है।
यह चरण विशेष शुभ नही होता, इसमे नक्षत्र के सभी ऋणात्मक लक्षण होते है। जातक की प्रारम्भिक शिक्षा मे स्वास्थ के कारण व्यवधान, युवावस्था मे प्रेम प्रसंग के कारण शिक्षा मे परेशानी होती है। 36 वर्ष की उम्र तक व्यवसाय मे रूकावट अड़चने आती है।
आचार्यो ने चरण फल सूत्र रूप मे कहा है, लेकिन अंतर बहुत है।
यवनाचार्य : पुष्य के पहले चरण मे दीर्घायु, दूसरे मे तस्कर, तीसरे मे योगी, चौथे मे बुद्धिमान होता है।
मानसागराचार्य : पुष्य पहले चरण मे राजा, दूसरे में मुनियो मे श्रेष्ट, तीसरे मे विद्वान, चौथे मे धर्मात्मा होता है।


आश्लेषा नक्षत्र चरण फल ।

प्रथम चरण - इसका स्वामी गुरु है। इसमे चन्द्र, बुध, गुरु का प्रभाव है। कर्क 106।40 से 110।00 अंश। नवमांश धनु। यह भय, रोग, शत्रु का द्योतक है। जातक लम्बा, स्थूल देह, सुन्दर नेत्र और नाक, गौर वर्ण, लबे-चौड़े दांत, वक्ता प्रतापी होता है।
स्त्री अथवा पुरुष जातक लक्ष्य पाने के लिए मेहनती होते है। ये शत्रु को वश मे करने की कला के ज्ञाता, साथियो और वरिष्ठो से प्रतिस्पर्धा मे विशिष्ट होते है।

द्वितीय चरण - इसका स्वामी शनि है। इसमे चन्द्र, बुध, शनि का प्रभाव है। कर्क 110।00 से 113।20 अंश। नवमांश मकर। यह तृप्ति, लोगो से सौदा या व्यवहार, ठगबाजी, ईच्छा, स्वत्व उन्मुखता, वित्त का द्योतक है। जातक छितरे अल्प रोम युक्त, स्थूल देह, दीर्घ सर व जांघ, रक्षक अथवा चौकीदार, कौआ के सामान चौकन्ना, स्फूर्तिवान होता है।
नक्षत्र के नकारात्मक लक्षण इस चरण मे देखे जाते है। जातक अत्यधिक मक्कार, बेहिचक दूसरो के लक्ष्य को रोकने वाला, अविश्वनीय होता है। जातक को काबू मे रखना अत्यंत दुष्वार होता है। इसका खुद का मकान नही होता है यदि होता भी है तो किराये के मकान मे रहता है।

तृतीय चरण - इसका स्वामी शनि है। इसमे चन्द्र, बुध, शनि का प्रभाव है। कर्क 113।20 से 116।40 अंश। नवमांश कुम्भ। यह गोपनीयता, छुपाव, योजना, माता पर कुप्रभाव का द्योतक है। जातक घड़ियाल के सामान सिर वाला, सुन्दर मुख व भुजा, कछुवे के समान गति, चपटी नाक, श्यामवर्णी, कुशिल्पी होता है। इस पाद मे जातक विश्वनीय होता है। परन्तु दूसरे सभी लक्षण दूसरे पाद जैसे ही होते है। इन्हे चर्म रोग रहता है।

चतुर्थ चरण - इसका स्वामी गुरु है। इसमे चन्द्र, बुध, गुरु का प्रभाव है। कर्क 116।40 से 120।00 अंश। नवमांश मीन। यह भ्रम, अति प्रयास या संघर्ष (ग्रीक पौराणिकता अनुसार इसमे सर्प का कत्ल किया जाता है) खतरनाक धोखा, आमना-सामना, पिता के स्वास्थ पर दुष्प्रभाब का द्योतक है। जातक गौरवर्ण, मस्य सामान नेत्र, कोमल उदर, बड़ा वक्ष, लम्बी दाड़ी, पतले होंठ, बड़ी जांघे पतले घुटने वाला होता है।
इस पाद का जातक दूसरो को शिकार बनाने के बजाय खुद शिकार होता है। जीवन में सम्बन्ध बनाये रखने के लिये कठिन परिश्रम करता है। नक्षत्र दुष्प्रभाव मे हो, तो गंभीर मनोरोग होते है।
नक्षत्रो के चरण फल आचर्यों ने सूत्र रूप मे कहे है लेकिन अंतर बहुत है।
यवनाचार्य : आश्लेषा के प्रथम चरण मे संतान हीन, द्वितीय मे पराया काम करने वाला, नौकर या एजेन्ट, तृतीय मे रोगी, चतुर्थ मे गण्डांत रहित भाग मे सुभग या सौभाग्यशाली होता है। गण्डान्त मे अल्पायु होता है।
मनसागराचार्य : पहले चरण मे चोर, दूसरे मे निर्धन, तीसरे मे देश मे पूज्य, चौथे मे कुल भूषण होता है।


मघा नक्षत्र चरण फल ।

प्रथम चरण - इसका स्वामी मंगल है। इसमे सूर्य, केतु, मंगल का प्रभाव है। सिंह 120।00 से 123।20 अंश। नवमांश मेष। यह शक्ति, शूरता, नेतृत्व, दया का द्योतक है।
जातक मंदाग्नि से ग्रस्त, साहसी, नाशिक का अग्र लाल भाग, बड़ा सिर, उन्नत मांशल वक्ष, शूरवीर होता है।
यह पाद जातक का बहुत मजबूत स्वभाव दर्शाता है। जातक अत्यंत शक्तिशाली, अहंमानी, उच्च स्थिति प्राप्तक, विख्यात न्यायाधीश या अभिभाषक, अधिकार युक्त होता है। इसे कट्टर दुश्मनी कारक अधिक शक्ति के उपयोग पर नियंत्रण रखना चाहिए।

द्वितीय चरण - इसका स्वामी शुक्र है। इसमे सूर्य, केतु, शुक्र का प्रभाव है। सिंह 123।20 से 126।40 अंश। नवमांश वृषभ। यह चेतना, कर्तव्य, संगठन, अनुग्रह का द्योतक है।
जातक चौड़ा ललाट, चार कोने वाला शरीर, छोटे नेत्र, लम्बी भुजा, उन्नत वक्ष, लम्बी ऊंची नाक वाला, अल्प क्रोधी होता है। यह पाद व्यवहार मे शालीनता और निम्न स्तरीय अहंकार को दर्शाता है। इसके पास अधिकार और शक्ति होते हुए भी कूटनीति से भौतिक लक्ष्य को प्राप्त करता है। इस कारण जातक कुटनीतिज्ञ, राजनीतिज्ञ, प्रबंधक, प्रशासक आदि होता है।

तृतीय चरण - इसका स्वामी बुध है। इसमे सूर्य, केतु, बुध का प्रभाव है। सिंह 126।40 से 130।00 अंश। नवमांश मिथुन। यह विद्ववता, खोज, रचनात्मकता का द्योतक है।
जातक घने रोम वाला, चकोर, ऊंची नाक, लम्बी भुजा, गोल गले वाला, मोह ममता से परे होता है। जातक अत्यंत मेघावी, समय निकाल कर मित्रो मे व्यतीत करने वाला, कार्यालय समय बाद तनाव मुक्ति का ज्ञाता होता है। यह अति उच्च शिक्षा प्राप्त बुद्धि जीवी होता है।

