Thursday, July 26, 2018

अप्सरा साधना

अप्सरा साधना

प्रेम को अभिव्यक्त करने का सौभाग्य और सशक्त माध्यम है अप्सरा साधना।

हिन्दू पौराणिक कथाओं में ऐसी अपूर्व सुंदरियों का उल्लेख मिलता है जो अपनी मोहक और कामुक अदाओं से किसी को भी अपना दीवाना बना देती थीं। इन्हें अप्सरा कहा जाता है और माना जाता है कि ये स्वर्ग लोक में रहती हैं। देवताओं द्वारा अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने में इनका उपयोग किया जाता था।
किसी को भी दीवाना बना देती थीं ये खूबसूरत युवतियां इनकी मोहक अदाओं में फंसकर अपना सब कुछ गवां बैठते थे महान और प्रभावशाली कहे जाने वाले लोग। आकर्षक सुन्दरतम वस्त्र, अलंकार और सौंदर्य प्रसाधनों
से युक्त-सुसज्जित, चिरयौवना रंभा के बारे में कहा जाता है कि उनकी साधना करने से साधक के शरीर के रोग, जर्जरता एवं बुढ़ापा समाप्त हो जाते हैं।

ऋग्वेद और महाभारत में कई अप्सराओं का उल्लेख है। स्वर्ग की चार अत्यंत सुंदर जिन चार अप्सराओं का ज्यादातर उल्लेख किया जाता है उनके नाम हैं उर्वशी, मेनका, रंभा और तिलोत्तमा। कहा जाता है कि इन्होंने
अपने रूप, सौंदर्य और कामुक अदाओं से कई ऋषि मुनियों की तपस्या भंग की और उन्हें पथभ्रष्ट कर दिया।
विश्वामित्र को रिझाया था अप्सरा ने हा जाता है कि अप्सराओं का सबसे ज्यादा उपयोग इंद्र ने किया। ऋषि
विश्वामित्र की कठोर तपस्या से इंद्र को यह भय हुआ कि वे कहीं उनके सिंहासन पर कब्जा न कर लें। जिस पर उन्होंने विश्वामित्र की तपस्या भंग करने उस समय की नामी अप्सरा रंभा को पृथ्वी लोक पर भेजा। रंभा ने
अपनी मोहक अदाओं से विश्वामित्र को लुभाने का प्रयास किया पर विश्वामित्र ने उसे श्राप दे दिया और वह पाषाण मूर्ति बन गई। रंभा के असफल रहने पर इंद्र ने रंभा से भी ज्यादा खूबसूरत अप्सरा मेनका को भेजा जिसने पहले एक युवती का रूप धरा और फिर अपनी मोहक व कामुक अदाओं से विश्वामित्र को वश में कर उनका तप भंग कर दिया।

इतनी सुंदर अप्सरा कभी नहीं देखी थी.


सुन्दर अण्डाकार गुलाबी रंग का चेहरा, मन-मोहिनी, मुख पर आभूषण धारण किए हुए, उन्नत गुलाब जैसी रंगत वाले स्तन धारण करने वाली सुन्दरीयां हैं, जिसके स्तन चुमने योग्य हो, स्तन पीने योग्य हो। जिसका कमर और नितम्बों का आकार सुराई की भांति हो। जिसकी आखें सम्मोहन युक्त, खंजर के समान, कमल नयन हो, जिसकी तरह एक नजर देख लें वो उसके मोहपाश में बन्ध जाए। लाल, पीले और श्वेत वस्त्रों को धारण करने वाली देव सुंदरीयों से कौन नहीं मिलना चाहता?

अप्सरा भी हमारे लोक की सुन्दरीयों की भांति ही होती हैं लेकिन पृथ्वी लोक पर सुन्दरीयों की अपनी परिभाषा, मर्यादा और अपना चिंतन होता हैं। यहां तो जो जरा सी सुन्दरता लिए हुए होती हैं उसमें इतना अहंकार आ जाता हैं जैसे मिस यूनिवर्स यह ही हैं। सच में तो मिस यूनिवर्स भी अप्सरा के सामने पानी भरती नजर आती हैं। इस दुनिया की लडकियां स्वार्थी होती हैं अहंकारी होती हैं, जरा सी बात से घबहारा जाती हैं परेशान हो जाती हैं और परेशान ही करती है, लेकिन अप्सरा इन सब भाव से परे होती हैं और अपने साधक को सच्चा प्रेम और सच्चा ज्ञान देती हैं। वैसे देव सुन्दरी भी इस दुनियां की लडकियों से जलती हैं यदि उनका साधक उसका प्रेम किसी में बाटता हैं। भगवान शंकर नें भी कहा हैं कि यदि अप्सरा से पत्नी का सम्बन्ध हो तो साधक को अपना प्यार किसी लडकी से नहीं बाटना चाहिए अन्यथा यह इन अप्सरा को अच्छा नहीं लगता और साधक को छोड देती हैं।

इन अप्सरा की साधना के मार्ग शास्त्रों में दिए हैं लेकिन साधना तभी सफल होती हैं जब अपने काम भाव को नियंत्रित रखा जाए। यदि कामवेग या काम भाव से साधना करी तो सफल नहीं होती हैं। साधना काल को छोड काम भावना परेशान करें तो कोई दिक्कत नहीं लेकिन साधना के दौरान कामभाव पर ध्यान ना देकर साधना पर ध्यान देना चाहिए।

अपने ऐसे किस्से तो सुने ही होगें कि इस इस अप्सरा नें इस इस ऋषि की साधना भंग कर दी मतलब यह कि उन ऋषि में साधना के दौरान कामभाव आ गए और ऐसी देवियों के प्रेम में पडकर क्या करना हैं भूल गए तो ऐसे में मनुष्य की क्या औकात? इसलिए कामभाव साधना शक्ति को क्षीण कर देता हैं और वो आपकी मंत्र की शक्ति से बाहर हो जाती हैं और अपने घर वापस चली जाती हैं। इस साधना में काम भाव पर नियत्रंण बहुत जरुरी हैं हां साधना सम्पन्न होने के बाद चाहे तो पत्नी रुप में भी सम्बन्ध रख सकता हैं।


साधना सामग्री :

प्राण प्रतिष्ठित अप्सरा यंत्र
अप्सरा माला , अप्सरा गुटिका और अप्सरा मुद्रिका भी

अप्सरा साधना विधि :

साधना करने के लिए आप एकांत स्थान चुन सकते वह वह उत्तम रहेगा. उस स्थान पर जाकर आप सफ़ेद वस्त्र बिछा लें और पीले चावल का इस्तेमाल करके एक यंत्र का निर्माण कर लें. उसके बाद ऐसे वस्त्र धारण कर लें जो सुगन्धित हो और उस पर इत्र लगा लें. इसके बाद एक मखमल का आसन लगा लें. इसका मुख उत्तर दिशा की तरफ कर लें. जो यंत्र अपने बनाया है उसका पंचोपकर पूजन कर लें और जिस कमरे में आप बैठे है उसमे गुलाब के इत्र का प्रयोग कर लें. अपने आस पास ऐसा माहौल बना लें कि चारो और से महक आती रहे. इसके बाद गुरु गणपति का धयन करें और स्फटिक मणिमाला का मंत्र के साथ 108 माला जाप कर लें. यह आपको आधी रात के समय में करना है. यह आप किसी भी महीने में कर सकते है लेकिन इसको केवल शुक्रवार के दिन ही करने से सफलता मिलती है.
इसके अलावा अगर चन्द्र ग्रहण के समय करने से भी अपर सफलता प्राप्त की जा सकती है. जब आपका जाप पूरा हो जाये तो उसी जगह पर सो जाएँ. अगर आप कुछ दिन की साधना कर लें तो आप स्वयं ही महसूस कर सकते है इस साधना का प्रभाव. एकदम से पुरे कमरे में जहाँ आप जप कर रहे होते है उसमे खुशबू फ़ैल जाएगी. इसके अलावा घुंगरू की आवाज़े भी आपको सुनाई देंगी. जब तक आपकी माला पूरी नहीं हो जाती है तब तक अपना ध्यान विचलित ना होने दें. जिस दिन साधना का अंतिम दिन होता है उस दिन गुलाब के फूलों से बनी एक माला रख लें. इसके बाद माला फेर लें तब आपको अप्सरा मिल जाएगी. अप्सरा आपकी गोद में होगी. वह आपके साथ शरारत करती है ताकि आपका ध्यान साधना से हट सके. साधना के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक है अपना ध्यान विचलित ना होने दें. जब आपकी साधना पूरी हो जाये तब गुलाब के फूलों की माला अप्सरा के गले में पहना दें. वह आपसे उसी प्रकार लिपट जाएगी जैसे लता पेड़ से लिपटी रहती है और उसके गले में जो मोती की माला होती है वो माला भी वह आपको पहना देगी. इसके अलावा वह आपसे कहेगी अब मुझ पर आपका ही अधिकार है आप जब चाहो जहाँ चाहो मुझे बुला सकते है. इसके बाद वह चली जाएगी लेकिन आपके याद करने पर फिर से आ जाएगी. इसके लिए आपको एक मन्त्र का जाप करना होगा.

विधि : पूजन के लिए स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ-सुथरे आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा में मुंह करके बैठ जाएं। पूजन सामग्री अपने पास रख लें।

बायें हाथ मे जल लेकर, उसे दाहिने हाथ से ढ़क लें। मंत्रोच्चारण के साथ जल को सिर, शरीर और पूजन सामग्री पर छिड़क लें या पुष्प से अपने को जल से छिडके।
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ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥
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(निम्नलिखित मंत्र बोलते हुए शिखा/चोटी को गांठ लगाये / स्पर्श करे)
ॐ चिद्रूपिणि महामाये! दिव्यतेजःसमन्विते। तिष्ठ देवि! शिखामध्ये तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे॥
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(अपने माथे पर कुंकुम या चन्दन का तिलक करें)
ॐ चन्दनस्य महत्पुण्यं, पवित्रं पापनाशनम्।  आपदां हरते नित्यं, लक्ष्मीस्तिष्ठति सर्वदा॥
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(अपने सीधे हाथ से आसन का कोना जल/कुम्कुम थोडा डाल दे) और कहे
ॐ पृथ्वी! त्वया धृता लोका देवि! त्वं विष्णुना धृता।  त्वं च धारय मां देवि! पवित्रं कुरु चासनम्॥
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संकल्प:- दाहिने हाथ मे जल ले।

मैं ........अमुक......... गोत्र मे जन्मा,................... यहाँ आपके पिता का नाम.......... ......... का पुत्र .............................यहाँ आपका नाम....................., निवासी.......................आपका पता............................ आज सभी देवी-देव्ताओं को साक्षी मानते हुए अप्सरा की पुजा, गण्पति और गुरु जी की पुजा  अप्सरा के साक्षात दर्शन की अभिलाषा और प्रेमिका रुप मे प्राप्ति के लिए कर रहा हूँ जिससे  अप्सरा प्रसन्न होकर दर्शन दे और मेरी आज्ञा का पालन करती रहें साथ ही साथ मुझे प्रेम, धन धान्य और सुख प्रदान करें।

जल और सामग्री को छोड़ दे।
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गणपति का पूजन करें।

ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात पर ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
ॐ श्री गुरु चरणकमलेभ्यो नमः। ॐ श्री गुरवे नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।

सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्रयंबके गौरी नारायणि नमोअस्तुते
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अब अप्सरा का ध्यान करें और सोचे की वो आपके सामने हैं।

दोनो हाथो को मिलाकर और फैलाकर कुछ नमाज पढने की तरफ बना लो। साथ ही साथ

“ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं श्रीं अप्सरा आगच्छ आगच्छ स्वाहा”

 मंत्र का 21 बार उचारण करते हुए एक एक गुलाब थाली मे चढाते जाये। अब सोचो कि अप्सरा आ चुकी हैं।

हे सुन्दरी! तुम तीनो लोकों को मोहने वाली हो! तुम्हारी देह गोरे गोरे रंग के कारण अतयंत चमकती हुई हैं। तुमनें अनेको अनोखे गहने पहने हुये और बहुत ही सुन्दर वस्त्र को पहना हुआ हैं। आप जैसी सुन्दरी अपने साधक की समस्त मनोकामना को पुरी करने मे जरा सी भी देरी नही करती। ऐसी विचित्र सुन्दरी को मेरा कोटि कोटि प्रणाम।

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इन गुलाबो के सभी गन्ध से तिलक करे। और स्वयँ को भी तिलक कर लें।
मोली/कलवा चढाये : वस्त्रम् समर्पयामि ॐ  अप्सरायै नमः
गुलाब का इत्र चढाये : गन्धम समर्पयामि ॐ  अप्सरायै नमः
फिर चावल (बिना टुटे) : अक्षतान् समर्पयामि ॐ  अप्सरायै नमः
पुष्प : पुष्पाणि समर्पयामि ॐ अप्सरायै नमः
अगरबत्ती : धूपम् आघ्रापयामि ॐ अप्सरायै नमः
दीपक (देशी घी का) : दीपकं दर्शयामि ॐ अप्सरायै नमः
मिठाई से पुजा करें।: नैवेद्यं निवेदयामि ॐ  अप्सरायै नमः
फिर पुजा सामप्त होने पर सभी मिठाई को स्वयँ ही ग्रहण कर लें।
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पहले एक मीठा पान (पान, इलायची, लोंग, गुलाकन्द का) अप्सरा को अर्प्ति करे और स्वयँ खाये। इस मंत्र की स्फाटिक की माला से 108 माला जपे और ऐसा 42 दिन करनी हैं।

ईं श्रीं श्रीं श्रीं अप्सरा श्रीं श्रीं श्रीं ईं स्वाहा
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यहाँ देवी को मंत्र जप समर्पित कर दें। क्षमा याचना कर सकते हैं। जप के बाद मे यह माला को पुजा स्थान पर ही रख दे। मंत्र जाप के बाद आसन पर ही पाँच मिनट आराम करें।

अंतिम दिन जब अप्सरा दर्शन दे तो फिर मिठाई इत्र आदि अर्पित करे और प्रसन्न होने पर अपने मन के अनुसार वचन लेने की कोशिश कर सकते हैं।

पुजा के अंत मे एक चम्मच जल आसन के नीचे जरुर डाल दें और आसन को प्रणाम कर ही उठें। 
॥ ॐ तत्सत ॥

मंत्र :
॥ ॐ उर्वशी प्रिय वशं करी हुं ॥

इस मन्त्र को लिख कर इसके नीचे अपना नाम अपना नाम भी लिख ले. नाम लिखने के लिए कैसर के इस्तेमाल का ले. ऐसा करने के बाद अप्सरा माला लेकर इस मन्त्र के साथ 108 माला होने तक जाप कर ले.
आपको पहले भी बताया जा चूका है कि इसको आप शुक्रवार को ही प्रयोग कर सकते है. इसके अलावा आप एक पीले रंग का आसन बना लें और साथ में पीले वस्त्र से एक अप्सरा यंत्र बना लें. इसके सामने पांच गुलाब के फूल भी रख लें. एक घी का दीपक लें और अगरबती भी लेकर दोनों को जला दें.

मंत्र :
॥ ॐ ह्रीं रंभा अप्सराय आगच्छागच्छ स्वाहा ॥

यह साधना 42 दिन तक करनी है और रोज़ इसके 108 माला होने तक जप करने होते है. जब आपकी साधना पूरी हो जाये तब अप्सरा यंत्र को एक धागे में पिरो लें और अपने गले में पहन लें. इसके बाद जब भी आप अप्सरा का साथ चाहते है तीन बार मन्त्र का जाप कर लें, अप्सरा आपके पास आपकी गोद में होगी.


साधना विधि
सामग्री - प्राण प्रतिष्ठित अप्सरा यंत्र, अप्सरा माला, अप्सरा गुटिका तथा अप्सरा मुद्रिका।
यह रात्रिकालीन 42 दिन की साधना है। इस साधना को किसी भी पूर्णिमा या शुक्रवार को अथवा किसी भी विशेष मुहूर्त में प्रारंभ करें। साधना प्रारंभ करने से पूर्व साधक को चाहिए कि स्नान आदि से निवृत होकर अपने सामने चौकी पर गुलाबी वस्त्र बिछा लें, पीला या सफ़ेद किसी भी आसान पर बैठे, आकर्षक और सुन्दर वस्त्र पहनें। पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें। घी का दीपक जला लें। सामने चौकी पर एक थाली रख लें, दोनों हाथों में गुलाब की पंखुडियां लेकर अप्सरा का आह्वान करें।

|| ॐ ! रंभे अगच्छ पूर्ण यौवन संस्तुते ||

यह आवश्यक है कि यह आह्वान कम से कम 101 बार अवश्य हो प्रत्येक आह्वान मंत्र के साथ गुलाब की पांखुरी थाली में रखें। इस प्रकार आवाहन से पूरी थाली पांखुरियों से भर दें।
अब अप्सरा माला को पांखुरियों के ऊपर रख दें इसके बाद अपने बैठने के आसान पर ओर अपने ऊपर
इत्र छिडकें। अप्सरा यंत्र को माला के ऊपर आसन पर स्थापित करें। गुटिका को यन्त्र के दाएं तरफ तथा साफल्य मुद्रिका को यंत्र के बाएं तरफ स्थापित करें। सुगन्धित अगरबती एवं घी का दीपक साधनाकाल तक जलते रहना चाहिए। सबसे पहले गुरु पूजन ओर गुरु मंत्र जप कर लें। फिर यंत्र तथा अन्य साधना सामग्री का पंचोपचार से पूजन संपन्न करें। स्नान, तिलक, धूप, दीपक एवं पुष्प चढ़ाएं। इसके बाद बाएं हाथ में गुलाबी रंग से रंग हुआ चावल रखें, ओर निम्न मंत्रों को बोलकर यंत्र पर चढ़ाएं।

|| ॐ दिव्यायै नमः ||
|| ॐ प्राणप्रियायै नमः ||
|| ॐ वागीश्वर्ये नमः ||
|| ॐ ऊर्जस्वलायै नमः ||
|| ॐ सौंदर्य प्रियायै नमः ||
|| ॐ यौवनप्रियायै नमः ||
|| ॐ ऐश्वर्यप्रदायै नमः ||
|| ॐ सौभाग्यदायै नमः ||
|| ॐ धनदायै रम्भायै नमः ||
|| ॐ आरोग्य प्रदायै नमः ||

इसके बाद प्रतिदिन निम्नलिखित मंत्र से 108 माला प्रतिदिन जप करें |

मंत्र :
 || ॐ हृीं रं रम्भे ! आगच्छ आज्ञां पालय मनोवांछितं देहि ऐं ॐ नमः ||

प्रत्येक दिन अप्सरा आह्वान करें। हर शुक्रवार को दो गुलाब की माला रखें, एक माला स्वंय पहन लें, दूसरी माला को रखें, जब भी ऐसा आभास हो कि किसी का आगमन हो रहा है अथवा सुगन्ध एकदम बढ़ने लगे अप्सरा का बिम्ब नेत्र बंद होने पर भी स्पष्ट होने लगे तो दूसरी माला सामने यन्त्र पर पहना दें। 42 दिन की साधना में प्रत्येक दिन नए-नए अनुभव होते हैं, चित्त में सौंदर्य भाव बढ़ने लगता है, कई बार तो रूप में अभिवृद्धि स्पष्ट दिखाई देती है। साधना पूर्णता के पश्चात मुद्रिका को अनामिका अंगुली में पहन लें, शेष सभी सामग्री को जल में प्रवाहित कर दें। यह सुपरिक्षित साधना है। पूर्ण मनोयोग से साधना करने पर अवश्य मनोकामना पूर्ण होती ही है।




नियम जिनका पालन अधिक से अधिक इस साधना मे करना चाहिए वो सब नीचे लिखे हैं।

मैं तो इतना ही कहुगाँ कि इस साधना को नए साधक और ऐसे आदमी को जरुर करना चाहिए जो देवी देवता मे यकीन ना रखता हो। यदि ऐसे लोगों थोडा सा विश्वास करके भी इस साधना को करते हैं तो उन्हें कुछ ना कुछ अच्छे परिणाम जरुर मिलने चाहिए।
किसी भी साधना मैं सबसे महत्वपुर्ण भाग उसके नियम हैं. सामान्यता सभी साधना में एक जैसे नियम होते हैं. परतुं मैं यहाँ पर विशेष तौर पर और अप्सरा साधना में प्रयोग होने वाले नियम का उल्लेख कर रहा हूँ ।

1. ब्रह्मचये : सभी साधना मैं ब्रह्मचरी रहना परम जरुरी होता हैं. सेक्स के बारे में सोचना, करना, किसी स्त्री के बारे में विचारना, सम्भोग, मन की अपवित्रा, गन्दे चित्र देखना आदि सब मना हैं, अगर कुछ विचारना हैं तो केवल अपने ईष्‍ट को, आप सदैव यह सोचे कि वो सुन्दर सी अलंकार युक्त अप्सरा या देवी आपके पास ही मौजुद हैं और आपको देख रही हैं. और उसके शरीर में से ग़ुलाब जैसी या अष्टगन्ध की खुशबू आ रही हैं । साकार रुप मैं उसकी कल्पना करते रहो.

2. भूमि शयन : केवल जमीन पर ही अपने सभी काम करें. जमीन पर एक वस्त्र बिछा सकते हैं और बिछना भी चाहिए

3. भोजन : मांस, शराब, अन्डा, नशे, तम्बाकू, लहसुन, प्याज आदि सभी का प्रयोग मना हैं. केवल सात्विक भोजन  ही करें.

4. वस्त्र : वस्त्रो में उन्ही रंग का चुनाव करें जो देवता पसन्द करता हो.( आसन, पहनने और देवता को देने के लिये) (सफेद या पीला अप्सरा के लिये)

5. क्या करना हैं :- नित्य स्नान, नित्य गुरु सेवा, मौन, नित्य दान, जप में ध्यान- विश्वास, रोज पुजा करना आदि अनिवार्य हैं. और जप से कम से कम दो-तीन घंटे पहले भोजन करना चाहिए

6. क्या ना करें :-  जप का समय ना बद्ले, क्रोध मत करो, अपना आसन किसी को प्रयोग मत करने दो, खाना खाते समय और सोकर जागते समय जप ना करें. बासी खाना ना खाये, चमडे का प्रयोग ना करना, साधना के अनुभव साधना के दोरान किसी को मत बताना (गुरु को छोडकर)

7. मंत्र जप के समय कृपा करके नींद्, आलस्य, उबासी, छींक, थूकना, डरना, लिंग को हाथ लगाना, बक्वास, सेल फोन को पास रखना, जप को पहले दिन निधारित संख्या से कम-ज्यादा जपना, गा-गा कर जपना, धीमे-धीमे जपना, बहुत् तेज-तेज जपना, सिर हिलाते रहना, स्वयं हिलते रहना, मंत्र को भुल जाना( पहले से याद नहीं किया तो भुल जाना ), हाथ-पैंर फैलाकर जप करना, पिछ्ले दिन के गन्दे वस्त्र पहनकर मंत्र जप करना, यह सब कार्य मना हैं (हर मंत्र की एक मुल ध्वनि होती हैं अगर मुल ध्वनि- लय में मंत्र जपा तो मज़ा ही जायेगा, मंत्र सिद्धि बहुत जल्द प्राप्त हो सकती हैं जो केवल गुरु से सिखी जा सकती हैं )

8. यादि आपको सिद्धि करनी हैं तो श्री शिव शंकर भगवान के कथन को कभी ना भुलना कि "जिस साधक की जिव्हा परान्न (दुसरे का भोजन) से जल गयी हो, जिसका मन में परस्त्री (अपनी पत्नि के अलावा कोई भी) हो और जिसे किसी से प्रतिशोध लेना हो उसे भला केसै सिद्धि प्राप्त हो सकती हैं"

9. और एक सबसे महत्वपुर्ण कि आप जिस अप्सरा की साधना उसके बारे में यह ना सोचे कि वो आयेगी और आपसे सेक्स करेंगी क्योंकि वासना का किसी भी साधना में कोई स्थान नहीं हैं । बाद कि बातें बाद पर छोड दे । क्योंकि सेक्स में उर्जा नीचे (मुलाधार) की ओर चलती हैं जबकि साधना में उर्जा ऊपर (सहस्त्रार) की ओर चलती हैं

10. किसी भी स्त्री वर्ग से केवल माँ, बहन, प्रेमिका और पत्नी का सम्बन्ध हो सकता हैं । यही सम्बन्ध साधक का अप्सरा या देवी से होता हैं।

11.यह सब वाक सिद्ध होती हैं । किसी के नसिब में अगर कोई चीज़ ना हो तब भी देने का समर्थ रखती हैं । इनसे सदैव आदर से बात करनी चाहिए।




ॐ लृं स: अर्पण देव्यां अगच्छ स्वाहा

ॐ सः रम्भे आग्च्छागच्छ स्वाहा

ॐ श्रीं उर्वशी आग्च्छागच्छ स्वाहा

ॐ श्रीं तिलोतमे आग्च्छागच्छ स्वाहा

ॐ श्रीं रतनमाले आग्च्छागच्छ स्वाहा

ऊँ रं क्षं रंभे आगच्छ आगच्छ क्षं रं ऊँ नम:


इस मंत्र को सिद्ध करने के बाद आप जब भी अप्सरा को बुलाना चाहे इस मंत्र का उच्चारण करें। वह आपके सामने प्रकट होकर आपकी इच्छा पूर्ण करेगी।


अप्सरा इन्द्रलोक (स्वर्ग) की सुंदर नारी है जो देवराज इन्द्र की सेवा में सदैव तत्पर रहती है। ये सामान्य नर्तकी मात्र नहीं होती वरन दैवीय शक्ति होती हैं। जिस भी व्यक्ति को अप्सरा मिल जाती है, उसके लिए कुछ भी कठिन नहीं रह जाता।

ये अपनी इच्छा से रूप बदल सकती है, किसी भी व्यक्ति का भूत, वर्तमान और भविष्य बता सकती है। शास्त्रों के अनुसार अप्सराएं आध्यात्मिक शक्ति संपन्न होती है और व्यक्ति की अमर होने के अलावा हर इच्छा को पूरी कर सकती है चाहे वो उसके भाग्य में ही न हो।

अप्सराओं से मिलना सौभाग्य की बात है। यह विद्या हर किसी के लिए न तो संभव है और न ही हर व्यक्ति इसे पूर्ण कर सकता है। जब भी आप अप्सरा को प्राप्त करने की इच्छा से अपना अनुष्ठान शुरू करें, तब से लेकर अनुष्ठान पूरा होने तक व्यक्ति को एक संत की तरह रहना होता है। उसे अपनी वासनाओं, आकांक्षाओं और इच्छाओं पर नियंत्रण करना होता है। अप्सरा से मिलने के बाद आप बेशक अपनी हर इच्छा पूरी कर सकते हैं बशर्ते उससे किसी की बुरा न होता हो।

Sunday, July 8, 2018

नाग स्तोत्रम् NAG STOTRAM

नाग स्तोत्रम्

ब्रह्म लोके च ये सर्पाः शेषनागाः पुरोगमाः।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥१॥

विष्णु लोके च ये सर्पाः वासुकि प्रमुखाश्चये।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥२॥

रुद्र लोके च ये सर्पाः तक्षकः प्रमुखास्तथा।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥३॥

खाण्डवस्य तथा दाहे स्वर्गन्च ये च समाश्रिताः।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥४॥

सर्प सत्रे च ये सर्पाः अस्थिकेनाभि रक्षिताः।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥५॥

प्रलये चैव ये सर्पाः कार्कोट प्रमुखाश्चये।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥६॥

धर्म लोके च ये सर्पाः वैतरण्यां समाश्रिताः।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥७॥

ये सर्पाः पर्वत येषु धारि सन्धिषु संस्थिताः।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥८॥

ग्रामे वा यदि वारण्ये ये सर्पाः प्रचरन्ति च।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥९॥

पृथिव्याम् चैव ये सर्पाः ये सर्पाः बिल संस्थिताः।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥१०॥

रसातले च ये सर्पाः अनन्तादि महाबलाः।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥११॥

॥इति नाग स्तोत्रम् संपूर्णं॥

Friday, July 6, 2018

MAHAKALI SADHNA FROM SEX PART 1सम्भोग से महाकाली साधना भाग 1

MAHAKALI SADHNA FROM SEX PART 1सम्भोग से महाकाली साधना भाग 1

भैरवी को माध्यम बनाकर सभी देवी-देवता, काल्पनिक शक्तियों से लेकर भूत-प्रेत-पिशाचिनी-डाकिनी तक सिद्ध किया जाता है। महाकाल, रूद्र, काली, दुर्गा, कमला, अर्द्धनारीश्वर, श्री कृष्ण, विष्णु आदि की भी सिद्धि कि जाती है।

नित्या रुपी सभी देवियों की साधना भैरवी के माध्यम से की जाती है। भैरव जी, अगिया बैताल आदि की भी। वस्तुतः यह कोई साधना नहीं है, साधना मार्ग है। इसमें कुछ भी सिद्ध किया जा सकता है। मन्त्र भी और काल्पनिक शक्तियां भी।

इसमें इस ज्ञान की आवश्यकता है कि किस बिंदु से किस शक्ति का सम्बन्ध है। जैसे कर्ण पिशाचिनी। यह वायुतत्व से सबन्धित शक्ति है। यानी कंठ और स्वाधिष्ठान चक्र। इसकी ताकत को आज्ञाचक्र पर केन्द्रित किया जाता है।
हमारे शरीर की एक ऊर्जा –संरचना है और इसमें पृथ्वी के वातावरण के अनुसार परिवर्तन होता रहा है। हमारी ज्योतिष विद्या इसी पर आधारित है। पर तन्त्र में इस वैज्ञानिक सत्य का प्रयोग दूसरे ही रूप में होता है। विशेषकर अघोर विद्या , महाकाल विद्या, श्री विद्या और भैरवी विद्या की साधानाओं में।

भैरवी साधनाओं में शरीर के विष एवं अमृत स्थानों का ज्ञान और उनकी चन्द्रमा की तिथि से ‘गति क्रम’ को जानना प्रत्येक साधक साधिका के लिए आवश्यक है। यदि कोई स्त्री-पुरुष का जोड़ा चाहे वह प्रेमी-प्रेमिका हो या पति-पत्नी इन अंगों इनकी गति को जानकर रात्रि में 9 बजे के बाद केवल विधिवत आपस में अंग न्यास करें ; तो उन दोनों को देवी-तत्व की प्राप्ति होती है और सुख –शांति के साथ कुछ अलौकिक शक्तियों की भी प्राप्ति होती हैं।
यह केवल भैरवी साधना का ही सत्य नहीं है। 

सभी प्रकार की सिद्धि-साधनाओं में पूजन की प्रक्रिया को जटिल से जटिलतम बनाया गया है। पर जब साधना की बात आती है, तो वातावरण, मुद्राओं, शरीर के चक्रों पर ध्यान लगाकर मंत्र जप करना ही सर्वत्र है। चाहे श्मसान में साधना करनी हो या घर में इसकी वास्तविक वैज्ञानिक प्रक्रिया यही है; शेष सभी तामझाम है; जो केवल संकल्प को और साधक की धैर्य सीमा को परसने के लिए लिए है। कारण यह है कि यहाँ भी सभी मार्ग के प्रसिद्ध आचार्यों ने मानसिक पूजा का ही महत्तव दिया है। मानसिक पूजा के बिना बाह्यपूजा  का कोई अर्थ नहीं है।


भैरवी साधना के लिए इच्छुक भैरवियों का स्वागत है, व्हाट्सप्प पर केवल वीडयो कॉल करें से सम्पर्क करें |

विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )