LOVE AND MARRIAGE IN SEVENTH HOUSE OF THE HOROSCOPE
जन्मकुंडली के सप्तम स्थान में प्रेम सम्बन्ध और विवाह
सातवें भाव का अर्थ
जन्म कुन्डली का सातंवा भाव विवाह पत्नी ससुराल प्रेम भागीदारी और गुप्त व्यापार के लिये माना जाता है। सातवां भाव अगर पापग्रहों द्वारा देखा जाता है,उसमें अशुभ राशि या योग होता है,तो स्त्री का पति चरित्रहीन होता है,स्त्री जातक की कुंडली के सातवें भाव में पापग्रह विराजमान है,और कोई शुभ ग्रह उसे नही देख रहा है,तो ऐसी स्त्री पति की मृत्यु का कारण बनती है,परंतु ऐसी कुंडली के द्वितीय भाव में शुभ बैठे हों तो पहले स्त्री की मौत होती है,सूर्य और चन्द्रमा की आपस की द्रिष्टि अगर शुभ होती है तो पति पत्नी की आपस की सामजस्य अच्छी बनती है,और अगर सूर्य चन्द्रमा की आपस की १५० डिग्री,१८० डिग्री या ७२ डिग्री के आसपास की युति होती है तो कभी भी किसी भी समय तलाक या अलगाव हो सकता है।केतु और मंगल का सम्बन्ध किसी प्रकार से आपसी युति बना ले तो वैवाहिक जीवन आदर्शहीन होगा,ऐसा जातक कभी भी बलात्कार का शिकार हो सकता है,स्त्री की कुंडली में सूर्य सातवें स्थान पर पाया जाना ठीक नही होता है,ऐसा योग वैवाहिक जीवन पर गहरा प्रभाव डालता है,केवल गुण मिला देने से या मंगलीक वाली बातों को बताने से इन बातों का फ़ल सही नही मिलता है,इसके लिये कुंडली के सातंवे भाव का योगायोग देखना भी जरूरी होता है।
सातवां भाव और पति पत्नी
सातवें भाव को लेकर पुरुष जातक के योगायोग अलग बनते है,स्त्री जातक के योगायोग अलग बनते है,विवाह करने के लिये सबसे पहले शुक्र पुरुष कुंडली के लिए और मंगल स्त्री की कुन्डली के लिये देखना जरूरी होता है,लेकिन इन सबके बाद चन्द्रमा को देखना भी जरूरी होता है,मनस्य जायते चन्द्रमा,के अनुसार चन्द्रमा की स्थिति के बिना मन की स्थिति नही बन पाता है। पुरुष कुंडली में शुक्र के अनुसार पत्नी और स्त्री कुंडली में मंगल के अनुसार पति का स्वभाव सामने आ जाता है।
जन्मकुंडली में सप्तम स्थान से शादी का विचार किया जाता है | अब आप भी अपनी कुंडली में सप्तम स्थान को देखकर अपने विवाह और जीवन साथी के बारे में जान सकते हैं | नीचे लिखे कुछ साधारण नियम हर व्यक्ति पर लागु होते हैं | कुल १२ राशियों का सप्तम स्थान में होने पर क्या प्रभाव जीवन पर पढता है यह मेरे स्वयं के अनुभवों से संकलित किया ज्ञान है |
शुक्र यहाँ का कारक ग्रह है और शनि सप्तम भाव में बलवान हो जाता है | गुरु यहाँ निर्बल हो जाता है तो सूर्य तलाक की स्थिति उत्पन्न करता है | मंगल यदि सप्तम स्थान में हो तो मांगलिक योग तो होता ही है साथ में घर में क्लेश और नौकरी में समस्याएं उत्पन्न करता है | बुध का बल भी यहाँ क्षीण हो जाता है तथा राहू केतु पत्नी से अलगाव उत्पन्न करते हैं | राहू सप्तम में हो तो जातक अपनी पत्नी से या पत्नी जातक से दूर भागती है | यदि जीवनसाथी की कुंडली में भी राहू या केतु सप्तम स्थान में हो तो तलाक एक वर्ष के भीतर हो जाता है |
केतु के सप्तम स्थान में होने पर संबंधों में अलगाव की स्थिति जीवन भर बनी रहती है | पति पत्नी दोनों एक दुसरे को पसंद नहीं करते |
सप्तम स्थान का स्वामी यदि सप्तम में ही हो तो व्यक्ति विवाह के पश्चात उन्नति करता है और व्यक्ति का दाम्पत्य जीवन अत्यंत मधुर और शुभ फलदायी साबित होता है |
पाठकों, सुखी दाम्पत्य जीवन तभी सही चलता है जब एक-दूसरे में सही तालमेल हो अन्यथा जीवन नश्वर ही समझो। दाम्पत्य की गाडी़ सही चले इसके लिए अपने जीवनसाथी का स्वभाव व व्यवहार के साथ वाणी भी अच्छी होना चाहिए। सुखी दाम्पत्य जीवन हेतु पति को भी अपनी पत्नी के प्रति सजग व वफादार होना चाहिए।
अनेक दफा दाम्पत्य जीवन आर्थिक दृष्टिकोण की वजह से, अन्य संबंधों के चलते भी टूट जाता है। शंका भी दाम्पत्य जीवन में दरार का कारण बनती है। कभी-कभी पारिवारिक तालमेल का अभाव भी एक कारण बनता है।
इन सबके लिए किसी भी जातक की जन्म कुंडली का सप्तम भाव, लग्न, चतुर्थ, पंचम भाव के साथ-साथ शुक्र-शनि-मंगल का संबंध भी महत्वपूर्ण माना गया है।
यदि चतुर्थ भाव में शनि सिंह राशि का हो या मंगल की मेष या वृश्चिक राशि का हो या राहु के साथ हो तो पारिवारिक जीवन कलहपूर्ण रहता है।
यदि जन्म किुंडली में शनि-मंगल का दृष्टी संबंध हो या युति हो तो भी पारिवारिक जीवन नष्ट होता है। कोई भी नीच का ग्रह हो तब भी पारिवारिक कलह का कारण बनता है। यदि ऐसी स्थिति हो तो उस ग्रह से संबंधित वस्तु को जमीन में गाड़ देवें।
लग्न का स्वामी नीच का हो या लग्न में कोई नीच ग्रह हो तो वह जातक को बुरी प्रवृति का बना देता है।
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कुण्डली में प्रेम विवाह
ज्योतिषशास्त्र में “शुक्र ग्रह” को प्रेम का कारक माना गया है । कुण्डली में लग्न, पंचम, सप्तम तथा एकादश भावों से शुक्र का सम्बन्ध होने पर व्यक्ति में प्रेमी स्वभाव का होता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार पंचम भाव प्रेम का भाव होता है और सप्तम भाव विवाह का। पंचम भाव का सम्बन्ध जब सप्तम भाव से होता है तब दो प्रेमी वैवाहिक सूत्र में बंधते हैं। नवम भाव से पंचम का शुभ सम्बन्ध होने पर भी दो प्रेमी पति पत्नी बनकर दाम्पत्य जीवन का सुख प्राप्त करते हैं।
पंचम भाव का स्वामी पंचमेश शुक्र अगर सप्तम भाव में स्थित है तब भी प्रेम विवाह की प्रबल संभावना बनती है । शुक्र अगर अपने घर में मौजूद हो तब भी प्रेम विवाह का योग बनता है।
शुक्र अगर लग्न स्थान में स्थित है और चन्द्र कुण्डली में शुक्र पंचम भाव में स्थित है तब भी प्रेम विवाह संभव होता है। अगर कुण्डली में प्रेम विवाह योग नहीं है और नवमांश कुण्डली में सप्तमेश और नवमेश की युति होती है तो प्रेम विवाह की संभावना 100 प्रतिशत बनती है। शुक्र ग्रह लग्न में मौजूद हो और साथ में लग्नेश हो तो प्रेम विवाह निश्चित समझना चाहिए । शनि और केतु पाप ग्रह कहे जाते हैं लेकिन सप्तम भाव में इनकी युति प्रेमियों के लिए शुभ संकेत होता है।
राहु अगर लग्न में स्थित है तोनवमांश कुण्डली या जन्म कुण्डली में से किसी में भी सप्तमेश तथा पंचमेश का किसी प्रकार दृष्टि या युति सम्बन्ध होने पर प्रेम विवाह होता है। लग्न भाव में लग्नेश हो साथ में चन्द्रमा की युति हो अथवा सप्तम भाव में सप्तमेश के साथ चन्द्रमा की युति हो तब भी प्रेम विवाह का योग बनता है। सप्तम भाव का स्वामी अगर अपने घर में है तब स्वगृही सप्तमेश प्रेम विवाह करवाता है। एकादश भाव पापी ग्रहों के प्रभाव में होता है तब प्रेमियों का मिलन नहीं होता है और पापी ग्रहों के अशुभ प्रभाव से मुक्त है तो व्यक्ति अपने प्रेमी के साथ सात फेरे लेता है। प्रेम विवाह के लिए सप्तमेश व एकादशेश में परिवर्तन योग के साथ मंगल नवम या त्रिकोण में हो या फिर द्वादशेश तथा पंचमेश के मध्य राशि परिवर्तन हो तब भी शुभ और अनुकूल परिणाम मिलता है।
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सप्तम भाव व भावी पति
प्रत्येक कन्या के मन में उसके भावी पति की तस्वीर कुछ इस तरह की होती है कि उसका पति सुंदर, आकर्षक, हृष्ट-पुष्ट, उत्तम चरित्र वाला, पढ़ा-लिखा, डॉक्टर, इंजीनियर या उद्योगपति होगा लेकिन वधू की पत्रिका द्वारा जाना जा सकता है कि उसका वर सपनों का राजा होगा या फिर लड़ाकू, कामुक या शराबी। कन्या की जन्म कुंडली में सप्तम स्थान उसके पति का होता है। यदि पत्रिका सही है तो उसके पति के संबंध में जाना जा सकता है।
यहाँ पर कुछ महत्वपूर्ण सूत्र देकर कुछ भावी पति के बारे में बताया जा रहा है लेकिन इन्हीं सूत्रों को ब्रह्म वाक्य नहीं माना जा सकता क्योंकि पुरुष की यानी वर की जन्म कुंडली को भी महत्व देना चाहिए। जन्म कुंडली का सप्तम भाव भावी पति के बारे में दर्शाता है। वहीं नवांश कुंडली भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखती है और नवांश प्रत्येक तीन मिनट में बदलती रहती है।
– सप्तम भाव में शुक्र स्वराशि वृषभ का हुआ तो पति अति सुन्दर होगा। सुन्दर से तात्पर्य गोरा नहीं, बल्कि नाक-नक्श उत्तम व चेहरा आकर्षक होगा। वृषभ का शुक्र कामुक भी बनाता है अतः वह कामुक भी होगा।
– सप्तम भाव में तुला का शुक्र हुआ तो वह वर कामुक न होकर सरल स्वभाव वाला सुन्दर आकर्षक व्यक्तित्व का व नपी-तुली बात करने वाला अपनी पत्नी से अत्यधिक प्रेम करने वाला होगा। कलाकार, संगीतप्रेमी, सौन्दर्य प्रिय, इंजीनियर या डॉक्टर भी हो सकता है।
– सप्तम भाव में कन्या की कुंडली में मीन राशि का शुक्र हुआ तो वह उच्च का होगा अतः उसका भावी जीवनसाथी काफी पैसे वाला होगा तथा भाग्यवान होकर धनी होगा।
– सप्तम भाव में यदि नीच राशि का शुक्र होता है तो उसका भावी पति अर्थहीन व स्त्री के धन का प्रयोग करने वाला होगा।
– सप्तम भाव में सूर्य सिंह दिशा में हो या नवांश में सिंह राशि हो तो वह कामुक होगा एवं दाम्पत्य जीवन सुखद कम ही रहेगा।
– सप्तम भाव में मेष का मंगल हुआ तो उसका पति पुलिस, सैनिक या संगठनकर्ता होगा, उसका स्वभाव उग्र भी हो सकता है एवं कामुक भी रहेगा।
– सप्तम भाव में वृश्चिक राशि का मंगल हुआ तो वह तुनकमिजाज होगा, कुछ व्यसनी भी हो सकता है या लड़ाकू प्रवृत्ति का भी हो सकता है। उसका चरित्र संदेहास्पद भी हो सकता है।
– सप्तम भाव में मंगल उच्च राशि का हुआ तो वह अत्यंत प्रभावशाली, महत्वाकांक्षी, उच्चपदस्थ अधिकारी या डॉक्टर, सेना या पुलिस विभाग में भी हो सकता है।
– सप्तम भाव में कर्क का चंद्रमा हुआ तो वह भावुक, सहनशील, स्नेही स्वभाव वाला, मधुरभाषी, पत्नी से अधिक प्रेम करने वाला, गौरवर्ण का सुन्दर होगा।
– सप्तम भाव में उच्च का चंद्रमा हुआ तो वह अत्यंत सुंदर, अनेक स्त्री मित्रों वाला, सौंदर्यप्रेमी, कामुक भी होगा।
– सप्तम भाव में मकर या कुंभ का शनि हो तो उसका पति उसकी उम्र से अधिक होगा।
– सप्तम भाव में शुक्र-चंद्र की युति हुई तो वह अत्यंत मनोविनोदी, सुंदर और अपनी पत्नी से अत्यधिक प्रेम करने वाला होगा।
– सप्तम भाव में बुध मिथुन राशि का हुआ तो उसका पति व्यापारिक या बैंककर्मी, लेखक, पत्रकार या विद्वान होगा।
– सप्तम भाव में उच्च का बुध हुआ तो उसका पति सुन्दर होने के साथ-साथ उच्च व्यापारी या बौद्धिक गुणों से भरपूर, उच्च पदस्थ अधिकारी भी हो सकता है।
– सप्तम भाव में धनु राशि का गुरु हुआ तो उसका भावी पति विद्वान, सुन्दर, गोल चेहरे वाला, प्रोफेसर या न्यायविद, अधिवक्ता या राजपत्रित अधिकारी, पत्नी से प्रेम करने वाला सद्चरित्र व ईमानदार होगा।
– सप्तम भाव में बुध-शनि की युति हो और उस पर मंगल की दृष्टि हो एवं उसे कोई भी शुभ ग्रह न देखता हो ना ही शुभ ग्रहों से मध्यस्थ हो तो उसका पति नपुंसक होता है।
– सप्तम भाव में उच्च का राहू या केतु हो तो उसका पति आधुनिक विचारों वाला व दार्शनिक भी हो सकता है।
– सप्तम भाव में चर राशि हो एवं चर ग्रह हो या चर ग्रहों से दृष्टिपात हो तो उसका पति सदैव बाहर रहने वाला होता है।
– सप्तम भाव पर नीच दृष्टि किसी भी ग्रह की पड़ रही हो तो उसका पति मध्यम स्तर वाला होगा।
– सप्तम भाव में सूर्य-चंद्र की युति हो तो उसका पति सदैव भ्रमणशील व परेशान रहकर गृहस्थ जीवन में बाधक होगा।
– सप्तम भाव पर गुरु-चंद्र की युति हो तो उसका पति विद्वान, गुणवान, चरित्रवान, सुन्दर, यशस्वी, मधुरभाषी, ईमानदार, उच्च पदस्थ अधिकारी, डॉक्टर या प्रोफेसर या न्यायाधीश भी हो सकता है।
– सप्तम भाव में मंगल-चंद्र की युति हो तो उसका पति सुंदर या उद्यमी हो सकता है। वहीं स्वभाव में मिला-जुला रुख रहेगा व भावुक भी होगा।
– सप्तम भाव में मंगल-चंद्र-शुक्र की युति वाली कन्या का पति अत्यंत सेक्सी स्वभाव वाला व चरित्र का कमजोर भी हो सकता है। गुरु की दृष्टि पड़ने पर चरित्रहीन नहीं होगा।
– शनि-चंद्र की युति सप्तम भाव में होने से उसका वर इंजीनियर या अस्थिरोग का या दाँतों का डॉक्टर भी हो सकता है।
– गुरु या राहू की युति वाली कन्या का पति गुप्त विधाओं का जानकार लेकिन चिन्ताग्रस्त चरित्र वाला रहेगा।
– यदि कन्या के जन्म लग्न में नीच का गुरु व चंद्रमा हो तो उसका पति गुणी व सुन्दर होगा।
– यदि कन्या की जन्म कुंडली में शनि की उच्च दृष्टि सप्तम भाव पर पड़ रही हो तो उसका पति प्रशासनिक अधिकारी या शासकीय सर्विस में उच्च पदस्थ या लोहे का व्यापारी या ट्रेवल्स एजेंसी का मालिक होगा।
उपरोक्त सूत्र कन्या की पत्रिका से ही संबंधित है अतः वर की जानकरी उक्त सूत्रों से जानी जा सकती है।
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कब होगा विवाह?
प्रश्न:
कैसे जानें विवाह कब होगा एवं वैवाहिक जीवन कैसा रहेगा?
सुखी वैवाहिक जीवन एवं संबंध विच्छेद होने वाले ज्योतिशीय योग कौन-कौन से हैं?
वैवाहिक जीवन को सुखी बनाने हेतु क्या-क्या उपाय किए जा सकते हैं ?
लग्न चक्र के आधार पर किसी का विवाह कब होगा, यह जानने के लिए भारतीय ज्योतिष के अनुसार जन्म कुंडली के प्रथम, द्वितीय, सप्तम और नवम भावों का विचार किया जाता है। मतांतर से इन भावों के अतिरिक्त चतुर्थ, पंचम और द्वादश भावों का विचार भी किया जाता है।
सप्तम भाव इन सब में प्रधान माना गया है। सप्तम भाव, उसमें स्थित ग्रह, सप्तम भाव पर पड़ने वाली शुभाशुभ ग्रहों की दृष्टि आदि का विचार विवाह काल जानने के लिए किया जाता है। विवाह के समय का आकलन करने के लिए विंशोत्तरी दशा, गोचर, गणितीय पद्धति आदि का विचार किया जाता है। विंशोत्तरी दशा के आधार पर: सप्तमेश की या सप्तम स्थान में विराजमान ग्रह की अथवा सप्तम भाव पर दृष्टि रखने वाले ग्रह या ग्रहों की दशा भुक्ति काल में विवाह होने की आशा रहती है। चंद्र, गुरु अथवा शुक्र की दशाओं में भी विवाह हो सकता है। सप्तमेश जिस राशि में बैठा हो उसके स्वामी ग्रह की दशा में विवाह हो सकता है। द्वितीयेश की दशा में अथवा द्वितीयेश जिस राशि में स्थित हो उसके स्वामी की दशा में विवाह होता है। सप्तमेश राहु या केतु से युत हो तो इनकी दशा भुक्ति में विवाह होता है। नवमेश और दशमेश की दशा में विवाह होता है।
विवाह का समय गोचर के आधार पर: विवाह के समय का अनुमान लगाने के लिए अर्थात् विवाह काल जानने के लिए विवाह की आयु होने पर उस समय की गोचर ग्रहों की स्थिति के आधार पर लग्नेश, सप्तमेश, बृहस्पति और शुक्र का विचार किया जाता है। जब गुरु गोचरवश सप्तम भाव वाली राशि अथवा उस राशि से पांचवीं या नौवीं राशि अथवा जन्मकालिक शुक्र जिस राशि में स्थित हो उस राशि में भ्रमण कर रहा हो, तब विवाह होता है।
विवाह योग्य आयु होने पर उस समय गोचरस्थ शनि और गुरु जन्म लग्न और लग्नेश, सप्तम भाव और सप्तमेश को निम्न स्थितियों में से किसी एक को देख रहे हों तो विवाह होता है-
सप्तम (जाया) स्थान और जन्म लग्न को। सप्तमेश और लग्नेश को। सप्तम स्थान और लग्नेश को। सप्तमेश और जन्म लग्न को। शनि का गोचर लगभग 30 मास या ढाई वर्ष एक राशि पर रहता है। शनि की ऐसी 30 मासीय प्रति राशि की गोचर अवधि में 12 या 13 माह के लगभग का समय ऐसा आता है जब शनि-गुरु पूर्वोक्त चार बिंदुओं में से किसी एक बिंदु में दर्शाए गए भाव एवं भावेश पर दृष्टि रखकर उन्हें बल प्रदान करते हैं। इस तरह स्थूल रूप में लगभग एक वर्ष या इससे भी कम अवधि में विवाह होने की संभावना रहती है। गुरु का गोचर काल तेरह मास का होता है जो मध्य के दो महीनों में अपना शुभाशुभ फल प्रदान करने में समर्थ होता है।
इस तरह गुरु का गोचर काल 390 दिनों का (30ग13=390) हुआ जिसके मध्य वाले 60 दिन अर्थात् 166वें दिन से लेकर 225 वें दिन तक (165$60$165=390) गुरु शुभ फल देने में समर्थ होता है। इस अवधि में विवाह हो सकता है, बशर्ते गुरु के गोचर वाले मध्य के ये 60 दिन विवाह विहित मास में पड़ते हों। गुरु के गोचर की विवाह हेतु सूक्ष्म गणना: त्रयोदश मासिक गुरु के गोचर काल की उक्त अवधि जिसमें गुरु निम्न बिंदुओं में दर्शाए गए जन्म कालिक ग्रह विशेष और भाव विशेष दोनों के साथ युति करे अथवा दृष्टि उन पर डाले तब जातक के विवाह होने की पूर्ण संभावना रहती है- जन्म कंुडली का पंचम भाव और पंचमेश।
जन्म कुंडली में विराजमान शुक्र और पंचमेश। जन्म कुंडली का नवम एवं नवमेश। जन्म कुंडली का पंचम एवं नवम भाव और पंचमेश एवं नवमेश। विवाह विषयक प्रश्न का उत्तर पाने के लिए जन्मपत्रिका के प्रथम, पंचम, नवम, एकादश एवं तृतीय भावों से विचार करते हैं। सप्तम भाव से सप्तम भाव प्रथम भाव या लग्न होता है। सप्तम भाव से पंचम भाव एकादश और सप्तम भाव तृतीय होता है। अतः ये तीनों स्थान वर-कन्या के लिए त्रिकोण तुल्य होते हैं। जब लग्नेश, सप्तमेश और कलत्र कारक शुक्र का गोचर ऊपर वर्णित किसी भी एक भाव पर हो तब विवाह होता है। लग्नेश आदि के स्पष्ट राशि अंशों के जोड़ के आधार पर: अंक गणितीय सूत्र से विवाह काल का आकलन, गुरु ग्रह के गोचर पर से लग्नेश, सप्तमेश, चंद्र और शुक्र के राशि अंशों के जोड़ से प्राप्त राशि से 5 वीं या 9 वीं राशि पर गुरु के गोचर में आने पर निम्न रूप में किया जा सकता है-
शुक्र, जन्म लग्नेश और सप्तमेश-इन तीनों ग्रहों के स्पष्ट राशि अंशों को परस्पर जोड़ें। जोड़ने पर यदि योग 12 से ज्यादा हो तो उसमें 12 राशियां घटा देनी चाहिए। शेष राशियों और अंशों के आधार पर जो राशि प्राप्त हो उससे पांचवीं या नौवीं राशि में जब गुरु गोचर करे तब विवाह होगा। लग्नेश एवं सप्तमेश या सप्तमेश और चंद्र के स्पष्ट राशि अंशों के योग द्वारा पूर्वोक्त बिंदु क्रमांक एक में दर्शाई गई विधि से गुरु के गोचर के अनुसार विवाह का समय ज्ञात किया जा सकता है।