चतुर्थ चरण - इसका स्वामी चन्द्र है। इसमे सूर्य, केतु, चन्द्र का प्रभाव है। सिंह130।00 से 133।20 अंश। नवमांश कर्क। यह संस्कार, पैतृकता, खुशहाली, दान का द्योतक है।
जातक चिकनी तैलीय त्वचा वाला, गौर वर्ण, लम्बे सुन्दर नेत्र, बेसुरी आवाज वाला, कोमल केश, मेढक के सामान पेट, कम खुराक वाला होता है। अधिकार प्राप्त जातक के लिए यह शुभ नही है। महत्वपूर्ण निर्णय के समय यह भावुक होकर अपने लगाव के प्रति झुक जाता है। यह छान-बीन करने वाला पुरातत्ववेत्ता होता है।
आचर्यों ने चरण फल सूत्र रूप मे कहा है परन्तु फलादेश मे बहुत अंतर है।
यवनाचार्य : मघा के पहले चरण मे पुत्रहीन, दूसरे मे पुत्रवान, तीसरे मे रोगी, चौथे मे विद्वान, बुद्धिमान होता है।
मानसागराचार्य : पहले चरण मे राजमान्य, दूसरे मे धनवान, तीसरे मे तीर्थयात्री, चौथे मे पुत्रवान होता है।


पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र चरण फल ।

प्रथम चरण - इसका स्वामी सूर्य है। इसमे सूर्य, शुक्र, सूर्य का प्रभाव है। सिंह 133।20 से 136।40 अंश। नवमांश सिंह। यह स्व प्रतिष्ठा, वैभव, शान का द्योतक है। जातक घड़ियाल समान सिर, अल्प केश, श्वेत आंखे, लोमड़ी सामान शरीर, लम्बा पेट, साहसी, मोटे चौड़े तीखे दांत वाला होता है।
जातक साहसी, पत्नी युक्त, माता का भक्त होता है। विपरीत लिंग से अड़चन, रसायन या हॉस्पिटल से आजीविका होती है। पुरुष जातक कच्चे माल का व्यापारी, जीवन के उत्तरार्ध मे सुखी, धनार्जन और व्यापार के लिए यात्राएं करने वाला होता है।

द्वितीय चरण - इसका स्वामी बुध है। इसमे सूर्य, शुक्र, बुध का प्रभाव है। सिंह 136।40 से 140।00 अंश। नवमांश कन्या। यह धैर्य, संयम, व्यापार, उद्योग का द्योतक है। जातक अल्प रोम, कोमल मटमैले नेत्र, लम्बा, श्याम वर्णी, स्त्री सुलभ सौन्दर्य युक्त, चतुर, शेखी मारने वाला, कार्य साधने में निपुण होता है।
जातक महा क्रोधी, जीवन के मध्य मे वासना युक्त, जीवन के अंत मे शांत और चिंता मुक्त होता है। पुरुष जातक नम्र, स्त्रियो का शौकीन, शराबी, नृत्य संगीत में रुचिवान, शिल्पकार, परिवार से दूर रहने वाला होता है।

तृतीय चरण - इसका स्वामी शुक्र है। इसमे सूर्य, शुक्र, शुक्र का प्रभाव है। सिंह 140।00 से 143।20 अंश। नवमांश तुला। यह सृजन, तनाव मुक्ति, समान विचार, यात्रा, परिष्कृत, प्रशंसा, परामर्श का द्योतक है। जातक लम्बा मुंह, लम्बा मोटा सिर, हृष्ट-पुष्ट, मांसल देह, श्याम वर्ण, घने रोम, स्त्रियो से कपटी, कूटनीतिज्ञ, ठग, कठोर भाषी होता है।
जातक आक्रामक, संताप रहित, अनेक जबाबदारियो से परिपूर्ण होता है। घर मे चोरी होती है, परन्तु नुकसान कम होता है या चोरी गया मॉल मिल जाता है। पुरुष जातक प्रहार का शौकीन, बॉक्सर या पहलवान, वंश परम्परा का आदर करने वाला, परिवार और रिस्तेदारो का घनिष्ट, जीवन के अंत मे अकेला होता है।

चतुर्थ चरण - इसका स्वामी मंगल है। इसमे सूर्य, शुक्र, मंगल का प्रभाव है। सिंह 143।20 से 146।40 अंश। नवमांश वृश्चिक। यह लालसा, वीरता, रंग रूप का द्योतक है। जातक के जीवन मे कलह विशेष होता है। यदि जन्मांग मे सूर्य गुरु अच्छी स्थति मे हो, तो कलह कम होता है। जातक शिष्ट भाषी, स्थिर अंग, गंभीर स्वभाव, कपट दृष्टि, निषिद्ध कार्य करने वाला, गुप्तचर, कुशल होता है।
आचार्यो ने चरण फल सूत्र रूप में कहा है परन्तु अन्तर बहुत है।
यवनाचार्य : पहले पाद मे समर्थ व धार्मिक राजा, दूसरे मे रोगी, तीसरे मे क्रूर, चौथे मे अल्पायु होता है।
मानसागराचार्य : पूर्वा फाल्गुनी के पहले पाद मे स्वपक्ष जनहीन, दूसरे मे माता-पिता का भक्त, तीसरे मे राजमान्य चौथे मे धनी होता है।


उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र चरण फल।

प्रथम चरण - इसका स्वामी गुरु है। इसमे सूर्य, सूर्य, गुरु का प्रभाव है। सिंह 146।40 से 150।00 अंश। नवमांश धनु। यह आचार, नियम, सलाह, भाग्य, भौतिक फैलाव का द्योतक है। जातक अश्व मुखी, मटमैले नेत्र, लम्बी भुजा, सुन्दर एड़ी और जांघ, पतली कमर, दमा रोग से पीड़ित होता है।
जातक धनी, प्रसिद्ध, बहादुर, सृमद्ध, पारिवारिक, सुकार्यकर्ता, साफ-स्वच्छ, वश मे करने वाला, क्ले या प्लास्टिक वस्तुए के मॉडल निर्माता होता है। जातक परिवार से 22 या 36 वे वर्ष से अलग रहता है।

द्वितीय चरण - इसका स्वामी शनि है। इसमे सूर्य, बुध, शनि का प्रभाव है। कन्या 150।00 से 153।20 अंश। नवमांश मकर। यह आयोजन तथा भौतिक सफलता का द्योतक है। जातक मृगनयनी, सुन्दर, लम्बा कद, वक्ता, दान का उपभोग करने वाला, धनवान, सहृदयी होता है।
जातक मिश्रित स्वभाव वाला, भारी नुकसान से पीड़ित, कन्या बहुल, नेक और धर्मत्मा, रहस्यवादी, वातावरण मे हमेशा परिवर्तन का इच्छुक, निर्धन, क्रूर, अनिर्णीत होता है।
कोई-कोई जातक छिद्रान्वेषी, अस्थिर, भिक्षुक, कृषि मे आंशिक सफल, दुश्चरित्र होते है। पुरुष जातक काश्य शिल्पकार, अहंकार रहित, गणितज्ञ, कोशिश और योग्यता से कमाने वाला, सामान्य धनी होता है।

तृतीय चरण - इसका स्वामी शनि है। इसमे सूर्य, बुध, शनि का प्रभाव है। कन्या 153।20 से156।40 अंश। नवमांश कुम्भ। यह बुद्धि, विश्व प्रेम या मानव प्रेम, गुलामी, सामाजिक जबाबदारियो का द्योतक है। जातक गोल मुख, सुन्दर नेत्र, लम्बोदर, मोटी जांघे, कोमल शरीर और वाणी, चंचल, जिंदादिल होता है।
जातक कृतघ्न, झगड़ालू, विनोदी, दिखावटी, वासना युक्त, स्वच्छ, महाज्ञानी होता है। यह कन्या सन्तति वाला, भाई बहनो से कटु सम्बन्ध वाला, कार्य करने मे चतुर, लालच रहित, धार्मिक साहित्य और धार्मिक लेखन मे रुचिवान तथा 40 वर्ष पश्चात इसी क्षेत्र मे प्रसिद्द होता है।

चतुर्थ चरण - इसका स्वामी गुरु है। इसमे सूर्य, बुध, गुरु का प्रभाव है। कन्या 156।40 से 160।00 अंश। नवमांश मीन। यह बुद्धि, विस्तृत क्षितिज, आध्यात्म, भौतिक सफलता का द्योतक है। जातक चौड़ी नाक, उभार युक्त रंध्र, खूबसूरत पैर, लम्बे हाथ व पैर, गौर वर्ण, उच्च स्वर, प्रत्यक्ष कांतिवान होता है।
जातक खुशहाली युक्त, ज्ञानी और पंडित, पुत्रवान सुस्वभावी, विनोदी, एहशान फरामोश, अपराधी, प्रभावी, धनाढ्य, लोभ-लालच रहित, अल्प लाभ पाने वाला होता है।
आचार्यो ने चरण फल सूत्र रूप में कहा है लेकिन अंतर बहुत है।
यवनाचार्य : उत्तरा फाल्गुनी के पहले चरण मे पण्डित, दूसरे मे राजा या जमींदार, तीसरे मे विजयी और सफल, चौथे में धार्मिक होता है।
मानसागराचार्य : उ. फा. प्रथम चरण मे निर्धन, दूसरे मे धन हीन, तीसरे मे पुत्र हीन, चौथे मे शत्रुहंता होता है।


हस्त चरण या पाद फल

प्रथम चरण - इसका स्वामी मंगल है। इसमे चन्द्र, बुध, मंगल का प्रभाव है। कन्या 160।00 से 163।20 अंश। नवमांश मेष। यह प्रचुर ऊर्जा, अनैतिक व्यवहार, गणित, शल्य चिकित्सा, सेना का द्योतक है। जातक लाल गौर वर्ण, कृश, दो सर वाला, कपाल पर गड्डा से आसानी पहचाना जाता है।
जातक स्त्रियो मे प्रसिद्ध और रमन करने वाला, तीक्ष्ण, सत्य ज्ञानवान, बुद्धिमान, बहादुर, संचार मे आक्रामक, शास्त्र अध्ययन मे रुचिवान होता है। पुरुष जातक शांत घरेलू, सत्य धर्मावलम्बी, खाद्य प्रबंधक, लेखाकार, केशियर, मुनीम होता है। यह चरण स्वास्थ्य और सुख के लिए अशुभ है। इस चरण मे कोई भी ग्रह सुरक्षित यात्रा का द्योतक नही है।

द्वितीय चरण - इसका स्वामी शुक्र है। इसमे चन्द्र, बुध, शुक्र का प्रभाव है। कन्या 163।20 से 166।40 अंश। नवमांश वृषभ। यह व्यवहारिक, संसारिक, गुणवत्ता, भौतिक सम्पदा, कला, चरित्र का द्योतक है। जातक मोटे होंठ, लम्बा शरीर, लम्बी भुजा, लम्बे कठोर बाल, चौड़ा वक्ष, मोटी जाँघे वाला, विद्वान, दूसरो पर आश्रित होता है। जातक ललित कला प्रेमी परन्तु उद्यम रहित होता है। जीवन मे अनेक उतार-चढ़ाव आते है लेकिन कठिनाई रहित जीवन व्यापन कर लेता है। जातक नशेड़ी, शराबी होता है। नशे से अस्वस्थ रहता है। पुरुष जातक मे पहले चरण जैसे ही गुणदोष होते है।


तृतीय चरण - इसका स्वामी बुध है। इसमे चन्द्र, बुध, बुध का प्रभाव है। कन्या 166।40 से 170।00 अंश। नवमांश मिथुन। यह व्यापारी, व्यापार-व्यवसाय, चतुराई, बुद्धि, निपुणता, विशिष्ट बोध का द्योतक है। जातक मनोहर कांतिवान, उत्तम शरीरी, गौर वर्ण, सुवक्ता, लिपि व लेखन कला का ज्ञाता, भ्रमणशील होता है।
जातक अच्छा व्यापारी, सफल विक्रेता, उच्च शिक्षावान, बुद्धिमान, संचार मे चतुर, पढ़ाई-लिखाई मे छानबीन कर वक्त गुजारने वाला होता है। 26 से 29 वर्ष मे अपरिचित प्रेम प्रसंग और नशे की लत से कलंकित और लोक निंदा का पात्र होता है। पुरुष जातक गुस्सैल, लेखक या वकील, आभूषण और वाहन प्रिय, हवाई और रेल यात्रा का शौकीन होता है। समुद्री यात्रा नही करता है।

चतुर्थ चरण - इसका स्वामी चन्द्र है। इसमे चन्द्र, बुध, चंद्र का प्रभाव है। कन्या 170।00 से 173।20 अंश। नवमांश कर्क। यह परिवार और समाज के विवेक, भौतिक सुरक्षा, विदेशी वस्तुओ का डर, अच्छे-बुरे के प्रदर्शन का द्योतक है। यदि गुरु शुभ हो, तो सुसन्तति होती है। जातक छोटा मुंख, कोमल हथेली, ऊँचे कंधे, तीव्र पाचन शक्ति, हाथी जैसे लम्बे पैर, बड़ा पेट, पानी से डरने वाला होता है।
जातक मानसिक दुविधा वाला, सामान्य बुद्धि वाला, साधारण शिक्षित, पारिवारिक मामलो में दिलचस्प होता है। स्त्री/पुरुष जातक आसानी से शराब के आदी हो जाते है। जातक अज्ञात भय के कारण बहते पानी से और पानी मे डुबकी लगाने से डरता है। जातक लेखक या प्रकाशक, रसायन या जलीय पदार्थ बेचने वाला होता है।
आचर्यों ने चरण फल सूत्र रूप मे कहा है लेकिन अंतर बहुत है।
यवनाचार्य : हस्त के प्रथम चरण मे विवाद कुशल और शूरवीर, द्वितीय मे रोगी, तृतीय मे धनधान्य से भरपूर, चतुर्थ मे श्रीमान होता है।
मानसागराचार्य : हस्त प्रथम चरण मे धनवान, द्वितीय मे भोगी, तृतीय मे पुत्रवान, चतुर्थ मे राजमान होता है।


चित्रा चरण फल

प्रथम चरण- इसका स्वामी सूर्य है। इसमे बुध, मंगल, सूर्य का प्रभाव है। कन्या 173।20 से 176।40 अंश। नवमांश सिंह। यह आकर्षण, पराकाष्ठा, स्व खंडन, गोपनियता, गुप्त संस्कार या आध्यात्म का द्योतक है।
जातक सुकुमार, गौर वर्ण, सुनहरे बाल. लम्बी चौड़ी भुजा, चिड़चिड़ा, आक्रामक, स्वाभिमानी होता है। जातक नई वस्तु उत्पादक किन्तु उसके उत्पादन के तरीको को छिपाने वाला, आदर्शो मे सुन्दर, अमानवीय होता है।

द्वितीय चरण - इसका स्वामी बुध है। इसमे बुध, मंगल, बुध का प्रभाव है। कन्या 176।40 से 180।00 अंश। नवमांश कन्या। यह मां बनना, दोहराव, कट्टर धार्मिकता, आयोजन, निर्णय का कारक है। जातक प्रसिद्ध, कोमल नेत्र, झुके कंधे, भूख प्यास नही लगे ऐसा साहसी, मंत्र विद्या का ज्ञाता, विद्वान लेखक होता है।
जातक चतुर, अनुशासित, व्यावहारिक, प्रत्येक कार्य को गंभीरता से करने वाला, बहुत नाजुक, खुश मिजाज, वचन का पक्का, जल्दी-जल्दी चलने वाला होता है।

तृतीय चरण - इसका स्वामी शुक्र है। इसमे बुध, मंगल, शुक्र का प्रभाव है। तुला 180।00 से 183।20 अंश। नवमांश तुला। यह सम्बन्ध, स्व तल्लीनता, स्थिर, समाज प्रबंध कुशलता, दिखावट, चकाचोंध का द्योतक है। जातक गौर वर्ण, लम्बा मुंख. धन रक्षक, रहस्यमयी बाते छिपाने मे प्रवीण, नये व्यापार मे कुशल , विख्यात होता है।
जातक विपरीत लिंग के लिए अत्यंत वासना युक्त, पत्नी प्रेमी, यात्रा शौकीन, यात्राओ से धनार्जनी, शल्य चिकित्सक, शिष्टाचारी, सुयोग्य साथियो वाला, सही नियमो के अनुसार रहने वाला होता है।

चतुर्थ चरण - इसका स्वामी मंगल है। इसमे बुध, मंगल, मंगल का प्रभाव है। तुला 183।20 से 186।40 अंश। नवमांश वृश्चिक। यह जादू, रहस्य, गोपनीयता, लालसा, भौतिकवाद का द्योतक है। जातक गोल सजल नेत्र, बैठी कमर, विस्मृत हृदयी, कृश शरीरी, धनी भोंहे वाला, विचारो मे मग्न होता है।
जातक शोध करने वाला, शोध से अचानक लाभ प्राप्त करने वाला, सृजन करने वाला होता है। दाम्पत्य जीवन मे अड़चने आती है। 28 वर्ष के बाद धीरे-धीरे वैवाहिक जीवन सुखी होता है।
आचार्यो ने चरण फल सूत्र रूप में कहा है लेकिन अंतर बहुत है।
यवनाचार्य : पहले चरण मे चोर, दूसरे मे चित्रकार, कलाकार, तीसरे मे पर स्त्री गामी, चौथे में पीड़ित होता है।
मानसागराचार्य : चित्रा के पहले चरण मे सर्व कार्य कुशल, दूसरे चरण मे पराक्रमी तथा माता-पिता व गुरु भक्त, तीसरे चरण मे धन भोगने वाला, चौथे चरण मे धनेश्वर होता है।


स्वाति चरण फल

प्रथम चरण इसका स्वामी गुरु है। इसमे शुक्र, राहु, गुरु का प्रभाव है। राशि तुला 186।40 से 190।00 अंश। नवमांश धनु। यह संचार, खुले विचार, लेखन का द्योतक है। जातक गौर वर्ण, अश्व मुखी, सुन्दर पंक्तिबद्ध दन्त, बड़े उन्नत नेत्र, लम्बे हाथ पैर वाला, क्रश, यशश्वी होता है।
जातक पूर्ण मेघावी, वाद और विवाद दोनो को सिद्ध करने वाला, असाधारण, व्यवहार मे छल-कपटी, असाधारण अध्यापक, लेखक, प्रवक्ता, रंगमंच कलाकार, पिता से कटु, लघु यात्रा प्रिय, विपरीत लिंग को प्रभावित करने वाला, संतति मे विलम्ब, सुखी दाम्पत्य जीवन होता है।

द्वितीय चरण इसका स्वामी शनि है। इसमे शुक्र, राहु, शनि का प्रभाव है। राशि तुला 190।00 से 193।20 अंश। नवमांश मकर। यह भौतिकता, नाजुकता, विकास, स्थिरता, वाणिज्य का द्योतक है। जातक पतले दुर्बल कन्धे व भुजा वाला, टेड़े दांत , मृग सामान नेत्र , छोटी नाक, दुःखी, सदव्यवहारी होता है।
इस चरण मे जातक अन्य चरणो के सामान आध्यात्मिक उन्नति के लिए धीमी गति वाला नही होता है। इसके जीवन की प्रमुखता वित्त विकास और स्थिरता होती है। जातक प्रगतिवान, विकासवान, व्यवसायिक, धोखेबाजो से सतर्क, साधारण दाम्पत्य जीवन वाला होता है।

तृतीय चरण इसका स्वामी शनि है। इसमे शुक्र, राहु, शनि का प्रभाव है। राशि तुला 193।20 से 196।40 अंश। नवमांश कुम्भ। यह वृद्धि, सृजन, सहयोग, ज्ञान, लक्ष्य का द्योतक है। जातक गंभीरता युक्त नेत्र, मध्य मे चपटी नाक, घने रूखे केश, स्थिर आत्मा, मित्र प्रिय, सरल ह्रदयी होता है।
यह स्वाति नक्षत्र मे सबसे अच्छा चरण है। इसमे आर्थिक और आध्यात्मिक दोनो उन्नति होती है। जातक सीखने की इच्छा के कारण सभी संकायो का ज्ञानी, मस्तिष्क और बुद्धि से पूर्ण विकसित, 42 वर्ष पश्चात जीवन अति उत्तम होता है। इनका प्यार, दाम्पत्य जीवन सुखी होता है।

चतुर्थ चरण इसका स्वामी गुरु है। इसमे शुक्र, राहु, गुरु का प्रभाव है। राशि तुला 196।40 से 200।00 अंश। नवमांश मीन। यह लचीलापन, परिस्थिति अनुसार प्रवीणता, धैर्य, निरंतरता का द्योतक है। जातक गौर वर्ण, बड़े नेत्र, सुन्दर नाक, कोमल चिकने नख, सु वंशी नीतिज्ञ, विविध विषयो का ज्ञाता, शास्त्रज्ञ होता है। इस चरण मे जातक बुद्धिमान लेकिन भावुक, कर्ज से परेशान, अन्य चरणों की अपेक्षा इस चरण मे जातक अधिक परिश्रमी होता है। इसकी तरफ विपरीत लिंग वाले शीघ्र आकर्षित होते है परतु उनमे विरोधभास होता है।
आचार्यो ने चरण फल सूत्र रूप में कहा है, लेकिन अंतर बहुत है।
यवनाचार्य : स्वाति के पहले चरण मे तस्कर, दूसरे मे अल्पायु, तीसरे मे धार्मिक चौथे में राजा होता है।
मानसागराचार्य : प्रथम चरण में निर्धन, द्वितीय मे गूंगा (मूक) तृतीय मे कर्मज्ञ, चतुर्थ मे पर स्त्री गामी होता है।


विशाखा चरण फल

प्रथम चरण - इसका स्वामी मंगल है। इसमे शुक्र, गुरु, मंगल का प्रभाव है। तुला 200।00 से 203।20 अंश। नवमांश मेष। यह ऊर्जा, सामाजिक महत्वाकांक्षा, वायदा या वचन बद्धता का द्योतक है। जातक खूबसूरत, पतला या छोटा ललाट, बुद्धिमान, ज्ञानवान, लोभी साहसी व मनस्वी होता है।
इस पाद में उत्पन्न व्यक्ति काम वासना युक्त, प्रणयपूर्ण, सामाजिक महत्वाकांक्षा के लिए कर्मठ, प्रेम मे किसी भी सीमा तक जाने को आतुर, ऊर्जावान किन्तु क्रोधी होता है।

द्वितीय चरण - इसका स्वामी शुक्र है। इसमे शुक्र, गुरु, शुक्र का प्रभाव है। तुला 203।20 से 206।40 अंश। नवमांश वृषभ। यह टिकाऊपन, सहनशक्ति, भौतिकता का द्योतक है। जातक ऊँचे कंधे व गाल, विषम शरीर, लम्बी घनी भोंहे, सुडोल वक्ष, बड़ा माथा, स्पष्ट वक्ता, शांत होता है।
इस पाद मे उत्पन्न व्यक्ति बुद्धिमान, व्यापार मे सफल, गुप्त रीति से शत्रुओ को पराजित करने वाला, अमीर, शोध करने वाला होता है। यह पाद स्वास्थ के लिए नेष्ट है जातक को 16, 28, 60 वर्ष मे गम्भीर रोग होते है।

तृतीय चरण - इसका स्वामी बुध है। इसमे शुक्र, गुरु, बुध का प्रभाव है। तुला 206।40 से 210।00 अंश। नवमांश मिथुन। यह संचार, धर्म, खुली विचारधारा, विवाद, दर्शन, खुली स्वार्थपरता, चिंता ग्रस्तता, छल का द्योतक है। जातक स्वाभविक नेत्र वाला, प्रसन्नचित्त, गौर वर्ण, सम सुन्दर शरीर, कला मे दक्ष, नम्र, मज़ाकी स्वभाव वाला, वैश्या को रखने वाला या वैश्यगामी होता है।
इस पाद मे जातक विचारवान, पढ़ाई-लिखाई मे रुचिवान, कुशल संचारक, तेजबुद्धि, सफल ब्यवसाय वाला, चतुर, विनोदी होता है। भाग्योदय 32 वर्ष बाद होता है। ईश्वर कृपा से सफल होता है।

चतुर्थ चरण- इसका स्वामी चंद्र है। इसमे मंगल, गुरु, चन्द्र का प्रभाव है। वृश्चिक 210।00 से 213।20 अंश। नवमांश कर्क। यह भावना, परिवर्तन, विश्वास, अस्थिरता, इंतकाम का द्योतक है। जातक छोटे होंठ, ऊँची नाक, स्थूल अधर, गौर वर्ण, सुन्दर ललाट, दृढ़ अंग, मेढक के समान पेट वाला होता है।
इस पाद मे उत्पन्न व्यक्ति अत्यंत भावुक, बाहरी वातावरण के प्रति संवेदनशील, तीव्र ईर्षालु, इन्तकामी होता है। इस पाद मे आर्थिक विकास नही होता किन्तु भाग्य से अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेता है।
आचर्यों ने चरण फल सूत्र रूप में कहा है परन्तु अंतर बहुत है।
यवनाचार्य : विशाखा के प्रथम चरण मे नीतिकुशल, द्वितीय मे शास्त्रविद, तृतीय मे वाद विवाद कुशल या वकील चतुर्थ मे दीर्घायु होता है।
मानसागराचार्य : पहले चरण मे माता-पिता का भक्त, दूसरे चरण मे राजमान्य, तीसरे चरण मे भाग्यवान, चौथे मे धनवान होता है।


अनुराधा चरण फल

प्रथम चरण - इसका स्वामी सूर्य है। इसमे मंगल, शनि, सूर्य का प्रभाव है। वृश्चिक 213।20 से 216।40 अंश। नवमांश सिंह। यह अंतरंग प्रत्यक्षीकरण, गर्व, वृत्ति उन्मुखता का द्योतक है। जातक लम्बी भुजा, चौड़ा वक्ष, लाल उग्र नेत्र, अल्प केश, बलवान का वध करने वाला, साहसी कर्म करने वाला होता है।
जातक व्यावसायिक योग्यता के लिए आतुर, लगातार सीखने और नीचे की पंक्ति मे सुधार के लिए अर्जित ज्ञान का उपयोग करने वाला, अनुशासित, प्रायोगिक होता है।
ये आमतौर पर परिवार या पेशे का विकल्प चुनने में अटक जाते है, लेकिन मजबूती और बेहतर कॅरियर तथा संतति और स्वयं के वित्तीय सुरक्षा के लिए परिवार को छोड़ देते है।

द्वितीय चरण - इसका स्वामी बुध है। इसमे मंगल, शनि, बुध का प्रभाव है। वृश्चिक 216।40 से 220।00 अंश। नवमांश कन्या। यह बुद्धि, सीखना, अनुशासन, आयोजन, पूर्ति करना, श्रेणी बद्धता, विवेक, निर्णय का द्योतक है। जातक गौर वर्ण, दृढ़ कंधे व भुजा, कोमल होंठ वाला, धन के लिए प्रयन्तशील, स्पष्ट भाषी, बुद्धिमान, अविवाहित माँ की संतान होता है।
जातक उच्च श्रेणी का विद्वान, ज्ञान का भौतिक जगत मे सदुपयोग करने वाला, गंभीर रुकावटो का सामना कर सफल होने वाला, भौतिक ज्ञान मे उन्नत्ति करने वाला, वृद्धावस्था मे सलाहकार, संचार कुशल होता है।

तृतीय चरण - इसका स्वामी शुक्र है। इसमे मंगल, शनि, शुक्र का प्रभाव है। वृश्चिक 220।00 से 223।20 अंश। नवमांश तुला। जातक श्याम वर्ण, असित (मटमैले) नेत्र, दूसरे की स्त्री के साथ विश्वास घाती, भ्रमण शील, धैर्यवान, नट, साहसी होता है।
जातक सामाजिक, बहु मित्र वाला, अच्छा ज्योतिषी होता है। जातक का खोजी दिमाग पूरी तरह ज्योतिष की ओर निर्देशित होता है। वह अच्छा ज्योतिषी या अंक ज्योतिषी बन जाता है।
कुछ प्रतिकूल मामलो मे देखा गया है कि जातक जीवन पथ से भटक जाता है और पारिवारिक जीवन मे बुरी तरह असफल होता है। शोध मे गंतव्य तक नही पहुँच पता है। कोई-कोई जातक राजद्रोही भी होता है।

चतुर्थ चरण - इसका स्वामी मंगल है। इसमे मंगल, शनि, मंगल का प्रभाव है। वृश्चिक 223।20 से 226।40 अंश। नवमांश वृश्चिक। यह संघर्ष, उत्तेजना, कामातुर, गोपनीयता, संस्कारिता का द्योतक है। जातक गंभीर लाल नेत्र, चपटी नाक, सुदृढ़ अंग, अच्छी पाचन शक्ति वाला, बड़ा पेट, उग्र कर्म करने वाला होता है।
जातक चरम पंथी अर्थात चरम सीमा तक कार्य करने वाला, ये अपने लक्ष्यो के साथ पारिवारिक जीवन के साथ पाने मे असफल होते है। इनमे अत्यधिक ऊर्जा होती है जिससे गुमराह होकर अंत मे कुछ भी नही पाते है। इन्हे सख्त जीवन साथी और अच्छे दोस्त या ज्येष्ठ भ्राता की आवश्यकता होती है।
आचार्यो ने चरण फल सूत्र रूप में कहा है परन्तु अंतर बहुत है।
यवनाचार्य - अनुराधा के पहले चरण मे तीखे स्वाभाव वाला, दूसरे मे धार्मिक, तीसरे मे दीर्घायु, चौथे मे चरित्र हीन होता है।
मानसागराचार्य - अनुराधा के पहले पाद मे यशस्वी, दूसरे में आगमो का ज्ञाता, तीसरे मे महन्ततिक, चौथे मे कुलमण्डन होता है।


ज्येष्ठा चरण फल

प्रथम चरण - इसका स्वामी गुरु है। इसमे मंगल, बुध, गुरु का प्रभाव है। वृश्चिक 226।40 से 230।00 अंश। नवमांश धनु। यह वित्त, परिवार, अत्यावश्यक आर्थिक परिस्थिति का द्योतक है। जातक ऊँची सुन्दर नाक, अल्प केश, पतली भौंहे, धूर्त, सुबुद्धि, गंभीर साहसी, निपुण होता है। जातक ठिठोलिया, परिहास जनक, कामातुर, स्त्री की तरफ आकर्षित होने वाला, धार्मिक पुस्तको के विचार मे मग्न, सबका चहेता होता है।
जातक बुद्धिमान, उच्च शिक्षा प्राप्तक, बुद्धि से सफल होता है। आर्थिक स्थिति डांवाडोल रहने से रातो की नींद हराम होती है। खतरो से खेलना आदत होती है। मतभेद से पैतृक सम्पदा प्राप्त होती है।
पुरुष जातक कृष्ण वर्णी, कमजोर हाथ पैर वाला, ईर्ष्यालु, प्रतिकारी होता है। 7, 8, 27, 28 वर्ष में गंभीर रोग या मशीनी दुर्घटना में टांग नष्ट हो सकती है। दुखद पारिवारिक जीवन, अल्प मित्र वाला, पत्नी से प्रभावित होता है।

द्वितीय चरण - इसका स्वामी शनि है। इसमे मंगल, बुध, गुरु का प्रभाव है। वृश्चिक 230।00 से 233।20 अंश। नवमांश मकर। यह जबाब दारिया, ललकारना, स्वार्थता, रक्षा, भौतिकवाद का कारक है। जातक विदीर्ण मुख, स्थिर अंग, चौड़े दांत, चौड़ा सर, जुड़े अंग वाला, छोटा पेट, बड़े नेत्र, यौन दुर्बल या नपुसंक होता है।
जातक पूर्णतया प्रयोगिक, स्वार्थी, अनुशासित, छोटी उम्र मे परिपक्व और जबाबदार, लक्ष्य पाने हेतु कर्मठ, स्वरोजगारी, अपना भाग्य स्वयं बनाने वाला होता है।

तृतीय चरण - इसका स्वामी शनि है। इसमे मंगल, बुध, गुरु का प्रभाव है। वृश्चिक 233।20 से 236।40 अंश। नवमांश कुम्भ। यह मानवता, सेवा, पागलपन, झक्कीपन के यौन दौरे या यौन विकृता का द्योतक है। जातक नासिका के चौड़े अग्र भाग वाला, काले अंग, विभाजित घने बाल वाला, परितक्य बुद्धि वाला, काल और विपत्ति युक्त होता है। जातक व्यावसायिक विकास की ओर अग्रसर, अच्छा नागरिक, जरुरत मंदो विशेषकर वृद्धो का मददगार होता है।

चतुर्थ चरण - इसका स्वामी गुरु है। इसमे मंगल, बुध, गुरु का प्रभाव है। वृश्चिक 236।40 से 240।00 अंश। नवमांश मीन। यह भावना, प्रचुरता या स्वतंत्रता, भौतिकता का द्योतक है। जातक गौर वर्ण, मृग सामान नेत्र, सुन्दर पुष्ट देह वाला, भूरे केश, दृढ़, शांतचित्त, गुरुजनो द्वारा सम्मानित होता है।
जातक अत्यंत भावुक, आर्थिक विकासवान, इछाओ की पूर्ति करने वाला होता है। ये प्रेम प्रसंगो और यौन क्रियाओ मे युवावस्था से ही सलग्न हो जाते है। ये मनमौजी अपने प्रेमी या प्रेमिका को येन-केन प्रकारेण प्राप्त करने वाले होते है यदि अविभावक विवाह के लिए मना करते है, तो घर से भाग जाते है।
आचार्यो ने चरण फल सूत्र रूप में कहा है परन्तु अंतर बहुत है।
यवनाचार्य - ज्येष्ठा के प्रथम चरण मे क्रूर, द्वितीय मे भोगवान, तृतीय मे विद्वान, चतुर्थ मे पुत्रवान होता है।
मानसागराचार्य - ज्येष्ठा के पहले चरण मे धन-धन्योपार्जक दूसरे मे विद्वान, तीसरे मे राजमान्य, चौथे मे यशस्वी होता है।


मूल चरण फल

प्रथम चरण - इसका स्वामी मंगल है। इसमे गुरु, केतु, मंगल का प्रभाव है। धनु 240।00 से 243।20 अंश। नवमांश मेष। यह जिज्ञासा, सकारात्मकता, आध्यात्म का द्योतक है।
जातक सुन्दर दांत व नेत्र, गौरवर्ण, स्पष्ट भाषी, बुद्धिमानो मे प्रधान, कपटी. खरी-खरी कहने वाला, साहसी होता है। इस पाद मे जातक भौतिकवादी, अहंवादी, भौतिक विकासशील, समाज मे आदर चाहने वाला होता है। इसके अंडकोष छोटे होते है।
पुरुष जातक आत्म निर्भर, पूर्णतया स्वतत्न्त्र, महत्वाकांक्षी, मध्य जीवन में आदरणीय, योग्यता से व्यापार मे विभूति होता है। सहायक बनकर अधिक समय नही रहता है। उम्र 6 या 7 वर्ष मे जलना या झुलसना, 36 या 37 मे आग से दुर्घटना या हड्डी टूटना होता है।

द्वितीय चरण - इसका स्वामी शुक्र है। इसमे गुरु, केतु, शुक्र का प्रभाव है। धनु 243।20 से 246।40 अंश। नवमांश वृषभ। यह दीर्घ प्रयत्न, कलह, सृजन का द्योतक है। यह सामान्य कद, चौड़ा कद, घुटनो के ऊपर भारी पैर, चौड़ी टुड्डी से पहचाना जाता है। इस पाद का जातक अच्छा ज्योतिषी, नरम और कठोर कार्यकारी, भौतिक विकास मे विशिष्ट होता है।

तृतीय चरण - इसका स्वामी बुध है। इसमे गुरु, केतु, बुध का प्रभाव है। धनु 246।40 से 250।00 अंश। नवमांश मिथुन। यह शब्द, खेल, संचार, सम्बन्ध का द्योतक है।
जातक सुन्दर नयन, शिक्षाशास्री, साहसी, गंभीर, नीतिज्ञ, स्री प्रिय, हास्य कलाकार, संतुलित, आध्यात्म और सांसारिक गतिविधियो मे सामान समय देने वाला, प्रवीण, परिपक्व, विनोदी, सिद्धांतो पर अडिग होता है। इस पाद में भौतिक उन्नति नही होती है।

चतुर्थ चरण - इसका स्वामी चन्द्र है। इसमे गुरु, केतु, चंद्र का प्रभाव है। धनु 250।00 से 253।20 अंश। नवमांश कर्क। यह भावना, अनुकूल प्रभाव मे बाधा का द्योतक है।
जातक मादक व गोल नेत्र, गौर वर्ण, बड़ा पेट, सुन्दर बाल, सुन्दर मूर्ति, पीड़ित, बुद्धिमान, भ्रमण शील होता है। इस पाद मे जातक भावुक, प्रसन्नचित्त, विद्वान, कठोर निर्णय लेने मे असक्षम, लक्ष निश्चित करने मे असक्षम, मूल नक्षत्र का सबसे असंतुलित होता है। इससे घर मे अप्रसन्नता और बहार प्रशसा तथा आदर विशेषकर कार्यालयीन कार्यो मे होती है। जातक को अपने सहायक और संगी-साथी से सावधान रहना चाहिये क्योकि इनसे विश्वासघात की सम्भावना रहती है।
आचार्यो ने चरण फल सूत्र रूप में कहा है परन्तु उसमे अंतर बहुत है।
यवनाचार्य : मूल के पहले पाद मे भोगवान, दूसरे में त्यागी, तीसरे मे अच्छा मित्र, चौथे मे राजा होता है।
मानसागराचार्य : मूल के प्रथम चरण मे ज्ञानी, द्वितीय मे नीच, निर्धन, तृतीय मे नीच कर्म करने वाला, चौथे मे राजमान्य होता है।


पूर्वाषाढ़ा चरण फल

प्रथम चरण - इसका स्वामी सूर्य है। इसमे गुरु, शुक्र, सूर्य का प्रभाव है। धनु 253।20 से 256।40 अंश। नवमांश सिंह। यह अभिमान, विश्वास, आध्यात्मिकता का द्योतक है। जातक सिंह समान देह वाला, बड़ा मुख, नेत्र, कंठ वाला, बड़ी भोंहे, मोटे कंधे, घने रोम, विध्वंसकारी, अहंकारी दृढ़ बुद्धि होता है।
इस पाद मे जातक बहुत बुद्धिमान, विश्वासी, समाज में प्रशंसनीय छवि वाला, प्रतिष्ठित नैतिक कुल का, आर्थिक स्तर से ज़्यादा स्वाभिमानी, चरित्रवान होता है।

द्वितीय चरण - इसका स्वामी बुध है। इसमे गुरु, शुक्र, बुध का प्रभाव है। धनु 256।40 से 260।00 अंश। नवमांश कन्या। यह संचार, अध्यव्यसाय, भौतिकवाद का द्योतक है। जातक कोमल व गोरा, चौड़े करुणा युक्त नेत्र, दीर्घ ललाट, चौड़ा मुख, सुआचरणी, कवि, त्यक्त, मंद भाग्य, विद्वान कथाकार होता है।
जातक कर्मठ, वैवाहिक जीवन मे सफल, बुद्धिमान होता है। इसका उध्येश्य व्यापार मे निरन्तर उन्नति और विकास, उचाई प्राप्त करना होता है। प्रतिस्पर्धी इसकी गुणवत्ता सेवा, और बुद्धि के सामने घुटने टेक देता है।

तृतीय चरण - इसका स्वामी शुक्र है। इसमे गुरु, शुक्र, शुक्र का प्रभाव है। धनु 260।00 से 263।20 अंश। नवमांश तुला। यह विलासता, प्रेम, साझेदारी, भौतिकता का द्योतक है। जातक श्याम वर्ण, ऊँचा सिर, कोमल वाणी, संग्रही, गुप्त योजना वाला, काम निकलने मे निपुण, ज्येष्ठ औरतो से कोमल सम्बन्ध रखने वाला होता है।
जातक सफल व्यापारी, सुखद वैवाहिक जीवन बिना मेहनत के प्रचुर धन पाने वाला होता है।

चतुर्थ चरण - इसका स्वामी मंगल है। इसमे गुरु, शुक्र, मंगल का प्रभाव है। धनु 263।20 से 266।40 अंश। नवमांश वृश्चिक। यह गोपनीयता, रहस्य, मनोवाद, अभिमान, उददण्डता, भौतिक पराङ्मुखता का घोतक है। जातक का नाक का अग्र भाग चपटा, चौड़ा सिर, सामान्य कद, व्याकुल नेत्र, शत्रुवान, प्रलापी, उद्विग्न, व्यग्र, झगड़ालु होता है।
जातक गुप्त स्वभाव वाला, आलोकिक विषयो में रुचिवान, अंतर्राष्ट्रीय मामलों का विशेषज्ञ, शत्रु और प्रतिस्पर्धी युक्त, बच्चो की देख-रेख करने वाले N G O को पर्याप्त धन देने वाला होते है। ये अपने खुद की तारीफ करने वाले (अपने मियाँ मिट्ठू) होते है।
➧ यदि शुक्र बलि हो, तो जातक का झुकाव कला और सौन्दर्य के प्रति अधिक होता है।
आचार्यो ने चरण फल सूत्र रूप मे कहा है परन्तु अंतर बहुत है।
यवनाचार्य : पूर्वाषाढ़ा प्रथम चरण मे श्रेष्ठ व्यक्ति, द्वितीय चरण मे राजा,, तृतीय चरण मे परिवादी और चतुर्थ चरण में धनवान होता है।
मानसागराचार्य : पूर्वाषाढ़ा प्रथम चरण मे क्रोधी, द्वितीय चरण मे पुत्रवान, तृतीय चरण मे कामी, चतुर्थ चरण मे धनी होता है।

उत्तराषाढ़ा चरण फल

प्रथम चरण - इसका स्वामी गुरु है। इसमे गुरु, सूर्य, गुरु का प्रभाव है। धनु 266।00 से 270।00 अंश। नवमांश धनु। यह संचार, विश्वास, खर्चीलेपन का द्योतक है। जातक सौम्य, गौर वर्ण, अश्व मुखी, लम्बे असित नेत्र, टेडी जांघ वाला, अल्प भाषी, स्त्री से दुःखी होता है।
इस पाद में जातक ईमानदार, सत्यवादी, मायावादी, समाज की धरोहर, सद्चरित्र, निम्न स्तर के लोगो को नही चाहने वाला, ब्रम्हवादी, बहुत ज्यादा कठोर या अभेद्य होता है।

द्वितीय चरण - इसका स्वामी शनि है। इसमे शनि, सूर्य, शनि का प्रभाव है। मकर 270।00 से 273।00 अंश। नवमांश मकर। यह भौतिकवाद, व्यक्तित्वता, सांसारिकता का द्योतक है। जातक छिंदे दांत वाला, श्याम वर्ण, मोटी-फटी आवाज वाला, घने केश, ख़राब नख, गीतकार, विनोदी, शक्तिशाली होता है।
जातक दिल से मजबूत होता है इस कारण इसे ठण्डे खून वाला कहते है। यह लक्ष को पूरा करने वाला, ईश्वर मे विश्वास करने वाला किन्तु अन्य पादो की अपेक्षा आंशिक आध्यात्मिक होता है। यह गहन विचार के बाद बोलने वाला, प्रबल संचार वाहक, शक्तिवान होता है।

तृतीय चरण - इसका स्वामी शनि है। इसमे शनि, सूर्य, शनि का प्रभाव है। मकर 273।20 से 276।40 अंश। नवमांश कुम्भ। यह परिवार, संचय, एकीकृत का द्योतक है। जातक टेडी नाक, विशाल देह, आलसी, धूर्त, बहुत सी स्त्रियों से प्रेम करने वाला, गीत मे रत, बकवादी, दृढ़ प्रतिज्ञा वाला होता है।
इस पाद मे जातक कठिन कार्य करने वाला, उदार हृदयी, समाज को समय देने वाला, दल के सम्मानीय व्यक्तियो से आदर पाने वाला, आवश्यकता की शीघ्र पूर्ति का इच्छावान, घटना होने तक धैर्य पूर्वक इन्जार करने वाला, विवाह के पश्चात मस्का मारने वाली स्त्रियो का तिरस्कार करने वाला होता है।

चतुर्थ चरण - इसका स्वामी गुरु है। इसमे गुरु, सूर्य, गुरु का प्रभाव है। मकर 276।40 से 280।00 अंश। नवमांश मीन। यह शारीरिक बल, भौतिकता, आध्यात्मिकता प्रचुर ऊर्जा का द्योतक है। जातक सुन्दर अंग, भूरे नेत्र, सुन्दर नाक, बहु मित्र व बन्धु वाला, गायक, कलाकार, इष्ट कर्म करने वाला होता है।
इस पाद में जातक आदर्शवादी, भावुक, कार्य के लिए ऊर्जावान, आध्यात्मिक, सलाहकार, दर्शन व्याख्याता, ईश्वर भक्त, गृह नगर से लाभी, संगीत प्रेमी, साथी-मित्र वाला होता है।
आचार्यो ने चरण फल सूत्र रूप में कहा है पर अंतर बहुत है।
यवनाचार्य : उत्तराषाढ़ा के प्रथम चरण मे राजा, द्वितीय चरण मे मित्रो का विरोधी, तृतीय चरण मे स्वाभिमानी, चतुर्थ चरण मे धार्मिक होता है।
मानसागराचार्य : पहले मे रक्त विकारी, दूसरे में अंगहीन, तीसरे में गुरुभक्त, चौथे मे शुभ लक्षण युक्त होता है।


श्रवण चरण फल

प्रथम चरण - इसका स्वामी मंगल है। इसमे शनि, चन्द्र, मंगल ♄ ☾ का प्रभाव है। मकर 10।00 से 13।20 अंश। नवमांश मेष। यह आकांक्षा, जीवनवृत्ति, सूत्रपात का द्योतक है। जातक गोल नेत्र, चौड़ा ललाट, लम्बी भुजा, दुर्बल अंग, छिदे दांत, तोतला होता है। जातक केन्द्रीभूत, महत्वाकांक्षी, आत्मश्लाधी, बुरे मित्र वाला, विपरीत लिंग के मित्र को शीघ्र बदलने वाला होता है।
जातक दयालु, सत्यधर्म पर चलने वाला, प्रतिदिन मंदिर जाने वाला, सामाजिक उत्सव प्रिय, परिवार प्रेमी, विपरीत लिंग के साथ मौज-मस्ती करने वाला, बहु संतति , फूल प्रेमी, अच्छी वेश भूषा वाला होता है। इसके गुप्तांग या प्रजनन अंग की शल्य चिकित्सा हो सकती है।

द्वितीय चरण - इसका स्वामी शुक्र है। इसमे शनि, चंद्र, शुक्र का प्रभाव है। मकर 13।20 से 16।4 0 अंश। नवमांश वृषभ। यह कूटनीति, नम्रता, युक्ति, अध्यव्यसाय, या दीर्घ प्रयत्न का द्योतक है। जातक ऊँची नाक, बड़ा पेट, श्याम वर्ण, गोल भुजा व जाँघे वाला, सुन्दर, सुवंशी, काम पूरा कर ही चेन लेने वाला, दृढ़ निश्चयी, विद्वान, कूटनीतिज्ञ, मधुर भाषी, पैसो की टकसाल मे कलाविद होता है।

तृतीय चरण - इसका स्वामी बुध है। इसमे शनि, चन्द्र, बुध का प्रभाव है। मकर 16।40 से 20।0 0 अंश। नवमांश मिथुन। यह लचीलापन, संचार, चालाकी का द्योतक है। जातक कोमल कांति, पतले होंठ, बड़ी दाढ़ी, चौड़ा ललाट, कामी, सुवक्ता, सुन्दर वेशी होता है।
जातक मे सभी गुण-दोष होते है। यह अच्छा श्रोता तथा संचार वाहक, शास्त्र कथाओ का श्रोता, ज्ञान की उच्च शाखा का विशेषज्ञ, अधिक पुत्र वाला होता है।

चतुर्थ चरण - इसका स्वामी चन्द्रमा है। इसमे शनि, चन्द्र, चन्द्र का प्रभाव है। मकर 20।00 से 23।20 अंश। नवमांश कर्क। यह चित्त मे भावना की उत्पत्ति या ग्राह्यता, भीड़, उन्मुखता, सहानुभूति का द्योतक है।
जातक काला रंग, बड़ा शरीर, कोमल हाथ व पैर, कठोर, सुभाषी, बुद्धिमान, सुशील, सदाचारी, कुछ भावुक, समूह प्रेमी, जन समूह मे संतुलन बनाये रखने वाला, वार्तालाप और गपशप करने वाला, पुरोहित और पूजारी का सम्मान करने वाला, अहंकारी होता है। 20 वा वर्ष धातक होता है।
आचार्यो ने चरण फल सूत्र रूप में कहा है लेकिन अंतर बहुत है।
यवनाचार्य : श्रवण के पहले पाद मे कल्याणकारी कार्यो के लिए हठ करने वाला, दूसरे पाद मे अच्छे गुणों से युक्त, तीसरे पाद मे धनवान, चौथे पाद मे उत्तम स्त्री वाला होता है।
मानसागराचार्य : पहले चरण मे पर स्त्री गामी, दूसरे चरण मे देवांश, तीसरे चरण मे पुत्रवान, चतुर्थ चरण मे उत्तम होता है।


घनिष्ठा चरण फल

प्रथम चरण - इसका स्वामी सूर्य है। इसमे शनि, मंगल, सूर्य का प्रभाव है। मकर 293।20 से 296।40 अंश। नवमांश सिंह। यह अभिलाषा, आक्रामकता, सिद्धि का द्योतक है। जातक गंभीर नेत्र, सुन्दर नाक, रूखे नख, व छिदे बाल, बड़ा शरीर, बड़ा गोल ललाट, निश्छल दृष्टि, शक्तिशाली होता है।
यह चरण सबसे आक्रामक पाद है। इस पाद में जातक महा विद्वान, प्रायोगिक, व्यापारी, धनाढ्य, अस्वस्थ्य होता है।

द्वितीय चरण - इसका स्वामी बुध है। इसमे शनि, मंगल, बुध का प्रभाव है। मकर 296।40 से 300।00 अंश। नवमांश कन्या। यह संचार, शक्ति, ग्रहण या प्रचलन या अनुकूलन, खेल युक्ति का द्योतक है। जातक बड़े नेत्र, गोल चहेरा, सुबुद्धि से ग्रहण करने वाला, गीत व वाद्य मे रत, सात्विक वृत्ति, साहसी, सज्जन होता है।
इस पाद मे जातक तेज बुद्धि, चालक, निर्भीक होकर हर प्रतियोगिता मे भाग लेने वाला, आत्म निर्भर, अपने कार्य में लवलीन, उच्चपद पर होता है।

तृतीय चरण - इसका स्वामी शुक्र है। इसमे शनि, मंगल, शुक्र का प्रभाव है। कुम्भ 300।00 से 303।20 अंश। नवमांश तुला। यह अवगत या जानना, आशावाद, समजातिक्ता, वैवाहिक सुख का द्योतक है। जातक श्याम वर्ण, कोमल पतले अंग, शास्त्र एवं काव्य बुद्धि वाला, महिलाओ मे लोक प्रिय, भावुक, कोमल होता है।
इस पाद मे जातक कामुक, रोमांटिक, स्वयं का उद्योग, तेज बुद्धि, शत्रुहंता, संपत्ति के देन-लेन व किराये से धनी, सुखी दाम्पत्य जीवन, अनेक व्यवसायिक यात्राएं करता है तथा इनसे धनी होता है।

चतुर्थ चरण - इसका स्वामी मंगल है। इसमे शनि, मंगल, मंगल का प्रभाव है। कुम्भ 303।20 से 306।40 अंश।

नक्षत्रशान्ति स्तोत्रं NAKSHATR SHANTI STOTRAM

नक्षत्रशान्ति स्तोत्रं NAKSHATR SHANTI STOTRAM

कृत्तिका परमा देवी रोहिणी रुचिरानना १
श्रीमान् मृगशिरा भद्रा आर्द्रा च परमोज्ज्वला ।

पुनर्वसुस्तथा पुष्य आश्लेषाऽथ महाबला २
नक्षत्रमातरो ह्येताः प्रभामाला विभूषिताः।

महादेवाऽर्चने शक्ता महादेवाऽनु भावितः ३
पूर्वभागे स्थिता ह्येताः शान्तिं कुर्वन्तु मे सदा ।

मघा सर्वगुणोपेता पूर्वा चैव तु फाल्गुनी ४
उत्तरा फाल्गुनी श्रेष्ठा हस्ता चित्रा तथोत्तमा।
 
स्वाती विशाखा वरदा दक्षिणस्थान संस्थिताः ५
अर्चयन्ति सदाकालं देवं त्रिभुवनेश्वरम्।

नक्षत्रमारो ह्येतास् तेजसा परिभूषिताः ६
ममाऽपि शान्तिकं नित्यं कुर्वन्तु शिवचोदिताः।

अनुराधा तथा ज्येष्ठा मूलमृद्धि बलान्वितम् ७
पूर्वाषाढा महावीर्या आषाढा चोत्तरा शुभा।

अभिजिन्नाम नक्षत्रं श्रवणः परमोज्ज्वलः ८
एताः पश्चिमतो दीप्ता राजन्ते राजमूर्तयः।

ईशानं पूजयन्त्येताः सर्वकालं शुभाऽन्विताः ९
मम शान्तिं प्रकुर्वन्तु विभूतिभिः समन्विताः।

धनिष्ठा शतभिषा च पूर्वाभाद्रपदा तथा १०
उत्तराभाद्र रेवत्या वश्विनी च महर्धिका।

भरणी च महावीर्या नित्य मुत्तरतः स्थिताः ११
शिवार्चनपरा नित्यं शिवध्या नैकमानसाः।

शान्तिं कुर्वन्तु मे नित्यं सर्वकालं शुभोदयाः १२
इति नक्षत्रशान्तिस्तोत्रं सम्पूर्णम्

विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )